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20 : 47

وَیَقُوْلُ الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَوْلَا نُزِّلَتْ سُوْرَةٌ ۚ— فَاِذَاۤ اُنْزِلَتْ سُوْرَةٌ مُّحْكَمَةٌ وَّذُكِرَ فِیْهَا الْقِتَالُ ۙ— رَاَیْتَ الَّذِیْنَ فِیْ قُلُوْبِهِمْ مَّرَضٌ یَّنْظُرُوْنَ اِلَیْكَ نَظَرَ الْمَغْشِیِّ عَلَیْهِ مِنَ الْمَوْتِ ؕ— فَاَوْلٰى لَهُمْ ۟ۚ

अल्लाह पर ईमान रखने वाले लोग (इस बात की कामना करते हुए कि अल्लाह अपने रसूल पर कोई सूरत उतारे, जिसमें लड़ाई के हुक्म का उल्लेख हो) कहते हैं : अल्लाह ने कोई सूरत क्यों नहीं उतारी, जिसमें युद्ध का उल्लेख हो? फिर जब अल्लाह युद्ध के उल्लेख पर आधारित अपनी व्याख्या और नियमों में अच्छी तरह से स्पष्ट कोई सूरत उतारता है, तो (ऐ रसूल!) आप उन मुनाफ़िक़ों को देखते हैं, जिनके दिलों में संदेह है, कि वे आपकी ओर उस व्यक्ति की तरह देखते हैं, जिसपर भय और डर की गंभीरता से बेहोशी छा गई हो। तो अल्लाह ने ऐसे लोगों को धमकी दी है कि उनके लड़ाई से पीछे हटने और उससे भय खाने के कारण उनकी यातना निकट आ चुकी है। info
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21 : 47

طَاعَةٌ وَّقَوْلٌ مَّعْرُوْفٌ ۫— فَاِذَا عَزَمَ الْاَمْرُ ۫— فَلَوْ صَدَقُوا اللّٰهَ لَكَانَ خَیْرًا لَّهُمْ ۟ۚ

अल्लाह के आदेश का पालन करना और भली बात कहना, उनके लिए अच्छा है। फिर जब लड़ना अनिवार्य हो जाए और उसके बिना कोई चारा न हो, तो यदि वे अल्लाह पर अपने ईमान के प्रति और उसकी आज्ञाकारिता में सच्चे रहें, तो यह उनके लिए निफ़ाक़ और अल्लाह के आदेशों की अवहेलना करने से बेहतर होगा। info
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22 : 47

فَهَلْ عَسَیْتُمْ اِنْ تَوَلَّیْتُمْ اَنْ تُفْسِدُوْا فِی الْاَرْضِ وَتُقَطِّعُوْۤا اَرْحَامَكُمْ ۟

यदि तुम अल्लाह पर ईमान लाने और उसकी आज्ञा मानने से दूर हो जाओ, तो तुम्हारी स्थिति पर यही प्रबल है कि तुम कुफ़्र और पापों के द्वारा धरती में बिगाड़ पैदा करोगे और रिश्तेदारी के बंधनों को तोड़ोगे; जैसा कि जाहिलिय्यत (इस्लाम से पूर्व) के समयकाल में तुम्हारी स्थिति थी। info
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23 : 47

اُولٰٓىِٕكَ الَّذِیْنَ لَعَنَهُمُ اللّٰهُ فَاَصَمَّهُمْ وَاَعْمٰۤی اَبْصَارَهُمْ ۟

ये धरती में बिगाड़ पैदा करने और रिश्ते-नातों को तोड़ने वाले ही वे लोग हैं, जिन्हें अल्लाह ने अपनी दया से दूर कर दिया, उनके कानों को स्वीकारने और अनुपालन करने के इरादे से सत्य को सुनने से बहरा कर दिया और उनकी आँखों को उसे सोच-विचार करने की दृष्टि से देखने से अंधा कर दिया। info
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24 : 47

اَفَلَا یَتَدَبَّرُوْنَ الْقُرْاٰنَ اَمْ عَلٰی قُلُوْبٍ اَقْفَالُهَا ۟

तो इन मुँह फेरने वालों ने क़ुरआन पर विचार क्यों नहीं किया और उस पर ध्यान क्यों नहीं दिया जो उसमें है?! यदि वे उसपर विचार करते, तो वह अवश्य उन्हें सभी अच्छाइयों का मार्गदर्शन करता और उन्हें सभी बुराइयों से दूर रखता। या फिर उनके दिलों पर मज़बूत ताले पड़े हुए हैं, जिसके कारण कोई उपदेश उन तक नहीं पहुँचता और न कोई याददहानी उन्हें लाभ देती है। info
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25 : 47

اِنَّ الَّذِیْنَ ارْتَدُّوْا عَلٰۤی اَدْبَارِهِمْ مِّنْ بَعْدِ مَا تَبَیَّنَ لَهُمُ الْهُدَی ۙ— الشَّیْطٰنُ سَوَّلَ لَهُمْ ؕ— وَاَمْلٰی لَهُمْ ۟

