ការបកប្រែអត្ថន័យគួរអាន - ការអធិប្បាយសង្ខេបអំពីគម្ពីគួរអានជាភាសាឥណ្ឌា

លេខ​ទំព័រ:close

external-link copy
45 : 6

فَقُطِعَ دَابِرُ الْقَوْمِ الَّذِیْنَ ظَلَمُوْا ؕ— وَالْحَمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِیْنَ ۟

काफिरों का पूरी तरह से सर्वनाश करके उनकी जड़ काट दी गई, और अल्लाह के रसूलों को विजय प्राप्त हुआ। और हर प्रकार का आभार और प्रशंसा अकेले अल्लाह के लिए है, जो सारे संसारों का रब है कि उसने अपने शत्रुओं का नाश किया और अपने दोस्तों की सहायता की। info
التفاسير:

external-link copy
46 : 6

قُلْ اَرَءَیْتُمْ اِنْ اَخَذَ اللّٰهُ سَمْعَكُمْ وَاَبْصَارَكُمْ وَخَتَمَ عَلٰی قُلُوْبِكُمْ مَّنْ اِلٰهٌ غَیْرُ اللّٰهِ یَاْتِیْكُمْ بِهٖ ؕ— اُنْظُرْ كَیْفَ نُصَرِّفُ الْاٰیٰتِ ثُمَّ هُمْ یَصْدِفُوْنَ ۟

ऐ रसूल! आप इन मुश्रिकों से कह दें : मुझे बताओ कि यदि अल्लाह तुमसे सुनने की शक्ति छीनकर तुम्हें बहरा कर दे, तुम्हारी दृष्टि छीनकर तुम्हें अंधा कर दे, और तुम्हारे दिलों पर मुहर लगा दे, फिर तुम कुछ भी न समझ सको; तो कौन-सा सत्य पूज्य है, जो तुम्हें ये खोई हुई चीज़ें वापस ला दे? ऐ रसूल! ग़ौर करें कि कैसे हम इन्हें विभिन्न प्रकार के प्रमाण दिखलाते हैं, फिर ये उनसे मुँह मोड़ लेते हैं! info
التفاسير:

external-link copy
47 : 6

قُلْ اَرَءَیْتَكُمْ اِنْ اَتٰىكُمْ عَذَابُ اللّٰهِ بَغْتَةً اَوْ جَهْرَةً هَلْ یُهْلَكُ اِلَّا الْقَوْمُ الظّٰلِمُوْنَ ۟

(ऐ रसूल!) आप इनसे कह दें : मुझे बताओ कि यदि तुमपर अल्लाह की यातना तुम्हें उसका एहसास हुए बिना अचानक आ जाए, अथवा वह तुमपर खुल्लम-खुल्ला सबके देखते हुए आ जाए, तो उस यातना के शिकार केवल वही लोग होंगे, जो अल्लाह के साथ कुफ़्र करके तथा उसके रसूलों को झुठलाकर अपने ऊपर अत्याचार करने वाले हैं। info
التفاسير:

external-link copy
48 : 6

وَمَا نُرْسِلُ الْمُرْسَلِیْنَ اِلَّا مُبَشِّرِیْنَ وَمُنْذِرِیْنَ ۚ— فَمَنْ اٰمَنَ وَاَصْلَحَ فَلَا خَوْفٌ عَلَیْهِمْ وَلَا هُمْ یَحْزَنُوْنَ ۟

हम अपने रसूलों में से जिन्हें भेजते हैं, उन्हें केवल इसलिए भेजते हैं कि वे ईमान और आज्ञाकारिता वालों को उस स्थायी नेमत की शुभ सूचना दें, जो न कभी ख़त्म होगी और न बाधित होगी, एवं काफिरों तथा पापियों को हमारी कठोर यातना से डराएँ। फिर जो व्यक्ति रसूलों पर ईमान लाए और अपने कर्मों को ठीक कर ले, तो उनपर उस बारे में कोई भय नहीं, जो आख़िरत में उन्हें प्राप्त होगा और न ही वे उसपर दुखी एवं शोकग्रस्त होंगे, जो सांसारिक सुखों में से उनसे छूट गया है। info
التفاسير:

external-link copy
49 : 6

وَالَّذِیْنَ كَذَّبُوْا بِاٰیٰتِنَا یَمَسُّهُمُ الْعَذَابُ بِمَا كَانُوْا یَفْسُقُوْنَ ۟

और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया, वे अल्लाह की आज्ञाकारिता से निकल जाने के कारण यातना से पीड़ित होंगे। info
التفاسير:

external-link copy
50 : 6

قُلْ لَّاۤ اَقُوْلُ لَكُمْ عِنْدِیْ خَزَآىِٕنُ اللّٰهِ وَلَاۤ اَعْلَمُ الْغَیْبَ وَلَاۤ اَقُوْلُ لَكُمْ اِنِّیْ مَلَكٌ ۚ— اِنْ اَتَّبِعُ اِلَّا مَا یُوْحٰۤی اِلَیَّ ؕ— قُلْ هَلْ یَسْتَوِی الْاَعْمٰی وَالْبَصِیْرُ ؕ— اَفَلَا تَتَفَكَّرُوْنَ ۟۠

