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ߞߘߐ ߟߎ߬ ߘߟߊߡߌ߬ߘߊ߬ߟߌ ߝߐߘߊ ߘߏ߫: ߦߣߎߛߊ߫   ߟߝߊߙߌ ߘߏ߫:
وَمِنْهُمْ مَّنْ یَّنْظُرُ اِلَیْكَ ؕ— اَفَاَنْتَ تَهْدِی الْعُمْیَ وَلَوْ كَانُوْا لَا یُبْصِرُوْنَ ۟
तथा बहुदेववादियों में से कुछ लोग ऐसे हैं, जो (ऐ रसूल!) आपकी ओर केवल अपनी बाह्य दृष्टि से देखते हैं, अपनी अंतर्दृष्टि से नहीं। तो क्या आप उन लोगों को प्रबुद्ध कर सकते हैं, जिन्होंने अपनी दृष्टि खो दी है?! निःसंदेह आप ऐसा नहीं कर सकते। इसी प्रकार आप अंतर्दृष्टि से वंचित व्यक्ति को सीधा मार्ग नहीं दिखा सकते।
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اِنَّ اللّٰهَ لَا یَظْلِمُ النَّاسَ شَیْـًٔا وَّلٰكِنَّ النَّاسَ اَنْفُسَهُمْ یَظْلِمُوْنَ ۟
निःसंदेह अल्लाह अपने बंदों पर अत्याचार करने से पाक है। वह उनपर कणभर भी अत्याचार नहीं करता, परंतु वे स्वयं ही असत्य के पक्षपात, अहंकार और हठ के कारण खुद को विनाश के साधनों में लाकर अपनी जानों पर अत्याचार करते हैं।
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وَیَوْمَ یَحْشُرُهُمْ كَاَنْ لَّمْ یَلْبَثُوْۤا اِلَّا سَاعَةً مِّنَ النَّهَارِ یَتَعَارَفُوْنَ بَیْنَهُمْ ؕ— قَدْ خَسِرَ الَّذِیْنَ كَذَّبُوْا بِلِقَآءِ اللّٰهِ وَمَا كَانُوْا مُهْتَدِیْنَ ۟
और जब क़ियामत के दिन अल्लाह लोगों को हिसाब-किताब के लिए एकत्र करेगा, तो उन्हें लगेगा कि वे अपने दुनिया के जीवन और क़ब्र में केवल दिन की एक घड़ी भर ठहरे थे, उससे ज़्यादा नहीं। वहाँ वे एक-दूसरे को पहचानेंगे। फिर उनके एक-दूसरे को पहचानने का सिलसिला क़ियामत के दिन की भयावहता को देखकर समाप्त हो जाएगा। वास्तव में, वे लोग घाटे में पड़ गए, जिन्होंने क़ियामत के दिन अपने पालनहार से मिलने को झुठलाया तथा वे दुनिया में दोबारा जीवित होने के दिन पर ईमान रखने वाले नहीं थे कि घाटे से बच सकें।
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وَاِمَّا نُرِیَنَّكَ بَعْضَ الَّذِیْ نَعِدُهُمْ اَوْ نَتَوَفَّیَنَّكَ فَاِلَیْنَا مَرْجِعُهُمْ ثُمَّ اللّٰهُ شَهِیْدٌ عَلٰی مَا یَفْعَلُوْنَ ۟
और यदि हम (ऐ रसूल!) आपको उस यातना का कुछ हिस्सा जिसका हमने उनसे वादा किया है, आपकी मृत्यु से पहले दिखा दें, या हम आपको उससे पहले मृत्यु दे दें, तो दोनों स्थितियों में उन्हें हमारे पास ही लौटकर आना है। फिर जो कुछ वे कर रहे हैं अल्लाह उससे अवगत है, उससे उनकी कोई चीज़ छिपी नहीं है और वह शीघ्र ही उन्हें उनके कर्मों का बदला देगा।
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وَلِكُلِّ اُمَّةٍ رَّسُوْلٌ ۚ— فَاِذَا جَآءَ رَسُوْلُهُمْ قُضِیَ بَیْنَهُمْ بِالْقِسْطِ وَهُمْ لَا یُظْلَمُوْنَ ۟
पिछले समुदायों में से प्रत्येक समुदाय के लिए एक रसूल था, जो उनकी ओर भेजा गया था। फिर जब उस (रसूल) ने उन्हें वह संदेश पहुँचा दिया, जिसे पहुँचाने का उसे आदेश दिया गया था और लोगों ने उसे झुठला दिया, तो उनके तथा रसूल के बीच न्याय के साथ फ़ैसला कर दिया गया। चुनाँचे अल्लाह ने अपनी कृपा से रसूल को बचा लिया और अपने न्याय से उन लोगों को नष्ट कर दिया। तथा उनके कर्मों का बदला देने में उनके साथ कुछ भी अन्याय नहीं किया जाता।
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وَیَقُوْلُوْنَ مَتٰی هٰذَا الْوَعْدُ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِیْنَ ۟
