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وَمَا لَنَا لَا نُؤْمِنُ بِاللّٰهِ وَمَا جَآءَنَا مِنَ الْحَقِّ ۙ— وَنَطْمَعُ اَنْ یُّدْخِلَنَا رَبُّنَا مَعَ الْقَوْمِ الصّٰلِحِیْنَ ۟
और हमें क्या है कि हम अल्लाह पर तथा उस सत्य पर ईमान न लाएँ, जो हमारे पास आया है? जबकि हम आशा रखते हैं कि हमारा पालनहार हमें सदाचारियों के साथ दाखिल कर लेगा।
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فَاَثَابَهُمُ اللّٰهُ بِمَا قَالُوْا جَنّٰتٍ تَجْرِیْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِیْنَ فِیْهَا ؕ— وَذٰلِكَ جَزَآءُ الْمُحْسِنِیْنَ ۟
तो अल्लाह ने उनके यह कहने के बदले में उन्हें ऐसे बाग़ प्रदान किए, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं, जिनमें वे सदैव रहने वाले हैं तथा यही सत्कर्मियों का बदला है।
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وَالَّذِیْنَ كَفَرُوْا وَكَذَّبُوْا بِاٰیٰتِنَاۤ اُولٰٓىِٕكَ اَصْحٰبُ الْجَحِیْمِ ۟۠
तथा जिन लोगों ने कुफ़्र किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वही लोग भड़कती आग वाले हैं।
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یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا تُحَرِّمُوْا طَیِّبٰتِ مَاۤ اَحَلَّ اللّٰهُ لَكُمْ وَلَا تَعْتَدُوْا ؕ— اِنَّ اللّٰهَ لَا یُحِبُّ الْمُعْتَدِیْنَ ۟
ऐ ईमान वालो! उन स्वच्छ पवित्र चीज़ों को, जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए हलाल (वैध) की हैं, हराम (अवैध)[55] न ठहराओ और सीमा से आगे न बढ़ो। निःसंदेह अल्लाह हद से आगे बढ़ने वालों[56] से प्रेम नहीं करता।
55. अर्थात किसी भी खाद्य अथवा वस्तु को वैध अथवा अवैध करने का अधिकार केवल अल्लाह को है। 56. यहाँ से फिर आदेशों तथा निषेधों का वर्णन किया जा रहा है। अन्य धर्मों के अनुयायियों ने संन्यास को अल्लाह के सामीप्य का साधन समझ लिया था, और ईसाइयों ने संन्यास की रीति बना ली थी और अपने ऊपर सांसारिक उचित स्वाद तथा सुख को अवैध कर लिया था। इस लिए यहाँ सावधान किया जा रहा है कि यह कोई अच्छाई नहीं, बल्कि धर्म सीमा का उल्लंघन है।
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وَكُلُوْا مِمَّا رَزَقَكُمُ اللّٰهُ حَلٰلًا طَیِّبًا ۪— وَّاتَّقُوا اللّٰهَ الَّذِیْۤ اَنْتُمْ بِهٖ مُؤْمِنُوْنَ ۟
तथा अल्लाह ने तुम्हें जो कुछ दिया है, उसमें से हलाल, पवित्र (चीज़) खाओ और उस अल्लाह से डरो, जिसपर तुम ईमान रखते हो।
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لَا یُؤَاخِذُكُمُ اللّٰهُ بِاللَّغْوِ فِیْۤ اَیْمَانِكُمْ وَلٰكِنْ یُّؤَاخِذُكُمْ بِمَا عَقَّدْتُّمُ الْاَیْمَانَ ۚ— فَكَفَّارَتُهٗۤ اِطْعَامُ عَشَرَةِ مَسٰكِیْنَ مِنْ اَوْسَطِ مَا تُطْعِمُوْنَ اَهْلِیْكُمْ اَوْ كِسْوَتُهُمْ اَوْ تَحْرِیْرُ رَقَبَةٍ ؕ— فَمَنْ لَّمْ یَجِدْ فَصِیَامُ ثَلٰثَةِ اَیَّامٍ ؕ— ذٰلِكَ كَفَّارَةُ اَیْمَانِكُمْ اِذَا حَلَفْتُمْ ؕ— وَاحْفَظُوْۤا اَیْمَانَكُمْ ؕ— كَذٰلِكَ یُبَیِّنُ اللّٰهُ لَكُمْ اٰیٰتِهٖ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُوْنَ ۟
अल्लाह तुम्हें तुम्हारी व्यर्थ क़समों[57] पर नहीं पकड़ता, परंतु तुम्हें उसपर पकड़ता है जो तुमने पक्के इरादे से क़समें खाई हैं। तो उसका प्रायश्चित[58] दस निर्धनों को भोजन कराना है, औसत दर्जे का, जो तुम अपने घर वालों को खिलाते हो, अथवा उन्हें कपड़े पहनाना, अथवा एक दास मुक्त करना। फिर जो न पाए, तो तीन दिन के रोज़े रखना है। यह तुम्हारी क़समों का प्रायश्चित है, जब तुम क़सम खा लो तथा अपनी क़समों की रक्षा करो। इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतें (आदेश) खोलकर बयान करता है, ताकि तुम आभार व्यक्त करो।
57. व्यर्थ अर्थात बिना निश्चय के। जैसे कोई बात-बात पर बोलता है : (नहीं, अल्लाह की क़सम!) अथवा (हाँ, अल्लाह की क़सम!) (बुख़ारी : 4613) 58. अर्थात यदि क़सम तोड़ दे, तो यह प्रायश्चित है।
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یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اِنَّمَا الْخَمْرُ وَالْمَیْسِرُ وَالْاَنْصَابُ وَالْاَزْلَامُ رِجْسٌ مِّنْ عَمَلِ الشَّیْطٰنِ فَاجْتَنِبُوْهُ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُوْنَ ۟
ऐ ईमान वालो! बात यही है कि शराब[59], जुआ, देवथान[60] और फ़ाल निकालने के तीर[61] सर्वथा गंदे और शैतानी कार्य हैं। अतः इनसे दूर रहो, ताकि तुम सफल हो।
59. शराब के निषेध के विषय में पहले सूरतुल-बक़रा आयत : 219, और सूरतुन-निसा, आयत : 43 में दो आदेश आ चुके हैं। और यह अंतिम आदेश है, जिसमें शराब को सदैव के लिए वर्जित कर दिया गया। 60. देवथान अर्थात वह वेदियाँ जिन पर देवी-देवताओं के नाम पर पशुओं की बलि दी जाती है। आयत का भावार्थ यह है कि अल्लाह के सिवा किसी अन्य के नाम से बलि दिया हुआ पशु अथवा प्रसाद अवैध है। 61. यानी पाँसे, ये तीन तीर होते हैं, जिनसे वे कोई काम करने के समय यह निर्णय लेते थे कि उसे करें या न करें। उनमें एक पर "करो" और दूसरे पर "मत करो" और तीसरे पर "शून्य" लिखा होता था।
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ߝߐߘߊ ߟߎ߫ ߦߌ߬ߘߊ߬ߥߟߊ ߞߐߜߍ ߝߙߍߕߍ
 
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