Firo maanaaji al-quraan tedduɗo oo - Firo enndiiwo * - Tippudi firooji ɗii

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Firo maanaaji Simoore: Simoore roɓo   Aaya:

सूरा अल्-इस्रा

سُبْحٰنَ الَّذِیْۤ اَسْرٰی بِعَبْدِهٖ لَیْلًا مِّنَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ اِلَی الْمَسْجِدِ الْاَقْصَا الَّذِیْ بٰرَكْنَا حَوْلَهٗ لِنُرِیَهٗ مِنْ اٰیٰتِنَا ؕ— اِنَّهٗ هُوَ السَّمِیْعُ الْبَصِیْرُ ۟
पवित्र है वह (अल्लाह) जो अपने बंदे[1] को रातों-रात मस्जिदे-हराम (काबा) से मस्जिदे-अक़सा तक ले गया, जिसके चारों ओर हमने बरकत रखी है। ताकि हम उसे अपनी कुछ निशानियाँ दिखाएँ। निःसंदेह वह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ देखने वाला है।
1. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को। इस आयत में उस सुप्रसिद्ध सत्य की चर्चा की गई है जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से संबंधित है। जिसे परिभाषिक रूप से "इस्रा" कहा जाता है। जिसका अर्थ है : रात की यात्रा। इसका सविस्तार विवरण ह़दीसों में किया गया है। भाष्यकारों के अनुसार हिजरत के कुछ पहले अल्लाह ने आपको रात्रि के कुछ भाग में मक्का से मस्जिदे-अक़सा तक, जो फ़िलस्तीन में है, यात्रा कराई। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का कथन है कि जब मक्का के मिश्रणवादियों ने मुझे झुठलाया, तो मैं ह़िज्र में (जो काबा का एक भाग है) खड़ा हो गया। और अल्लाह ने बैतुल मक़्दिस को मेरे लिए खोल दिया। और मैं उन्हें उसकी निशानियाँ देखकर बताने लगा। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस : 4710)
Faccirooji aarabeeji:
وَاٰتَیْنَا مُوْسَی الْكِتٰبَ وَجَعَلْنٰهُ هُدًی لِّبَنِیْۤ اِسْرَآءِیْلَ اَلَّا تَتَّخِذُوْا مِنْ دُوْنِیْ وَكِیْلًا ۟ؕ
और हमने मूसा को पुस्तक प्रदान की और उसे बनी इसराईल के लिए मार्गदर्शन का साधन बनाया कि मेरे सिवा किसी को कार्यसाधक[2] न बनाओ।
2. जिसपर निर्भर रहा जाए।
Faccirooji aarabeeji:
ذُرِّیَّةَ مَنْ حَمَلْنَا مَعَ نُوْحٍ ؕ— اِنَّهٗ كَانَ عَبْدًا شَكُوْرًا ۟
ऐ उनकी संतति जिन्हें हमने नूह़ के साथ (नौका) में सवार किया था! निःसंदेह वह बहुत आभार[3] प्रकट करने वाला बंदा था।
3. अतः ऐ सर्व मानव! तुम भी अल्लाह के उपकार के आभारी बनो।
Faccirooji aarabeeji:
وَقَضَیْنَاۤ اِلٰی بَنِیْۤ اِسْرَآءِیْلَ فِی الْكِتٰبِ لَتُفْسِدُنَّ فِی الْاَرْضِ مَرَّتَیْنِ وَلَتَعْلُنَّ عُلُوًّا كَبِیْرًا ۟
और हमने बनी इसराईल को उनकी पुस्तक में सूचित कर दिया था कि तुम इस धरती[4] में दो बार उपद्रव करोगे और बड़ी सरकशी करोगे।
4. अर्थात बैतुल-मक़्दिस में।
Faccirooji aarabeeji:
فَاِذَا جَآءَ وَعْدُ اُوْلٰىهُمَا بَعَثْنَا عَلَیْكُمْ عِبَادًا لَّنَاۤ اُولِیْ بَاْسٍ شَدِیْدٍ فَجَاسُوْا خِلٰلَ الدِّیَارِ وَكَانَ وَعْدًا مَّفْعُوْلًا ۟
तो जब उनमें से प्रथम (उपद्रव) का समय आया, तो हमने तुमपर अपने शक्तिशाली बंदों को भेज दिया, जो घरों के अंदर तक फैल गए। और यह वादा तो पूरा होना[5] ही था।
5. इससे अभिप्रेत बाबिल के राजा बुख़्तनस्सर का आक्रमण है जो लग भग छह सौ वर्ष पूर्व मसीह़ हुआ। इसराईलियों को बंदी बना कर इराक़ ले गया और बैतुल मुक़द्दस को तहस-नहस कर दिया।
Faccirooji aarabeeji:
ثُمَّ رَدَدْنَا لَكُمُ الْكَرَّةَ عَلَیْهِمْ وَاَمْدَدْنٰكُمْ بِاَمْوَالٍ وَّبَنِیْنَ وَجَعَلْنٰكُمْ اَكْثَرَ نَفِیْرًا ۟
फिर हमने तुम्हें पुनः उनपर प्रभुत्व प्रदान किया। तथा धनों और पुत्रों से तुम्हारी सहायता की। और तुम्हारी संख्या बहुत अधिक कर दी।
Faccirooji aarabeeji:
اِنْ اَحْسَنْتُمْ اَحْسَنْتُمْ لِاَنْفُسِكُمْ ۫— وَاِنْ اَسَاْتُمْ فَلَهَا ؕ— فَاِذَا جَآءَ وَعْدُ الْاٰخِرَةِ لِیَسُوْٓءٗا وُجُوْهَكُمْ وَلِیَدْخُلُوا الْمَسْجِدَ كَمَا دَخَلُوْهُ اَوَّلَ مَرَّةٍ وَّلِیُتَبِّرُوْا مَا عَلَوْا تَتْبِیْرًا ۟
यदि तुम भला करोगे, तो अपने ही लिए भला करोगे, और यदि तुम बुरा करोगे, तो अपने ही लिए (बुरा करोगे)। फिर जब दूसरे (उपद्रव) का समय आया (तो हमने तुम्हारे शत्रुओं को तुमपर हावी कर दिया) ताकि तुम्हें अपमानित करें और मस्जिद (अक़सा) में उसी तरह घुस जाएँ, जैसे प्रथम बार घुसे थे, और ताकि जो भी उनके हाथ आए, उसे पूर्ण रूप से नाश[6] कर दें।
6. जब बनी इसराईल पुनः पापाचारी बन गए, तो रोम के राजा क़ैसर ने लग-भग सन् 70 ई◦ में बैतुल्-मक़्दिस पर आक्रमण करके उनकी दुर्गत बना दी। और उनकी पुस्तक तौरात का नाश कर दिया और एक बड़ी संख्या को बंदी बना लिया। यह सब उनके कुकर्म के कारण हुआ।
Faccirooji aarabeeji:
عَسٰی رَبُّكُمْ اَنْ یَّرْحَمَكُمْ ۚ— وَاِنْ عُدْتُّمْ عُدْنَا ۘ— وَجَعَلْنَا جَهَنَّمَ لِلْكٰفِرِیْنَ حَصِیْرًا ۟
संभव है कि तुम्हारा पालनहार तुमपर दया करे। और यदि तुम दोबारा (उत्पात) करोगे, तो हम भी दोबारा[7] (दंडित) करेंगे। और हमने जहन्नम को काफ़िरों के लिए कारागार बना दिया है।
7. अर्थात सांसारिक दंड देने के लिए।
Faccirooji aarabeeji:
اِنَّ هٰذَا الْقُرْاٰنَ یَهْدِیْ لِلَّتِیْ هِیَ اَقْوَمُ وَیُبَشِّرُ الْمُؤْمِنِیْنَ الَّذِیْنَ یَعْمَلُوْنَ الصّٰلِحٰتِ اَنَّ لَهُمْ اَجْرًا كَبِیْرًا ۟ۙ
निःसंदेह यह क़ुरआन वह मार्ग दिखाता है, जो सबसे सीधा है और उन ईमान वालों को, जो अच्छे कर्म करते हैं, शुभ सूचना देता है कि उनके लिए बड़ा बदला है।
Faccirooji aarabeeji:
وَّاَنَّ الَّذِیْنَ لَا یُؤْمِنُوْنَ بِالْاٰخِرَةِ اَعْتَدْنَا لَهُمْ عَذَابًا اَلِیْمًا ۟۠
और जो लोग आख़िरत (परलोक) पर ईमान नहीं रखते, हमने उनके लिए दुःखदायी यातना तैयार कर रखी है।
Faccirooji aarabeeji:
وَیَدْعُ الْاِنْسَانُ بِالشَّرِّ دُعَآءَهٗ بِالْخَیْرِ ؕ— وَكَانَ الْاِنْسَانُ عَجُوْلًا ۟
और मनुष्य उसी प्रकार बुराई की दुआ माँगता[8] है, जैसे वह भलाई की दुआ माँगता है। और मनुष्य बड़ा ही जल्दबाज़ है।
8. अर्थात स्वयं को और अपने घराने को शापने लगता है।
Faccirooji aarabeeji:
وَجَعَلْنَا الَّیْلَ وَالنَّهَارَ اٰیَتَیْنِ فَمَحَوْنَاۤ اٰیَةَ الَّیْلِ وَجَعَلْنَاۤ اٰیَةَ النَّهَارِ مُبْصِرَةً لِّتَبْتَغُوْا فَضْلًا مِّنْ رَّبِّكُمْ وَلِتَعْلَمُوْا عَدَدَ السِّنِیْنَ وَالْحِسَابَ ؕ— وَكُلَّ شَیْءٍ فَصَّلْنٰهُ تَفْصِیْلًا ۟
