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আল-কোৰআনুল কাৰীমৰ অৰ্থানুবাদ - মাৰাঠী অনুবাদ- মুহাম্মদ শ্বফী আনচাৰী * - অনুবাদসমূহৰ সূচীপত্ৰ


অৰ্থানুবাদ আয়াত: (28) ছুৰা: আলে ইমৰাণ
لَا یَتَّخِذِ الْمُؤْمِنُوْنَ الْكٰفِرِیْنَ اَوْلِیَآءَ مِنْ دُوْنِ الْمُؤْمِنِیْنَ ۚ— وَمَنْ یَّفْعَلْ ذٰلِكَ فَلَیْسَ مِنَ اللّٰهِ فِیْ شَیْءٍ اِلَّاۤ اَنْ تَتَّقُوْا مِنْهُمْ تُقٰىةً ؕ— وَیُحَذِّرُكُمُ اللّٰهُ نَفْسَهٗ ؕ— وَاِلَی اللّٰهِ الْمَصِیْرُ ۟
२८. ईमान राखणाऱ्यांनी, ईमानधारकांना सोडून काफिर लोकांना (इन्कारी लोकांना) आपला मित्र बनवू नये आणि जो कोणी असे करील तर त्याला अल्लाहतर्फे कोणेतही समर्थन नाही. परंतु हे की त्याच्या भय-दहशतीमुळे एखाद्या प्रकारच्या संरक्षणाचा इरादा असेल आणि सर्वश्रेष्ठ अल्लाह स्वतः तुम्हाला आपले भय दाखवित आहे आणि (शेवटी) अल्लाहकडेच परतून जायचे आहे.
আৰবী তাফছীৰসমূহ:
 
অৰ্থানুবাদ আয়াত: (28) ছুৰা: আলে ইমৰাণ
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আল-কোৰআনুল কাৰীমৰ অৰ্থানুবাদ - মাৰাঠী অনুবাদ- মুহাম্মদ শ্বফী আনচাৰী - অনুবাদসমূহৰ সূচীপত্ৰ

ইয়াক অনুবাদ কৰিছে মুহাম্মদ শ্বাফী আনচাৰী।

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