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ترجمة معاني سورة: التوبة   آية:

سورة التوبة - सूरा अत्-तौबा

بَرَآءَةٌ مِّنَ اللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖۤ اِلَی الَّذِیْنَ عٰهَدْتُّمْ مِّنَ الْمُشْرِكِیْنَ ۟ؕ
अल्लाह तथा उसके रसूल की ओर से, उन बहुदेववादियों से ज़िम्मेदारी से बरी होने की घोषणा है, जिनसे तुमने संधि की थी।[1]
1. यह सूरत सन 9 हिजरी में उतरी। जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मदीना पहुँचे तो आप ने अनेक जातियों से समझौता किया था। परंतु सभी ने समय-समय से समझौते का उल्लंघन किया। लेकिन आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) बराबर उसका पालन करते रहे। और अब यह घोषणा कर दी गई कि बहुदेववादियों से कोई समझौता नहीं रहेगा।
التفاسير العربية:
فَسِیْحُوْا فِی الْاَرْضِ اَرْبَعَةَ اَشْهُرٍ وَّاعْلَمُوْۤا اَنَّكُمْ غَیْرُ مُعْجِزِی اللّٰهِ ۙ— وَاَنَّ اللّٰهَ مُخْزِی الْكٰفِرِیْنَ ۟
तो (ऐ बहुदेववादियो!) ! तुम धरती में चार महीने चलो-फिरो, तथा जान लो कि निःसंदेह तुम अल्लाह को विवश करने वाले नहीं, और यह कि निश्चय अल्लाह काफ़िरों को अपमानित करने वाला है।
التفاسير العربية:
وَاَذَانٌ مِّنَ اللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖۤ اِلَی النَّاسِ یَوْمَ الْحَجِّ الْاَكْبَرِ اَنَّ اللّٰهَ بَرِیْٓءٌ مِّنَ الْمُشْرِكِیْنَ ۙ۬— وَرَسُوْلُهٗ ؕ— فَاِنْ تُبْتُمْ فَهُوَ خَیْرٌ لَّكُمْ ۚ— وَاِنْ تَوَلَّیْتُمْ فَاعْلَمُوْۤا اَنَّكُمْ غَیْرُ مُعْجِزِی اللّٰهِ ؕ— وَبَشِّرِ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا بِعَذَابٍ اَلِیْمٍ ۟ۙ
तथा अल्लाह और उसके रसूल की ओर से, महा हज्ज[2] के दिन, स्पष्ट घोषणा है कि अल्लाह बहुदेववादियों (मुश्रिकों) से अलग है तथा उसका रसूल भी। फिर यदि तुम तौबा कर लो, तो वह तुम्हारे लिए उत्तम है, और यदि तुम मुँह मोड़ो, तो जान लो कि निश्चय तुम अल्लाह को विवश करने वाले नहीं, और जिन लोगों ने कुफ़्र किया, उन्हें दुखदायी यातना की शुभ सूचना दे दो।
2. यह एलान ज़ुल-ह़िज्जा सन् (10) हिजरी को मिना में किया गया कि अब काफ़िरों से कोई संधि नहीं रहेगी। इस वर्ष के बाद कोई मुश्रिक ह़ज्ज नहीं करेगा और न कोई काबा का नंगा तवाफ़ करेगा। (बुख़ारी : 4655)
التفاسير العربية:
اِلَّا الَّذِیْنَ عٰهَدْتُّمْ مِّنَ الْمُشْرِكِیْنَ ثُمَّ لَمْ یَنْقُصُوْكُمْ شَیْـًٔا وَّلَمْ یُظَاهِرُوْا عَلَیْكُمْ اَحَدًا فَاَتِمُّوْۤا اِلَیْهِمْ عَهْدَهُمْ اِلٰی مُدَّتِهِمْ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ یُحِبُّ الْمُتَّقِیْنَ ۟
सिवाय उन मुश्रिकों के, जिनसे तुमने संधि की, फिर उन्होंने तुम्हारे साथ (संधि के पालन में) कोई कमी नहीं की और न तुम्हारे विरुद्ध किसी की सहायता की, तो उनके साथ उनकी संधि को उनकी अवधि तक पूरी करो। निश्चय अल्लाह डर रखने वालों से प्रेम करता है।
التفاسير العربية:
فَاِذَا انْسَلَخَ الْاَشْهُرُ الْحُرُمُ فَاقْتُلُوا الْمُشْرِكِیْنَ حَیْثُ وَجَدْتُّمُوْهُمْ وَخُذُوْهُمْ وَاحْصُرُوْهُمْ وَاقْعُدُوْا لَهُمْ كُلَّ مَرْصَدٍ ۚ— فَاِنْ تَابُوْا وَاَقَامُوا الصَّلٰوةَ وَاٰتَوُا الزَّكٰوةَ فَخَلُّوْا سَبِیْلَهُمْ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟
अतः जब सम्मानित महीने बीत जाएँ, तो बहुदेववादियों (मुश्रिकों) को जहाँ पाओ, क़त्ल करो और उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो[3] और उनके लिए हर घात की जगह बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें तथा ज़कात दें, तो उनका रास्ता छोड़ दो। निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
3. यह आदेश मक्का के मुश्रिकों के बारे में दिया गया है, जो इस्लाम के विरोधी थे और मुसलमानों पर आक्रमण कर रहे थे।
التفاسير العربية:
وَاِنْ اَحَدٌ مِّنَ الْمُشْرِكِیْنَ اسْتَجَارَكَ فَاَجِرْهُ حَتّٰی یَسْمَعَ كَلٰمَ اللّٰهِ ثُمَّ اَبْلِغْهُ مَاْمَنَهٗ ؕ— ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ قَوْمٌ لَّا یَعْلَمُوْنَ ۟۠
और यदि मुश्रिकों में से कोई तुमसे शरण माँगे, तो उसे शरण दे दो, यहाँ तक कि वह अल्लाह की वाणी सुने। फिर उसे उसके सुरक्षित स्थान तक पहुँचा दो। यह इसलिए कि निःसंदेह वे ऐसे लोग हैं, जो ज्ञान नहीं रखते।
التفاسير العربية:
كَیْفَ یَكُوْنُ لِلْمُشْرِكِیْنَ عَهْدٌ عِنْدَ اللّٰهِ وَعِنْدَ رَسُوْلِهٖۤ اِلَّا الَّذِیْنَ عٰهَدْتُّمْ عِنْدَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ ۚ— فَمَا اسْتَقَامُوْا لَكُمْ فَاسْتَقِیْمُوْا لَهُمْ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ یُحِبُّ الْمُتَّقِیْنَ ۟
इन मुश्रिकों (बहुदेववादियों) की अल्लाह और उसके रसूल के पास कोई संधि कैसे हो सकती है, सिवाय उनके जिनसे तुमने सम्मानित मस्जिद (काबा) के पास संधि की[4] थी? तो जब तक वे तुम्हारे लिए (वचन पर) क़ायम रहें, तो तुम भी उनके लिए क़ायम रहो। निःसंदेह अल्लाह परहेज़गारों से प्रेम करता है।
4. इससे अभिप्रेत ह़ुदैबिया की संधि है, जो सन् (6) हिजरी में हुई थी। जिसे काफ़िरों ने तोड़ दिया। और यही सन् (8) हिजरी में मक्का के विजय का कारण बना।
التفاسير العربية:
كَیْفَ وَاِنْ یَّظْهَرُوْا عَلَیْكُمْ لَا یَرْقُبُوْا فِیْكُمْ اِلًّا وَّلَا ذِمَّةً ؕ— یُرْضُوْنَكُمْ بِاَفْوَاهِهِمْ وَتَاْبٰی قُلُوْبُهُمْ ۚ— وَاَكْثَرُهُمْ فٰسِقُوْنَ ۟ۚ
(उन लोगों की संधि) कैसे संभव है, जबकि वे यदि तुमपर अधिकार पा जाएँ, तो तुम्हारे विषय में न किसी रिश्तेदारी का सम्‍मान करेंगे और न किसी वचन का। वे तुम्हें अपने मुखों से प्रसन्न करते हैं, जबकि उनके दिल इनकार करते हैं और उनमें से अधिकांश अवज्ञाकारी हैं।
التفاسير العربية:
اِشْتَرَوْا بِاٰیٰتِ اللّٰهِ ثَمَنًا قَلِیْلًا فَصَدُّوْا عَنْ سَبِیْلِهٖ ؕ— اِنَّهُمْ سَآءَ مَا كَانُوْا یَعْمَلُوْنَ ۟
उन्होंने अल्लाह की आयतों के बदले थोड़ा-सा मूल्य ले लिया[5], फिर उन्होंने अल्लाह की राह (इस्लाम) से रोका। निःसंदेह बुरा है, जो वे करते रहे हैं।
5. अर्थात सांसारिक स्वार्थ के लिए सत्धर्म इस्लाम को नहीं माना।
التفاسير العربية:
لَا یَرْقُبُوْنَ فِیْ مُؤْمِنٍ اِلًّا وَّلَا ذِمَّةً ؕ— وَاُولٰٓىِٕكَ هُمُ الْمُعْتَدُوْنَ ۟
वे किसी ईमान वाले के बारे में न किसी रिश्तेदारी का सम्मान करते हैं और न किसी वचन का, और यही लोग सीमाओं का उल्लंघन करने वाले हैं।
التفاسير العربية:
فَاِنْ تَابُوْا وَاَقَامُوا الصَّلٰوةَ وَاٰتَوُا الزَّكٰوةَ فَاِخْوَانُكُمْ فِی الدِّیْنِ ؕ— وَنُفَصِّلُ الْاٰیٰتِ لِقَوْمٍ یَّعْلَمُوْنَ ۟
अतः यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें, तो धर्म में तुम्हारे भाई हैं। और हम उन लोगों के लिए आयतें खोलकर बयान करते हैं, जो जानते हैं।
التفاسير العربية:
وَاِنْ نَّكَثُوْۤا اَیْمَانَهُمْ مِّنْ بَعْدِ عَهْدِهِمْ وَطَعَنُوْا فِیْ دِیْنِكُمْ فَقَاتِلُوْۤا اَىِٕمَّةَ الْكُفْرِ ۙ— اِنَّهُمْ لَاۤ اَیْمَانَ لَهُمْ لَعَلَّهُمْ یَنْتَهُوْنَ ۟
और यदि वे अपने वचन के बाद अपनी क़समें तोड़ दें और तुम्हारे धर्म की निंदा करें, तो कुफ़्र के प्रमुखों से युद्ध करो। क्योंकि उनकी क़समों का कोई विश्वास नहीं। ताकि वे (अत्याचार से) रुक जाएँ।
التفاسير العربية:
اَلَا تُقَاتِلُوْنَ قَوْمًا نَّكَثُوْۤا اَیْمَانَهُمْ وَهَمُّوْا بِاِخْرَاجِ الرَّسُوْلِ وَهُمْ بَدَءُوْكُمْ اَوَّلَ مَرَّةٍ ؕ— اَتَخْشَوْنَهُمْ ۚ— فَاللّٰهُ اَحَقُّ اَنْ تَخْشَوْهُ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِیْنَ ۟
क्या तुम उन लोगों से नहीं लड़ोगे, जिन्होंने अपनी क़समें तोड़ दीं और रसूल को निकालने का इरादा किया, और उन्होंने ही तुमसे युद्ध का आरंभ किया है? क्या तुम उनसे डरते हो? तो अल्लाह अधिक हक़दार है कि तुम उससे डरो, यदि तुम ईमानवाले[6] हो।
6. आयत संख्या 7 से लेकर 13 तक यह बताया गया है कि शत्रु ने निरंतर संधि को तोड़ा है। और तुम्हें युद्ध के लिए बाध्य कर दिया है। अब उनके अत्याचार और आक्रमण को रोकने का यही उपाय रह गया है कि उनसे युद्ध किया जाए।
التفاسير العربية:
قَاتِلُوْهُمْ یُعَذِّبْهُمُ اللّٰهُ بِاَیْدِیْكُمْ وَیُخْزِهِمْ وَیَنْصُرْكُمْ عَلَیْهِمْ وَیَشْفِ صُدُوْرَ قَوْمٍ مُّؤْمِنِیْنَ ۟ۙ
उनसे युद्ध करो, अल्लाह उन्हें तुम्हारे हाथों से सज़ा देगा और उन्हें अपमानित करेगा और उनके विरुद्ध तुम्हारी सहायता करेगा और ईमान वालों के दिलों को ठंडा करेगा।
التفاسير العربية:
وَیُذْهِبْ غَیْظَ قُلُوْبِهِمْ ؕ— وَیَتُوْبُ اللّٰهُ عَلٰی مَنْ یَّشَآءُ ؕ— وَاللّٰهُ عَلِیْمٌ حَكِیْمٌ ۟
और उनके दिलों के क्रोध को दूर कर देगा और जिसकी चाहेगा, तौबा क़बूल करेगा और अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।
التفاسير العربية:
اَمْ حَسِبْتُمْ اَنْ تُتْرَكُوْا وَلَمَّا یَعْلَمِ اللّٰهُ الَّذِیْنَ جٰهَدُوْا مِنْكُمْ وَلَمْ یَتَّخِذُوْا مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ وَلَا رَسُوْلِهٖ وَلَا الْمُؤْمِنِیْنَ وَلِیْجَةً ؕ— وَاللّٰهُ خَبِیْرٌ بِمَا تَعْمَلُوْنَ ۟۠
क्या तुमने समझ रखा है कि तुम यूँ ही छोड़ दिए जाओगे, हालाँकि अभी तक अल्लाह ने उन लोगों को नहीं जाना ही, जिन्होंने तुममें से जिहाद किया तथा अल्लाह और उसके रसूल और ईमान वालों के सिवाय किसी को भेदी मित्र नहीं बनाया? और अल्लाह उससे अच्छी तरह सूचित है, जो तुम कर रहे हो।
التفاسير العربية:
مَا كَانَ لِلْمُشْرِكِیْنَ اَنْ یَّعْمُرُوْا مَسٰجِدَ اللّٰهِ شٰهِدِیْنَ عَلٰۤی اَنْفُسِهِمْ بِالْكُفْرِ ؕ— اُولٰٓىِٕكَ حَبِطَتْ اَعْمَالُهُمْ ۖۚ— وَفِی النَّارِ هُمْ خٰلِدُوْنَ ۟
मुश्रिकों (बहुदेववादियों) के लिए योग्य नहीं कि वे अल्लाह की मस्जिदों को आबाद करें, जबकि वे स्वयं अपने विरुद्ध कुफ़्र की गवाही देने वाले हैं। ये वही हैं जिनके कर्म व्यर्थ हो गए और वे आग ही में सदा के लिए रहने वाले हैं।
التفاسير العربية:
اِنَّمَا یَعْمُرُ مَسٰجِدَ اللّٰهِ مَنْ اٰمَنَ بِاللّٰهِ وَالْیَوْمِ الْاٰخِرِ وَاَقَامَ الصَّلٰوةَ وَاٰتَی الزَّكٰوةَ وَلَمْ یَخْشَ اِلَّا اللّٰهَ ۫— فَعَسٰۤی اُولٰٓىِٕكَ اَنْ یَّكُوْنُوْا مِنَ الْمُهْتَدِیْنَ ۟
अल्लाह की मस्जिदें तो वही आबाद करता है, जो अल्लाह पर और अंतिम दिन (क़ियामत) पर ईमान लाया, तथा उसने नमाज़ क़ायम की और ज़कात दी और अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरा। तो ये लोग आशा है कि मार्ग दर्शन पाने वालों में से होंगे।
التفاسير العربية:
اَجَعَلْتُمْ سِقَایَةَ الْحَآجِّ وَعِمَارَةَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ كَمَنْ اٰمَنَ بِاللّٰهِ وَالْیَوْمِ الْاٰخِرِ وَجٰهَدَ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ ؕ— لَا یَسْتَوٗنَ عِنْدَ اللّٰهِ ؕ— وَاللّٰهُ لَا یَهْدِی الْقَوْمَ الظّٰلِمِیْنَ ۟ۘ
