Firo maanaaji al-quraan tedduɗo oo - الترجمة الهندية للمختصر في تفسير القرآن الكريم * - Tippudi firooji ɗii


Firo maanaaji Simoore: Simoore rewɓe   Aaya:

सूरा अन्-निसा

Ina jeyaa e payndaale simoore ndee:
تنظيم المجتمع المسلم وبناء علاقاته، وحفظ الحقوق، والحث على الجهاد، وإبطال دعوى قتل المسيح.
मुस्लिम समाज को संगठित करना, उसके संबंध बनाना, अधिकारों की रक्षा करना, जिहाद का आग्रह करना और ईसा मसीह को क़त्ल करने के दावे का खंडन करना।

یٰۤاَیُّهَا النَّاسُ اتَّقُوْا رَبَّكُمُ الَّذِیْ خَلَقَكُمْ مِّنْ نَّفْسٍ وَّاحِدَةٍ وَّخَلَقَ مِنْهَا زَوْجَهَا وَبَثَّ مِنْهُمَا رِجَالًا كَثِیْرًا وَّنِسَآءً ۚ— وَاتَّقُوا اللّٰهَ الَّذِیْ تَسَآءَلُوْنَ بِهٖ وَالْاَرْحَامَ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَلَیْكُمْ رَقِیْبًا ۟
ऐ लोगो! अपने पालनहार से डरो। क्योंकि वही है जिसने तुम्हें एक जान से पैदा किया जो तुम्हारे पिता आदम हैं। और आदम से उनकी पत्नी तुम्हारी माँ हव्वा को पैदा किया। और उन दोनों से पृथ्वी के कोनों में बहुत-से पुरुषों और महिलाओं को फैला दिए। और उस अल्लाह से डरो जिसके नाम पर तुम एक-दूसरे से यह कहते हुए माँगते हो : मैं अल्लाह के नाम पर तुझसे ऐसा करने के लिए कहता हूँ। तथा रिश्ते-नाते को तोड़ने से बचो, जो तुम्हें आपस में जोड़ता है। निःसंदेह अल्लाह तुम्हारा निरीक्षण कर रहा है। अतः तुम्हारा कोई काम उससे ओझल नहीं होता, बल्कि वह उन्हें गिनकर रखता है और तुम्हें उनका बदला देगा।
Faccirooji aarabeeji:
وَاٰتُوا الْیَتٰمٰۤی اَمْوَالَهُمْ وَلَا تَتَبَدَّلُوا الْخَبِیْثَ بِالطَّیِّبِ ۪— وَلَا تَاْكُلُوْۤا اَمْوَالَهُمْ اِلٰۤی اَمْوَالِكُمْ ؕ— اِنَّهٗ كَانَ حُوْبًا كَبِیْرًا ۟
तथा (ऐ अभिभावकों) तुम अनाथों (जिनके पिता उनके बालिग होने से पहले मर गए) को उनका धन उस समय पूरा का पूरा दे दो, जब वे बालिग़ और समझदार हो जाएँ। और तुम हलाल के बदले हराम माल मत लो; इस प्रकार कि तुम अनाथों के अच्छे-अच्छे धन स्वयं ले लो और उसके बदले अपने घटिया और ख़राब धन उन्हें दे दो। और अनाथों का धन अपने धन के साथ मिलाकर हड़प न लो। ऐसा करना अल्लाह के निकट बहुत बड़ा पाप है।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِنْ خِفْتُمْ اَلَّا تُقْسِطُوْا فِی الْیَتٰمٰی فَانْكِحُوْا مَا طَابَ لَكُمْ مِّنَ النِّسَآءِ مَثْنٰی وَثُلٰثَ وَرُبٰعَ ۚ— فَاِنْ خِفْتُمْ اَلَّا تَعْدِلُوْا فَوَاحِدَةً اَوْ مَا مَلَكَتْ اَیْمَانُكُمْ ؕ— ذٰلِكَ اَدْنٰۤی اَلَّا تَعُوْلُوْا ۟ؕ
यदि तुम्हें डर हो कि अपने अधीन रहने वाली अनाथ लड़कियों से विवाह करके तुम न्याय नहीं कर पाओगे; या तो इस डर से कि तुम उनके आवश्यक मह्र को कम कर दोगे, या उनके साथ दुर्व्यवहार करोगे, तो ऐसी स्थिति में तुम उन्हें छोड़कर उनके अलावा दूसरी अच्छी महिलाओं से विवाह कर लो। यदि तुम चाहो तो दो, या तीन, या चार से विवाह कर सकते हो। परन्तु यदि तुम्हें डर हो कि तुम उनके बीच न्याय नहीं कर सकोगे, तो एक ही तक सीमित रहो, या फिर उन दासियों से लाभान्वित हो जिनके तुम मालिक हो; क्योंकि उनके लिए उस तरह के अधिकार अनिवार्य नहीं हैं जो पत्नियों के लिए आवश्यक हैं। आयत में अनाथ लड़कियों के संबंध में, तथा एक ही महिला से विवाह करने अथवा दासियों से लाभ उठाने के संबंध में जो कुछ वर्णित है, वह इस बात के अधिक निकट है कि तुम अत्याचार न करो और किसी एक की तरफ झुकाव न रखो।
Faccirooji aarabeeji:
وَاٰتُوا النِّسَآءَ صَدُقٰتِهِنَّ نِحْلَةً ؕ— فَاِنْ طِبْنَ لَكُمْ عَنْ شَیْءٍ مِّنْهُ نَفْسًا فَكُلُوْهُ هَنِیْٓـًٔا مَّرِیْٓـًٔا ۟
स्त्रियों को उनके मह्र एक अनिवार्य उपहार के तौर पर अदा करो। यदि वे बिना किसी मजबूरी के अपनी इच्छा से तुम्हारे लिए मह्र में से कुछ छोड़ दें, तो उसे हलाल व पाक समझकर (रूचिकर) खाओ।
Faccirooji aarabeeji:
وَلَا تُؤْتُوا السُّفَهَآءَ اَمْوَالَكُمُ الَّتِیْ جَعَلَ اللّٰهُ لَكُمْ قِیٰمًا وَّارْزُقُوْهُمْ فِیْهَا وَاكْسُوْهُمْ وَقُوْلُوْا لَهُمْ قَوْلًا مَّعْرُوْفًا ۟
और (ऐ अभिभावको!) उन लोगों को धन न दो, जो अच्छी तरह से उसका प्रबंधन नहीं कर सकते हैं। क्योंकि अल्लाह ने इस धन को बंदो के हितों की रक्षा और उनकी आजीविका का साधन बनाया है और ये लोग धन का प्रभार लेने और उसे संरक्षित करने के योग्य नहीं हैं। उस धन से उन पर खर्च करो और उन्हें कपड़े पहनाओ, तथा उनसे अच्छी बात कहो और उनसे अच्छा वादा करो कि उनके परिपक्व हो जाने और धन प्रबंधन में कुशल हो जाने पर तुम उन्हें उनका धन दे दोगे।
Faccirooji aarabeeji:
وَابْتَلُوا الْیَتٰمٰی حَتّٰۤی اِذَا بَلَغُوا النِّكَاحَ ۚ— فَاِنْ اٰنَسْتُمْ مِّنْهُمْ رُشْدًا فَادْفَعُوْۤا اِلَیْهِمْ اَمْوَالَهُمْ ۚ— وَلَا تَاْكُلُوْهَاۤ اِسْرَافًا وَّبِدَارًا اَنْ یَّكْبَرُوْا ؕ— وَمَنْ كَانَ غَنِیًّا فَلْیَسْتَعْفِفْ ۚ— وَمَنْ كَانَ فَقِیْرًا فَلْیَاْكُلْ بِالْمَعْرُوْفِ ؕ— فَاِذَا دَفَعْتُمْ اِلَیْهِمْ اَمْوَالَهُمْ فَاَشْهِدُوْا عَلَیْهِمْ ؕ— وَكَفٰی بِاللّٰهِ حَسِیْبًا ۟
(ऐ अभिभावको) जब अनाथ बच्चे वयस्कता की आयु को पहुँच जाएँ, तो उनकी इस प्रकार जाँच करो कि उन्हें उनके माल का कुछ हिस्सा दे दो कि वे उसे अपनी मर्ज़ी से काम में लाएं। यदि वे उसका सदुपयोग करें और तुम्हारे लिए उनकी समझदारी (योग्यता) स्पष्ट हो जाए, तो तुम उनका पूरा धन बिना किसी कमी के उनके हवाले कर दो। तथा उनके धन को उस सीमा से बढ़कर न खाओ जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए ज़रूरत के समय उनके धन से वैध ठहराया है, और उसे इस डर से जल्दी-जल्दी न खाओ कि वे बालिग होने के बाद उसे ले लेंगे। और तुममें से जिसके पास इतना धन हो कि वह उसे बेनियाज़ कर दे, तो उसे अनाथ का धन लेने से बचना चाहिए। और तुममें से जो गरीब हो उसके पास कोई धन न हो, तो वह अपनी आवश्यकता के अनुसार खा सकता है। और जब तुम उनके वयस्क और परिपक्व होने के बाद उनका धन उनके हवाले करो, तो अधिकारों को संरक्षित करने और विवाद के कारणों को रोकने के लिए उस सुपुर्दगी पर गवाह बना लो। और अल्लाह उसपर साक्षी और अपने बंदों के कार्यों का हिसाब लेने के लिए काफी है।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• الأصل الذي يرجع إليه البشر واحد، فالواجب عليهم أن يتقوا ربهم الذي خلقهم، وأن يرحم بعضهم بعضًا.
• जिस मूल की ओर मनुष्य वापस लौटता है, वह एक है। इसलिए उन्हें अपने उस पालनहार से डरना चाहिए जिसने उन्हें पैदा किया है, और एक दूसरे पर दया करते रहना चाहिए।