और ये काफ़िर लोग हठधर्मी करते हुए और चुनौती देते हुए कहते हैं : यदि तुम अपने दावे में सच्चे हो, तो बताओ कि जिस यातना का तुमने हमसे वादा किया था, उसका समय कब आएगा?!
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قُلْ لَّاۤ اَمْلِكُ لِنَفْسِیْ ضَرًّا وَّلَا نَفْعًا اِلَّا مَا شَآءَ اللّٰهُ ؕ— لِكُلِّ اُمَّةٍ اَجَلٌ ؕ— اِذَا جَآءَ اَجَلُهُمْ فَلَا یَسْتَاْخِرُوْنَ سَاعَةً وَّلَا یَسْتَقْدِمُوْنَ ۟
(ऐ रसूल!) आप उनसे कह दें : मैं स्वयं अपने लिए न किसी हानि का मालिक हूँ कि स्वयं को उससे नुक़सान पहुँचाऊँ या ख़ुद से उसे हटा सकूँ, और न ही किसी लाभ का मालिक हूँ कि उससे स्वयं को फायदा पहुँचाऊँ। तो मैं किसी और को कैसे फायदा या नुक़सान पहुँचा सकता हूँ? सिवाय उसके जो अल्लाह उसमें से चाहे, तो फिर मैं उसके ग़ैब की बातों को कैसे जान सकता हूँ? प्रत्येक समुदाय, जिसे अल्लाह ने विनाश की धमकी दी है, उसके विनाश का एक समय निर्धारित है, जिसका ज्ञान केवल अल्लाह को है। अतः जब उसके विनाश का समय आ जाता है, तो वे उससे न कुछ पीछे रह सकते हैं और न आगे बढ़ सकते हैं।
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قُلْ اَرَءَیْتُمْ اِنْ اَتٰىكُمْ عَذَابُهٗ بَیَاتًا اَوْ نَهَارًا مَّاذَا یَسْتَعْجِلُ مِنْهُ الْمُجْرِمُوْنَ ۟
(ऐ रसूल!) आप यातना की जल्दी मचाने वालों से कह दें : मुझे बताओ कि यदि तुमपर अल्लाह की यातना रात या दिन के किसी समय आ जाए, तो आख़िर कौन-सी चीज़ है, जिसे तुम इस यातना से जल्दी चाहते हो?!
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اَثُمَّ اِذَا مَا وَقَعَ اٰمَنْتُمْ بِهٖ ؕ— آٰلْـٰٔنَ وَقَدْ كُنْتُمْ بِهٖ تَسْتَعْجِلُوْنَ ۟
क्या जिस यातना का तुमसे वादा किया गया है, उसके तुम्हारे ऊपर घटित हो जाने के बाद तुम ईमान लाओगे, जबकि उस समय किसी व्यक्ति को उसका ईमान लाभ नहीं देगा, जो उससे पहले ईमान नहीं लाया था? क्या तुम अब ईमान ला रहे हो, हालाँकि इससे पहले तुम यातना के लिए उसे झुठलाने के तौर पर जल्दी मचाया करते थे?!
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ثُمَّ قِیْلَ لِلَّذِیْنَ ظَلَمُوْا ذُوْقُوْا عَذَابَ الْخُلْدِ ۚ— هَلْ تُجْزَوْنَ اِلَّا بِمَا كُنْتُمْ تَكْسِبُوْنَ ۟
फिर उन्हें यातना में डाले जाने और उनकी ओर से उससे बाहर निकलने की माँग किए जाने के पश्चात उनसे कहा जाएगा : आख़िरत की स्थायी यातना का स्वाद चखो। क्या जो कुफ़्र और पाप तुम किया करते थे, तुम्हें उसके अलावा किसी और चीज़ का बदला दिया जाएगा?!
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وَیَسْتَنْۢبِـُٔوْنَكَ اَحَقٌّ هُوَ ؔؕ— قُلْ اِیْ وَرَبِّیْۤ اِنَّهٗ لَحَقٌّ ؔؕ— وَمَاۤ اَنْتُمْ بِمُعْجِزِیْنَ ۟۠
और (ऐ रसूल!) बहुदेववादी लोग आपसे पूछते हैं : क्या यह यातना, जिसका हमसे वादा किया गया है, सत्य है? आप उनसे कह दें : हाँ, (अल्लाह की क़सम!) निश्चय यह बिल्कुल सत्य है और तुम उससे बच नहीं सकते हो।
ߊߙߊߓߎߞߊ߲ߡߊ ߞߘߐߦߌߘߊ ߟߎ߬:
ߟߝߊߙߌ ߟߎ߫ ߢߊ߬ߕߣߐ ߘߏ߫ ߞߐߜߍ ߣߌ߲߬ ߞߊ߲߬:
• الإنسان هو الذي يورد نفسه موارد الهلاك، فالله مُنَزَّه عن الظلم.
• मनुष्य स्वयं ही अपने आपको विनाश की जगहों में लाता है, क्योंकि अल्लाह अत्याचार से परे है।

