Translation of the Meanings of the Noble Qur'an - Hindi Translation * - Translations’ Index

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Translation of the meanings Surah: An-Noor   Ayah:

सूरा अन्-नूर

سُوْرَةٌ اَنْزَلْنٰهَا وَفَرَضْنٰهَا وَاَنْزَلْنَا فِیْهَاۤ اٰیٰتٍۢ بَیِّنٰتٍ لَّعَلَّكُمْ تَذَكَّرُوْنَ ۟
यह एक महान सूरत है, हमने इसे उतारा तथा हमने इसे अनिवार्य किया और हमने इसमें स्पष्ट आयतें उतारीं हैं; ताकि तुम शिक्षा ग्रहण करो।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَلزَّانِیَةُ وَالزَّانِیْ فَاجْلِدُوْا كُلَّ وَاحِدٍ مِّنْهُمَا مِائَةَ جَلْدَةٍ ۪— وَّلَا تَاْخُذْكُمْ بِهِمَا رَاْفَةٌ فِیْ دِیْنِ اللّٰهِ اِنْ كُنْتُمْ تُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ وَالْیَوْمِ الْاٰخِرِ ۚ— وَلْیَشْهَدْ عَذَابَهُمَا طَآىِٕفَةٌ مِّنَ الْمُؤْمِنِیْنَ ۟
जो व्यभिचार[1] करने वाली महिला है और जो व्यभिचार करने वाला पुरुष है, दोनों में से प्रत्येक को सौ कोड़े मारो। और तुम्हें अल्लाह के धर्म के विषय में उन दोनों पर कोई तरस न आए[2], यदि तुम अल्लाह तथा अंतिम दिन पर ईमान रखते हो। और आवश्यक है कि उनके दंड के समय ईमानवालों का एक समूह उपस्थित[3] हो।
1. व्यभिचार से संबंधित आरंभिक आदेश सूरतुन्-निसा, आयत : 15 में आ चुका है। अब यहाँ निश्चित रूप से उसका दंड निर्धारित कर दिया गया है। आयत में वर्णित सौ कोड़े दंड अविवाहित व्यभिचारी तथा व्याभिचारिणी के लिए हैं। आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) अविवाहित व्यभिचारी को सौ कोड़े मारने का और एक वर्ष देश से निकाल देने का आदेश देते थे। (सह़ीह़ बुख़ारी : 6831) किंतु यदि दोनों में कोई विवाहित है, तो उसके लिए रज्म (पत्थरों से मार डालने) का दंड है। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : मुझसे (शिक्षा) ले लो, मुझसे (शिक्षा) ले लो। अल्लाह ने उनके लिए राह बना दी। अविवाहित के लिए सौ कोड़े और विवाहित के लिए रज्म है। (सह़ीह़ मुस्लिम : 1690, अबूदाऊद : 4418) इत्यादि। आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपने युग में रज्म का दंड दिया, जिसके सह़ीह़ ह़दीसों में कई उदाहरण हैं। और ख़ुलफ़ा-ए-राशिदीन के युग में भी यही दंड दिया गया। और इसपर मुस्लिम समुदाय का इज्मा (सर्वसम्मति) है। व्यभिचार ऐसा घोर पाप है, जिससे पारिवारिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है। पति-पत्नि को एक-दूसरे पर विश्वास नहीं रह जाता। और यदि कोई शिशु जन्म ले, तो उसके पालन-पोषण की गंभीर समस्या सामने आती है। इसीलिये इस्लाम ने इसका घोर दंड रखा है ताकि समाज और समाज वालों को शांत और सुरक्षित रखा जाए। 2. अर्थात दया भाव के कारण दंड देने से न रुक जाओ। 3. ताकि लोग दंड से शिक्षा लें।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَلزَّانِیْ لَا یَنْكِحُ اِلَّا زَانِیَةً اَوْ مُشْرِكَةً ؗ— وَّالزَّانِیَةُ لَا یَنْكِحُهَاۤ اِلَّا زَانٍ اَوْ مُشْرِكٌ ۚ— وَحُرِّمَ ذٰلِكَ عَلَی الْمُؤْمِنِیْنَ ۟
व्यभिचारी नहीं विवाह[4] करेगा, परंतु किसी व्यभिचारिणी अथवा बहुदेववादी स्त्री से, तथा व्यभिचारिणी से नहीं विवाह करेगा, परंतु कोई व्यभिचारी अथवा बहुदेववादी। और यह ईमान वालों पर हराम (निषिद्ध) कर दिया गया है।
4. आयत का अर्थ यह है कि साधारणतः कुकर्मी विवाह के लिए अपने ही जैसों की ओर आकर्षित होते हैं। अतः व्यभिचारिणी, व्यभिचारी ही से विवाह करने में रूचि रखती है। इसमें ईमानवालों को सतर्क किया गया है कि जिस प्रकार व्यभिचार महा पाप है उसी प्रकार व्यभिचारियों के साथ विवाह संबंध स्थापित करना भी निषिद्ध है। कुछ भाष्यकारों ने यहाँ विवाह का अर्थ व्यभिचार लिया है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَالَّذِیْنَ یَرْمُوْنَ الْمُحْصَنٰتِ ثُمَّ لَمْ یَاْتُوْا بِاَرْبَعَةِ شُهَدَآءَ فَاجْلِدُوْهُمْ ثَمٰنِیْنَ جَلْدَةً وَّلَا تَقْبَلُوْا لَهُمْ شَهَادَةً اَبَدًا ۚ— وَاُولٰٓىِٕكَ هُمُ الْفٰسِقُوْنَ ۟ۙ
तथा जो लोग सच्चरित्रा स्त्रियों पर व्यभिचार का आरोप[5] लगाएँ, फिर चार गवाह न लाएँ, तो उन्हें अस्सी कोड़े मारो और उनकी कोई गवाही कभी स्वीकार न करो और वही अवज्ञाकारी लोग हैं।
5. इसमें किसी पवित्र पुरुष या स्त्री पर व्यभिचार का कलंक लगाने का दंड बताया गया है कि जो पुरुष अथवा स्त्री किसी पर कलंक लगाए, तो वह चार ऐसे साक्षी लाए जिन्होंने उनको व्यभिचार करते अपनी आँखों से देखा हो। और यदि वह प्रमाण स्वरूप चार साक्षी न लाए तो उस के तीन आदेश हैः (क) उसे अस्सी कोड़ लगाये जाएँ। (ख) उसका साक्ष्य कभी स्वीकार न किया जाए। (ग) वह अल्लाह तथा लोगों के समक्ष दुराचारी है।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِلَّا الَّذِیْنَ تَابُوْا مِنْ بَعْدِ ذٰلِكَ وَاَصْلَحُوْا ۚ— فَاِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟
परंतु जो लोग इसके बाद तौबा करें तथा सुधार कर लें, तो निश्चय अल्लाह अत्यंत क्षमाशील, असीम दयावान् है।[6]
6. सभी विद्वानों की सर्वसम्मति है कि क्षमा याचना से उसे दंड (अस्सी कोड़े) से क्षमा नहीं मिलेगी। बल्कि क्षमा के पश्चात् वह अवज्ञाकारी नहीं रह जाएगा, तथा उसका साक्ष्य स्वीकार किया जाएगा। अधिकतर विद्वानों का यही विचार है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَالَّذِیْنَ یَرْمُوْنَ اَزْوَاجَهُمْ وَلَمْ یَكُنْ لَّهُمْ شُهَدَآءُ اِلَّاۤ اَنْفُسُهُمْ فَشَهَادَةُ اَحَدِهِمْ اَرْبَعُ شَهٰدٰتٍۢ بِاللّٰهِ ۙ— اِنَّهٗ لَمِنَ الصّٰدِقِیْنَ ۟
और जो लोग अपनी पत्नियों पर व्यभिचार का आरोप लगाएँ और उनके पास स्वयं के अलावा कोई गवाह न हों[7], तो उनमें से हर एक की गवाही यह है कि अल्लाह की क़सम खाकर चार बार यह गवाही दे कि निःसंदेह वह सच्चों में से है।[8]
7. अर्थात चार गवाह। 8. अर्थात आरोप लगाने में।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَالْخَامِسَةُ اَنَّ لَعْنَتَ اللّٰهِ عَلَیْهِ اِنْ كَانَ مِنَ الْكٰذِبِیْنَ ۟