• أوصى الله تعالى بالإحسان إلى الضعفة من النساء واليتامى، بأن تكون المعاملة معهم بين العدل والفضل.
• सर्वशक्तिमान अल्लाह ने कमज़ोर महिलाओं और अनाथों के साथ अच्छा व्यवहार करने की ताकीद की है इस प्रकार कि उनके साथ मामला न्याय और अनुग्रह के बीच हो।

• جواز تعدد الزوجات إلى أربع نساء، بشرط العدل بينهن، والقدرة على القيام بما يجب لهن.
• चार स्त्रियों तक बहुविवाह की अनुमति, इस शर्त के साथ कि उनके बीच न्याय किया जाए और उनके लिए जो कुछ करना अनिवार्य है उसे करने की क्षमता हो।

• مشروعية الحَجْر على السفيه الذي لا يحسن التصرف، لمصلحته، وحفظًا للمال الذي تقوم به مصالح الدنيا من الضياع.
• जो बेसमझ व्यक्ति अपने धन का सदुपयोग नहीं कर सकता; उसके हित की रक्षा के लिए, और उस धन को नष्ट होने से संरक्षित करने के लिए जिसपर दुनिया के हित आधारित होते हैं, उसपर प्रतिबंध लगाना धर्मसंगत है।

لِلرِّجَالِ نَصِیْبٌ مِّمَّا تَرَكَ الْوَالِدٰنِ وَالْاَقْرَبُوْنَ ۪— وَلِلنِّسَآءِ نَصِیْبٌ مِّمَّا تَرَكَ الْوَالِدٰنِ وَالْاَقْرَبُوْنَ مِمَّا قَلَّ مِنْهُ اَوْ كَثُرَ ؕ— نَصِیْبًا مَّفْرُوْضًا ۟
पुरुषों का उस माल में हिस्सा है, जिसे माता-पिता और रिश्तेदारों जैसे भाइयों और चाचाओं ने मरने के बाद छोड़ा है, यह धन कम हो या अधिक। इसी प्रकार इन लोगों के छोड़े हुए धन में स्त्रियों का भी हिस्सा है। यह अज्ञानता के समय की उस रीति के विपरीत है जिसमें महिलाओं और बच्चों को विरासत से वंचित रखा जाता था। यह हिस्सा एक ऐसा अधिकार है जिसकी राशि सर्वशक्तिमान अल्लाह की ओर से निश्चित व निर्धारित है।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِذَا حَضَرَ الْقِسْمَةَ اُولُوا الْقُرْبٰی وَالْیَتٰمٰی وَالْمَسٰكِیْنُ فَارْزُقُوْهُمْ مِّنْهُ وَقُوْلُوْا لَهُمْ قَوْلًا مَّعْرُوْفًا ۟
जब पैतृक संपत्ति के बंटवारे के समय गैर-वारिस रिश्तेदार, अनाथ और निर्धन उपस्थित हों; तो इस धन में से उसके बंटवारे से पहले - ऐच्छिक रूप से - जितनी तुम्हारी इच्छा हो उन्हें भी दो। क्योंकि वे उसकी आस लगाते हैं, और यह धन तुम्हारे पास बिना किसी कष्ट के आया है। तथा उनसे अच्छी बात कहो जिसमें कोई अभद्रता न हो।
Faccirooji aarabeeji:
وَلْیَخْشَ الَّذِیْنَ لَوْ تَرَكُوْا مِنْ خَلْفِهِمْ ذُرِّیَّةً ضِعٰفًا خَافُوْا عَلَیْهِمْ ۪— فَلْیَتَّقُوا اللّٰهَ وَلْیَقُوْلُوْا قَوْلًا سَدِیْدًا ۟
और उन लोगों को डरना चाहिए जो अगर मर जाते और अपने पीछे कमज़ोर छोटे बच्चे छोड़ जाते, तो उन्हें उनके नष्ट होने का कैसा डर होता। अतः उन्हें अल्लाह से डरते हुए उन अनाथों पर अत्याचार नहीं करना चाहिए जो उनके संरक्षण में हैं। ताकि अल्लाह उनकी मौत के पश्चात उनके लिए ऐसे लोगों का प्रबंध करे, जो उनकी औलाद के साथ अच्छा व्यवहार करें, जैसा कि उन्होंने उन अनाथों के साथ सद्व्यवहार किया था। तथा उन्हें उस व्यक्ति की औलाद के हक़ में अच्छा व्यवहार करना चाहिए जिसकी वसीयत के समय वे उपस्थित होते हैं, इस प्रकार कि उनसे सही व सच्ची बात कहें कि वह अपनी वसीयत में अपने वारिसों के हक़ पर अत्याचार न करे, तथा वसीयत को छोड़कर खुद को भलाई से वंचित न करे।
Faccirooji aarabeeji:
اِنَّ الَّذِیْنَ یَاْكُلُوْنَ اَمْوَالَ الْیَتٰمٰی ظُلْمًا اِنَّمَا یَاْكُلُوْنَ فِیْ بُطُوْنِهِمْ نَارًا ؕ— وَسَیَصْلَوْنَ سَعِیْرًا ۟۠
