बहुत बरकत वाला है वह (अल्लाह), जिसने अपने बंदे[1] पर फ़ुरक़ान[2] उतारा, ताकि वह समस्त संसार-वासियों को सावधान करने वाला हो।
1. इससे अभिप्राय मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं, जो पूरे मानव संसार के लिए नबी बनाकर भेजे गए हैं। ह़दीस में है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि मुझसे पहले नबी अपनी विशेष जाति के लिए भेजे जाते थे, और मुझे सर्व साधारण लोगों की ओर नबी बनाकर भेजा गया है। (सह़ीह़ बुख़ारी : 335, सह़ीह़ मुस्लिम : 521) 2. फ़ुरक़ान का अर्थ है सच और झूठ, एकेश्वरवाद और बहुदेववाद, न्याय और अन्याय के बीच अंतर करने वाला। इससे अभिप्राय क़ुरआन है।
(वह अस्तित्व) जिसके लिए आकाशों तथा धरती का राज्य है, तथा उसने (अपने लिए) कोई संतान नहीं बनाई, और न कभी राज्य में उसका कोई साझी रहा है। तथा उसने प्रत्येक वस्तु की उत्पत्ति की, फिर उसका उचित अंदाज़ा निर्धारित किया।
और उन्होंने उसके अतिरिक्त अनेक पूज्य बना लिए, जो किसी चीज़ को पैदा नहीं करते और वे स्वयं पैदा किए जाते हैं और न वे अधिकार रखते हैं अपने लिए किसी हानि का और न किसी लाभ का, तथा न अधिकार रखते हैं मरण का और न जीवन का और न पुनः जीवित करने का।
तथा काफ़िरों ने कहा : यह[3] तो बस एक झूठ है, जिसे इसने[4] स्वयं गढ़ लिया है और इसपर अन्य लोगों ने उसकी सहायता की है। तो निःसंदेह वे घोर अन्याय और झूठ पर उतर आए हैं।
3. अर्थात क़ुरआन। 4. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने।
तथा उन्होंने कहा : इस रसूल को क्या है कि यह खाना खाता है और बाज़ारों में चलता-फिरता है? इसकी ओर कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं उतारा गया कि वह इसके साथ सावधान करने वाला होता?
अथवा उसकी ओर कोई खज़ाना उतार दिया जाता अथवा उसका कोई बाग़ होता, जिसमें से वह खाता? तथा अत्याचारियों ने कहा : तुम तो बस एक जादू किए हुए व्यक्ति का अनुसरण कर रहे हो।
तथा जिस दिन वह उन्हें और जिनको वे अल्लाह के सिवा पूजते थे, एकत्र करेगा। फिर कहेगा : क्या तुमने मेरे इन बंदों को पथभ्रष्ट किया था, अथवा वे स्वयं मार्ग से भटक गए थे?
वे कहेंगे : तू पवित्र है! हमारे योग्य नहीं था कि हम तेरे सिवा किसी तरह के संरक्षक[7] बनाते। परंतु तूने उन्हें और उनके बाप-दादों को समृद्धि प्रदान की, यहाँ तक कि वे तेरी याद को भूल गए और वे विनष्ट होने वाले लोग थे।
7. अर्थात जब हम स्वयं दूसरे को अपना संरक्षक नहीं समझे, तो फिर अपने विषय में यह कैसे कह सकते हैं कि हमें अपना रक्षक बना लो?
तो उन्होंने[8] तुम्हें उस बात में झुठला दिया, जो तुम कहते हो। अतः तुम न किसी तरह (यातना) हटाने की शक्ति रखते हो और न किसी मदद की। और तुममें से जो अत्याचार[9] करेगा, हम उसे बहुत बड़ी यातना चखाएँगे।
8. यह अल्लाह का कथन है, जो वह मिश्रणवादियों से कहेगा कि तुम्हारे पूज्यों ने स्वयं अपने पूज्य होने को नकार दिया। 9. अत्याचार से तात्पर्य शिर्क (मिश्रणवाद) है। (सूरत-लुक़मान, आयत : 13)
और हमने आपसे पहले कोई रसूल नहीं भेजे, परंतु निश्चय वे खाना खाते थे और बाज़ारों में चलते-फिरते[10] थे। तथा हमने तुममें से एक को दूसरे के लिए एक परीक्षण बनाया है। क्या तुम धैर्य रखोगे? तथा आपका पालनहार हमेशा से सब कुछ देखने[11] वाला है।
10. अर्थात वे मानव पुरुष थे। 11. आयत का भावार्थ यह है कि अल्लाह चाहता, तो पूरा संसार रसूलों का साथ देता। परंतु वह लोगों की रसूलों द्वारा तथा रसूलों की लोगों द्वारा परीक्षा लेना चाहता है कि लोग ईमान लाते हैं या नहीं और रसूल धैर्य रखते हैं या नहीं।
तथा उन लोगों ने कहा जो हमसे मिलने की आशा नहीं रखते : हमपर फ़रिश्ते क्यों न उतारे गए, या हम अपने रब को देखते? नि:संदेह वे अपने दिलों में बहुत बड़े बन गए तथा बड़ी सरकशी[12] पर उतर आए।
12. अर्थात ईमान लाने के लिए अपने समक्ष फ़रिश्तों के उतरने तथा अल्लाह को देखने की माँग करके।
और जिस दिन आकाश बादल के साथ[15] फट जाएगा और फ़रिश्ते निरंतर उतारे जाएँगे।
15. अर्थात आकाश चीरता हुआ बादल छा जाएगा और अल्लाह अपने फ़रिश्तों के साथ लोगों का ह़िसाब करने के लिए ह़श्र के मैदान में आ जाएगा। (देखिए सूरतुल-बक़रह,आयत : 210)