और पाँचवीं बार यह (कहे) कि उसपर अल्लाह की धिक्कार हो, यदि वह झूठों में से हो।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَیَدْرَؤُا عَنْهَا الْعَذَابَ اَنْ تَشْهَدَ اَرْبَعَ شَهٰدٰتٍۢ بِاللّٰهِ ۙ— اِنَّهٗ لَمِنَ الْكٰذِبِیْنَ ۟ۙ
और उस (स्त्री) से दंड[9] को यह बात हटाएगी कि वह अल्लाह की क़सम खाकर चार बार गवाही दे कि निःसंदेह वह (व्यक्ति) झूठों में से है।
9. अर्थात व्यभिचार का दंड।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَالْخَامِسَةَ اَنَّ غَضَبَ اللّٰهِ عَلَیْهَاۤ اِنْ كَانَ مِنَ الصّٰدِقِیْنَ ۟
और पाँचवीं बार यह (कहे) कि उसपर अल्लाह का प्रकोप हो, यदि वह (व्यक्ति) सच्चों में से है।[10]
10. शरीअत की परिभाषा में इसे "लिआन" कहा जाता है। यह लिआन न्यायालय में अथवा न्यायालय के अधिकारी के समक्ष होना चाहिए। लिआन की माँग पुरुष की ओर से भी हो सकती है और स्त्री की ओर से भी। लिआन के पश्चात् दोनों सदा के लिए अलग हो जाएँगे। लिआन का अर्थ होता होता है : धिक्कार। और इसमें पति और पत्नी दोनों अपने को झूठा होने की अवस्था में धिक्कार का पात्र स्वीकार करते हैं। यदि पति अपनी पत्नी के गर्भ का इनकार करे, तब भी लिआन होता है। (बुख़ारी : 4746, 4747, 4748)
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَوْلَا فَضْلُ اللّٰهِ عَلَیْكُمْ وَرَحْمَتُهٗ وَاَنَّ اللّٰهَ تَوَّابٌ حَكِیْمٌ ۟۠
और यदि तुमपर अल्लाह का अनुग्रह और उसकी दया न होती और यह कि अल्लाह बहुत तौबा स्वीकार करने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है (तो झूठे को दुनिया ही में सज़ा मिल जाती)।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ الَّذِیْنَ جَآءُوْ بِالْاِفْكِ عُصْبَةٌ مِّنْكُمْ ؕ— لَا تَحْسَبُوْهُ شَرًّا لَّكُمْ ؕ— بَلْ هُوَ خَیْرٌ لَّكُمْ ؕ— لِكُلِّ امْرِئٍ مِّنْهُمْ مَّا اكْتَسَبَ مِنَ الْاِثْمِ ۚ— وَالَّذِیْ تَوَلّٰی كِبْرَهٗ مِنْهُمْ لَهٗ عَذَابٌ عَظِیْمٌ ۟
निःसंदेह जो लोग झूठ गढ़[11] लाए हैं, वे तुम्हारे ही भीतर के एक समूह हैं। तुम उसे अपने लिए बुरा मत समझो, बल्कि वह तुम्हारे लिए बेहतर[12] है। उनमें से प्रत्येक आदमी के लिए गुनाह में से उतना ही भाग है, जितना उसने कमाया। और उनमें से जो उसके बड़े भाग का ज़िम्मेदार[13] बना, उसके लिए बहुत बड़ी यातना है।
11. यहाँ से आयत 26 तक उस मिथ्यारोपण का वर्णन किया गया है, जो मुनाफ़िक़ों ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पत्नी आयशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) पर बनी मुस्तलिक़ के युद्ध में वापसी के समय लगाया था। इस युद्ध से वापसी के समय नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक स्थान पर पड़ाव किया। अभी कुछ रात रह गई थी कि यात्रा की तैयारी होने लगी। उस समय आयशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) उस स्थान से दूर शौच के लिए गईं और उनका हार टूटकर गिर गया। वह उसकी खोज में रह गईं। सेवकों ने उनकी पालकी को सवारी पर यह समझ कर लाद दिया कि वह उसमें होंगी। वह आईं तो वहीं लेट गईं कि कोई अवश्य खोजने आएगा। थोड़ी देर में सफ़वान पुत्र मुअत्तल (रज़ियल्लाहु अन्हु) जो यात्रियों के पीछे उन की गिरी-पड़ी चीज़ों को संभालने का काम करते थे, वहाँ आ गए। और इन्ना लिल्लाह पढ़ी, जिससे आप जाग गईं और उनको पहचान लिया। क्योंकि उन्होंने पर्दें का आदेश आने से पहले उन्हें देखा था। उन्होंने आपको अपने ऊँट पर सवार किया और स्वयं पैदल चलकर यात्रियों से जा मिले। मुनाफ़िक़ों ने इस अवसर को उचित जाना, और उनके मुखिया अब्दुल्लाह बिन उबय्य ने कहा कि यह एकांत अकारण नहीं था। और आयशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) को सफ़वान के साथ कलंकित कर दिया। और उस के षड्यंत्र में कुछ सच्चे मुसलमान भी आ गए। इसका पूरा विवरण ह़दीस में मिलेगा। (देखिए सह़ीह़ बुख़ारी : 4750) 12. अर्थ यह है कि इस दुःख पर तुम्हें प्रतिफल मिलेगा। 13. इससे तात्पर्य अब्दुल्लाह बिन उबय्य मुनाफ़िक़ों का मुखिया है।
Arabic explanations of the Qur’an:
لَوْلَاۤ اِذْ سَمِعْتُمُوْهُ ظَنَّ الْمُؤْمِنُوْنَ وَالْمُؤْمِنٰتُ بِاَنْفُسِهِمْ خَیْرًا ۙ— وَّقَالُوْا هٰذَاۤ اِفْكٌ مُّبِیْنٌ ۟
क्यों न जब तुमने उसे सुना, तो ईमान वाले पुरुषों तथा ईमान वाली स्त्रियों ने अपने बारे में अच्छा गुमान किया और कहा कि यह स्पष्ट मिथ्यारोपण है?
Arabic explanations of the Qur’an:
لَوْلَا جَآءُوْ عَلَیْهِ بِاَرْبَعَةِ شُهَدَآءَ ۚ— فَاِذْ لَمْ یَاْتُوْا بِالشُّهَدَآءِ فَاُولٰٓىِٕكَ عِنْدَ اللّٰهِ هُمُ الْكٰذِبُوْنَ ۟
वे इसपर चार गवाह क्यों न लाए? फिर जब वे गवाह नहीं लाए, तो निःसंदेह अल्लाह के निकट वही झूठे हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَوْلَا فَضْلُ اللّٰهِ عَلَیْكُمْ وَرَحْمَتُهٗ فِی الدُّنْیَا وَالْاٰخِرَةِ لَمَسَّكُمْ فِیْ مَاۤ اَفَضْتُمْ فِیْهِ عَذَابٌ عَظِیْمٌ ۟ۚ
और यदि तुमपर दुनिया एवं आख़िरत में अल्लाह का अनुग्रह और उसकी दया न होती, तो निश्चय उस बात के कारण जिसमें तुम पड़ गए, तुमपर बहुत बड़ी यातना आ जाती।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِذْ تَلَقَّوْنَهٗ بِاَلْسِنَتِكُمْ وَتَقُوْلُوْنَ بِاَفْوَاهِكُمْ مَّا لَیْسَ لَكُمْ بِهٖ عِلْمٌ وَّتَحْسَبُوْنَهٗ هَیِّنًا ۖۗ— وَّهُوَ عِنْدَ اللّٰهِ عَظِیْمٌ ۟
जब तुम इसे एक-दूसरे से अपनी ज़बानों के साथ ले रहे थे और अपने मुँहों से वह बात कह रहे थे, जिसका तुम्हें कोई ज्ञान नहीं तथा तुम इसे साधारण समझते थे, हालाँकि वह अल्लाह के निकट बहुत बड़ी थी।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَوْلَاۤ اِذْ سَمِعْتُمُوْهُ قُلْتُمْ مَّا یَكُوْنُ لَنَاۤ اَنْ نَّتَكَلَّمَ بِهٰذَا ۖۗ— سُبْحٰنَكَ هٰذَا بُهْتَانٌ عَظِیْمٌ ۟
और जब तुमने इसे सुना, तो क्यों नहीं कहा : हमारे लिए उचित नहीं है कि हम यह बात बोलें? (ऐ अल्लाह!) तू पवित्र है! यह तो बहुत बड़ा आरोप है।
Arabic explanations of the Qur’an:
یَعِظُكُمُ اللّٰهُ اَنْ تَعُوْدُوْا لِمِثْلِهٖۤ اَبَدًا اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِیْنَ ۟ۚ