जो लोग अनाथों का धन ले लेते हैं और उसमें अन्यायपूर्ण और आक्रामक तरीक़े से अपना अधिकार चलाते हैं, वे वास्तव में अपने पेट में दहकती हुई आग डाल रहे हैं। और यह आग उन्हें क़यामत (पुनरुत्थान) के दिन जलाएगी।
Faccirooji aarabeeji:
یُوْصِیْكُمُ اللّٰهُ فِیْۤ اَوْلَادِكُمْ ۗ— لِلذَّكَرِ مِثْلُ حَظِّ الْاُنْثَیَیْنِ ۚ— فَاِنْ كُنَّ نِسَآءً فَوْقَ اثْنَتَیْنِ فَلَهُنَّ ثُلُثَا مَا تَرَكَ ۚ— وَاِنْ كَانَتْ وَاحِدَةً فَلَهَا النِّصْفُ ؕ— وَلِاَبَوَیْهِ لِكُلِّ وَاحِدٍ مِّنْهُمَا السُّدُسُ مِمَّا تَرَكَ اِنْ كَانَ لَهٗ وَلَدٌ ۚ— فَاِنْ لَّمْ یَكُنْ لَّهٗ وَلَدٌ وَّوَرِثَهٗۤ اَبَوٰهُ فَلِاُمِّهِ الثُّلُثُ ۚ— فَاِنْ كَانَ لَهٗۤ اِخْوَةٌ فَلِاُمِّهِ السُّدُسُ مِنْ بَعْدِ وَصِیَّةٍ یُّوْصِیْ بِهَاۤ اَوْ دَیْنٍ ؕ— اٰبَآؤُكُمْ وَاَبْنَآؤُكُمْ لَا تَدْرُوْنَ اَیُّهُمْ اَقْرَبُ لَكُمْ نَفْعًا ؕ— فَرِیْضَةً مِّنَ اللّٰهِ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَلِیْمًا حَكِیْمًا ۟
अल्लाह तुम्हें तुम्हारी संतान की पैतृक संपत्ति के संबंध में आदेश देता है कि पैतृक संपत्ति का बंटवरा उनके बीच इस तरह होगा कि एक बेटे को दो बेटियों के समान हिस्सा मिलेगा। यदि मृतक ने केवल बेटियाँ छोड़ी हों, कोई बेटा न हो, तो दो या उनसे अधिक बेटियों को विरासत का दो तिहाई हिस्सा मिलेगा। और यदि उसकी केवल एक ही बेटी हो, तो उसे विरासत का आधा हिस्सा मिलेगा। तथा मृतक के माता-पिता में से प्रत्येक को छोड़े हुए धन का छठवाँ हिस्सा मिलेगा, यदि उसकी कोई संतान हो, चाहे वह नर हो या नारी। और यदि उसकी कोई औलाद न हो और उसके माता-पिता के अतिरिक्त उसका कोई वारिस न हो, तो ऐसी स्थिति में उसकी माँ को एक तिहाई हिस्सा मिलेगा और विरासत का शेष भाग बाप का होगा। और यदि मृतक के दो या दो से अधिक भाई-बहन हों, सगे हों या सौतेले, तो फर्ज़ के रूप में माँ को छठवाँ हिस्सा मिलेगा, और बाकी असबह होने के कारण बाप के लिए होगा और भाइयों (और बहनों) को कुछ नहीं मिलेगा। विरासत का यह बंटवारा उस वसीयत के कार्यान्वयन के बाद होगा जो मृतक ने की थी, बशर्ते कि उसकी वसीयत की राशि उसके एक तिहाई धन से अधिक न हो, तथा इस शर्त के साथ कि उसपर अनिवार्य कर्ज़ का भुगतान कर दिया जाए। अल्लाह ने विरासत का बंटवारा इस प्रकार निर्धारित किया है; क्योंकि तुम नहीं जानते कि तुम्हारे बाप और बेटों में से इस दुनिया और आखिरत में तुम्हारे लिए कौन सबसे अधिक लाभदायक है। क्योंकि ऐसा हो सकता है कि मृतक अपने किसी वारिस के बारे में अच्छा गुमान रखे और उसे अपना पूरा धन दे दे, या वह उसके बारे में बुरा गुमान रखे और उसे विरासत से वंचित कर दे, जबकि हो सकता है कि मामला उसके विपरीत हो। हालांकि जो यह सब कुछ जानता है वह अल्लाह है, जिससे कोई वस्तु छिप नहीं सकती। इसीलिए उसने विरासत का बंटवारा उक्त तरीक़े पर किया है और उसे अपने बंदों पर अनिवार्य कर्तव्य ठहराया है। नि:संदेह अल्लाह जानने वाला है, जिसपर उसके बंदों के हितों में से कोई भी चीज़ गुप्त नहीं है, तथा वह अपने विधान और प्रबंधन में हिकमत वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• دلت أحكام المواريث على أن الشريعة أعطت الرجال والنساء حقوقهم مراعية العدل بينهم وتحقيق المصلحة بينهم.
• विरासत के प्रावधानों से संकेत मिलता है कि शरीयत ने पुरुषों और महिलाओं को, उनके बीच न्याय को ध्यान में रखते हुए और उनके बीच हित की प्राप्ति के लिए, उनके अधिकार दिए हैं।

