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ترجمة معاني سورة: المزمل   آية:

سورة المزمل - सूरा अल्-मुज़्ज़म्मिल

یٰۤاَیُّهَا الْمُزَّمِّلُ ۟ۙ
ऐ कपड़े में लिपटने वाले!
التفاسير العربية:
قُمِ الَّیْلَ اِلَّا قَلِیْلًا ۟ۙ
रात्रि के समय (नमाज़ में) खड़े रहें, सिवाय उसके थोड़े भाग के।[1]
1. ह़दीस में है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) रात में इतनी नमाज़ पढ़ते थे कि आपके पैर सूज जाते थे। आपसे कहा गया : ऐसा क्यों करते हैं? जबकि अल्लाह ने आपके पहले और पिछले गुनाह क्षमा कर दिए हैं? आपने कहा : क्या मैं उसका कृतज्ञ बंदा न बनूँ? (बुख़ारी : 1130, मुस्लिम : 2819)
التفاسير العربية:
نِّصْفَهٗۤ اَوِ انْقُصْ مِنْهُ قَلِیْلًا ۟ۙ
आधी रात (नमाज़ पढ़ें) अथवा उससे थोड़ा-सा कम कर लें।
التفاسير العربية:
اَوْ زِدْ عَلَیْهِ وَرَتِّلِ الْقُرْاٰنَ تَرْتِیْلًا ۟ؕ
या उससे कुछ अधिक कर लें। और क़ुरआन को ठहर-ठहर कर पढ़ें।
التفاسير العربية:
اِنَّا سَنُلْقِیْ عَلَیْكَ قَوْلًا ثَقِیْلًا ۟
निश्चय हम आपपर (ऐ नबी!) एक भारी वाणी (क़ुरआन) उतारेंगे।
التفاسير العربية:
اِنَّ نَاشِئَةَ الَّیْلِ هِیَ اَشَدُّ وَطْاً وَّاَقْوَمُ قِیْلًا ۟ؕ
निःसंदेह रात की इबादत हृदय में अधिक प्रभावी होती है और बात के लिए अधिक उपयुक्त होती है।
التفاسير العربية:
اِنَّ لَكَ فِی النَّهَارِ سَبْحًا طَوِیْلًا ۟ؕ
निःसंदेह आपके लिए दिन में बहुत-से कार्य हैं।
التفاسير العربية:
وَاذْكُرِ اسْمَ رَبِّكَ وَتَبَتَّلْ اِلَیْهِ تَبْتِیْلًا ۟ؕ
और अपने पालनहार के नाम का स्मरण करें और सबसे अलग होकर उसी की ओर ध्यान आकर्षित कर लें।
التفاسير العربية:
رَبُّ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ فَاتَّخِذْهُ وَكِیْلًا ۟
वह पूर्व तथा पश्चिम का पालनहार है। उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। अतः तुम उसी को अपना कार्यसाधक बना लो।
التفاسير العربية:
وَاصْبِرْ عَلٰی مَا یَقُوْلُوْنَ وَاهْجُرْهُمْ هَجْرًا جَمِیْلًا ۟
और जो कुछ वे कह रहे हैं[2], उसपर धैर्य से काम लें और उन्हें अच्छे ढंग से छोड़ दें।
2. अर्थात आपके तथा सत्धर्म के विरुद्ध।
التفاسير العربية:
وَذَرْنِیْ وَالْمُكَذِّبِیْنَ اُولِی النَّعْمَةِ وَمَهِّلْهُمْ قَلِیْلًا ۟
तथा मुझे और इन झुठलाने वाले संपन्न लोगों को छोड़ दें और उन्हें थोड़ी-सी मोहलत दें।
التفاسير العربية:
اِنَّ لَدَیْنَاۤ اَنْكَالًا وَّجَحِیْمًا ۟ۙ
निःसंदेह हमारे पास बेड़ियाँ हैं तथा भड़कती हुई आग।
التفاسير العربية:
وَّطَعَامًا ذَا غُصَّةٍ وَّعَذَابًا اَلِیْمًا ۟۫
और गले में फँस जाने वाला भोजन तथा दर्दनाक यातना है।
التفاسير العربية:
یَوْمَ تَرْجُفُ الْاَرْضُ وَالْجِبَالُ وَكَانَتِ الْجِبَالُ كَثِیْبًا مَّهِیْلًا ۟
जिस दिन धरती और पर्वत काँप उठेंगे तथा पर्वत गिराई हुई रेत के ढेर हो जाएँगे।
التفاسير العربية:
اِنَّاۤ اَرْسَلْنَاۤ اِلَیْكُمْ رَسُوْلًا ۙ۬— شَاهِدًا عَلَیْكُمْ كَمَاۤ اَرْسَلْنَاۤ اِلٰی فِرْعَوْنَ رَسُوْلًا ۟ؕ
निःसंदेह हमने तुम्हारी ओर एक रसूल[3] भेजा, जो तुमपर गवाही देने वाला है, जिस प्रकार हमने फ़िरऔन की ओर एक रसूल भेजा।
3. अर्थात मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को। गवाह होने के अर्थ के लिए देखिए : सूरतुल-बक़रा, आयत : 143, तथा सूरतुल-ह़ज्ज, आयत : 78। इसमें चेतावनी है कि यदि तुमने अवज्ञा की, तो तुम्हारी दशा भी फ़िरऔन जैसी होगी।
التفاسير العربية:
فَعَصٰی فِرْعَوْنُ الرَّسُوْلَ فَاَخَذْنٰهُ اَخْذًا وَّبِیْلًا ۟
चुनाँचे फ़िरऔन ने उस रसूल की अवज्ञा की, तो हमने उसकी बड़ी सख़्त पकड़ की।
التفاسير العربية:
فَكَیْفَ تَتَّقُوْنَ اِنْ كَفَرْتُمْ یَوْمًا یَّجْعَلُ الْوِلْدَانَ شِیْبَا ۟
फिर तुम कैसे बचोगे, यदि तुमने कुफ्र किया, उस दिन से जो बच्चों को बूढ़े कर देगा?
