Translation of the Meanings of the Noble Qur'an - الترجمة الهندية للمختصر في تفسير القرآن الكريم * - Translations’ Index


Translation of the meanings Surah: Al-Mujādalah   Ayah:

सूरा अल्-मुजादिला

Purposes of the Surah:
إظهار علم الله الشامل وإحاطته البالغة، تربيةً لمراقبته، وتحذيرًا من مخالفته.
अल्लाह के व्यापक ज्ञान और उसकी परिपूर्ण जानकारी का प्रदर्शन, ताकि दिल में अल्लाह का भय रखने पर प्रशिक्षित किया जाए और उसका उल्लंघन करने से सावधान किया जाए।

قَدْ سَمِعَ اللّٰهُ قَوْلَ الَّتِیْ تُجَادِلُكَ فِیْ زَوْجِهَا وَتَشْتَكِیْۤ اِلَی اللّٰهِ ۖۗ— وَاللّٰهُ یَسْمَعُ تَحَاوُرَكُمَا ؕ— اِنَّ اللّٰهَ سَمِیْعٌ بَصِیْرٌ ۟
अल्लाह ने उस महिला (अर्थात् ख़ौला बिंत सा'लबा) की बात सुन ली, जो (ऐ रसूल!) आपसे अपने पति (अर्थात् औस बिन सामित) के बारे में, जब उसने उससे 'ज़िहार' कर लिया था, बहस कर रही थी और उसके पति ने उसके साथ जो कुछ किया था, उसकी अल्लाह से शिकायत कर रही थी। और अल्लाह तुम दोनों की बात-चीत सुन रहा था। उसमें से कुछ भी उससे छिपा नहीं है। निःसंदेह अल्लाह अपने बंदों की बातों को सुनने वाला, उनके कर्मों को देखने वाला है। उससे कोई भी चीज़ छिपी नहीं रहती।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَلَّذِیْنَ یُظٰهِرُوْنَ مِنْكُمْ مِّنْ نِّسَآىِٕهِمْ مَّا هُنَّ اُمَّهٰتِهِمْ ؕ— اِنْ اُمَّهٰتُهُمْ اِلَّا الّٰٓـِٔیْ وَلَدْنَهُمْ ؕ— وَاِنَّهُمْ لَیَقُوْلُوْنَ مُنْكَرًا مِّنَ الْقَوْلِ وَزُوْرًا ؕ— وَاِنَّ اللّٰهَ لَعَفُوٌّ غَفُوْرٌ ۟
जो लोग अपनी पत्नियों से 'ज़िहार' करते हैं; इस प्रकार कि उनमें से कोई अपनी पत्नी से कहता है : ''तुम मुझपर मेरी माँ की पीठ की तरह हो", वे अपनी इस बात में झूठे हैं। क्योंकि उनकी पत्नियाँ उनकी माँएँ नहीं हैं। बल्कि उनकी माँएँ केवल वे स्त्रियाँ हैं, जिन्होंने उन्हें जन्म दिया। वे इस तरह की बात कहकर निश्चित रूप से एक घृणित बात और झूठ कहते हैं। और अल्लाह बहुत माफ़ करने वाला, अत्यंत क्षमाशील है। इसलिए उसने उन्हें पाप से मुक्त करने हेतु उनके लिए 'कफ़्फ़ारा' (प्रायश्चित) का नियम बनाया है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَالَّذِیْنَ یُظٰهِرُوْنَ مِنْ نِّسَآىِٕهِمْ ثُمَّ یَعُوْدُوْنَ لِمَا قَالُوْا فَتَحْرِیْرُ رَقَبَةٍ مِّنْ قَبْلِ اَنْ یَّتَمَآسَّا ؕ— ذٰلِكُمْ تُوْعَظُوْنَ بِهٖ ؕ— وَاللّٰهُ بِمَا تَعْمَلُوْنَ خَبِیْرٌ ۟
जो लोग यह घृणित बात कहते हैं, फिर उन स्त्रियों के साथ संभोग करना चाहते हैं, जिनसे उन्होंने ज़िहार किया था, तो उनके लिए अनिवार्य है कि उनके साथ संभोग करने से पहले 'कफ़्फ़ारा' के तौर पर एक दास मुक्त करें। यह उक्त आदेश तुम्हें 'ज़िहार' से बाज़ रखने के लिए दिया जा रहा है। और अल्लाह तुम्हारे कार्यों से पूरी तरह अवगत है। उससे तुम्हारे कार्यों में से कुछ भी छिपा नहीं है।
