Fassarar Ma'anonin Alqura'ni - Fassara a Yaren Hindu * - Teburin Bayani kan wasu Fassarori

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Fassarar Ma'anoni Sura: Suratu Fussilat   Aya:

सूरा फ़ुस्सिलत

حٰمٓ ۟ۚ
ह़ा, मीम।
Tafsiran larabci:
تَنْزِیْلٌ مِّنَ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ ۟ۚ
(यह कुरआन) अत्यंत दयावान्, असीम दयालु की ओर से अवतरित हुआ है।
Tafsiran larabci:
كِتٰبٌ فُصِّلَتْ اٰیٰتُهٗ قُرْاٰنًا عَرَبِیًّا لِّقَوْمٍ یَّعْلَمُوْنَ ۟ۙ
(यह ऐसी) पुस्तक है, जिसकी आयतें खोलकर बयान की गई हैं। (यह) क़ुरआन अरबी (भाषा में) है, उन लोगों के लिए जो ज्ञान रखते हैं।
Tafsiran larabci:
بَشِیْرًا وَّنَذِیْرًا ۚ— فَاَعْرَضَ اَكْثَرُهُمْ فَهُمْ لَا یَسْمَعُوْنَ ۟
वह शुभ सूचना देने वाला तथा सचेत करने वाला है। लेकिन उनमें से अधिकतर ने (उससे) मुँह फेर लिया, तो वे सुनते ही नहीं।
Tafsiran larabci:
وَقَالُوْا قُلُوْبُنَا فِیْۤ اَكِنَّةٍ مِّمَّا تَدْعُوْنَاۤ اِلَیْهِ وَفِیْۤ اٰذَانِنَا وَقْرٌ وَّمِنْ بَیْنِنَا وَبَیْنِكَ حِجَابٌ فَاعْمَلْ اِنَّنَا عٰمِلُوْنَ ۟
तथा उन्होंने[1] कहा : हमारे दिल उससे पर्दों में हैं, जिसकी ओर आप हमें बुला रहे हैं तथा हमारे कानों में बोझ (बहरापन) है तथा हमारे और आपके बीच एक ओट है। अतः आप अपना काम करें और हम अपना काम कर रहे हैं।
1. अर्थात मक्का के मुश्रिकों ने कहा कि यह एकेश्वरवाद की बात हमें समझ में नहीं आती। इसलिए आप हमें हमारे धर्म पर ही रहने दें।
Tafsiran larabci:
قُلْ اِنَّمَاۤ اَنَا بَشَرٌ مِّثْلُكُمْ یُوْحٰۤی اِلَیَّ اَنَّمَاۤ اِلٰهُكُمْ اِلٰهٌ وَّاحِدٌ فَاسْتَقِیْمُوْۤا اِلَیْهِ وَاسْتَغْفِرُوْهُ ؕ— وَوَیْلٌ لِّلْمُشْرِكِیْنَ ۟ۙ
आप कह दें कि मैं तो तुम्हारे ही जैसा एक इनसान हूँ। मेरी ओर वह़्य की जाती है कि तुम्हारा पूज्य मात्र एक ही पूज्य है। अतः सीधे उसी की ओर एकाग्र रहो तथा उससे क्षमा माँगो और साझी ठहराने वालों के लिए बड़ा विनाश है।
Tafsiran larabci:
الَّذِیْنَ لَا یُؤْتُوْنَ الزَّكٰوةَ وَهُمْ بِالْاٰخِرَةِ هُمْ كٰفِرُوْنَ ۟
जो ज़कात नहीं देते तथा वे आख़िरत का (भी) इनकार करते हैं।
Tafsiran larabci:
اِنَّ الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ لَهُمْ اَجْرٌ غَیْرُ مَمْنُوْنٍ ۟۠
निःसंदेह जो लोग ईमान लाए तथा अच्छे कर्म किए, उनके लिए समाप्त न होने वाला बदला है।
Tafsiran larabci:
قُلْ اَىِٕنَّكُمْ لَتَكْفُرُوْنَ بِالَّذِیْ خَلَقَ الْاَرْضَ فِیْ یَوْمَیْنِ وَتَجْعَلُوْنَ لَهٗۤ اَنْدَادًا ؕ— ذٰلِكَ رَبُّ الْعٰلَمِیْنَ ۟ۚ
आप कह दें कि क्या तुम उस अस्तित्व का इनकार करते हो, जिसने धरती को दो दिनों में पैदा किया और उसके समकक्ष ठहराते हो? वह तो समस्त संसार का पालनहार है।
Tafsiran larabci:
وَجَعَلَ فِیْهَا رَوَاسِیَ مِنْ فَوْقِهَا وَبٰرَكَ فِیْهَا وَقَدَّرَ فِیْهَاۤ اَقْوَاتَهَا فِیْۤ اَرْبَعَةِ اَیَّامٍ ؕ— سَوَآءً لِّلسَّآىِٕلِیْنَ ۟
तथा उस (धरती) में उसके ऊपर से पर्वत बनाए, तथा उसमें बरकत रख दी और उसमें उसके वासियों के आहार चार[2] दिनों में निर्धारित किए, समान रूप[3] से, प्रश्न करने वालों के लिए।