• التغليظ الشديد في حرمة أموال اليتامى، والنهي عن التعدي عليها، وعن تضييعها على أي وجه كان.
• अनाथों के धन के हराम (निषिद्ध) होने, तथा उसपर अतिक्रमण करने और उसे किसी भी तरह से बर्बाद करने की मनाही का वर्णन कठोर शब्दों में किया गया।

• لما كان المال من أكثر أسباب النزاع بين الناس تولى الله تعالى قسمته في أحكام المواريث.
• चूँकि धन लोगों के बीच विवाद के सबसे आम कारणों में से है, इसलिए अल्लाह ने विरासत के प्रावधानों में इसे स्वयं ही विभाजित किया है।

وَلَكُمْ نِصْفُ مَا تَرَكَ اَزْوَاجُكُمْ اِنْ لَّمْ یَكُنْ لَّهُنَّ وَلَدٌ ۚ— فَاِنْ كَانَ لَهُنَّ وَلَدٌ فَلَكُمُ الرُّبُعُ مِمَّا تَرَكْنَ مِنْ بَعْدِ وَصِیَّةٍ یُّوْصِیْنَ بِهَاۤ اَوْ دَیْنٍ ؕ— وَلَهُنَّ الرُّبُعُ مِمَّا تَرَكْتُمْ اِنْ لَّمْ یَكُنْ لَّكُمْ وَلَدٌ ۚ— فَاِنْ كَانَ لَكُمْ وَلَدٌ فَلَهُنَّ الثُّمُنُ مِمَّا تَرَكْتُمْ مِّنْ بَعْدِ وَصِیَّةٍ تُوْصُوْنَ بِهَاۤ اَوْ دَیْنٍ ؕ— وَاِنْ كَانَ رَجُلٌ یُّوْرَثُ كَلٰلَةً اَوِ امْرَاَةٌ وَّلَهٗۤ اَخٌ اَوْ اُخْتٌ فَلِكُلِّ وَاحِدٍ مِّنْهُمَا السُّدُسُ ۚ— فَاِنْ كَانُوْۤا اَكْثَرَ مِنْ ذٰلِكَ فَهُمْ شُرَكَآءُ فِی الثُّلُثِ مِنْ بَعْدِ وَصِیَّةٍ یُّوْصٰی بِهَاۤ اَوْ دَیْنٍ ۙ— غَیْرَ مُضَآرٍّ ۚ— وَصِیَّةً مِّنَ اللّٰهِ ؕ— وَاللّٰهُ عَلِیْمٌ حَلِیْمٌ ۟ؕ
तुम्हें (ऐ पतियो!) तुम्हारी पत्नियों के छोड़े हुए धन का आधा हिस्सा मिलेगा; यदि उनकी कोई संतान (चाहे नर हो या नारी) तुमसे या किसी अन्य व्यक्ति से न हो। यदि उनकी कोई संतान है (चाहे नर हो या नारी), तो तुम्हें उनके छोड़े हुए धन का चौथा हिस्सा मिलेगा। तुम्हारे लिए इसका वितरण उनकी वसीयत लागू करने तथा उनके ज़िम्मे अनिवार्य क़र्ज़ को चुकाने के बाद किया जाएगा। और (ऐ पतियो!) तुम्हारी स्त्रियों को तुम्हारे छोड़े हुए धन का चौथा हिस्सा मिलेगा, यदि तुम्हारी कोई संतान (चाहे नर हो या नारी) उनसे या उनके अलावा किसी अन्य (पत्नी) से न हो। यदि तुम्हारी कोई संतान है (चाहे नर हो या नारी), तो ऐसी स्थिति में उन्हें तुम्हारे छोड़े हुए धन का आठवाँ हिस्सा मिलेगा। उनके लिए इसका वितरण तुम्हारी वसीयत को लागू करने और तुम्हारे ज़िम्मे अनिवार्य क़र्ज़ का भुगतान करने के बाद किया जाएगा। यदि कोई ऐसा आदमी मर जाए जिसका न बाप हो और न संतान, या ऐसी स्त्री का निधन हो जाए जिसका न बाप हो और न संतान, और उन दोनों में से मृतक का अख़्याफ़ी भाई या अख़्याफ़ी बहन हो (अर्थात वह भाई बहन, जिनके बाप अलग-अलग और माँ एक हो); तो उस अख़्याफ़ी भाई या अख़्याफ़ी बहन में से प्रत्येक को फ़र्ज़ के रूप में छठवाँ हिस्सा मिलेगा। और यदि अख़्याफ़ी भाई या अख़्याफ़ी बहन एक से अधिक हों, तो उन सभी के लिए फ़र्ज़ के रूप में एक तिहाई हिस्सा है जिसमें वे सब साझीदार होंगे। इस मामले में महिला एवं पुरुष सब समान होंगे। वे लोग अपने इस हिस्से को मृतक की वसीयत लागू करने और उसके ज़िम्मे अनिवार्य क़र्ज़ को चुकाने के बाद ही प्राप्त करेंगे, बशर्ते कि उसकी वसीयत से वारिसों को कोई नुकसान न पहुँचता हो; जैसे कि वह उसके धन के एक तिहाई से अधिक की वसीयत हो। यह प्रावधान जिस पर यह आयत आधारित है वह तुम्हारे लिए अल्लाह की ओर से एक वचन है जिसे उसने तुमपर अनिवार्य किया है। और अल्लाह खूब जानता है कि दुनिया एवं आख़िरत में बंदों की भलाई व अच्छाई किस चीज़ में है। वह सहनशील है, अवज्ञाकारी को सज़ा देने में जल्दी नहीं करता।
Faccirooji aarabeeji:
تِلْكَ حُدُوْدُ اللّٰهِ ؕ— وَمَنْ یُّطِعِ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ یُدْخِلْهُ جَنّٰتٍ تَجْرِیْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِیْنَ فِیْهَا ؕ— وَذٰلِكَ الْفَوْزُ الْعَظِیْمُ ۟
ये अनाथों और उनके अलावा अन्य लोगों के संबंध में उल्लिखित प्रावधान, अल्लाह के कानून हैं जो उसने अपने बंदों के लिए निर्धारित किए हैं, ताकि वे उनपर अमल करें। और जो भी अल्लाह और उसके रसूल का आज्ञापालन करेगा, उसके आदेशों का पालन करके और उसकी मना की हुई बातों से बचकर; अल्लाह उसे ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेगा, जिनके महलों के नीचे नहरें बह रही होंगी। वे उसी में रहेंगे, उन्हें मौत नहीं आएगी। यह ईश्वरीय बदला ही वह महान सफलता है, जिसकी तुलना किसी भी सफलता से नहीं की जा सकती।
Faccirooji aarabeeji:
وَمَنْ یَّعْصِ اللّٰهَ وَرَسُوْلَهٗ وَیَتَعَدَّ حُدُوْدَهٗ یُدْخِلْهُ نَارًا خَالِدًا فِیْهَا ۪— وَلَهٗ عَذَابٌ مُّهِیْنٌ ۟۠
और जो अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करेगा उसके आदेशों को निरस्त करके और उनपर अमल करना त्याग करके, या उनके सत्य होने में संदेह करके, और जो उसके बनाए हुए कानून की सीमाओं का उल्लंघन करेगा, अल्लाह उसे जहन्नम की आग में दाखिल करेगा जिसमें वह हमेशा रहेगा और उसमें उसके लिए अपमानजनक यातना होगी।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• لا تقسم الأموال بين الورثة حتى يقضى ما على الميت من دين، ويخرج منها وصيته التي لا يجوز أن تتجاوز ثلث ماله.
• धन को वारिसों के बीच उस समय तक विभाजित नहीं किया जाएगा जब तक कि मृतक का क़र्ज़ (ऋण) न चुका दिया जाए और उसकी वसीयत लागू न कर दी जाए, जो उसके धन के एक तिहाई से अधिक नहीं होनी चाहिए।

• التحذير من التهاون في قسمة المواريث؛ لأنها عهد الله ووصيته لعباده المؤمنين؛ فلا يجوز تركها أو التهاون فيها.
• मीरास के विभाजन में लापरवाही से सावधान किया गया है। क्योंकि यह अल्लाह का वचन और अपने मोमिन बंदों के लिए उसकी वसीयत है। अतः इसे छोड़ने अथवा इसमें लापरवाही बरतने की अनुमति नहीं है।

• من علامات الإيمان امتثال أوامر الله، وتعظيم نواهيه، والوقوف عند حدوده.
• अल्लाह के आदेशों का पालन करना, उसकी मनाही का सम्मान करना और उसकी सीमाओं पर रुक जाना, ईमान की निशानियों में से है।

• من عدل الله تعالى وحكمته أن من أطاعه وعده بأعظم الثواب، ومن عصاه وتعدى حدوده توعده بأعظم العقاب.
• यह अल्लाह का न्याय और उसकी हिकमत है कि उसने उस व्यक्ति से सबसे बड़े सवाब का वादा किया है जिसने उसका आज्ञापालन किया, और जिसने उसकी अवज्ञा की और उसकी सीमाओं का उल्लंघन किया, तो उसे सबसे बड़ी सज़ा की धमकी दी है।