Arabic explanations of the Qur’an:
فَمَنْ لَّمْ یَجِدْ فَصِیَامُ شَهْرَیْنِ مُتَتَابِعَیْنِ مِنْ قَبْلِ اَنْ یَّتَمَآسَّا ۚ— فَمَنْ لَّمْ یَسْتَطِعْ فَاِطْعَامُ سِتِّیْنَ مِسْكِیْنًا ؕ— ذٰلِكَ لِتُؤْمِنُوْا بِاللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ ؕ— وَتِلْكَ حُدُوْدُ اللّٰهِ ؕ— وَلِلْكٰفِرِیْنَ عَذَابٌ اَلِیْمٌ ۟
फिर तुममें से जो व्यक्ति मुक्त करने के लिए दास न पाए, तो उसे अपनी 'ज़िहार' की हुई पत्नी के साथ संभोग करने से पहले लगातार दो महीने तक रोज़े रखने हैं। फिर जो व्यक्ति लगातार दो महीनों तक रोज़ा रखने में असमर्थ है, उसे साठ ग़रीबों को खाना खिलाना है। यह आदेश जिसका हमने फैसला किया है, इसलिए है ताकि तुम यह विश्वास करो कि अल्लाह ने इसका आदेश दिया है, अतः तुम उसके आदेश का पालन करो और उसके रसूल का अनुसरण करो। ये नियम जो हमने तुम्हारे लिए बनाए हैं, अल्लाह की सीमाएँ हैं, जो उसने अपने बंदों के लिए निर्धारित की हैं। अतः उनका उल्लंघन न करो। और अल्लाह के नियमों तथा उसकी निर्धारित की हुई सीमाओं को नकारने वालों के लिए दर्दनाक यातना है।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ الَّذِیْنَ یُحَآدُّوْنَ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ كُبِتُوْا كَمَا كُبِتَ الَّذِیْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ وَقَدْ اَنْزَلْنَاۤ اٰیٰتٍۢ بَیِّنٰتٍ ؕ— وَلِلْكٰفِرِیْنَ عَذَابٌ مُّهِیْنٌ ۟ۚ
निश्चय जो लोग अल्लाह और उसके रसूल का विरोध करते हैं, वे उसी तरह अपमानित और तिरस्कृत किए जाएँगे, जैसा कि पिछले समुदायों में से उसका विरोध करने वालों को अपमानित और तिरस्कृत किया गया। हमने स्पष्ट निशानियाँ उतार दी हैं। और अल्लाह का तथा उसके रसूलों और उसकी निशानियों का इनकार करने वालों के लिए अपमानजनक यातना है।
Arabic explanations of the Qur’an:
یَوْمَ یَبْعَثُهُمُ اللّٰهُ جَمِیْعًا فَیُنَبِّئُهُمْ بِمَا عَمِلُوْا ؕ— اَحْصٰىهُ اللّٰهُ وَنَسُوْهُ ؕ— وَاللّٰهُ عَلٰی كُلِّ شَیْءٍ شَهِیْدٌ ۟۠
जिस दिन अल्लाह उन सभी लोगों को मरणोपरांत पुनर्जीवित करेगा, उनमें से किसी को नहीं छोड़ेगा। फिर उन्हें उनके दुनिया में किए हुए बुरे कर्मों से सूचित करेगा। अल्लाह ने उनके कर्मों को संरक्षित कर रखा है। इसलिए उनके कामों में से कुछ भी उससे नहीं छूटा है। जबकि वे खुद उसे भूल गए। चुनाँचे वे उसे अपने उन कर्मपत्रों में लिखा हुआ पाएँगे, जो हर छोटे-बड़े कर्म को सुरक्षित रखते हैं। और अल्लाह हर चीज़ से अवगत है, उनके कर्मों में से कुछ भी उससे छिपा नहीं है।
Arabic explanations of the Qur’an:
Benefits of the verses in this page:
• لُطْف الله بالمستضعفين من عباده من حيث إجابة دعائهم ونصرتهم.
• अल्लाह की अपने कमज़ोर बंदों पर दया कि वह उनकी दुआ स्वीकार करता तथा उनकी सहायता करता है।