और हमने रात तथा दिन को दो निशानियाँ बनाया। फिर हमने रात की निशानी को मिटा दिया (प्रकाशहीन कर दिया) तथा दिन की निशानी को प्रकाशमान बनाया। ताकि तुम अपने पालनहार का अनुग्रह (रोज़ी) तलाश करो और ताकि तुम वर्षों की गणना और हिसाब मालूम कर सको। तथा हमने प्रत्येक चीज़ का विस्तार के साथ वर्णन कर दिया है।
Faccirooji aarabeeji:
وَكُلَّ اِنْسَانٍ اَلْزَمْنٰهُ طٰٓىِٕرَهٗ فِیْ عُنُقِهٖ ؕ— وَنُخْرِجُ لَهٗ یَوْمَ الْقِیٰمَةِ كِتٰبًا یَّلْقٰىهُ مَنْشُوْرًا ۟
और हमने हर इनसान के (अच्छे-बुरे) कार्य को उसके गले से लगा दिया है। और क़ियामत के दिन हम उसके लिए एक किताब (कर्मपत्र) निकालेंगे, जिसे वह अपने सामने खुली हुई पाएगा।
Faccirooji aarabeeji:
اِقْرَاْ كِتٰبَكَ ؕ— كَفٰی بِنَفْسِكَ الْیَوْمَ عَلَیْكَ حَسِیْبًا ۟ؕ
अपनी किताब (कर्मपत्र) पढ़ ले। आज तू स्वयं अपना हिसाब लेने के लिए काफ़ी है।
Faccirooji aarabeeji:
مَنِ اهْتَدٰی فَاِنَّمَا یَهْتَدِیْ لِنَفْسِهٖ ۚ— وَمَنْ ضَلَّ فَاِنَّمَا یَضِلُّ عَلَیْهَا ؕ— وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِّزْرَ اُخْرٰی ؕ— وَمَا كُنَّا مُعَذِّبِیْنَ حَتّٰی نَبْعَثَ رَسُوْلًا ۟
जो मार्गदर्शन पा गया, तो वह अपने ही लिए मार्गदर्शन पाता है, और जो गुमराह हुआ, तो वह अपने आप ही पर गुमराह होता है। तथा कोई बोझ उठाने वाला दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा।[9] और हम (किसी को) यातना नहीं देते, जब तक कि कोई रसूल न भेज दें।[10]
9. आयत का भावार्थ यह है कि जो सदाचार करता है, वह किसी पर उपकार नहीं करता। बल्कि उसका लाभ उसी को मिलना है। और जो दुराचार करता है, उसका दंड भी उसी को भोगना है। 10. ताकि वे यह बहाना न कर सकें कि हमने सीधी राह को जाना ही नहीं था।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِذَاۤ اَرَدْنَاۤ اَنْ نُّهْلِكَ قَرْیَةً اَمَرْنَا مُتْرَفِیْهَا فَفَسَقُوْا فِیْهَا فَحَقَّ عَلَیْهَا الْقَوْلُ فَدَمَّرْنٰهَا تَدْمِیْرًا ۟
और जब हम किसी बस्ती को विनष्ट करना चाहते हैं, तो उसके संपन्न लोगों को आदेश[11] देते हैं। फिर वे उसमें अवज्ञा[12] करते हैं। अंततः उसपर यातना की बात सिद्ध हो जाती है। और हम उसका पूरी तरह उन्मूलन कर देते हैं।
11. अर्थात आज्ञापालन का। 12. अर्थात हमारी आज्ञा से निकल जाते हैं। आयत का भावार्थ यह है कि समाज के संपन्न लोगों का दुष्कर्म, अत्याचार और अवज्ञा पूरी बस्ती के विनाश का कारण बन जाती है।
Faccirooji aarabeeji:
وَكَمْ اَهْلَكْنَا مِنَ الْقُرُوْنِ مِنْ بَعْدِ نُوْحٍ ؕ— وَكَفٰی بِرَبِّكَ بِذُنُوْبِ عِبَادِهٖ خَبِیْرًا بَصِیْرًا ۟
और हमने नूह़ के पश्चात् बहुत-से समुदायों को विनष्ट कर दिया। और आपका पालनहार अपने बंदों के पापों की ख़बर रखने, देखने के लिए काफ़ी है।
Faccirooji aarabeeji:
مَنْ كَانَ یُرِیْدُ الْعَاجِلَةَ عَجَّلْنَا لَهٗ فِیْهَا مَا نَشَآءُ لِمَنْ نُّرِیْدُ ثُمَّ جَعَلْنَا لَهٗ جَهَنَّمَ ۚ— یَصْلٰىهَا مَذْمُوْمًا مَّدْحُوْرًا ۟
जो व्यक्ति जल्द प्राप्त होने वाली (दुनिया) चाहता है, तो हम उसे इसी (दुनिया) में जो चाहते हैं, जिसके लिए चाहते हैं जल्द ही दे देते हैं। फिर हमने उसके लिए (आख़िरत में) जहन्नम बना रखी है, जिसमें वह निंदित और धुत्कारा हुआ प्रवेश करेगा।
Faccirooji aarabeeji:
وَمَنْ اَرَادَ الْاٰخِرَةَ وَسَعٰی لَهَا سَعْیَهَا وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَاُولٰٓىِٕكَ كَانَ سَعْیُهُمْ مَّشْكُوْرًا ۟
तथा जो व्यक्ति आख़िरत चाहता है और उसके लिए प्रयास करता है, जबकि वह ईमान रखने वाला हो, तो वही लोग हैं, जिनके प्रयास का सम्मान किया जाएगा।
Faccirooji aarabeeji:
كُلًّا نُّمِدُّ هٰۤؤُلَآءِ وَهٰۤؤُلَآءِ مِنْ عَطَآءِ رَبِّكَ ؕ— وَمَا كَانَ عَطَآءُ رَبِّكَ مَحْظُوْرًا ۟
हम आपके पालनहार के अनुदान से प्रत्येक को प्रदान करते हैं, इनको भी और उनको भी। और आपके पालनहार का अनुदान किसी से रोका हुआ नहीं[13] है।
13. अर्थात अल्लाह संसार में सभी को जीविका प्रदान करता है।
Faccirooji aarabeeji:
اُنْظُرْ كَیْفَ فَضَّلْنَا بَعْضَهُمْ عَلٰی بَعْضٍ ؕ— وَلَلْاٰخِرَةُ اَكْبَرُ دَرَجٰتٍ وَّاَكْبَرُ تَفْضِیْلًا ۟
आप विचार करें कि हमने (संसार में) उनमें से कुछ को कुछ पर किस तरह श्रेष्ठता प्रदान की है? और निश्चय ही आख़िरत दर्जों में कहीं बढ़कर और श्रेष्ठता के एतिबार से बहुत बढ़कर है।
Faccirooji aarabeeji:
لَا تَجْعَلْ مَعَ اللّٰهِ اِلٰهًا اٰخَرَ فَتَقْعُدَ مَذْمُوْمًا مَّخْذُوْلًا ۟۠
(ऐ बंदे!) अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य न बना, अन्यथा तू निंदित और असहाय होकर रह जाएगा।
Faccirooji aarabeeji:
وَقَضٰی رَبُّكَ اَلَّا تَعْبُدُوْۤا اِلَّاۤ اِیَّاهُ وَبِالْوَالِدَیْنِ اِحْسَانًا ؕ— اِمَّا یَبْلُغَنَّ عِنْدَكَ الْكِبَرَ اَحَدُهُمَاۤ اَوْ كِلٰهُمَا فَلَا تَقُلْ لَّهُمَاۤ اُفٍّ وَّلَا تَنْهَرْهُمَا وَقُلْ لَّهُمَا قَوْلًا كَرِیْمًا ۟
और (ऐ बंदे) तेरे पालनहार ने आदेश दिया है कि उसके सिवा किसी की इबादत न करो, तथा माता-पिता के साथ अच्छा व्यवहार करो। यदि तेरे पास दोनों में से एक या दोनों वृद्धावस्था को पहुँच जाएँ, तो उन्हें 'उफ़' तक न कहो, और न उन्हें झिड़को, और उनसे नरमी से बात करो।
Faccirooji aarabeeji:
وَاخْفِضْ لَهُمَا جَنَاحَ الذُّلِّ مِنَ الرَّحْمَةِ وَقُلْ رَّبِّ ارْحَمْهُمَا كَمَا رَبَّیٰنِیْ صَغِیْرًا ۟ؕ
और दयालुता से उनके लिए विनम्रता की बाँहें झुकाए[14] रखो और कहो : ऐ मेरे पालनहार! उन दोनों पर दया कर, जैसे उन्होंने बचपन में मेरा पालन-पोषण किया।
14. अर्थात उनके साथ विनम्रता और दया का व्यवहार करो।
Faccirooji aarabeeji:
رَبُّكُمْ اَعْلَمُ بِمَا فِیْ نُفُوْسِكُمْ ؕ— اِنْ تَكُوْنُوْا صٰلِحِیْنَ فَاِنَّهٗ كَانَ لِلْاَوَّابِیْنَ غَفُوْرًا ۟
तुम्हारा पालनहार अधिक जानता है, जो कुछ तुम्हारे मन में है। यदि तुम सदाचारी होगे, तो वह (अपनी ओर) लौट आने वालों के लिए अति क्षमावान् है।
Faccirooji aarabeeji:
وَاٰتِ ذَا الْقُرْبٰی حَقَّهٗ وَالْمِسْكِیْنَ وَابْنَ السَّبِیْلِ وَلَا تُبَذِّرْ تَبْذِیْرًا ۟
और रिश्तेदारों को उनका हक़ दो, तथा निर्धन और यात्री को (भी) और अपव्यय[15] न करो।
