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وَاَنْزَلَ الَّذِیْنَ ظَاهَرُوْهُمْ مِّنْ اَهْلِ الْكِتٰبِ مِنْ صَیَاصِیْهِمْ وَقَذَفَ فِیْ قُلُوْبِهِمُ الرُّعْبَ فَرِیْقًا تَقْتُلُوْنَ وَتَاْسِرُوْنَ فَرِیْقًا ۟ۚ
और अल्लाह ने उन किताब वालों को, जिन्होंने उन (काफ़िरों) की सहायता की थी, उनके क़िलों से उतार दिया तथा उनके दिलों में भय[18] डाल दिया। तुम उनके एक समूह को क़त्ल करते थे और एक समूह को बंदी बनाते थे।
18. इस आयत में बनी क़ुरैज़ा के युद्ध की ओर संकेत है। इस यहूदी क़बीले की नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ संधि थी। फिर भी उन्होंने संधि भंग करके खंदक़ के युद्ध में क़ुरैश मक्का का साथ दिया। अतः युद्ध समाप्त होते ही आपने उनसे युद्ध की घोषण कर दी। और उनकी घेराबंदी कर ली गई। पच्चीस दिन के बाद उन्होंने सा'द बिन मुआज़ को अपना मध्यस्थ मान लिया। और उनके निर्णय के अनुसार उनके लड़ाकुओं को वध कर दिया गया। और बच्चों, बूढ़ों तथा स्त्रियों को बंदी बना लिया गया। इस प्रकार मदीना से इस आतंकवादी क़बीले को सदैव के लिए समाप्त कर दिया गया।
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