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51 : 28

وَلَقَدْ وَصَّلْنَا لَهُمُ الْقَوْلَ لَعَلَّهُمْ یَتَذَكَّرُوْنَ ۟ؕ

निःसंदेह हमने मुश्रिकों और बनी इसराईल के यहूदियों को पिछली जातियों की कहानियों और उस यातना की बात निरंतर पहुँचा दी, जो हमने उनपर उतारी जब उन्होंने हमारे रसूलों को झुठलाया; इस आशा में कि वे इससे उपदेश ग्रहण करते हुए ईमान ले आएँ। ताकि उन्हें (भी) उस यातना का सामना न करना पड़े, जो पिछले समुदायों को पहुँची थी। info
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52 : 28

اَلَّذِیْنَ اٰتَیْنٰهُمُ الْكِتٰبَ مِنْ قَبْلِهٖ هُمْ بِهٖ یُؤْمِنُوْنَ ۟

जो लोग क़ुरआन के अवतरण से पहले तौरात पर ईमान रखने में दृढ़ थे, वे क़ुरआन पर ईमान लाते हैं। क्योंकि वे अपनी किताबों में इसकी सूचना और वर्णन पाते हैं। info
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53 : 28

وَاِذَا یُتْلٰی عَلَیْهِمْ قَالُوْۤا اٰمَنَّا بِهٖۤ اِنَّهُ الْحَقُّ مِنْ رَّبِّنَاۤ اِنَّا كُنَّا مِنْ قَبْلِهٖ مُسْلِمِیْنَ ۟

जब उनके सामने क़ुरआन पढ़ा जाता है, तो कहते हैं : हम इसपर ईमान लाए। निश्चय यह निर्विवाद सत्य है, जो हमारे रब की ओर से उतारा गया है। निःसंदेह इस क़ुरआन से पहले हम मुसलमान थे। क्योंकि इससे पहले रसूल जो कुछ लाए थे, हम उसपर ईमान रखते थे। info
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54 : 28

اُولٰٓىِٕكَ یُؤْتَوْنَ اَجْرَهُمْ مَّرَّتَیْنِ بِمَا صَبَرُوْا وَیَدْرَءُوْنَ بِالْحَسَنَةِ السَّیِّئَةَ وَمِمَّا رَزَقْنٰهُمْ یُنْفِقُوْنَ ۟

उपर्युक्त गुणों के साथ वर्णित लोगों को अल्लाह उनके कर्मों का दोहरा सवाब देगा। इस कारण कि उन्होंने अपनी किताब पर ईमान रखने में धैर्य रखा और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के नबी बनाए जाने के पश्चात उनपर भी ईमान लाए। तथा वे अपने अच्छे कर्मों के साथ उन पापों को दूर करते हैं, जो उन्होंने कमाए हैं, तथा जो कुछ हमने उन्हें दिया है, उसमें से भलाई के कामों में खर्च करते हैं। info
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55 : 28

وَاِذَا سَمِعُوا اللَّغْوَ اَعْرَضُوْا عَنْهُ وَقَالُوْا لَنَاۤ اَعْمَالُنَا وَلَكُمْ اَعْمَالُكُمْ ؗ— سَلٰمٌ عَلَیْكُمْ ؗ— لَا نَبْتَغِی الْجٰهِلِیْنَ ۟

और जब किताब वाले लोगों में से ये ईमान वाले कोई व्यर्थ बात सुनते हैं, तो उसपर ध्यान दिए बिना उससे किनारा कर लेते हैं और अपने साथियों को संबोधित करके कहते हैं : हमारे लिए हमारे कर्मों का प्रतिफल है और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्मों का प्रतिफल। तुम हमारी ओर से अपशब्द और कष्ट से सुरक्षित हो। हम जाहिलों की संगत नहीं चाहते। क्योंकि इसमें धर्म और दुनिया की हानि और कष्ट है। info
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56 : 28

اِنَّكَ لَا تَهْدِیْ مَنْ اَحْبَبْتَ وَلٰكِنَّ اللّٰهَ یَهْدِیْ مَنْ یَّشَآءُ ۚ— وَهُوَ اَعْلَمُ بِالْمُهْتَدِیْنَ ۟

(ऐ रसूल!) आप जिसे चाहें, जैसे अबू तालिब आदि, उसे ईमान का सामर्थ्य प्रदान करके मार्गदर्शन पर नहीं ला सकते। लेकिन केवल अल्लाह ही है, जो जिसे चाहता है मार्गदर्शन का सामर्थ्य प्रदान करता है। तथा वह उसे सबसे अधिक जानने वाला है, जो उसके पूर्व ज्ञान के अनुसार सीधे रास्ते पर चलने वालों में से है। info
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57 : 28

