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ترجمة معاني القرآن الكريم - الترجمة الهندية - عزيز الحق العمري * - فهرس التراجم

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ترجمة معاني سورة: آل عمران   آية:
وَمَاۤ اَصَابَكُمْ یَوْمَ الْتَقَی الْجَمْعٰنِ فَبِاِذْنِ اللّٰهِ وَلِیَعْلَمَ الْمُؤْمِنِیْنَ ۟ۙ
और दोनों गिरोहों के मुठभेड़ के दिन जो विपत्ति तुम्हें पहुँची है, वह अल्लाह के आदेश से पहुँची है। और ताकि वह (अल्लाह) ईमान वालों को (अच्छी तरह) जान ले।
التفاسير العربية:
وَلِیَعْلَمَ الَّذِیْنَ نَافَقُوْا ۖۚ— وَقِیْلَ لَهُمْ تَعَالَوْا قَاتِلُوْا فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ اَوِ ادْفَعُوْا ؕ— قَالُوْا لَوْ نَعْلَمُ قِتَالًا لَّاتَّبَعْنٰكُمْ ؕ— هُمْ لِلْكُفْرِ یَوْمَىِٕذٍ اَقْرَبُ مِنْهُمْ لِلْاِیْمَانِ ۚ— یَقُوْلُوْنَ بِاَفْوَاهِهِمْ مَّا لَیْسَ فِیْ قُلُوْبِهِمْ ؕ— وَاللّٰهُ اَعْلَمُ بِمَا یَكْتُمُوْنَ ۟ۚ
और ताकि उन लगों को भी जान ले, जो मुनाफ़िक़ हैं, जिनसे कहा गया कि आओ अल्लाह की राह में युद्ध करो अथवा (आम मुसलमानों की) रक्षा करो, तो उन्होंने कहा कि यदि हम जानते कि युद्ध होगा, तो अवश्य तुम्हारा साथ देते। वे उस दिन ईमान की अपेक्षा कुफ़्र के अधिक निकट थे। वे अपने मुँह से ऐसी बातें बोलते हैं, जो उनके दिलों में नहीं होती। तथा अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है जो वे छिपाते हैं।
التفاسير العربية:
اَلَّذِیْنَ قَالُوْا لِاِخْوَانِهِمْ وَقَعَدُوْا لَوْ اَطَاعُوْنَا مَا قُتِلُوْا ؕ— قُلْ فَادْرَءُوْا عَنْ اَنْفُسِكُمُ الْمَوْتَ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِیْنَ ۟
ये वही लोग हैं जो स्वयं तो (लड़ाई से) पीछे बैठे रहे और अपने भाइयों के बारे में कहने लगे : यदि वे हमारी बात मानते, तो मारे न जाते! (ऐ नबी!) कह दीजिए : फिर तो मौत[92] से अपनी रक्षा कर लो, यदि तुम सच्चे हो।
92. अर्थात अपने उपाय से सदाजीवी हो जाओ।
التفاسير العربية:
وَلَا تَحْسَبَنَّ الَّذِیْنَ قُتِلُوْا فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ اَمْوَاتًا ؕ— بَلْ اَحْیَآءٌ عِنْدَ رَبِّهِمْ یُرْزَقُوْنَ ۟ۙ
जो लोग अल्लाह के मार्ग में मारे गए हैं, उन्हें कदापि मृत न समझो, बल्कि वे जीवित[93] हैं, अपने पालनहार के पास रोज़ी दिए जाते हैं।
93. शहीदों का जीवन कैसा होता है? ह़दीस में है कि उनकी आत्माएँ हरे पक्षियों के भीतर रख दी जाती हैं और वे स्वर्ग में चुगते तथा आनंद लेते फिरते हैं। (सह़ीह़ मुस्लिम, ह़दीस : 1887)
التفاسير العربية:
فَرِحِیْنَ بِمَاۤ اٰتٰىهُمُ اللّٰهُ مِنْ فَضْلِهٖ ۙ— وَیَسْتَبْشِرُوْنَ بِالَّذِیْنَ لَمْ یَلْحَقُوْا بِهِمْ مِّنْ خَلْفِهِمْ ۙ— اَلَّا خَوْفٌ عَلَیْهِمْ وَلَا هُمْ یَحْزَنُوْنَ ۟ۘ
वे उससे प्रसन्न हैं, जो अल्लाह ने अपनी कृपा से उन्हें प्रदान किया है, और उन लोगों के लिए भी खुश हो रहे हैं, जो उनके पीछे[94] रह गए हैं, अभी उनसे मिले नहीं हैं कि उन्हें भी न कोई भय होगा और न वे दुःखी होंगे।
94. अर्थात उन मुजाहिदीन के लिए जो अभी संसार में जीवित रह गए हैं।
التفاسير العربية:
یَسْتَبْشِرُوْنَ بِنِعْمَةٍ مِّنَ اللّٰهِ وَفَضْلٍ ۙ— وَّاَنَّ اللّٰهَ لَا یُضِیْعُ اَجْرَ الْمُؤْمِنِیْنَ ۟
वे अल्लाह के अनुग्रह और उसकी कृपा से खुश हो रहे हैं और इससे कि अल्लाह ईमान वालों का बदला नष्ट नहीं करता।
التفاسير العربية:
اَلَّذِیْنَ اسْتَجَابُوْا لِلّٰهِ وَالرَّسُوْلِ مِنْ بَعْدِ مَاۤ اَصَابَهُمُ الْقَرْحُ ۛؕ— لِلَّذِیْنَ اَحْسَنُوْا مِنْهُمْ وَاتَّقَوْا اَجْرٌ عَظِیْمٌ ۟ۚ
जिन लोगों ने अल्लाह और रसूल की पुकार को स्वीकार[95] किया, इसके पश्चात् कि उन्हें आघात पहुँच चुका था। उनमें से सत्कर्म करने वालों और (अल्लाह से) डरने वालों के लिए महान प्रतिफल है।
95. जब काफ़िर उह़ुद से मक्का वापस हुए, तो मदीने से 30 मील दूर "रौह़ाअ" से फिर मदीना वापस आने का निश्चय किया। जब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को सूचना मिली, तो सेना ले कर "ह़मराउल असद" तक पहुँचे जिसे सुनकर वे भाग गए। इधर मुसलमान सफल वापस आए। इस आयत में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथियों की सराहना की गई है जिन्होंने उह़ुद में घाव खाने के पश्चात भी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का साथ दिया। ये आयतें इसी से संबंधित हैं।
التفاسير العربية:
اَلَّذِیْنَ قَالَ لَهُمُ النَّاسُ اِنَّ النَّاسَ قَدْ جَمَعُوْا لَكُمْ فَاخْشَوْهُمْ فَزَادَهُمْ اِیْمَانًا ۖۗ— وَّقَالُوْا حَسْبُنَا اللّٰهُ وَنِعْمَ الْوَكِیْلُ ۟
ये वही लोग हैं जिनसे लोगों ने कहा कि दुश्मनों ने तुम्हारे विरुद्ध सेना इकट्ठा कर ली है।[96] अतः उनसे डरो। तो इस (सूचना) ने उनके ईमान को और बढ़ा दिया और उन्होंने कहा : हमारे लिए अल्लाह काफ़ी है और वह बहुत अच्छा कार्यसाधक (काम बनाने वाला) है।
96. अर्थात शत्रु ने मक्का जाते हुए राह में सोचा कि मुसलमानों के परास्त हो जाने पर यह अच्छा अवसर था कि मदीने पर आक्रमण करके उनका उन्मू222लन कर दिया जाए, तथा वापस आने का निश्चय किया। (तफ़्सीर क़ुर्तुबी)
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