وَالّٰتِیْ یَاْتِیْنَ الْفَاحِشَةَ مِنْ نِّسَآىِٕكُمْ فَاسْتَشْهِدُوْا عَلَیْهِنَّ اَرْبَعَةً مِّنْكُمْ ۚ— فَاِنْ شَهِدُوْا فَاَمْسِكُوْهُنَّ فِی الْبُیُوْتِ حَتّٰی یَتَوَفّٰهُنَّ الْمَوْتُ اَوْ یَجْعَلَ اللّٰهُ لَهُنَّ سَبِیْلًا ۟
और तुम्हारी महिलाएँ में से जो व्यभिचार कर बैठें, चाहे वे विवाहिता हों अथवा अविवाहित, उनके विरुद्ध चार विश्वसनीय मुसलमानों को गवाह लाओ। यदि वे उनके विरुद्ध व्यभिचार की गवाही दे दें, तो उन्हें सज़ा के तौर पर घरों में बंद रखो, यहाँ तक कि मौत से उनके जीवन का अंत हो जाए अथवा अल्लाह उनके लिए क़ैद के अतिरिक्त कोई दूसरा रास्ता निकाल दे। फिर अल्लाह ने इसके बाद उनके लिए रास्ता निकाल दिया। चुनांचे अविवाहित व्यभिचारिणी को सौ कोड़े मारने और एक साल के लिए देशनिकाला देने, जबकि विवाहिता को पत्थर मार-मार कर हलाक करने की सज़ा निर्धारित की गई।
Faccirooji aarabeeji:
وَالَّذٰنِ یَاْتِیٰنِهَا مِنْكُمْ فَاٰذُوْهُمَا ۚ— فَاِنْ تَابَا وَاَصْلَحَا فَاَعْرِضُوْا عَنْهُمَا ؕ— اِنَّ اللّٰهَ كَانَ تَوَّابًا رَّحِیْمًا ۟
तथा पुरुषों में से जो दो व्यक्ति व्यभिचार का पाप कर बैठें - चाहे वे विवाहित हों या अविवाहित - तो उन्हें ज़बान और हाथ से ऐसी सज़ा दो जिससे उन्हें अपमान और फटकार प्राप्त हो। फिर यदि वे दोनों उस चीज़ को छोड़ दें जो कुछ उन्होंने किया था और उनके कार्य सुधर जाएँ; तो उन्हें कष्ट पहुँचाने से उपेक्षा करो। क्योंकि पाप से तौबा करने वाला निर्दोष व्यक्ति के समान हो जाता है। निःसंदेह अल्लाह अपने तौबा करने वाले बंदों की तौबा कबूल करने वाला और उनपर दया करने वाला है। ज्ञात होना चाहिए कि इस तरह की सज़ा का प्रावधान शुरू-शुरू इस्लाम में था, लेकिन बाद में इसे निरस्त करके अविवाहित को सौ कोड़े मारने और एक साल के लिए देशनिकाला देने, तथा विवाहित को पत्थरों से मार-मार कर मार डालने का आदेश दिया गया।
Faccirooji aarabeeji:
اِنَّمَا التَّوْبَةُ عَلَی اللّٰهِ لِلَّذِیْنَ یَعْمَلُوْنَ السُّوْٓءَ بِجَهَالَةٍ ثُمَّ یَتُوْبُوْنَ مِنْ قَرِیْبٍ فَاُولٰٓىِٕكَ یَتُوْبُ اللّٰهُ عَلَیْهِمْ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ عَلِیْمًا حَكِیْمًا ۟
अल्लाह केवल उन लोगों की तौबा कबूल करता है, जो पाप और अवज्ञा को उसके परिणाम और दुर्भाग्य से अनभिज्ञ होने के कारण करते हैं, (और हर गुनाह करने वाले का यही मामला होता है, चाहे वह जानबूझकर करे या अनजाने में) फिर वे मृत्यु को देखने से पहले पश्चाताप करते हुए अपने पालनहार की ओर लौट आते हैं, तो अल्लाह ऐसे ही लोगों की तौबा स्वीकार करता है और उनके पापों को क्षमा कर देता है। अल्लाह अपनी मख़लूक की स्थितियों से अवगत, अपने फ़ैसले और विधान में हिकमत वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
وَلَیْسَتِ التَّوْبَةُ لِلَّذِیْنَ یَعْمَلُوْنَ السَّیِّاٰتِ ۚ— حَتّٰۤی اِذَا حَضَرَ اَحَدَهُمُ الْمَوْتُ قَالَ اِنِّیْ تُبْتُ الْـٰٔنَ وَلَا الَّذِیْنَ یَمُوْتُوْنَ وَهُمْ كُفَّارٌ ؕ— اُولٰٓىِٕكَ اَعْتَدْنَا لَهُمْ عَذَابًا اَلِیْمًا ۟
अल्लाह उन लोगों की तौबा कबूल नहीं करता जो अवज्ञा के कामों पर अडिग रहते हैं, और उनसे तौबा नहीं करते हैं यहाँ तक कि वे मृत्यु की व्यथा का अवलोकन कर लेते हैं। तो उस समय उनमें से एक कहता है : मैंने जो कुछ पाप किया है, अब मैं उससे तौबा करता हूँ। इसी तरह अल्लाह उन लोगों की तौबा - भी - कबूल नहीं करता, जो कुफ़्र पर अडिग रहते हुए मर जाते हैं। ये गुनाहों पर अडिग रहने वाले अवज्ञाकारी, तथा वे लोग जो अपने कुफ़्र (अविश्वास) पर स्थिर रहते हुए मर जाते हैं; हमने उनके लिए दर्दनाक सज़ा तैयार कर रखी है।
Faccirooji aarabeeji:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا یَحِلُّ لَكُمْ اَنْ تَرِثُوا النِّسَآءَ كَرْهًا ؕ— وَلَا تَعْضُلُوْهُنَّ لِتَذْهَبُوْا بِبَعْضِ مَاۤ اٰتَیْتُمُوْهُنَّ اِلَّاۤ اَنْ یَّاْتِیْنَ بِفَاحِشَةٍ مُّبَیِّنَةٍ ۚ— وَعَاشِرُوْهُنَّ بِالْمَعْرُوْفِ ۚ— فَاِنْ كَرِهْتُمُوْهُنَّ فَعَسٰۤی اَنْ تَكْرَهُوْا شَیْـًٔا وَّیَجْعَلَ اللّٰهُ فِیْهِ خَیْرًا كَثِیْرًا ۟
ऐ अल्लाह पर ईमान रखने और उसके रसूल का अनुसरण करने वालो! तुम्हारे लिए वैध नहीं है कि अपने पिता और रिश्तेदारों की पत्नियों के वारिस बन जाओ जिस तरह कि धन का वारिस होते हैं और उनके बारे में यह रवैया अपनाओ कि उनसे खुद विवाह कर लो, या उनका विवाह उनसे कर दो जिन्हें तुम चाहते हो, या उन्हें विवाह करने से (ही) रोक दो। तुम्हारे लिए यह भी जायज़ नहीं है कि अपनी उन पत्नियों को जिन्हें तुम नापसंद करते हो नुकसान पहुँचाने के लिए रोके रखो, ताकि वे तुम्हारी दी हुई महर आदि का कुछ हिस्सा तुम्हारे लिए परित्याग कर दें। सिवाय इसके कि वे कोई स्पष्ट (घोर) अश्लील काम जैसे व्यभिचार आदि कर बैठें। यदि वे ऐसा करती हैं तो तुम्हारे लिए उन्हें रोकना और उन्हें तंग करना जायज़ है यहाँ तक कि वे तुम्हारी दी हुई चीज़ें वापस करके तुमसे आज़ाद हो जाएँ। तथा तुम अपनी स्त्रियों के साथ अच्छी संगति रखो, उनसे कष्ट को दूर करके और अच्छा व्यवहार करके। यदि तुम उन्हें किसी सांसारिक मामले की वजह से नापसंद करो तो उनपर धैर्य से काम लो; क्योंकि संभव है कि अल्लाह उस चीज़ में जो तुम नापसंद करते हो, दुनिया एवं आख़िरत की बहुत-सी भलाइयाँ रख दे।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• ارتكاب فاحشة الزنى من أكثر المعاصي خطرًا على الفرد والمجتمع؛ ولهذا جاءت العقوبات عليها شديدة.
• व्यभिचार का दुष्कर्म करना व्यक्ति और समाज के लिए सबसे खतरनाक गुनाहों में से एक है। इसीलिए इसकी बड़ी सख़्त सज़ा निर्धारित की गई है।

• لطف الله ورحمته بعباده حيث فتح باب التوبة لكل مذنب، ويسر له أسبابها، وأعانه على سلوك سبيلها.
• यह अल्लाह की अपने बंदों के प्रति दया और कृपा है कि उसने प्रत्येक पापी के लिए पश्चाताप का द्वार खोला, उसके लिए उसके कारणों को सुविधाजनक बनाया और उसके रास्ते पर चलने में उसकी सहायता की।

• كل من عصى الله تعالى بعمد أو بغير عمد فهو جاهل بقدر من عصاه جل وعلا، وجاهل بآثار المعاصي وشؤمها عليه.
• हर वह व्यक्ति जो जानबूझकर या अनजाने में अल्लाह तआला की अवज्ञा करता हैं, वह उस सर्वशक्तिमान (अल्लाह) की महानता से अनभिज्ञ है जिसकी उसने अवज्ञा की है, इसी तरह वह पाप के प्रभावों और अपने ऊपर उसके दुर्भाग्य से भी अनभिज्ञ है।

• من أسباب استمرار الحياة الزوجية أن يكون نظر الزوج متوازنًا، فلا يحصر نظره فيما يكره، بل ينظر أيضا إلى ما فيه من خير، وقد يجعل الله فيه خيرًا كثيرًا.
• वैवाहिक जीवन की निरंतरता के कारणों में से एक यह है कि पति का दृष्टिकोण संतुलित हो। अतः वह अपनी निगाहों को केवल उसी चीज़ को देखने तक सीमित न रखे, जिसे वह नापसंद करता है, बल्कि वह उसमें मौजूद अच्छाई को भी देखे और हो सकता है कि अल्लाह उसमें बहुत सारी अच्छाई रख दे।

