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Translation of the Meanings of the Noble Qur'an - Hindi translation of Al-Mukhtsar in interpretation of the Noble Quran * - Translations’ Index


Translation of the meanings Surah: An-Nisā’   Ayah:

अन्-निसा

Purposes of the Surah:
تنظيم المجتمع المسلم وبناء علاقاته، وحفظ الحقوق، والحث على الجهاد، وإبطال دعوى قتل المسيح.
मुस्लिम समाज को संगठित करना, उसके संबंध बनाना, अधिकारों की रक्षा करना, जिहाद का आग्रह करना और ईसा मसीह को क़त्ल करने के दावे का खंडन करना।

یٰۤاَیُّهَا النَّاسُ اتَّقُوْا رَبَّكُمُ الَّذِیْ خَلَقَكُمْ مِّنْ نَّفْسٍ وَّاحِدَةٍ وَّخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالًا كَثِیْرًا وَّنِسَآءً ۚ— وَاتَّقُوا اللّٰهَ الَّذِیْ تَسَآءَلُوْنَ بِهٖ وَالْاَرْحَامَ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَلَیْكُمْ رَقِیْبًا ۟
ऐ लोगो! अपने पालनहार से डरो। क्योंकि वही है जिसने तुम्हें एक जान से पैदा किया जो तुम्हारे पिता आदम हैं। और आदम से उनकी पत्नी तुम्हारी माँ हव्वा को पैदा किया। और उन दोनों से पृथ्वी के कोनों में बहुत-से पुरुषों और महिलाओं को फैला दिए। और उस अल्लाह से डरो जिसके नाम पर तुम एक-दूसरे से यह कहते हुए माँगते हो : मैं अल्लाह के नाम पर तुझसे ऐसा करने के लिए कहता हूँ। तथा रिश्ते-नाते को तोड़ने से बचो, जो तुम्हें आपस में जोड़ता है। निःसंदेह अल्लाह तुम्हारा निरीक्षण कर रहा है। अतः तुम्हारा कोई काम उससे ओझल नहीं होता, बल्कि वह उन्हें गिनकर रखता है और तुम्हें उनका बदला देगा।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَاٰتُوا الْیَتٰمٰۤی اَمْوَالَهُمْ وَلَا تَتَبَدَّلُوا الْخَبِیْثَ بِالطَّیِّبِ ۪— وَلَا تَاْكُلُوْۤا اَمْوَالَهُمْ اِلٰۤی اَمْوَالِكُمْ ؕ— اِنَّهٗ كَانَ حُوْبًا كَبِیْرًا ۟
तथा (ऐ अभिभावकों) तुम अनाथों (जिनके पिता उनके बालिग होने से पहले मर गए) को उनका धन उस समय पूरा का पूरा दे दो, जब वे बालिग़ और समझदार हो जाएँ। और तुम हलाल के बदले हराम माल मत लो; इस प्रकार कि तुम अनाथों के अच्छे-अच्छे धन स्वयं ले लो और उसके बदले अपने घटिया और ख़राब धन उन्हें दे दो। और अनाथों का धन अपने धन के साथ मिलाकर हड़प न लो। ऐसा करना अल्लाह के निकट बहुत बड़ा पाप है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَاِنْ خِفْتُمْ اَلَّا تُقْسِطُوْا فِی الْیَتٰمٰی فَانْكِحُوْا مَا طَابَ لَكُمْ مِّنَ النِّسَآءِ مَثْنٰی وَثُلٰثَ وَرُبٰعَ ۚ— فَاِنْ خِفْتُمْ اَلَّا تَعْدِلُوْا فَوَاحِدَةً اَوْ مَا مَلَكَتْ اَیْمَانُكُمْ ؕ— ذٰلِكَ اَدْنٰۤی اَلَّا تَعُوْلُوْا ۟ؕ
यदि तुम्हें डर हो कि अपने अधीन रहने वाली अनाथ लड़कियों से विवाह करके तुम न्याय नहीं कर पाओगे; या तो इस डर से कि तुम उनके आवश्यक मह्र को कम कर दोगे, या उनके साथ दुर्व्यवहार करोगे, तो ऐसी स्थिति में तुम उन्हें छोड़कर उनके अलावा दूसरी अच्छी महिलाओं से विवाह कर लो। यदि तुम चाहो तो दो, या तीन, या चार से विवाह कर सकते हो। परन्तु यदि तुम्हें डर हो कि तुम उनके बीच न्याय नहीं कर सकोगे, तो एक ही तक सीमित रहो, या फिर उन दासियों से लाभान्वित हो जिनके तुम मालिक हो; क्योंकि उनके लिए उस तरह के अधिकार अनिवार्य नहीं हैं जो पत्नियों के लिए आवश्यक हैं। आयत में अनाथ लड़कियों के संबंध में, तथा एक ही महिला से विवाह करने अथवा दासियों से लाभ उठाने के संबंध में जो कुछ वर्णित है, वह इस बात के अधिक निकट है कि तुम अत्याचार न करो और किसी एक की तरफ झुकाव न रखो।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَاٰتُوا النِّسَآءَ صَدُقٰتِهِنَّ نِحْلَةً ؕ— فَاِنْ طِبْنَ لَكُمْ عَنْ شَیْءٍ مِّنْهُ نَفْسًا فَكُلُوْهُ هَنِیْٓـًٔا مَّرِیْٓـًٔا ۟
स्त्रियों को उनके मह्र एक अनिवार्य उपहार के तौर पर अदा करो। यदि वे बिना किसी मजबूरी के अपनी इच्छा से तुम्हारे लिए मह्र में से कुछ छोड़ दें, तो उसे हलाल व पाक समझकर (रूचिकर) खाओ।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَا تُؤْتُوا السُّفَهَآءَ اَمْوَالَكُمُ الَّتِیْ جَعَلَ اللّٰهُ لَكُمْ قِیٰمًا وَّارْزُقُوْهُمْ فِیْهَا وَاكْسُوْهُمْ وَقُوْلُوْا لَهُمْ قَوْلًا مَّعْرُوْفًا ۟
और (ऐ अभिभावको!) उन लोगों को धन न दो, जो अच्छी तरह से उसका प्रबंधन नहीं कर सकते हैं। क्योंकि अल्लाह ने इस धन को बंदो के हितों की रक्षा और उनकी आजीविका का साधन बनाया है और ये लोग धन का प्रभार लेने और उसे संरक्षित करने के योग्य नहीं हैं। उस धन से उन पर खर्च करो और उन्हें कपड़े पहनाओ, तथा उनसे अच्छी बात कहो और उनसे अच्छा वादा करो कि उनके परिपक्व हो जाने और धन प्रबंधन में कुशल हो जाने पर तुम उन्हें उनका धन दे दोगे।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَابْتَلُوا الْیَتٰمٰی حَتّٰۤی اِذَا بَلَغُوا النِّكَاحَ ۚ— فَاِنْ اٰنَسْتُمْ مِّنْهُمْ رُشْدًا فَادْفَعُوْۤا اِلَیْهِمْ اَمْوَالَهُمْ ۚ— وَلَا تَاْكُلُوْهَاۤ اِسْرَافًا وَّبِدَارًا اَنْ یَّكْبَرُوْا ؕ— وَمَنْ كَانَ غَنِیًّا فَلْیَسْتَعْفِفْ ۚ— وَمَنْ كَانَ فَقِیْرًا فَلْیَاْكُلْ بِالْمَعْرُوْفِ ؕ— فَاِذَا دَفَعْتُمْ اِلَیْهِمْ اَمْوَالَهُمْ فَاَشْهِدُوْا عَلَیْهِمْ ؕ— وَكَفٰی بِاللّٰهِ حَسِیْبًا ۟
(ऐ अभिभावको) जब अनाथ बच्चे वयस्कता की आयु को पहुँच जाएँ, तो उनकी इस प्रकार जाँच करो कि उन्हें उनके माल का कुछ हिस्सा दे दो कि वे उसे अपनी मर्ज़ी से काम में लाएं। यदि वे उसका सदुपयोग करें और तुम्हारे लिए उनकी समझदारी (योग्यता) स्पष्ट हो जाए, तो तुम उनका पूरा धन बिना किसी कमी के उनके हवाले कर दो। तथा उनके धन को उस सीमा से बढ़कर न खाओ जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए ज़रूरत के समय उनके धन से वैध ठहराया है, और उसे इस डर से जल्दी-जल्दी न खाओ कि वे बालिग होने के बाद उसे ले लेंगे। और तुममें से जिसके पास इतना धन हो कि वह उसे बेनियाज़ कर दे, तो उसे अनाथ का धन लेने से बचना चाहिए। और तुममें से जो गरीब हो उसके पास कोई धन न हो, तो वह अपनी आवश्यकता के अनुसार खा सकता है। और जब तुम उनके वयस्क और परिपक्व होने के बाद उनका धन उनके हवाले करो, तो अधिकारों को संरक्षित करने और विवाद के कारणों को रोकने के लिए उस सुपुर्दगी पर गवाह बना लो। और अल्लाह उसपर साक्षी और अपने बंदों के कार्यों का हिसाब लेने के लिए काफी है।
Arabic explanations of the Qur’an:
Benefits of the verses in this page:
• الأصل الذي يرجع إليه البشر واحد، فالواجب عليهم أن يتقوا ربهم الذي خلقهم، وأن يرحم بعضهم بعضًا.
• जिस मूल की ओर मनुष्य वापस लौटता है, वह एक है। इसलिए उन्हें अपने उस पालनहार से डरना चाहिए जिसने उन्हें पैदा किया है, और एक दूसरे पर दया करते रहना चाहिए।

