Qurani Kərimin mənaca tərcüməsi - Hind dilinə tərcümə * - Tərcumənin mündəricatı

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Mənaların tərcüməsi Ayə: (38) Surə: əl-Maidə
وَالسَّارِقُ وَالسَّارِقَةُ فَاقْطَعُوْۤا اَیْدِیَهُمَا جَزَآءً بِمَا كَسَبَا نَكَالًا مِّنَ اللّٰهِ ؕ— وَاللّٰهُ عَزِیْزٌ حَكِیْمٌ ۟
और जो चोरी करने वाला (पुरुष) और जो चोरी करने वाली (स्त्री) है, सो दोनों के हाथ काट दो, उसके बदले में जो उन दोनों ने कमाया, अल्लाह की ओर से इबरत (भय)[28] दिलाने के लिए। और अल्लाह सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
28. यहाँ पर चोरी के विषय में इस्लाम का धर्म-विधान वर्णित किया जा रहा है कि यदि चौथाई दीनार अथवा उसके मूल्य के समान की चोरी की जाए, तो चोर का सीधा हाथ कलाई से काट दो। इसके लिए स्थान तथा समय के और भी प्रतिबंध हैं। इबरत वाला दंड होने का अर्थ यह है कि दूसरे इससे शिक्षा ग्रहण करें, ताकि पूरा देश और समाज चोरी के अपराध से स्वच्छ और पवित्र हो जाए। तथा यह ऐतिहासिक सत्य है कि इस घोर दंड के कारण, इस्लाम के चौदह सौ वर्षों में जिन्हें यह दंड दिया गया है, वह बहुत कम हैं। क्योंकि यह सज़ा ही ऐसी है कि जहाँ भी इसको लागू किया जाएगा, वहाँ चोर और डाकू बहुत कुछ सोच समझ कर ही आगे क़दम बढ़ाएँगे। जिसके फलस्वरूप पूरा समाज अम्न और चैन का गहवारा बन जाएगा। इसके विपरीत संसार के आधुनिक विधानों ने अपराधियों को सुधारने तथा उन्हें सभ्य बनाने का जो नियम बनाया है, उसने अपराधियों में अपराध का साहस बढ़ा दिया है। अतः यह मानना पड़ेगा कि इस्लाम का ये दंड चोरी जैसे अपराध को रोकने में अब तक सबसे सफल सिद्ध हुआ है। और यह दंड मानवता के मान और उसके अधिकार के विपरीत नहीं है। क्योंकि जिस व्यक्ति ने अपना माल, अपने खून-पसीना, परिश्रम तथा अपने हाथों की शक्ति से कमाया है, तो यदि कोई चोर आकर उसको उचकना चाहे तो उसकी सज़ा यही होनी चाहिए कि उसका हाथ ही काट दिया जाए, जिससे वह अन्य का माल हड़प करना चाह रहा है।
Ərəbcə təfsirlər:
 
Mənaların tərcüməsi Ayə: (38) Surə: əl-Maidə
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Qurani Kərimin Hind dilinə mənaca tərcüməsi. Tərcüməçi: Əzizul Haqq Əl-Öməri.

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