अल्लाह तुम्हें नसीहत करता है कि पुनः कभी ऐसा न करना, यदि तुम ईमान वाले हो।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَیُبَیِّنُ اللّٰهُ لَكُمُ الْاٰیٰتِ ؕ— وَاللّٰهُ عَلِیْمٌ حَكِیْمٌ ۟
और अल्लाह तुम्हारे लिए आयतें खोलकर बयान करता है तथा अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ الَّذِیْنَ یُحِبُّوْنَ اَنْ تَشِیْعَ الْفَاحِشَةُ فِی الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَهُمْ عَذَابٌ اَلِیْمٌ ۙ— فِی الدُّنْیَا وَالْاٰخِرَةِ ؕ— وَاللّٰهُ یَعْلَمُ وَاَنْتُمْ لَا تَعْلَمُوْنَ ۟
निःसंदेह जो लोग चाहते हैं कि ईमान वालों के अंदर अश्लीलता[14] फैले, उनके लिए दुनिया एवं आख़िरत में दुःखदायी यातना है, तथा अल्लाह जानता[15] है और तुम नहीं जानते।
14. अश्लीलता, व्यभिचार और व्यभिचार के निर्मूल आरोप दोनों को कहा गया है। 15. उनके मिथ्यारोपण को।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَوْلَا فَضْلُ اللّٰهِ عَلَیْكُمْ وَرَحْمَتُهٗ وَاَنَّ اللّٰهَ رَءُوْفٌ رَّحِیْمٌ ۟۠
और यदि तुमपर अल्लाह का अनुग्रह तथा उसकी दया न होती, और यह कि अल्लाह अत्यंत करुणामय, असीम दयावान् है (तो आरोप लगाने वालों पर तुरंत यातना आ जाती)
Arabic explanations of the Qur’an:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا تَتَّبِعُوْا خُطُوٰتِ الشَّیْطٰنِ ؕ— وَمَنْ یَّتَّبِعْ خُطُوٰتِ الشَّیْطٰنِ فَاِنَّهٗ یَاْمُرُ بِالْفَحْشَآءِ وَالْمُنْكَرِ ؕ— وَلَوْلَا فَضْلُ اللّٰهِ عَلَیْكُمْ وَرَحْمَتُهٗ مَا زَكٰی مِنْكُمْ مِّنْ اَحَدٍ اَبَدًا ۙ— وَّلٰكِنَّ اللّٰهَ یُزَكِّیْ مَنْ یَّشَآءُ ؕ— وَاللّٰهُ سَمِیْعٌ عَلِیْمٌ ۟
ऐ ईमान वालो! शैतान के पदचिह्नों पर न चलो और जो शैतान के पदचिह्नों पर चले, तो वह तो अश्लीलता तथा बुराई का आदेश देता है। और यदि तुमपर अल्लाह का अनुग्रह और उसकी दया न होती, तो तुममें से कोई भी कभी पवित्र न होता। परंतु अल्लाह जिसे चाहता है, पवित्र करता है, और अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَا یَاْتَلِ اُولُوا الْفَضْلِ مِنْكُمْ وَالسَّعَةِ اَنْ یُّؤْتُوْۤا اُولِی الْقُرْبٰی وَالْمَسٰكِیْنَ وَالْمُهٰجِرِیْنَ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ ۪ۖ— وَلْیَعْفُوْا وَلْیَصْفَحُوْا ؕ— اَلَا تُحِبُّوْنَ اَنْ یَّغْفِرَ اللّٰهُ لَكُمْ ؕ— وَاللّٰهُ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟
और तुममें से प्रतिष्ठा और विस्तार वाले (धनी) लोग, नातेदारों और निर्धनों और अल्लाह की राह में हिजरत करने वालों को देने से क़सम न खा लें। और उन्हें चाहिए कि क्षमा कर दें तथा जाने दें! क्या तुम पसंद नहीं करते कि अल्लाह तुम्हें क्षमा कर दे?! और अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
16. आदरणीय मिसतह़ पुत्र उसासा (रज़ियल्लाहु अन्हु) निर्धन और आदरणीय अबू बक्र (रज़ियल्लाहु अन्हु) के समीपवर्ती थे। और वह उनकी सहायता किया करते थे। वह भी आदरणीय आظशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) के विरुद्ध आक्षेप में लिप्त हो गए थे। अतः आदरणीय आयशा के निर्दोष होने के बारे में आयतें उतरने के पश्चात् आदरणीय अबू बक्र ने शपथ ली कि अब वह मिसतह़ की कोई सहायता नहीं करेंगे। उसी पर यह आयत उतरी। और उन्होंने कहा : निश्चय मैं चाहता हूँ कि अल्लाह मुझे क्षमा कर दे। और पुनः उनकी सहायता करने लगे। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4750)
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ الَّذِیْنَ یَرْمُوْنَ الْمُحْصَنٰتِ الْغٰفِلٰتِ الْمُؤْمِنٰتِ لُعِنُوْا فِی الدُّنْیَا وَالْاٰخِرَةِ ۪— وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِیْمٌ ۟ۙ
निःसंदेह जो लोग सच्चरित्रा, भोली-भाली ईमान वाली स्त्रियों पर आरोप लगाते हैं, वे दुनिया एवं आख़िरत में धिक्कार दिए गए और उनके लिए बड़ी यातना है।
Arabic explanations of the Qur’an:
یَّوْمَ تَشْهَدُ عَلَیْهِمْ اَلْسِنَتُهُمْ وَاَیْدِیْهِمْ وَاَرْجُلُهُمْ بِمَا كَانُوْا یَعْمَلُوْنَ ۟
जिस दिन उनकी ज़बानें, उनके हाथ और उनके पैर, उनके विरुद्ध उसकी गवाही देंगे, जो वे किया करते थे।
Arabic explanations of the Qur’an:
یَوْمَىِٕذٍ یُّوَفِّیْهِمُ اللّٰهُ دِیْنَهُمُ الْحَقَّ وَیَعْلَمُوْنَ اَنَّ اللّٰهَ هُوَ الْحَقُّ الْمُبِیْنُ ۟
उस दिन अल्लाह उन्हें उनका न्यायपूर्ण बदला पूरा-पूरा देगा तथा वे जान लेंगे कि अल्लाह ही सत्य, (तथा सच को) उजागर करने वाला है।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَلْخَبِیْثٰتُ لِلْخَبِیْثِیْنَ وَالْخَبِیْثُوْنَ لِلْخَبِیْثٰتِ ۚ— وَالطَّیِّبٰتُ لِلطَّیِّبِیْنَ وَالطَّیِّبُوْنَ لِلطَّیِّبٰتِ ۚ— اُولٰٓىِٕكَ مُبَرَّءُوْنَ مِمَّا یَقُوْلُوْنَ ؕ— لَهُمْ مَّغْفِرَةٌ وَّرِزْقٌ كَرِیْمٌ ۟۠
अपवित्र स्त्रियाँ, अपवित्र पुरुषों के लिए हैं तथा अपवित्र पुरुष, अपवित्र स्त्रियों के लिए हैं। और पवित्र स्त्रियाँ, पवित्र पुरुषों के लिए हैं तथा पवित्र पुरुष, पवित्र स्त्रियों[17] के लिए हैं। ये लोग उससे बरी किए हुए हैं, जो वे कहते हैं। इनके लिए बड़ी क्षमा तथा सम्मान वाली जीविका है।
17. इसमें यह संकेत है कि जिन पुरुषों तथा स्त्रियों ने आदरणीय आयशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) पर आरोप लगाया, वे मन के मलिन तथा अपवित्र हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا تَدْخُلُوْا بُیُوْتًا غَیْرَ بُیُوْتِكُمْ حَتّٰی تَسْتَاْنِسُوْا وَتُسَلِّمُوْا عَلٰۤی اَهْلِهَا ؕ— ذٰلِكُمْ خَیْرٌ لَّكُمْ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُوْنَ ۟
ऐ ईमान वालो![18] अपने घरों के सिवा अन्य घरों में प्रवेश न करो, यहाँ तक कि अनुमति ले लो और उनके रहने वालों को सलाम कर लो।[19] यह तुम्हारे लिए उत्तम है, ताकि तुम याद रखो।
18. सूरत के आरंभ में ये आदेश दिए गए थे कि समाज में कोई बुराई हो जाए, तो उसका निवारण कैसे किया जाए? अब वे आदेश दिए जा रहे हैं जिनसे समाज में बुराइयों को जन्म लेने ही से रोक दिया जाए। 19. ह़दीस में इसका नियम यह बताया गया है कि (द्वार पर दाएँ या बाएँ खड़े होकर) सलाम करो। फिर कहो कि क्या भीतर आ जाऊँ? ऐसे तीन बार करो, और अनुमति न मिलने पर वापस हो जाओ। (बुख़ारी : 6245, मुस्लिम : 2153)