• أوصى الله تعالى بالإحسان إلى الضعفة من النساء واليتامى، بأن تكون المعاملة معهم بين العدل والفضل.
• सर्वशक्तिमान अल्लाह ने कमज़ोर महिलाओं और अनाथों के साथ अच्छा व्यवहार करने की ताकीद की है इस प्रकार कि उनके साथ मामला न्याय और अनुग्रह के बीच हो।

• جواز تعدد الزوجات إلى أربع نساء، بشرط العدل بينهن، والقدرة على القيام بما يجب لهن.
• चार स्त्रियों तक बहुविवाह की अनुमति, इस शर्त के साथ कि उनके बीच न्याय किया जाए और उनके लिए जो कुछ करना अनिवार्य है उसे करने की क्षमता हो।

• مشروعية الحَجْر على السفيه الذي لا يحسن التصرف، لمصلحته، وحفظًا للمال الذي تقوم به مصالح الدنيا من الضياع.
• जो बेसमझ व्यक्ति अपने धन का सदुपयोग नहीं कर सकता; उसके हित की रक्षा के लिए, और उस धन को नष्ट होने से संरक्षित करने के लिए जिसपर दुनिया के हित आधारित होते हैं, उसपर प्रतिबंध लगाना धर्मसंगत है।

 
Translation of the meanings Surah: An-Nisā’
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Issued by Tafsir Center for Quranic Studies

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