• من رحمة الله بعباده تنوع كفارة الظهار حسب الاستطاعة ليخرج العبد من الحرج.
• अल्लाह की अपने बंदों पर दया का एक प्रतीक यह है कि उसने 'ज़िहार' के 'कफ़्फ़ारा' में क्षमता के अनुसार विविधता रखी है। ताकि बंदा तंगी से बच जाए।

• في ختم آيات الظهار بذكر الكافرين؛ إشارة إلى أنه من أعمالهم، ثم ناسب أن يورد بعض أحوال الكافرين.
• 'ज़िहार' की आयतों का काफिरों के उल्लेख पर समापन करने में; यह संकेत है कि यह उनके कार्यों में से है। फिर उचित था कि काफ़िरों के कुछ हालात का उल्लेख किया जाए।

اَلَمْ تَرَ اَنَّ اللّٰهَ یَعْلَمُ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَمَا فِی الْاَرْضِ ؕ— مَا یَكُوْنُ مِنْ نَّجْوٰی ثَلٰثَةٍ اِلَّا هُوَ رَابِعُهُمْ وَلَا خَمْسَةٍ اِلَّا هُوَ سَادِسُهُمْ وَلَاۤ اَدْنٰی مِنْ ذٰلِكَ وَلَاۤ اَكْثَرَ اِلَّا هُوَ مَعَهُمْ اَیْنَ مَا كَانُوْا ۚ— ثُمَّ یُنَبِّئُهُمْ بِمَا عَمِلُوْا یَوْمَ الْقِیٰمَةِ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ بِكُلِّ شَیْءٍ عَلِیْمٌ ۟
ऐ रसूल! क्या आपने नहीं देखा कि अल्लाह आकाशों तथा धरती की सभी चीज़ों को जानता है। उन दोनों में उपस्थित चीज़ों में से कोई चीज़ उससे छिपी हुई नहीं है। किसी तीन लोगों की गुप्त रूप से कोई बात-चीत नहीं होती, परंतु वह महामहिम (अल्लाह) अपने ज्ञान के साथ उनका चौथा होता है। तथा किसी पाँच लोगों की गुप्त रूप से कोई बात-चीत नहीं होती, परंतु वह महामहिम (अल्लाह) अपने ज्ञान के साथ उनका छठा होता है। तथा इस संख्या से कम या इससे अधिक लोगों की गुप्त रूप से कोई बात-चीत नहीं होती, परंतु वह अपने ज्ञान के साथ उनके साथ होता है, चाहे वे जहाँ कहीं भी रहें। उनकी बातों में से कुछ भी उससे छिपा नहीं है। फिर अल्लाह उन्हें क़ियामत के दिन उनके कर्मों के बारे में बताएगा। निश्चय अल्लाह हर वस्तु को जानने वाला है। उससे कोई वस्तु छिपी नहीं है। निश्चय अल्लाह हर वस्तु को जानने वाला है।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَلَمْ تَرَ اِلَی الَّذِیْنَ نُهُوْا عَنِ النَّجْوٰی ثُمَّ یَعُوْدُوْنَ لِمَا نُهُوْا عَنْهُ وَیَتَنٰجَوْنَ بِالْاِثْمِ وَالْعُدْوَانِ وَمَعْصِیَتِ الرَّسُوْلِ ؗ— وَاِذَا جَآءُوْكَ حَیَّوْكَ بِمَا لَمْ یُحَیِّكَ بِهِ اللّٰهُ ۙ— وَیَقُوْلُوْنَ فِیْۤ اَنْفُسِهِمْ لَوْلَا یُعَذِّبُنَا اللّٰهُ بِمَا نَقُوْلُ ؕ— حَسْبُهُمْ جَهَنَّمُ ۚ— یَصْلَوْنَهَا ۚ— فَبِئْسَ الْمَصِیْرُ ۟
क्या (ऐ रसूल!) आपने उन यहूदियों को नहीं देखा, जो अगर किसी मोमिन को देखते, तो कानाफूसी करने लगते थे। अतः अल्लाह ने उन्हें कानाफूसी से मना कर दिया। लेकिन वे फिर वही काम करते हैं, जिससे अल्लाह ने उन्हें मना किया था और वे आपस में ऐसी कानाफूसियाँ करते हैं, जिनमें गुनाह होता है, जैसे मुसलमानों की ग़ीबत करना, तथा जिनमें मुसलमानों पर अत्याचार होता है, और जिनमें रसूल की अवज्ञा होती है। और जब वे (ऐ रसूल!) आपके पास आते हैं, तो ऐसे शब्दों से आपको सलाम करते हैं, जिनसे अल्लाह ने आपको सलाम नहीं किया है। चुनाँचे वे कहते हैं : "अस्सामु अलैका" इससे उनका मतलब यह होता है कि आपको मौत आए। तथा वे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को झुठलाने के लिए कहते हैं : हम जो कुछ कहते हैं, उसपर अल्लाह हमें यातना क्यों नहीं देता। क्योंकि अगर वह अपने नबी होने के दावे में सच्चा होता, तो हम जो कुछ उसके बारे में कहते हैं, उसके कारण अल्लाह हमें अवश्य दंडित करता! उन्होंने जो कुछ कहा है उसपर सज़ा के तौर पर उन्हें जहन्नम ही काफी है। वे उसकी गर्मी को झेलेंगे। अतः उनका ठिकाना बहुत बुरा ठिकाना है।
