यह अल्लाह का वादा है। अल्लाह अपने वादे[1] के विरुद्ध नहीं करता। परंतु अधिकतर लोग नहीं जानते।
1. इन आयतों के अंदर दो भविष्यवाणियाँ की गई हैं। जो क़ुरआन शरीफ़ तथा स्वयं नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के सत्य होने का ऐतिहासिक प्रमाण हैं। यह वह युग था जब नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और मक्का के क़ुरैश के बीच युद्ध आरंभ हो गया था। रूम के राजा क़ैसर को उस समय, ईरान के राजा किस्रा ने पराजित कर दिया था। जिससे मक्का वासी प्रसन्न थे। क्योंकि वह अग्नि के पुजारी थे। और रूमी ईसाई अकाशीय धर्म के अनुयायी थे। और कह रहे थे कि हम मिश्रणवादी भी इसी प्रकार मुसलमानों को पराजित कर देंगे जिस प्रकार रूमियों को ईरानियों ने पराजित किया। इसी पर यह दो भविष्यवाणी की गई कि रूमी कुछ वर्षों में फिर विजयी हो जाएँगे और यह भविष्यवाणी इसके साथ पूरी होगी कि मुसलमान भी उसी समय विजय होकर प्रसन्न हो रहे होंगे। और ऐसा ही हुआ कि 9 वर्ष के भीतर रूमियों ने ईरानियों को पराजित कर दिया।
वे केवल दुनिया के जीवन के कुछ बाहरी स्वरूप[2] को जानते हैं, और वे आख़िरत से बिलकुल गाफ़िल हैं।
2. अर्थात सुख-सुविधा और आनंद को। और वे इससे अचेत हैं कि एक और जीवन भी है जिसमें कर्मों के परिणाम सामने आएँगे। बल्कि यही देखा जाता है कि कभी एक जाति उन्नति कर लेने के पश्चात् असफल हो जाती है।
क्या उन लोगों ने अपने दिलों में विचार नहीं किया कि अल्लाह ने आकाशों और धरती को और उन दोनों के बीच मौजूद सारी चीज़ों[3] को सत्य के साथ और एक निश्चित अवधि के लिए ही पैदा किया है?! और निःसंदेह बहुत-से लोग अपने पालनहार से मिलने का इनकार करते हैं।
3. संसार की व्यवस्था बता रही है कि यह अकारण नहीं, बल्कि इसका कुछ अभिप्राय है।
और क्या वे धरती में चले-फिरे नहीं कि देखते उन लोगों का परिणाम कैसा हुआ, जो उनसे पहले थे? वे उनसे अधिक शक्तिशाली थे और उन्होंने धरती को जोता-बोया और उसे आबाद किया उससे अधिक जितना उन्होंने उसे आबाद किया था, और उनके पास उनके रसूल खुली निशानियाँ लेकर आए। तो अल्लाह ऐसा न था कि उनपर अत्याचार करे, लेकिन वे स्वयं अपने ऊपर अत्याचार करते थे।
वह जीवित को मृत से निकालता[7] है तथा मृत को जीवित से निकालता है और धरती को उसके मृत हो जाने के बाद जीवित करता है। और इसी प्रकार, तुम (भी) निकाले जाओगे।
7. यहाँ से यह बताया जा रहा है कि परलोक में सब को पुनः जीवित किया जाना संभव है और उसका प्रमाण दिया जा रहा है। इसी के साथ यह भी बताया जा रहा है कि इस ब्रह्मांड का स्वामी और व्यवस्थापक अल्लाह ही है, अतः पूज्य भी केवल वही है।
तथा उसकी निशानियों में से है कि उसने तुम्हारे लिए तुम्ही में से जोड़े पैदा किए, ताकि तुम उनके पास शांति प्राप्त करो। तथा उसने तुम्हारे बीच प्रेम और दया रख दी। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए बहुत-सी निशाननियाँ हैं, जो सोच-विचार करते हैं।
तथा उसकी निशानियों में से आकाशों और धरती को पैदा करना तथा तुम्हारी भाषाओं और तुम्हारे रंगों का अलग-अलग होना है। निःसंदेह इसमें ज्ञान रखने वालों के लिए निश्चय बहुत-सी निशानियाँ[8] है।
8. क़ुरआन ने यह कहकर कि भाषाओं और वर्ग-वर्ण का भेद अल्लाह की रचना की निशानियाँ हैं, उस भेद-भाव को सदा के लिए समाप्त कर दिया, जो पक्षपात, आपसी बैर और र्गव का आधार बनते हैं। और संसार की शांति को भंग करने का कारण होते हैं। (देखिए : सूरतुल ह़ुजुरात, आयत : 13) यदि आज भी इस्लाम की इस शिक्षा को अपना लिया जाए तो संसार शांति का गहवारा बन सकता है।
तथा उसकी निशानियों में से तुम्हारा रात और दिन को सोना और तुम्हारा उसके अनुग्रह को तलाश करना है। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए निश्चय बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो सुनते हैं।
और उसकी निशानियों में से (यह भी) है कि वह तुम्हें भय और आशा के लिए बिजली दिखाता है और आकाश से पानी उतारता है, फिर उसके द्वारा धरती को उसके मृत हो जाने के बाद जीवित कर देता है। निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो समझते हैं।
तथा वही है, जो उत्पत्ति का आरंभ करता है। फिर वही उसे पुनः पैदा करेगा। और यह उसके लिए अधिक सरल है। तथा आकाशों और धरती में सर्वोच्च गुण उसी का है। और वही प्रभुत्वशाली, हिकमत वाला है।
उसने तुम्हारे लिए स्वयं तुम्हीं में से एक उदाहरण पेश किया है। हमने जो रोज़ी तुम्हें प्रदान की है, क्या उसमें तुम्हारे[9] दासों में से तुम्हारा कोई साझी है कि तुम उसमें समान हो, उनसे वैसे ही डरते हो, जैसे एक-दूसरे से डरते हो? इसी प्रकार हम उन लोगों के लिए आयतें खोल-खोलकर वर्णन करते हैं, जो समझ रखते हैं।
9. परलोक और एकेश्वरवाद के तर्कों का वर्णन करने के पश्चात् इस आयत में शुद्ध एकेश्वरवाद के प्रमाण प्रस्तुत किए जा रहे हैं कि जब तुम स्वयं अपने दासों को अपनी जीविका में साझी नहीं बना सकते, तो जिस अल्लाह ने सबको बनाया है उसकी उपासना में दूसरों को कैसे साझी बनाते हो?