15. अर्थात अवैध गतिविधियों पर या बिना सोचे-समझे वैध गतिविधियों पर खर्च न करो।
Faccirooji aarabeeji:
اِنَّ الْمُبَذِّرِیْنَ كَانُوْۤا اِخْوَانَ الشَّیٰطِیْنِ ؕ— وَكَانَ الشَّیْطٰنُ لِرَبِّهٖ كَفُوْرًا ۟
निःसंदेह अपव्यय करने वाले शैतान के भाई हैं। और शैतान अपने पालनहार का बहुत कृतघ्न है।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِمَّا تُعْرِضَنَّ عَنْهُمُ ابْتِغَآءَ رَحْمَةٍ مِّنْ رَّبِّكَ تَرْجُوْهَا فَقُلْ لَّهُمْ قَوْلًا مَّیْسُوْرًا ۟
और यदि तुम अपने पालनहार की दया की खोज में, जिसकी तुम आशा रखते हो, उनसे मुँह फेरो, तो (भी) उनसे विनम्र[16] बात कहो।
16. अर्थात उन्हें सरलता से समझा दो कि अभी कुछ नहीं है। जैसे ही कुछ आया तुम्हें अवश्य दूँगा।
Faccirooji aarabeeji:
وَلَا تَجْعَلْ یَدَكَ مَغْلُوْلَةً اِلٰی عُنُقِكَ وَلَا تَبْسُطْهَا كُلَّ الْبَسْطِ فَتَقْعُدَ مَلُوْمًا مَّحْسُوْرًا ۟
और न अपना हाथ अपनी गर्दन से बँधा[17] हुआ रखो, और न उसे पूरा खोल दो कि फिर निंदित, थका हारा (खाली हाथ) होकर बैठ रहो।
17. हाथ बाँधने और खोलने का अर्थ है, कृपणता तथा अपव्यय करना। इसमें व्यय और दान में संतुलन रखने की शिक्षा दी गई है।
Faccirooji aarabeeji:
اِنَّ رَبَّكَ یَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ یَّشَآءُ وَیَقْدِرُ ؕ— اِنَّهٗ كَانَ بِعِبَادِهٖ خَبِیْرًا بَصِیْرًا ۟۠
निःसंदेह आपका पालनहार जिसके लिए चाहता है, रोज़ी विस्तृत कर देता है, और (जिसके लिए चाहता है) तंग कर देता है। निःसंदेह वह अपने बंदों की पूरी ख़बर रखने वाला[18], सब कुछ देखने वाला है।[19]
18. अर्थात वह सब की दशा और कौन किसके योग्य है, देखता और जानता है। 19. ह़दीस में है शिर्क के बाद सबसे बड़ा पाप अपनी संतान को खिलाने के भय से मार डालना है। (बुख़ारी : 4477, मुस्लिम : 86)
Faccirooji aarabeeji:
وَلَا تَقْتُلُوْۤا اَوْلَادَكُمْ خَشْیَةَ اِمْلَاقٍ ؕ— نَحْنُ نَرْزُقُهُمْ وَاِیَّاكُمْ ؕ— اِنَّ قَتْلَهُمْ كَانَ خِطْاً كَبِیْرًا ۟
तथा अपनी संतान को गरीबी के भय से क़त्ल न करो। हम ही उन्हें रोज़ी प्रदान करते हैं और तुम्हें भी। निःसंदेह उनका क़त्ल बहुत बड़ा पाप है।
Faccirooji aarabeeji:
وَلَا تَقْرَبُوا الزِّنٰۤی اِنَّهٗ كَانَ فَاحِشَةً ؕ— وَسَآءَ سَبِیْلًا ۟
और व्यभिचार के निकट भी न जाओ। निःसंदेह वह निर्लज्जता (अश्लीलता) तथा बुरी राह है।
Faccirooji aarabeeji:
وَلَا تَقْتُلُوا النَّفْسَ الَّتِیْ حَرَّمَ اللّٰهُ اِلَّا بِالْحَقِّ ؕ— وَمَنْ قُتِلَ مَظْلُوْمًا فَقَدْ جَعَلْنَا لِوَلِیِّهٖ سُلْطٰنًا فَلَا یُسْرِفْ فِّی الْقَتْلِ ؕ— اِنَّهٗ كَانَ مَنْصُوْرًا ۟
और किसी (ऐसे) प्राणी को क़त्ल न करो, जिसे (क़त्ल करना) अल्लाह ने हराम किया है, परंतु अधिकार[20] के साथ। और जिसे अन्यायपूर्ण रूप से क़त्ल कर दिया जाए, तो हमने उसके उत्तराधिकारी को (बदला लेने का) अधिकार[21] दिया है। अतः वह क़त्ल (बदला लेने) में सीमा से आगे[22] न बढ़े। निश्चय वह मदद किया हुआ है।
20. अर्थात 'क़िसास' के तौर पर अथवा विवाहित होते हुए व्यभिचार के कारण, अथवा इस्लाम से फिर जाने के कारण। 21. अर्थात उसे यह अधिकार है कि वह 'क़िसास' के तौर पर हत्यारे को क़त्ल करने की माँग करे, या मुआवज़े के बिना क्षमा कर दे, या दियत (खून की क़ीमत) लेकर क्षमा करे। 22. अर्थात एक के बदले दो को या दूसरे की हत्या न करे।
Faccirooji aarabeeji:
وَلَا تَقْرَبُوْا مَالَ الْیَتِیْمِ اِلَّا بِالَّتِیْ هِیَ اَحْسَنُ حَتّٰی یَبْلُغَ اَشُدَّهٗ ۪— وَاَوْفُوْا بِالْعَهْدِ ۚ— اِنَّ الْعَهْدَ كَانَ مَسْـُٔوْلًا ۟
और अनाथ के धन के निकट न जाओ, परन्तु उस तरीक़े से जो सबसे उत्तम हो, यहाँ तक कि वह अपनी युवावस्था को पहुँच जाए। तथा प्रतिज्ञा पूरा करो। निःसंदेह प्रतिज्ञा के विषय में प्रश्न किया जाएगा।
Faccirooji aarabeeji:
وَاَوْفُوا الْكَیْلَ اِذَا كِلْتُمْ وَزِنُوْا بِالْقِسْطَاسِ الْمُسْتَقِیْمِ ؕ— ذٰلِكَ خَیْرٌ وَّاَحْسَنُ تَاْوِیْلًا ۟
और जब मापकर दो, तो माप पूरा करो और सीधी तराज़ू से तौलो। यह सर्वोत्तम है और परिणाम की दृष्टि से बहुत बेहतर है।
Faccirooji aarabeeji:
وَلَا تَقْفُ مَا لَیْسَ لَكَ بِهٖ عِلْمٌ ؕ— اِنَّ السَّمْعَ وَالْبَصَرَ وَالْفُؤَادَ كُلُّ اُولٰٓىِٕكَ كَانَ عَنْهُ مَسْـُٔوْلًا ۟
और ऐसी बात के पीछे न पड़ो, जिसका तुम्हें कोई ज्ञान न हो। निश्चय ही कान तथा आँख और दिल, इनमें से प्रत्येक के बारे में (क़ियामत के दिन) पूछा जाएगा।[23]
23. अल्लाह प्रलय के दिन इनको बोलने की शक्ति देगा। और वे उसके विरुद्ध साक्ष्य देंगे। (देखिए : सूरत ह़ा-मीम-सजदा, आयत : 20-21)
Faccirooji aarabeeji:
وَلَا تَمْشِ فِی الْاَرْضِ مَرَحًا ۚ— اِنَّكَ لَنْ تَخْرِقَ الْاَرْضَ وَلَنْ تَبْلُغَ الْجِبَالَ طُوْلًا ۟
और धरती पर अकड़कर न चलो। निःसंदेह न तुम धरती को फाड़ सकोगे और न लंबाई में पर्वतों तक पहुँच सकोगे।
Faccirooji aarabeeji:
كُلُّ ذٰلِكَ كَانَ سَیِّئُهٗ عِنْدَ رَبِّكَ مَكْرُوْهًا ۟
इन सब चीज़ों में से जो बुरी है, वह आपके पालनहार के निकट अप्रिय है।
Faccirooji aarabeeji:
ذٰلِكَ مِمَّاۤ اَوْحٰۤی اِلَیْكَ رَبُّكَ مِنَ الْحِكْمَةِ ؕ— وَلَا تَجْعَلْ مَعَ اللّٰهِ اِلٰهًا اٰخَرَ فَتُلْقٰی فِیْ جَهَنَّمَ مَلُوْمًا مَّدْحُوْرًا ۟
ये हिकमत की वे बातें हैं, जिनकी आपके पालनहार ने आपकी ओर वह़्य (प्रकाशना) की है। और अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य न बनाओ। अन्यथा तुम निंदित, धुत्कारे हुए जहन्नम में फेंक दिए जाओगे।
Faccirooji aarabeeji:
اَفَاَصْفٰىكُمْ رَبُّكُمْ بِالْبَنِیْنَ وَاتَّخَذَ مِنَ الْمَلٰٓىِٕكَةِ اِنَاثًا ؕ— اِنَّكُمْ لَتَقُوْلُوْنَ قَوْلًا عَظِیْمًا ۟۠
क्या तुम्हारे पालनहार ने बेटों के लिए तुम्हें चुन लिया है और (अपने लिए) फ़रिश्तों में से बेटियाँ बना ली हैं? निःसंदेह तुम बहुत बड़ी (गंभीर) बात कह रहे हो।[24]
24. इस आयत में उन अरबों का खंडन किया गया है जो फ़रिश्तों को अल्लाह की पुत्री कहते थे। जबकि स्वयं पुत्रियों के जन्म से उदास हो जाते थे। और कभी ऐसा भी हुआ कि उन्हें जीवित गाड़ दिया जाता था। तो बताओ यह कहाँ का न्याय है कि अपने लिए पुत्रियों को अप्रिय समझते हो और अल्लाह के लिए पुत्रियाँ बना रखे हो?