Arabic explanations of the Qur’an:
فَاِنْ لَّمْ تَجِدُوْا فِیْهَاۤ اَحَدًا فَلَا تَدْخُلُوْهَا حَتّٰی یُؤْذَنَ لَكُمْ ۚ— وَاِنْ قِیْلَ لَكُمُ ارْجِعُوْا فَارْجِعُوْا هُوَ اَزْكٰی لَكُمْ ؕ— وَاللّٰهُ بِمَا تَعْمَلُوْنَ عَلِیْمٌ ۟
फिर यदि तुम उनमें किसी को न पाओ, तो उनमें प्रवेश न करो, यहाँ तक कि तुम्हें अनुमति दे दी जाए। और यदि तुमसे कहा जाए कि वापस हो जाओ, तो वापस हो जाओ। यह तुम्हारे लिए अधिक पवित्र है। तथा अल्लाह जो कुछ तुम करते हो, उसे भली-भाँति जानने वाला है।
Arabic explanations of the Qur’an:
لَیْسَ عَلَیْكُمْ جُنَاحٌ اَنْ تَدْخُلُوْا بُیُوْتًا غَیْرَ مَسْكُوْنَةٍ فِیْهَا مَتَاعٌ لَّكُمْ ؕ— وَاللّٰهُ یَعْلَمُ مَا تُبْدُوْنَ وَمَا تَكْتُمُوْنَ ۟
तुमपर कोई दोष नहीं कि उन घरों में प्रवेश करो, जिनमें कोई न रहता हो, जिनमें तुम्हारे लाभ की कोई चीज़ हो। और अल्लाह जानता है, जो तुम प्रकट करते हो और जो तुम छिपाते हो।
Arabic explanations of the Qur’an:
قُلْ لِّلْمُؤْمِنِیْنَ یَغُضُّوْا مِنْ اَبْصَارِهِمْ وَیَحْفَظُوْا فُرُوْجَهُمْ ؕ— ذٰلِكَ اَزْكٰی لَهُمْ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ خَبِیْرٌ بِمَا یَصْنَعُوْنَ ۟
(ऐ नबी!) आप ईमान वाले पुरुषों से कह दें कि अपनी निगाहें नीची रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। यह उनके लिए अधिक पवित्र है। निःसंदेह अल्लाह उससे पूरी तरह अवगत है, जो वे करते हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَقُلْ لِّلْمُؤْمِنٰتِ یَغْضُضْنَ مِنْ اَبْصَارِهِنَّ وَیَحْفَظْنَ فُرُوْجَهُنَّ وَلَا یُبْدِیْنَ زِیْنَتَهُنَّ اِلَّا مَا ظَهَرَ مِنْهَا وَلْیَضْرِبْنَ بِخُمُرِهِنَّ عَلٰی جُیُوْبِهِنَّ ۪— وَلَا یُبْدِیْنَ زِیْنَتَهُنَّ اِلَّا لِبُعُوْلَتِهِنَّ اَوْ اٰبَآىِٕهِنَّ اَوْ اٰبَآءِ بُعُوْلَتِهِنَّ اَوْ اَبْنَآىِٕهِنَّ اَوْ اَبْنَآءِ بُعُوْلَتِهِنَّ اَوْ اِخْوَانِهِنَّ اَوْ بَنِیْۤ اِخْوَانِهِنَّ اَوْ بَنِیْۤ اَخَوٰتِهِنَّ اَوْ نِسَآىِٕهِنَّ اَوْ مَا مَلَكَتْ اَیْمَانُهُنَّ اَوِ التّٰبِعِیْنَ غَیْرِ اُولِی الْاِرْبَةِ مِنَ الرِّجَالِ اَوِ الطِّفْلِ الَّذِیْنَ لَمْ یَظْهَرُوْا عَلٰی عَوْرٰتِ النِّسَآءِ ۪— وَلَا یَضْرِبْنَ بِاَرْجُلِهِنَّ لِیُعْلَمَ مَا یُخْفِیْنَ مِنْ زِیْنَتِهِنَّ ؕ— وَتُوْبُوْۤا اِلَی اللّٰهِ جَمِیْعًا اَیُّهَ الْمُؤْمِنُوْنَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُوْنَ ۟
और ईमान वाली स्त्रियों से कह दें कि अपनी निगाहें नीची रखें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें। और अपने श्रृंगार[20] का प्रदर्शन न करें, सिवाय उसके जो उसमें से प्रकट हो जाए। तथा अपनी ओढ़नियाँ अपने सीनों पर डाले रहें। और अपने श्रृंगार को ज़ाहिर न करें, परंतु अपने पतियों के लिए, या अपने पिताओं, या अपने पतियों के पिताओं, या अपने बेटों[21], या अपने पतियों के बेटों, या अपने भाइयों[23], या अपने भतीजों, या अपने भाँजों[24], या अपनी स्त्रियों[25], या अपने दास-दासियों, या अधीन रहने वाले पुरुषों[26] के लिए जो कामवासना वाले नहीं, या उन लड़कों के लिए जो स्त्रियों की पर्दे की बातों से परिचित नहीं हुए। तथा अपने पैर (धरती पर) न मारें, ताकि उनका वह श्रृंगार मालूम हो जाए, जो वह छिपाती हैं। और ऐ ईमान वालो! तुम सब अल्लाह से तौबा करो, ताकि तुम सफल हो जाओ।
20. शोभा से तात्पर्य वस्त्र तथा आभूषण हैं। 21. पुत्रों में पौत्र तथा नाती परनाती सब सम्मिलित हैं, इसमें सगे सौतीले का कोई अंतर नहीं। 23. भाइयों मे सगे और सौतीले तथा माँ जाए सब भाई आते हैं। 24. भतीजों और भाँजों में उनके पुत्र तथा पौत्र और नाती सभी आते हैं। 25. अपनी स्त्रियों से अभिप्रेत मुस्लिम स्त्रियाँ हैं। 26. अर्थात जो अधीन होने के कारण घर की महिलाओं के साथ कोई अनुचित इच्छा का साहस न कर सकेंगे। कुछ ने इसका अर्थ नपुंसक लिया है। (इब्ने कसीर) इसमें घर के भीतर उन पर शोभा के प्रदर्शन से रोका गया है जिनसे विवाह हो सकता है।
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وَاَنْكِحُوا الْاَیَامٰی مِنْكُمْ وَالصّٰلِحِیْنَ مِنْ عِبَادِكُمْ وَاِمَآىِٕكُمْ ؕ— اِنْ یَّكُوْنُوْا فُقَرَآءَ یُغْنِهِمُ اللّٰهُ مِنْ فَضْلِهٖ ؕ— وَاللّٰهُ وَاسِعٌ عَلِیْمٌ ۟
तथा तुम अपने में से अविवाहित पुरुषों तथा स्त्रियों का निकाह कर दो[27], और अपने दासों और अपनी दासियों में से जो सदाचारी हैं उनका भी (विवाह कर दो)। यदि वे निर्धन होंगे, तो अल्लाह उन्हें अपने अनुग्रह से धनी बना देगा। और अल्लाह विस्तार वाला, सब कुछ जानने वाला है।
27. निकाह के विषय में नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन है : "जो मेरी सुन्नत से विमुख होगा, वह मुझ से नहीं है।" (बुख़ारी : 5063 तथा मुस्लिम : 1020)
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وَلْیَسْتَعْفِفِ الَّذِیْنَ لَا یَجِدُوْنَ نِكَاحًا حَتّٰی یُغْنِیَهُمُ اللّٰهُ مِنْ فَضْلِهٖ ؕ— وَالَّذِیْنَ یَبْتَغُوْنَ الْكِتٰبَ مِمَّا مَلَكَتْ اَیْمَانُكُمْ فَكَاتِبُوْهُمْ اِنْ عَلِمْتُمْ فِیْهِمْ خَیْرًا ۖۗ— وَّاٰتُوْهُمْ مِّنْ مَّالِ اللّٰهِ الَّذِیْۤ اٰتٰىكُمْ ؕ— وَلَا تُكْرِهُوْا فَتَیٰتِكُمْ عَلَی الْبِغَآءِ اِنْ اَرَدْنَ تَحَصُّنًا لِّتَبْتَغُوْا عَرَضَ الْحَیٰوةِ الدُّنْیَا ؕ— وَمَنْ یُّكْرِهْهُّنَّ فَاِنَّ اللّٰهَ مِنْ بَعْدِ اِكْرَاهِهِنَّ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟
और उन लोगों को (बहुत) पवित्र रहना चाहिए, जो विवाह का सामर्थ्य नहीं रखते, यहाँ तक कि अल्लाह उन्हें अपने अनुग्रह से समृद्ध कर दे। तथा तुम्हारे दास-दासियों में से जो लोग मुक्ति के लिए लेख की माँग करें, तो तुम उन्हें लिख दो, यदि तुम उनमें कुछ भलाई[28] जानो। और उन्हें अल्लाह के उस माल में से दो, जो उसने तुम्हें प्रदान किया है। तथा अपनी दासियों को वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर न करो, यदि वे पवित्र रहना चाहें[29], ताकि तुम सांसारिक जीवन का सामान प्राप्त करो। और जो उन्हें मजबूर करेगा, तो निश्चय अल्लाह उनके मजबूर किए जाने के बाद[30], अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
