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የይዘት ትርጉም አንቀጽ: (109) ምዕራፍ: ሱረቱ ዩሱፍ
وَمَاۤ اَرْسَلْنَا مِنْ قَبْلِكَ اِلَّا رِجَالًا نُّوْحِیْۤ اِلَیْهِمْ مِّنْ اَهْلِ الْقُرٰی ؕ— اَفَلَمْ یَسِیْرُوْا فِی الْاَرْضِ فَیَنْظُرُوْا كَیْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِیْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ ؕ— وَلَدَارُ الْاٰخِرَةِ خَیْرٌ لِّلَّذِیْنَ اتَّقَوْا ؕ— اَفَلَا تَعْقِلُوْنَ ۟
और हमने आपसे पहले बस्तियों के रहने वालों में से केवल पुरुषों[34] को नबी बनाकर भेजे, जिनकी ओर हम वह़्य किया करते थे। तो क्या ये धरती में चले-फिरे नहीं, कि देखते उनका परिणाम कैसा हुआ, जो इनसे पहले थे? और निश्चय आख़िरत (परलोक) का घर उनके लिए उत्तम है, जो अल्लाह से डरते रहे। तो क्या तुम समझते नहीं?
34. क़ुरआन की अनेक आयतों में आपको यह बात मिलेगी कि रसूलों का इनकार उनकी जातियों ने दो ही कारणों से किया : एक तो यह कि उनके एकेश्वरवाद की शिक्षा उनके बाप-दादा की परंपरा के विरुद्ध थी, इसलिए सत्य को जानते हुए भी उन्होंने उसका विरोध किया। दूसरा यह कि उनके दिल में यह बात नहीं उतरी कि कोई मानव पुरुष अल्लाह का रसूल हो सकता है! उनके हिसाब से रसूल तो किसी फ़रिश्ते को होना चाहिए। फिर यदि रसूलों को किसी जाति ने स्वीकार भी किया, तो कुछ युगों के पश्चात उन्हें ईश्वर अथवा ईश्वर का पुत्र बनाकर एकेश्वरवाद को आघात पहुँचाया और शिर्क (मिश्रणवाद) का द्वार खोल दिया। इसीलिए क़ुरआन ने इन दोनों कुविचारों का बार बार खंडन किया है।
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የይዘት ትርጉም አንቀጽ: (109) ምዕራፍ: ሱረቱ ዩሱፍ
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የተከበረው ቁርአን ህንድኛ መልዕክተ ትርጉም - በዓዚዙል ሓቅ አል-ዑምሪይ

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