Faccirooji aarabeeji:
وَلَقَدْ صَرَّفْنَا فِیْ هٰذَا الْقُرْاٰنِ لِیَذَّكَّرُوْا ؕ— وَمَا یَزِیْدُهُمْ اِلَّا نُفُوْرًا ۟
और हमने इस क़ुरआन में विभिन्न प्रकार से (तथ्यों का) वर्णन किया है, ताकि लोग शिक्षा ग्रहण करें, परन्तु इससे उनकी घृणा (सत्य से दूरी) ही में वृद्धि होती है।
Faccirooji aarabeeji:
قُلْ لَّوْ كَانَ مَعَهٗۤ اٰلِهَةٌ كَمَا یَقُوْلُوْنَ اِذًا لَّابْتَغَوْا اِلٰی ذِی الْعَرْشِ سَبِیْلًا ۟
आप कह दें कि यदि अल्लाह के साथ दूसरे पूज्य (भी) होते, जैसा कि वे (मुश्रिक) कहते हैं, तो वे अर्श (सिंहासन) वाले (अल्लाह) की ओर (पहुँचने की) अवश्य कोई राह खोजते।[25]
25. ताकि उससे संघर्ष करके अपना प्रभुत्व स्थापित कर लें।
Faccirooji aarabeeji:
سُبْحٰنَهٗ وَتَعٰلٰی عَمَّا یَقُوْلُوْنَ عُلُوًّا كَبِیْرًا ۟
वह पवित्र है और सर्वोच्च है, उन बातों से, जो वे कहते हैं।
Faccirooji aarabeeji:
تُسَبِّحُ لَهُ السَّمٰوٰتُ السَّبْعُ وَالْاَرْضُ وَمَنْ فِیْهِنَّ ؕ— وَاِنْ مِّنْ شَیْءٍ اِلَّا یُسَبِّحُ بِحَمْدِهٖ وَلٰكِنْ لَّا تَفْقَهُوْنَ تَسْبِیْحَهُمْ ؕ— اِنَّهٗ كَانَ حَلِیْمًا غَفُوْرًا ۟
सातों आकाश तथा धरती और उनके अंदर मौजूद सभी चीज़ें उसकी पवित्रता का वर्णन करती हैं। और कोई चीज़ ऐसी नहीं है जो उसकी प्रशंसा के साथ उसकी पवित्रता का गान न करती हो। लेकिन तुम उनकी तस्बीह (जप) को नहीं समझते। निःसंदेह वह अत्यंत सहनशील, बहुत क्षमा करने वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِذَا قَرَاْتَ الْقُرْاٰنَ جَعَلْنَا بَیْنَكَ وَبَیْنَ الَّذِیْنَ لَا یُؤْمِنُوْنَ بِالْاٰخِرَةِ حِجَابًا مَّسْتُوْرًا ۟ۙ
और जब आप क़ुरआन पढ़ते हैं, तो हम आपके बीच और उनके बीच, जो आख़िरत (परलोक) पर ईमान नहीं रखते, एक छिपाने वाले पर्दे की आड़[26] बना देते हैं।
26. अर्थात परलोक पर ईमान न लाने का यही स्वभाविक परिणाम है कि क़ुरआन को समझने की योग्यता खो जाती है।
Faccirooji aarabeeji:
وَّجَعَلْنَا عَلٰی قُلُوْبِهِمْ اَكِنَّةً اَنْ یَّفْقَهُوْهُ وَفِیْۤ اٰذَانِهِمْ وَقْرًا ؕ— وَاِذَا ذَكَرْتَ رَبَّكَ فِی الْقُرْاٰنِ وَحْدَهٗ وَلَّوْا عَلٰۤی اَدْبَارِهِمْ نُفُوْرًا ۟
तथा हमने उनके दिलों पर ऐसे खोल चढ़ा दिए हैं कि उसे न समझ सकें तथा उनके कानों में भारीपन (पैदा कर दिए हैं)। और जब आप क़ुरआन में अपने अकेले पालनहार की चर्चा करते हैं, तो वे घृणा से पीठ फेर लेते हैं।
Faccirooji aarabeeji:
نَحْنُ اَعْلَمُ بِمَا یَسْتَمِعُوْنَ بِهٖۤ اِذْ یَسْتَمِعُوْنَ اِلَیْكَ وَاِذْ هُمْ نَجْوٰۤی اِذْ یَقُوْلُ الظّٰلِمُوْنَ اِنْ تَتَّبِعُوْنَ اِلَّا رَجُلًا مَّسْحُوْرًا ۟
हम उस उद्देश्य को भली-भाँति जानते हैं जिसके लिए वे इसे सुनते हैं, जब वे आपकी ओर कान लगाते हैं और जब वे आपस में कानाफूसी करते हैं, जब वे अत्याचारी कहते हैं कि तुम लोग तो बस एक जादू किए हुए व्यक्ति के पीछे चल रहे हो।[27]
27. मक्का के काफ़िर छुप-छुप कर क़ुरआन सुनते। फिर आपस में परामर्श करते कि इसका तोड़ क्या हो? और जब किसी पर संदेह हो जाता कि वह क़ुरआन से प्रभावित हो गया है, तो उसे समझाते कि इसके चक्कर में क्या पड़े हो, इसपर किसी ने जादू कर दिया है। इसलिए बहकी-बहकी बातें कर रहा है।
Faccirooji aarabeeji:
اُنْظُرْ كَیْفَ ضَرَبُوْا لَكَ الْاَمْثَالَ فَضَلُّوْا فَلَا یَسْتَطِیْعُوْنَ سَبِیْلًا ۟
देखें तो सही, वे आपके लिए कैसे उदाहरण दे रहे हैं? अतः वे सीधी राह से भटक गए। अब वे सीधी राह नहीं पा सकेंगे।
Faccirooji aarabeeji:
وَقَالُوْۤا ءَاِذَا كُنَّا عِظَامًا وَّرُفَاتًا ءَاِنَّا لَمَبْعُوْثُوْنَ خَلْقًا جَدِیْدًا ۟
और उन्होंने कहा : क्या जब हम हड्डियाँ और चूर्ण-विचूर्ण हो जाएँगे, तो क्या हम सचमुच नए सिरे से पैदा करके उठाए जाएँगे।[28]
28. ऐसी बात वे परिहास अथवा इनकार के कारण कहते थे।
Faccirooji aarabeeji:
قُلْ كُوْنُوْا حِجَارَةً اَوْ حَدِیْدًا ۟ۙ
आप कह दें कि तुम पत्थर या लोहा हो जाओ।
Faccirooji aarabeeji:
اَوْ خَلْقًا مِّمَّا یَكْبُرُ فِیْ صُدُوْرِكُمْ ۚ— فَسَیَقُوْلُوْنَ مَنْ یُّعِیْدُنَا ؕ— قُلِ الَّذِیْ فَطَرَكُمْ اَوَّلَ مَرَّةٍ ۚ— فَسَیُنْغِضُوْنَ اِلَیْكَ رُءُوْسَهُمْ وَیَقُوْلُوْنَ مَتٰی هُوَ ؕ— قُلْ عَسٰۤی اَنْ یَّكُوْنَ قَرِیْبًا ۟
या कोई और रचना (बन जाओ), जो तुम्हारे दिलों में इससे बड़ी मालूम होती हो। फिर वे पूछेंगे : कौन हमें दोबारा पैदा करेगा? आप कह दें : वही जिसने तुम्हें पहली बार पैदा किया। फिर वे आपके आगे अपना सिर हिलाएँगे[29] और कहेंगे : ऐसा कब होगा? आप कह दें : हो सकता है कि वह निकट हो।
29. अर्थात परिहास करते हुए आश्चर्य से सिर हिलाएँगे।
Faccirooji aarabeeji:
یَوْمَ یَدْعُوْكُمْ فَتَسْتَجِیْبُوْنَ بِحَمْدِهٖ وَتَظُنُّوْنَ اِنْ لَّبِثْتُمْ اِلَّا قَلِیْلًا ۟۠
जिस दिन वह तुम्हें पुकारेगा, तो तुम उसकी प्रशंसा करते हुए उसकी पुकार का उत्तर दोगे[30] और यह सोचोगे कि तुम (संसार में) थोड़े ही समय रहे हो।
30. अर्थात अपनी क़ब्रों से प्रलय के दिन जीवित होकर उपस्थित हो जाओगे।
Faccirooji aarabeeji:
وَقُلْ لِّعِبَادِیْ یَقُوْلُوا الَّتِیْ هِیَ اَحْسَنُ ؕ— اِنَّ الشَّیْطٰنَ یَنْزَغُ بَیْنَهُمْ ؕ— اِنَّ الشَّیْطٰنَ كَانَ لِلْاِنْسَانِ عَدُوًّا مُّبِیْنًا ۟
और आप मेरे बंदों से कह दें कि वह बात कहें जो सबसे उत्तम हो। निःसंदेह शैतान उनके बीच बिगाड़ पैदा करता[31] है। निःसंदेह शैतान इनसान का खुला दुश्मन है।
31. अर्थात कटु शब्दों द्वारा।
Faccirooji aarabeeji:
رَبُّكُمْ اَعْلَمُ بِكُمْ ؕ— اِنْ یَّشَاْ یَرْحَمْكُمْ اَوْ اِنْ یَّشَاْ یُعَذِّبْكُمْ ؕ— وَمَاۤ اَرْسَلْنٰكَ عَلَیْهِمْ وَكِیْلًا ۟
तुम्हारा पालनहार, तुम्हें बेहतर जानता है। यदि वह चाहे तो तुमपर दया करे या यदि चाहे तो तुम्हें अज़ाब दे। और हमने आपको उनपर ज़िम्मेदार बनाकर नहीं भेजा है।[32]
32. अर्थात आपका दायित्व केवल उपदेश पहुँचा देना है, वे तो स्वयं अल्लाह के समीप होने की आशा लगाए हुए हैं, कि कैसे उस तक पहुँचा जाए, तो भला वे पूज्य कैसे हो सकते हैं?