28. इस्लाम ने दास-दासियों की स्वाधीनता के जो नियम बनाए हैं, उनमें यह भी है कि वे कुछ धनराशि देकर स्वाधीनता-लेख की माँग करें, तो यदि उनमें इस धनराशि को चुकाने की योग्यता हो, तो आयत में बल दिया गया है कि उनको स्वाधीलता-लेख दे दो। 29. अज्ञानकाल में स्वामी, धन अर्जित करने के लिए अपनी दासियों को व्यभिचार के लिए बाध्य करते थे। इस्लाम ने इस व्यवसाय को वर्जित कर दिया। ह़दीस में आया है कि रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कुत्ते के मूल्य तथा वैश्या और ज्योतिषी की कमाई को रोक दिया। (बुख़ारी : 2237, मुस्लिम : 1567) 30. अर्थात दासी से बल पूर्वक व्यभिचार कराने का पाप स्वामी पर होगा, दासी पर नहीं।
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وَلَقَدْ اَنْزَلْنَاۤ اِلَیْكُمْ اٰیٰتٍ مُّبَیِّنٰتٍ وَّمَثَلًا مِّنَ الَّذِیْنَ خَلَوْا مِنْ قَبْلِكُمْ وَمَوْعِظَةً لِّلْمُتَّقِیْنَ ۟۠
तथा निःसंदेह हमने तुम्हारी ओर स्पष्ट आयतें और तुमसे पहले गुज़रे हुए लोगों का उदाहरण और डरने वालों के लिए शिक्षा उतारी है।
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اَللّٰهُ نُوْرُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ ؕ— مَثَلُ نُوْرِهٖ كَمِشْكٰوةٍ فِیْهَا مِصْبَاحٌ ؕ— اَلْمِصْبَاحُ فِیْ زُجَاجَةٍ ؕ— اَلزُّجَاجَةُ كَاَنَّهَا كَوْكَبٌ دُرِّیٌّ یُّوْقَدُ مِنْ شَجَرَةٍ مُّبٰرَكَةٍ زَیْتُوْنَةٍ لَّا شَرْقِیَّةٍ وَّلَا غَرْبِیَّةٍ ۙ— یَّكَادُ زَیْتُهَا یُضِیْٓءُ وَلَوْ لَمْ تَمْسَسْهُ نَارٌ ؕ— نُوْرٌ عَلٰی نُوْرٍ ؕ— یَهْدِی اللّٰهُ لِنُوْرِهٖ مَنْ یَّشَآءُ ؕ— وَیَضْرِبُ اللّٰهُ الْاَمْثَالَ لِلنَّاسِ ؕ— وَاللّٰهُ بِكُلِّ شَیْءٍ عَلِیْمٌ ۟ۙ
अल्लाह आकाशों तथा धरती का[31] प्रकाश है। उसके प्रकाश की मिसाल एक ताक़ की तरह है, जिसमें एक दीप है। वह दीप (काँच के) एक फानूस में है। वह फानूस गोया चमकता हुआ तारा है। वह (दीप) एक बरकत वाले वृक्ष 'ज़ैतून' (के तेल) से जलाया जाता है, जो न पूर्वी है और न पश्चिमी। उसका तेल निकट है कि (स्वयं) प्रकाश देने लगे, यद्यपि उसे आग ने न छुआ हो। प्रकाश पर प्रकाश है। अल्लाह अपने प्रकाश की ओर जिसका चाहता है, मार्गदर्शन करता है। और अल्लाह लोगों के लिए मिसालें प्रस्तुत करता है। और अल्लाह प्रत्येक चीज़ को भली-भाँति जानने वाला है।
31. अर्थात आकाशों तथा धरती की व्यवस्था करता और उनके वासियों को संमार्ग दर्शाता है। और अल्लाह की पुस्तक और उसका मार्गदर्शन उसका प्रकाश है। यदि उसका प्रकाश न होता, तो यह संसार अँधेरा होता। फिर कहा कि उसकी ज्योति ईमानवालों के दिलों में ऐसे है जैसे किसी ताखा में अति प्रकाशमान दीप रखा हो, जो आगामी वर्णित गुणों से युक्त हो। पूर्वी तथा पश्चिमी न होने का अर्थ यह है कि उसपर पूरे दिन धूप पड़ती हो, जिसके कारण उसका तेल अति शुद्ध तथा साफ़ हो।
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فِیْ بُیُوْتٍ اَذِنَ اللّٰهُ اَنْ تُرْفَعَ وَیُذْكَرَ فِیْهَا اسْمُهٗ ۙ— یُسَبِّحُ لَهٗ فِیْهَا بِالْغُدُوِّ وَالْاٰصَالِ ۟ۙ
(यह चिराग़) उन महान घरों[32] में (जलाया जाता है), जिनके बारे में अल्लाह ने आदेश दिया है कि वे ऊँचे किए जाएँ और उनमें उसका नाम याद किया जाए। उनमें सुबह और शाम उसकी महिमा का गान करते हैं।
32. इससे तात्पर्य मस्जिदें हैं।
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رِجَالٌ ۙ— لَّا تُلْهِیْهِمْ تِجَارَةٌ وَّلَا بَیْعٌ عَنْ ذِكْرِ اللّٰهِ وَاِقَامِ الصَّلٰوةِ وَاِیْتَآءِ الزَّكٰوةِ— یَخَافُوْنَ یَوْمًا تَتَقَلَّبُ فِیْهِ الْقُلُوْبُ وَالْاَبْصَارُ ۟ۙ
ऐसे लोग, जिन्हें व्यापार तथा क्रय-विक्रय अल्लाह के स्मरण, नमाज़ क़ायम करने और ज़कात देने से ग़ाफ़िल नहीं करता। वे उस दिन[33] से डरते हैं, जिसमें दिल तथा आँखें उलट जाएँगी।
33. अर्थात प्रलय के दिन।
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لِیَجْزِیَهُمُ اللّٰهُ اَحْسَنَ مَا عَمِلُوْا وَیَزِیْدَهُمْ مِّنْ فَضْلِهٖ ؕ— وَاللّٰهُ یَرْزُقُ مَنْ یَّشَآءُ بِغَیْرِ حِسَابٍ ۟
ताकि अल्लाह उन्हें उसका सर्वश्रेष्ठ बदला दे जो उन्होंने किया, और उन्हें अपने अनुग्रह से अधिक प्रदान करे और अल्लाह जिसे चाहता है, बेहिसाब जीविका देता है।
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وَالَّذِیْنَ كَفَرُوْۤا اَعْمَالُهُمْ كَسَرَابٍۭ بِقِیْعَةٍ یَّحْسَبُهُ الظَّمْاٰنُ مَآءً ؕ— حَتّٰۤی اِذَا جَآءَهٗ لَمْ یَجِدْهُ شَیْـًٔا وَّوَجَدَ اللّٰهَ عِنْدَهٗ فَوَفّٰىهُ حِسَابَهٗ ؕ— وَاللّٰهُ سَرِیْعُ الْحِسَابِ ۟ۙ
तथा जिन लोगों ने कुफ़्र किया[34], उनके कर्म किसी चटियल मैदान में एक सराब (मरीचिका)[35] की तरह हैं, जिसे सख़्त प्यासा आदमी पानी समझता है। यहाँ तक कि जब उसके पास आता है, तो उसे कुछ भी नहीं पाता और अल्लाह को अपने पास पाता है, तो वह उसे उसका हिसाब पूरा चुका देता है। और अल्लाह बहुत जल्द हिसाब करने वाला है।
34.आयत का अर्थ यह है कि काफ़िरों के कर्म, अल्लाह पर ईमान न होने के कारण अल्लाह के समक्ष व्यर्थ हो जाएँगे। 35. कड़ी गर्मी के समय रेगिस्तान में जो चमकती हुई रेत पानी जैसी लगती है उसे सराब कहते हैं।
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اَوْ كَظُلُمٰتٍ فِیْ بَحْرٍ لُّجِّیٍّ یَّغْشٰىهُ مَوْجٌ مِّنْ فَوْقِهٖ مَوْجٌ مِّنْ فَوْقِهٖ سَحَابٌ ؕ— ظُلُمٰتٌ بَعْضُهَا فَوْقَ بَعْضٍ ؕ— اِذَاۤ اَخْرَجَ یَدَهٗ لَمْ یَكَدْ یَرٰىهَا ؕ— وَمَنْ لَّمْ یَجْعَلِ اللّٰهُ لَهٗ نُوْرًا فَمَا لَهٗ مِنْ نُّوْرٍ ۟۠
अथवा (उनके कर्म) उन अँधेरों के समान हैं, जो अत्यंत गहरे सागर में हों, जिसे एक लहर ढाँप रही हो, जिसके ऊपर एक और लहर हो, जिसके ऊपर एक बादल हो, कई अँधेरे हों, जिनमें से कुछ, कुछ के ऊपर हों। जब (इन अँधेरों में फँसा हुआ व्यक्ति) अपना हाथ निकाले, तो क़रीब नहीं कि उसे देख पाए। और वह व्यक्ति जिसके लिए अल्लाह प्रकाश न बनाए, तो उसके लिए कोई भी प्रकाश[36] नहीं।
