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152 : 6

وَلَا تَقْرَبُوْا مَالَ الْیَتِیْمِ اِلَّا بِالَّتِیْ هِیَ اَحْسَنُ حَتّٰی یَبْلُغَ اَشُدَّهٗ ۚ— وَاَوْفُوا الْكَیْلَ وَالْمِیْزَانَ بِالْقِسْطِ ۚ— لَا نُكَلِّفُ نَفْسًا اِلَّا وُسْعَهَا ۚ— وَاِذَا قُلْتُمْ فَاعْدِلُوْا وَلَوْ كَانَ ذَا قُرْبٰی ۚ— وَبِعَهْدِ اللّٰهِ اَوْفُوْا ؕ— ذٰلِكُمْ وَصّٰىكُمْ بِهٖ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُوْنَ ۟ۙ

तथा उसने यतीम (जिसने व्यस्क होने से पहले अपने पिता को खो दिया हो) के माल में हाथ लगाने को हराम करार दिया है, सिवाय इसके कि ऐसा कुछ किया जाए जिसमें उसके लिए बेहतरी और लाभ तथा उसके धन में वृद्धि हो। यह निषेध उस समय तक है, जब तक कि वह व्यस्क न हो जाए तथा उसके अंदर परिपक्वता महसूस न की जाए। तथा उसने तुम्हारे लिए नाप-तौल में कमी करने को भी हराम किया है। अतः तुम्हें लेने और देने में तथा खरीदने-बेचने में न्याय से काम लेना चाहिए। हम किसी प्राणी पर उसकी क्षमता से अधिक बोझ नहीं डालते। अतः नाप-तौल आदि में जिस (मा'मूली) कमी या बेशी से बचना संभव नहीं है, उसमें कोई पकड़ नहीं होगी। और उसने तुमपर, किसी रिश्तेदार या मित्र का पक्ष लेते हुए किसी समाचार या गवाही में ऐसी बात कहना हराम किया है, जो सत्य नहीं है। और यदि तुमने अल्लाह से या अल्लाह के नाम पर किसी से वादा किया हो, तो उसे तोड़ना भी तुमपर हराम है। बल्कि तुम्हारे लिए उसे पूरा करना अनिवार्य है। अल्लाह ने तुम्हें उक्त बातों का निश्चित रूप से पालन करने का आदेश दिया है, ताकि तुम अपने मामले के परिणाम को याद रखो। info
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153 : 6

وَاَنَّ هٰذَا صِرَاطِیْ مُسْتَقِیْمًا فَاتَّبِعُوْهُ ۚ— وَلَا تَتَّبِعُوا السُّبُلَ فَتَفَرَّقَ بِكُمْ عَنْ سَبِیْلِهٖ ؕ— ذٰلِكُمْ وَصّٰىكُمْ بِهٖ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُوْنَ ۟

तथा उसने तुम्हारे लिए गुमराही के रास्तों पर चलना हराम ठहराया है। बल्कि, तुम्हें अल्लाह के सीधे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए, जिसमें कोई टेढ़ापन नहीं है। गुमराही के रास्ते तुम्हें अलगाव और सत्य के मार्ग से दूरी की ओर ले जाते हैं। अल्लाह के सीधे मार्ग पर चलना ही है वह तथ्य है जिसकी अल्लाह ने तुम्हें ताकीद की है; ताकि तुम अल्लाह से, उसके आदेशों का पालन करके एवं उसकी मना की हुई बातों से दूर रहकर, डरो। info
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154 : 6

ثُمَّ اٰتَیْنَا مُوْسَی الْكِتٰبَ تَمَامًا عَلَی الَّذِیْۤ اَحْسَنَ وَتَفْصِیْلًا لِّكُلِّ شَیْءٍ وَّهُدًی وَّرَحْمَةً لَّعَلَّهُمْ بِلِقَآءِ رَبِّهِمْ یُؤْمِنُوْنَ ۟۠

फिर जो कुछ उल्लेख किया गया उससे सूचित करने के बाद, हम यह बताते हैं कि हमने मूसा को, उनके अच्छे काम के लिए बदला के रूप में अनुग्रह को पूरा करने के लिए, धर्म में उनकी ज़रूरत की हर चीज़ की व्याख्या के रूप में, तथा सच्चाई के सबूत और दया के रूप में, तौरात प्रदान की, इस उम्मीद में कि वे क़ियामत के दिन अपने पालनहार से मिलने पर ईमान लाएँ, ताकि वे नेक कामों के साथ उसके लिए तैयारी करें। info
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155 : 6