2. अर्थात धरती को पैदा करने और फैलाने के कुल चार दिन हुए। 3. अर्थात धरती के सभी जीवों के आहार के संसाधन की व्यवस्था कर दी। और यह बात बता दी ताकि कोई प्रश्न करे तो उसे इसका ज्ञान करा दिया जाए।
Tafsiran larabci:
ثُمَّ اسْتَوٰۤی اِلَی السَّمَآءِ وَهِیَ دُخَانٌ فَقَالَ لَهَا وَلِلْاَرْضِ ائْتِیَا طَوْعًا اَوْ كَرْهًا ؕ— قَالَتَاۤ اَتَیْنَا طَآىِٕعِیْنَ ۟
फिर उसने आकाश की ओर रुख़ किया, जबकि वह धुआँ था। तो उसने उससे और धरती से कहा : तुम दोनों आओ, स्वेच्छा से या मजबूरी से। दोनों ने कहा : हम स्वेच्छा से आ गए।
Tafsiran larabci:
فَقَضٰىهُنَّ سَبْعَ سَمٰوَاتٍ فِیْ یَوْمَیْنِ وَاَوْحٰی فِیْ كُلِّ سَمَآءٍ اَمْرَهَا وَزَیَّنَّا السَّمَآءَ الدُّنْیَا بِمَصَابِیْحَ ۖۗ— وَحِفْظًا ؕ— ذٰلِكَ تَقْدِیْرُ الْعَزِیْزِ الْعَلِیْمِ ۟
फिर उसने उन्हें दो दिनों में सात आकाश बना दिए और प्रत्येक आकाश में उससे संबंधित काम की वह़्य की। तथा हमने निकटतम (निचले) आकाश को दीपों (चमकदार सितारों) से सुशोभित किया, तथा (उनके द्वारा) उसको सुरक्षित कर दिया।[4] यह अत्यंत प्रभुत्वशाली, सब कुछ जानने वाले (अल्लाह) की योजना है।
4. अर्थात शैतानों से सुरक्षित कर दिया। (देखिए : सूरतुस-साफ़्फ़ात, आयत 7 से 10 तक)।
Tafsiran larabci:
فَاِنْ اَعْرَضُوْا فَقُلْ اَنْذَرْتُكُمْ صٰعِقَةً مِّثْلَ صٰعِقَةِ عَادٍ وَّثَمُوْدَ ۟ؕ
फिर यदि वे विमुख हों, तो आप कह दें कि मैंने तुम्हें ऐसी कड़क (भयंकर यातना) से सावधान कर दिया है, जो आद और समूद की कड़क जैसी होगी।
Tafsiran larabci:
اِذْ جَآءَتْهُمُ الرُّسُلُ مِنْ بَیْنِ اَیْدِیْهِمْ وَمِنْ خَلْفِهِمْ اَلَّا تَعْبُدُوْۤا اِلَّا اللّٰهَ ؕ— قَالُوْا لَوْ شَآءَ رَبُّنَا لَاَنْزَلَ مَلٰٓىِٕكَةً فَاِنَّا بِمَاۤ اُرْسِلْتُمْ بِهٖ كٰفِرُوْنَ ۟
जब उनके पास रसूल उनके आगे से तथा उनके पीछे से आए[5] (और कहा) कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करो। तो उन्होंने कहा : यदि हमारा पालनहार चाहता, तो किसी फ़रिश्ते को उतार देता।[6] अतः जिस बात के साथ तुम भेजे गए हो, हम उसका इनकार करते हैं।
5. अर्थात प्रत्येक प्रकार से समझाते रहे। 6. वे मनुष्य को रसूल मानने के लिए तैयार नहीं थे। (जिस प्रकार कुछ लोग जो रसूल को मानते हैं पर वे उन्हें मनुष्य मानने को तैयार नहीं हैं)। (देखिए : सूरतुल-अन्आम, आयत : 9-10, सूरतुल-मूमिनून, आयत : 24)
Tafsiran larabci:
فَاَمَّا عَادٌ فَاسْتَكْبَرُوْا فِی الْاَرْضِ بِغَیْرِ الْحَقِّ وَقَالُوْا مَنْ اَشَدُّ مِنَّا قُوَّةً ؕ— اَوَلَمْ یَرَوْا اَنَّ اللّٰهَ الَّذِیْ خَلَقَهُمْ هُوَ اَشَدُّ مِنْهُمْ قُوَّةً ؕ— وَكَانُوْا بِاٰیٰتِنَا یَجْحَدُوْنَ ۟
फिर रहे आद समुदाय के लोग, तो उन्होंने धरती में नाहक़ अभिमान किया तथा कहने लगे : कौन शक्ति में हमसे बढ़कर है? क्या उन्होंने नहीं देखा कि अल्लाह, जिसने उनको पैदा किया, वह शक्ति में उनसे बहुत बढ़कर है?! तथा वे हमारी आयतों का इनकार करते रहे।
Tafsiran larabci:
فَاَرْسَلْنَا عَلَیْهِمْ رِیْحًا صَرْصَرًا فِیْۤ اَیَّامٍ نَّحِسَاتٍ لِّنُذِیْقَهُمْ عَذَابَ الْخِزْیِ فِی الْحَیٰوةِ الدُّنْیَا ؕ— وَلَعَذَابُ الْاٰخِرَةِ اَخْزٰی وَهُمْ لَا یُنْصَرُوْنَ ۟
