तथा उन्होंने[1] कहा : हमारे दिल उससे पर्दों में हैं, जिसकी ओर आप हमें बुला रहे हैं तथा हमारे कानों में बोझ (बहरापन) है तथा हमारे और आपके बीच एक ओट है। अतः आप अपना काम करें और हम अपना काम कर रहे हैं।
1. अर्थात मक्का के मुश्रिकों ने कहा कि यह एकेश्वरवाद की बात हमें समझ में नहीं आती। इसलिए आप हमें हमारे धर्म पर ही रहने दें।
आप कह दें कि मैं तो तुम्हारे ही जैसा एक इनसान हूँ। मेरी ओर वह़्य की जाती है कि तुम्हारा पूज्य मात्र एक ही पूज्य है। अतः सीधे उसी की ओर एकाग्र रहो तथा उससे क्षमा माँगो और साझी ठहराने वालों के लिए बड़ा विनाश है।
तथा उस (धरती) में उसके ऊपर से पर्वत बनाए, तथा उसमें बरकत रख दी और उसमें उसके वासियों के आहार चार[2] दिनों में निर्धारित किए, समान रूप[3] से, प्रश्न करने वालों के लिए।
2. अर्थात धरती को पैदा करने और फैलाने के कुल चार दिन हुए। 3. अर्थात धरती के सभी जीवों के आहार के संसाधन की व्यवस्था कर दी। और यह बात बता दी ताकि कोई प्रश्न करे तो उसे इसका ज्ञान करा दिया जाए।
फिर उसने आकाश की ओर रुख़ किया, जबकि वह धुआँ था। तो उसने उससे और धरती से कहा : तुम दोनों आओ, स्वेच्छा से या मजबूरी से। दोनों ने कहा : हम स्वेच्छा से आ गए।
फिर उसने उन्हें दो दिनों में सात आकाश बना दिए और प्रत्येक आकाश में उससे संबंधित काम की वह़्य की। तथा हमने निकटतम (निचले) आकाश को दीपों (चमकदार सितारों) से सुशोभित किया, तथा (उनके द्वारा) उसको सुरक्षित कर दिया।[4] यह अत्यंत प्रभुत्वशाली, सब कुछ जानने वाले (अल्लाह) की योजना है।
4. अर्थात शैतानों से सुरक्षित कर दिया। (देखिए : सूरतुस-साफ़्फ़ात, आयत 7 से 10 तक)।
जब उनके पास रसूल उनके आगे से तथा उनके पीछे से आए[5] (और कहा) कि अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करो। तो उन्होंने कहा : यदि हमारा पालनहार चाहता, तो किसी फ़रिश्ते को उतार देता।[6] अतः जिस बात के साथ तुम भेजे गए हो, हम उसका इनकार करते हैं।
5. अर्थात प्रत्येक प्रकार से समझाते रहे। 6. वे मनुष्य को रसूल मानने के लिए तैयार नहीं थे। (जिस प्रकार कुछ लोग जो रसूल को मानते हैं पर वे उन्हें मनुष्य मानने को तैयार नहीं हैं)। (देखिए : सूरतुल-अन्आम, आयत : 9-10, सूरतुल-मूमिनून, आयत : 24)
फिर रहे आद समुदाय के लोग, तो उन्होंने धरती में नाहक़ अभिमान किया तथा कहने लगे : कौन शक्ति में हमसे बढ़कर है? क्या उन्होंने नहीं देखा कि अल्लाह, जिसने उनको पैदा किया, वह शक्ति में उनसे बहुत बढ़कर है?! तथा वे हमारी आयतों का इनकार करते रहे।
अंततः, हमने कुछ अशुभ दिनों में उनपर प्रचंड वायु भेज दी। ताकि हम उन्हें सांसारिक जीवन में अपमानकारी यातना चखाएँ और आख़िरत (परलोक) की यातना तो और अधिक अपमानकारी है। तथा उन्हें कोई सहायता नहीं दी जाएगी।