निश्चय जो लोग अपने ईमान से कुफ़्र और निफ़ाक़ की ओर फिर गए, इसके बाद कि उनपर तर्क स्थापित हो गया और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सच्चाई उनके लिए स्पष्ट हो गई। दरअसल शैतान ही है जिसने उनके लिए कुफ़्र और निफ़ाक़ को सुशोभित किया है और उसे उनके लिए आसान बना दिया है और उन्हें लंबी आशा दिलाई है। info
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26 : 47

ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ قَالُوْا لِلَّذِیْنَ كَرِهُوْا مَا نَزَّلَ اللّٰهُ سَنُطِیْعُكُمْ فِیْ بَعْضِ الْاَمْرِ ۚ— وَاللّٰهُ یَعْلَمُ اِسْرَارَهُمْ ۟

उन्हें गुमराही के रास्ते पर इसलिए डाल दिया गया, क्योंकि उन्होंने गुप्त रूप से उन मुश्रिकों से कहा, जिन्होंने अल्लाह की अपने रसूल पर उतारी हुई वह़्य (प्रकाशना) को नापसंद किया : हम कुछ मामलों में तुम्हारी बात मानेंगे, जैसे कि लड़ने से हतोत्साहित करना। और अल्लाह जानता है जो कुछ वे छिपाते और गुप्त रखते हैं, उससे कोई बात छिपी नहीं है। इसलिए वह उसमें से जो चाहता है, अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए प्रकट कर देता है। info
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27 : 47

فَكَیْفَ اِذَا تَوَفَّتْهُمُ الْمَلٰٓىِٕكَةُ یَضْرِبُوْنَ وُجُوْهَهُمْ وَاَدْبَارَهُمْ ۟

तो आप उसे कैसे देखते हैं जिस यातना और विकट स्थिति में वे उस समय होंगे, जब उनके प्राण निकालने पर नियुक्त फरिश्ते, उनके प्राण निकालते हुए, लोहे के हथोड़े से उनके चेहरों और पीठों पर मार रहे होंगे?! info
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28 : 47

ذٰلِكَ بِاَنَّهُمُ اتَّبَعُوْا مَاۤ اَسْخَطَ اللّٰهَ وَكَرِهُوْا رِضْوَانَهٗ فَاَحْبَطَ اَعْمَالَهُمْ ۟۠

यह यातना उन्हें इस कारण दी जाएगी कि उन्होंने हर उस चीज़ का अनुसरण किया जिसने अल्लाह को उनपर क्रोधित कर दिया, जैसे कुफ़्र, निफ़ाक़ तथा अल्लाह एवं उसके रसूल से दुश्मनी, और उस चीज़ को बुरा जाना, जो उन्हें उनके पालनहार के क़रीब लाती है और उनपर उसकी प्रसन्नता लाती है, जैसे अल्लाह पर ईमान लाना और उसके रसूल का अनुसरण करना। अतः अल्लाह ने उनके कर्मों को व्यर्थ कर दिया। info
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29 : 47

اَمْ حَسِبَ الَّذِیْنَ فِیْ قُلُوْبِهِمْ مَّرَضٌ اَنْ لَّنْ یُّخْرِجَ اللّٰهُ اَضْغَانَهُمْ ۟

क्या वे मुनाफ़िक़, जिनके दिलों में संदेह है, यह समझते हैं कि अल्लाह उनके द्वेष को बाहर नहीं निकालेगा और उन्हें प्रकट नहीं करेगा?! निश्चय अल्लाह विपत्तियों के द्वारा उन्हें अवश्य बाहर निकालेगा। ताकि सच्चे ईमान वाला झूठे से अलग हो जाए तथा ईमान वाला स्पष्ट हो जाए और मुनाफिक़ का पर्दाफाश हो जाए। info
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ក្នុង​ចំណោម​អត្ថប្រយោជន៍​នៃអាយ៉ាត់ទាំងនេះក្នុងទំព័រនេះ:
• التكليف بالجهاد في سبيل الله يميّز المنافقين من صفّ المؤمنين.
• अल्लाह के रास्ते में जिहाद का आदेश, ईमान वालों की पंक्तियों से मुनाफ़िक़ों को छाँटकर अलग कर देता है। info

• أهمية تدبر كتاب الله، وخطر الإعراض عنه.
• अल्लाह की किताब पर मनन करने का महत्व और उससे मुँह मोड़ने का खतरा। info

• الإفساد في الأرض وقطع الأرحام من أسباب قلة التوفيق والبعد عن رحمة الله.
• धरती में बिगाड़ पैदा करना और रिश्तेदारी के संबंधों को तोड़ना, अल्लाह की तौफ़ीक में कमी और उसकी दया से दूरी के कारणों में से है। info