क्या तुमने हाजियों को पानी पिलाना और मस्जिद-ए-हराम को आबाद करना, उसके जैसा बना दिया जो अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान लाया और उसने अल्लाह की राह में जिहाद किया? ये अल्लाह के यहाँ बराबर नहीं हैं तथा अल्लाह अत्याचारी लोगों को मार्ग नहीं दिखाता।
التفاسير العربية:
اَلَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَهَاجَرُوْا وَجٰهَدُوْا فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ بِاَمْوَالِهِمْ وَاَنْفُسِهِمْ ۙ— اَعْظَمُ دَرَجَةً عِنْدَ اللّٰهِ ؕ— وَاُولٰٓىِٕكَ هُمُ الْفَآىِٕزُوْنَ ۟
जो लोग ईमान लाए तथा हिजरत की और अल्लाह की राह में अपने धनों और अपने प्राणों के साथ जिहाद किया, अल्लाह के यहाँ पद में अधिक बड़े हैं और वही लोग सफल हैं।
التفاسير العربية:
یُبَشِّرُهُمْ رَبُّهُمْ بِرَحْمَةٍ مِّنْهُ وَرِضْوَانٍ وَّجَنّٰتٍ لَّهُمْ فِیْهَا نَعِیْمٌ مُّقِیْمٌ ۟ۙ
उनका पालनहार उन्हें अपनी ओर से दया और प्रसन्नता तथा ऐसे बाग़ों की शुभ सूचना देता है, जिनमें उनके लिए शाश्वत आनंद है।
التفاسير العربية:
خٰلِدِیْنَ فِیْهَاۤ اَبَدًا ؕ— اِنَّ اللّٰهَ عِنْدَهٗۤ اَجْرٌ عَظِیْمٌ ۟
जिनमें वे हमेशा रहने वाले हैं। निःसंदेह अल्लाह ही के पास बड़ा बदला है।
التفاسير العربية:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا تَتَّخِذُوْۤا اٰبَآءَكُمْ وَاِخْوَانَكُمْ اَوْلِیَآءَ اِنِ اسْتَحَبُّوا الْكُفْرَ عَلَی الْاِیْمَانِ ؕ— وَمَنْ یَّتَوَلَّهُمْ مِّنْكُمْ فَاُولٰٓىِٕكَ هُمُ الظّٰلِمُوْنَ ۟
ऐ ईमान वालो! अपने बापों और अपने भाइयों को दोस्त न बनाओ, यदि वे ईमान की अपेक्षा कुफ़्र से प्रेम करें, और तुममें से जो व्यक्ति उनसे दोस्ती रखेगा, तो वही लोग अत्याचारी हैं।
التفاسير العربية:
قُلْ اِنْ كَانَ اٰبَآؤُكُمْ وَاَبْنَآؤُكُمْ وَاِخْوَانُكُمْ وَاَزْوَاجُكُمْ وَعَشِیْرَتُكُمْ وَاَمْوَالُ ١قْتَرَفْتُمُوْهَا وَتِجَارَةٌ تَخْشَوْنَ كَسَادَهَا وَمَسٰكِنُ تَرْضَوْنَهَاۤ اَحَبَّ اِلَیْكُمْ مِّنَ اللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ وَجِهَادٍ فِیْ سَبِیْلِهٖ فَتَرَبَّصُوْا حَتّٰی یَاْتِیَ اللّٰهُ بِاَمْرِهٖ ؕ— وَاللّٰهُ لَا یَهْدِی الْقَوْمَ الْفٰسِقِیْنَ ۟۠
(ऐ नबी!) कह दो कि यदि तुम्हारे बाप और तुम्हारे बेटे और तुम्हारे भाई और तुम्हारी पत्नियाँ और तुम्हारे परिवार और (वे) धन जो तुमने कमाए हैं और (वह) व्यापार जिसके मंदा होने से तुम डरते हो तथा रहने के घर जिन्हें तुम पसंद करते हो, तुम्हें अल्लाह तथा उसके रसूल और अल्लाह की राह में जिहाद करने से अधिक प्रिय हैं, तो प्रतीक्षा करो, यहाँ तक कि अल्लाह अपना हुक्म ले आए और अल्लाह अवज्ञाकारियों को मार्ग नहीं दिखाता।
التفاسير العربية:
لَقَدْ نَصَرَكُمُ اللّٰهُ فِیْ مَوَاطِنَ كَثِیْرَةٍ ۙ— وَّیَوْمَ حُنَیْنٍ ۙ— اِذْ اَعْجَبَتْكُمْ كَثْرَتُكُمْ فَلَمْ تُغْنِ عَنْكُمْ شَیْـًٔا وَّضَاقَتْ عَلَیْكُمُ الْاَرْضُ بِمَا رَحُبَتْ ثُمَّ وَلَّیْتُمْ مُّدْبِرِیْنَ ۟ۚ
निःसंदेह अल्लाह ने बहुत-से स्थानों पर तुम्हारी सहायता की तथा हुनैन[7] के दिन भी, जब तुम्हारी बहुतायत ने तुम्हें आत्ममुग्ध बना दिया, फिर वह तुम्हारे कुछ काम न आई तथा तुमपर धरती अपने विस्तार के उपरांत तंग हो गई, फिर तुम पीठ फेरते हुए लौट गए।
7. "ह़ुनैन" मक्का तथा ताइफ़ के बीच एक वादी है। वहीं पर यह युद्ध सन् 8 हिजरी में मक्का की विजय के पश्चात् हुआ। आपको मक्का में यह सूचना मिली के हवाज़िन और सक़ीफ़ के क़बीले मक्का पर आक्रमण करने की तैयारियाँ कर रहे हैं। जिसपर आप बारह हज़ार की सेना लेकर निकले। जबकि शत्रु की संख्या केवल चार हज़ार थी। फिर भी उन्होंने अपनी तीरों से मुसलमानों का मुँह फेर दिया। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके कुछ साथी रणक्षेत्र में डटे रहे। अंततः फिर इस्लामी सेना ने व्यवस्थित होकर विजय प्राप्त की। (इब्ने कसीर)
التفاسير العربية:
ثُمَّ اَنْزَلَ اللّٰهُ سَكِیْنَتَهٗ عَلٰی رَسُوْلِهٖ وَعَلَی الْمُؤْمِنِیْنَ وَاَنْزَلَ جُنُوْدًا لَّمْ تَرَوْهَا ۚ— وَعَذَّبَ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا ؕ— وَذٰلِكَ جَزَآءُ الْكٰفِرِیْنَ ۟
फिर अल्लाह ने अपने रसूल पर और ईमानवालों पर अपनी शांति उतारी, और ऐसी सेनाएँ उतारीं जिन्हें तुमने नहीं देखा[8], और उन लोगों को दंड दिया जिन्होंने कुफ़्र किया, और यही काफ़िरों का बदला है।
8. अर्थात फ़रिश्ते भी उतारे गए जो मुसलमानों के साथ मिलकर काफ़िरों से जिहाद कर रहे थे। जिनके कारण मुसलमान विजयी हुए और काफ़िरों को बंदी बना लिया गया, जिनको बाद में मुक्त कर दिया गया।
التفاسير العربية:
ثُمَّ یَتُوْبُ اللّٰهُ مِنْ بَعْدِ ذٰلِكَ عَلٰی مَنْ یَّشَآءُ ؕ— وَاللّٰهُ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟
फिर इसके बाद अल्लाह जिसकी चाहेगा, तौबा क़बूल[9] करेगा। और अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान है।
9. अर्थात उसके सत्धर्म इस्लाम को स्वीकार कर लेने के कारण।
التفاسير العربية:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اِنَّمَا الْمُشْرِكُوْنَ نَجَسٌ فَلَا یَقْرَبُوا الْمَسْجِدَ الْحَرَامَ بَعْدَ عَامِهِمْ هٰذَا ۚ— وَاِنْ خِفْتُمْ عَیْلَةً فَسَوْفَ یُغْنِیْكُمُ اللّٰهُ مِنْ فَضْلِهٖۤ اِنْ شَآءَ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ عَلِیْمٌ حَكِیْمٌ ۟
ऐ ईमान लाने वालो! निःसंदेह बहुदेववादी अशुद्ध हैं। अतः वे इस वर्ष[10] के बाद मस्जिद-ए-हराम के पास न आएँ। और यदि तुम किसी प्रकार की गरीबी से डरते[11] हो, तो अल्लाह जल्द ही तुम्हें अपनी कृपा से समृद्ध करेगा, यदि उसने चाहा। निःसंदेह अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।
10. अर्थात सन् 9 हिजरी के पश्चात्। 11. अर्थात उनसे व्यापार न करने के कारण। अशुद्ध होने का अर्थ शिर्क के कारण मन की अशुद्धता है। (इब्ने कसीर)
التفاسير العربية:
قَاتِلُوا الَّذِیْنَ لَا یُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ وَلَا بِالْیَوْمِ الْاٰخِرِ وَلَا یُحَرِّمُوْنَ مَا حَرَّمَ اللّٰهُ وَرَسُوْلُهٗ وَلَا یَدِیْنُوْنَ دِیْنَ الْحَقِّ مِنَ الَّذِیْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ حَتّٰی یُعْطُوا الْجِزْیَةَ عَنْ یَّدٍ وَّهُمْ صٰغِرُوْنَ ۟۠
(ऐ ईमान वालो!) उन किताब वालों से युद्ध करो, जो न अल्लाह पर ईमान रखते हैं और न अंतिम दिन (क़ियामत) पर, और न उसे हराम समझते हैं, जिसे अल्लाह और उसके रसूल ने हराम (वर्जित) किया है और न सत्धर्म को अपनाते हैं, यहाँ तक कि वे अपमानित होकर अपने हाथ से जिज़या दें।
التفاسير العربية:
وَقَالَتِ الْیَهُوْدُ عُزَیْرُ ١بْنُ اللّٰهِ وَقَالَتِ النَّصٰرَی الْمَسِیْحُ ابْنُ اللّٰهِ ؕ— ذٰلِكَ قَوْلُهُمْ بِاَفْوَاهِهِمْ ۚ— یُضَاهِـُٔوْنَ قَوْلَ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا مِنْ قَبْلُ ؕ— قَاتَلَهُمُ اللّٰهُ ۚ— اَنّٰی یُؤْفَكُوْنَ ۟
तथा यहूदियों ने कहा कि उज़ैर अल्लाह का पुत्र है और ईसाइयों ने कहा कि मसीह अल्लाह का पुत्र है। ये उनके अपने मुँह की बातें हैं। वे उन लोगों जैसी बातें कर रहे हैं, जिन्होंने इनसे पहले कुफ़्र किया। उनपर अल्लाह की मार हो! वे कहाँ बहकाए जा रहे हैं?
التفاسير العربية:
اِتَّخَذُوْۤا اَحْبَارَهُمْ وَرُهْبَانَهُمْ اَرْبَابًا مِّنْ دُوْنِ اللّٰهِ وَالْمَسِیْحَ ابْنَ مَرْیَمَ ۚ— وَمَاۤ اُمِرُوْۤا اِلَّا لِیَعْبُدُوْۤا اِلٰهًا وَّاحِدًا ۚ— لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ ؕ— سُبْحٰنَهٗ عَمَّا یُشْرِكُوْنَ ۟
उन्होंने अपने विद्वानों और अपने दरवेशों को अल्लाह के सिवा रब बना[12] लिया तथा मरयम के पुत्र मसीह को (भी)। हालाँकि, उन्हें इसके सिवा आदेश नहीं दिया गया था कि वे एक पूज्य की इबादत करें, उसके सिवा कोई सच्चा पूज्य नहीं। वह उससे पवित्र है, जो वे साझी बनाते हैं।
12. ह़दीस में है कि उनके किसी चीज़ को हलाल ठहराने को हलाल समझना और किसी चीज़ को हराम ठहराने को हराम समझना ही उनको पूज्य बनाना था। (तिरमिज़ी : 3095, यह ह़दीस हसन है।)
التفاسير العربية:
یُرِیْدُوْنَ اَنْ یُّطْفِـُٔوْا نُوْرَ اللّٰهِ بِاَفْوَاهِهِمْ وَیَاْبَی اللّٰهُ اِلَّاۤ اَنْ یُّتِمَّ نُوْرَهٗ وَلَوْ كَرِهَ الْكٰفِرُوْنَ ۟
वे चाहते हैं कि अल्लाह के प्रकाश को अपने मुँह से से बुझा[13] दें, हालाँकि अल्लाह अपने प्रकाश को पूरा किए बिना नहीं रहेगा, भले ही काफिरों को बुरा लगे।
13. आयत का अर्थ यह है कि यहूदी, ईसाई तथा काफ़िर स्वयं तो कुपथ पर हैं ही, वे सत्धर्म इस्लाम से रोकने के लिए भी धोखा-धड़ी से काम लेते हैं, जिसमें वह कदापि सफल नहीं होंगे।
التفاسير العربية:
هُوَ الَّذِیْۤ اَرْسَلَ رَسُوْلَهٗ بِالْهُدٰی وَدِیْنِ الْحَقِّ لِیُظْهِرَهٗ عَلَی الدِّیْنِ كُلِّهٖ ۙ— وَلَوْ كَرِهَ الْمُشْرِكُوْنَ ۟
वही है जिसने अपने रसूल[14] को मार्गदर्शन तथा सत्धर्म (इस्लाम) के साथ भेजा, ताकि उसे प्रत्येक धर्म पर प्रभुत्व प्रदान कर दे[15], भले ही बहुदेववादियों को बुरा लगे।
14. रसूल से अभिप्रेत मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं। 15. इसका सब से बड़ा प्रमाण यह है कि इस समय पूरे संसार में मुसलमानों की संख्या लग-भग दो अरब है। और अब भी इस्लाम पूरी दुनिया में तेज़ी से फैलता जा रहा है।
التفاسير العربية:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اِنَّ كَثِیْرًا مِّنَ الْاَحْبَارِ وَالرُّهْبَانِ لَیَاْكُلُوْنَ اَمْوَالَ النَّاسِ بِالْبَاطِلِ وَیَصُدُّوْنَ عَنْ سَبِیْلِ اللّٰهِ ؕ— وَالَّذِیْنَ یَكْنِزُوْنَ الذَّهَبَ وَالْفِضَّةَ وَلَا یُنْفِقُوْنَهَا فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ ۙ— فَبَشِّرْهُمْ بِعَذَابٍ اَلِیْمٍ ۟ۙ
ऐ ईमान वालो! निःसंदेह बहुत-से विद्वान तथा दरवेश निश्चित रूप से लोगों का धन अवैध तरीके से खाते हैं और अल्लाह की राह से रोकते हैं। तथा जो लोग सोना-चाँदी एकत्र करके रखते हैं और उसे अल्लाह की राह में खर्च नहीं करते, तो उन्हें दर्दनाक अज़ाब की ख़ुशख़बरी दे दो।
التفاسير العربية:
یَّوْمَ یُحْمٰی عَلَیْهَا فِیْ نَارِ جَهَنَّمَ فَتُكْوٰی بِهَا جِبَاهُهُمْ وَجُنُوْبُهُمْ وَظُهُوْرُهُمْ ؕ— هٰذَا مَا كَنَزْتُمْ لِاَنْفُسِكُمْ فَذُوْقُوْا مَا كُنْتُمْ تَكْنِزُوْنَ ۟
जिस दिन उसे जहन्नम की आग में तपाया जाएगा, फिर उससे उनके माथों और उनके पहलुओं और उनकी पीठों को दागा जाएगा। (कहा जाएगा :) यही है, जो तुमने अपने लिए कोश बनाया था। तो (अब) उसका स्वाद चखो जो तुम कोश बनाया करते थे।
التفاسير العربية:
اِنَّ عِدَّةَ الشُّهُوْرِ عِنْدَ اللّٰهِ اثْنَا عَشَرَ شَهْرًا فِیْ كِتٰبِ اللّٰهِ یَوْمَ خَلَقَ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ مِنْهَاۤ اَرْبَعَةٌ حُرُمٌ ؕ— ذٰلِكَ الدِّیْنُ الْقَیِّمُ ۙ۬— فَلَا تَظْلِمُوْا فِیْهِنَّ اَنْفُسَكُمْ ۫— وَقَاتِلُوا الْمُشْرِكِیْنَ كَآفَّةً كَمَا یُقَاتِلُوْنَكُمْ كَآفَّةً ؕ— وَاعْلَمُوْۤا اَنَّ اللّٰهَ مَعَ الْمُتَّقِیْنَ ۟