और रहे समूद समुदाय के लोग, तो हमने उन्हें सीधा मार्ग दिखाया, परंतु उन्होंने मार्गदर्शन की अपेक्षा अंधेपन को पसंद किया। अंततः उन्हें अपमानकारी यातना की कड़क ने पकड़ लिया, उसके कारण जो वे कमा रहे थे।
और वे अपनी खालों से कहेंगे : तुमने हमारे विरुद्ध क्यों गवाही दी? तो वे उत्तर देंगी : हमें उसी अल्लाह ने बोलने की शक्ति प्रदान की, जिसने प्रत्येक वस्तु को बोलने की शक्ति दी है। तथा उसी ने तुम्हें प्रथम बार पैदा किया और तुम उसी की ओर लौटाए जाओगे।
तथा तुम (पाप करते समय) छिपते[7] भी नहीं थे कि कहीं तुम्हारे कान, तुम्हारी आँखें और तुम्हारी खालें तुम्हारे विरुद्ध गवाही न दे दें। बल्कि, तुम यह समझते रहे कि अल्लाह उनमें से अधिकतर बातों को जानता ही नहीं, जो तुम करते हो।
7. आदरणीय अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि ख़ाना काबा के पास एक घर में दो क़ुरैशी तथा एक सक़फ़ी अथवा दो सक़फ़ी और एक क़ुरैशी थे। तो एक ने दूसरे से कहा कि तुम समझते हो कि अल्लाह हमारी बातें सुन रहा है? किसी ने कहा : यदि कुछ सुनता है तो सब कुछ सुनता है। उसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4816, 4817, 7521)
और हमने उनके लिए कुछ साथी नियुक्त कर दिए, तो उन्होंने उनके अगले और पिछले कामों को उनके लिए शोभित बनाकर पेश किया। तथा उनपर भी जिन्नों और इनसानों के उन समूहों के साथ, जो उनसे पहले गुज़र चुके थे, अल्लाह (की यातना) का वादा सिद्ध हो गया। निश्चय ही वे घाटा उठाने वाले थे।
अतः हम अवश्य ही उन लोगों को जो काफ़िर हो गए, कठोर यातना का मज़ा चखाएँगे, तथा निश्चय ही हम उन्हें उन दुष्कर्मों का बदला अवश्य देंगे, जो वे किया करते थे।
तथा जिन लोगों ने कुफ़्र किया, वे कहेंगे : ऐ हमारे पालनहर! हमें जिन्नों और इनसानों में से वे लोग दिखा दे, जिन्होंने हमें गुमराह किया था, हम उन्हें अपने पैरों तले रौंद डालें। ताकि वे सबसे निचले लोगों में से हो जाएँ।
निःसंदेह जिन लोगों ने कहा : हमारा पालनहार केवल अल्लाह है, फिर उसपर मज़बूती से जमे रहे[9], उनपर फ़रिश्ते उतरते[10] हैं कि भय न करो और न शोकाकुल हो तथा उस जन्नत से खुश हो जाओ, जिसका तुमसे वादा किया जाता था।
9. अर्थात प्रत्येक दशा में आज्ञापालन तथा एकेश्वरवाद पर स्थिर रहे। 10. उनके मरण के समय।
हम सांसारिक जीवन में भी तुम्हारे सहायक हैं तथा आख़िरत में भी,और तुम्हारे लिए उस (जन्नत) में वह कुछ है, जो तुम्हारे दिल चाहेंगे तथा उसमें तुम्हारे लिए वह कुछ है, जिसकी तुम माँग करोगे।
भलाई और बुराई बराबर नहीं हो सकते। आप बुराई को ऐसे तरीक़े से दूर करें जो सर्वोत्तम हो। तो सहसा वह व्यक्ति जिसके और आपके बीच बैर है, ऐसा हो जाएगा मानो वह हार्दिक मित्र है।[10]
