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Übersetzung der Bedeutungen von dem heiligen Quran - Die Übersetzung in Hindi - Azizul-Haqq Al-Umari * - Übersetzungen

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Übersetzung der Bedeutungen Surah / Kapitel: Muḥammad   Vers:

मुह़म्मद

اَلَّذِیْنَ كَفَرُوْا وَصَدُّوْا عَنْ سَبِیْلِ اللّٰهِ اَضَلَّ اَعْمَالَهُمْ ۟
जिन लोगों ने कुफ़्र किया और अल्लाह के मार्ग से रोका, उस (अल्लाह) ने उनके कर्मों को नष्ट कर दिया।
Arabische Interpretationen von dem heiligen Quran:
وَالَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ وَاٰمَنُوْا بِمَا نُزِّلَ عَلٰی مُحَمَّدٍ وَّهُوَ الْحَقُّ مِنْ رَّبِّهِمْ ۙ— كَفَّرَ عَنْهُمْ سَیِّاٰتِهِمْ وَاَصْلَحَ بَالَهُمْ ۟
तथा जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए और उस पर ईमान लाए जो मुहम्मद पर उतारा गया और वही उनके रब की ओर से सत्य है, उसने उनसे उनके बुरे कर्मों को दूर कर दिया और उनके हाल को ठीक कर दिया।
Arabische Interpretationen von dem heiligen Quran:
ذٰلِكَ بِاَنَّ الَّذِیْنَ كَفَرُوا اتَّبَعُوا الْبَاطِلَ وَاَنَّ الَّذِیْنَ اٰمَنُوا اتَّبَعُوا الْحَقَّ مِنْ رَّبِّهِمْ ؕ— كَذٰلِكَ یَضْرِبُ اللّٰهُ لِلنَّاسِ اَمْثَالَهُمْ ۟
यह इसलिए कि निःसंदेह जिन लोगों ने कुफ़्र किया, उन्होंने असत्य का अनुसरण किया और निःसंदेह जो लोग ईमान लाए, उन्होंने अपने पालनहार की ओर से (आये हुए) सत्य का अनुसरण किया। इसी प्रकार अल्लाह लोगों के लिए उनकी मिसालें बयान करता है।[1]
1. यह सूरत बद्र के युद्ध से पहले उतरी। जिसमें मक्का के काफ़िरों के आक्रमण से अपने धर्म और प्राण तथा मान-मर्यादा की रक्षा के लिए युद्ध करने की प्रेरणा तथा साहस और आवश्यक निर्देश दिए गए हैं।
Arabische Interpretationen von dem heiligen Quran:
فَاِذَا لَقِیْتُمُ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا فَضَرْبَ الرِّقَابِ ؕ— حَتّٰۤی اِذَاۤ اَثْخَنْتُمُوْهُمْ فَشُدُّوا الْوَثَاقَ ۙ— فَاِمَّا مَنًّا بَعْدُ وَاِمَّا فِدَآءً حَتّٰی تَضَعَ الْحَرْبُ اَوْزَارَهَا— ذٰلِكَ ۛؕ— وَلَوْ یَشَآءُ اللّٰهُ لَانْتَصَرَ مِنْهُمْ ۙ— وَلٰكِنْ لِّیَبْلُوَاۡ بَعْضَكُمْ بِبَعْضٍ ؕ— وَالَّذِیْنَ قُتِلُوْا فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ فَلَنْ یُّضِلَّ اَعْمَالَهُمْ ۟
अतः जब तुम काफ़िरों से मुठभेड़ करो, तो गरदनें मारना है, यहाँ तक कि जब उन्हें अच्छी तरह से क़त्ल कर चुको, तो (उन्हें) कसकर बाँध लो। फिर बाद में या तो उपकार करना है और या छुड़ौती लेना। यहाँ तक कि युद्ध अपने हथियार रख दे।[2] यही (अल्लाह का आदेश) है। और यदि अल्लाह चाहे, तो अवश्य उनसे बदला ले। किंतु (यह आदेश इसलिए दिया) ताकि तुममें से कुछ की कुछ के साथ परीक्षा ले। और जो लोग अल्लाह की राह में मारे गए, तो वह (अल्लाह) उनके कर्मों को कदापि व्यर्थ नहीं करेगा।