Arabic explanations of the Qur’an:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اِذَا تَنَاجَیْتُمْ فَلَا تَتَنَاجَوْا بِالْاِثْمِ وَالْعُدْوَانِ وَمَعْصِیَتِ الرَّسُوْلِ وَتَنَاجَوْا بِالْبِرِّ وَالتَّقْوٰی ؕ— وَاتَّقُوا اللّٰهَ الَّذِیْۤ اِلَیْهِ تُحْشَرُوْنَ ۟
ऐ अल्लाह पर ईमान रखने वालो और उसकी शरीयत पर अमल करने वालो! ऐसी कानाफूसी न करो, जिसमें गुनाह, या अत्याचार या रसूल की अवज्ञा हो, ताकि तुम यहूदियों की तरह न हो जाओ। बल्कि ऐसी कानाफूसी करो, जो अल्लाह के आज्ञापालन और उसकी अवज्ञा से रुकने पर आधारित हो। तथा अल्लाह से, उसके आदेशों का पालन करके और उसके निषेधों से बचकर, डरते रहो। क्योंकि अकेला वही है, जिसके पास तुम क़ियामत के दिन हिसाब और बदले के लिए एकत्रित किए जाओगे।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّمَا النَّجْوٰی مِنَ الشَّیْطٰنِ لِیَحْزُنَ الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَلَیْسَ بِضَآرِّهِمْ شَیْـًٔا اِلَّا بِاِذْنِ اللّٰهِ ؕ— وَعَلَی اللّٰهِ فَلْیَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُوْنَ ۟
निश्चित रूप से - गुनाह, अत्याचार और रसूल की अवज्ञा पर आधारित - कानाफूसी शैतान की ओर से अपने दोस्तों के लिए उसे शोभित करके प्रस्तुत करने और फुसफुसाने के कारण है। ताकि वह ईमान वालों को इस बात से शोकाकुल कर दे कि उनके विरुद्ध चाल चली जा रही है। हालाँकि शैतान और उसका यह सुशोभीकरण, अल्लाह की मर्ज़ी और इच्छा के बिना ईमान वालों को कुछ भी नुक़सान नहीं पहुँचा सकता। और ईमान वालों को अपने सभी मामलों में अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए।
Arabic explanations of the Qur’an:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اِذَا قِیْلَ لَكُمْ تَفَسَّحُوْا فِی الْمَجٰلِسِ فَافْسَحُوْا یَفْسَحِ اللّٰهُ لَكُمْ ۚ— وَاِذَا قِیْلَ انْشُزُوْا فَانْشُزُوْا یَرْفَعِ اللّٰهُ الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا مِنْكُمْ ۙ— وَالَّذِیْنَ اُوْتُوا الْعِلْمَ دَرَجٰتٍ ؕ— وَاللّٰهُ بِمَا تَعْمَلُوْنَ خَبِیْرٌ ۟
ऐ अल्लाह पर ईमान रखने वालो और उसकी शरीयत पर अमल करने वालो! जब तुमसे कहा जाए कि मजलिसों (बैठकों) में जगह कुशादा कर दो, तो उनमें जगह बना दिया करो। अल्लाह तुम्हारे सांसारिक जीवन तथा आख़िरत में तुम्हारे लिए विस्तार पैदा करेगा। और जब तुमसे कहा जाए : कुछ मजलिसों से उठ जाओ, ताकि वहाँ प्रतिष्ठित लोग बैठ सकें, तो वहाँ से उठ जाया करो। अल्लाह तुममें से उन लोगों के दर्जों (पदों) को बहुत ऊँचा करेगा, जो ईमान लाए और जो ज्ञान दिए गए। और अल्लाह तुम्हारे कार्यों से पूरी तरह अवगत है। उससे तुम्हारे कार्यों में से कुछ भी छिपा नहीं है। और वह तुम्हें उनका बदला देगा।
Arabic explanations of the Qur’an:
Benefits of the verses in this page:
• مع أن الله عالٍ بذاته على خلقه؛ إلا أنه مطَّلع عليهم بعلمه لا يخفى عليه أي شيء.
• यद्यपि अल्लाह अपने अस्तित्व के साथ अपनी सृष्टि पर सर्वोच्च है, परंतु वह अपने ज्ञान के साथ उनसे अवगत है, उससे कुछ भी छिपा नहीं है।