36. अर्थात काफ़िर, अविश्वास और कुकर्मों के अंधकार में घिरा रहता है। और ये अंधकार उसे मार्गदर्शन की ओर नहीं आने देते।
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اَلَمْ تَرَ اَنَّ اللّٰهَ یُسَبِّحُ لَهٗ مَنْ فِی السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ وَالطَّیْرُ صٰٓفّٰتٍ ؕ— كُلٌّ قَدْ عَلِمَ صَلَاتَهٗ وَتَسْبِیْحَهٗ ؕ— وَاللّٰهُ عَلِیْمٌۢ بِمَا یَفْعَلُوْنَ ۟
क्या आपने नहीं देखा कि अल्लाह ही की पवित्रता का गान करते हैं, जो आकाशों तथा धरती में हैं तथा पंख फैलाए हुए पक्षी (भी)? प्रत्येक ने निश्चय अपनी नमाज़ और पवित्रता गान को जान लिया[37] है। और अल्लाह उसे भली-भाँति जानने वाला है, जो वे करते हैं।
37. अर्थात तुम भी उसकी पवित्रता का गान करो और उसकी आज्ञा का पालन करो।
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وَلِلّٰهِ مُلْكُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ ۚ— وَاِلَی اللّٰهِ الْمَصِیْرُ ۟
और अल्लाह ही के लिए आकाशों तथा धरती का राज्य है और अल्लाह ही की ओर लौटकर[38] जाना है।
38. अर्थात प्रलय के दिन अपने कर्मों का फल भोगने के लिए।
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اَلَمْ تَرَ اَنَّ اللّٰهَ یُزْجِیْ سَحَابًا ثُمَّ یُؤَلِّفُ بَیْنَهٗ ثُمَّ یَجْعَلُهٗ رُكَامًا فَتَرَی الْوَدْقَ یَخْرُجُ مِنْ خِلٰلِهٖ ۚ— وَیُنَزِّلُ مِنَ السَّمَآءِ مِنْ جِبَالٍ فِیْهَا مِنْ بَرَدٍ فَیُصِیْبُ بِهٖ مَنْ یَّشَآءُ وَیَصْرِفُهٗ عَنْ مَّنْ یَّشَآءُ ؕ— یَكَادُ سَنَا بَرْقِهٖ یَذْهَبُ بِالْاَبْصَارِ ۟ؕ
क्या आपने नहीं देखा कि अल्लाह बादल को चलाता है। फिर उसे परस्पर मिलाता है। फिर उसे तह-ब-तह कर देता है। फिर आप बारिश को देखते हैं कि उसके बीच से निकल रही है। और वह आकाश से उसमें (मौजूद) पर्वतों जैसे बादलों से ओले बरसाता है। फिर जिसपर चाहता है, उन्हें गिराता है और जिससे चाहता है, उन्हें फेर देता है। निकट है कि उसकी बिजली की चमक आँखों को ले जाए।
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یُقَلِّبُ اللّٰهُ الَّیْلَ وَالنَّهَارَ ؕ— اِنَّ فِیْ ذٰلِكَ لَعِبْرَةً لِّاُولِی الْاَبْصَارِ ۟
अल्लाह ही रात और दिन को बदलता[39] रहता है। बेशक इसमें समझ-बूझ वालों के लिए निश्चय बड़ी शिक्षा है।
39. अर्थात रात के पश्चात दिन और दिन के पश्चात रात होती है। इसी प्रकार कभी दिन बड़ा, रात छोटी और कभी रात बड़ी, दिन छोटा हाता है।
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وَاللّٰهُ خَلَقَ كُلَّ دَآبَّةٍ مِّنْ مَّآءٍ ۚ— فَمِنْهُمْ مَّنْ یَّمْشِیْ عَلٰی بَطْنِهٖ ۚ— وَمِنْهُمْ مَّنْ یَّمْشِیْ عَلٰی رِجْلَیْنِ ۚ— وَمِنْهُمْ مَّنْ یَّمْشِیْ عَلٰۤی اَرْبَعٍ ؕ— یَخْلُقُ اللّٰهُ مَا یَشَآءُ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ عَلٰی كُلِّ شَیْءٍ قَدِیْرٌ ۟
अल्लाह ही ने प्रत्येक जीवधारी को पानी से पैदा किया। तो उनमें से कुछ अपने पेट के बल चलते हैं और उनमें से कुछ दो पैरों पर चलते हैं तथा उनमें से कुछ चार (पैरों) पर चलते हैं। अल्लाह जो चाहता है, पैदा करता है। निःसंदेह अल्लाह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।
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لَقَدْ اَنْزَلْنَاۤ اٰیٰتٍ مُّبَیِّنٰتٍ ؕ— وَاللّٰهُ یَهْدِیْ مَنْ یَّشَآءُ اِلٰی صِرَاطٍ مُّسْتَقِیْمٍ ۟
निःसंदेह हमने स्पष्ट आयतें (क़ुरआन) अवतरित कर दी हैं और अल्लाह जिसे चाहता है, सीधा मार्ग दिखा देता है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَیَقُوْلُوْنَ اٰمَنَّا بِاللّٰهِ وَبِالرَّسُوْلِ وَاَطَعْنَا ثُمَّ یَتَوَلّٰی فَرِیْقٌ مِّنْهُمْ مِّنْ بَعْدِ ذٰلِكَ ؕ— وَمَاۤ اُولٰٓىِٕكَ بِالْمُؤْمِنِیْنَ ۟
और वे[40] कहते हैं कि हम अल्लाह पर तथा रसूल पर ईमान लाए और हमने आज्ञापालन किया। फिर इसके बाद उनमें से एक गिरोह मुँह फेर लेता है। और ये लोग ईमान वाले नहीं हैं।
40. यहाँ से मुनाफ़िक़ों की दशा का वर्णन किया जा रहा है, तथा यह बताया जा रहा है कि ईमान के लिए अल्लाह के सभी आदेशों तथा नियमों का पालन आवश्यक है। और क़ुरआन तथा सुन्नत के निर्णय का पालन करना ही ईमान है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَاِذَا دُعُوْۤا اِلَی اللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ لِیَحْكُمَ بَیْنَهُمْ اِذَا فَرِیْقٌ مِّنْهُمْ مُّعْرِضُوْنَ ۟
और जब वे अल्लाह तथा उसके रसूल की ओर बुलाए जाते हैं, ताकि वह (रसूल) उनके बीच (विवाद का) निर्णय करें, तो अचानक उनमें से एक गिरोह मुँह फेरने वाला होता है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَاِنْ یَّكُنْ لَّهُمُ الْحَقُّ یَاْتُوْۤا اِلَیْهِ مُذْعِنِیْنَ ۟ؕ
और यदि उन्हीं के लिए अधिकार हो, तो आज्ञाकारी बनकर आपके पास चले आते हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَفِیْ قُلُوْبِهِمْ مَّرَضٌ اَمِ ارْتَابُوْۤا اَمْ یَخَافُوْنَ اَنْ یَّحِیْفَ اللّٰهُ عَلَیْهِمْ وَرَسُوْلُهٗ ؕ— بَلْ اُولٰٓىِٕكَ هُمُ الظّٰلِمُوْنَ ۟۠
क्या उनके दिलों में कोई रोग है, अथवा वे संदेह में पड़े हुए हैं, अथवा वे डर रहे हैं कि उनपर अल्लाह और उसका रसूल अत्याचार करेंगे? बल्कि वे लोग स्वयं ही अत्याचारी हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّمَا كَانَ قَوْلَ الْمُؤْمِنِیْنَ اِذَا دُعُوْۤا اِلَی اللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ لِیَحْكُمَ بَیْنَهُمْ اَنْ یَّقُوْلُوْا سَمِعْنَا وَاَطَعْنَا ؕ— وَاُولٰٓىِٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ ۟
ईमान वालों का कथन तो यह होता है कि जब अल्लाह और उसके रसूल की ओर बुलाए जाएँ, ताकि आप उनके बीच निर्णय कर दें, तो कहें कि हमने सुन लिया तथा मान लिया। और वही सफल होने वाले हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَمَنْ یُّطِعِ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ وَیَخْشَ اللّٰهَ وَیَتَّقْهِ فَاُولٰٓىِٕكَ هُمُ الْفَآىِٕزُوْنَ ۟