وَاِنْ اَرَدْتُّمُ اسْتِبْدَالَ زَوْجٍ مَّكَانَ زَوْجٍ ۙ— وَّاٰتَیْتُمْ اِحْدٰىهُنَّ قِنْطَارًا فَلَا تَاْخُذُوْا مِنْهُ شَیْـًٔا ؕ— اَتَاْخُذُوْنَهٗ بُهْتَانًا وَّاِثْمًا مُّبِیْنًا ۟
और (ऐ पतियो!) यदि तुम किसी पत्नी को तलाक़ देना चाहो और उसकी जगह पर दूसरी पत्नी लाना चाहो, तो इसमें तुम्हारे लिए कोई बुराई नहीं है। और यदि तुमने उस पत्नी को, जिसे तुमने तलाक़ देने का इरादा किया है, महर के तौर पर बहुत सारा धन दिया था; तो तुम्हारे लिए उसमें से कुछ भी लेना जायज़ नहीं है। क्योंकि तुमने उन्हें जो कुछ दिया है उसे लेना खुला मिथ्यारोप और स्पष्ट पाप समझा जाएगा।
Faccirooji aarabeeji:
وَكَیْفَ تَاْخُذُوْنَهٗ وَقَدْ اَفْضٰی بَعْضُكُمْ اِلٰی بَعْضٍ وَّاَخَذْنَ مِنْكُمْ مِّیْثَاقًا غَلِیْظًا ۟
भला तुम उन्हें दिया हुआ महर कैसे वापस लोगे, जबकि तुम्हारे बीच एक रिश्ता और स्नेह स्थापित हो चुका, तथा तुम एक-दूसरे से लाभान्वित और एक-दूसरे के रहस्यों से अवगत हो चुके हो। इसके बाद उनके हाथों में मौजूद धन की लालच करना बहुत बुरी और घृणित बात है, जबकि वे तुमसे दृढ़ और पक्का वचन (भी) ले चुकी हैं। और वह वचन अल्लाह के शब्द और उसकी शरीयत के द्वारा उन्हें हलाल ठहराना है।
Faccirooji aarabeeji:
وَلَا تَنْكِحُوْا مَا نَكَحَ اٰبَآؤُكُمْ مِّنَ النِّسَآءِ اِلَّا مَا قَدْ سَلَفَ ؕ— اِنَّهٗ كَانَ فَاحِشَةً وَّمَقْتًا ؕ— وَسَآءَ سَبِیْلًا ۟۠
और तुम उन स्त्रियों से निकाह न करो, जिनसे तुम्हारे पिताओं ने निकाह किया है, क्योंकि यह हराम (निषिद्ध) है। परंतु जो इस्लाम से पहले ऐसा हो चुका है, उसपर कोई पकड़ नहीं है। इसके हराम होने का कारण यह है कि बेटों का अपने पिताओं की पत्नियों से विवाह करना अत्यन्त घृणित बात है तथा ऐसा करने वाले पर अल्लाह के क्रोध का कारण है और यह चलने का एक बुरा रास्ता है।
Faccirooji aarabeeji:
حُرِّمَتْ عَلَیْكُمْ اُمَّهٰتُكُمْ وَبَنٰتُكُمْ وَاَخَوٰتُكُمْ وَعَمّٰتُكُمْ وَخٰلٰتُكُمْ وَبَنٰتُ الْاَخِ وَبَنٰتُ الْاُخْتِ وَاُمَّهٰتُكُمُ الّٰتِیْۤ اَرْضَعْنَكُمْ وَاَخَوٰتُكُمْ مِّنَ الرَّضَاعَةِ وَاُمَّهٰتُ نِسَآىِٕكُمْ وَرَبَآىِٕبُكُمُ الّٰتِیْ فِیْ حُجُوْرِكُمْ مِّنْ نِّسَآىِٕكُمُ الّٰتِیْ دَخَلْتُمْ بِهِنَّ ؗ— فَاِنْ لَّمْ تَكُوْنُوْا دَخَلْتُمْ بِهِنَّ فَلَا جُنَاحَ عَلَیْكُمْ ؗ— وَحَلَآىِٕلُ اَبْنَآىِٕكُمُ الَّذِیْنَ مِنْ اَصْلَابِكُمْ ۙ— وَاَنْ تَجْمَعُوْا بَیْنَ الْاُخْتَیْنِ اِلَّا مَا قَدْ سَلَفَ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ كَانَ غَفُوْرًا رَّحِیْمًا ۟ۙ
अल्लाह ने तुम्हारे लिए विवाह हराम किया है, तुम्हारी माताओं से, चाहे वे कितनी ही दूर तक ऊपर चली जाएँ; अर्थात् : माँ की माँ और उसकी दादी, चाहे पिता की तरफ से हो या माता। और तुम्हारी बेटियों से, चाहे वे कितनी ही दूर तक नीचे चली जाएँ; अर्थात् : उसकी बेटी और उसकी बेटी की बेटी, इसी तरह बेटे की बेटियाँ और बेटी की बेटियाँ चाहे वे कितनी ही दूर तक नीचे चली जाएँ। और तुम्हारी सगी बहनों, या बाप शरीक (अल्लाती) या माँ शरीक (अख़्याफ़ी) बहनों से। और तुम्हारी फूफियों से, इसी तरह तुम्हारे पिताओं और माताओं की फूफियों से, चाहे वे कितनी दूर तक ऊपर चली जाएँ। और तुम्हारी खालाओं से, और इसी तरह तुम्हारी माताओं और पिताओं की खालाओं से, चाहे वे कितनी दूर तक ऊपर चली जाएँ। और भाई की बेटियों तथा बहन की बेटियों और उनकी बेटियों से, चाहे वे कितनी दूर तक नीचे चली जाएँ। और तुम्हारी उन माताओं से जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया है, और तुम्हारी दूध में साझीदार बहनों से, और तुम्हारी पत्नियों की माताओं से, चाहे तुम्हारा उनसे मिलन हुआ हो या न हुआ हो। और तुम्हारी पत्नियों की उन बेटियों से, जो तुम्हारे सिवा किसी अन्य पति से हों और जो अधिकतर तुम्हारे घरों में ही पलती बढ़ती हैं, इसी तरह यदि वे तुम्हारे घरों में न पली हों, अगर तुमने उनकी माताओं से मिलन कर लिया हो। लेकिन यदि तुमने उनकी माताओं से मिलन न किया हो, तो उनकी बेटियों से निकाह करने में कोई आपत्ति नहीं है। तथा तुम्हारे लिए तुम्हारे सगे बेटों की पत्नियों से विवाह करना भी हराम है, यद्यपि उनका उनसे मिलन न हुआ हो। और इस हुक्म में तुम्हारे दूध में साझीदार बेटों की पत्नियाँ भी शामिल हैं। तथा तुम्हारे लिए दो नसबी या दूध शरीक बहनों को एक साथ निकाह में रखना भी हराम है। हाँ, अज्ञानता के समयकाल में जो हो चुका, सो हो चुका। अल्लाह ने उसे क्षमा कर दिया। निःसंदेह अल्लाह अपने तौबा करने वाले बंदों को माफ़ करने वाला, उनपर दया करने वाला है। इसी तरह सुन्नत (हदीस) से साबित है कि किसी महिला और उसकी फूफी या उसकी खाला को एक साथ (निकाह) में रखना निषिद्ध है।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• إذا دخل الرجل بامرأته فقد ثبت مهرها، ولا يجوز له التعدي عليه أو الطمع فيه، حتى لو أراد فراقها وطلاقها.
• जब पति-पत्नि का मिलन हो जाए, तो महर साबित हो जाता है। अब पति के लिए उसमें दरअंदाज़ी करना या उसकी लालच करना जायज़ नहीं है, भले ही वह उसे छोड़ना और तलाक़ देना चाहता हो।

• حرم الله تعالى نكاح زوجات الآباء؛ لأنه فاحشة تمقتها العقول الصحيحة والفطر السليمة.
• अल्लाह ने पिताओं की पत्नियों से विवाह करना हराम क़रार दिया है, क्योंकि यह अश्लीलता (निर्लज्जता) का काम है, जिसे सद्बुद्धि और शुद्ध स्वभाव नापसंद करते हैं।