निःसंदेह अल्लाह के निकट महीनों की संख्या, अल्लाह की किताब में बारह महीने है, जिस दिन उसने आकाशों तथा धरती की रचना की। उनमें से चार महीने हुरमत[16] वाले हैं। यही सीधा धर्म है। अतः इनमें अपने प्राणों पर अत्याचार[17] न करो। तथा बहुदेववादियों से सब मिलकर युद्ध करो, जैसे वे तुमसे मिलकर युद्ध करते हैं, और जान लो कि निःसंदेह अल्लाह मुत्तक़ी लोगों के साथ है।
16. जिनमें युद्ध निषेध है। और वे ज़ुलक़ादा, ज़ुल ह़िज्जा, मुह़र्रम तथा रजब के महीने हैं। (बुख़ारी : 4662) 17. अर्थात इनमें युद्ध तथा रक्तपात न करो, इनका आदर करो।
التفاسير العربية:
اِنَّمَا النَّسِیْٓءُ زِیَادَةٌ فِی الْكُفْرِ یُضَلُّ بِهِ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا یُحِلُّوْنَهٗ عَامًا وَّیُحَرِّمُوْنَهٗ عَامًا لِّیُوَاطِـُٔوْا عِدَّةَ مَا حَرَّمَ اللّٰهُ فَیُحِلُّوْا مَا حَرَّمَ اللّٰهُ ؕ— زُیِّنَ لَهُمْ سُوْٓءُ اَعْمَالِهِمْ ؕ— وَاللّٰهُ لَا یَهْدِی الْقَوْمَ الْكٰفِرِیْنَ ۟۠
तथ्य यह है कि महीनों को पीछे करना[18] कुफ़्र में वृद्धि है, जिसके साथ वे लोग गुमराह किए जाते हैं जिन्होंने कुफ़्र किया। वे एक वर्ष उसे हलाल (वैध) कर लेते हैं और एक वर्ष उसे हराम (अवैध) कर लेते हैं। ताकि उन (महीनों) की गिनती पूरी कर लें, जो अल्लाह ने हराम किए हैं। फिर जो अल्लाह ने हराम (अवैध) किया है, उसे हलाल (वैध) कर लें। उनके बुरे काम उनके लिए सुंदर बना दिए गए हैं और अल्लाह काफ़िरों को सीधा रास्ता नहीं दिखाता।
18. इस्लाम से पहले मक्का के मिश्रणवादी अपने स्वार्थ के लिए सम्मानित महीनों साधारणतः मुह़र्रम के महीने को सफ़र के महीने से बदलकर युद्ध कर लेते थे। इसी प्रकार प्रत्येक तीन वर्ष पर एक महीना अधिक कर लिया जाता था ताकि चाँद का वर्ष सूर्य के वर्ष के अनुसार रहे। क़ुरआन ने इस कुरीति का खंडन किया है, और इसे अधर्म कहा है। (इब्ने कसीर)
التفاسير العربية:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا مَا لَكُمْ اِذَا قِیْلَ لَكُمُ انْفِرُوْا فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ اثَّاقَلْتُمْ اِلَی الْاَرْضِ ؕ— اَرَضِیْتُمْ بِالْحَیٰوةِ الدُّنْیَا مِنَ الْاٰخِرَةِ ۚ— فَمَا مَتَاعُ الْحَیٰوةِ الدُّنْیَا فِی الْاٰخِرَةِ اِلَّا قَلِیْلٌ ۟
ऐ ईमान वालो! तुम्हें क्या हो गया है कि जब तुमसे कहा जाता है कि अल्लाह की राह में निकलो, तो तुम धरती की ओर बहुत बोझल हो जाते हो? क्या तुम आख़िरत (परलोक) की तुलना में दुनिया के जीवन से खुश हो गए हो? तो दुनिया के जीवन का सामान आख़िरत के मुकाबले में बहुत थोड़ा है।[19]
19. ये आयतें तबूक के युद्ध से संबंधित हैं। तबूक मदीना और शाम के बीच एक स्थान का नाम है। जो मदीना से 610 किलोमीटर दूर है। सन् 9 हिजरी में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को यह सूचना मिली कि रोम के राजा क़ैसर ने मदीने पर आक्रमण करने का आदेश दिया है। यह मुसलमानों के लिए अरब से बाहर एक बड़ी शक्ति से युद्ध करने का प्रथम अवसर था। अतः आपने तैयारी और कूच का एलान कर दिया। यह बड़ा भीषण समय था, इसलिए मुसलमानों को प्रेरणा दी जा रही है कि इस युद्ध के लिए निकलें। तबूक का युद्ध : मक्का की विजय के पश्चात् ऐसे समाचार मिलने लगे कि रोम का राजा क़ैसर मुसलमानों पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहा है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने जब यह सुना, तो आपने भी मुसलमानों को तैयारी का आदेश दे दिया। उस समय स्थिति बड़ी गंभीर थी। कड़ी धूप तथा खजूरों के पकने का समय था। सवारी तथा यात्रा के संसाधन की कमी थी। मदीना के मुनाफ़िक़ अबु आमिर राहिब के द्वारा ग़स्सान के ईसाई राजा और क़ैसर से मिले हुए थे। उन्होंने मदीना के पास अपने षड्यंत्र के लिए एक मस्जिद भी बना ली थी। और चाहते थे कि मुसलमान पराजित हो जाएँ। वे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्ल्म और मुसलमानों का उपहास करते थे। और तबूक की यात्रा के बीच आपपर प्राण-घातक आक्रमण भी किया। और बहुत से मुनाफ़िक़ों ने आपका साथ भी नहीं दिया और झूठे बहाने बना लिए। रजब सन् 9 हिजरी में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तीस हज़ार मुसलमानों के साथ निकले। इनमें दस हज़ार सवार थे। तबूक पहुँचकर पता चला कि क़ैसर और उसके सहयोगियों ने साहस खो दिया है। क्योंकि इससे पहले मूता के रणक्षेत्र में तीन हज़ार मुसलमानों ने एक लाख ईसाइयों का मुक़ाबला किया था। इसलिए क़ैसर तीस हज़ार की सेना से भिड़ने का साहस न कर सका। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने तबूक में बीस दिन रहकर रूमियों के अधीन इस क्षेत्र के राज्यों को अपने अधीन बनाया। जिससे इस्लामी राज्य की सीमाएँ रूमी राज्य की सीमा तक पहुँच गईं। जब आप मदीना पहुँचे तो मुनाफ़िक़ों ने झूठे बहाने बनाकर क्षमा माँग ली। तीन मुसलमान जो आपके साथ आलस्य के कारण नहीं जा सके थे और अपना दोष स्वीकार कर लिया था आपने उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया। किंतु अल्लाह ने उन तीनों को भी उनके सत्य के कारण क्षमा कर दिया। आपने उस मस्जिद को भी गिराने का आदेश दिया, जिसे मुनाफ़िक़ों ने अपने षड्यंत्र का केंद्र बनाया था।
التفاسير العربية:
اِلَّا تَنْفِرُوْا یُعَذِّبْكُمْ عَذَابًا اَلِیْمًا ۙ۬— وَّیَسْتَبْدِلْ قَوْمًا غَیْرَكُمْ وَلَا تَضُرُّوْهُ شَیْـًٔا ؕ— وَاللّٰهُ عَلٰی كُلِّ شَیْءٍ قَدِیْرٌ ۟
यदि तुम नहीं निकलोगे, तो वह तुम्हें दर्दनाक यातना देगा और तुम्हारे स्थान पर दूसरे लोगों को ले आएगा और तुम उसे कोई हानि नहीं पहुँचा सकोगे। और अल्लाह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।
التفاسير العربية:
اِلَّا تَنْصُرُوْهُ فَقَدْ نَصَرَهُ اللّٰهُ اِذْ اَخْرَجَهُ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا ثَانِیَ اثْنَیْنِ اِذْ هُمَا فِی الْغَارِ اِذْ یَقُوْلُ لِصَاحِبِهٖ لَا تَحْزَنْ اِنَّ اللّٰهَ مَعَنَا ۚ— فَاَنْزَلَ اللّٰهُ سَكِیْنَتَهٗ عَلَیْهِ وَاَیَّدَهٗ بِجُنُوْدٍ لَّمْ تَرَوْهَا وَجَعَلَ كَلِمَةَ الَّذِیْنَ كَفَرُوا السُّفْلٰی ؕ— وَكَلِمَةُ اللّٰهِ هِیَ الْعُلْیَا ؕ— وَاللّٰهُ عَزِیْزٌ حَكِیْمٌ ۟
यदि तुम उनकी सहायता न करो, तो निःसंदेह अल्लाह ने उनकी सहायता की, जब उन्हें उन लोगों ने निकाल दिया[20] जिन्होंने कुफ़्र किया, जब वह दो में दूसरा थे, जब वे दोनों गुफा में थे, जब वह अपने साथी से कह रहे थे : शोकाकुल न हो। निःसंदेह अल्लाह हमारे साथ है।[21] तो अल्लाह ने उनपर अपनी ओर से शांति उतार दी और उन्हें ऐसी सेनाओँ के साथ शक्ति प्रदान की, जिन्हें तुमने नहीं देखे और उन लोगों की बात नीची कर दी जिन्होंने कुफ़्र किया, और अल्लाह की बात ही सबसे ऊँची है और अल्लाह सबपर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
20. यह उस अवसर की चर्चा है जब मक्का के मिश्रणवादियों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का वध कर देने का निर्णय किया। उसी रात आप मक्का से निकलकर 'सौर' पर्वत की चोटी के पास स्थित गुफा में तीन दिन तक छिपे रहे। फिर मदीना पहुँचे। उस समय गुफा में केवल आदरणीय अबू बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु अन्हु आपके साथ थे। 21. ह़दीस में है कि अबू बक्र (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने कहा कि मैं गुफा में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ था। और मैंने मुश्रिकों के पैर देख लिए। और आपसे कहा : यदि इनमें से कोई अपना पैर उठा दे, तो हमें देख लेगा। आपने कहा : उन दो के बारे में तुम्हारा क्या विचार है जिनका तीसरा अल्लाह है। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4663)
التفاسير العربية:
اِنْفِرُوْا خِفَافًا وَّثِقَالًا وَّجَاهِدُوْا بِاَمْوَالِكُمْ وَاَنْفُسِكُمْ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ ؕ— ذٰلِكُمْ خَیْرٌ لَّكُمْ اِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُوْنَ ۟
हलके[22] और बोझिल (हर स्थिति में) निकल पड़ो और अपने मालों और अपनी जानों के साथ अल्लाह के मार्ग में जिहाद करो। यह तुम्हारे लिए उत्तम है, यदि तुम जानते हो।
22. संसाधन हो या न हो।
التفاسير العربية:
لَوْ كَانَ عَرَضًا قَرِیْبًا وَّسَفَرًا قَاصِدًا لَّاتَّبَعُوْكَ وَلٰكِنْ بَعُدَتْ عَلَیْهِمُ الشُّقَّةُ ؕ— وَسَیَحْلِفُوْنَ بِاللّٰهِ لَوِ اسْتَطَعْنَا لَخَرَجْنَا مَعَكُمْ ۚ— یُهْلِكُوْنَ اَنْفُسَهُمْ ۚ— وَاللّٰهُ یَعْلَمُ اِنَّهُمْ لَكٰذِبُوْنَ ۟۠
यदि शीघ्र मिलने वाल सामान और मध्यम यात्रा होती, तो वे अवश्य आपके पीछे चल पड़ते, लेकिन फ़ासला उनपर दूर पड़ गया। और जल्द ही वे अल्लाह की क़समें खाएँगे कि अगर हमारे पास ताकत होती, तो हम तुम्हारे साथ अवश्य निकलते। वे अपने आपको नष्ट कर रहे हैं और अल्लाह जानता है कि वे निश्चित रूप से झूठे हैं।
التفاسير العربية:
عَفَا اللّٰهُ عَنْكَ ۚ— لِمَ اَذِنْتَ لَهُمْ حَتّٰی یَتَبَیَّنَ لَكَ الَّذِیْنَ صَدَقُوْا وَتَعْلَمَ الْكٰذِبِیْنَ ۟
अल्लाह ने (ऐ नबी!) आपको क्षमा कर दिया, आपने उन्हें क्यों अनुमति दी, यहाँ तक कि आपके लिए वे लोग स्पष्ट हो जाते जिन्होंने सच कहा और आप झूठे लोगों को जान लेते।
التفاسير العربية:
لَا یَسْتَاْذِنُكَ الَّذِیْنَ یُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ وَالْیَوْمِ الْاٰخِرِ اَنْ یُّجَاهِدُوْا بِاَمْوَالِهِمْ وَاَنْفُسِهِمْ ؕ— وَاللّٰهُ عَلِیْمٌۢ بِالْمُتَّقِیْنَ ۟
जो लोग अल्लाह और आख़िरत के दिन पर ईमान रखते हैं, वे आपसे अपने धनों और अपनी जानों के साथ जिहाद करने से अनुमति नहीं माँगते, और अल्लाह मुत्तक़ी लोगों को भली-भाँति जानने वाला है।
التفاسير العربية:
اِنَّمَا یَسْتَاْذِنُكَ الَّذِیْنَ لَا یُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ وَالْیَوْمِ الْاٰخِرِ وَارْتَابَتْ قُلُوْبُهُمْ فَهُمْ فِیْ رَیْبِهِمْ یَتَرَدَّدُوْنَ ۟
आपसे अनुमति केवल वही लोग माँगते हैं, जो अल्लाह तथा अंतिम दिन (आख़िरत) पर ईमान नहीं रखते और उनके दिल संदेह में पड़े हुए हैं। सो वे अपने संदेह में भ्रमित भटक रहे हैं।
التفاسير العربية:
وَلَوْ اَرَادُوا الْخُرُوْجَ لَاَعَدُّوْا لَهٗ عُدَّةً وَّلٰكِنْ كَرِهَ اللّٰهُ انْۢبِعَاثَهُمْ فَثَبَّطَهُمْ وَقِیْلَ اقْعُدُوْا مَعَ الْقٰعِدِیْنَ ۟
यदि वे निकलने का इरादा रखते, तो उसके लिए कुछ सामान अवश्य तैयार करते। लेकिन अल्लाह ने उनके उठने को नापसंद किया, तो उसने उन्हें रोक दिया। तथा कह दिया गया कि बैठने वालों के साथ बैठे रहो।
التفاسير العربية:
لَوْ خَرَجُوْا فِیْكُمْ مَّا زَادُوْكُمْ اِلَّا خَبَالًا وَّلَاۡاَوْضَعُوْا خِلٰلَكُمْ یَبْغُوْنَكُمُ الْفِتْنَةَ ۚ— وَفِیْكُمْ سَمّٰعُوْنَ لَهُمْ ؕ— وَاللّٰهُ عَلِیْمٌۢ بِالظّٰلِمِیْنَ ۟
यदि वे तुम्हारे साथ निकलते, तो तुम्हारे अंदर बिगाड़ के सिवा किसी और चीज़ की वृद्धि नहीं करते। और तुम्हारे बीच उपद्रव पैदा करने के लिए दौड़-धूप करते। और तुम्हारे अंदर कुछ लोग उनकी बातें कान लगाकर सुनने वाले हैं। और अल्लाह इन अत्याचारियों को भली-भाँति जानने वाला है।
التفاسير العربية:
لَقَدِ ابْتَغَوُا الْفِتْنَةَ مِنْ قَبْلُ وَقَلَّبُوْا لَكَ الْاُمُوْرَ حَتّٰی جَآءَ الْحَقُّ وَظَهَرَ اَمْرُ اللّٰهِ وَهُمْ كٰرِهُوْنَ ۟
निःसंदेह उन्होंने इससे पहले भी उपद्रव मचाना चाहा तथा आपके लिए कई मामले उलट-पलट किए। यहाँ तक कि सत्य आ गया और अल्लाह का आदेश प्रबल हो गया। हालाँकि वे नापसंद करने वाले थे।
التفاسير العربية:
وَمِنْهُمْ مَّنْ یَّقُوْلُ ائْذَنْ لِّیْ وَلَا تَفْتِنِّیْ ؕ— اَلَا فِی الْفِتْنَةِ سَقَطُوْا ؕ— وَاِنَّ جَهَنَّمَ لَمُحِیْطَةٌ بِالْكٰفِرِیْنَ ۟
उनके अंदर ऐसा व्यक्ति भी है, जो कहता है कि आप मुझे अनुमति दे दें और मुझे फ़ितने में न डालें। सुन लो! वे फ़ितने ही में तो पड़े हुए हैं और निःसंदेह जहन्नम काफ़िरों को अवश्य घेरने वाली है।
التفاسير العربية:
اِنْ تُصِبْكَ حَسَنَةٌ تَسُؤْهُمْ ۚ— وَاِنْ تُصِبْكَ مُصِیْبَةٌ یَّقُوْلُوْا قَدْ اَخَذْنَاۤ اَمْرَنَا مِنْ قَبْلُ وَیَتَوَلَّوْا وَّهُمْ فَرِحُوْنَ ۟
यदि आपको कोई भलाई पहुँचती है, तो उन्हें बुरी लगती है और यदि आपपर कोई आपदा आती है, तो कहते हैं : हमने तो पहले ही अपना बचाव कर लिया था और ऐसी अवस्था में पलटते हैं कि वे बहुत प्रसन्न होते हैं।
التفاسير العربية:
قُلْ لَّنْ یُّصِیْبَنَاۤ اِلَّا مَا كَتَبَ اللّٰهُ لَنَا ۚ— هُوَ مَوْلٰىنَا ۚ— وَعَلَی اللّٰهِ فَلْیَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُوْنَ ۟
आप कह दें : हमें कुछ भी नहीं पहुँचेगा सिवाय उसके जो अल्लाह ने हमारे लिए लिख दिया है। वही हमारा मालिक है और अल्लाह ही पर ईमान वालों को भरोसा करना चाहिए।
التفاسير العربية:
قُلْ هَلْ تَرَبَّصُوْنَ بِنَاۤ اِلَّاۤ اِحْدَی الْحُسْنَیَیْنِ ؕ— وَنَحْنُ نَتَرَبَّصُ بِكُمْ اَنْ یُّصِیْبَكُمُ اللّٰهُ بِعَذَابٍ مِّنْ عِنْدِهٖۤ اَوْ بِاَیْدِیْنَا ۖؗۗ— فَتَرَبَّصُوْۤا اِنَّا مَعَكُمْ مُّتَرَبِّصُوْنَ ۟
आप कह दें : तुम हमारे बारे में दो भलाइयों[23] में से किसी एक के सिवा किसकी प्रतीक्षा कर रहे हो और हम तुम्हारे बारे में यह प्रतीक्षा कर रहे हैं कि अल्लाह तुम्हें अपने पास से यातना दे, या हमारे हाथों से। तो तुम प्रतीक्षा करो, निःसंदेह हम (भी) तुम्हारे साथ प्रतीक्षा करने वाले हैं।
23. दो भलाइयों से अभिप्राय विजय या अल्लाह की राह में शहीद होना है। (इब्ने कसीर)
التفاسير العربية:
قُلْ اَنْفِقُوْا طَوْعًا اَوْ كَرْهًا لَّنْ یُّتَقَبَّلَ مِنْكُمْ ؕ— اِنَّكُمْ كُنْتُمْ قَوْمًا فٰسِقِیْنَ ۟
आप कह दें : तुम स्वेच्छापूर्वक दान करो अथवा अनिच्छापूर्वक, तुम्हारी ओर से हरगिज़ स्वीकार नहीं किया जाएगा। निःसंदेह तुम हमेशा से अवज्ञाकारी लोग हो।
التفاسير العربية:
وَمَا مَنَعَهُمْ اَنْ تُقْبَلَ مِنْهُمْ نَفَقٰتُهُمْ اِلَّاۤ اَنَّهُمْ كَفَرُوْا بِاللّٰهِ وَبِرَسُوْلِهٖ وَلَا یَاْتُوْنَ الصَّلٰوةَ اِلَّا وَهُمْ كُسَالٰی وَلَا یُنْفِقُوْنَ اِلَّا وَهُمْ كٰرِهُوْنَ ۟
और उनकी ख़र्च की हुई चीज़ों को स्वीकार करने से उन्हें इसके सिवा किसी चीज़ ने नहीं रोका कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ़्र किया और वे नमाज़ के लिए आलसी होकर आते हैं तथा वे खर्च नहीं करते परंतु इस अवस्था में कि वे नाख़ुश होते हैं।
التفاسير العربية:
فَلَا تُعْجِبْكَ اَمْوَالُهُمْ وَلَاۤ اَوْلَادُهُمْ ؕ— اِنَّمَا یُرِیْدُ اللّٰهُ لِیُعَذِّبَهُمْ بِهَا فِی الْحَیٰوةِ الدُّنْیَا وَتَزْهَقَ اَنْفُسُهُمْ وَهُمْ كٰفِرُوْنَ ۟
अतः आपको न उनके धन भले लगें और न उनकी संतान। अल्लाह तो यही चाहता है कि उन्हें इनके द्वारा सांसारिक जीवन में यातना दे और उनके प्राण इस दशा में निकलें कि वे काफ़िर हों।
التفاسير العربية:
وَیَحْلِفُوْنَ بِاللّٰهِ اِنَّهُمْ لَمِنْكُمْ ؕ— وَمَا هُمْ مِّنْكُمْ وَلٰكِنَّهُمْ قَوْمٌ یَّفْرَقُوْنَ ۟
और वे (मुनाफ़िक़) अल्लाह की क़सम खाते हैं कि निःसंदेह वे अवश्य तुममें से हैं, हालाँकि वे तुममें से नहीं हैं, परंतु वे ऐसे लोग हैं जो डरते हैं।
التفاسير العربية:
لَوْ یَجِدُوْنَ مَلْجَاً اَوْ مَغٰرٰتٍ اَوْ مُدَّخَلًا لَّوَلَّوْا اِلَیْهِ وَهُمْ یَجْمَحُوْنَ ۟
यदि वे कोई शरण स्थल, या कोई गुफाएँ या घुसने की कोई जगह पा जाएँ, तो अवश्य ही वे बगटुट उसकी ओर लौट जाएँ।
التفاسير العربية:
وَمِنْهُمْ مَّنْ یَّلْمِزُكَ فِی الصَّدَقٰتِ ۚ— فَاِنْ اُعْطُوْا مِنْهَا رَضُوْا وَاِنْ لَّمْ یُعْطَوْا مِنْهَاۤ اِذَا هُمْ یَسْخَطُوْنَ ۟
और उनमें से कुछ लोग ऐसे हैं, जो सदक़ों के (वितरण के) बारे में आपपर दोष लगाता हैं। फिर यदि उन्हें उनमें से दे दिया जाए, तो प्रसन्न हो जाते हैं और यदि उन्हें उनमें से न दिया जाए, तो तुरंत वे क्रोधित हो जाते हैं।
التفاسير العربية:
وَلَوْ اَنَّهُمْ رَضُوْا مَاۤ اٰتٰىهُمُ اللّٰهُ وَرَسُوْلُهٗ ۙ— وَقَالُوْا حَسْبُنَا اللّٰهُ سَیُؤْتِیْنَا اللّٰهُ مِنْ فَضْلِهٖ وَرَسُوْلُهٗۤ ۙ— اِنَّاۤ اِلَی اللّٰهِ رٰغِبُوْنَ ۟۠
और (कितना अच्छा होता) यदि वे उससे संतुष्ट हो जाते, जो अल्लाह और उसके रसूल ने उन्हें दिया और कहते कि हमारे लिए अल्लाह काफ़ी है। जल्द ही अल्लाह हमें अपनी कृपा से प्रदान करेगा तथा उसका रसूल भी। निःसंदेह हम अल्लाह ही की ओर रूचि रखने वाले हैं।
التفاسير العربية:
اِنَّمَا الصَّدَقٰتُ لِلْفُقَرَآءِ وَالْمَسٰكِیْنِ وَالْعٰمِلِیْنَ عَلَیْهَا وَالْمُؤَلَّفَةِ قُلُوْبُهُمْ وَفِی الرِّقَابِ وَالْغٰرِمِیْنَ وَفِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ وَابْنِ السَّبِیْلِ ؕ— فَرِیْضَةً مِّنَ اللّٰهِ ؕ— وَاللّٰهُ عَلِیْمٌ حَكِیْمٌ ۟
ज़कात तो केवल फ़क़ीरों[24] और मिस्कीनों के लिए और उसपर नियुक्त कार्यकर्ताओं[25] के लिए तथा उनके लिए है जिनके दिलों को परचाना[26] अभीष्ट हो, और दास मुक्त करने में और क़र्ज़दारों एवं तावान भरने वालों में और अल्लाह के मार्ग में तथा यात्रियों के लिए है। यह अल्लाह की ओर से एक दायित्व है[27] और अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।
24. क़ुरआन ने यहाँ फ़क़ीर और मिस्कीन के शब्दों का प्रयोग किया है। फ़क़ीर का अर्थ है जिसके पास कुछ न हो। परंतु मिस्कीन वह है जिसके पास कुछ धन हो, मगर उसकी आवश्यकता की पूर्ति न होती हो। 25. जो ज़कात के काम में लगे हों। 26. इससे अभिप्राय वे हैं जो नए-नए इस्लाम लाए हों। तो उनके लिए भी ज़कात है। या जो इस्लाम में रूचि रखते हों, और इस्लाम के सहायक हों। 27.संसार में कोई धर्म ऐसा नहीं है जिसने दीन-दुखियों की सहायता और सेवा की प्रेरणा न दी हो। और उसे इबादत (वंदना) का अनिवार्य अंश न कहा हो। परंतु इस्लाम की यह विशेषता है कि उसने प्रत्येक धनी मुसलमान पर एक विशेष कर निरिधारित कर दिया है जो उसपर अपनी पूरी आय का ह़िसाब करके प्रत्येक वर्ष देना अनिवार्य है। फिर उसे इतना महत्व दिया है कि कर्मों में नमाज़ के पश्चात् उसी का स्थान है। और क़ुरआन में दोनों कर्मों की चर्चा एक साथ करके यह स्पष्ट कर दिया गया है कि किसी समुदाय में इस्लामी जीवन के सबसे पहले यही दो लक्षण हैं, नमाज़ तथा ज़कात। यदि इस्लाम में ज़कात के नियम का पालन किया जाए तो समाज में कोई ग़रीब नहीं रह जाएगा। और धनवानों तथा निर्धनों के बीच प्रेम की ऐसी भावना पैदा हो जाएगी कि पूरा समाज सुखी और शांतिमय बन जाएगा। ब्याज का भी निवारण हो जाएगा। तथा धन कुछ हाथों में सीमित न रहकर उसका लाभ पूरे समाज को मिलेगा। फिर इस्लाम ने इसका नियम निर्धारित किया है। जिसका पूरा विवरण ह़दीसों में मिलेगा और यह भी निश्चित कर दिया है कि ज़कात का धन किनको दिया जाएगा और इस आयत में उन्हीं की चर्चा की गई है, जो ये हैं : 1. फ़क़ीर 2. मिस्कीन, 3. ज़कात के कार्यकर्ता, 4. नए मुसलमान, 5. दास-दासी, 6. ऋणी, 7. अल्लाह के मार्ग में, 8. और यात्री। अल्लाह के मार्ग से अभिप्राय अल्लाह की राह में जिहाद करने वाले लोग हैं।
التفاسير العربية:
وَمِنْهُمُ الَّذِیْنَ یُؤْذُوْنَ النَّبِیَّ وَیَقُوْلُوْنَ هُوَ اُذُنٌ ؕ— قُلْ اُذُنُ خَیْرٍ لَّكُمْ یُؤْمِنُ بِاللّٰهِ وَیُؤْمِنُ لِلْمُؤْمِنِیْنَ وَرَحْمَةٌ لِّلَّذِیْنَ اٰمَنُوْا مِنْكُمْ ؕ— وَالَّذِیْنَ یُؤْذُوْنَ رَسُوْلَ اللّٰهِ لَهُمْ عَذَابٌ اَلِیْمٌ ۟
तथा उन (मुनाफ़िक़ों) में से कुछ लोग ऐसे हैं जो नबी को दुःख देते हैं और कहते हैं कि वह तो निरा कान[28] हैं! आप कह दें कि वह तुम्हारे लिए भलाई का कान हैं। वह अल्लाह पर विश्वास रखते हैं और ईमान वालों की बात का विश्वास करते हैं और तुममें से उन लोगों के लिए दया हैं, जो ईमान लाए हैं और जो लोग अल्लाह के रसूल को दुःख देते हैं, उनके लिए दर्दनाक यातना है।
28. मुनाफ़िक़ों का मतलब यह था कि आप कान के कच्चे हैं, हर एक की बात सुनकर उसपर विश्वास कर लेते हैं।
التفاسير العربية:
یَحْلِفُوْنَ بِاللّٰهِ لَكُمْ لِیُرْضُوْكُمْ ۚ— وَاللّٰهُ وَرَسُوْلُهٗۤ اَحَقُّ اَنْ یُّرْضُوْهُ اِنْ كَانُوْا مُؤْمِنِیْنَ ۟
वे तुम्हारे समक्ष अल्लाह की क़सम खाते हैं, ताकि तुम्हें प्रसन्न करें। हालाँकि अल्लाह और उसके रसूल अधिक योग्य हैं कि वे उन्हें प्रसन्न करें, अगर वे ईमान वाले हैं।
التفاسير العربية:
اَلَمْ یَعْلَمُوْۤا اَنَّهٗ مَنْ یُّحَادِدِ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ فَاَنَّ لَهٗ نَارَ جَهَنَّمَ خَالِدًا فِیْهَا ؕ— ذٰلِكَ الْخِزْیُ الْعَظِیْمُ ۟
क्या उन्होंने नहीं जाना कि जो अल्लाह और उसके रसूल का विरोध करता है, तो निःसंदेह उसके लिए जहन्नम की आग है, जिसमें वह सदैव रहने वाला है। यह बहुत बड़ा अपमान है।
التفاسير العربية:
یَحْذَرُ الْمُنٰفِقُوْنَ اَنْ تُنَزَّلَ عَلَیْهِمْ سُوْرَةٌ تُنَبِّئُهُمْ بِمَا فِیْ قُلُوْبِهِمْ ؕ— قُلِ اسْتَهْزِءُوْا ۚ— اِنَّ اللّٰهَ مُخْرِجٌ مَّا تَحْذَرُوْنَ ۟
मुनाफ़िक़ों को इस बात का डर है कि उनपर[29] कोई ऐसी सूरत न उतार दी जाए, जो उन्हें वे बातें बता दे जो इनके दिलों में हैं। आप कह दें : तुम मज़ाक़ उड़ाते रहो। निःसंदेह अल्लाह उन बातों को निकालने वाला है, जिनसे तुम डरते हो।
29. अर्थात् ईमान वालों पर।
التفاسير العربية:
وَلَىِٕنْ سَاَلْتَهُمْ لَیَقُوْلُنَّ اِنَّمَا كُنَّا نَخُوْضُ وَنَلْعَبُ ؕ— قُلْ اَبِاللّٰهِ وَاٰیٰتِهٖ وَرَسُوْلِهٖ كُنْتُمْ تَسْتَهْزِءُوْنَ ۟
निःसंदेह यदि आप[30] उनसे पूछें, तो वे अवश्य ही कहेंगे : हम तो यूँ ही बातचीत और हँसी-मज़ाक़ कर रहे थे। आप कह दें : क्या तुम अल्लाह और उसकी आयतों और उसके रसूल के साथ मज़ाक कर रहे थे?