Faccirooji aarabeeji:
وَرَبُّكَ اَعْلَمُ بِمَنْ فِی السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ ؕ— وَلَقَدْ فَضَّلْنَا بَعْضَ النَّبِیّٖنَ عَلٰی بَعْضٍ وَّاٰتَیْنَا دَاوٗدَ زَبُوْرًا ۟
तथा आपका पालनहार उन्हें अधिक जानता है, जो आकाशों तथा धरती में हैं। और हमने कुछ नबियों को कुछ पर श्रेष्ठता प्रदान की और दाऊद को ज़बूर (पुस्तक) प्रदान की।
Faccirooji aarabeeji:
قُلِ ادْعُوا الَّذِیْنَ زَعَمْتُمْ مِّنْ دُوْنِهٖ فَلَا یَمْلِكُوْنَ كَشْفَ الضُّرِّ عَنْكُمْ وَلَا تَحْوِیْلًا ۟
आप कह दें कि उन्हें पुकारो, जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा (पूज्य) समझते हो। वे न तो तुमसे कष्ट दूर करने का अधिकार रखते है और न (उसे) बदलने का।
Faccirooji aarabeeji:
اُولٰٓىِٕكَ الَّذِیْنَ یَدْعُوْنَ یَبْتَغُوْنَ اِلٰی رَبِّهِمُ الْوَسِیْلَةَ اَیُّهُمْ اَقْرَبُ وَیَرْجُوْنَ رَحْمَتَهٗ وَیَخَافُوْنَ عَذَابَهٗ ؕ— اِنَّ عَذَابَ رَبِّكَ كَانَ مَحْذُوْرًا ۟
जिन्हें ये (मुश्रिक) लोग[33] पुकारते हैं, वे स्वयं अपने पालनहार की निकटता का साधन[34] तलाश करते हैं कि उनमें से कौन (अल्लाह से) सबसे अधिक निकट हो जाए, तथा उसकी दया की आशा रखते हैं और उसकी यातना से डरते हैं। निःसंदेह आपके पालनहार की यातना डरने की चीज़ है।
33. अर्थात मुश्रिक जिन नबियों, महापुरुषों और फ़रिश्तों को पुकारते हैं। 34. साधन से अभिप्रेत सत्कर्म और आज्ञाकारिता है।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِنْ مِّنْ قَرْیَةٍ اِلَّا نَحْنُ مُهْلِكُوْهَا قَبْلَ یَوْمِ الْقِیٰمَةِ اَوْ مُعَذِّبُوْهَا عَذَابًا شَدِیْدًا ؕ— كَانَ ذٰلِكَ فِی الْكِتٰبِ مَسْطُوْرًا ۟
और कोई (अत्याचारी) बस्ती ऐसी नहीं है, जिसे हम क़ियामत के दिन से पहले विनष्ट न कर दें या कड़ी यातना न दें। यह बात किताब (लौहे महफ़ूज़) में लिखी हुई है।
Faccirooji aarabeeji:
وَمَا مَنَعَنَاۤ اَنْ نُّرْسِلَ بِالْاٰیٰتِ اِلَّاۤ اَنْ كَذَّبَ بِهَا الْاَوَّلُوْنَ ؕ— وَاٰتَیْنَا ثَمُوْدَ النَّاقَةَ مُبْصِرَةً فَظَلَمُوْا بِهَا ؕ— وَمَا نُرْسِلُ بِالْاٰیٰتِ اِلَّا تَخْوِیْفًا ۟
और हमें निशानियाँ भेजने से केवल इस बात ने रोका कि पिछले लोगों ने उन्हें झुठला[35] दिया। और हमने समूद (समुदाय) को ऊँटनी का स्पष्ट चमत्कार दिया, तो उन्होंने उसपर अत्याचार किया। और हम निशानियाँ (चमत्कार) केवल डराने के लिए भेजते हैं।
35. अर्थात चमत्कार की माँग करने पर चमत्कार इसलिए नहीं भेजा जाता कि उसके पश्चात् न मानने पर यातना का आना अनिवार्य हो जाता है, जैसाकि भाष्यकारों ने लिखा है।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِذْ قُلْنَا لَكَ اِنَّ رَبَّكَ اَحَاطَ بِالنَّاسِ ؕ— وَمَا جَعَلْنَا الرُّءْیَا الَّتِیْۤ اَرَیْنٰكَ اِلَّا فِتْنَةً لِّلنَّاسِ وَالشَّجَرَةَ الْمَلْعُوْنَةَ فِی الْقُرْاٰنِ ؕ— وَنُخَوِّفُهُمْ ۙ— فَمَا یَزِیْدُهُمْ اِلَّا طُغْیَانًا كَبِیْرًا ۟۠
और (ऐ नबी! याद करें) जब हमने आपसे कहा : निःसंदेह आपके पालनहार ने लोगों को घेरे में ले रखा है। और हमने (मेराज की रात) आपको जो कुछ दिखाया[36], उसे लोगों के लिए एक आज़माइश बना दिया[37], और उस वृक्ष को भी (आज़माइश बना दिया) जिसे क़ुरआन में शापित ठहराया गया है। और हम उन्हें डराते हैं, किंतु यह (डराना) उनकी बड़ी सरकशी ही को बढ़ाता है।
36. इससे संकेत "मेराज" की ओर है। और यहाँ "रु-या" शब्द का अर्थ स्वप्न नहीं बल्कि आँखों से देखना है। और शापित वृक्ष से अभिप्राय ज़क़्क़ूम (थोहड़) का वृक्ष है। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस : 4716) 37. अर्थात काफ़िरों के लिए जिन्होंने कहा कि यह कैसे हो सकता है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) एक ही रात में बैतुल-मक़्दिस पहुँच जाएँ फिर वहाँ से आकाश की सैर करके वापस मक्का भी आ जाएँ।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِذْ قُلْنَا لِلْمَلٰٓىِٕكَةِ اسْجُدُوْا لِاٰدَمَ فَسَجَدُوْۤا اِلَّاۤ اِبْلِیْسَ ؕ— قَالَ ءَاَسْجُدُ لِمَنْ خَلَقْتَ طِیْنًا ۟ۚ
और जब हमने फ़रिश्तों से कहा : आदम को सजदा करो, तो इबलीस के सिवा सबने सजदा किया। उसने कहा कि क्या मैं उसे सजदा करूँ, जिसे तूने मिट्टी से पैदा किया है?
Faccirooji aarabeeji:
قَالَ اَرَءَیْتَكَ هٰذَا الَّذِیْ كَرَّمْتَ عَلَیَّ ؗ— لَىِٕنْ اَخَّرْتَنِ اِلٰی یَوْمِ الْقِیٰمَةِ لَاَحْتَنِكَنَّ ذُرِّیَّتَهٗۤ اِلَّا قَلِیْلًا ۟
(तथा) उसने कहा : क्या तूने इसे देखा, जिसे तूने मेरे ऊपर सम्मानित किया है? यदि तूने मुझे क़ियामत के दिन तक अवसर दिया, तो मैं निश्चित रूप से कुछ को छोड़कर, उसकी संतति को अपने वश[38] में कर लूँगा।
38. अर्थात कुपथ कर दूँगा।
Faccirooji aarabeeji:
قَالَ اذْهَبْ فَمَنْ تَبِعَكَ مِنْهُمْ فَاِنَّ جَهَنَّمَ جَزَآؤُكُمْ جَزَآءً مَّوْفُوْرًا ۟
अल्लाह ने कहा : जा! उनमें से जो भी तेरी बात मानेगा, तो निःसंदेह तुम सब का भरपूर बदला जहन्नम है।
Faccirooji aarabeeji:
وَاسْتَفْزِزْ مَنِ اسْتَطَعْتَ مِنْهُمْ بِصَوْتِكَ وَاَجْلِبْ عَلَیْهِمْ بِخَیْلِكَ وَرَجِلِكَ وَشَارِكْهُمْ فِی الْاَمْوَالِ وَالْاَوْلَادِ وَعِدْهُمْ ؕ— وَمَا یَعِدُهُمُ الشَّیْطٰنُ اِلَّا غُرُوْرًا ۟
उनमें से जिस पर तेरा बस चल सके, उसे अपनी आवाज़[39] से बहका ले, और उनपर अपने सवार और प्यादे चढ़ा[40] ला, तथा धन और संतान में उनका साझी बन[41] जा, और उनसे झूठे वादे कर। और शैतान उनसे जो वादा करता है, वह धोखे के सिवा कुछ नहीं होता।
39. अर्थात गाने और बजाने द्वारा। 40. अर्थात अपने जिन्न और मनुष्य सहायकों द्वारा उन्हें बहकाने का उपाय कर ले। 41. अर्थात अवैध धन अर्जित करने और व्यभिचार की प्रेरणा दे।
Faccirooji aarabeeji:
اِنَّ عِبَادِیْ لَیْسَ لَكَ عَلَیْهِمْ سُلْطٰنٌ ؕ— وَكَفٰی بِرَبِّكَ وَكِیْلًا ۟
निःसंदेह मेरे (सच्चे) बंदों पर तेरा कोई वश नहीं चल सकता और आपका पालनहार संरक्षक के रूप में काफ़ी है।
Faccirooji aarabeeji:
رَبُّكُمُ الَّذِیْ یُزْجِیْ لَكُمُ الْفُلْكَ فِی الْبَحْرِ لِتَبْتَغُوْا مِنْ فَضْلِهٖ ؕ— اِنَّهٗ كَانَ بِكُمْ رَحِیْمًا ۟
तुम्हारा पालनहार वह है, जो तुम्हारे लिए समुद्र में नौका चलाता है, ताकि तुम उसका अनुग्रह (रोज़ी) तलाश करो। निःसंदेह वह तुमपर अत्यंत दयालु है।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِذَا مَسَّكُمُ الضُّرُّ فِی الْبَحْرِ ضَلَّ مَنْ تَدْعُوْنَ اِلَّاۤ اِیَّاهُ ۚ— فَلَمَّا نَجّٰىكُمْ اِلَی الْبَرِّ اَعْرَضْتُمْ ؕ— وَكَانَ الْاِنْسَانُ كَفُوْرًا ۟
और जब समुद्र में तुमपर कोई आपदा आती है, तो अल्लाह के सिवा तुम जिन्हें पुकारते हो, गुम हो जाते हैं[42], फिर जब वह (अल्लाह) तुम्हें बचाकर थल तक पहुँचा देता है, तो (उससे) मुँह फेर लेते हो। और मनुष्य बहुत ही कृतघ्न है।
42. अर्थात ऐसी दशा में केवल अल्लाह याद आता है और उसी से सहायता माँगते हो, किंतु जब सागर से निकल जाते हो, तो फिर उन्हीं देवी-देवताऔं की वंदना करने लगते हो।
Faccirooji aarabeeji:
اَفَاَمِنْتُمْ اَنْ یَّخْسِفَ بِكُمْ جَانِبَ الْبَرِّ اَوْ یُرْسِلَ عَلَیْكُمْ حَاصِبًا ثُمَّ لَا تَجِدُوْا لَكُمْ وَكِیْلًا ۟ۙ
क्या तुम इस बात से निश्चिंत हो गए हो कि अल्लाह तुम्हें थल की ओर ले जाकर (धरती में) धँसा दे या तुमपर पत्थरों की बारिश कर दे, फिर तुम अपना कोई संरक्षक न पाओ?
