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فَلَا تَكُ فِیْ مِرْیَةٍ مِّمَّا یَعْبُدُ هٰۤؤُلَآءِ ؕ— مَا یَعْبُدُوْنَ اِلَّا كَمَا یَعْبُدُ اٰبَآؤُهُمْ مِّنْ قَبْلُ ؕ— وَاِنَّا لَمُوَفُّوْهُمْ نَصِیْبَهُمْ غَیْرَ مَنْقُوْصٍ ۟۠
अतः (ऐ नबी!) आप उसके बारे में किसी संदेह में न रहें, जिसे ये पूजते हैं। ये उसी प्रकार पूजते हैं, जैसे इनसे पहले इनके बाप-दादा पूजते[39] थे। निःसंदेह हम इन्हें इनका हिस्सा बिना किसी कमी के पूरा-पूरा देने वाले हैं।
39. अर्थात इनकी पूजा निर्मूल और बाप-दादा की परंपरा पर आधारित है, जिसका सत्य से कोई संबंध नहीं है।
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وَلَقَدْ اٰتَیْنَا مُوْسَی الْكِتٰبَ فَاخْتُلِفَ فِیْهِ ؕ— وَلَوْلَا كَلِمَةٌ سَبَقَتْ مِنْ رَّبِّكَ لَقُضِیَ بَیْنَهُمْ ؕ— وَاِنَّهُمْ لَفِیْ شَكٍّ مِّنْهُ مُرِیْبٍ ۟
और हमने मूसा को पुस्तक (तौरात) प्रदान की। तो उसमें विभेद किया गया। और यदि आपके पालनहार ने पहले से एक बात[40] निश्चित न की होती, तो उनके बीच निर्णय कर दिया गया होता। और निःसंदेह वे[41] उस (क़ुरआन) के बारे में असमंजस में डाल देनेवाले संदेह में पड़े हुए हैं।
40. अर्थात यह कि संसार में प्रत्येक को अपनी इच्छानुसार कर्म करने का अवसर दिया जाएगा। 41. अर्थात मिश्रणवादी क़ुरआन के विषय में।
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وَاِنَّ كُلًّا لَّمَّا لَیُوَفِّیَنَّهُمْ رَبُّكَ اَعْمَالَهُمْ ؕ— اِنَّهٗ بِمَا یَعْمَلُوْنَ خَبِیْرٌ ۟
और निःसंदेह आपका पालनहार अवश्य प्रत्येक व्यक्ति को उसके कर्मों का पूरा बदला देगा। निश्चित रूप से वह उनके कर्मों से सूचित है।
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فَاسْتَقِمْ كَمَاۤ اُمِرْتَ وَمَنْ تَابَ مَعَكَ وَلَا تَطْغَوْا ؕ— اِنَّهٗ بِمَا تَعْمَلُوْنَ بَصِیْرٌ ۟
अतः (ऐ नबी!) आप सुदृढ़ रहें जैसा आपको आदेश दिया गया है और वे लोग भी जिन्होंने आपके साथ तौबा की। तथा तुम सीमा का उल्लंघन[42] न करो, निःसंदेह वह (अल्लाह) जो कुछ तुम कर रहे हो, उसे ख़ूब देखने वाला है।
42. अर्थात धर्मादेश की सीमा का।
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وَلَا تَرْكَنُوْۤا اِلَی الَّذِیْنَ ظَلَمُوْا فَتَمَسَّكُمُ النَّارُ ۙ— وَمَا لَكُمْ مِّنْ دُوْنِ اللّٰهِ مِنْ اَوْلِیَآءَ ثُمَّ لَا تُنْصَرُوْنَ ۟
और अत्याचारियों की ओर न झुक पड़ो। अन्यथा तुम्हें भी आग पकड़ लेगी और अल्लाह के सिवा तुम्हारा कोई सहायक नहीं होगा (जो तुम्हें बचा सके)। फिर तुम्हारी सहायता नहीं की जाएगी।
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وَاَقِمِ الصَّلٰوةَ طَرَفَیِ النَّهَارِ وَزُلَفًا مِّنَ الَّیْلِ ؕ— اِنَّ الْحَسَنٰتِ یُذْهِبْنَ السَّیِّاٰتِ ؕ— ذٰلِكَ ذِكْرٰی لِلذّٰكِرِیْنَ ۟ۚ
तथा आप दिन के दोनों सिरों में और रात के कुछ क्षणों[43] में नमाज़ क़ायम करें। निःसंदेह नेकियाँ बुराइयों को दूर कर देती[44] हैं। यह एक शिक्षा है, शिक्षा ग्रहण करने वालों के लिए।
43. नमाज़ के समय के सविस्तार विवरण के लिए देखिए सूरत बनी इसराईल, आयत : 78, सूरत ताहा, आयत : 130, तथा सूरतुर्-रूम, आयत : 17-18. 44. ह़दीस में आता है कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया : यदि किसी के द्वार पर एक नहर जारी हो, जिसमें वह पाँच बार स्नान करता हो, तो क्या उसके शरीर पर कुछ मैल रह जाएगी? इसी प्रकार पाँचों नमाज़ों से अल्लाह पापों को मिटा देता है। (बुख़ारी : 528, मुस्लिम : 667) किंतु बड़े-बड़े पाप जैसे शिर्क, हत्या इत्यादि बिना तौबा के क्षमा नहीं किए जाते।
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وَاصْبِرْ فَاِنَّ اللّٰهَ لَا یُضِیْعُ اَجْرَ الْمُحْسِنِیْنَ ۟
तथा आप धैर्य से काम लें, क्योंकि अल्लाह सदाचारियों का प्रतिफल नष्ट नहीं करता।
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فَلَوْلَا كَانَ مِنَ الْقُرُوْنِ مِنْ قَبْلِكُمْ اُولُوْا بَقِیَّةٍ یَّنْهَوْنَ عَنِ الْفَسَادِ فِی الْاَرْضِ اِلَّا قَلِیْلًا مِّمَّنْ اَنْجَیْنَا مِنْهُمْ ۚ— وَاتَّبَعَ الَّذِیْنَ ظَلَمُوْا مَاۤ اُتْرِفُوْا فِیْهِ وَكَانُوْا مُجْرِمِیْنَ ۟
फिर तुमसे पहले गुज़रे हुए समुदायों में ऐसे बचे खुचे भले-समझदार लोग क्यों न हुए, जो धरती में बिगाड़ से रोकते? सिवाय उन थोड़े-से लोगों के, जिन्हें हमने उनमें से बचा लिया। और अत्याचारी लोग तो उसी सुख-सामग्री के पीछे पड़े रहे, जिसमें वे रखे गए थे और वे तो थे ही अपराधी।
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وَمَا كَانَ رَبُّكَ لِیُهْلِكَ الْقُرٰی بِظُلْمٍ وَّاَهْلُهَا مُصْلِحُوْنَ ۟
और आपका पालनहार ऐसा नहीं है कि वह बस्तियों को अन्यायपूर्वक विनष्ट कर दे, जबकि उनके निवासी सुधार करने वाले हों।
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ߝߐߘߊ ߟߎ߫ ߦߌ߬ߘߊ߬ߥߟߊ ߞߐߜߍ ߝߙߍߕߍ
 
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