30. तबूक की यात्रा के दौरान मुनाफ़िक़ लोग, नबी तथा इस्लाम के विरुद्ध बहुत-सी दुःखदायी बातें कर रहे थे।
التفاسير العربية:
لَا تَعْتَذِرُوْا قَدْ كَفَرْتُمْ بَعْدَ اِیْمَانِكُمْ ؕ— اِنْ نَّعْفُ عَنْ طَآىِٕفَةٍ مِّنْكُمْ نُعَذِّبْ طَآىِٕفَةًۢ بِاَنَّهُمْ كَانُوْا مُجْرِمِیْنَ ۟۠
तुम बहाने मत बनाओ, निःसंदेह तुमने अपने ईमान के बाद कुफ़्र किया। यदि हम तुममें से एक समूह को क्षमा कर दें, तो एक समूह को दंड देंगे, क्योंकि निश्चय ही वे अपराधी थे।
التفاسير العربية:
اَلْمُنٰفِقُوْنَ وَالْمُنٰفِقٰتُ بَعْضُهُمْ مِّنْ بَعْضٍ ۘ— یَاْمُرُوْنَ بِالْمُنْكَرِ وَیَنْهَوْنَ عَنِ الْمَعْرُوْفِ وَیَقْبِضُوْنَ اَیْدِیَهُمْ ؕ— نَسُوا اللّٰهَ فَنَسِیَهُمْ ؕ— اِنَّ الْمُنٰفِقِیْنَ هُمُ الْفٰسِقُوْنَ ۟
मुनाफ़िक़ पुरुष और मुनाफिक़ स्त्रियाँ, वे सब एक-जैसे हैं। वे बुराई का आदेश देते हैं तथा भलाई से रोकते हैं और अपने हाथ बंद रखते[31] हैं। वे अल्लाह को भूल गए, तो उसने उन्हें भुला[32] दिया। निश्चय मुनाफ़िक़ लोग ही अवज्ञाकारी हैं।
31. अर्थात दान नहीं करते। 32. अल्लाह के भुला देने का अर्थ है उनपर दया न करना।
التفاسير العربية:
وَعَدَ اللّٰهُ الْمُنٰفِقِیْنَ وَالْمُنٰفِقٰتِ وَالْكُفَّارَ نَارَ جَهَنَّمَ خٰلِدِیْنَ فِیْهَا ؕ— هِیَ حَسْبُهُمْ ۚ— وَلَعَنَهُمُ اللّٰهُ ۚ— وَلَهُمْ عَذَابٌ مُّقِیْمٌ ۟ۙ
अल्लाह ने मुनाफ़िक़ पुरुषों तथा मुनाफ़िक़ स्त्रियों और काफ़िरों से जहन्नम की आग का वादा किया है, जिसमें वे हमेशा रहने वाले हैं। वही उनके लिए प्रयाप्त है। और अल्लाह ने उनपर ला'नत की और उनके लिए सदैव रहने वाली यातना है।
التفاسير العربية:
كَالَّذِیْنَ مِنْ قَبْلِكُمْ كَانُوْۤا اَشَدَّ مِنْكُمْ قُوَّةً وَّاَكْثَرَ اَمْوَالًا وَّاَوْلَادًا ؕ— فَاسْتَمْتَعُوْا بِخَلَاقِهِمْ فَاسْتَمْتَعْتُمْ بِخَلَاقِكُمْ كَمَا اسْتَمْتَعَ الَّذِیْنَ مِنْ قَبْلِكُمْ بِخَلَاقِهِمْ وَخُضْتُمْ كَالَّذِیْ خَاضُوْا ؕ— اُولٰٓىِٕكَ حَبِطَتْ اَعْمَالُهُمْ فِی الدُّنْیَا وَالْاٰخِرَةِ ۚ— وَاُولٰٓىِٕكَ هُمُ الْخٰسِرُوْنَ ۟
उन लोगों की तरह जो तुमसे पहले थे। वे शक्ति में तुमसे ज़्यादा मज़बूत तथा धन और संतान में तुमसे अधिक थे। तो उन्होंने अपने भाग का आनंद लिया। फिर तुमने अपने भाग का आनंद लिया, जैसे तुमसे पूर्व के लोगों ने आनंद लिया था और तुम (झूठ और असत्य के अंदर) घुसे, जैसे वे घुसे थे। यही लोग हैं, जिनके कर्म दुनिया एवं आखिरत में अकारथ हो गए और यही घाटा उठाने वाले लोग हैं।
التفاسير العربية:
اَلَمْ یَاْتِهِمْ نَبَاُ الَّذِیْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ قَوْمِ نُوْحٍ وَّعَادٍ وَّثَمُوْدَ ۙ۬— وَقَوْمِ اِبْرٰهِیْمَ وَاَصْحٰبِ مَدْیَنَ وَالْمُؤْتَفِكٰتِ ؕ— اَتَتْهُمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَیِّنٰتِ ۚ— فَمَا كَانَ اللّٰهُ لِیَظْلِمَهُمْ وَلٰكِنْ كَانُوْۤا اَنْفُسَهُمْ یَظْلِمُوْنَ ۟
क्या इनके पास उन लोगों की ख़बर नहीं आई, जो इनसे पहले थे? नूह़ की जाति और आद और समूद तथा इबराहीम की जाति और मदयन[33] वाले और उलटी[34] हुई बस्तियों के लोग? उनके पास उनके रसूल स्पष्ट प्रमाण लेकर आए, तो अल्लाह ऐसा नहीं था कि उनपर अत्याचार करता, परंतु वे स्वयं अपने आप पर अत्याचार[35] करते थे।
33. मदयन वाले शुऐब अलैहिस्सलाम की जाति थे। 34. इससे अभिप्राय लूत अलैहिस्सलाम की जाति है। (इब्ने कसीर) 35. अपने रसूलों को अस्वीकार करके।
التفاسير العربية:
وَالْمُؤْمِنُوْنَ وَالْمُؤْمِنٰتُ بَعْضُهُمْ اَوْلِیَآءُ بَعْضٍ ۘ— یَاْمُرُوْنَ بِالْمَعْرُوْفِ وَیَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنْكَرِ وَیُقِیْمُوْنَ الصَّلٰوةَ وَیُؤْتُوْنَ الزَّكٰوةَ وَیُطِیْعُوْنَ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ ؕ— اُولٰٓىِٕكَ سَیَرْحَمُهُمُ اللّٰهُ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ عَزِیْزٌ حَكِیْمٌ ۟
और ईमान वाले मर्द और ईमान वाली औरतें एक-दूसरे के दोस्त हैं, वे भलाई का हुक्म देते हैं और बुराई से मना करते हैं और नमाज़ क़ायम करते हैं और ज़कात देते हैं तथा अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करते हैं। यही लोग हैं जिनपर अल्लाह दया करेगा। निःसंदेह अल्लाह सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
التفاسير العربية:
وَعَدَ اللّٰهُ الْمُؤْمِنِیْنَ وَالْمُؤْمِنٰتِ جَنّٰتٍ تَجْرِیْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِیْنَ فِیْهَا وَمَسٰكِنَ طَیِّبَةً فِیْ جَنّٰتِ عَدْنٍ ؕ— وَرِضْوَانٌ مِّنَ اللّٰهِ اَكْبَرُ ؕ— ذٰلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِیْمُ ۟۠
अल्लाह ने ईमान वाले पुरुषों तथा ईमान वाली स्त्रियों से ऐसे बाग़ों का वादा किया है जिनके नीचे से नहरें बहती हैं, जिनमें वे सदैव रहने वाले होंगे, और स्थायी बाग़ों में अच्छे आवासों का (वादा किया है)। और अल्लाह की ओर से थोड़ी-सी प्रसन्नता सबसे बड़ी है, यही तो बहुत बड़ी सफलता है।
التفاسير العربية:
یٰۤاَیُّهَا النَّبِیُّ جَاهِدِ الْكُفَّارَ وَالْمُنٰفِقِیْنَ وَاغْلُظْ عَلَیْهِمْ ؕ— وَمَاْوٰىهُمْ جَهَنَّمُ ؕ— وَبِئْسَ الْمَصِیْرُ ۟
ऐ नबी! काफ़िरों और मुनाफ़िक़ों से जिहाद करें और उनपर सख़्ती करें। और उनका ठिकाना जहन्नम है और वह बहुत बुरा लौटकर जाने का स्थान है।
التفاسير العربية:
یَحْلِفُوْنَ بِاللّٰهِ مَا قَالُوْا ؕ— وَلَقَدْ قَالُوْا كَلِمَةَ الْكُفْرِ وَكَفَرُوْا بَعْدَ اِسْلَامِهِمْ وَهَمُّوْا بِمَا لَمْ یَنَالُوْا ۚ— وَمَا نَقَمُوْۤا اِلَّاۤ اَنْ اَغْنٰىهُمُ اللّٰهُ وَرَسُوْلُهٗ مِنْ فَضْلِهٖ ۚ— فَاِنْ یَّتُوْبُوْا یَكُ خَیْرًا لَّهُمْ ۚ— وَاِنْ یَّتَوَلَّوْا یُعَذِّبْهُمُ اللّٰهُ عَذَابًا اَلِیْمًا فِی الدُّنْیَا وَالْاٰخِرَةِ ۚ— وَمَا لَهُمْ فِی الْاَرْضِ مِنْ وَّلِیٍّ وَّلَا نَصِیْرٍ ۟
वे अल्लाह की क़सम खाते हैं कि उन्होंने (यह) बात[36] नहीं कही। हालाँकि निःसंदेह उन्होंने कुफ़्र की बात[37] कही और अपने इस्लाम लाने के पश्चात् काफ़िर हो गए और उन्होंने उस चीज़ का इरादा किया, जो उन्हें नहीं मिली। और उन्होंने केवल इसका बदला लिया कि अल्लाह और उसके रसूल ने उन्हें अपने अनुग्रह से समृद्ध[38] कर दिया। अब यदि वे तौबा कर लें, तो उनके लिए बेहतर होगा और अगर वे मुँह फेर लें, तो अल्लाह उन्हें दुनिया और आख़िरत में दर्दनाक अज़ाब देगा और उनका धरती पर न कोई दोस्त होगा और न कोई मददगार।
36. अर्थात ऐसी बात जो रसूल और मुसलमानों को बुरी लगे। 37. यह उन बातों की ओर संकेत हैं जो मुनाफ़िक़ों ने तबूक की मुहिम के समय की थीं। (उनकी ऐसी बातों के विवरण के लिए देखिए : सूरतुल मुनाफ़िक़ून, आयत : 7-8) 38. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के मदीना आने से पहले मदीने का कोई महत्व न था। आर्थिक दशा भी अच्छी नहीं थी। जो कुछ था यहूदियों के अधिकार में था। वे ब्याज भक्षी थे, शराब का व्यापार करते थे, और अस्त्र-शस्त्र बनाते थे। आपके आगमन के पश्चात आर्थिक दशा सुधर गई, और व्यवसायिक उन्नति हुई।
التفاسير العربية:
وَمِنْهُمْ مَّنْ عٰهَدَ اللّٰهَ لَىِٕنْ اٰتٰىنَا مِنْ فَضْلِهٖ لَنَصَّدَّقَنَّ وَلَنَكُوْنَنَّ مِنَ الصّٰلِحِیْنَ ۟
और उनमें से कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने अल्लाह को वचन दिया कि निश्चय यदि उसने हमें अपने अनुग्रह से कुछ प्रदान किया, तो हम अवश्य दान करेंगे और निश्चित रूप से नेक लोगों में से हो जाएँगे।
التفاسير العربية:
فَلَمَّاۤ اٰتٰىهُمْ مِّنْ فَضْلِهٖ بَخِلُوْا بِهٖ وَتَوَلَّوْا وَّهُمْ مُّعْرِضُوْنَ ۟
फिर जब उसने उन्हें अपने अनुग्रह से कुछ प्रदान किया, तो उन्होंने उसमें कंजूसी की और विमुख होकर फिर गए।
التفاسير العربية:
فَاَعْقَبَهُمْ نِفَاقًا فِیْ قُلُوْبِهِمْ اِلٰی یَوْمِ یَلْقَوْنَهٗ بِمَاۤ اَخْلَفُوا اللّٰهَ مَا وَعَدُوْهُ وَبِمَا كَانُوْا یَكْذِبُوْنَ ۟
तो परिणाम यह हुआ कि उस (अल्लाह) ने उनके दिलों में उस दिन तक के लिए निफ़ाक़ डाल दिया, जब वे उससे मिलेंगे। क्योंकि उन्होंने अल्लाह से जो वादा किया था, उसका उल्लंघन किया और इसलिए कि वे झूठ बोलते थे।
التفاسير العربية:
اَلَمْ یَعْلَمُوْۤا اَنَّ اللّٰهَ یَعْلَمُ سِرَّهُمْ وَنَجْوٰىهُمْ وَاَنَّ اللّٰهَ عَلَّامُ الْغُیُوْبِ ۟ۚ
क्या उन्हें नहीं मालूम कि निःसंदेह अल्लाह उनके भेद और उनकी कानाफूसी को अच्छी तरह जानता है और यह कि निःसंदेह अल्लाह परोक्ष की सभी बातों को भली-भाँति जानने वाला है?