10. इस आयत में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को तथा आपके माध्यम से सर्वसाधारण मुसलमानों को यह निर्देश दिया गया है कि बुराई का बदला अच्छाई से तथा अपकार का बदला उपकार से दें। जिसका प्रभाव यह होगा कि अपना शत्रु भी हार्दिक मित्र बन जाएगा।
तथा उसकी निशानियों में से रात और दिन तथा सूरज और चाँद हैं। तुम न तो सूरज को सजदा करो और न चाँद को, और उस अल्लाह को सजदा करो, जिसने उन्हें पैदा किया है, यदि तुम उसी (अल्लाह) की इबादत करते हो।[11]
11. अर्थात सच्चा पूज्य अल्लाह के सिवा कोई नहीं है। ये सूर्य, चंद्रमा और अन्य आकाशीय ग्रहें अल्लाह के बनाए हुए हैं। और उसी के अधीन हैं। इसलिए इनको सजदा करना व्यर्थ है। और जो ऐसा करता है, वह अल्लाह के साथ उसकी बनाई हुई चीज़ को उसका साझी बनाता है, जो शिर्क और अक्षम्य पापा तथा अन्याय है। सजदा करना इबादत है, जो अल्लाह ही के लिए विशिष्ट है। इसीलिए कहा कि यदि अल्लाह ही की इबादत करते हो, तो सजदा भी उसी को करो। उसके सिवा कोई ऐसा नहीं जिसे सजदा करना उचित हो। क्योंकि सब अल्लाह के बनाए हुए हैं, सूर्य हो या कोई मनुष्य। सजदा आदर के लिए हो या इबादत (वंदना) के लिए। अल्लाह के सिवा किसी को भी सजदा करना अवैध तथा शिर्क है, जिसाका परिणाम सदैव के लिए नरक है। आयत 38 पूरी करके सजदा करें।
तथा उसकी निशानियों में से है कि आप धरती को सूखी हुई (बंजर) देखते हैं। फिर जब हम उसपर बारिश बरसाते हैं, तो वह हरित हो जाती है और बढ़ने लगती है। निःसंदेह जिस (अल्लाह) ने उसे जीवित किया, वह मुर्दों को अवश्य जीवित करने वाला है। निःसंदेह वह हर चीज़ पर समार्थ्यवान् है।
निःसंदेह जो लोग हमारी आयतों में टेढ़ापन अपनाते हैं, वे हमसे छिपे हुए नहीं हैं। तो क्या जो व्यक्ति आग में डाला जाएगा, वह उत्तम है अथवा जो क़ियामत के दिन निश्चिंत होकर आएगा? तुम जो चाहो करो। निःसंदेह, तुम जो कुछ करते हो, वह उसे ख़ूब देखने वाला है।[12]
12. अर्थात तुम्हारे मनमानी करने का कुफल तुम्हें अवश्य देगा।
और यदि हम इसे ग़ैर अरबी क़ुरआन बनाते, तो वे अवश्य कहते कि इसकी आयतें क्यों नहीं खोलकर बयान की गईं? क्या (पुस्तक) ग़ैर अरबी है और (नबी) अरबी? आप कह दीजिए : वह उन लोगों के लिए जो ईमान लाए, मार्गदर्शन और आरोग्य है, तथा जो लोग ईमान नहीं लाते, उनके कानों में बोझ है और यह उनके हक़ में अंधेपन का कारण है। वे लोग ऐसे हैं जो दूर स्थान से पुकारे जा रहे हैं।[14]
14. अर्थात क़ुरआन से प्रभावित होने के लिए ईमान आवश्यक है। इसके बिना इसका कोई प्रभाव नहीं होता।
और हमने मूसा को पुस्तक (तौरात) प्रदान की। तो उसमें मतभेद किया गया। और यदि आपके पालनहार की ओर से एक बात पहले ही से निर्धारित न होती[15], तो उनके बीच अवश्य निर्णय कर दिया गया होता। और निःसंदेह वे उस (कुरआन) के बारे में असमंजस में डाल देने वाले संदेह में पड़े हुए हैं।