التفاسير العربية:
١لسَّمَآءُ مُنْفَطِرٌ بِهٖ ؕ— كَانَ وَعْدُهٗ مَفْعُوْلًا ۟
उस दिन आकाश फट जाएगा। उसका वादा पूरा होकर रहेगा।
التفاسير العربية:
اِنَّ هٰذِهٖ تَذْكِرَةٌ ۚ— فَمَنْ شَآءَ اتَّخَذَ اِلٰی رَبِّهٖ سَبِیْلًا ۟۠
निश्चय यह एक उपदेश है। अतः जो चाहे अपने पालनहार की ओर रास्ता बना ले।[4]
4. अर्थात इन आयतों का पालन करके अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त कर ले।
التفاسير العربية:
اِنَّ رَبَّكَ یَعْلَمُ اَنَّكَ تَقُوْمُ اَدْنٰی مِنْ  الَّیْلِ وَنِصْفَهٗ وَثُلُثَهٗ وَطَآىِٕفَةٌ مِّنَ الَّذِیْنَ مَعَكَ ؕ— وَاللّٰهُ یُقَدِّرُ الَّیْلَ وَالنَّهَارَ ؕ— عَلِمَ اَنْ لَّنْ تُحْصُوْهُ فَتَابَ عَلَیْكُمْ فَاقْرَءُوْا مَا تَیَسَّرَ مِنَ الْقُرْاٰنِ ؕ— عَلِمَ اَنْ سَیَكُوْنُ مِنْكُمْ مَّرْضٰی ۙ— وَاٰخَرُوْنَ یَضْرِبُوْنَ فِی الْاَرْضِ یَبْتَغُوْنَ مِنْ فَضْلِ اللّٰهِ ۙ— وَاٰخَرُوْنَ یُقَاتِلُوْنَ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ ۖؗ— فَاقْرَءُوْا مَا تَیَسَّرَ مِنْهُ ۙ— وَاَقِیْمُوا الصَّلٰوةَ وَاٰتُوا الزَّكٰوةَ وَاَقْرِضُوا اللّٰهَ قَرْضًا حَسَنًا ؕ— وَمَا تُقَدِّمُوْا لِاَنْفُسِكُمْ مِّنْ خَیْرٍ تَجِدُوْهُ عِنْدَ اللّٰهِ هُوَ خَیْرًا وَّاَعْظَمَ اَجْرًا ؕ— وَاسْتَغْفِرُوا اللّٰهَ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟۠
निःसंदेह आपका पालनहार जानता है कि आप (तहज्जुद की नमाज़ में) रात के दो-तिहाई भाग से कुछ कम तथा उसका आधा भाग और उसका एक-तिहाई भाग खड़े होते हैं। तथा आपके साथियों का एक समूह भी (ऐसा करता है)। और अल्लाह ही रात तथा दिन का अनुमान रखता है। उसने जान लिया कि तुम हरगिज़ उसकी क्षमता नहीं रखोगे। अतः उसने तुमपर दया की। अतः क़ुरआन में से जो आसान हो, पढ़ो।[5] वह जानता है कि निश्चय तुममें से कुछ लोग बीमार होंगे और कुछ अन्य लोग धरती में यात्रा करेंगे, अल्लाह का अनुग्रह तलाश करेंगे और कुछ दूसरे लोग अल्लाह की राह में युद्ध करेंगे। अतः उसमें से जो आसान हो, पढ़ो। तथा नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो और अल्लाह को उत्तम ऋण[6] दो। तथा तुम अपने लिए जो भी भलाई आगे भेजोगे, उसे अल्लाह के पास अति उत्तम और बदले की दृष्टि से बढ़कर पाओगे। और अल्लाह से क्षमा याचना करो। निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
5. क़ुरआन पढ़ने से अभिप्राय तहज्जुद की नमाज़ है। और अर्थ यह है कि रात्रि में जितनी नमाज़ हो सके, पढ़ लो। ह़दीस में है कि बंदा अल्लाह के सबसे समीप अंतिम रात्रि में होता है। तो तुम यदि हो सके कि उस समय अल्लाह को याद करो, तो याद करो। (तिर्मिज़ी : 3579, यह ह़दीस सह़ीह़ है।) 6.अच्छे ऋण से अभिप्राय अपने उचित साधन से अर्जित किए हुए धन को अल्लाह की प्रसन्नता के लिए उसके मार्ग में ख़र्च करना है। इसी को अल्लाह अपने ऊपर ऋण क़रार देता है। जिसका बदला वह सात सौ गुना तक, बल्कि उससे भी अधिक प्रदान करेगा। (देखिए सूरतुल-बक़रा, आयत : 261)
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