Faccirooji aarabeeji:
اَمْ اَمِنْتُمْ اَنْ یُّعِیْدَكُمْ فِیْهِ تَارَةً اُخْرٰی فَیُرْسِلَ عَلَیْكُمْ قَاصِفًا مِّنَ الرِّیْحِ فَیُغْرِقَكُمْ بِمَا كَفَرْتُمْ ۙ— ثُمَّ لَا تَجِدُوْا لَكُمْ عَلَیْنَا بِهٖ تَبِیْعًا ۟
या तुम इस बात से निश्चिंत हो गए हो कि वह तुम्हें दूसरी बार उस (समुद्र) में लौटा दे, फिर तुमपर तोड़ देने वाली प्रचंड हवा भेज दे, तो वह तुम्हें तुम्हारी कृतघ्नता के कारण डुबो दे। फिर तुम अपने लिए हमारे विरुद्ध इस मामले में कोई हमारा पीछा करने वाला न पाओ?[43]
43. जो हमसे बदले की माँग कर सके।
Faccirooji aarabeeji:
وَلَقَدْ كَرَّمْنَا بَنِیْۤ اٰدَمَ وَحَمَلْنٰهُمْ فِی الْبَرِّ وَالْبَحْرِ وَرَزَقْنٰهُمْ مِّنَ الطَّیِّبٰتِ وَفَضَّلْنٰهُمْ عَلٰی كَثِیْرٍ مِّمَّنْ خَلَقْنَا تَفْضِیْلًا ۟۠
निश्चय ही हमने आदम की संतान को सम्मान प्रदान किया, और उन्हें थल और जल में सवार[44] किया, और उन्हें अच्छी-पाक चीज़ों की रोज़ी दी, तथा हमने अपने पैदा किए हुए बहुत-से प्राणियों पर उन्हें श्रेष्ठता प्रदान की।
44. अर्थात सवारी के साधन दिए।
Faccirooji aarabeeji:
یَوْمَ نَدْعُوْا كُلَّ اُنَاسٍ بِاِمَامِهِمْ ۚ— فَمَنْ اُوْتِیَ كِتٰبَهٗ بِیَمِیْنِهٖ فَاُولٰٓىِٕكَ یَقْرَءُوْنَ كِتٰبَهُمْ وَلَا یُظْلَمُوْنَ فَتِیْلًا ۟
जिस दिन हम लोगों (के प्रत्येक समूह) को उनके इमाम (नायक) के साथ बुलाएँगे, फिर जिसे उसका कर्मपत्र उसके दाहिने हाथ में दिया गया, तो ऐसे लोग अपना कर्मपत्र पढ़ेंगे और उनपर खजूर की गुठली के धागे के बराबर भी अत्याचार नहीं किया जाएगा।
Faccirooji aarabeeji:
وَمَنْ كَانَ فِیْ هٰذِهٖۤ اَعْمٰی فَهُوَ فِی الْاٰخِرَةِ اَعْمٰی وَاَضَلُّ سَبِیْلًا ۟
और जो इस (संसार) में अंधा[45] बनकर रहा, वह आख़िरत में अधिक अंधा होगा और रास्ते से बहुत ज़्यादा भटका हुआ होगा।
45. अर्थात सत्य से अंधा।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِنْ كَادُوْا لَیَفْتِنُوْنَكَ عَنِ الَّذِیْۤ اَوْحَیْنَاۤ اِلَیْكَ لِتَفْتَرِیَ عَلَیْنَا غَیْرَهٗ ۖۗ— وَاِذًا لَّاتَّخَذُوْكَ خَلِیْلًا ۟
निःसंदेह क़रीब था कि वे (काफ़िर लोग) आपको उस वह़्य से फेर दें, जो हमने आपकी ओर भेजी है, ताकि आप उसके अलावा हमपर कुछ और गढ़ लें। और तब तो वे आपको अवश्य अपना घनिष्ठ मित्र बना लेते।
Faccirooji aarabeeji:
وَلَوْلَاۤ اَنْ ثَبَّتْنٰكَ لَقَدْ كِدْتَّ تَرْكَنُ اِلَیْهِمْ شَیْـًٔا قَلِیْلًا ۟ۗۙ
और यदि हम आपको सुदृढ़ न रखते, तो निःसंदेह निकट था कि आप उनकी ओर कुछ थोड़ा-सा झुक जाते।
Faccirooji aarabeeji:
اِذًا لَّاَذَقْنٰكَ ضِعْفَ الْحَیٰوةِ وَضِعْفَ الْمَمَاتِ ثُمَّ لَا تَجِدُ لَكَ عَلَیْنَا نَصِیْرًا ۟
तब हम आपको जीवन में भी दोहरा तथा मरने के बाद भी दोहरा (अज़ाब) चखाते। फिर आप अपने लिए हमारे विरुद्ध कोई सहायक न पाते।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِنْ كَادُوْا لَیَسْتَفِزُّوْنَكَ مِنَ الْاَرْضِ لِیُخْرِجُوْكَ مِنْهَا وَاِذًا لَّا یَلْبَثُوْنَ خِلٰفَكَ اِلَّا قَلِیْلًا ۟
और निश्चय ही वे क़रीब थे कि आपको इस भूभाग (मक्का) से फिसला दें ताकि आपको यहाँ से बाहर निकाल दें। और तब वे आपके पश्चात् थोड़ा ही ठहर पाते।
Faccirooji aarabeeji:
سُنَّةَ مَنْ قَدْ اَرْسَلْنَا قَبْلَكَ مِنْ رُّسُلِنَا وَلَا تَجِدُ لِسُنَّتِنَا تَحْوِیْلًا ۟۠
उन (रसूलों) के नियम के समान[46] जिन्हें हमने आपसे पहले अपने रसूलों में से भेजा। और आप हमारे नियम में कोई परिवर्तन नहीं पाएँगे।
46. अर्थात रसूल को निकालने पर यातना देने का हमारा नियम रहा है।
Faccirooji aarabeeji:
اَقِمِ الصَّلٰوةَ لِدُلُوْكِ الشَّمْسِ اِلٰی غَسَقِ الَّیْلِ وَقُرْاٰنَ الْفَجْرِ ؕ— اِنَّ قُرْاٰنَ الْفَجْرِ كَانَ مَشْهُوْدًا ۟
सूर्य के ढलने से रात के अँधेरे[47] तक नमाज़ क़ायम करें, तथा फ़ज्र की नमाज़ भी (क़ायम करें)। निःसंदेह फ़ज्र की नमाज़ (फ़रिश्तों की) उपस्थिति[48] का समय है।
47. अर्थात ज़ुहर, अस्र और मग्रिब तथा इशा की नमाज़। 48. अर्थात फ़ज्र की नमाज़ के समय रात और दिन के फ़रिश्ते एकत्र तथा उपस्थित रहते हैं। (सह़ीह़ बुख़ारी : 359, सह़ीह़ मुस्लिम : 632)
Faccirooji aarabeeji:
وَمِنَ الَّیْلِ فَتَهَجَّدْ بِهٖ نَافِلَةً لَّكَ ۖۗ— عَسٰۤی اَنْ یَّبْعَثَكَ رَبُّكَ مَقَامًا مَّحْمُوْدًا ۟
तथा आप रात के कुछ समय में उठकर नमाज़ (तहज्जुद)[49] पढ़िए। यह आपके लिए अतिरिक्त है। क़रीब है कि आपका पालनहार आपको "मक़ामे महमूद"[50] पर खड़ा करे।
49. तहज्जुद का अर्थ है रात के अंतिम भाग में नमाज़ पढ़ना। 50. "मक़ामे मह़मूद" का अर्थ है प्रशंसा योग्य स्थान। और इससे अभिप्राय वह स्थान है जहाँ से आप प्रलय के दिन शफ़ाअत (सिफ़ारिश) करेंगे।
Faccirooji aarabeeji:
وَقُلْ رَّبِّ اَدْخِلْنِیْ مُدْخَلَ صِدْقٍ وَّاَخْرِجْنِیْ مُخْرَجَ صِدْقٍ وَّاجْعَلْ لِّیْ مِنْ لَّدُنْكَ سُلْطٰنًا نَّصِیْرًا ۟
और आप प्रार्थना करें : ऐ मेरे पालनहार! मुझे अच्छी तरह प्रवेश[51] दे, और अच्छी तरह निकाल, तथा अपनी ओर से मुझे सहायक प्रमाण प्रदान कर।
51. अर्थात मदीना में, मक्का से निकाल कर।
Faccirooji aarabeeji:
وَقُلْ جَآءَ الْحَقُّ وَزَهَقَ الْبَاطِلُ ؕ— اِنَّ الْبَاطِلَ كَانَ زَهُوْقًا ۟
तथा कहिए कि सत्य आ गया और असत्य मिट गया। निःसंदेह असत्य तो मिटने ही वाला था।[52]
52. अब्दुल्लाह बिन मस्ऊद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने मक्का (की विजय के दिन) उसमें प्रवेश किया, तो काबा के आस-पास तीन सौ साठ मूर्तियाँ थीं। और आपके हाथ में एक छड़ी थी, जिससे उन को मार रहे थे। और आप यही आयत पढ़ते जा रहे थे। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4720, मुस्लिम : 1781)
Faccirooji aarabeeji:
وَنُنَزِّلُ مِنَ الْقُرْاٰنِ مَا هُوَ شِفَآءٌ وَّرَحْمَةٌ لِّلْمُؤْمِنِیْنَ ۙ— وَلَا یَزِیْدُ الظّٰلِمِیْنَ اِلَّا خَسَارًا ۟
और हम क़ुरआन में से जो उतारते हैं, वह ईमान वालों के लिए शिफ़ा (आरोग्य) तथा दया है। और वह अत्याचारियों को घाटे ही में बढ़ाता है।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِذَاۤ اَنْعَمْنَا عَلَی الْاِنْسَانِ اَعْرَضَ وَنَاٰ بِجَانِبِهٖ ۚ— وَاِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ كَانَ یَـُٔوْسًا ۟
और जब हम इनसान पर उपकार करते हैं, तो वह मुँह फेर लेता है और दूर हो जाता[53] है। तथा जब उसे दुःख पहुँचता है, तो निराश हो जाता है।
53. अर्थात अल्लाह की आज्ञा का पालन करने से।
Faccirooji aarabeeji:
قُلْ كُلٌّ یَّعْمَلُ عَلٰی شَاكِلَتِهٖ ؕ— فَرَبُّكُمْ اَعْلَمُ بِمَنْ هُوَ اَهْدٰی سَبِیْلًا ۟۠
आप कह दें : हर इनसान अपने तरीक़े के अनुसार कार्य करता है। अतः आपका पालनहार सबसे अधिक जानने वाला है कि कौन ज़्यादा सीधे मार्ग पर है।
Faccirooji aarabeeji:
وَیَسْـَٔلُوْنَكَ عَنِ الرُّوْحِ ؕ— قُلِ الرُّوْحُ مِنْ اَمْرِ رَبِّیْ وَمَاۤ اُوْتِیْتُمْ مِّنَ الْعِلْمِ اِلَّا قَلِیْلًا ۟
और वे (ऐ नबी!) आपसे 'रूह' (आत्मा)[54] के विषय में पूछते हैं। आप कह दें : 'रूह' मेरे पालनहार के आदेश से है। और तुम्हें बहुत ही थोड़ा ज्ञान दिया गया है।
54. "रूह़" का अर्थ आत्मा है, जो हर प्राणी के जीवन का मूल है। किंतु उसकी वास्तविकता क्या है? यह कोई नहीं जानता। क्योंकि मनुष्य के पास जो ज्ञान है वह बहुत कम है।
Faccirooji aarabeeji:
وَلَىِٕنْ شِئْنَا لَنَذْهَبَنَّ بِالَّذِیْۤ اَوْحَیْنَاۤ اِلَیْكَ ثُمَّ لَا تَجِدُ لَكَ بِهٖ عَلَیْنَا وَكِیْلًا ۟ۙ
और यदि हम चाहें, तो वह सब कुछ (वापस) ले जाएँ, जो हमने आपकी ओर वह़्य भेजी है। फिर आप उसपर हमारे मुक़ाबले में अपना कोई सहायक नहीं पाएँगे।
Faccirooji aarabeeji:
اِلَّا رَحْمَةً مِّنْ رَّبِّكَ ؕ— اِنَّ فَضْلَهٗ كَانَ عَلَیْكَ كَبِیْرًا ۟
परंतु आपके पालनहार की दया से (ऐसा नहीं हुआ)। निःसंदेह आप पर उसका अनुग्रह बहुत बड़ा है।
Faccirooji aarabeeji:
قُلْ لَّىِٕنِ اجْتَمَعَتِ الْاِنْسُ وَالْجِنُّ عَلٰۤی اَنْ یَّاْتُوْا بِمِثْلِ هٰذَا الْقُرْاٰنِ لَا یَاْتُوْنَ بِمِثْلِهٖ وَلَوْ كَانَ بَعْضُهُمْ لِبَعْضٍ ظَهِیْرًا ۟
आप कह दें : यदि समस्त मनुष्य तथा जिन्न इस बात पर एकत्रित हो जाएँ कि इस क़ुरआन के समान (कोई पुस्तक) ले आएँ, तो इस जैसी पुस्तक नहीं ला सकेंगे, चाहे वे एक-दूसरे के सहायक ही क्यों न हो जाएँ!
