ߞߎ߬ߙߣߊ߬ ߞߟߊߒߞߋ ߞߘߐ ߟߎ߬ ߘߟߊߡߌߘߊ - ߤߌ߲ߘߌߞߊ߲ ߘߟߊߡߌߘߊ * - ߘߟߊߡߌߘߊ ߟߎ߫ ߦߌ߬ߘߊ߬ߥߟߊ

XML CSV Excel API
Please review the Terms and Policies

ߞߘߐ ߟߎ߬ ߘߟߊߡߌ߬ߘߊ߬ߟߌ ߟߝߊߙߌ ߘߏ߫: (29) ߝߐߘߊ ߘߏ߫: ߞߙߎߞߊ ߟߎ߬ ߝߐߘߊ
وَاِنْ كُنْتُنَّ تُرِدْنَ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ وَالدَّارَ الْاٰخِرَةَ فَاِنَّ اللّٰهَ اَعَدَّ لِلْمُحْسِنٰتِ مِنْكُنَّ اَجْرًا عَظِیْمًا ۟
और यदि तुम अल्लाह और उसके रसूल तथा आख़िरत के घर को चाहती हो, तो अल्लाह ने तुममें से अच्छे कार्य करने वालियों के लिए बहुत बड़ा बदला[19] तैयार कर रखा है।
19. इस आयत में अल्लाह ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को यह आदेश दिया है कि आपकी पत्नियाँ जो आपसे गुजारा भत्ता बढ़ाने की माँग कर रही हैं, तो आप उन्हें अपने साथ रहने या न रहने का अधिकार दे दें। और जब आपने उन्हें अधिकार दिया, तो सबने आपके साथ रहने का निर्णय किया। इसको इस्लामी विधान में (तख़्यीर) कहा जाता है। अर्थात पत्नी को तलाक़ लेने का अधिकार दे देना। ह़दीस में है कि जब यह आयत उतरी तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपनी पत्नी आयशा से पहले कहा कि मैं तुम्हें एक बात बता रहा हूँ। तुम अपने माता-पिता से परामर्श किए बिना जल्दी न करना। फिर आपने यह आयत सुनाई। तो आयशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) ने कहा : मैं इसके बारे में भी अपने माता-पिता से परामर्श करूँ? मैं अल्लाह तथा उसके रसूल और आख़िरत के घर को चाहती हूँ। और फिर आपकी दूसरी पत्नियों ने भी ऐसा ही किया। (देखिए : सह़ीह़ बुख़ारी : 4786)
ߊߙߊߓߎߞߊ߲ߡߊ ߞߘߐߦߌߘߊ ߟߎ߬:
 
ߞߘߐ ߟߎ߬ ߘߟߊߡߌ߬ߘߊ߬ߟߌ ߟߝߊߙߌ ߘߏ߫: (29) ߝߐߘߊ ߘߏ߫: ߞߙߎߞߊ ߟߎ߬ ߝߐߘߊ
ߝߐߘߊ ߟߎ߫ ߦߌ߬ߘߊ߬ߥߟߊ ߞߐߜߍ ߝߙߍߕߍ
 
ߞߎ߬ߙߣߊ߬ ߞߟߊߒߞߋ ߞߘߐ ߟߎ߬ ߘߟߊߡߌߘߊ - ߤߌ߲ߘߌߞߊ߲ ߘߟߊߡߌߘߊ - ߘߟߊߡߌߘߊ ߟߎ߫ ߦߌ߬ߘߊ߬ߥߟߊ

ߞߎ߬ߙߣߊ߬ ߞߟߊߒߞߋ ߘߟߊߡߌߘߊ ߤߌ߲ߘߌߞߊ߲ ߘߐ߫߸ ߊ߳ߺߊ߬ߺߗ߭ߺߌ߯ߺߗ߭ߎ߫ ߊ.ߟߑߤ߭ߊߞ߫ߞ߫ߌ߫ ߊ.ߟߑߊ߳ߡߊߙߌ߮ ߟߊ߫ ߘߟߊߡߌߘߊ ߟߋ߬.

ߘߊߕߎ߲߯ߠߌ߲