अंततः, हमने कुछ अशुभ दिनों में उनपर प्रचंड वायु भेज दी। ताकि हम उन्हें सांसारिक जीवन में अपमानकारी यातना चखाएँ और आख़िरत (परलोक) की यातना तो और अधिक अपमानकारी है। तथा उन्हें कोई सहायता नहीं दी जाएगी।
Tafsiran larabci:
وَاَمَّا ثَمُوْدُ فَهَدَیْنٰهُمْ فَاسْتَحَبُّوا الْعَمٰی عَلَی الْهُدٰی فَاَخَذَتْهُمْ صٰعِقَةُ الْعَذَابِ الْهُوْنِ بِمَا كَانُوْا یَكْسِبُوْنَ ۟ۚ
और रहे समूद समुदाय के लोग, तो हमने उन्हें सीधा मार्ग दिखाया, परंतु उन्होंने मार्गदर्शन की अपेक्षा अंधेपन को पसंद किया। अंततः उन्हें अपमानकारी यातना की कड़क ने पकड़ लिया, उसके कारण जो वे कमा रहे थे।
Tafsiran larabci:
وَنَجَّیْنَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَكَانُوْا یَتَّقُوْنَ ۟۠
तथा हमने उन लोगों को बचा लिया, जो ईमान लाए और वे डरते थे।
Tafsiran larabci:
وَیَوْمَ یُحْشَرُ اَعْدَآءُ اللّٰهِ اِلَی النَّارِ فَهُمْ یُوْزَعُوْنَ ۟
और जिस दिन अल्लाह के शत्रुओं को एकत्रित कर जहन्नम की ओर लाया जाएगा, तो उन्हें पंक्तिबद्ध कर दिया जाएगा।
Tafsiran larabci:
حَتّٰۤی اِذَا مَا جَآءُوْهَا شَهِدَ عَلَیْهِمْ سَمْعُهُمْ وَاَبْصَارُهُمْ وَجُلُوْدُهُمْ بِمَا كَانُوْا یَعْمَلُوْنَ ۟
यहाँ तक कि जब वे उस (जहन्नम) के पास आ जाएँगे, तो उनके कान तथा उनकी आँखें और उनकी खालें उनके विरुद्ध उन कर्मों की गवाही देंगी, जो वे किया करते थे।
Tafsiran larabci:
وَقَالُوْا لِجُلُوْدِهِمْ لِمَ شَهِدْتُّمْ عَلَیْنَا ؕ— قَالُوْۤا اَنْطَقَنَا اللّٰهُ الَّذِیْۤ اَنْطَقَ كُلَّ شَیْءٍ وَّهُوَ خَلَقَكُمْ اَوَّلَ مَرَّةٍ وَّاِلَیْهِ تُرْجَعُوْنَ ۟
और वे अपनी खालों से कहेंगे : तुमने हमारे विरुद्ध क्यों गवाही दी? तो वे उत्तर देंगी : हमें उसी अल्लाह ने बोलने की शक्ति प्रदान की, जिसने प्रत्येक वस्तु को बोलने की शक्ति दी है। तथा उसी ने तुम्हें प्रथम बार पैदा किया और तुम उसी की ओर लौटाए जाओगे।
Tafsiran larabci:
وَمَا كُنْتُمْ تَسْتَتِرُوْنَ اَنْ یَّشْهَدَ عَلَیْكُمْ سَمْعُكُمْ وَلَاۤ اَبْصَارُكُمْ وَلَا جُلُوْدُكُمْ وَلٰكِنْ ظَنَنْتُمْ اَنَّ اللّٰهَ لَا یَعْلَمُ كَثِیْرًا مِّمَّا تَعْمَلُوْنَ ۟
तथा तुम (पाप करते समय) छिपते[7] भी नहीं थे कि कहीं तुम्हारे कान, तुम्हारी आँखें और तुम्हारी खालें तुम्हारे विरुद्ध गवाही न दे दें। बल्कि, तुम यह समझते रहे कि अल्लाह उनमें से अधिकतर बातों को जानता ही नहीं, जो तुम करते हो।
7. आदरणीय अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि ख़ाना काबा के पास एक घर में दो क़ुरैशी तथा एक सक़फ़ी अथवा दो सक़फ़ी और एक क़ुरैशी थे। तो एक ने दूसरे से कहा कि तुम समझते हो कि अल्लाह हमारी बातें सुन रहा है? किसी ने कहा : यदि कुछ सुनता है तो सब कुछ सुनता है। उसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4816, 4817, 7521)
Tafsiran larabci:
وَذٰلِكُمْ ظَنُّكُمُ الَّذِیْ ظَنَنْتُمْ بِرَبِّكُمْ اَرْدٰىكُمْ فَاَصْبَحْتُمْ مِّنَ الْخٰسِرِیْنَ ۟
तुम्हारी इसी दुर्भावना ने, जो तुमने अपने पालनहार के प्रति रखा, तुम्हें विनष्ट कर दिया और तुम घाटा उठाने वालों में से हो गए।
Tafsiran larabci:
فَاِنْ یَّصْبِرُوْا فَالنَّارُ مَثْوًی لَّهُمْ ؕ— وَاِنْ یَّسْتَعْتِبُوْا فَمَا هُمْ مِّنَ الْمُعْتَبِیْنَ ۟
