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ترجمهٔ معانی قرآن کریم - ترجمه‌ى هندى - عزیزالحق العمری * - لیست ترجمه ها

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ترجمهٔ معانی سوره: اعراف   آیه:
اُبَلِّغُكُمْ رِسٰلٰتِ رَبِّیْ وَاَنَا لَكُمْ نَاصِحٌ اَمِیْنٌ ۟
मैं तुम्हें अपने पालनहार के संदेश पहुँचाता हूँ और मैं तुम्हारे लिए एक अमानतदार हितैषी हूँ।
تفسیرهای عربی:
اَوَعَجِبْتُمْ اَنْ جَآءَكُمْ ذِكْرٌ مِّنْ رَّبِّكُمْ عَلٰی رَجُلٍ مِّنْكُمْ لِیُنْذِرَكُمْ ؕ— وَاذْكُرُوْۤا اِذْ جَعَلَكُمْ خُلَفَآءَ مِنْ بَعْدِ قَوْمِ نُوْحٍ وَّزَادَكُمْ فِی الْخَلْقِ بَصْۜطَةً ۚ— فَاذْكُرُوْۤا اٰلَآءَ اللّٰهِ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُوْنَ ۟
क्या तुम्हें इस पार आश्चर्य हुआ कि तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से तुम्हीं में से एक आदमी पर नसीहत आई, ताकि वह तुम्हें डराए तथा याद करो, जब उसने तुम्हें नूह़ की जाति के बाद उत्तराधिकारी बनाया और तुम्हें डील-डौल में भारी-भरकम बनाया। अतः अल्लाह की नेमतों को याद[29] करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो।
29. अर्थात उसके आज्ञाकारी तथा कृतज्ञ बनो।
تفسیرهای عربی:
قَالُوْۤا اَجِئْتَنَا لِنَعْبُدَ اللّٰهَ وَحْدَهٗ وَنَذَرَ مَا كَانَ یَعْبُدُ اٰبَآؤُنَا ۚ— فَاْتِنَا بِمَا تَعِدُنَاۤ اِنْ كُنْتَ مِنَ الصّٰدِقِیْنَ ۟
उन्होंने कहा : क्या तू हमारे पास इसलिए आया है कि हम अकेले अल्लाह की इबादत करें और उन्हें छोड़ दें जिनकी पूजा हमारे बाप-दादा करते थे? तो जिसकी तू हमें धमकी देता है, वह हमारे ऊपर ले आ, यदि तू सच्चों में से है।
تفسیرهای عربی:
قَالَ قَدْ وَقَعَ عَلَیْكُمْ مِّنْ رَّبِّكُمْ رِجْسٌ وَّغَضَبٌ ؕ— اَتُجَادِلُوْنَنِیْ فِیْۤ اَسْمَآءٍ سَمَّیْتُمُوْهَاۤ اَنْتُمْ وَاٰبَآؤُكُمْ مَّا نَزَّلَ اللّٰهُ بِهَا مِنْ سُلْطٰنٍ ؕ— فَانْتَظِرُوْۤا اِنِّیْ مَعَكُمْ مِّنَ الْمُنْتَظِرِیْنَ ۟
उसने कहा : निश्चय तुमपर तुम्हारे पालनहार की ओर से यातना और प्रकोप आ पड़ा है। क्या तुम मुझसे उन नामों के विषय में झगड़ते हो, जो तुमने तथा तुम्हारे बाप-दादा ने रख लिए हैं, जिनका अल्लाह ने कोई प्रमाण नहीं उतारा है? तो तुम प्रतीक्षा करो, निःसंदेह मैं भी तुम्हारे साथ प्रतीक्षा करने वालों में से हूँ।
تفسیرهای عربی:
فَاَنْجَیْنٰهُ وَالَّذِیْنَ مَعَهٗ بِرَحْمَةٍ مِّنَّا وَقَطَعْنَا دَابِرَ الَّذِیْنَ كَذَّبُوْا بِاٰیٰتِنَا وَمَا كَانُوْا مُؤْمِنِیْنَ ۟۠
अंततः हमने उसे और उन लोगों को जो उसके साथ थे, अपनी रहमत से बचा लिया तथा उन लोगों की जड़ काट दी, जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया और वे ईमान लाने वाले न थे।
تفسیرهای عربی:
وَاِلٰی ثَمُوْدَ اَخَاهُمْ صٰلِحًا ۘ— قَالَ یٰقَوْمِ اعْبُدُوا اللّٰهَ مَا لَكُمْ مِّنْ اِلٰهٍ غَیْرُهٗ ؕ— قَدْ جَآءَتْكُمْ بَیِّنَةٌ مِّنْ رَّبِّكُمْ ؕ— هٰذِهٖ نَاقَةُ اللّٰهِ لَكُمْ اٰیَةً فَذَرُوْهَا تَاْكُلْ فِیْۤ اَرْضِ اللّٰهِ وَلَا تَمَسُّوْهَا بِسُوْٓءٍ فَیَاْخُذَكُمْ عَذَابٌ اَلِیْمٌ ۟
और समूद[30] की ओर उनके भाई सालेह़ को (भेजा)। उसने कहा : ऐ मेरी जाति के लोगो! अल्लाह की इबादत करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई पूज्य नहीं। निःसंदेह तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से एक स्पष्ट प्रमाण आ चुका है। यह अल्लाह की ऊँटनी तुम्हारे लिए एक निशानी[31] के रूप में है। अतः इसे छोड़ दो कि अल्लाह की धरती में खाती फिरे और इसे बुरे इरादे से हाथ न लगाना, अन्यथा तुम्हें एक दुःखदायी यातना घेर लेगी।
30. समूद जाति अरब के उस क्षेत्र में रहती थी, जो ह़िजाज़ तथा शाम के बीच "वादिये क़ुर" तक चला गया है। जिसको आज "अल-उला" कहते हैं। इसी को दूसरे स्थान पर "अलहिज्र" भी कहा गया है। 31. समूद जाति ने अपने नबी सालेह़ अलैहिस्सलाम से यह माँग की थी कि पर्वत से एक ऊँटनी निकाल दें। और सालेह़ अलैहिस्सलाम की प्रार्थना से अल्लाह ने उनकी यह माँग पूरी कर दी। (इब्ने कसीर)
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ترجمه‌ى عزیزالحق العمری.

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