• لما كان كثير من الخلق يأثمون بالتناجي أمر الله المؤمنين أن تكون نجواهم بالبر والتقوى.
• जब बहुतेरे लोग कानाफूसी के कारण पाप कर रहे थे, ऐसे में अल्लाह ईमान वालों को आदेश देता है कि उनकी कानाफूसी नेकी और तक़्वा (धर्मपरायणता) पर आधारित होनी चाहिए।

• من آداب المجالس التوسيع فيها للآخرين.
• मजलिसों के शिष्टाचार में से यह है कि दूसरों के लिए जगह बनाई जाए।

یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اِذَا نَاجَیْتُمُ الرَّسُوْلَ فَقَدِّمُوْا بَیْنَ یَدَیْ نَجْوٰىكُمْ صَدَقَةً ؕ— ذٰلِكَ خَیْرٌ لَّكُمْ وَاَطْهَرُ ؕ— فَاِنْ لَّمْ تَجِدُوْا فَاِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟
जब सहाबा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से बहुत ज़्यादा कानाफूसी करने लगे, तो अल्लाह ने फरमाया : ऐ ईमान वालो! जब तुम रसूल से गुप्त रूप से बात करना चाहो, तो गुप्त रूप से बात करने से पहले सदक़ा पेश करो। यह सदक़ा पेश करना तुम्हारे लिए उत्तम और अधिक पवित्र है। क्योंकि उसमें अल्लाह का आज्ञापालन है, जो दिलों को शुद्ध (पवित्र) करता है। अगर तुम्हें सदक़ा करने के लिए कुछ न मिले, तो उनसे गुप्त रूप से बात करने में तुमपर कोई गुनाह नहीं है। क्योंकि अल्लाह अपने बंदों के गुनाहों को माफ़ करने वाला और उनपर दया करने वाला है। यही कारण है कि उसने उन्हें केवल उसी चीज़ का बाध्य किया है,जो वे कर सकते हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
ءَاَشْفَقْتُمْ اَنْ تُقَدِّمُوْا بَیْنَ یَدَیْ نَجْوٰىكُمْ صَدَقٰتٍ ؕ— فَاِذْ لَمْ تَفْعَلُوْا وَتَابَ اللّٰهُ عَلَیْكُمْ فَاَقِیْمُوا الصَّلٰوةَ وَاٰتُوا الزَّكٰوةَ وَاَطِیْعُوا اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ ؕ— وَاللّٰهُ خَبِیْرٌ بِمَا تَعْمَلُوْنَ ۟۠
क्या तुम रसूल से सरगोशी करने से पहले सदक़ा देने के कारण गरीबी से डर गए? सो, यदि तुमने अल्लाह के इस आदेश का पालन नहीं किया, और अल्लाह ने तुम्हें क्षमा कर दिया कि इसे छोड़ने की छूट प्रदान कर दी, तो अब तुम उत्तम तरीक़े से नमाज़ क़ायम करो, अपने धन की ज़कात दो, तथा अल्लाह एवं उसके रसूल का अनुसरण करो। अल्लाह तुम्हारे कार्यों से पूरी तरह अवगत है। उससे तुम्हारा कोई काम छिपा नहीं है। और वह तुम्हें तुम्हारे कर्मों का बदला देगा।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَلَمْ تَرَ اِلَی الَّذِیْنَ تَوَلَّوْا قَوْمًا غَضِبَ اللّٰهُ عَلَیْهِمْ ؕ— مَا هُمْ مِّنْكُمْ وَلَا مِنْهُمْ ۙ— وَیَحْلِفُوْنَ عَلَی الْكَذِبِ وَهُمْ یَعْلَمُوْنَ ۟ۚ