अब यदि वे धैर्य रखें, तो भी जहन्नम ही उनका ठिकाना है। और यदि वे क्षमा माँगें, तो भी वे क्षमा नहीं किए जाएँगे।
Tafsiran larabci:
وَقَیَّضْنَا لَهُمْ قُرَنَآءَ فَزَیَّنُوْا لَهُمْ مَّا بَیْنَ اَیْدِیْهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَحَقَّ عَلَیْهِمُ الْقَوْلُ فِیْۤ اُمَمٍ قَدْ خَلَتْ مِنْ قَبْلِهِمْ مِّنَ الْجِنِّ وَالْاِنْسِ ۚ— اِنَّهُمْ كَانُوْا خٰسِرِیْنَ ۟۠
और हमने उनके लिए कुछ साथी नियुक्त कर दिए, तो उन्होंने उनके अगले और पिछले कामों को उनके लिए शोभित बनाकर पेश किया। तथा उनपर भी जिन्नों और इनसानों के उन समूहों के साथ, जो उनसे पहले गुज़र चुके थे, अल्लाह (की यातना) का वादा सिद्ध हो गया। निश्चय ही वे घाटा उठाने वाले थे।
Tafsiran larabci:
وَقَالَ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا لَا تَسْمَعُوْا لِهٰذَا الْقُرْاٰنِ وَالْغَوْا فِیْهِ لَعَلَّكُمْ تَغْلِبُوْنَ ۟
तथा काफ़िरों ने कहा[8] कि इस क़ुरआन को न सुनो और (जब पढ़ा जाए तो) इसमें शोर करो। ताकि तुम प्रभावशाली रहो।
8. मक्का के काफ़िरों ने जब देखा कि लोग क़ुरआन सुनकर प्रभावित हो रहे हैं, तो उन्होंने यह योजना बनाई।
Tafsiran larabci:
فَلَنُذِیْقَنَّ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا عَذَابًا شَدِیْدًا وَّلَنَجْزِیَنَّهُمْ اَسْوَاَ الَّذِیْ كَانُوْا یَعْمَلُوْنَ ۟
अतः हम अवश्य ही उन लोगों को जो काफ़िर हो गए, कठोर यातना का मज़ा चखाएँगे, तथा निश्चय ही हम उन्हें उन दुष्कर्मों का बदला अवश्य देंगे, जो वे किया करते थे।
Tafsiran larabci:
ذٰلِكَ جَزَآءُ اَعْدَآءِ اللّٰهِ النَّارُ ۚ— لَهُمْ فِیْهَا دَارُ الْخُلْدِ ؕ— جَزَآءً بِمَا كَانُوْا بِاٰیٰتِنَا یَجْحَدُوْنَ ۟
यह अल्लाह के शत्रुओं का प्रतिकार जहन्नम है। उनके लिए उसी में स्थायी घर होगा। यह उसका बदला है, जो वे हमारी अयतों का इनकार किया करते थे।
Tafsiran larabci:
وَقَالَ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا رَبَّنَاۤ اَرِنَا الَّذَیْنِ اَضَلّٰنَا مِنَ الْجِنِّ وَالْاِنْسِ نَجْعَلْهُمَا تَحْتَ اَقْدَامِنَا لِیَكُوْنَا مِنَ الْاَسْفَلِیْنَ ۟
तथा जिन लोगों ने कुफ़्र किया, वे कहेंगे : ऐ हमारे पालनहर! हमें जिन्नों और इनसानों में से वे लोग दिखा दे, जिन्होंने हमें गुमराह किया था, हम उन्हें अपने पैरों तले रौंद डालें। ताकि वे सबसे निचले लोगों में से हो जाएँ।
Tafsiran larabci:
اِنَّ الَّذِیْنَ قَالُوْا رَبُّنَا اللّٰهُ ثُمَّ اسْتَقَامُوْا تَتَنَزَّلُ عَلَیْهِمُ الْمَلٰٓىِٕكَةُ اَلَّا تَخَافُوْا وَلَا تَحْزَنُوْا وَاَبْشِرُوْا بِالْجَنَّةِ الَّتِیْ كُنْتُمْ تُوْعَدُوْنَ ۟
निःसंदेह जिन लोगों ने कहा : हमारा पालनहार केवल अल्लाह है, फिर उसपर मज़बूती से जमे रहे[9], उनपर फ़रिश्ते उतरते[10] हैं कि भय न करो और न शोकाकुल हो तथा उस जन्नत से खुश हो जाओ, जिसका तुमसे वादा किया जाता था।
9. अर्थात प्रत्येक दशा में आज्ञापालन तथा एकेश्वरवाद पर स्थिर रहे। 10. उनके मरण के समय।
Tafsiran larabci:
نَحْنُ اَوْلِیٰٓؤُكُمْ فِی الْحَیٰوةِ الدُّنْیَا وَفِی الْاٰخِرَةِ ۚ— وَلَكُمْ فِیْهَا مَا تَشْتَهِیْۤ اَنْفُسُكُمْ وَلَكُمْ فِیْهَا مَا تَدَّعُوْنَ ۟ؕ