Faccirooji aarabeeji:
وَلَقَدْ صَرَّفْنَا لِلنَّاسِ فِیْ هٰذَا الْقُرْاٰنِ مِنْ كُلِّ مَثَلٍ ؗ— فَاَبٰۤی اَكْثَرُ النَّاسِ اِلَّا كُفُوْرًا ۟
और हमने इस क़ुरआन में लोगों के लिए हर उदाहरण को विविध ढंग से बयान किया है। फिर भी अधिकतर लोगों ने इनकार ही का रास्ता अपनाया।
Faccirooji aarabeeji:
وَقَالُوْا لَنْ نُّؤْمِنَ لَكَ حَتّٰی تَفْجُرَ لَنَا مِنَ الْاَرْضِ یَنْۢبُوْعًا ۟ۙ
और उन्होंने कहा : हम आपपर कदापि ईमान नहीं लाएँगे, यहाँ तक कि आप हमारे लिए धरती से एक चश्मा प्रवाहित कर दें।
Faccirooji aarabeeji:
اَوْ تَكُوْنَ لَكَ جَنَّةٌ مِّنْ نَّخِیْلٍ وَّعِنَبٍ فَتُفَجِّرَ الْاَنْهٰرَ خِلٰلَهَا تَفْجِیْرًا ۟ۙ
या आपके लिए खजूरों और अंगूर का एक बाग़ हो और आप उसके बीच नहरें प्रवाहित कर दें।
Faccirooji aarabeeji:
اَوْ تُسْقِطَ السَّمَآءَ كَمَا زَعَمْتَ عَلَیْنَا كِسَفًا اَوْ تَاْتِیَ بِاللّٰهِ وَالْمَلٰٓىِٕكَةِ قَبِیْلًا ۟ۙ
या आकाश को टुकड़े-टुकड़े करके हमपर गिरा दें, जैसा कि आपका दावा है, या अल्लाह और फ़रिश्तों को हमारे सामने ले आएँ।
Faccirooji aarabeeji:
اَوْ یَكُوْنَ لَكَ بَیْتٌ مِّنْ زُخْرُفٍ اَوْ تَرْقٰی فِی السَّمَآءِ ؕ— وَلَنْ نُّؤْمِنَ لِرُقِیِّكَ حَتّٰی تُنَزِّلَ عَلَیْنَا كِتٰبًا نَّقْرَؤُهٗ ؕ— قُلْ سُبْحَانَ رَبِّیْ هَلْ كُنْتُ اِلَّا بَشَرًا رَّسُوْلًا ۟۠
या आपके पास सोने का एक घर हो, या आप आकाश में चढ़ जाएँ। और हम आपके चढ़ने का हरगिज़ विश्वास नहीं करेंगे, यहाँ तक कि आप हमारे पास एक पुस्तक उतार लाएँ, जिसे हम पढ़ें। आप कह दें : मेरा पालनहार पवित्र है! मैं तो बस एक इनसान[55] हूँ, जो रसूल बनाकर भेजा गया है।
55. अर्थात मैं अपने पालनहार की वह़्य का अनुसरण करता हूँ। और यह सब चीज़ें अल्लाह के बस में हैं। यदि वह चाहे तो एक क्षण में सब कुछ कर सकता है, किंतु मैं तो तुम्हारे जैसा एक मनुष्य हूँ। मुझे केवल रसूल बना कर भेजा गया है, ताकि तुम्हें अल्लाह का संदेश सुनाऊँ। रहा चमत्कार, तो वह अल्लाह के हाथ में है। जिसे चाहे दिखा सकता है। फिर क्या तुम चमत्कार देखकर ईमान ले आओगे? यदि ऐसा होता, तो तुम कभी के ईमान ला चुके होते, क्योंकि क़ुरआन से बड़ा क्या चमत्कार हो सकता है?
Faccirooji aarabeeji:
وَمَا مَنَعَ النَّاسَ اَنْ یُّؤْمِنُوْۤا اِذْ جَآءَهُمُ الْهُدٰۤی اِلَّاۤ اَنْ قَالُوْۤا اَبَعَثَ اللّٰهُ بَشَرًا رَّسُوْلًا ۟
और जब लोगों के पास मार्गदर्शन[56] आ गया, तो उन्हें केवल इस बात ने ईमान लाने से रोक दिया कि उन्होंने कहा : क्या अल्लाह ने एक मनुष्य को रसूल बनाकर भेजा है?
56. अर्थात रसूल तथा पुस्तकें संमार्ग दर्शाने के लिए।
Faccirooji aarabeeji:
قُلْ لَّوْ كَانَ فِی الْاَرْضِ مَلٰٓىِٕكَةٌ یَّمْشُوْنَ مُطْمَىِٕنِّیْنَ لَنَزَّلْنَا عَلَیْهِمْ مِّنَ السَّمَآءِ مَلَكًا رَّسُوْلًا ۟
(ऐ नबी!) आप कह दें : यदि धरती में फ़रिश्ते (आबाद) होते, जो निश्चिंत होकर चलते-फिरते, तो हम अवश्य उनपर आकाश से कोई फ़रिश्ता ही रसूल बनाकर उतारते।
Faccirooji aarabeeji:
قُلْ كَفٰی بِاللّٰهِ شَهِیْدًا بَیْنِیْ وَبَیْنَكُمْ ؕ— اِنَّهٗ كَانَ بِعِبَادِهٖ خَبِیْرًا بَصِیْرًا ۟
आप कह दें कि मेरे और तुम्हारे बीच गवाह[57] के रूप में अल्लाह काफ़ी है। निःसंदेह वह अपने बंदों की पूरी ख़बर रखने वाला, सबको देखने वाला है।
57. अर्थात मेरे रसूल होने का गवाह अल्लाह है।
Faccirooji aarabeeji:
وَمَنْ یَّهْدِ اللّٰهُ فَهُوَ الْمُهْتَدِ ۚ— وَمَنْ یُّضْلِلْ فَلَنْ تَجِدَ لَهُمْ اَوْلِیَآءَ مِنْ دُوْنِهٖ ؕ— وَنَحْشُرُهُمْ یَوْمَ الْقِیٰمَةِ عَلٰی وُجُوْهِهِمْ عُمْیًا وَّبُكْمًا وَّصُمًّا ؕ— مَاْوٰىهُمْ جَهَنَّمُ ؕ— كُلَّمَا خَبَتْ زِدْنٰهُمْ سَعِیْرًا ۟
और जिसे अल्लाह सीधा मार्ग दिखाए, वही मार्ग पाने वाला है और जिन्हें पथभ्रष्ट कर दे, आप उनके लिए अल्लाह के सिवा सहायक नहीं पाएँगे। और हम उन्हें क़ियामत के दिन उनके चेहरों के बल अंधे, गूँगे और बहरे बनाकर उठाएँगे। और उनका ठिकाना जहन्नम है। जब भी उसकी लपट कम होगी, हम उसे और भड़का देंगे।
Faccirooji aarabeeji:
ذٰلِكَ جَزَآؤُهُمْ بِاَنَّهُمْ كَفَرُوْا بِاٰیٰتِنَا وَقَالُوْۤا ءَاِذَا كُنَّا عِظَامًا وَّرُفَاتًا ءَاِنَّا لَمَبْعُوْثُوْنَ خَلْقًا جَدِیْدًا ۟
यही उनका बदला है। क्योंकि उन्होंने हमारी आयतों का इनकार किया और कहा : क्या जब हम हड्डियाँ और चूरा-चूरा हो जाएँगे, तो क्या निश्चय ही हम नए सिरे से पैदा करके उठाए जाने वाले हैं?[58]
58. अर्थात ऐसा होना संभव नहीं है कि जब हमारी हड्डियाँ सड़ गल जाएँ तो हम फिर उठाए जाएँगे।
Faccirooji aarabeeji:
اَوَلَمْ یَرَوْا اَنَّ اللّٰهَ الَّذِیْ خَلَقَ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضَ قَادِرٌ عَلٰۤی اَنْ یَّخْلُقَ مِثْلَهُمْ وَجَعَلَ لَهُمْ اَجَلًا لَّا رَیْبَ فِیْهِ ؕ— فَاَبَی الظّٰلِمُوْنَ اِلَّا كُفُوْرًا ۟
क्या इन लोगों ने नहीं देखा कि जिस अल्लाह ने आकाशों तथा धरती को पैदा किया, वह इसपर सामर्थ्यवान है कि उन जैसे (फिर) पैदा कर दे?[59] तथा उसने उनके लिए एक समय निर्धारित कर रखा है, जिसमें कोई संदेह नहीं है। फिर भी अत्याचारियों ने कुफ़्र के सिवा (हर चीज़ से) इनकार किया।
59. अर्थात जिसने आकाश तथा धरती की उत्पत्ति की उसके लिए मनुष्य को दोबारा उठाना अधिक सरल है, किंतु वे समझते नहीं हैं।
Faccirooji aarabeeji:
قُلْ لَّوْ اَنْتُمْ تَمْلِكُوْنَ خَزَآىِٕنَ رَحْمَةِ رَبِّیْۤ اِذًا لَّاَمْسَكْتُمْ خَشْیَةَ الْاِنْفَاقِ ؕ— وَكَانَ الْاِنْسَانُ قَتُوْرًا ۟۠