15. अर्थात प्रलय के दिन निर्णय करने की, तो संसार ही में निर्णय कर दिया जाता और उन्हें कोई अवसर नहीं दिया जाता। (देखिए : सूरत फ़ातिर, आयत : 45)
जो व्यक्ति अच्छा कर्म करेगा, तो वह अपने ही लाभ के लिए करेगा और जो बुरा कार्य करेगा, तो उसका दुष्परिणाम उसी पर होगा और आपका पालनहार बंदों पर तनिक भी अत्याचार करने वाला नहीं है।[16]
क़ियामत का ज्ञान उसी (अल्लाह) की ओर लौटाया जाता है। तथा जो भी फल अपने गाभों से निकलते हैं और जो भी मादा गर्भ धारण करती है और बच्चा जनती है, सबका उसे ज्ञान है। और जिस दिन वह उन्हें पुकारेगा : कहाँ हैं मेरे साझी? वे कहेंगे : हमने तुझे स्पष्ट कर दिया है कि हममें से कोई (इसकी) गवाही देने वाला नहीं है।
और निश्चय यदि हम उसे, किसी तकलीफ़ के पश्चात् जो उसे पहुँची हो, अपनी रहमत का मज़ा चखाएँ, तो अवश्य कहेगा : यह मेरा हक़ है, और मैं नहीं समझता कि क़ियामत आने वाली है, और यदि मैं अपने पालनहार की ओर लौटाया गया, तो निश्चय ही मेरे लिए उसके पास अवश्य भलाई है। अतः हम निश्चय उन लोगों को जिन्होंने कुफ़्र किया अवश्य बता देंगे जो कुछ उन्होंने किया, तथा निश्चय हम उन्हें एक कठिन यातना अवश्य चखाएँगे।[18]
18. आयत का भावार्थ यह है कि काफ़िर की यह दशा होती है। उसे अल्लाह के यहाँ जाने का विश्वास नहीं होता। फिर यदि प्रलय का होना मान ले, तो भी इसी कुविचार में मग्न रहता है कि यदि अल्लाह ने मुझे संसार में सुख-सुविधा दी है, तो वहाँ भी अवश्य देगा। और यह नहीं समझता कि यहाँ उसे जो कुछ दिया गया है, वह परीक्षा के लिए दिया गया है। और प्रलय के दिन कर्मों के आधार पर प्रतिकार दिया जाएगा।
आप कह दें : मुझे बतलाओ कि यदि यह (क़ुरआन) अल्लाह की ओर से हुआ, फ़िर तुमने उसका इनकार कर दिया, तो उससे अधिक भटका हुआ कौन होगा, जो बहुत दूर के विरोध में पड़ा हो?
शीघ्र ही हम उन्हें अपनी निशानियाँ संसार के किनारों में तथा स्वयं उनके भीतर दिखाएँगे, यहाँ तक कि उनके लिए स्पष्ट हो जाए कि निश्चय यही सत्य है।[19] और क्या आपका पालनहार प्रयाप्त नहीं इस बात के लिए कि निःसंदेह वह चीज़ पर गवाह है?
19. अर्थात् क़ुरआन। और निशानियों से अभिप्राय वह विजय है जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तथा आपके पश्चात् मुसलमानों को प्राप्त होंगी। जिनसे उन्हें विश्वास हो जाएगा कि क़ुरआन ही सत्य है। इस आयत का एक दूसरा भावार्थ यह भी लिया गया है कि अल्लाह इस संसार में तथा स्वयं तुम्हारे भीतर ऐसी निशानियाँ दिखाएगा। और यह निशानियाँ निरंतर वैज्ञानिक आविष्कारों द्वारा सामने आ रहीं हैं। और प्रलय तक आती रहेंगी जिनसे क़ुरआन पाक का सत्य होना सिद्ध होता रहेगा।
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