हम सांसारिक जीवन में भी तुम्हारे सहायक हैं तथा आख़िरत में भी,और तुम्हारे लिए उस (जन्नत) में वह कुछ है, जो तुम्हारे दिल चाहेंगे तथा उसमें तुम्हारे लिए वह कुछ है, जिसकी तुम माँग करोगे।
Tafsiran larabci:
نُزُلًا مِّنْ غَفُوْرٍ رَّحِیْمٍ ۟۠
(यह) अति क्षमाशील, असीम दयावान् की ओर से आतिथ्य है।
Tafsiran larabci:
وَمَنْ اَحْسَنُ قَوْلًا مِّمَّنْ دَعَاۤ اِلَی اللّٰهِ وَعَمِلَ صَالِحًا وَّقَالَ اِنَّنِیْ مِنَ الْمُسْلِمِیْنَ ۟
और उस व्यक्ति से अच्छी बात किसकी हो सकती है, जिसने अल्लाह की ओर बुलाया तथा सत्कर्म किया और कहा : निःसंदेह मैं मुसलमानों (आज्ञाकारियों) में से हूँ।
Tafsiran larabci:
وَلَا تَسْتَوِی الْحَسَنَةُ وَلَا السَّیِّئَةُ ؕ— اِدْفَعْ بِالَّتِیْ هِیَ اَحْسَنُ فَاِذَا الَّذِیْ بَیْنَكَ وَبَیْنَهٗ عَدَاوَةٌ كَاَنَّهٗ وَلِیٌّ حَمِیْمٌ ۟
भलाई और बुराई बराबर नहीं हो सकते। आप बुराई को ऐसे तरीक़े से दूर करें जो सर्वोत्तम हो। तो सहसा वह व्यक्ति जिसके और आपके बीच बैर है, ऐसा हो जाएगा मानो वह हार्दिक मित्र है।[10]
10. इस आयत में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को तथा आपके माध्यम से सर्वसाधारण मुसलमानों को यह निर्देश दिया गया है कि बुराई का बदला अच्छाई से तथा अपकार का बदला उपकार से दें। जिसका प्रभाव यह होगा कि अपना शत्रु भी हार्दिक मित्र बन जाएगा।
Tafsiran larabci:
وَمَا یُلَقّٰىهَاۤ اِلَّا الَّذِیْنَ صَبَرُوْا ۚ— وَمَا یُلَقّٰىهَاۤ اِلَّا ذُوْ حَظٍّ عَظِیْمٍ ۟
और यह गुण उन्हीं लोगों को प्राप्त होता है, जो धैर्य से काम लेते हैं तथा यह उसी को प्राप्त होता है, जो बड़ा भाग्यशाली हो।
Tafsiran larabci:
وَاِمَّا یَنْزَغَنَّكَ مِنَ الشَّیْطٰنِ نَزْغٌ فَاسْتَعِذْ بِاللّٰهِ ؕ— اِنَّهٗ هُوَ السَّمِیْعُ الْعَلِیْمُ ۟
और यदि शैतान आपको उकसाए, तो अल्लाह से शरण माँगिए। निःसंदेह वह सब कुछ सुनने वाला, जानने वाला है।
Tafsiran larabci:
وَمِنْ اٰیٰتِهِ الَّیْلُ وَالنَّهَارُ وَالشَّمْسُ وَالْقَمَرُ ؕ— لَا تَسْجُدُوْا لِلشَّمْسِ وَلَا لِلْقَمَرِ وَاسْجُدُوْا لِلّٰهِ الَّذِیْ خَلَقَهُنَّ اِنْ كُنْتُمْ اِیَّاهُ تَعْبُدُوْنَ ۟
तथा उसकी निशानियों में से रात और दिन तथा सूरज और चाँद हैं। तुम न तो सूरज को सजदा करो और न चाँद को, और उस अल्लाह को सजदा करो, जिसने उन्हें पैदा किया है, यदि तुम उसी (अल्लाह) की इबादत करते हो।[11]
11. अर्थात सच्चा पूज्य अल्लाह के सिवा कोई नहीं है। ये सूर्य, चंद्रमा और अन्य आकाशीय ग्रहें अल्लाह के बनाए हुए हैं। और उसी के अधीन हैं। इसलिए इनको सजदा करना व्यर्थ है। और जो ऐसा करता है, वह अल्लाह के साथ उसकी बनाई हुई चीज़ को उसका साझी बनाता है, जो शिर्क और अक्षम्य पापा तथा अन्याय है। सजदा करना इबादत है, जो अल्लाह ही के लिए विशिष्ट है। इसीलिए कहा कि यदि अल्लाह ही की इबादत करते हो, तो सजदा भी उसी को करो। उसके सिवा कोई ऐसा नहीं जिसे सजदा करना उचित हो। क्योंकि सब अल्लाह के बनाए हुए हैं, सूर्य हो या कोई मनुष्य। सजदा आदर के लिए हो या इबादत (वंदना) के लिए। अल्लाह के सिवा किसी को भी सजदा करना अवैध तथा शिर्क है, जिसाका परिणाम सदैव के लिए नरक है। आयत 38 पूरी करके सजदा करें।