क्या (ऐ रसूल) आपने उन मुनाफ़िक़ो (पाखंडियों) को नहीं देखा, जिन्होंने उन यहूदियों को मित्र बना लिया, जिनपर उनके कुफ़्र और पापों के कारण अल्लाह क्रोधित हुआ? ये मुनाफ़िक़ न तो मोमिनों में से हैं और न यहूदियों में से। बल्कि वे दुविधा में पड़े हुए हैं, न इधर के हैं, न उधर के। तथा वे क़समें खाते हैं कि वे मुसलमान हैं, और उन्होंने मुसलमानों की सूचनाएँ यहूदियों को नहीं पहुँचाई हैं। जबकि वे अपनी क़सम में झूठे हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَعَدَّ اللّٰهُ لَهُمْ عَذَابًا شَدِیْدًا ؕ— اِنَّهُمْ سَآءَ مَا كَانُوْا یَعْمَلُوْنَ ۟
अल्लाह ने उनके लिए आख़िरत में बड़ी कठोर यातना तैयार कर रखी है। क्योंकि वह उन्हें जहन्नम के पाताल में दाखिल करेगा। निश्चय वे दुनिया में कुफ़्र के बहुत ही बुरे काम करते रहे हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِتَّخَذُوْۤا اَیْمَانَهُمْ جُنَّةً فَصَدُّوْا عَنْ سَبِیْلِ اللّٰهِ فَلَهُمْ عَذَابٌ مُّهِیْنٌ ۟
उन्होंने अपनी क़समों को, जो वे खाया करते थे, कुफ़्र के कारण क़त्ल होने से बचने के लिए ढाल बना ली, क्योंकि उन्होंने क़समों के माध्यम से अपनी जान और माल की रक्षा के लिए मुसलमान होने का दिखावा किया। इस तरह उन्होंने लोगों को सत्य से फेर दिया। क्योंकि वे मुसलमानों को कमज़ोर और हतोत्साहित करते थे। अतः उनके लिए अपमानजनक यातना है, जो उन्हें अपमानित और तिरस्कृत करेगी।
Arabic explanations of the Qur’an:
لَنْ تُغْنِیَ عَنْهُمْ اَمْوَالُهُمْ وَلَاۤ اَوْلَادُهُمْ مِّنَ اللّٰهِ شَیْـًٔا ؕ— اُولٰٓىِٕكَ اَصْحٰبُ النَّارِ ؕ— هُمْ فِیْهَا خٰلِدُوْنَ ۟
उनके धन और उनकी संतान अल्लाह के समक्ष उनके कुछ काम न आएँगे। ये लोग जहन्नम के वासी हैं, जो उसमें प्रवेश करेंगे और उसी में हमेशा के लिए रहेंगे, उनकी यातना कभी बंद नहीं होगी।
Arabic explanations of the Qur’an:
یَوْمَ یَبْعَثُهُمُ اللّٰهُ جَمِیْعًا فَیَحْلِفُوْنَ لَهٗ كَمَا یَحْلِفُوْنَ لَكُمْ وَیَحْسَبُوْنَ اَنَّهُمْ عَلٰی شَیْءٍ ؕ— اَلَاۤ اِنَّهُمْ هُمُ الْكٰذِبُوْنَ ۟
