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ترجمة معاني القرآن الكريم - الترجمة الهندية - عزيز الحق العمري * - فهرس التراجم

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ترجمة معاني سورة: آل عمران   آية:
وَلِیُمَحِّصَ اللّٰهُ الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَیَمْحَقَ الْكٰفِرِیْنَ ۟
तथा ताकि अल्लाह ईमान वालों को विशुद्ध कर दे और काफ़िरों को विनष्ट कर दे।
التفاسير العربية:
اَمْ حَسِبْتُمْ اَنْ تَدْخُلُوا الْجَنَّةَ وَلَمَّا یَعْلَمِ اللّٰهُ الَّذِیْنَ جٰهَدُوْا مِنْكُمْ وَیَعْلَمَ الصّٰبِرِیْنَ ۟
क्या तुमने समझ रखा है कि जन्नत में प्रवेश कर जाओगे, जबकि अल्लाह ने अभी (परीक्षाकर) यह नहीं परखा है कि तुममें से कौन जिहाद करने वाले हैं और कौन (संकट के समय) डटे रहने वाले हैं?
التفاسير العربية:
وَلَقَدْ كُنْتُمْ تَمَنَّوْنَ الْمَوْتَ مِنْ قَبْلِ اَنْ تَلْقَوْهُ ۪— فَقَدْ رَاَیْتُمُوْهُ وَاَنْتُمْ تَنْظُرُوْنَ ۟۠
तथा तुम तो मौत की कामनाएँ कर[78] रहे थे, जब तक वह तुम्हारे सामने नहीं आई थी। लो, अब वह तुम्हारे सामने है, और तुम उसे देख रहे हो।
78. अर्थात अल्लाह की राह में शहीद हो जाने की।
التفاسير العربية:
وَمَا مُحَمَّدٌ اِلَّا رَسُوْلٌ ۚ— قَدْ خَلَتْ مِنْ قَبْلِهِ الرُّسُلُ ؕ— اَفَاۡىِٕنْ مَّاتَ اَوْ قُتِلَ انْقَلَبْتُمْ عَلٰۤی اَعْقَابِكُمْ ؕ— وَمَنْ یَّنْقَلِبْ عَلٰی عَقِبَیْهِ فَلَنْ یَّضُرَّ اللّٰهَ شَیْـًٔا ؕ— وَسَیَجْزِی اللّٰهُ الشّٰكِرِیْنَ ۟
और मुह़म्मद केवल एक रसूल हैं। उनसे पहले बहुत-से रसूल गुज़र चुके हैं। तो क्या यदि वह मर जाएँ अथवा मार दिए जाएँ, तो तुम अपनी एड़ियों के बल[79] फिर जाओगे? तथा जो अपनी एड़ियों के बल फिर जाएगा, वह अल्लाह का कुछ नहीं बिगाड़ेगा और अल्लाह शीघ्र ही आभारियों को बदला प्रदान करेगा।
79. अर्थात इस्लाम से फिर जाओगे। भावार्थ यह है कि सत्धर्म इस्लाम स्थायी है, नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के न रहने से समाप्त नहीं हो जाएगा। उह़ुद में जब किसी विरोधी ने यह बात उड़ाई कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मार दिए गए, तो यह सुन कर बहुत से मुसलमान हताश हो गए। कुछ ने कहा कि अब लड़ने से क्या लाभ? तथा मुनाफ़िक़ों ने कहा कि मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) नबी होते तो मार नहीं खाते। इस आयत में यह संकेत है कि दूसरे नबियों के समान आपको भी एक दिन संसार से जाना है। तो क्या तुम उन्हीं के लिए इस्लास को मानते हो और आप नहीं रहेंगे तो इस्लाम नहीं रहेगा?
التفاسير العربية:
وَمَا كَانَ لِنَفْسٍ اَنْ تَمُوْتَ اِلَّا بِاِذْنِ اللّٰهِ كِتٰبًا مُّؤَجَّلًا ؕ— وَمَنْ یُّرِدْ ثَوَابَ الدُّنْیَا نُؤْتِهٖ مِنْهَا ۚ— وَمَنْ یُّرِدْ ثَوَابَ الْاٰخِرَةِ نُؤْتِهٖ مِنْهَا ؕ— وَسَنَجْزِی الشّٰكِرِیْنَ ۟
किसी प्राणी के लिए यह संभव नहीं है कि अल्लाह की अनुमति के बिना मर जाए। मृत्यु का एक निर्धारित समय लिखा हुआ है। जो दुनिया का बदला चाहेगा, हम उसे इस दुनिया में से कुछ देंगे, तथा जो आख़िरत का बदला चाहेगा, हम उसे उसमें से देंगे, और हम शुक्र करने वालों को जल्द ही बदला देंगे।
التفاسير العربية:
وَكَاَیِّنْ مِّنْ نَّبِیٍّ قٰتَلَ ۙ— مَعَهٗ رِبِّیُّوْنَ كَثِیْرٌ ۚ— فَمَا وَهَنُوْا لِمَاۤ اَصَابَهُمْ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ وَمَا ضَعُفُوْا وَمَا اسْتَكَانُوْا ؕ— وَاللّٰهُ یُحِبُّ الصّٰبِرِیْنَ ۟
और कितने ही नबी थे, जिनके साथ होकर बहुत-से अल्लाह वालों ने युद्ध किया, तो उन्होंने अल्लाह के मार्ग में पहुँचने वाली मुसीबतों के कारण न हिम्मत हारी और न कमज़ोरी दिखाई और न वे (दुश्मन के सामने) झुके, तथा अल्लाह धैर्य रखने वालों से प्रेम करता है।
التفاسير العربية:
وَمَا كَانَ قَوْلَهُمْ اِلَّاۤ اَنْ قَالُوْا رَبَّنَا اغْفِرْ لَنَا ذُنُوْبَنَا وَاِسْرَافَنَا فِیْۤ اَمْرِنَا وَثَبِّتْ اَقْدَامَنَا وَانْصُرْنَا عَلَی الْقَوْمِ الْكٰفِرِیْنَ ۟
और उन्होंने इससे अधिक कुछ नहीं कहा कि : ऐ हमारे पालनहार! हमारे पापों को और हमारे मामले में हमसे होने वाली अति (ज़्यादती) को क्षमा कर दे। तथा हमारे पैरों को जमाए रख और काफ़िर क़ौम पर हमें विजय प्रदान कर।
التفاسير العربية:
فَاٰتٰىهُمُ اللّٰهُ ثَوَابَ الدُّنْیَا وَحُسْنَ ثَوَابِ الْاٰخِرَةِ ؕ— وَاللّٰهُ یُحِبُّ الْمُحْسِنِیْنَ ۟۠
तो अल्लाह ने उन्हें दुनिया का बदला तथा आख़िरत का अच्छा बदला प्रदान किया। तथा अल्लाह अच्छे काम करने वाले लोगों से प्रेम करता है।
التفاسير العربية:
 
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