Tafsiran larabci:
فَاِنِ اسْتَكْبَرُوْا فَالَّذِیْنَ عِنْدَ رَبِّكَ یُسَبِّحُوْنَ لَهٗ بِالَّیْلِ وَالنَّهَارِ وَهُمْ لَا یَسْـَٔمُوْنَ ۟
फिर यदि वे अभिमान करें, तो जो (फ़रिश्ते) आपके पालनहार के पास हैं, वे रात दिन उसकी पवित्रता का वर्णन करते रहते हैं, और वे थकते नहीं हैं।
Tafsiran larabci:
وَمِنْ اٰیٰتِهٖۤ اَنَّكَ تَرَی الْاَرْضَ خَاشِعَةً فَاِذَاۤ اَنْزَلْنَا عَلَیْهَا الْمَآءَ اهْتَزَّتْ وَرَبَتْ ؕ— اِنَّ الَّذِیْۤ اَحْیَاهَا لَمُحْیِ الْمَوْتٰی ؕ— اِنَّهٗ عَلٰی كُلِّ شَیْءٍ قَدِیْرٌ ۟
तथा उसकी निशानियों में से है कि आप धरती को सूखी हुई (बंजर) देखते हैं। फिर जब हम उसपर बारिश बरसाते हैं, तो वह हरित हो जाती है और बढ़ने लगती है। निःसंदेह जिस (अल्लाह) ने उसे जीवित किया, वह मुर्दों को अवश्य जीवित करने वाला है। निःसंदेह वह हर चीज़ पर समार्थ्यवान् है।
Tafsiran larabci:
اِنَّ الَّذِیْنَ یُلْحِدُوْنَ فِیْۤ اٰیٰتِنَا لَا یَخْفَوْنَ عَلَیْنَا ؕ— اَفَمَنْ یُّلْقٰی فِی النَّارِ خَیْرٌ اَمْ مَّنْ یَّاْتِیْۤ اٰمِنًا یَّوْمَ الْقِیٰمَةِ ؕ— اِعْمَلُوْا مَا شِئْتُمْ ۙ— اِنَّهٗ بِمَا تَعْمَلُوْنَ بَصِیْرٌ ۟
निःसंदेह जो लोग हमारी आयतों में टेढ़ापन अपनाते हैं, वे हमसे छिपे हुए नहीं हैं। तो क्या जो व्यक्ति आग में डाला जाएगा, वह उत्तम है अथवा जो क़ियामत के दिन निश्चिंत होकर आएगा? तुम जो चाहो करो। निःसंदेह, तुम जो कुछ करते हो, वह उसे ख़ूब देखने वाला है।[12]
12. अर्थात तुम्हारे मनमानी करने का कुफल तुम्हें अवश्य देगा।
Tafsiran larabci:
اِنَّ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا بِالذِّكْرِ لَمَّا جَآءَهُمْ ۚ— وَاِنَّهٗ لَكِتٰبٌ عَزِیْزٌ ۟ۙ
निःसंदेह जिन लोगों ने इस ज़िक्र (क़ुरआन) का इनकार किया, जब वह उनके पास आया, (वे विनष्ट होने वाले हैं)। और निःसंदेह यह एक प्रभुत्वशाली पुस्तक है।
Tafsiran larabci:
لَّا یَاْتِیْهِ الْبَاطِلُ مِنْ بَیْنِ یَدَیْهِ وَلَا مِنْ خَلْفِهٖ ؕ— تَنْزِیْلٌ مِّنْ حَكِیْمٍ حَمِیْدٍ ۟
इसके पास झूठ न इसके आगे से आ सकता है और न इसके पीछे से। यह पूर्ण हिकमत वाले, सर्व प्रशंसित (अल्लाह) की ओर से अवतरित है।
Tafsiran larabci:
مَا یُقَالُ لَكَ اِلَّا مَا قَدْ قِیْلَ لِلرُّسُلِ مِنْ قَبْلِكَ ؕ— اِنَّ رَبَّكَ لَذُوْ مَغْفِرَةٍ وَّذُوْ عِقَابٍ اَلِیْمٍ ۟
आपसे वही कहा जा रहा है, जो आपसे पहले के रसूलों से कहा जा चुका है।[13] निःसंदेह आपका पालनहार निश्चय बड़ी क्षमा वाला और बहुत दुःखदायी यातना वाला है।
13. अर्थात उन्हें जादूगर, झूठा तथा कवि इत्यादि कहा गया। (देखिए : सूरतुज़्-ज़ारियात, आयत : 52-53)
Tafsiran larabci:
وَلَوْ جَعَلْنٰهُ قُرْاٰنًا اَعْجَمِیًّا لَّقَالُوْا لَوْلَا فُصِّلَتْ اٰیٰتُهٗ ؕ— ءَاَؔعْجَمِیٌّ وَّعَرَبِیٌّ ؕ— قُلْ هُوَ لِلَّذِیْنَ اٰمَنُوْا هُدًی وَّشِفَآءٌ ؕ— وَالَّذِیْنَ لَا یُؤْمِنُوْنَ فِیْۤ اٰذَانِهِمْ وَقْرٌ وَّهُوَ عَلَیْهِمْ عَمًی ؕ— اُولٰٓىِٕكَ یُنَادَوْنَ مِنْ مَّكَانٍ بَعِیْدٍ ۟۠