जिस दिन अल्लाह उन सबको बदले के लिए पुनर्जीवित करके उठाएगा, उनमें से किसी को भी नहीं छोड़ेगा, तो वे अल्लाह के सामने क़समें खाएँगे कि वे कुफ़्र और निफ़ाक़ पर नहीं थे। बल्कि, वे अल्लाह को प्रसन्न करने वाले काम करने वाले मोमिन थे। वे आख़िरत में अल्लाह के सामने क़समें खाएँगे, जैसे कि वे दुनिया में (ऐ मोमिनो) तुम्हारे सामने कसमें खाकर कहते थे कि वे मुसलमान हैं। वे समझेंगे कि इन क़समों की वजह से जो वे अल्लाह के सामने खा रहे हैं, किसी ऐसे आधार पर हैं, जो उन्हें कोई लाभ पहुँचाएगा, या उनसे कोई नुकसान दूर कर देगा। सुन लो, वे वही हैं जो वास्तव में दुनिया में भी अपनी क़समों में तथा आखिरत में भी अपनी क़समों में झूठे हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِسْتَحْوَذَ عَلَیْهِمُ الشَّیْطٰنُ فَاَنْسٰىهُمْ ذِكْرَ اللّٰهِ ؕ— اُولٰٓىِٕكَ حِزْبُ الشَّیْطٰنِ ؕ— اَلَاۤ اِنَّ حِزْبَ الشَّیْطٰنِ هُمُ الْخٰسِرُوْنَ ۟
शैतान उनपर हावी हो गया है और उन्हें अपने वसवसे के ज़रिए अल्लाह की याद भुला दी है। इसलिए उन्होंने अल्लाह को खुश करने वाले कार्य नहीं किए। बल्कि ऐसे कार्य किए जो उसे नाराज़ करने वाले हैं। इन विशेषताओं वाले लोग ही इबलीस के सैनिक और उसके अनुयायी हैं। सुन लो, निश्चय इबलीस के सैनिक और उसके अनुयायी ही दुनिया और आख़िरत में क्षति उठाने वाले हैं। क्योंकि उन्होंने मार्गदर्शन को गुमराही के बदले में और जन्नत को जहन्नम के बदले में बेच दिया है।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ الَّذِیْنَ یُحَآدُّوْنَ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗۤ اُولٰٓىِٕكَ فِی الْاَذَلِّیْنَ ۟
निःसंदेह जो लोग अल्लाह और उसके रसूल का विरोध करते हैं, वही लोग उन काफ़िर समुदायों में शामिल हैं, जिन्हें अल्लाह ने दुनिया एवं आख़िरत में अपमानित और तिरस्कृत किया है।
Arabic explanations of the Qur’an:
كَتَبَ اللّٰهُ لَاَغْلِبَنَّ اَنَا وَرُسُلِیْ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ قَوِیٌّ عَزِیْزٌ ۟
अल्लाह ने अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर निर्णय कर दिया है कि निश्चित रूप से मैं और मेरे रसूल ही तर्क और शक्ति के साथ अपने दुश्मनों पर विजयी रहेंगे। निश्चय अल्लाह अपने रसूलों की सहायता करने पर सर्वशक्तिमान, प्रभुत्ववशाली है, जो उनके दुश्मनों से बदला लेता है।
Arabic explanations of the Qur’an:
Benefits of the verses in this page:
• لطف الله بنبيه صلى الله عليه وسلم؛ حيث أدَّب صحابته بعدم المشقَّة عليه بكثرة المناجاة.
• अल्लाह की अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दया; क्योंकि आपके साथियों को यह शिष्टाचार सिखाया कि अधिक कानाफूसी करके आपको कष्ट न पहुँचाएँ।