• مهمة الرسول هي التبليغ للمرسل إليهم، والله يتولى حسابهم وعقابهم بحكمته، فقد يعجله في حياة الرسول أو يؤخره بعد وفاته.
• रसूल का कार्य उन लोगों को अल्लाह का संदेश पहुँचा देना है, जिनकी ओर उसे भेजा गया है, जबकि अल्लाह उनके हिसाब का प्रभार लेता है और अपनी हिकमत के अनुसार उन्हें दंडित करता है। चुनाँचे कभी रसूल के जीवनकाल ही में दंडित कर देता है और कभी उसकी मृत्यु के बाद विलंबित कर देता है।

• النفع والضر بيد الله عز وجل، فلا أحد من الخلق يملك لنفسه أو لغيره ضرًّا ولا نفعًا.
• लाभ और हानि सर्वशक्तिमान अल्लाह के हाथ में है। अतः सृष्टि में से कोई भी अपने लिए या दूसरों के लिए हानि या लाभ का अधिकार नहीं रखता।

• لا ينفع الإيمان صاحبه عند معاينة الموت.
•मृत्यु को देखकर ईमान लाने से इनसान को कोई फ़ायदा नहीं होगा।

 
ߞߘߐ ߟߎ߬ ߘߟߊߡߌ߬ߘߊ߬ߟߌ ߝߐߘߊ ߘߏ߫: ߦߣߎߛߊ߫
ߝߐߘߊ ߟߎ߫ ߦߌ߬ߘߊ߬ߥߟߊ ߞߐߜߍ ߝߙߍߕߍ
 
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