और यदि हम इसे ग़ैर अरबी क़ुरआन बनाते, तो वे अवश्य कहते कि इसकी आयतें क्यों नहीं खोलकर बयान की गईं? क्या (पुस्तक) ग़ैर अरबी है और (नबी) अरबी? आप कह दीजिए : वह उन लोगों के लिए जो ईमान लाए, मार्गदर्शन और आरोग्य है, तथा जो लोग ईमान नहीं लाते, उनके कानों में बोझ है और यह उनके हक़ में अंधेपन का कारण है। वे लोग ऐसे हैं जो दूर स्थान से पुकारे जा रहे हैं।[14]
14. अर्थात क़ुरआन से प्रभावित होने के लिए ईमान आवश्यक है। इसके बिना इसका कोई प्रभाव नहीं होता।
Tafsiran larabci:
وَلَقَدْ اٰتَیْنَا مُوْسَی الْكِتٰبَ فَاخْتُلِفَ فِیْهِ ؕ— وَلَوْلَا كَلِمَةٌ سَبَقَتْ مِنْ رَّبِّكَ لَقُضِیَ بَیْنَهُمْ وَاِنَّهُمْ لَفِیْ شَكٍّ مِّنْهُ مُرِیْبٍ ۟
और हमने मूसा को पुस्तक (तौरात) प्रदान की। तो उसमें मतभेद किया गया। और यदि आपके पालनहार की ओर से एक बात पहले ही से निर्धारित न होती[15], तो उनके बीच अवश्य निर्णय कर दिया गया होता। और निःसंदेह वे उस (कुरआन) के बारे में असमंजस में डाल देने वाले संदेह में पड़े हुए हैं।
15. अर्थात प्रलय के दिन निर्णय करने की, तो संसार ही में निर्णय कर दिया जाता और उन्हें कोई अवसर नहीं दिया जाता। (देखिए : सूरत फ़ातिर, आयत : 45)
Tafsiran larabci:
مَنْ عَمِلَ صَالِحًا فَلِنَفْسِهٖ ۚ— وَمَنْ اَسَآءَ فَعَلَیْهَا ؕ— وَمَا رَبُّكَ بِظَلَّامٍ لِّلْعَبِیْدِ ۟
जो व्यक्ति अच्छा कर्म करेगा, तो वह अपने ही लाभ के लिए करेगा और जो बुरा कार्य करेगा, तो उसका दुष्परिणाम उसी पर होगा और आपका पालनहार बंदों पर तनिक भी अत्याचार करने वाला नहीं है।[16]
16. अर्थात किसी को बिना पाप के यातना नहीं देता।
Tafsiran larabci:
اِلَیْهِ یُرَدُّ عِلْمُ السَّاعَةِ ؕ— وَمَا تَخْرُجُ مِنْ ثَمَرٰتٍ مِّنْ اَكْمَامِهَا وَمَا تَحْمِلُ مِنْ اُ وَلَا تَضَعُ اِلَّا بِعِلْمِهٖ ؕ— وَیَوْمَ یُنَادِیْهِمْ اَیْنَ شُرَكَآءِیْ ۙ— قَالُوْۤا اٰذَنّٰكَ ۙ— مَا مِنَّا مِنْ شَهِیْدٍ ۟ۚ
क़ियामत का ज्ञान उसी (अल्लाह) की ओर लौटाया जाता है। तथा जो भी फल अपने गाभों से निकलते हैं और जो भी मादा गर्भ धारण करती है और बच्चा जनती है, सबका उसे ज्ञान है। और जिस दिन वह उन्हें पुकारेगा : कहाँ हैं मेरे साझी? वे कहेंगे : हमने तुझे स्पष्ट कर दिया है कि हममें से कोई (इसकी) गवाही देने वाला नहीं है।
Tafsiran larabci:
وَضَلَّ عَنْهُمْ مَّا كَانُوْا یَدْعُوْنَ مِنْ قَبْلُ وَظَنُّوْا مَا لَهُمْ مِّنْ مَّحِیْصٍ ۟
और वे उनसे ग़ायब हो जाएँगे, जिन्हें वे इससे पूर्व पुकारते थे। तथा उन्हें यह विश्वास हो जाएगा कि उनके लिए भागने की कोई जगह नहीं है।
Tafsiran larabci:
لَا یَسْـَٔمُ الْاِنْسَانُ مِنْ دُعَآءِ الْخَیْرِ ؗ— وَاِنْ مَّسَّهُ الشَّرُّ فَیَـُٔوْسٌ قَنُوْطٌ ۟
मनुष्य भलाई माँगने से नहीं थकता और यदि उसे कोई बुराई पहुँच जाए, तो हताश और निराश[17] हो जाता है।
17. यह साधारण लोगों की दशा है। अन्यथा मुसलमान निराश नहीं होता।
Tafsiran larabci:
وَلَىِٕنْ اَذَقْنٰهُ رَحْمَةً مِّنَّا مِنْ بَعْدِ ضَرَّآءَ مَسَّتْهُ لَیَقُوْلَنَّ هٰذَا لِیْ ۙ— وَمَاۤ اَظُنُّ السَّاعَةَ قَآىِٕمَةً ۙ— وَّلَىِٕنْ رُّجِعْتُ اِلٰی رَبِّیْۤ اِنَّ لِیْ عِنْدَهٗ لَلْحُسْنٰی ۚ— فَلَنُنَبِّئَنَّ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا بِمَا عَمِلُوْا ؗ— وَلَنُذِیْقَنَّهُمْ مِّنْ عَذَابٍ غَلِیْظٍ ۟