• ولاية اليهود من شأن المنافقين.
• यहूदियों से दोस्ती रखना मुनाफ़िक़ों का काम है।

• خسران أهل الكفر وغلبة أهل الإيمان سُنَّة إلهية قد تتأخر، لكنها لا تتخلف.
• काफ़िरों का क्षतिग्रस्त होना और ईमान वालों को प्रभुत्व प्राप्त होना एक ईश्वरीय परंपरा है, जिसमें देरी हो सकती है, पर अंधेर नहीं।

لَا تَجِدُ قَوْمًا یُّؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ وَالْیَوْمِ الْاٰخِرِ یُوَآدُّوْنَ مَنْ حَآدَّ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ وَلَوْ كَانُوْۤا اٰبَآءَهُمْ اَوْ اَبْنَآءَهُمْ اَوْ اِخْوَانَهُمْ اَوْ عَشِیْرَتَهُمْ ؕ— اُولٰٓىِٕكَ كَتَبَ فِیْ قُلُوْبِهِمُ الْاِیْمَانَ وَاَیَّدَهُمْ بِرُوْحٍ مِّنْهُ ؕ— وَیُدْخِلُهُمْ جَنّٰتٍ تَجْرِیْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِیْنَ فِیْهَا ؕ— رَضِیَ اللّٰهُ عَنْهُمْ وَرَضُوْا عَنْهُ ؕ— اُولٰٓىِٕكَ حِزْبُ اللّٰهِ ؕ— اَلَاۤ اِنَّ حِزْبَ اللّٰهِ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ ۟۠
आप (ऐ नबी) उन लोगों को जो अल्लाह एवं क़ियामत के दिन पर ईमान रखते हैं, ऐसा नहीं पाएँगे कि वे उन लोगों से प्रेम करते और मित्रता रखते हों, जो अल्लाह और उसके रसूल से दुश्मनी रखते हैं, यद्यपि ये अल्लाह और उसके रसूल के दुश्मन उनके पिता, या उनके पुत्र, या उनके भाई, या उनके क़बीले वाले ही क्यों न हों, जिनसे वे संबंधित होते हैं। क्योंकि ईमान अल्लाह और उसके रसूल के दुश्मनों से मित्रता रखने से रोकता है, और क्योंकि ईमान का बंधन सभी बंधनों से सर्वोपरि है। अतः, टकराव के समय ईमान के बंधन को प्राथमिकता दी जाएगी। जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से दुश्मनी रखने वालों से मित्रता नहीं रखते - भले ही वे इनके रिश्तेदार हों - , यही वे लोग हैं, जिनके दिलों में अल्लाह ने ईमान को जमा दिया है, इसलिए वह परिवर्तित नहीं होता। तथा उन्हें अपने प्रमाण और प्रकाश के साथ मज़बूत कर दिया है। और उन्हें क़ियामत के दिन सदैव रहने वाली जन्नतों में दाखिल करेगा, जिनके महलों और पेड़ों के नीचे से नहरे बहती होंगी। वे हमेशा के लिए वहीं रहेंगे। उनकी नेमतें उनसे बाधित नहीं होंगी और न ही वे (स्वयं) उससे नाश होंगे। अल्लाह उनसे इस तरह प्रसन्न हो गया कि उसके बाद कभी भी नाराज़ नहीं होगा। तथा वे भी अल्लाह से प्रसन्न हो गए, क्योंकि उसने उन्हें ऐसी नेमतें प्रदान कीं, जो कभी ख़त्म नहीं होंगी, जिनमें अल्लाह महिमावान् को देखना भी शामिल है। उक्त विशेषताओं से विशिष्ट लोग ही अल्लाह की सेना हैं, जो अल्लाह के आदेशों का पालन करते हैं और उसके निषेधों से दूर रहते हैं। सुन लो, निश्चय अल्लाह के सैनिक ही दुनिया और आख़िरत में अपनी अपेक्षित चीज़ों को पाने में, तथा अपनी घृणित व भयावह चीज़ों से बचने में सफल होने वाले हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
Benefits of the verses in this page:
• المحبة التي لا تجعل المسلم يتبرأ من دين الكافر ويكرهه، فإنها محرمة، أما المحبة الفطرية؛ كمحبة المسلم لقريبه الكافر، فإنها جائزة.
• ऐसा प्रेम, जो एक मुसलमान को काफ़िर के धर्म से बरी होने का इज़हार करने और उससे घृणा करने से रोक दे, वह निषिद्ध (हराम) है। लेकिन रही बात जन्मजात प्रेम की; जैसे कि एक मुसलमान का अपने काफ़िर रिश्तेदार से प्रेम करना, तो वह जायज़ है।

• رابطة الإيمان أوثق الروابط بين أهل الإيمان.
• ईमान का बंधन ईमान वालों के बीच सबसे मज़बूत बंधन है।

• قد يعلو أهل الباطل حتى يُظن أنهم لن ينهزموا، فتأتي هزيمتهم من حيث لا يتوقعون.
• कभी-कभी असत्य पर चलने वाले बढ़ जाते हैं यहाँ तक कि यह सोचा जाता है कि वे कभी पराजित नहीं होंगे। इसलिए उनकी पराजय ऐसी जगह से आती है, जिसकी उन्हें उम्मीद नहीं होती है।

• من قدر الله في الناس دفع المصائب بوقوع ما دونها من المصائب.
• लोगों में अल्लाह के फैसले का एक दृश्य यह भी है कि वह बड़ी आपदाओं को उनसे छोटी आपदाएँ लाकर टाल देता है।

 
Translation of the meanings Surah: Al-Mujādalah
Surahs’ Index Page Number
 
Translation of the Meanings of the Noble Qur'an - الترجمة الهندية للمختصر في تفسير القرآن الكريم - Translations’ Index

الترجمة الهندية للمختصر في تفسير القرآن الكريم، صادر عن مركز تفسير للدراسات القرآنية.

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