बल्कि वे लोग जिन्होंने अत्याचार किया बिना किसी ज्ञान के अपनी इच्छाओं के पीछे चल पड़े।फिर उसे कौन मार्ग पर लाए, जिसे अल्लाह ने गुमराह कर दिया हो। और उनके लिए कोई सहायक नहीं है।
तो (ऐ नबी!) आप एकाग्र होकर अपने चेहरे को इस धर्म की ओर स्थापित करें। उस फ़ितरत पर जमे रहें, जिसपर[10] अल्लाह ने लोगों को पैदा किया है। अल्लाह की रचना में कोई बदलाव नहीं हो सकता। यही सीधा धर्म है, लेकिन अधिकतर लोग नहीं जानते।[11]
10. एक ह़दीस में कुछ इस प्रकार आया है कि प्रत्येक शिशु प्रकृति (अर्थात इस्लाम) पर जन्म लेता है। परंतु उसके माँ-बाप उसे यहूदी या ईसाई या मजूसी बना देते हैं। (देखिए : सह़ीह़ मुस्लिम : 2656) और यदि उसके माता पिता हिन्दु अथवा बुद्ध या और कुछ हैं, तो वे अपने शिशु को अपने धर्म के रंग में रंग देते हैं। आयत का भावार्थ यह है कि स्वभाविक धर्म इस्लाम और तौह़ीद को न बदलो, बल्कि सह़ीह पालन-पोषण द्वारा अपने शिशु को इसी स्वभाविक धर्म इस्लाम की शिक्षा दो। 11. इसीलिए वे इस्लाम और तौह़ीद को नहीं पहचानते।
और जब लोगों को कोई कष्ट पहुँचता है, तो वे अपने पालनहार को, उसकी ओर लौटते हुए पुकारते हैं। फिर जब वह उन्हें अपनी ओर से कोई दया चखाता है, तो सहसा उनमें से एक समूह अपने पालनहार के साथ शिर्क करने लगता है।
और जब हम लोगों को कोई दया चखाते हैं, तो वे उससे प्रसन्न हो जाते हैं, और अगर उन्हें उनकी करतूतों के कारण कोई विपत्ति पहुँचती है, तो वे सहसा निराश हो जाते हैं।
क्या उन्होंने नहीं देखा कि अल्लाह जिसके लिए चाहता है, रोज़ी विस्तृत कर देता है, और जिसके लिए चाहता है, तंग कर देता है? निःसंदेह इसमें उन लोगों के लिए बहुत-सी निशानियाँ हैं, जो ईमान रखते हैं।
और तुम ब्याज पर जो (उधार) देते हो, ताकि वह लोगों के धनों में मिलकर अधिक[14] हो जाए, तो वह अल्लाह के यहाँ अधिक नहीं होता। तथा तुम अल्लाह का चेहरा चाहते हुए जो कुछ ज़कात से देते हो, तो वही लोग कई गुना बढ़ाने वाले हैं।
14. इस आयत में सामाजिक अधिकारों की ओर ध्यान दिलाया गया है कि जब सब कुछ अल्लाह ही का दिया हुआ है, तो तुम्हें अल्लाह की प्रसन्नता के लिए सबका अधिकार देना चाहिए। ह़दीस में है कि जो व्याज खाता-खिलाता है और उसे लिखता तथा उसपर गवाही देता है उस पर नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने धिक्कार किया है।
अल्लाह वह (अस्तित्व) है, जिसने तुम्हें पैदा किया, फिर तुम्हें जीविका प्रदान की, फिर तुम्हें मृत्यु देगा, फिर तुम्हें जीवित करेगा।[15] क्या तुम्हारे साझियों में से कोई है, जो इन कामों में से कुछ भी कर सके? वह पवित्र है और सर्वोच्च है, उनके साझी बनाने से।
15. इसमें फिर एकेश्वरवाद का वर्णन तथा शिर्क का खंडन किया गया है।
जल और थल में लोगों के हाथों की कमाई के कारण बिगाड़ फैल गया[16] है, ताकि वह (अल्लाह) उन्हें उनके कुछ कर्मों का मज़ा चखाए, ताकि वे बाज़ आ जाएँ।
16. आयत में बताया गया है कि इस संसार में जो उपद्रव तथा अत्याचार हो रहा है यह सब शिर्क के कारण हो रहा है। जब लोगों ने एकेश्वर्वाद को छोड़कर शिर्क अपना लिया, तो अत्याचार और उपद्रव होने लगा। क्योंकि न एक अल्लाह का भय रह गया और न उसके नियमों का पालन।
और उसकी निशानियों में से है कि वह शुभ सूचना देने वाली हवाएँ भेजता है, और ताकि तुम्हें अपनी दया (वर्षा) चखाए, और ताकि उसके आदेश से नावें चलें, और ताकि तुम उसका अनुग्रह (रोज़ी) तलाश करो, और ताकि तुम आभार प्रकट करो।