तथा जो अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करे और अल्लाह का भय रखे और उसकी (यातना से) डरे, तो यही लोग सफल होने वाले हैं।
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وَاَقْسَمُوْا بِاللّٰهِ جَهْدَ اَیْمَانِهِمْ لَىِٕنْ اَمَرْتَهُمْ لَیَخْرُجُنَّ ؕ— قُلْ لَّا تُقْسِمُوْا ۚ— طَاعَةٌ مَّعْرُوْفَةٌ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ خَبِیْرٌ بِمَا تَعْمَلُوْنَ ۟
और उन (मुनाफ़िक़ों) ने अल्लाह की मज़बूत क़समें खाईं कि यदि आप उन्हें आदेश दें, तो वे अवश्य (जिहाद के लिए) निकलेंगे। आप उनसे कह दें : क़समें न खाओ। तुम्हारे आज्ञापालन की दशा जानी-पहचानी है। निःसंदेह अल्लाह तुम्हारे कर्मों से भली-भाँति अवगत है।
Arabic explanations of the Qur’an:
قُلْ اَطِیْعُوا اللّٰهَ وَاَطِیْعُوا الرَّسُوْلَ ۚ— فَاِنْ تَوَلَّوْا فَاِنَّمَا عَلَیْهِ مَا حُمِّلَ وَعَلَیْكُمْ مَّا حُمِّلْتُمْ ؕ— وَاِنْ تُطِیْعُوْهُ تَهْتَدُوْا ؕ— وَمَا عَلَی الرَّسُوْلِ اِلَّا الْبَلٰغُ الْمُبِیْنُ ۟
(ऐ नबी!) आप कह दें कि अल्लाह की आज्ञा का पालन करो तथा रसूल की आज्ञा का पालन करो, और यदि तुम विमुख हो जाओ, तो उस (रसूल) का कर्तव्य केवल वही है, जिसका उसपर भार डाला गया है, और तुम्हारे ज़िम्मे वह है, जिसका भार तुमपर डाला गया है, और यदि तुम उसका आज्ञापालन करोगे, तो मार्गदर्शन पा जाओगे। और रसूल का दायित्व केवल स्पष्ट रूप से पहुँचा देना है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَعَدَ اللّٰهُ الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا مِنْكُمْ وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ لَیَسْتَخْلِفَنَّهُمْ فِی الْاَرْضِ كَمَا اسْتَخْلَفَ الَّذِیْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ ۪— وَلَیُمَكِّنَنَّ لَهُمْ دِیْنَهُمُ الَّذِی ارْتَضٰی لَهُمْ وَلَیُبَدِّلَنَّهُمْ مِّنْ بَعْدِ خَوْفِهِمْ اَمْنًا ؕ— یَعْبُدُوْنَنِیْ لَا یُشْرِكُوْنَ بِیْ شَیْـًٔا ؕ— وَمَنْ كَفَرَ بَعْدَ ذٰلِكَ فَاُولٰٓىِٕكَ هُمُ الْفٰسِقُوْنَ ۟
अल्लाह ने उन लोगों से, जो तुममें से ईमान लाए तथा उन्होंने सुकर्म किए, वादा[41] किया है कि वह उन्हें धरती में अवश्य ही अधिकार प्रदान करेगा, जिस तरह उन लोगों को अधिकार प्रदान किया, जो उनसे पहले थे, तथा उनके लिए उनके उस धर्म को अवश्य ही प्रभुत्व प्रदान करेगा, जिसे उसने उनके लिए पसंद किया है, तथा उन (की दशा) को उनके भय के पश्चात् शांति में बदल देगा। वे मेरी इबादत करेंगे, मेरे साथ किसी चीज़ को साझी नहीं बनाएँगे। और जिसने इसके बाद कुफ़्र किया, तो वही लोग अवज्ञाकारी हैं।
41. इस आयत में अल्लाह ने जो वादा किया है, वह उस समय पूरा हो गया जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके अनुयायियों को, जो काफ़िरों से डर रहे थे, उनकी धरती पर अधिकार दे दिया। और इस्लाम पूरे अरब का धर्म बन गया और यह वादा अब भी है, जो ईमान तथा सत्कर्म के साथ प्रतिबंधित है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَاَقِیْمُوا الصَّلٰوةَ وَاٰتُوا الزَّكٰوةَ وَاَطِیْعُوا الرَّسُوْلَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَ ۟
तथा नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो तथा रसूल की आज्ञा का पालन करो, ताकि तुमपर दया की जाए।
Arabic explanations of the Qur’an:
لَا تَحْسَبَنَّ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا مُعْجِزِیْنَ فِی الْاَرْضِ ۚ— وَمَاْوٰىهُمُ النَّارُ ؕ— وَلَبِئْسَ الْمَصِیْرُ ۟۠
और (ऐ नबी!) आप उन लोगों को जिन्होंने कुफ़्र किया, कदापि न समझें कि वे (अल्लाह को) धरती में विवश कर देने वाले हैं। और उनका ठिकाना आग (जहन्नम) है और निःसंदेह वह बुरा ठिकाना है।
Arabic explanations of the Qur’an:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لِیَسْتَاْذِنْكُمُ الَّذِیْنَ مَلَكَتْ اَیْمَانُكُمْ وَالَّذِیْنَ لَمْ یَبْلُغُوا الْحُلُمَ مِنْكُمْ ثَلٰثَ مَرّٰتٍ ؕ— مِنْ قَبْلِ صَلٰوةِ الْفَجْرِ وَحِیْنَ تَضَعُوْنَ ثِیَابَكُمْ مِّنَ الظَّهِیْرَةِ وَمِنْ بَعْدِ صَلٰوةِ الْعِشَآءِ ۫ؕ— ثَلٰثُ عَوْرٰتٍ لَّكُمْ ؕ— لَیْسَ عَلَیْكُمْ وَلَا عَلَیْهِمْ جُنَاحٌ بَعْدَهُنَّ ؕ— طَوّٰفُوْنَ عَلَیْكُمْ بَعْضُكُمْ عَلٰی بَعْضٍ ؕ— كَذٰلِكَ یُبَیِّنُ اللّٰهُ لَكُمُ الْاٰیٰتِ ؕ— وَاللّٰهُ عَلِیْمٌ حَكِیْمٌ ۟
ऐ ईमान वालो! जो (दास-दासी) तुम्हारे स्वामित्व में हों, और तुममें से जो अभी युवावस्था को न पहुँचे हों, उन्हें चाहिए कि तीन समयों में (तुम्हारे पास आने के लिए) तुमसे[42] अनुमति लें; फ़ज्र की नमाज़ से पहले, और जिस समय तुम दोपहर को अपने कपड़े उतार देते हो और इशा की नमाज़ के बाद। तुम्हारे लिए ये तीन पर्दे (के समय) हैं। इनके पश्चात न तो तुमपर कोई गुनाह है और न उनपर। तुम अकसर एक-दूसरे के पास आने-जाने वाले हो। इसी प्रकार, अल्लाह तुम्हारे लिए आयतों को स्पष्ट करता है। और अल्लाह सब कुछ जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।
42. आयत : 27 में आदेश दिया गया है कि जब किसी दूसरे के यहाँ जाओ तो अनुमति लेकर घर में प्रवेश करो। और यहाँ पर आदेश दिया जा रहा है कि स्वयं अपने घर में एक-दूसरे के पास जाने के लिए भी अनुमति लेना तीन समय में आवश्यक है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَاِذَا بَلَغَ الْاَطْفَالُ مِنْكُمُ الْحُلُمَ فَلْیَسْتَاْذِنُوْا كَمَا اسْتَاْذَنَ الَّذِیْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ ؕ— كَذٰلِكَ یُبَیِّنُ اللّٰهُ لَكُمْ اٰیٰتِهٖ ؕ— وَاللّٰهُ عَلِیْمٌ حَكِیْمٌ ۟
और जब तुममें से बच्चे युवावस्था को पहुँच जाएँ, तो वे उसी तरह अनुमति लें, जिस तरह उनसे पहले के लोग अनुमति लेते रहे हैं। इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को स्पष्ट करता है। तथा अल्लाह भली-भाँति जानने वाला, पूर्ण हिकमत वाला है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَالْقَوَاعِدُ مِنَ النِّسَآءِ الّٰتِیْ لَا یَرْجُوْنَ نِكَاحًا فَلَیْسَ عَلَیْهِنَّ جُنَاحٌ اَنْ یَّضَعْنَ ثِیَابَهُنَّ غَیْرَ مُتَبَرِّجٰتٍ بِزِیْنَةٍ ؕ— وَاَنْ یَّسْتَعْفِفْنَ خَیْرٌ لَّهُنَّ ؕ— وَاللّٰهُ سَمِیْعٌ عَلِیْمٌ ۟