التفاسير العربية:
اَلَّذِیْنَ یَلْمِزُوْنَ الْمُطَّوِّعِیْنَ مِنَ الْمُؤْمِنِیْنَ فِی الصَّدَقٰتِ وَالَّذِیْنَ لَا یَجِدُوْنَ اِلَّا جُهْدَهُمْ فَیَسْخَرُوْنَ مِنْهُمْ ؕ— سَخِرَ اللّٰهُ مِنْهُمْ ؗ— وَلَهُمْ عَذَابٌ اَلِیْمٌ ۟
वे लोग जो स्वेच्छापूर्वक दान देने वाले मोमिनों को, उनके दान के विषय में, ताना देते हैं तथा उन लोगों को (भी) जो अपनी मेहनत के सिवा कुछ नहीं पाते। तो वे (मुनाफ़िक़) उनका उपहास करते हैं। अल्लाह ने उनका उपहास किया[39] और उनके लिए दर्दनाक यातना है।
39. अर्थात उनके उपहास का कुफल दे रहा है। अबू मस्ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि जब हमें दान देने का आदेश दिया गया, तो हम कमाने के लिए बोझ लादने लगे, ताकि हम दान कर सकें। और अबू अक़ील (रज़ियल्लाहु अन्हु) आधा सा' (सवा किलो) लाए। और एक व्यक्ति उनसे अधिक लेकर आया। तो मुनाफ़िक़ों ने कहा : अल्लाह को उसके थोड़े-से दान की ज़रूरत नहीं। और यह दिखाने के लिए (अधिक) लाया है। इसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4668)
التفاسير العربية:
اِسْتَغْفِرْ لَهُمْ اَوْ لَا تَسْتَغْفِرْ لَهُمْ ؕ— اِنْ تَسْتَغْفِرْ لَهُمْ سَبْعِیْنَ مَرَّةً فَلَنْ یَّغْفِرَ اللّٰهُ لَهُمْ ؕ— ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ كَفَرُوْا بِاللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ ؕ— وَاللّٰهُ لَا یَهْدِی الْقَوْمَ الْفٰسِقِیْنَ ۟۠
(ऐ नबी!) आप उनके लिए क्षमा याचना करें, या उनके लिए क्षमा याचना न करें, यदि आप उनके लिए सत्तर बार क्षमा याचना करें, तो भी अल्लाह उन्हें कभी क्षमा नहीं करेगा। यह इस कारण कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ़्र किया और अल्लाह अवज्ञाकारी लोगों का मार्गदर्शन नहीं करता।
التفاسير العربية:
فَرِحَ الْمُخَلَّفُوْنَ بِمَقْعَدِهِمْ خِلٰفَ رَسُوْلِ اللّٰهِ وَكَرِهُوْۤا اَنْ یُّجَاهِدُوْا بِاَمْوَالِهِمْ وَاَنْفُسِهِمْ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ وَقَالُوْا لَا تَنْفِرُوْا فِی الْحَرِّ ؕ— قُلْ نَارُ جَهَنَّمَ اَشَدُّ حَرًّا ؕ— لَوْ كَانُوْا یَفْقَهُوْنَ ۟
वे लोग जो पीछे छोड़ दिए[40] गए, अल्लाह के रसूल के पीछे अपने बैठ रहने पर खुश हो गए और उन्होंने नापसंद किया कि अपने धनों और अपने प्राणों के साथ अल्लाह के मार्ग में जिहाद करें और उन्होंने (अन्य लोगों से) कहा कि गर्मी में मत निकलो। आप कह दें : जहन्नम की आग कहीं अधिक गर्म है। काश! वे समझते होते।
40. अर्थात मुनाफ़िक़ जो मदीना में रह गए और तबूक के युद्ध में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ नहीं गए।
التفاسير العربية:
فَلْیَضْحَكُوْا قَلِیْلًا وَّلْیَبْكُوْا كَثِیْرًا ۚ— جَزَآءً بِمَا كَانُوْا یَكْسِبُوْنَ ۟
तो उन्हें चाहिए कि थोड़ा हँसें और बहुत अधिक रोएँ, उसके बदले जो वे कमाते रहे हैं।
التفاسير العربية:
فَاِنْ رَّجَعَكَ اللّٰهُ اِلٰی طَآىِٕفَةٍ مِّنْهُمْ فَاسْتَاْذَنُوْكَ لِلْخُرُوْجِ فَقُلْ لَّنْ تَخْرُجُوْا مَعِیَ اَبَدًا وَّلَنْ تُقَاتِلُوْا مَعِیَ عَدُوًّا ؕ— اِنَّكُمْ رَضِیْتُمْ بِالْقُعُوْدِ اَوَّلَ مَرَّةٍ فَاقْعُدُوْا مَعَ الْخٰلِفِیْنَ ۟
तो यदि अल्लाह आपको इन (मुनाफ़िक़ों) के किसी गिरोह की ओर वापस ले आए, फिर वे आपसे (युद्ध में) निकलने की अनुमति माँगें, तो आप कह दें : तुम मेरे साथ कभी नहीं निकलोगे और मेरे साथ मिलकर किसी शत्रु से नहीं लड़ोगे। निःसंदेह तुम प्रथम बार बैठे रहने पर प्रसन्न हुए, अतः पीछे रहने वालों के साथ बैठे रहो।
التفاسير العربية:
وَلَا تُصَلِّ عَلٰۤی اَحَدٍ مِّنْهُمْ مَّاتَ اَبَدًا وَّلَا تَقُمْ عَلٰی قَبْرِهٖ ؕ— اِنَّهُمْ كَفَرُوْا بِاللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ وَمَاتُوْا وَهُمْ فٰسِقُوْنَ ۟
और उनमें से जो कोई मर जाए, उसका कभी जनाज़ा न पढ़ना और न उसकी क़ब्र पर खड़े होना। निःसंदेह उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ़्र किया और इस अवस्था में मरे कि वे अवज्ञाकारी थे।[41]
41. सह़ीह़ ह़दीस में है कि जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मुनाफ़िक़ों के मुखिया अब्दुल्लाह बिन उबय्य का जनाज़ा पढ़ा, तो यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4672)
التفاسير العربية:
وَلَا تُعْجِبْكَ اَمْوَالُهُمْ وَاَوْلَادُهُمْ ؕ— اِنَّمَا یُرِیْدُ اللّٰهُ اَنْ یُّعَذِّبَهُمْ بِهَا فِی الدُّنْیَا وَتَزْهَقَ اَنْفُسُهُمْ وَهُمْ كٰفِرُوْنَ ۟
और आपको उनके धन और उनकी संतान भले न लगें। अल्लाह तो यही चाहता है कि उन्हें इनके द्वारा सांसारिक जीवन में यातना दे और उनके प्राण इस हाल में निकलें कि वे काफ़िर हों।
التفاسير العربية:
وَاِذَاۤ اُنْزِلَتْ سُوْرَةٌ اَنْ اٰمِنُوْا بِاللّٰهِ وَجَاهِدُوْا مَعَ رَسُوْلِهِ اسْتَاْذَنَكَ اُولُوا الطَّوْلِ مِنْهُمْ وَقَالُوْا ذَرْنَا نَكُنْ مَّعَ الْقٰعِدِیْنَ ۟
तथा जब कोई सूरत उतारी जाती है कि अल्लाह पर ईमान लाओ तथा उसके रसूल के साथ मिलकर जिहाद करो, तो उनमें से धनवान लोग आपसे अनुमति माँगते हैं और कहते हैं : आप हमें छोड़ दें कि हम बैठने वालों के साथ हो जाएँ।
التفاسير العربية:
رَضُوْا بِاَنْ یَّكُوْنُوْا مَعَ الْخَوَالِفِ وَطُبِعَ عَلٰی قُلُوْبِهِمْ فَهُمْ لَا یَفْقَهُوْنَ ۟
वे इसपर राज़ी हो गए कि पीछे रहने वाली स्त्रियों के साथ हो जाएँ और उनके दिलों पर मुहर लगा दी गई। अतः वे नहीं समझते।
التفاسير العربية:
لٰكِنِ الرَّسُوْلُ وَالَّذِیْنَ اٰمَنُوْا مَعَهٗ جٰهَدُوْا بِاَمْوَالِهِمْ وَاَنْفُسِهِمْ ؕ— وَاُولٰٓىِٕكَ لَهُمُ الْخَیْرٰتُ ؗ— وَاُولٰٓىِٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ ۟
परंतु रसूल ने और उन लोगों ने जो उसके साथ ईमान लाए, अपने धनों और अपने प्राणों के साथ जिहाद किया और यही लोग हैं जिनके लिए सब भलाइयाँ हैं और यही सफल होने वाले हैं।
التفاسير العربية:
اَعَدَّ اللّٰهُ لَهُمْ جَنّٰتٍ تَجْرِیْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِیْنَ فِیْهَا ؕ— ذٰلِكَ الْفَوْزُ الْعَظِیْمُ ۟۠
अल्लाह ने उनके लिए ऐसे बाग़ तैयार कर रखे हैं, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं। वे उनमें हमेशा रहने वाले हैं। यही बहुत बड़ी सफलता है।
التفاسير العربية:
وَجَآءَ الْمُعَذِّرُوْنَ مِنَ الْاَعْرَابِ لِیُؤْذَنَ لَهُمْ وَقَعَدَ الَّذِیْنَ كَذَبُوا اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ ؕ— سَیُصِیْبُ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا مِنْهُمْ عَذَابٌ اَلِیْمٌ ۟
और देहातियों में से बहाना करने वाले लोग आए, ताकि उन्हें (युद्ध में शरीक न होने की) अनुमति दी जाए। तथा वे लोग (अपने घरों में) बैठ रहे, जिन्होंने अल्लाह और उसके रसूल से झूठ बोला। उनमें से उन लोगों को जिन्होंने कुफ़्र किया, जल्द ही दर्दनाक यातना पहुँचेगी।
التفاسير العربية:
لَیْسَ عَلَی الضُّعَفَآءِ وَلَا عَلَی الْمَرْضٰی وَلَا عَلَی الَّذِیْنَ لَا یَجِدُوْنَ مَا یُنْفِقُوْنَ حَرَجٌ اِذَا نَصَحُوْا لِلّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ ؕ— مَا عَلَی الْمُحْسِنِیْنَ مِنْ سَبِیْلٍ ؕ— وَاللّٰهُ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟ۙ
न तो कमज़ोरों पर कोई हर्ज (पाप) है और न बीमारों पर और न उन लोगों पर जो वह चीज़ नहीं पाते जो ख़र्च करें, जब वे अल्लाह और उसके रसूल के प्रति निष्ठावान हों। सत्कर्म करने वालों पर (आपत्ति का) का कोई रास्ता नहीं। और अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यंत दयावान है।
التفاسير العربية:
وَّلَا عَلَی الَّذِیْنَ اِذَا مَاۤ اَتَوْكَ لِتَحْمِلَهُمْ قُلْتَ لَاۤ اَجِدُ مَاۤ اَحْمِلُكُمْ عَلَیْهِ ۪— تَوَلَّوْا وَّاَعْیُنُهُمْ تَفِیْضُ مِنَ الدَّمْعِ حَزَنًا اَلَّا یَجِدُوْا مَا یُنْفِقُوْنَ ۟ؕ
और न उन लोगों पर (कोई पाप है) कि जब वे आपके पास आए, ताकि आप उनके लिए सवारी की व्यवस्था कर दें, आपने कहा मैं वह चीज़ नहीं पाता जिसपर तुम्हें सवार करूँ, तो वे इस हाल में वापस हुए कि उनकी आँखें आँसुओं से बह रही थीं[42] इस शोक के कारण कि वे खर्च करने के लिए कुछ नहीं पाते।
42. ये विभिन्न क़बीलों के लोग थे, जो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सेवा में उपस्थित हुए कि आप हमारे लिए सवारी का प्रबंध कर दें। हम भी आपके साथ तबूक के जिहाद में जाएँगे। परंतु आप सवारी का कोई प्रबंध न कर सके और वे रोते हुए वापस हुए। (इब्ने कसीर)
التفاسير العربية:
اِنَّمَا السَّبِیْلُ عَلَی الَّذِیْنَ یَسْتَاْذِنُوْنَكَ وَهُمْ اَغْنِیَآءُ ۚ— رَضُوْا بِاَنْ یَّكُوْنُوْا مَعَ الْخَوَالِفِ ۙ— وَطَبَعَ اللّٰهُ عَلٰی قُلُوْبِهِمْ فَهُمْ لَا یَعْلَمُوْنَ ۟
(आपत्ति का) का रास्ता तो केवल उन लोगों पर है, जो आपसे अनुमति माँगते हैं, हालाँकि वे मालदार हैं। वे इसपर राज़ी हो गए कि पीछे रहने वाली औरतों के साथ हो जाएँ और अल्लाह ने उनके दिलों पर मुहर लगा दी, सो वे नहीं जानते।
التفاسير العربية:
یَعْتَذِرُوْنَ اِلَیْكُمْ اِذَا رَجَعْتُمْ اِلَیْهِمْ ؕ— قُلْ لَّا تَعْتَذِرُوْا لَنْ نُّؤْمِنَ لَكُمْ قَدْ نَبَّاَنَا اللّٰهُ مِنْ اَخْبَارِكُمْ ؕ— وَسَیَرَی اللّٰهُ عَمَلَكُمْ وَرَسُوْلُهٗ ثُمَّ تُرَدُّوْنَ اِلٰی عٰلِمِ الْغَیْبِ وَالشَّهَادَةِ فَیُنَبِّئُكُمْ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُوْنَ ۟
जब तुम उनकी ओर वापस जाओगे, तो वे तुम्हारे सामने बहाने पेश करेंगे। आप कह दें : हम तुम्हारा कभी विश्वास नहीं करेंगे, निःसंदेह अल्लाह हमें तुम्हारी कुछ ख़बरें बता चुका है, और जल्द ही अल्लाह तुम्हारे काम को देखेगा और उसका रसूल भी। फिर तुम हर परोक्ष
और प्रत्यक्ष चीज़ को जानने वाले की ओर लौटाए जाओगे। फिर वह तुम्हें बताएगा जो कुछ तुम करते रहे थे।
التفاسير العربية:
سَیَحْلِفُوْنَ بِاللّٰهِ لَكُمْ اِذَا انْقَلَبْتُمْ اِلَیْهِمْ لِتُعْرِضُوْا عَنْهُمْ ؕ— فَاَعْرِضُوْا عَنْهُمْ ؕ— اِنَّهُمْ رِجْسٌ ؗ— وَّمَاْوٰىهُمْ جَهَنَّمُ ۚ— جَزَآءً بِمَا كَانُوْا یَكْسِبُوْنَ ۟
शीघ्र ही जब तुम उनकी ओर वापस जाओगे, तो वे तुम्हारे सामने अल्लाह की क़समें खाएँगे, ताकि तुम उनसे ध्यान हटा लो। अतः उनकी उपेक्षा करो, निःसंदेह वे गंदे हैं और उनका ठिकाना जहन्नम है, उसके बदले जो वे कमाते रहे हैं।
التفاسير العربية:
یَحْلِفُوْنَ لَكُمْ لِتَرْضَوْا عَنْهُمْ ۚ— فَاِنْ تَرْضَوْا عَنْهُمْ فَاِنَّ اللّٰهَ لَا یَرْضٰی عَنِ الْقَوْمِ الْفٰسِقِیْنَ ۟
वे तुम्हारे लिए क़समें खाएँगे, ताकि तुम उनसे राज़ी हो जाओ। तो यदि तुम उनसे राज़ी हो जाओ, तो निःसंदेह अल्लाह अवज्ञाकारी लोगों से राज़ी नहीं होता।
التفاسير العربية:
اَلْاَعْرَابُ اَشَدُّ كُفْرًا وَّنِفَاقًا وَّاَجْدَرُ اَلَّا یَعْلَمُوْا حُدُوْدَ مَاۤ اَنْزَلَ اللّٰهُ عَلٰی رَسُوْلِهٖ ؕ— وَاللّٰهُ عَلِیْمٌ حَكِیْمٌ ۟
देहाती[43] अविश्वास तथा पाखंड में अधिक बढ़े हुए हैं और इस बात के अधिक योग्य हैं कि उन सीमाओं को न जानें, जो अल्लाह ने अपने रसूल पर उतारी हैं, और अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।
43. इससे अभिप्राय मदीना के आस-पास के क़बीले हैं।
التفاسير العربية:
وَمِنَ الْاَعْرَابِ مَنْ یَّتَّخِذُ مَا یُنْفِقُ مَغْرَمًا وَّیَتَرَبَّصُ بِكُمُ الدَّوَآىِٕرَ ؕ— عَلَیْهِمْ دَآىِٕرَةُ السَّوْءِ ؕ— وَاللّٰهُ سَمِیْعٌ عَلِیْمٌ ۟