وَهٰذَا كِتٰبٌ اَنْزَلْنٰهُ مُبٰرَكٌ فَاتَّبِعُوْهُ وَاتَّقُوْا لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَ ۟ۙ

यह क़ुरआन एक महान किताब है, जिसे हमने अवतरित किया है, बड़ी बरकत वाली है। क्योंकि इसमें धार्मिक और सांसारिक लाभों का उल्लेख है। अतः जो कुछ उसमें अवतरित हुआ है, उसका पालन करो और उसका उल्लंघन करने से सावधान रहो, इस आशा से कि तुम पर दया की जाए। info
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156 : 6

اَنْ تَقُوْلُوْۤا اِنَّمَاۤ اُنْزِلَ الْكِتٰبُ عَلٰی طَآىِٕفَتَیْنِ مِنْ قَبْلِنَا ۪— وَاِنْ كُنَّا عَنْ دِرَاسَتِهِمْ لَغٰفِلِیْنَ ۟ۙ

ऐसा न हो कि (ऐ अरब के बहुदेववादियो!) तुम कहो : अल्लाह ने तौरात और इंजील तो हमसे पहले यहूदियों और ईसाइयों पर उतारी थी, और उसने हमपर कोई किताब नहीं उतारी। तथा हम उनकी किताबें पढ़ना नहीं जानते। क्योंकि वे उनकी भाषा में हैं, हमारी भाषा में नहीं हैं। info
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157 : 6

اَوْ تَقُوْلُوْا لَوْ اَنَّاۤ اُنْزِلَ عَلَیْنَا الْكِتٰبُ لَكُنَّاۤ اَهْدٰی مِنْهُمْ ۚ— فَقَدْ جَآءَكُمْ بَیِّنَةٌ مِّنْ رَّبِّكُمْ وَهُدًی وَّرَحْمَةٌ ۚ— فَمَنْ اَظْلَمُ مِمَّنْ كَذَّبَ بِاٰیٰتِ اللّٰهِ وَصَدَفَ عَنْهَا ؕ— سَنَجْزِی الَّذِیْنَ یَصْدِفُوْنَ عَنْ اٰیٰتِنَا سُوْٓءَ الْعَذَابِ بِمَا كَانُوْا یَصْدِفُوْنَ ۟

तथा ऐसा न हो कि तुम कहो : यदि अल्लाह यहूदियों तथा ईसाइयों की तरह हमारे ऊपर भी कोई किताब उतारता, तो हम उनसे अधिक सीधे मार्ग पर चलने वाले होते!! तो अब तुम्हारे पास एक किताब आ चुकी है, जिसे अल्लाह ने तुम्हारे नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर तुम्हारी भाषा में अवतरित की है। यह किताब एक स्पष्ट तर्क, तथा सत्य की ओर मार्गदर्शन और उम्मत के लिए दया है। अतः तुम अनर्गल बहाने मत बनाओ और झूठे कारणों का सहारा न लो। उससे बड़ा अत्याचारी कोई नहीं, जो अल्लाह की आयतों को झुठलाए और उनसे मुँह फेर ले। शीघ्र ही हम उन लोगों को कड़ी सज़ा देंगे जो हमारी आयतों से मुँह फेर लेते हैं, उन्हें उनके मुँह मोड़ने के बदले के तौर पर जहन्नम की आग में दाखिल करके। info
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• لا يجوز التصرف في مال اليتيم إلّا في حدود مصلحته، ولا يُسلَّم ماله إلّا بعد بلوغه الرُّشْد.
• यतीम (अनाथ) के धन को केवल उसके हितों की सीमा के भीतर ही खर्च करना जायज़ है। तथा उसे उसका धन तब तक नहीं सौंपा जाएगा जब तक कि वह परिपक्वता को नहीं पहुंँच जाता। info

• سبل الضلال كثيرة، وسبيل الله وحده هو المؤدي إلى النجاة من العذاب.
• गुमराही के मार्ग बहुत-से हैं, परंतु केवल अल्लाह का मार्ग ही यातना से मुक्ति की ओर ले जाने वाला है। info

• اتباع هذا الكتاب علمًا وعملًا من أعظم أسباب نيل رحمة الله.
• ज्ञान और कर्म में इस किताब का अनुसरण करना, अल्लाह की दया प्राप्त करने के सबसे बड़े कारणों में से एक है। info