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Translation of the Meanings of the Noble Qur'an - Hindi translation - Azizul Haq Al-Omari * - Translations’ Index

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Translation of the meanings Surah: An-Naba’   Ayah:
اِنَّ لِلْمُتَّقِیْنَ مَفَازًا ۟ۙ
निःसंदेह (अल्लाह से) डरने वालों के लिए सफलता है।
Arabic explanations of the Qur’an:
حَدَآىِٕقَ وَاَعْنَابًا ۟ۙ
बाग़ तथा अंगूर।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَّكَوَاعِبَ اَتْرَابًا ۟ۙ
और समान उम्र वाली नवयुवतियाँ।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَّكَاْسًا دِهَاقًا ۟ؕ
और छलकते हुए प्याले।
Arabic explanations of the Qur’an:
لَا یَسْمَعُوْنَ فِیْهَا لَغْوًا وَّلَا كِذّٰبًا ۟ۚۖ
वे उसमें न तो कोई व्यर्थ बात सुनेंगे और न (एक दूसरे को) झुठलाना।
Arabic explanations of the Qur’an:
جَزَآءً مِّنْ رَّبِّكَ عَطَآءً حِسَابًا ۟ۙ
यह तुम्हारे पालनहार की ओर से बदले में ऐसा प्रदान है जो पर्याप्त होगा।
Arabic explanations of the Qur’an:
رَّبِّ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ وَمَا بَیْنَهُمَا الرَّحْمٰنِ لَا یَمْلِكُوْنَ مِنْهُ خِطَابًا ۟ۚ
जो आकाशों और धरती तथा उनके बीच की हर चीज़ का पालनहार है, अत्यंत दयावान् है। उससे बात करने का उन्हें अधिकार नहीं होगा।
Arabic explanations of the Qur’an:
یَوْمَ یَقُوْمُ الرُّوْحُ وَالْمَلٰٓىِٕكَةُ صَفًّا ۙۗؕ— لَّا یَتَكَلَّمُوْنَ اِلَّا مَنْ اَذِنَ لَهُ الرَّحْمٰنُ وَقَالَ صَوَابًا ۟
जिस दिन रूह़ (जिबरील) तथा फ़रिश्ते पंक्तियों में खड़े होंगे, उससे केवल वही बात कर सकेगा जिसे रहमान (अल्लाह) आज्ञा देगा और वह ठीक बात कहेगा।
Arabic explanations of the Qur’an:
ذٰلِكَ الْیَوْمُ الْحَقُّ ۚ— فَمَنْ شَآءَ اتَّخَذَ اِلٰی رَبِّهٖ مَاٰبًا ۟
यही (वह) दिन है जो सत्य है। अतः जो चाहे अपने पालनहार की ओर लौटने की जगह (ठिकाना) बना ले।[5]
5. (37-39) इन आयतों में अल्लाह के न्यायालय में उपस्थिति (ह़ाज़िरी) का चित्र दिखाया गया है। और जो इस भ्रम में पड़े हैं कि उनके देवी-देवता आदि अभिस्ताव करेंगे उनको सावधान किया गया है कि उस दिन कोई बिना उस की आज्ञा के मुँह नहीं खोलेगा और अल्लाह की आज्ञा से अभिस्ताव भी करेगा तो उसी के लिए जो संसार में सत्य वचन "ला इलाहा इल्लल्लाह" को मानता हो। अल्लाह के द्रोही और सत्य के विरोधी किसी अभिस्ताव के योग्य नगीं होंगे।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّاۤ اَنْذَرْنٰكُمْ عَذَابًا قَرِیْبًا ۖۚ۬— یَّوْمَ یَنْظُرُ الْمَرْءُ مَا قَدَّمَتْ یَدٰهُ وَیَقُوْلُ الْكٰفِرُ یٰلَیْتَنِیْ كُنْتُ تُرٰبًا ۟۠
निःसंदेह हमने तुम्हें एक निकट ही आने वाली यातना से डरा दिया है, जिस दिन मनुष्य देख लेगा, जो कुछ उसके दोनों हाथों ने आगे भेजा है, और काफिर कहेगा : ऐ काश कि मैं मिट्टी होता![6]
6. (40) बात को इस चेतावनी पर समाप्त किया गया है कि जिस दिन के आने की सूचना दी जा रही है, उस का आना सत्य है, उसे दूर न समझो। अब जिसका दिल चाहे इसे मानकर अपने पालनहार की ओर मार्ग बना ले। परंतु इस चेतावनी के होते जो इनकार करेगा, उसका किया-धरा सामने आएगा, तो पछता-पछता कर यह कामना करेगा कि मैं संसार में पैदा ही न होता। उस समय इस संसार के बारे में उसका यह विचार होगा जिसके प्रेम में आज वह परलोक से अंधा बना हुआ है।
Arabic explanations of the Qur’an:
 
Translation of the meanings Surah: An-Naba’
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Translated by Azizul Haq Al-Omari

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