तथा जो बूढ़ी स्त्रियाँ विवाह की आशा न रखती हों, उनपर कोई दोष नहीं कि अपनी (पर्दे की) चादरें उतारकर रख दें, प्रतिबंध यह है कि किसी प्रकार की शोभा का प्रदर्शन करने वाली न हों। और यदि (इससे भी) बचें[43] तो उनके लिए अधिक अच्छा है। और अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
43. अर्थात पर्दे की चादर न उतारें।
Arabic explanations of the Qur’an:
لَیْسَ عَلَی الْاَعْمٰی حَرَجٌ وَّلَا عَلَی الْاَعْرَجِ حَرَجٌ وَّلَا عَلَی الْمَرِیْضِ حَرَجٌ وَّلَا عَلٰۤی اَنْفُسِكُمْ اَنْ تَاْكُلُوْا مِنْ بُیُوْتِكُمْ اَوْ بُیُوْتِ اٰبَآىِٕكُمْ اَوْ بُیُوْتِ اُمَّهٰتِكُمْ اَوْ بُیُوْتِ اِخْوَانِكُمْ اَوْ بُیُوْتِ اَخَوٰتِكُمْ اَوْ بُیُوْتِ اَعْمَامِكُمْ اَوْ بُیُوْتِ عَمّٰتِكُمْ اَوْ بُیُوْتِ اَخْوَالِكُمْ اَوْ بُیُوْتِ خٰلٰتِكُمْ اَوْ مَا مَلَكْتُمْ مَّفَاتِحَهٗۤ اَوْ صَدِیْقِكُمْ ؕ— لَیْسَ عَلَیْكُمْ جُنَاحٌ اَنْ تَاْكُلُوْا جَمِیْعًا اَوْ اَشْتَاتًا ؕ— فَاِذَا دَخَلْتُمْ بُیُوْتًا فَسَلِّمُوْا عَلٰۤی اَنْفُسِكُمْ تَحِیَّةً مِّنْ عِنْدِ اللّٰهِ مُبٰرَكَةً طَیِّبَةً ؕ— كَذٰلِكَ یُبَیِّنُ اللّٰهُ لَكُمُ الْاٰیٰتِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُوْنَ ۟۠
अंधे पर कोई दोष नहीं है, न लंगड़े पर कोई दोष[44] है, न रोगी पर कोई दोष है और न स्वयं तुमपर कोई दोष है कि तुम अपने घरों[45] से खाओ, या अपने बापों के घरों से, या अपनी माँओं के घरों से, या अपने भाइयों के घरों से, या अपनी बहनों के घरों से, या अपने चाचाओं के घरों से, या अपनी फूफियों के घरों से, या अपने मामाओं के घरों से, या अपनी मौसियों के घरों से, या (उस घर से) जिसकी चाबियों के तुम स्वामी[46] हो, या अपने मित्र (के घर) से। तुमपर कोई दोष नहीं कि एक साथ खाओ या अलग-अलग। फिर जब तुम घरों में प्रवेश करो, तो अपनों को सलाम करो। अल्लाह की ओर से निर्धारित की हुई सुरक्षा एवं शांति की दुआ, जो बरकत वाली, पवित्र है। इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए आयतों को खोलकर बयान करता है, ताकि तुम समझ जाओ।
44. इस्लाम से पहले विकलांगों के साथ खाने-पीने को दोष समझा जाता था, जिसका निवारण इस आयत में किया गया है। 45. अपने घरों से अभिप्राय अपने पुत्रों के घर हैं जो अपने ही घर होते हैं। 46. अर्थात जो अपनी अनुपस्थिति में तुम्हें रक्षा के लिए अपने घरों की चाबियाँ दे जाएँ।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّمَا الْمُؤْمِنُوْنَ الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا بِاللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ وَاِذَا كَانُوْا مَعَهٗ عَلٰۤی اَمْرٍ جَامِعٍ لَّمْ یَذْهَبُوْا حَتّٰی یَسْتَاْذِنُوْهُ ؕ— اِنَّ الَّذِیْنَ یَسْتَاْذِنُوْنَكَ اُولٰٓىِٕكَ الَّذِیْنَ یُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ ۚ— فَاِذَا اسْتَاْذَنُوْكَ لِبَعْضِ شَاْنِهِمْ فَاْذَنْ لِّمَنْ شِئْتَ مِنْهُمْ وَاسْتَغْفِرْ لَهُمُ اللّٰهَ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟
ईमान वाले तो केवल वे लोग हैं, जो अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाए और जब वे उसके साथ किसी सामूहिक कार्य पर होते हैं, तो उस समय तक नहीं जाते, जब तक उससे अनुमति न ले लें। निःसंदेह जो लोग आपसे अनुमति माँगते हैं, वही लोग अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखते हैं। अतः जब वे आपसे अपने किसी कार्य के लिए अनुमति माँगें, तो आप उनमें से जिसे चाहें, अनुमति प्रदान कर दें और उनके लिए अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करें। निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है|
Arabic explanations of the Qur’an:
لَا تَجْعَلُوْا دُعَآءَ الرَّسُوْلِ بَیْنَكُمْ كَدُعَآءِ بَعْضِكُمْ بَعْضًا ؕ— قَدْ یَعْلَمُ اللّٰهُ الَّذِیْنَ یَتَسَلَّلُوْنَ مِنْكُمْ لِوَاذًا ۚ— فَلْیَحْذَرِ الَّذِیْنَ یُخَالِفُوْنَ عَنْ اَمْرِهٖۤ اَنْ تُصِیْبَهُمْ فِتْنَةٌ اَوْ یُصِیْبَهُمْ عَذَابٌ اَلِیْمٌ ۟
और तुम रसूल के बुलाने को, परस्पर एक-दूसरे को बुलाने जैसा[47] न बना लो। निःसंदेह अल्लाह उन लोगों को जानता है, जो तुममें से एक-दूसरे की आड़ लेते हुए (चुपके से) खिसक जाते हैं। अतः उन लोगों को डरना चाहिए, जो आपके आदेश का विरोध करते हैं कि उनपर कोई आपदा आ पड़े अथवा उनपर कोई दुःखदायी यातना आ जाए।
47. अर्थात् "ऐ मुह़म्मद!" न कहो। बल्कि आपको ऐ अल्लाह के नबी! ऐ अल्लाह के रसूल! कहकर पुकारो। इसका यह अर्थ भी किया गया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की प्रार्थना को अपनी प्रार्थना के समान न समझो, क्योंकि आपकी प्रार्थना स्वीकार कर ली जाती है।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَلَاۤ اِنَّ لِلّٰهِ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ ؕ— قَدْ یَعْلَمُ مَاۤ اَنْتُمْ عَلَیْهِ ؕ— وَیَوْمَ یُرْجَعُوْنَ اِلَیْهِ فَیُنَبِّئُهُمْ بِمَا عَمِلُوْا ؕ— وَاللّٰهُ بِكُلِّ شَیْءٍ عَلِیْمٌ ۟۠
सावधान! अल्लाह ही का है, जो कुछ आकाशों तथा धरती में है। निश्चय वह जानता है जिस (दशा) पर तुम हो। और जिस दिन वे उसकी ओर लौटाए जाएँगे, तो वह उन्हें बताएगा[48], जो कुछ उन्होंने किया और अल्लाह प्रत्येक चीज़ को भली-भाँति जानने वाला है।
48. अर्थात प्रलय के दिन तुम्हें तुम्हारे कर्मों का फल देगा।
Arabic explanations of the Qur’an:
 
Translation of the meanings Surah: An-Noor
Surahs’ Index Page Number
 
Translation of the Meanings of the Noble Qur'an - Hindi Translation - Translations’ Index

Translation of the Quran meanings into Indian by Azizul-Haqq Al-Umary.

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