(ऐ रसूल!) आप इन मुश्रिकों से कह दें : मैं तुमसे नहीं कहता : मेरे पास अल्लाह की रोज़ी के ख़ज़ाने हैं, इसलिए मैं उन्हें अपनी इच्छानुसार ख़र्च करता हूँ। और न ही मैं तुमसे यह कहता हूँ : मुझे ग़ैब का ज्ञान है, सिवाय उस वह़्य के जिससे अल्लाह ने मुझे सूचित किया है। और न मैं तुमसे यह कहता हूँ : मैं फ़रिश्तों में से एक फ़रिश्ता हूँ। क्योंकि मैं अल्लाह का रसूल हूँ। मैं केवल उसी का अनुसरण करता हूँ, जो मेरी ओर वह़्य (प्रकाशना) की जाती है। मैं उसका दावा नहीं करता, जिसका मुझे अधिकार नहीं। (ऐ रसूल!) उनसे कह दें : क्या वह काफ़िर जिसकी अन्तर्दृष्टि सत्य से अंधी हो गई है, और वह मोमिन जिसने सत्य को देखा और उसपर ईमान लाया, क्या दोनों बराबर हो सकते हैं? तो क्या (ऐ मुश्रिको!) तुम अपनी बुद्धियों से अपने चारों ओर फैली हुई निशानियों पर ग़ौर नहीं करते। info
التفاسير:

external-link copy
51 : 6

وَاَنْذِرْ بِهِ الَّذِیْنَ یَخَافُوْنَ اَنْ یُّحْشَرُوْۤا اِلٰی رَبِّهِمْ لَیْسَ لَهُمْ مِّنْ دُوْنِهٖ وَلِیٌّ وَّلَا شَفِیْعٌ لَّعَلَّهُمْ یَتَّقُوْنَ ۟

और (ऐ रसूल!) इस क़ुरआन के द्वारा उन लोगों को डराएँ, जो इस बात का भय रखते हैं कि वे क़ियामत के दिन अपने रब के पास एकत्र किए जाएँगे, उनके लिए अल्लाह के अलावा कोई संरक्षक नहीं होगा जो उन्हें लाभ पहुँचाए, और न कोई सिफारिश करने वाला होगा, जो उनसे हानि को दूर कर सके। ताकि वे अल्लाह के आदेशों का पालन करके और उसके निषेधों से बचकर उससे डरें। क्योंकि यही लोगो हैं, जो क़ुरआन से लाभान्वित होते हैं। info
التفاسير:

external-link copy
52 : 6

وَلَا تَطْرُدِ الَّذِیْنَ یَدْعُوْنَ رَبَّهُمْ بِالْغَدٰوةِ وَالْعَشِیِّ یُرِیْدُوْنَ وَجْهَهٗ ؕ— مَا عَلَیْكَ مِنْ حِسَابِهِمْ مِّنْ شَیْءٍ وَّمَا مِنْ حِسَابِكَ عَلَیْهِمْ مِّنْ شَیْءٍ فَتَطْرُدَهُمْ فَتَكُوْنَ مِنَ الظّٰلِمِیْنَ ۟

(ऐ रसूल!) आप उन ग़रीब मुसलमानों को अपनी सभा से दूर न करें, जो दिन की शुरुआत और उसके अंत में हमेशा अल्लाह की उपासना में लगे रहते हैं, उसी के लिए उपासना को विशिष्ट करने वाले होते हैं। आप प्रमुख बहुदेववादियों को लुभाने के लिए उन्हें दूर मत करें। इन ग़रीबों के हिसाब में से आपपर कुछ भी नहीं है। बल्कि उनका हिसाब उनके रब के पास है। तथा आपके हिसाब में से उनपर भी कुछ नहीं है। यदि आपने उन्हें अपनी सभा से दूर किया, तो आप अल्लाह की सीमाओं का उल्लंघन करने वालों में से होंगे। info
التفاسير:
ក្នុង​ចំណោម​អត្ថប្រយោជន៍​នៃអាយ៉ាត់ទាំងនេះក្នុងទំព័រនេះ:
• الأنبياء بشر، ليس لهم من خصائص الربوبية شيء البتة، ومهمَّتهم التبليغ، فهم لا يملكون تصرفًا في الكون، فلا يعلمون الغيب، ولا يملكون خزائن رزق ونحو ذلك.
• संदेष्टा मनुष्य होते हैं। उनके पास ईश्वरत्व की कोई विशेषता बिल्कुल नहीं होती। उनका मिशन केवल अल्लाह का संदेश पहुँचाना होता है। उनका ब्रह्मांड पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। चुनाँचे वे ग़ैब (अदृश्य) को नहीं जानते और न ही वे रोज़ी के खज़ानों आदि के मालिक होते हैं। info

• اهتمام الداعية بأتباعه وخاصة أولئك الضعفاء الذين لا يبتغون سوى الحق، فعليه أن يقرِّبهم، ولا يقبل أن يبعدهم إرضاء للكفار.
• अल्लाह की ओर बुलाने वाले को चाहिए कि अपने अनुयायियों का ख़याल रखे, खासकर उन कमज़ोर लोगों का जो केवल सत्य की इच्छा रखते हैं। इसलिए उसे चाहिए कि उन्हें अपने क़रीब लाए, और काफ़िरों को खुश करने के लिए उन्हें दूर रखना स्वीकार न करे। info

• إشارة الآية إلى أهمية العبادات التي تقع أول النهار وآخره.
• इस आयत में दिन की शुरुआत और उसके अंत में होने वाली इबादतों के महत्व की ओर संकेत है। info