और निश्चय यदि हम उसे, किसी तकलीफ़ के पश्चात् जो उसे पहुँची हो, अपनी रहमत का मज़ा चखाएँ, तो अवश्य कहेगा : यह मेरा हक़ है, और मैं नहीं समझता कि क़ियामत आने वाली है, और यदि मैं अपने पालनहार की ओर लौटाया गया, तो निश्चय ही मेरे लिए उसके पास अवश्य भलाई है। अतः हम निश्चय उन लोगों को जिन्होंने कुफ़्र किया अवश्य बता देंगे जो कुछ उन्होंने किया, तथा निश्चय हम उन्हें एक कठिन यातना अवश्य चखाएँगे।[18]
18. आयत का भावार्थ यह है कि काफ़िर की यह दशा होती है। उसे अल्लाह के यहाँ जाने का विश्वास नहीं होता। फिर यदि प्रलय का होना मान ले, तो भी इसी कुविचार में मग्न रहता है कि यदि अल्लाह ने मुझे संसार में सुख-सुविधा दी है, तो वहाँ भी अवश्य देगा। और यह नहीं समझता कि यहाँ उसे जो कुछ दिया गया है, वह परीक्षा के लिए दिया गया है। और प्रलय के दिन कर्मों के आधार पर प्रतिकार दिया जाएगा।
Tafsiran larabci:
وَاِذَاۤ اَنْعَمْنَا عَلَی الْاِنْسَانِ اَعْرَضَ وَنَاٰ بِجَانِبِهٖ ۚ— وَاِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ فَذُوْ دُعَآءٍ عَرِیْضٍ ۟
और जब हम इनसान पर उपकार करते हैं, तो वह मुँह फेर लेता है और दूर हो जाता है। तथा जब उसे बुराई पहुँचती है, तो लंबी-चौड़ी दुआएँ करने वाला हो जाता है।
Tafsiran larabci:
قُلْ اَرَءَیْتُمْ اِنْ كَانَ مِنْ عِنْدِ اللّٰهِ ثُمَّ كَفَرْتُمْ بِهٖ مَنْ اَضَلُّ مِمَّنْ هُوَ فِیْ شِقَاقٍ بَعِیْدٍ ۟
आप कह दें : मुझे बतलाओ कि यदि यह (क़ुरआन) अल्लाह की ओर से हुआ, फ़िर तुमने उसका इनकार कर दिया, तो उससे अधिक भटका हुआ कौन होगा, जो बहुत दूर के विरोध में पड़ा हो?
Tafsiran larabci:
سَنُرِیْهِمْ اٰیٰتِنَا فِی الْاٰفَاقِ وَفِیْۤ اَنْفُسِهِمْ حَتّٰی یَتَبَیَّنَ لَهُمْ اَنَّهُ الْحَقُّ ؕ— اَوَلَمْ یَكْفِ بِرَبِّكَ اَنَّهٗ عَلٰی كُلِّ شَیْءٍ شَهِیْدٌ ۟
शीघ्र ही हम उन्हें अपनी निशानियाँ संसार के किनारों में तथा स्वयं उनके भीतर दिखाएँगे, यहाँ तक कि उनके लिए स्पष्ट हो जाए कि निश्चय यही सत्य है।[19] और क्या आपका पालनहार प्रयाप्त नहीं इस बात के लिए कि निःसंदेह वह चीज़ पर गवाह है?
19. अर्थात् क़ुरआन। और निशानियों से अभिप्राय वह विजय है जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तथा आपके पश्चात् मुसलमानों को प्राप्त होंगी। जिनसे उन्हें विश्वास हो जाएगा कि क़ुरआन ही सत्य है। इस आयत का एक दूसरा भावार्थ यह भी लिया गया है कि अल्लाह इस संसार में तथा स्वयं तुम्हारे भीतर ऐसी निशानियाँ दिखाएगा। और यह निशानियाँ निरंतर वैज्ञानिक आविष्कारों द्वारा सामने आ रहीं हैं। और प्रलय तक आती रहेंगी जिनसे क़ुरआन पाक का सत्य होना सिद्ध होता रहेगा।
Tafsiran larabci:
اَلَاۤ اِنَّهُمْ فِیْ مِرْیَةٍ مِّنْ لِّقَآءِ رَبِّهِمْ ؕ— اَلَاۤ اِنَّهٗ بِكُلِّ شَیْءٍ مُّحِیْطٌ ۟۠
सुन लो! निश्चय वे लोग अपने पालनहार से मिलने के विषय में संदेह में हैं। सुन लो! निश्चय वह (अल्लाह) प्रत्येक वस्तु को घेरे हुए है।
Tafsiran larabci:
 
Fassarar Ma'anoni Sura: Suratu Fussilat
Teburin Jerin Sunayen Surori Lambar shafi
 
Fassarar Ma'anonin Alqura'ni - Fassara a Yaren Hindu - Teburin Bayani kan wasu Fassarori

ترجمة معاني القرآن الكريم إلى اللغة الهندية، ترجمها عزيز الحق العمري.

Rufewa