Traduzione dei Significati del Sacro Corano - الترجمة الهندية للمختصر في تفسير القرآن الكريم * - Indice Traduzioni


Traduzione dei significati Versetto: (75) Sura: Al-Isrâ’
اِذًا لَّاَذَقْنٰكَ ضِعْفَ الْحَیٰوةِ وَضِعْفَ الْمَمَاتِ ثُمَّ لَا تَجِدُ لَكَ عَلَیْنَا نَصِیْرًا ۟
और यदि आप उनके प्रस्तावों की ओर झुक जाते, तो हम आपको दुनिया के जीवन में तथा आखिरत में दुगुनी यातना से पीड़ित करते। फिर आपको कोई सहायक न मिलता, जो हमारे विरुद्ध आपकी सहायता करे और आपकी पीड़ा को दूर करे।
Esegesi in lingua araba:
Alcuni insegnamenti da trarre da questi versi sono:
• الإنسان كفور للنعم إلا من هدى الله.
• इनसान अल्लाह की नेमतों के प्रति बहुत अकृतज्ञ है, सिवाय उसके जिसे अल्लाह रास्ता दिखा दे।

• كل أمة تُدْعَى إلى دينها وكتابها، هل عملت به أو لا؟ والله لا يعذب أحدًا إلا بعد قيام الحجة عليه ومخالفته لها.
• हर समुदाय को उसके धर्म एवं पुस्तक की ओर बुलाया जाएगा कि क्या उसने उसके अनुसार कार्य किया या नहीं? और अल्लाह किसी को उस समय तक यातना नहीं देता, जब तक कि उसपर तर्क स्थापित न हो जाए और वह उसका उल्लंघन करे।

• عداوة المجرمين والمكذبين للرسل وورثتهم ظاهرة بسبب الحق الذي يحملونه، وليس لذواتهم.
• रसूलों और उनके उत्तराधिकारियों से अपराधियों और झुठलाने वालों की शत्रुता उस सत्य के कारण स्पष्ट और प्रत्यक्ष है, जिसके वे वाहक होते हैं। उनसे कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं होती।

• الله تعالى عصم النبي من أسباب الشر ومن البشر، فثبته وهداه الصراط المستقيم، ولورثته مثل ذلك على حسب اتباعهم له.
• अल्लाह ने अपने नबी की, बुराई के कारणों से तथा मनुष्यों से रक्षा की। चुनाँचे आपको सुदृढ़ रखा और सीधा मार्ग दिखाया। तथा आपके उत्तराधिकारियों के साथ भी यही मामला उनके नबी का अनुसरण करने के हिसाब से होगा।

 
Traduzione dei significati Versetto: (75) Sura: Al-Isrâ’
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الترجمة الهندية للمختصر في تفسير القرآن الكريم، صادر عن مركز تفسير للدراسات القرآنية.

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