आप कह दें : यदि तुम मेरे पालनहार की दया के खज़ानों के मालिक होते, तो उस समय तुम (उन्हें) खर्च हो जाने के भय से अवश्य रोक लेते। और इनसान बड़ा ही कंजूस है।
Faccirooji aarabeeji:
وَلَقَدْ اٰتَیْنَا مُوْسٰی تِسْعَ اٰیٰتٍۢ بَیِّنٰتٍ فَسْـَٔلْ بَنِیْۤ اِسْرَآءِیْلَ اِذْ جَآءَهُمْ فَقَالَ لَهٗ فِرْعَوْنُ اِنِّیْ لَاَظُنُّكَ یٰمُوْسٰی مَسْحُوْرًا ۟
और निश्चय हमने मूसा को नौ स्पष्ट निशानियाँ[60] दीं। अतः आप बनी इसराईल से पूछ लें, जब वह (मूसा) उनके पास आए, तो फ़िरऔन ने उनसे कहा : ऐ मूसा! मैं समझता हूँ कि तुझपर जादू कर दिया गया है।
60. वे नौ निशानियाँ निम्नलिखित थीं : हाथ की चमक, लाठी, अकाल, तूफ़ान, टिड्डी, जूएँ, मेंढक, खून और सागर का दो भाग हो जाना।
Faccirooji aarabeeji:
قَالَ لَقَدْ عَلِمْتَ مَاۤ اَنْزَلَ هٰۤؤُلَآءِ اِلَّا رَبُّ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ بَصَآىِٕرَ ۚ— وَاِنِّیْ لَاَظُنُّكَ یٰفِرْعَوْنُ مَثْبُوْرًا ۟
मूसा ने उत्तर दिया : निःसंदेह तुम जान चुके हो कि इन (निशानियों) को आकाशों और धरती के पालनहार ही ने (समझाने के लिए) स्पष्ट प्रमाण बनाकर पर उतारा है। और निश्चय ही मैं जानता हूँ कि ऐ फ़िरऔन! तेरा विनाश हुआ।
Faccirooji aarabeeji:
فَاَرَادَ اَنْ یَّسْتَفِزَّهُمْ مِّنَ الْاَرْضِ فَاَغْرَقْنٰهُ وَمَنْ مَّعَهٗ جَمِیْعًا ۟ۙ
अंततः उसने उन्हें[61] उस भूभाग से[62] निकाल बाहर करने का इरादा किया, तो हमने उसे और उसके सब साथियों को डुबो दिया।
61. अर्थात बनी इसराईल को। 62. अर्थात मिस्र से।
Faccirooji aarabeeji:
وَّقُلْنَا مِنْ بَعْدِهٖ لِبَنِیْۤ اِسْرَآءِیْلَ اسْكُنُوا الْاَرْضَ فَاِذَا جَآءَ وَعْدُ الْاٰخِرَةِ جِئْنَا بِكُمْ لَفِیْفًا ۟ؕ
और हमने उसके बाद बनी इसराईल से कहा : तुम इस धरती में बस जाओ। फिर जब आख़िरत का वादा आएगा, तो हम तुम सबको ले आएँगे।
Faccirooji aarabeeji:
وَبِالْحَقِّ اَنْزَلْنٰهُ وَبِالْحَقِّ نَزَلَ ؕ— وَمَاۤ اَرْسَلْنٰكَ اِلَّا مُبَشِّرًا وَّنَذِیْرًا ۟ۘ
और हमने सत्य ही के साथ इस (क़ुरआन) को उतारा है, तथा यह सत्य ही के साथ उतरा है। और हमने आपको केवल शुभ सूचना देने वाला तथा डराने वाला बनाकर भेजा है।
Faccirooji aarabeeji:
وَقُرْاٰنًا فَرَقْنٰهُ لِتَقْرَاَهٗ عَلَی النَّاسِ عَلٰی مُكْثٍ وَّنَزَّلْنٰهُ تَنْزِیْلًا ۟
और हमने इस क़ुरआन को अलग-अलग करके उतारा है, ताकि आप इसे लोगों के सामने ठहर-ठहर कर पढ़ें और हमने इसे थोड़ा-थोड़ा[63] करके उतारा है।
63. अर्थात तेईस वर्ष की अवधि में।
Faccirooji aarabeeji:
قُلْ اٰمِنُوْا بِهٖۤ اَوْ لَا تُؤْمِنُوْا ؕ— اِنَّ الَّذِیْنَ اُوْتُوا الْعِلْمَ مِنْ قَبْلِهٖۤ اِذَا یُتْلٰی عَلَیْهِمْ یَخِرُّوْنَ لِلْاَذْقَانِ سُجَّدًا ۟ۙ
आप कह दें : तुम इस (क़ुरआन) पर ईमान लाओ या ईमान न लाओ, निःसंदेह जिन लोगों को इससे पहले ज्ञान दिया गया[64], जब उनके सामने इसे पढ़कर सुनाया जाता है, तो वे ठुड्डियों के बल सजदे में गिर जाते हैं।
64. अर्थात वे विद्वान जिन्हें कुरआन से पहले की पुस्तकों का ज्ञान है।
Faccirooji aarabeeji:
وَّیَقُوْلُوْنَ سُبْحٰنَ رَبِّنَاۤ اِنْ كَانَ وَعْدُ رَبِّنَا لَمَفْعُوْلًا ۟
और कहते हैं : पवित्र है हमारा पालनहार! निःसंदेह हमारे पालनहार का वादा अवश्य पूरा होना है।
Faccirooji aarabeeji:
وَیَخِرُّوْنَ لِلْاَذْقَانِ یَبْكُوْنَ وَیَزِیْدُهُمْ خُشُوْعًا ۟
और वे रोते हुए ठुड्डियों के बल गिर जाते हैं और यह (क़ुरआन) उनके विनय को बढ़ा देता है।
Faccirooji aarabeeji:
قُلِ ادْعُوا اللّٰهَ اَوِ ادْعُوا الرَّحْمٰنَ ؕ— اَیًّا مَّا تَدْعُوْا فَلَهُ الْاَسْمَآءُ الْحُسْنٰی ۚ— وَلَا تَجْهَرْ بِصَلَاتِكَ وَلَا تُخَافِتْ بِهَا وَابْتَغِ بَیْنَ ذٰلِكَ سَبِیْلًا ۟
(ऐ नबी!) आप कह दें : 'अल्लाह' कहकर पुकारो या 'रहमान' कहकर पुकारो। तुम जिस नाम से भी पुकारोगे, उसके सभी नाम अच्छे[65] हैं। और (ऐ नबी!) नमाज़ में आवाज़ न तो ऊँची रखो और न नीची, बल्कि इन दोनों के बीच का मार्ग अपनाओ।[66]
65. अरब में "अल्लाह" शब्द प्रचलित था, मगर "रह़मान" प्रचलित न था। इसलिए, वे इस नाम पर आपत्ति करते थे। यह आयत इसी का उत्तर है। 66. ह़दीस में है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम (आरंभिक युग में) मक्का में छिपकर रहते थे। और जब अपने साथियों को ऊँचे स्वर में नमाज़ पढ़ाते थे, तो मुश्रिक उसे सुनकर क़ुरआन को तथा जिसने क़ुरआन उतारा है, और जो उसे लाया है, सब को गालियाँ देते थे। अतः अल्लाह ने अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को यह आदेश दिया। (सह़ीह़ बुख़ारी, ह़दीस संख्या : 4722)
Faccirooji aarabeeji:
وَقُلِ الْحَمْدُ لِلّٰهِ الَّذِیْ لَمْ یَتَّخِذْ وَلَدًا وَّلَمْ یَكُنْ لَّهٗ شَرِیْكٌ فِی الْمُلْكِ وَلَمْ یَكُنْ لَّهٗ وَلِیٌّ مِّنَ الذُّلِّ وَكَبِّرْهُ تَكْبِیْرًا ۟۠
तथा कहो : सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने (अपने लिए) कोई संतान नहीं बनाई, और न राज्य में उसका कोई साझी है, और न विवशता (कमज़ोरी) के कारण उसका कोई मददगार है। और आप उसकी पूर्ण महिमा का गान करें।
Faccirooji aarabeeji:
 
Firo maanaaji Simoore: Simoore roɓo
Tippudi cimooje Tonngoode hello ngoo
 
Firo maanaaji al-quraan tedduɗo oo - Firo enndiiwo - Tippudi firooji ɗii

Firo Maanaaji Al-quraan tedduɗ oo e ɗemngal enndo, firi ɗum ko Asiis Al-haq Al-umri

Uddude