• بين الله تعالى بيانًا مفصلًا من يحل نكاحه من النساء ومن يحرم، سواء أكان بسبب النسب أو المصاهرة أو الرضاع؛ تعظيمًا لشأن الأعراض، وصيانة لها من الاعتداء.
• अल्लाह ने इस्मतों (सतीत्व) की महिमा बढ़ाते हुए और उन्हें दुरुपयोग से बचाने के लिए, इस बात का विस्तृत विवरण प्रस्तुत कर दिया है कि किन स्त्रियों से निकाह करना जायज़ है और किन से हराम है, चाहे वह वंश (नसब) के कारण हो, या ससुराली रिश्ते की बुनियाद पर, या दूध के रिश्ते (स्तनपान) के आधार पर हो।

وَّالْمُحْصَنٰتُ مِنَ النِّسَآءِ اِلَّا مَا مَلَكَتْ اَیْمَانُكُمْ ۚ— كِتٰبَ اللّٰهِ عَلَیْكُمْ ۚ— وَاُحِلَّ لَكُمْ مَّا وَرَآءَ ذٰلِكُمْ اَنْ تَبْتَغُوْا بِاَمْوَالِكُمْ مُّحْصِنِیْنَ غَیْرَ مُسٰفِحِیْنَ ؕ— فَمَا اسْتَمْتَعْتُمْ بِهٖ مِنْهُنَّ فَاٰتُوْهُنَّ اُجُوْرَهُنَّ فَرِیْضَةً ؕ— وَلَا جُنَاحَ عَلَیْكُمْ فِیْمَا تَرٰضَیْتُمْ بِهٖ مِنْ بَعْدِ الْفَرِیْضَةِ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَلِیْمًا حَكِیْمًا ۟
शादी-शुदा स्त्रियों से निकाह करना तुम्हारे लिए हराम कर दिया गया है। परंतु जो स्त्रियाँ अल्लाह की राह में जिहाद करते समय, बंदी बनकर तुम्हारे पास आएं, उनसे एक मासिक धर्म के पश्चात जब यह स्पष्ट हो जाए कि वे गर्भवती नहीं हैं, तुम्हारे लिए संभोग करना जायज़ है। यह (हुक्म) अल्लाह ने तुम पर फ़र्ज़ कर दिया है। तथा अल्लाह ने इनके अलावा दूसरी स्त्रियों को तुम्हारे लिए हलाल किया है कि तुम अपना माल खर्च करके, हलाल तरीक़े से, अपने सतीत्व की रक्षा करो, तुम्हारा उद्देश्य व्यभिचार का न हो। फिर जिन स्त्रियों से तुम निकाह करके लाभ उठाओ, उन्हें उनका महर चुका दो, जो अल्लाह ने तुम्हारे ऊपर फ़र्ज़ किया है। किन्तु वाजिब महर के निर्धारण के बाद, उसमें कुछ वृद्धि करने या कुछ माफ करने पर तुम्हारी आपस में सहमति हो जाती है, तो इसमें तुम पर कोई पाप नहीं है। अल्लाह अपनी सृष्टि से अवगत है, उनकी कोई चीज़ उससे छिपी नहीं है। वह अपने प्रबंधन और विधान में हिकमत वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
وَمَنْ لَّمْ یَسْتَطِعْ مِنْكُمْ طَوْلًا اَنْ یَّنْكِحَ الْمُحْصَنٰتِ الْمُؤْمِنٰتِ فَمِنْ مَّا مَلَكَتْ اَیْمَانُكُمْ مِّنْ فَتَیٰتِكُمُ الْمُؤْمِنٰتِ ؕ— وَاللّٰهُ اَعْلَمُ بِاِیْمَانِكُمْ ؕ— بَعْضُكُمْ مِّنْ بَعْضٍ ۚ— فَانْكِحُوْهُنَّ بِاِذْنِ اَهْلِهِنَّ وَاٰتُوْهُنَّ اُجُوْرَهُنَّ بِالْمَعْرُوْفِ مُحْصَنٰتٍ غَیْرَ مُسٰفِحٰتٍ وَّلَا مُتَّخِذٰتِ اَخْدَانٍ ۚ— فَاِذَاۤ اُحْصِنَّ فَاِنْ اَتَیْنَ بِفَاحِشَةٍ فَعَلَیْهِنَّ نِصْفُ مَا عَلَی الْمُحْصَنٰتِ مِنَ الْعَذَابِ ؕ— ذٰلِكَ لِمَنْ خَشِیَ الْعَنَتَ مِنْكُمْ ؕ— وَاَنْ تَصْبِرُوْا خَیْرٌ لَّكُمْ ؕ— وَاللّٰهُ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟۠
तथा - ऐ पुरुषो - तुममें से जो व्यक्ति पैसे की कमी के कारण आज़ाद स्त्रियों से विवाह करने में सक्षम न हो, उसके लिए किसी अन्य व्यक्ति के स्वामित्व में मौजूद दासियों से निकाह करना जायज़ है, यदि वे तुम्हें ईमान वाली दिखाई दें, जबकि तुम्हारे ईमान की सच्चाई और भीतरी स्थिति को अल्लाह ही बेहतर जानता है। तुम और वे (दासियाँ) धर्म एवं मानवता में बराबर हैं, इसलिए उनसे शादी करने में शर्म महसूस न करो। सो, तुम उनसे उनके मालिकों की अनुमति से विवाह कर लो और उनका महर बिना किसी कमी या टाल-मटोल के उन्हें अदा कर दो। परंतु यह उस स्थिति में है जब वे पाकदामन (निष्कलंक चरित्र) हों, खुल्लम खुल्ला व्यभिचार करने वाली न हों, तथा गुप्त रूप से व्यभिचार के लिए मित्र रखने वाली न हों। जब वे शादी कर लें, फिर उसके बाद व्यभिचार में लिप्त हो जाएं, तो उन्हें आज़ाद स्त्रियों का आधा दंड दिया जाएगा। अर्थात् पचास कोड़े लगाए जाएंगे, लेकिन आज़ाद शादीशुदा स्त्रियों की तरह उन्हें संगसार नहीं किया जाएगा। सच्चरित्र ईमान वाली दासियों से निकाह करने की यह अनुमति, उसके लिए है, जिसे व्यभिचार में पड़ने का डर हो और वह आज़ाद स्त्रियों से निकाह करने की शक्ति न रखता हो। जबकि दासियों के निकाह से धैर्य करना (अर्थात् रुक जाना) बेहतर है; ताकि संतान दासता से सुरक्षित रहे।अल्लाह अपने तौबा करने वाले बंदों को क्षमा करने वाला और उनपर दया करने वाला है। और यह उसकी दया में से है कि उसने उनके लिए, आज़ाद स्त्रियों से निकाह करने में असमर्थ होने की स्थिति में, व्यभिचार में पड़ने के डर के समय दासियों से निकाह करना धर्मसंगत कर दिया है।
Faccirooji aarabeeji:
یُرِیْدُ اللّٰهُ لِیُبَیِّنَ لَكُمْ وَیَهْدِیَكُمْ سُنَنَ الَّذِیْنَ مِنْ قَبْلِكُمْ وَیَتُوْبَ عَلَیْكُمْ ؕ— وَاللّٰهُ عَلِیْمٌ حَكِیْمٌ ۟
अल्लाह तआला तुम्हारे लिए इन प्रावधानों को निर्मित करके तुम्हारे लिए अपनी शरीयत और धर्म की निशानियों एवं दुनिया व आख़िरत में तुम्हारे हितों की चीज़ों को बयान करना चाहता है। तथा वह तुम्हारा, हलाल व हराम ठहराने में तुमसे पूर्व नबियों के तरीक़ों, उनके अच्छे गुणों और उनके सराहनीय आचरण की ओर, मार्गदर्शन करना चाहता है, ताकि तुम उनका अनुसरण करो। अल्लाह यह भी चाहता है कि तुम्हें अपनी अवज्ञा से हटाकर अपने आज्ञापालन की ओर फेर दे। अल्लाह उस चीज़ से अवगत है जिसमें उसके बंदों का हित है, चुनाँचे वह उसे उनके लिए धर्मसंगत बना देता है। वह अपने विधान और उनके मामलों के प्रबंधन में हिकमात वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• حُرمة نكاح المتزوجات: حرائر أو إماء حتى تنقضي عدتهن أيًّا كان سبب العدة.
• शादी-शुदा स्त्रियों से निकाह करना, चाहे वे आज़ाद हों या दासियाँ, उस समय तक हराम है, जब तक कि उनकी इद्दत समाप्त न हो जाए, चाहे इद्दत का कारण जो भी हो।