देहातियों में कुछ ऐसे हैं कि जो कुछ ख़र्च करते हैं, उसे तावान समझते हैं और तुम्हारे लिए बुरे समय की प्रतीक्षा करते हैं। बुरा समय उन्हीं पर आए। और अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
التفاسير العربية:
وَمِنَ الْاَعْرَابِ مَنْ یُّؤْمِنُ بِاللّٰهِ وَالْیَوْمِ الْاٰخِرِ وَیَتَّخِذُ مَا یُنْفِقُ قُرُبٰتٍ عِنْدَ اللّٰهِ وَصَلَوٰتِ الرَّسُوْلِ ؕ— اَلَاۤ اِنَّهَا قُرْبَةٌ لَّهُمْ ؕ— سَیُدْخِلُهُمُ اللّٰهُ فِیْ رَحْمَتِهٖ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟۠
और देहातियों में कुछ ऐसे हैं, जो अल्लाह तथा अंतिम दिन पर ईमान रखते हैं और जो कुछ ख़र्च करते हैं, उसे अल्लाह के यहाँ निकटता तथा रसूल की दुआओं (की प्राप्ति) का साधन समझते हैं। सुन लो! निःसंदेह यह उनके लिए निकटता का साधन है। शीघ्र ही अल्लाह उन्हें अपनी दया में दाखिल करेगा। निःसंदेह अल्लाह अत्यंत क्षमाशील, असीम दयावान् है।
التفاسير العربية:
وَالسّٰبِقُوْنَ الْاَوَّلُوْنَ مِنَ الْمُهٰجِرِیْنَ وَالْاَنْصَارِ وَالَّذِیْنَ اتَّبَعُوْهُمْ بِاِحْسَانٍ ۙ— رَّضِیَ اللّٰهُ عَنْهُمْ وَرَضُوْا عَنْهُ وَاَعَدَّ لَهُمْ جَنّٰتٍ تَجْرِیْ تَحْتَهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِیْنَ فِیْهَاۤ اَبَدًا ؕ— ذٰلِكَ الْفَوْزُ الْعَظِیْمُ ۟
तथा सबसे पहले (ईमान की ओर) आगे बढ़ने वाले मुहाजिरीन[44] और अंसार और जिन लोगों ने नेकी के साथ उनका अनुसरण किया, अल्लाह उनसे प्रसन्न हो गया और वे उससे प्रसन्न हो गए तथा उसने उनके लिए ऐसी जन्नतें तैयार कर रखी हैं, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं। वे उनके अंदर हमेशा रहेंगे। यही बड़ी सफलता है।
44. इससे अभिप्राय वे मुहाजिरीन हैं जो मक्का से हिजरत करके ह़ुदैबिया की संधि सन् 6 हिजरी से पहले मदीना आ गए थे। और प्रथम आगे बढ़नेवाले अंसार मदीना के वे मुसलमान हैं जो मुहाजिरीन के सहायक बने और ह़ुदैबिया में उपस्थित थे। (इब्ने कसीर)
التفاسير العربية:
وَمِمَّنْ حَوْلَكُمْ مِّنَ الْاَعْرَابِ مُنٰفِقُوْنَ ۛؕ— وَمِنْ اَهْلِ الْمَدِیْنَةِ ؔۛ۫— مَرَدُوْا عَلَی النِّفَاقِ ۫— لَا تَعْلَمُهُمْ ؕ— نَحْنُ نَعْلَمُهُمْ ؕ— سَنُعَذِّبُهُمْ مَّرَّتَیْنِ ثُمَّ یُرَدُّوْنَ اِلٰی عَذَابٍ عَظِیْمٍ ۟ۚ
और तुम्हारे आस-पास जो देहाती हैं, उनमें से कुछ लोग मुनाफ़िक़ हैं और मदीना वालों में से भी, जो अपने निफ़ाक़ (पाखंड) पर जमे हुए हैं। आप उन्हें नहीं जानते, हम ही उन्हें जानते हैं। जल्द ही हम उन्हें दो बार[45] यातना देंगे। फिर वे बहुत बड़ी यातना की ओर लौटाए जाएँगे।
45. संसार में तथा क़ब्र में। फिर परलोक की घोर यातना होगी। (इब्ने कसीर)
التفاسير العربية:
وَاٰخَرُوْنَ اعْتَرَفُوْا بِذُنُوْبِهِمْ خَلَطُوْا عَمَلًا صَالِحًا وَّاٰخَرَ سَیِّئًا ؕ— عَسَی اللّٰهُ اَنْ یَّتُوْبَ عَلَیْهِمْ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟
और कुछ अन्य लोग भी हैं, जिन्होंने अपने गुनाहों का इक़रार किया। उन्होंने कुछ काम अच्छे और कुछ दूसरे बुरे मिला दिए। निकट है कि अल्लाह उनपर फिर से दया करे। निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
التفاسير العربية:
خُذْ مِنْ اَمْوَالِهِمْ صَدَقَةً تُطَهِّرُهُمْ وَتُزَكِّیْهِمْ بِهَا وَصَلِّ عَلَیْهِمْ ؕ— اِنَّ صَلٰوتَكَ سَكَنٌ لَّهُمْ ؕ— وَاللّٰهُ سَمِیْعٌ عَلِیْمٌ ۟
आप उनके मालों में से दान लें, जिसके साथ आप उन्हें पवित्र और पाक-साफ़ करें, तथा उनके लिए दुआ करें। निःसंदेह आपकी दुआ उनके लिए शांति का कारण है और अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
التفاسير العربية:
اَلَمْ یَعْلَمُوْۤا اَنَّ اللّٰهَ هُوَ یَقْبَلُ التَّوْبَةَ عَنْ عِبَادِهٖ وَیَاْخُذُ الصَّدَقٰتِ وَاَنَّ اللّٰهَ هُوَ التَّوَّابُ الرَّحِیْمُ ۟
क्या वे नहीं जानते कि निःसंदेह अल्लाह ही अपने बंदों की तौबा क़बूल करता और सदक़े लेता है और यह कि निःसंदेह अल्लाह ही है जो बहुत अधिक तौबा क़बूल करने वाला, अत्यंत दयावान् है।
التفاسير العربية:
وَقُلِ اعْمَلُوْا فَسَیَرَی اللّٰهُ عَمَلَكُمْ وَرَسُوْلُهٗ وَالْمُؤْمِنُوْنَ ؕ— وَسَتُرَدُّوْنَ اِلٰی عٰلِمِ الْغَیْبِ وَالشَّهَادَةِ فَیُنَبِّئُكُمْ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُوْنَ ۟ۚ
और कह दीजिए : तुम कर्म किए जाओ। जल्द ही अल्लाह तुम्हारे कर्मों को देखेगा, और उसके रसूल और ईमान वाले भी। और जल्द ही तुम हर परोक्ष और प्रत्यक्ष बात को जानने वाले की ओर लौटाए जाओगे। फिर वह तुम्हें बताएगा जो कुछ तुम किया करते थे
التفاسير العربية:
وَاٰخَرُوْنَ مُرْجَوْنَ لِاَمْرِ اللّٰهِ اِمَّا یُعَذِّبُهُمْ وَاِمَّا یَتُوْبُ عَلَیْهِمْ ؕ— وَاللّٰهُ عَلِیْمٌ حَكِیْمٌ ۟
और कुछ दूसरे लोग भी हैं, जिनका मामला अल्लाह का आदेश आने तक स्थगित[46] है। या तो वह उन्हें यातना दे और या फिर उनकी तौबा क़बूल करे। तथा अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।
46. अर्थात अपने विषय में अल्लाह के निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। ये तीन व्यक्ति थे जिन्होंने आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के तबूक से वापस आने पर यह कहा कि वे अपने आलस्य के कारण आपका साथ नहीं दे सके। आपने उनसे कहा कि अल्लाह के आदेश की प्रतीक्षा करो। और आगामी आयत 117 में उनके बारे में आदेश आ रहा है।
التفاسير العربية:
وَالَّذِیْنَ اتَّخَذُوْا مَسْجِدًا ضِرَارًا وَّكُفْرًا وَّتَفْرِیْقًا بَیْنَ الْمُؤْمِنِیْنَ وَاِرْصَادًا لِّمَنْ حَارَبَ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ مِنْ قَبْلُ ؕ— وَلَیَحْلِفُنَّ اِنْ اَرَدْنَاۤ اِلَّا الْحُسْنٰی ؕ— وَاللّٰهُ یَشْهَدُ اِنَّهُمْ لَكٰذِبُوْنَ ۟
तथा (मुनाफ़िक़ों में से) वे लोग भी हैं, जिन्होंने एक मस्जिद[47] बनाई; ताकि (मुसलमानों को) हानि पहुँचाएँ, कुफ़्र करें, ईमान वालों के बीच फूट डालें तथा ऐसे व्यक्ति के लिए घात लगाने का ठिकाना बनाएँ, जो इससे पहले अल्लाह और उसके रसूल से युद्ध कर चुका[48] है। तथा निश्चय वे अवश्य क़समें खाएँगे कि हमारा इरादा भलाई के सिवा और कुछ न था, और अल्लाह गवाही देता है कि निःसंदेह वे निश्चय झूठे हैं।
47. इस्लामी इतिहास में यह "मस्जिदे ज़िरार" के नाम से याद की जाती है। जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मदीना आए तो आपके आदेश से "क़ुबा" नाम के स्थान में एक मस्जिद बनाई गई। जो इस्लामी युग की प्रथम मस्जिद है। कुछ मुनाफ़िक़ों ने उसी के पास एक नई मस्जिद का निर्माण किया। और जब आप तबूक के लिए निकल रहे थे तो आपसे कहा कि आप एक दिन उसमें नमाज़ पढ़ा दें। आपने कहा कि यात्रा से वापसी पर देखा जाएगा। और जब वापस मदीना के समीप पहुँचे तो यह आयत उतरी, और आपके आदेश से उसे ध्वस्त कर दिया गया। (इब्ने कसीर) 48. इससे अभीप्रेत अबू आमिर राहिब है। जिसने कुछ लोगों से कहा कि एक मस्जिद बनाओ और जितनी शक्ति और अस्त्र-शस्त्र हो सके तैयार कर लो। मैं रोम के राजा क़ैसर के पास जा रहा हूँ। रोमियों की सेना लाऊँगा, और मुह़म्मद तथा उसके साथियों को मदीना से निकाल दूँगा। (इब्ने कसीर)
التفاسير العربية:
لَا تَقُمْ فِیْهِ اَبَدًا ؕ— لَمَسْجِدٌ اُسِّسَ عَلَی التَّقْوٰی مِنْ اَوَّلِ یَوْمٍ اَحَقُّ اَنْ تَقُوْمَ فِیْهِ ؕ— فِیْهِ رِجَالٌ یُّحِبُّوْنَ اَنْ یَّتَطَهَّرُوْا ؕ— وَاللّٰهُ یُحِبُّ الْمُطَّهِّرِیْنَ ۟
उसमें कभी खड़े न होना। निश्चय वह मस्जिद[49] जिसकी बुनियाद पहले दिन से परहेज़गारी पर रखी गई है, वह अधिक योग्य है कि आप उसमें खड़े हों। उसमें ऐसे लोग हैं, जो बहुत पाक-साफ़ रहना पसंद[50] करते हैं और अल्लाह पाक-साफ़ रहने वालों से प्रेम करता है।
49. इस मस्जिद से अभिप्राय क़ुबा की मस्जिद है। तथा मस्जिद नबवी शरीफ़ भी इसी में आती है। (इब्ने कसीर) 50. अर्थात शुद्धता के लिए जल का प्रयोग करते हैं।
التفاسير العربية:
اَفَمَنْ اَسَّسَ بُنْیَانَهٗ عَلٰی تَقْوٰی مِنَ اللّٰهِ وَرِضْوَانٍ خَیْرٌ اَمْ مَّنْ اَسَّسَ بُنْیَانَهٗ عَلٰی شَفَا جُرُفٍ هَارٍ فَانْهَارَ بِهٖ فِیْ نَارِ جَهَنَّمَ ؕ— وَاللّٰهُ لَا یَهْدِی الْقَوْمَ الظّٰلِمِیْنَ ۟
तो क्या वह व्यक्ति बेहतर है जिसने अपनी इमारत की नींव अल्लाह के डर और उसकी खुशी पर रखी, या वह जिसने अपनी इमारत की नींव एक गड्ढे के किनारे पर रखी जो ढहने वाला था? तो वह उसके साथ जहन्नम की आग में गिर पड़ा और अल्लाह ज़ालिमों को हिदायत नहीं देता।
التفاسير العربية:
لَا یَزَالُ بُنْیَانُهُمُ الَّذِیْ بَنَوْا رِیْبَةً فِیْ قُلُوْبِهِمْ اِلَّاۤ اَنْ تَقَطَّعَ قُلُوْبُهُمْ ؕ— وَاللّٰهُ عَلِیْمٌ حَكِیْمٌ ۟۠
उनका भवन जो उन्होंने बनाया है, उनके दिलों में हमेशा चिंता का स्रोत रहेगा, परंतु यह कि उनके दिलों के टुकड़े-टुकड़े हो जाएँ। तथा अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।
التفاسير العربية:
اِنَّ اللّٰهَ اشْتَرٰی مِنَ الْمُؤْمِنِیْنَ اَنْفُسَهُمْ وَاَمْوَالَهُمْ بِاَنَّ لَهُمُ الْجَنَّةَ ؕ— یُقَاتِلُوْنَ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ فَیَقْتُلُوْنَ وَیُقْتَلُوْنَ ۫— وَعْدًا عَلَیْهِ حَقًّا فِی التَّوْرٰىةِ وَالْاِنْجِیْلِ وَالْقُرْاٰنِ ؕ— وَمَنْ اَوْفٰی بِعَهْدِهٖ مِنَ اللّٰهِ فَاسْتَبْشِرُوْا بِبَیْعِكُمُ الَّذِیْ بَایَعْتُمْ بِهٖ ؕ— وَذٰلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِیْمُ ۟
निःसंदेह अल्लाह ने ईमान वालों के प्राणों तथा उनके धनों को इसके बदले ख़रीद लिया है कि निश्चय उनके लिए जन्नत है। वे अल्लाह की राह में युद्ध करते हैं, तो वे क़त्ल करते हैं और क़त्ल किए जाते हैं। यह तौरात और इंजील और क़ुरआन में उसके ज़िम्मे पक्का वादा है और अल्लाह से बढ़कर अपना वादा पूरा करने वाला कौन है? तो अपने उस सौदे पर प्रसन्न हो जाओ, जो तुमने उससे किया है और यही बहुत बड़ी सफलता है।
التفاسير العربية:
اَلتَّآىِٕبُوْنَ الْعٰبِدُوْنَ الْحٰمِدُوْنَ السَّآىِٕحُوْنَ الرّٰكِعُوْنَ السّٰجِدُوْنَ الْاٰمِرُوْنَ بِالْمَعْرُوْفِ وَالنَّاهُوْنَ عَنِ الْمُنْكَرِ وَالْحٰفِظُوْنَ لِحُدُوْدِ اللّٰهِ ؕ— وَبَشِّرِ الْمُؤْمِنِیْنَ ۟
(वे मोमिन) तौबा करने वाले, इबादत करने वाले, स्तुति करने वाले, रोज़ा रखने वाले, रुकू' करने वाले, सजदा करने वाले, भलाई का आदेश देने वाले, बुराई से रोकने वाले और अल्लाह की सीमाओं की रक्षा करने वाले हैं, और (ऐ नबी!) आप ऐसे मोमिनों को शुभ-सूचना दे दें।
التفاسير العربية:
مَا كَانَ لِلنَّبِیِّ وَالَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اَنْ یَّسْتَغْفِرُوْا لِلْمُشْرِكِیْنَ وَلَوْ كَانُوْۤا اُولِیْ قُرْبٰی مِنْ بَعْدِ مَا تَبَیَّنَ لَهُمْ اَنَّهُمْ اَصْحٰبُ الْجَحِیْمِ ۟
नबी[51] तथा ईमान वालों के लिए मुशरिकों के लिए क्षमा की प्रार्थना करना कदापि जायज़ नहीं है, भले ही वे रिश्तेदार ही क्यों न हों, जबकि उनके लिए यह स्पष्ट हो गया कि निश्चय वे जहन्नम में जाने वाले[52] हैं।
51. ह़दीस में है कि जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के चाचा अबू तालिब के निधन का समय आया तो आप उसके पास गए और कहा : चाचा! "ला इलाहा इल्लल्लाह" पढ़ लो। मैं अल्लाह के पास तुम्हारे लिए इसको प्रमाण बना लूँगा। उस समय अबू जह्ल और अब्दुल्लाह बिन उमय्या ने कहा : क्या तुम अब्दुल मुत्तलिब के धर्म से फिर जाओगे? (अतः वह काफ़िर ही मरा।) तब आपने कहा : मैं तुम्हारे लिए क्षमा की प्रार्थना करता रहूँगा, जब तक उससे रोक न दिया जाऊँ। और इसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4675) 52. देखिए : सूरतुल-मायदा, आयत : 72, तथा सूरतुन-निसा, आयत : 48,116.
