আল-কোৰআনুল কাৰীমৰ অৰ্থানুবাদ - الترجمة الهندية للمختصر في تفسير القرآن الكريم * - অনুবাদসমূহৰ সূচীপত্ৰ


অৰ্থানুবাদ আয়াত: (149) ছুৰা: ছুৰা আন-নিছা
اِنْ تُبْدُوْا خَیْرًا اَوْ تُخْفُوْهُ اَوْ تَعْفُوْا عَنْ سُوْٓءٍ فَاِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَفُوًّا قَدِیْرًا ۟
यदि तुम कोई भली बात या भला कार्य प्रकट करो, या उसे छिपाओ, या उस व्यक्ति को क्षमा कर दो, जिसने तुमसे बुरा व्यवहार किया है; तो निःसंदेह अल्लाह बहुत माफ़ करने वाला, सर्वशक्तिमान है। इसलिए क्षमा करना तुम्हारे आचरण का हिस्सा होना चाहिए, शायद अल्लाह तुम्हें क्षमा कर दे।
আৰবী তাফছীৰসমূহ:
এই পৃষ্ঠাৰ আয়াতসমূহৰ পৰা সংগৃহীত কিছুমান উপকাৰী তথ্য:
• يجوز للمظلوم أن يتحدث عن ظلمه وظالمه لمن يُرْجى منه أن يأخذ له حقه، وإن قال ما لا يسر الظالم.
• उत्पीड़ित के लिए यह जायज़ है कि वह अपने ज़ुल्म और अपने उत्पीड़क के बारे में ऐसे व्यक्ति से बात करे जिससे उसे आशा हो कि वह उसका हक़ दिला सकता है, भले ही वह ऐसी बात कहे जो उत्पीड़क को अच्छी न लगे।

• حض المظلوم على العفو - حتى وإن قدر - كما يعفو الرب - سبحانه - مع قدرته على عقاب عباده.
• उत्पीड़ित व्यक्ति को क्षमा करने के लिए प्रोत्साहित करना - भले ही वह बदला लेने में सक्षम हो - जिस तरह कि अल्लाह - महिमावान - अपने बंदों को दंडित करने की क्षमता रखते हुए भी क्षमा कर देता है।

• لا يجوز التفريق بين الرسل بالإيمان ببعضهم دون بعض، بل يجب الإيمان بهم جميعًا.
• रसूलों में से कुछ पर ईमान लाकर और कुछ पर ईमान न लाकर, उनके बीच अंतर करना जायज़ नहीं है, बल्कि उन सभी पर ईमान लाना अनिवार्य है।

 
অৰ্থানুবাদ আয়াত: (149) ছুৰা: ছুৰা আন-নিছা
ছুৰাৰ তালিকা পৃষ্ঠা নং
 
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الترجمة الهندية للمختصر في تفسير القرآن الكريم، صادر عن مركز تفسير للدراسات القرآنية.

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