2. इस्लाम से पहले युद्ध के बंदियों को दास बना लिया जाता था, किंतु इस्लाम उन्हें उपकार करके या छुड़ौती लेकर मुक्त करने का आदेश देता है। इस आयत में यह संकेत हैं कि इस्लाम जिहाद की अनुमति दूसरों के आक्रमण से रक्षा के लिए देता है।
Arabische Interpretationen von dem heiligen Quran:
سَیَهْدِیْهِمْ وَیُصْلِحُ بَالَهُمْ ۟ۚ
वह उनका मार्गदर्शन करेगा और उनकी स्थिति सुधार देगा।
Arabische Interpretationen von dem heiligen Quran:
وَیُدْخِلُهُمُ الْجَنَّةَ عَرَّفَهَا لَهُمْ ۟
और उन्हें उस जन्नत में दाखिल करेगा, जिससे वह उन्हें परिचित करा चुका है।
Arabische Interpretationen von dem heiligen Quran:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اِنْ تَنْصُرُوا اللّٰهَ یَنْصُرْكُمْ وَیُثَبِّتْ اَقْدَامَكُمْ ۟
ऐ ईमान वालो! यदि तुम अल्लाह (के धर्म) की सहायता करोगे, तो वह तुम्हारी सहायता करेगा और तुम्हारे क़दम जमा देगा।
Arabische Interpretationen von dem heiligen Quran:
وَالَّذِیْنَ كَفَرُوْا فَتَعْسًا لَّهُمْ وَاَضَلَّ اَعْمَالَهُمْ ۟
और जिन लोगों ने कुफ़्र किया, तो उनके लिए विनाश है और उसने उनके कर्मों को व्यर्थ कर दिया।
Arabische Interpretationen von dem heiligen Quran:
ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ كَرِهُوْا مَاۤ اَنْزَلَ اللّٰهُ فَاَحْبَطَ اَعْمَالَهُمْ ۟
यह इसलिए कि उन्होंने उस चीज़ को नापसंद किया, जिसे अल्लाह ने उतारा, तो उसने उनके कर्म अकारथ कर दिए।[3]
3. इसमें इस ओर संकेत है कि बिना ईमान के अल्लाह के पास कोई सत्कर्म मान्य नहीं है।
Arabische Interpretationen von dem heiligen Quran:
اَفَلَمْ یَسِیْرُوْا فِی الْاَرْضِ فَیَنْظُرُوْا كَیْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِیْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ ؕ— دَمَّرَ اللّٰهُ عَلَیْهِمْ ؗ— وَلِلْكٰفِرِیْنَ اَمْثَالُهَا ۟
तो क्या ये लोग धरती में चले-फिरे नहीं कि देखते कि उन लोगों का कैसा परिणाम हुआ जो इनसे पहले थे? अल्लाह ने उन्हें नष्ट कर दिया और इन काफ़िरों के लिए भी इसी के समान (यातनाएँ) हैं।
Arabische Interpretationen von dem heiligen Quran:
ذٰلِكَ بِاَنَّ اللّٰهَ مَوْلَی الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَاَنَّ الْكٰفِرِیْنَ لَا مَوْلٰی لَهُمْ ۟۠
यह इसलिए कि निःसंदेह अल्लाह उन लोगों का संरक्षक है जो ईमान लाए और इसलिए कि निःसंदेह काफ़िरों का कोई संरक्षक नहीं।[4]
4. उह़ुद के युद्ध में जब काफ़िरों ने कहा कि हमारे पास उज़्ज़ा (देवी) है, और तुम्हारे पास कोई उज़्ज़ा नहीं। तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा कि उनका उत्तर देते हुए कहो : अल्लाह हमारा संरक्षक है और तुम्हारा कोई संरक्षक नहीं। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4043)
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