निश्चय हमने आपसे पहले कई रसूल उनकी जातियों की ओर भेजे। तो वे उनके पास खुली निशानियाँ लेकर आए। फिर हमने उन लोगों से बदला लिया, जिन्होंने अपराध किया। और हमपर ईमान वालों की सहायता[18] करना अनिवार्य था।
18. आयत में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तथा आपके अनुयायियों को सांत्वना दी जा रही है।
अल्लाह ही है, जो हवाओं को भेजता है। तो वे बादल उठाती हैं। फिर वह उसे जैसे चाहता है, आकाश में फैला देता है, और उसे टुकड़े-टुकड़े कर देता है। तो तुम वर्षा की बूँदों को उसके बीच से निकलते देखते हो। फिर जब वह उसे अपने बंदों में से जिसपर चाहता है, बरसाता है, तो सहसा वे बहुत खुश हो जाते हैं।
तो आप अल्लाह की दया के संकेतों को देखें कि वह किस तरह धरती को उसके मृत हो जाने के पश्चात् जीवित करता है! निःसंदेह वही निश्चय मुर्दों को जीवित करने वाला है और वह हर चीज़ में पूरी तरह सक्षम है।
तथा आप अंधों को उनकी गुमारही से हटाकर सीधे मार्ग पर नहीं ला सकते। आप तो केवल उन्हीं को सुना सकते हैं, जो हमारी आयतों पर ईमान रखते हैं। तो वही आज्ञाकारी हैं।
अल्लाह वह है, जिसने तुम्हें कमज़ोरी (की स्थिति) से पैदा, फिर (बचपन की) कमज़ोरी के बाद शक्ति प्रदान की, फिर शक्ति के बाद कमज़ोरी और बुढ़ापा[20] बना दिया। वह जो चाहता है, पैदा करता है। और वही सब कुछ जानने वाला, हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।
20. अर्थात एक व्यक्ति जन्म से मरण तक अल्लाह के सामर्थ्य के अधीन रहता है, फिर उसकी उपासना में उसके अधीन होने और उसके पुनः पैदा कर देने के सामर्थ्य को अस्वीकार क्यों करते है?
तथा जिन लोगों को ज्ञान और ईमान दिया गया, वे कहेंगे कि तुम अल्लाह के लेख के अनुसार उठाए जाने के दिन तक ठहरे रहे। तो यह उठाए जाने का दिन है। लेकिन तुम नहीं जानते थे।
और निःसंदेह हमने इस क़ुरआन में लोगों के लिए हर तरह के उदाहरण बयान किए हैं और यदि आप उनके पास कोई निशानी लाएँ, तो निश्चय कुफ़्र करने वाले अवश्य कहेंगे कि तुम तो केवल मिथ्यावादी हो।
तो आप धैर्य से काम लें। निःसंदेह अल्लाह का वचन सत्य है और वे लोग आपको[22] कदापि हल्का (अधीर) न कर दें, जो यक़ीन नहीं रखते।
22. अंतिम आयत में आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को धैर्य तथा साहस रखने का आदेश दिया गया है। और अल्लाह ने जो विजय देने तथा सहायता करने का वचन दिया है, उसके पूरा होने और निराश न होने के लिए कहा जा रहा है।
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json object containing array of objects, each object contains the "sura", "aya", "translation" and "footnotes".
GET / https://quranenc.com/api/v1/translation/aya/{translation_key}/{sura_number}/{aya_number} description: get the specified translation (by its translation_key) for the speicified aya (by its number sura_number and aya_number)
Parameters: translation_key: (the key of the currently selected translation) sura_number: [1-114] (Sura number in the mosshaf which should be between 1 and 114) aya_number: [1-...] (Aya number in the sura)
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