وَقَالُوْۤا اِنْ نَّتَّبِعِ الْهُدٰی مَعَكَ نُتَخَطَّفْ مِنْ اَرْضِنَا ؕ— اَوَلَمْ نُمَكِّنْ لَّهُمْ حَرَمًا اٰمِنًا یُّجْبٰۤی اِلَیْهِ ثَمَرٰتُ كُلِّ شَیْءٍ رِّزْقًا مِّنْ لَّدُنَّا وَلٰكِنَّ اَكْثَرَهُمْ لَا یَعْلَمُوْنَ ۟

मक्का के मुश्रिकों ने इस्लाम का पालन करने और उसपर ईमान लाने से बहाना करते हुए कहा : यदि हम इस इस्लाम का पालन करें जो आप लाए हैं, तो बहुत जल्द हमारे दुश्मन हमें हमारी भूमि से उठा ले जाएँगे। क्या हमने उन्हें ऐसे हरम में ठिकाना नहीं दिया, जिसमें रक्तपात और अत्याचार निषिद्ध है, जिसमें वे दूसरों के आक्रमण से सुरक्षित रहते हैं। जहाँ हर चीज़ के फल हमारी ओर से जीविका के तौर पर लाए जाते हैं?! परंतु उनमें से अधिकांश लोग अपने ऊपर अल्लाह की नेमतों को जानते ही नहीं कि उनके लिए उसका आभार व्यक्त करें। info
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58 : 28

وَكَمْ اَهْلَكْنَا مِنْ قَرْیَةٍ بَطِرَتْ مَعِیْشَتَهَا ۚ— فَتِلْكَ مَسٰكِنُهُمْ لَمْ تُسْكَنْ مِّنْ بَعْدِهِمْ اِلَّا قَلِیْلًا ؕ— وَكُنَّا نَحْنُ الْوٰرِثِیْنَ ۟

कितनी ही बस्तियाँ ऐसी हैं, जिन्होंने अपने ऊपर अल्लाह की नेमतों का इनकार किया और पापों तथा अवज्ञा में हद से बढ़ गईं। तो हमने उनपर एक अज़ाब भेजकर उसके साथ उन्हें नष्ट कर दिया। तो ये उनके घर उजड़े पड़े हैं, जहाँ से लोग गुज़रते हैं, परंतु कुछ राहगीरों को छोड़कर यहाँ उनके बाद कोई निवास नहीं किया। और अंततः हम ही वारिस हैं, जो आसमानों और ज़मीन के और उनमें रहने वालों के वारिस होते हैं। info
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59 : 28

وَمَا كَانَ رَبُّكَ مُهْلِكَ الْقُرٰی حَتّٰی یَبْعَثَ فِیْۤ اُمِّهَا رَسُوْلًا یَّتْلُوْا عَلَیْهِمْ اٰیٰتِنَا ۚ— وَمَا كُنَّا مُهْلِكِی الْقُرٰۤی اِلَّا وَاَهْلُهَا ظٰلِمُوْنَ ۟

और (ऐ रसूल!) आपका रब बस्तियों को विनाश नहीं करता, जब तक कि उनमें से प्रमुख बस्ती में एक रसूल भेजकर उसके वासियों के बहाने को समाप्त न कर दे, जिस तरह कि उसने आपको उम्मुल-कु़रा अर्थात् मक्का में भेजा। तथा हम कभी बस्तियों के लोगों को नष्ट नहीं करते जबकि वे सत्य पर क़ायम रहने वाले हों। लेकिन यदि वे कुफ़्र और पाप करके अत्याचार करने वाले हो जाते हैं, तो हम उन्हें नष्ट कर देते हैं। info
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អំពី​អត្ថប្រយោជន៍​នៃវាក្យខណ្ឌទាំងនេះនៅលើទំព័រនេះ:
• فضل من آمن من أهل الكتاب بالنبي محمد صلى الله عليه وسلم، وأن له أجرين.
• किताब वालों में से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर ईमान लाने वाले की श्रेष्ठता और यह कि उसके लिए दोहरा सवाब है। info

• هداية التوفيق بيد الله لا بيد غيره من الرسل وغيرهم.
• सुपथ का सामर्थ्य प्रदान करने का मार्गदर्शन केवल अल्लाह के हाथ में है, उसके अलावा रसूलों और अन्य लोगों के हाथ में नहीं है। info

• اتباع الحق وسيلة للأمن لا مَبْعث على الخوف كما يدعي المشركون.
• सत्य का पालन करना सुरक्षा का एक साधन है, भय का कारण नहीं, जैसा कि बहुदेववादियों का दावा है। info

• خطر الترف على الفرد والمجتمع.
• व्यक्ति और समाज के लिए विलासिता का खतरा। info

• من رحمة الله أنه لا يهلك الناس إلا بعد الإعذار إليهم بإرسال الرسل.
• यह अल्लाह की दया है कि वह लोगों को रसूलों को भेजकर उनके बहाना को समाप्त करने के बीद ही विनष्ट करता है। info