Check out the new design

আল-কোৰআনুল কাৰীমৰ অৰ্থানুবাদ - মাৰাঠী অনুবাদ- মুহাম্মদ শ্বফী আনচাৰী * - অনুবাদসমূহৰ সূচীপত্ৰ


অৰ্থানুবাদ আয়াত: (20) ছুৰা: আল-আহযাব
یَحْسَبُوْنَ الْاَحْزَابَ لَمْ یَذْهَبُوْا ۚ— وَاِنْ یَّاْتِ الْاَحْزَابُ یَوَدُّوْا لَوْ اَنَّهُمْ بَادُوْنَ فِی الْاَعْرَابِ یَسْاَلُوْنَ عَنْ اَنْۢبَآىِٕكُمْ ؕ— وَلَوْ كَانُوْا فِیْكُمْ مَّا قٰتَلُوْۤا اِلَّا قَلِیْلًا ۟۠
२०. हे लोक समजतात की सैन्ये अद्याप गेली नाहीत आणि जर सैन्ये परत आली तर हे अशी इच्छा बाळगतात की ते वनात राहणाऱ्यांमध्ये वनवासी लोकांसोबत असते तर बरे झाले असते यासाठी की तुमची खबर बात घेत राहिले असते. जर ते तुमच्यात हजर असते (तरीदेखील?) उगाच बोलण्याचा मान राखण्यासाठी थोडेसे लढले असते.
আৰবী তাফছীৰসমূহ:
 
অৰ্থানুবাদ আয়াত: (20) ছুৰা: আল-আহযাব
ছুৰাৰ তালিকা পৃষ্ঠা নং
 
আল-কোৰআনুল কাৰীমৰ অৰ্থানুবাদ - মাৰাঠী অনুবাদ- মুহাম্মদ শ্বফী আনচাৰী - অনুবাদসমূহৰ সূচীপত্ৰ

ইয়াক অনুবাদ কৰিছে মুহাম্মদ শ্বাফী আনচাৰী।

বন্ধ