तथा कुफ़्र करने वालों ने कहा : यह क़ुरआन उसपर एक ही बार[18] क्यों नहीं उतार दिया गया? इसी प्रकार (हमने उतारा) ताकि हम इसके साथ आपके दिल को मज़बूत करें और हमने इसे ख़ूब ठहर-ठहर कर पढ़कर सुनाया है।
18. अर्थात तौरात तथा इंजील के समान एक ही बार क्यों नहीं उतारा गया, आगामी आयतों में इसका कारण बताया जा रहा है कि क़ुरआन 23 वर्ष में क्रमशः आवश्यकतानुसार क्यों उतारा गया।
और नूह़ के समुदाय को भी जब उन्होंने रसूलों को झुठलाया, तो हमने उन्हें डुबो दिया और उन्हें लोगों के लिए एक निशानी बना दिया। तथा हमने अत्याचारियों के लिए एक दुःखदायी यातना[19] तैयार कर रखी है।
और निश्चय ही ये लोग[21] उस बस्ती[22] पर आ चुके हैं, जिसपर बुरी वर्षा की गई। तो क्या ये लोग उसे देखा नहीं करते थे? बल्कि ये लोग पुनः जीवित करके उठाए जाने की आशा नहीं रखते थे।
21. अर्थात मक्का के मुश्रिक। 22. अर्थात लूत जाति की बस्ती पर, जिसका नाम "सदूम" था, जिसपर पत्थरों की वर्षा हुई। फिर भी शिक्षा ग्रहण नहीं की।
निःसंदेह यह तो क़रीब था कि हमें हमारे पूज्यों से भटका ही देता, यदि हम उनपर अडिग न रहते। और शीघ्र ही वे जान लेंगे, जब वे यातना देखेंगे, कि मार्ग से अधिक पथभ्रष्ट कौन है?
क्या आपने अपने रब को नहीं देखा कि उसने किस तरह छाया को फैला दिया? और यदि वह चाहता, तो उसे अवश्य स्थिर[24] कर देता। फिर हमने सूर्य को उसका पता[25] बताने वाला बनाया।
24. अर्थात सदा छाया ही रहती। 25. अर्थात छाया सूर्य के साथ फैलती तथा सिमटती है। और यह अल्लाह के सामर्थ्य तथा उसके एकमात्र पूज्य होने का प्रामाण है।
और वे अल्लाह के सिवा उस चीज़ की इबादत करते हैं, जो न उन्हें फ़ायदा पहुँचाती है और न नुक़सान पहुँचाती है और काफ़िर हमेशा अपने पालनहार के विरुद्ध मदद करने वाला है।
तथा उस सदा जीवंत पर भरोसा कीजिए, जो कभी नहीं मरेगा। और उसकी प्रशंसा के साथ पवित्रता का गान कीजिए। और वह अपने बंदों के गुनाहों की पूरी ख़बर रखने वाला काफ़ी है।
जिसने आकाशों तथा धरती को और जो कुछ उनके बीच है, छह दिनों में पैदा किया, फिर अर्श (सिंहासन) पर बुलंद हुआ। (वह) बहुत दयालु है। अतः उसके बारे में किसी पूर्ण जानकार से पूछिए।
और जब उनसे कहा जाता है कि 'रह़मान' (अत्यंत दयावान्) को सजदा करो, तो कहते हैं कि 'रह़मान' क्या है? क्या हम उसे सजदा करें, जिसके लिए तू हमें आदेश देता है? और यह बात उन्हें बिदकने में और बढ़ा देती है।
और जो अल्लाह के साथ किसी दूसरे पूज्य[34] को नहीं पुकारते, और न उस प्राण को क़त्ल करते हैं, जिसे अल्लाह ने ह़राम ठहराया है परंतु हक़ के साथ और न व्यभिचार करते हैं। और जो ऐसा करेगा, वह पाप का भागी बनेगा।
34. अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि मैंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से प्रश्न किया कि कौन सा पाप सबसे बड़ा है? फरमाया : यह कि तुम अल्लाह का साझी बनाओ जब कि उसने तुम्हें पैदा किया है। मैंने कहा : फिर कौन सा? फरमाया : अपनी संतान को इस भय से मार दो कि वह तुम्हारे साथ खाएगी। मैंने कहा : फिर कौन सा? फरमाया : अपने पड़ोसी की पत्नी से व्यभिचार करना। यह आयत इसी पर उतरी। (देखिए : सह़ीह़ बुख़ारी : 4761)
क़ियामत के दिन उसकी यातना दुगुनी कर दी जाएगी और वह अपमानित[35] होकर उसमें हमेशा रहेगा।
35. इब्ने अब्बास ने कहा : जब यह आयत उतरी, तो मक्का वासियों ने कहा : हमने अल्लाह का साझी बनाया है और अवैध जान भी मारी है तथा व्यभिचार भी किया है। तो अल्लाह ने यह आयत उतारी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4765)
परंतु जिसने तौबा कर ली और ईमान ले आया और अच्छे काम किए, तो ये लोग हैं जिनके बुरे कामों को अल्लाह नेकियों में बदल देगा और अल्लाह हमेशा बहुत बख़्शने वाला, अत्यंत दयावान् है।
(ऐ नबी!) कह दें : मेरे पालनहार को तुम्हारी कोई परवाह नहीं, यदि तुम (उसे) न पुकारो।[37] क्योंकि निश्चय ही तुमने झुठलाया है, तो शीघ्र (उसका परिणाम) आ जाएगा।
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