التفاسير العربية:
وَمَا كَانَ اسْتِغْفَارُ اِبْرٰهِیْمَ لِاَبِیْهِ اِلَّا عَنْ مَّوْعِدَةٍ وَّعَدَهَاۤ اِیَّاهُ ۚ— فَلَمَّا تَبَیَّنَ لَهٗۤ اَنَّهٗ عَدُوٌّ لِّلّٰهِ تَبَرَّاَ مِنْهُ ؕ— اِنَّ اِبْرٰهِیْمَ لَاَوَّاهٌ حَلِیْمٌ ۟
और इबराहीम का अपने बाप के लिए क्षमा की प्रार्थना करना, केवल उस वादे[53] के कारण था जो उसने उससे किया था, फिर जब उसके सामने स्पष्ट हो गया कि वह वास्तव में अल्लाह का शत्रु है, तो उसने अपने आपको उससे अलग कर लिया। निःसंदेह इबराहीम बड़ा कोमल हृदय, अत्यंत सहनशील था।
53. देखिए : सूरतुल-मुम्तह़िना, आयत : 4
التفاسير العربية:
وَمَا كَانَ اللّٰهُ لِیُضِلَّ قَوْمًا بَعْدَ اِذْ هَدٰىهُمْ حَتّٰی یُبَیِّنَ لَهُمْ مَّا یَتَّقُوْنَ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ بِكُلِّ شَیْءٍ عَلِیْمٌ ۟
और अल्लाह कभी ऐसा नहीं कि किसी जाति को सीधा मार्ग दिखाने के बाद पथभ्रष्ट कर दे, जब तक उनके लिए वे बातें स्पष्ट न कर दे, जिनसे वे बचें। निःसंदेह अल्लाह प्रत्येक वस्तु को भली-भाँति जानने वाला है।
التفاسير العربية:
اِنَّ اللّٰهَ لَهٗ مُلْكُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ ؕ— یُحْیٖ وَیُمِیْتُ ؕ— وَمَا لَكُمْ مِّنْ دُوْنِ اللّٰهِ مِنْ وَّلِیٍّ وَّلَا نَصِیْرٍ ۟
निःसंदेह अल्लाह ही है, जिसके अधिकार में आकाशों तथा धरती का राज्य है। वही जीवन देता और मारता है और तुम्हारे लिए अल्लाह के सिवा न कोई मित्र है और न कोई सहायक।
التفاسير العربية:
لَقَدْ تَّابَ اللّٰهُ عَلَی النَّبِیِّ وَالْمُهٰجِرِیْنَ وَالْاَنْصَارِ الَّذِیْنَ اتَّبَعُوْهُ فِیْ سَاعَةِ الْعُسْرَةِ مِنْ بَعْدِ مَا كَادَ یَزِیْغُ قُلُوْبُ فَرِیْقٍ مِّنْهُمْ ثُمَّ تَابَ عَلَیْهِمْ ؕ— اِنَّهٗ بِهِمْ رَءُوْفٌ رَّحِیْمٌ ۟ۙ
निःसंदेह अल्लाह ने नबी तथा मुहाजिरों और अंसार की तौबा क़बूल कर ली, जिन्होंने तंगी के समय नबी का साथ दिया, इसके बाद कि उनमें से एक समूह के दिल क़रीब थे कि टेढ़े हो जाएँ। फिर उसने उनकी क्षमायाचना क़बूल कर ली। निश्चय वह उनके लिए अति करुणामय, अत्यंत दयावान् है।
التفاسير العربية:
وَّعَلَی الثَّلٰثَةِ الَّذِیْنَ خُلِّفُوْا ؕ— حَتّٰۤی اِذَا ضَاقَتْ عَلَیْهِمُ الْاَرْضُ بِمَا رَحُبَتْ وَضَاقَتْ عَلَیْهِمْ اَنْفُسُهُمْ وَظَنُّوْۤا اَنْ لَّا مَلْجَاَ مِنَ اللّٰهِ اِلَّاۤ اِلَیْهِ ؕ— ثُمَّ تَابَ عَلَیْهِمْ لِیَتُوْبُوْا ؕ— اِنَّ اللّٰهَ هُوَ التَّوَّابُ الرَّحِیْمُ ۟۠
तथा उन तीन[54] लोगों की भी (तौबा क़बूल कर ली), जिनका मामला स्थगित कर दिया गया था, यहाँ तक कि जब धरती उनपर अपने विस्तार के बावजूद तंग हो गई और उनपर उनके प्राण संकीर्ण[55] हो गए और उन्होंने यक़ीन कर लिया कि अल्लाह से भागकर उनके लिए कोई शरण लेने का स्थान नहीं, परंतु उसी की ओर। फिर उसने उनपर दया करते हुए उन्हें तौबा की तौफ़ीक़ दी, ताकि वे तौबा करें। निश्चय अल्लाह ही है जो बहुत तौबा क़बूल करने वाला, अत्यंत दयावान् है।
54. ये वही तीन लोग हैं जिनकी चर्चा आयत संख्या 106 में आ चुकी है। इनके नाम थे : 1-का'ब बिन मालिक, 2-हिलाल बिन उमय्या, 3- मुरारह बिन रबी'। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4677) 55. क्योंकि उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया था।
التفاسير العربية:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوا اتَّقُوا اللّٰهَ وَكُوْنُوْا مَعَ الصّٰدِقِیْنَ ۟
ऐ ईमान लाने वालो! अल्लाह से डरो तथा सच्चे लोगों के साथ हो जाओ।
التفاسير العربية:
مَا كَانَ لِاَهْلِ الْمَدِیْنَةِ وَمَنْ حَوْلَهُمْ مِّنَ الْاَعْرَابِ اَنْ یَّتَخَلَّفُوْا عَنْ رَّسُوْلِ اللّٰهِ وَلَا یَرْغَبُوْا بِاَنْفُسِهِمْ عَنْ نَّفْسِهٖ ؕ— ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ لَا یُصِیْبُهُمْ ظَمَاٌ وَّلَا نَصَبٌ وَّلَا مَخْمَصَةٌ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ وَلَا یَطَـُٔوْنَ مَوْطِئًا یَّغِیْظُ الْكُفَّارَ وَلَا یَنَالُوْنَ مِنْ عَدُوٍّ نَّیْلًا اِلَّا كُتِبَ لَهُمْ بِهٖ عَمَلٌ صَالِحٌ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ لَا یُضِیْعُ اَجْرَ الْمُحْسِنِیْنَ ۟ۙ
मदीना के वासियों तथा उनके आस-पास के देहातियों को अधिकार नहीं था कि अल्लाह के रसूल से पीछे रहते और न यह कि अपने प्राणों को आपके प्राण से प्रिय समझते। यह इसलिए कि वे अल्लाह की राह में जो भी प्यास और थकान तथा भूख की तकलीफ़ उठाते हैं और जिस स्थान पर भी क़दम रखते हैं, जो काफ़िरों के क्रोध को भड़काए और किसी शत्रु के मुक़ाबले में जो भी सफलता प्राप्त करते हैं, तो उनके लिए, उसके बदले में एक सत्कर्म लिख दिया जाता है। निश्चय अल्लाह सत्कर्म करने वालों का कर्मफल व्यर्थ नहीं करता।
التفاسير العربية:
وَلَا یُنْفِقُوْنَ نَفَقَةً صَغِیْرَةً وَّلَا كَبِیْرَةً وَّلَا یَقْطَعُوْنَ وَادِیًا اِلَّا كُتِبَ لَهُمْ لِیَجْزِیَهُمُ اللّٰهُ اَحْسَنَ مَا كَانُوْا یَعْمَلُوْنَ ۟
और वे थोड़ा या अधिक, जो भी खर्च करते हैं और जो भी घाटी पार करते हैं, उसे उनके हक़ में लिख लिया जाता है, ताकि अल्लाह उन्हें उसका सबसे अच्छा बदला दे, जो वे किया करते थे।
التفاسير العربية:
وَمَا كَانَ الْمُؤْمِنُوْنَ لِیَنْفِرُوْا كَآفَّةً ؕ— فَلَوْلَا نَفَرَ مِنْ كُلِّ فِرْقَةٍ مِّنْهُمْ طَآىِٕفَةٌ لِّیَتَفَقَّهُوْا فِی الدِّیْنِ وَلِیُنْذِرُوْا قَوْمَهُمْ اِذَا رَجَعُوْۤا اِلَیْهِمْ لَعَلَّهُمْ یَحْذَرُوْنَ ۟۠
और संभव नहीं कि ईमान वाले सब के सब निकल पड़ें, तो उनके हर गिरोह में से कुछ लोग क्यों न निकले, ताकि वे धर्म में समझ हासिल करें और ताकि वे अपने लोगों को डराएँ, जब वे उनके पास वापस जाएँ, ताकि वे बच जाएँ।[56]
56. इस आयत में यह संकेत है कि धार्मिक शिक्षा की एक साधारण व्यवस्था होनी चाहिए। और यह नहीं हो सकता कि सब धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए निकल पड़ें। इसलिए प्रत्येक समुदाय से कुछ लोग जाकर धर्म की शिक्षा ग्रहण करें। फिर दूसरों को धर्म की बातें बताएँ। क़ुरआन के इसी संकेत ने मुसलमानों में शिक्षा ग्रहण करने की ऐसी भावना उत्पन्न कर दी कि एक शताब्दी के भीतर उन्होंने शीक्षा ग्रहण करने की ऐसी व्यवस्था बना दी जिसका उदाहरण संसार के इतिहास में नहीं मिलता।
التفاسير العربية:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا قَاتِلُوا الَّذِیْنَ یَلُوْنَكُمْ مِّنَ الْكُفَّارِ وَلْیَجِدُوْا فِیْكُمْ غِلْظَةً ؕ— وَاعْلَمُوْۤا اَنَّ اللّٰهَ مَعَ الْمُتَّقِیْنَ ۟
ऐ ईमान वलो! काफ़िरों में से जो तुम्हारे क़रीब हैं, उनसे लड़ो[57] और ज़रूरी है कि वे तुममें कुछ सख्ती पाएँ और जान लो कि अल्लाह परहेज़गारों के साथ है।
57. जो शत्रु इस्लामी केंद्र के समीप के क्षेत्रों में हों, पहले उनसे अपनी रक्षा करो।
التفاسير العربية:
وَاِذَا مَاۤ اُنْزِلَتْ سُوْرَةٌ فَمِنْهُمْ مَّنْ یَّقُوْلُ اَیُّكُمْ زَادَتْهُ هٰذِهٖۤ اِیْمَانًا ۚ— فَاَمَّا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا فَزَادَتْهُمْ اِیْمَانًا وَّهُمْ یَسْتَبْشِرُوْنَ ۟
और जब भी कोई सूरत उतारी जाती है, तो इन (मुनाफ़िक़ों) में से कुछ लोग कहते हैं कि इसने तुममें से किसके ईमान को बढ़ायाॽ[58] चुनाँचे जो लोग ईमान लाए, तो इसने उनके ईमान को बढ़ा दिया और वे बहुत खुश होते हैं।
58. अर्थात उपहास करते हैं।
التفاسير العربية:
وَاَمَّا الَّذِیْنَ فِیْ قُلُوْبِهِمْ مَّرَضٌ فَزَادَتْهُمْ رِجْسًا اِلٰی رِجْسِهِمْ وَمَاتُوْا وَهُمْ كٰفِرُوْنَ ۟
और रहे वे लोग जिनके दिलों में रोग है, तो उसने उनकी अशुद्धता पर अशुद्धता को और बढ़ा दिया और वे इस अवस्था में मरे कि वे काफ़िर थे।
التفاسير العربية:
اَوَلَا یَرَوْنَ اَنَّهُمْ یُفْتَنُوْنَ فِیْ كُلِّ عَامٍ مَّرَّةً اَوْ مَرَّتَیْنِ ثُمَّ لَا یَتُوْبُوْنَ وَلَا هُمْ یَذَّكَّرُوْنَ ۟
और क्या वे नहीं देखते कि निःसंदेह वे प्रत्येक वर्ष एक या दो बार आज़माए[59] जाते हैं? फिर भी वे न तौबा करते हैं और न ही वे उपदेश ग्रहण करते हैं!
59. अर्थात उनपर आपदा आती है तथा अपमानित किए जाते हैं। (इब्ने कसीर)
التفاسير العربية:
وَاِذَا مَاۤ اُنْزِلَتْ سُوْرَةٌ نَّظَرَ بَعْضُهُمْ اِلٰی بَعْضٍ ؕ— هَلْ یَرٰىكُمْ مِّنْ اَحَدٍ ثُمَّ انْصَرَفُوْا ؕ— صَرَفَ اللّٰهُ قُلُوْبَهُمْ بِاَنَّهُمْ قَوْمٌ لَّا یَفْقَهُوْنَ ۟
और जब भी कोई सूरत उतारी जाती है, तो उनमें से कुछ एक-दूसरे की तरफ देखते हैं कि क्या तुम्हें कोई देख रहा है? फिर वे वापस पलट जाते हैं। अल्लाह ने उनके दिलों को फेर दिया है, क्योंकि निःसंदेह वे ऐसे लोग हैं जो नहीं समझते।
التفاسير العربية:
لَقَدْ جَآءَكُمْ رَسُوْلٌ مِّنْ اَنْفُسِكُمْ عَزِیْزٌ عَلَیْهِ مَا عَنِتُّمْ حَرِیْصٌ عَلَیْكُمْ بِالْمُؤْمِنِیْنَ رَءُوْفٌ رَّحِیْمٌ ۟
निःसंदेह तुम्हारे पास तुम्हीं में से एक रसूल आया है। तुम्हारा कठिनाई में पड़ना उसपर बहुत कठिन है। वह तुम्हारे कल्याण के लिए अति उत्सुक है, ईमान वालों के प्रति बहुत करुणामय, अत्यंत दयावान् है।
التفاسير العربية:
فَاِنْ تَوَلَّوْا فَقُلْ حَسْبِیَ اللّٰهُ ۖؗ— لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ ؕ— عَلَیْهِ تَوَكَّلْتُ وَهُوَ رَبُّ الْعَرْشِ الْعَظِیْمِ ۟۠
फिर यदि वे मुँह फेरें, तो कह दें कि मेरे लिए अल्लाह ही काफ़ी है। उसके सिवा कोई (वास्तविक) पूज्य नहीं, मैंने उसी पर भरोसा किया है, और वही बड़े अर्श का रब है।
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