• أن مهر المرأة يتعين بعد الدخول بها، وجواز أن تحط بعض مهرها إذا كان بطيب نفس منها.
• स्त्री का महर, उससे मिलन के बाद अनिवार्य हो जाता है, तथा स्त्री का अपनी ख़ुशी से अपने महर का कुछ भाग माफ़ करना जायज़ है।

• جواز نكاح الإماء المؤمنات عند عدم القدرة على نكاح الحرائر؛ إذا خاف على نفسه الوقوع في الزنى.
• यदि आज़ाद स्त्रियों से निकाह करने में असमर्थ हो और व्यभिचार में पड़ने का भय हो, तो मुसलमान दासियों से निकाह करने की अनुमति है।

• من مقاصد الشريعة بيان الهدى والضلال، وإرشاد الناس إلى سنن الهدى التي تردُّهم إلى الله تعالى.
• शरीयत का एक उद्देश्य हिदायत और गुमराही को स्पष्ट करना और लोगों को हिदायत के उन रास्तों का मार्गदर्शन करना है जो उन्हें अल्लाह की ओर ले जाते हैं।

وَاللّٰهُ یُرِیْدُ اَنْ یَّتُوْبَ عَلَیْكُمْ ۫— وَیُرِیْدُ الَّذِیْنَ یَتَّبِعُوْنَ الشَّهَوٰتِ اَنْ تَمِیْلُوْا مَیْلًا عَظِیْمًا ۟
अल्लाह चाहता है कि तुम्हारी तौबा क़बूल करे और तुम्हारे पापों को क्षमा कर दे, जबकि अपनी इच्छाओं के पीछे चलने वाले चाहते हैं कि तुम हिदायत के मार्ग से बहुत दूर हो जाओ।
Faccirooji aarabeeji:
یُرِیْدُ اللّٰهُ اَنْ یُّخَفِّفَ عَنْكُمْ ۚ— وَخُلِقَ الْاِنْسَانُ ضَعِیْفًا ۟
अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी शरीयत में आसानी पैदा करना चाहता है। इसी कारण वह तुम्हें ऐसी चीज़ का आदेश नहीं देता, जो तुम्हारी शक्ति से बाहर हो। क्योंकि वह मनुष्य की अपनी रचना एवं व्यवहार में कमज़ोरी से अवगत है।
Faccirooji aarabeeji:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا تَاْكُلُوْۤا اَمْوَالَكُمْ بَیْنَكُمْ بِالْبَاطِلِ اِلَّاۤ اَنْ تَكُوْنَ تِجَارَةً عَنْ تَرَاضٍ مِّنْكُمْ ۫— وَلَا تَقْتُلُوْۤا اَنْفُسَكُمْ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ كَانَ بِكُمْ رَحِیْمًا ۟
ऐ अल्लाह पर ईमान रखने और उसके रसूल का अनुसरण करने वालो! तुम एक दूसरे का माल अवैध रूप से न लो, जैसे- जबरन क़ब्ज़ा, चोरी और रिश्वत आदि। परंतु यदि वह धन दोनों पक्षों की आपसी सहमति से होने वाले व्यवसाय का धन हो, तो तुम्हारे लिए उसको खाना और उसमें अपना अधिकार चलाना जायज़ है। तथा तुम एक-दूसरे की हत्या न करो और न तुममें से कोई अपने आपकी हत्या करे और न खुद को हलाकत में डाले। निःसंदेह अल्लाह तुमपर बड़ा दयावान् है और यह उसकी दया ही है कि उसने तुम्हारी जानों, तुम्हारे धनों और तुम्हारी इज्जत को हराम क़रार दिया है।
Faccirooji aarabeeji:
وَمَنْ یَّفْعَلْ ذٰلِكَ عُدْوَانًا وَّظُلْمًا فَسَوْفَ نُصْلِیْهِ نَارًا ؕ— وَكَانَ ذٰلِكَ عَلَی اللّٰهِ یَسِیْرًا ۟
जो व्यक्ति वह काम करेगा जिससे वह मना किया गया है; चुनाँचे वह किसी का धन खाएगा या किसी की हत्या करेगा, वह भी अनजाने या भूलवश नहीं, बल्कि जान-बूझकर और ज़्यादती करते हुए; तो क़ियामत के दिन अल्लाह उसे एक बड़ी आग में झोंक देगा। वह उसकी गर्मी सहेगा और उसकी यातना झेलेगा। यह कार्य अल्लाह के लिए बड़ा आसान है, क्योंकि वह हर कार्य की ताक़त रखता है, उसे कोई वस्तु विवश नहीं कर सकती।
Faccirooji aarabeeji:
اِنْ تَجْتَنِبُوْا كَبَآىِٕرَ مَا تُنْهَوْنَ عَنْهُ نُكَفِّرْ عَنْكُمْ سَیِّاٰتِكُمْ وَنُدْخِلْكُمْ مُّدْخَلًا كَرِیْمًا ۟
- ऐ मोमिनो! - यदि तुम बड़े गुनाहों से बचते रहोगे, जैसे अल्लाह का साझी बनाना, माता-पिता की अवज्ञा करना, किसी की हत्या करना और ब्याज लेना, तो हम तुम्हारे छोटे गुनाहों को क्षमा कर देंगे और तुम्हें अल्लाह के पास एक सम्मानित स्थान अर्थात जन्नत में प्रवेश का सौभाग्य प्रदान करेंगे।
Faccirooji aarabeeji:
وَلَا تَتَمَنَّوْا مَا فَضَّلَ اللّٰهُ بِهٖ بَعْضَكُمْ عَلٰی بَعْضٍ ؕ— لِلرِّجَالِ نَصِیْبٌ مِّمَّا اكْتَسَبُوْا ؕ— وَلِلنِّسَآءِ نَصِیْبٌ مِّمَّا اكْتَسَبْنَ ؕ— وَسْـَٔلُوا اللّٰهَ مِنْ فَضْلِهٖ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ كَانَ بِكُلِّ شَیْءٍ عَلِیْمًا ۟
(ऐ मोमिनो!) अल्लाह ने जिस चीज़ के द्वारा तुममें से कुछ को दूसरों पर श्रेष्ठता प्रदान की है, उसकी कामना न करो; ताकि ऐसा न हो कि यह असंतोष और ईर्ष्या पैदा कर दे। अतः स्त्रियों के लिए उचित नहीं है कि अल्लाह ने पुरुषों को जो विशिष्टताएँ प्रदान की हैं, उनकी आकांक्षा करें। क्योंकि प्रत्येक वर्ग के लिए उसके अनुरूप प्रतिफल का एक हिस्सा है।तथा अल्लाह से प्रार्थना करो कि वह तुम्हें अपने अनुदान से अधिक प्रदान करे। इसमें कोई शक नहीं कि अल्लाह हर वस्तु का ज्ञान रखता है; इसलिए उसने हर वर्ग को वही दिया है जो उसके अनुकूल है।
Faccirooji aarabeeji:
وَلِكُلٍّ جَعَلْنَا مَوَالِیَ مِمَّا تَرَكَ الْوَالِدٰنِ وَالْاَقْرَبُوْنَ ؕ— وَالَّذِیْنَ عَقَدَتْ اَیْمَانُكُمْ فَاٰتُوْهُمْ نَصِیْبَهُمْ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَلٰی كُلِّ شَیْءٍ شَهِیْدًا ۟۠
हमने तुममें से हर एक के हक़दार बना दिए हैं, जो माता-पिता और निकटवर्ती रिश्तेदारों की छोड़ी हुई संपत्ति के वारिस होंगे। रही बात उनकी जिनसे तुमने क़समें खाकर आपसी एकता एवं सहोग का मुआहदा कर रखा है, तो उन्हें मीरास से उनका हिस्सा दो। बेशक अल्लाह हर वस्तु से सूचित है, और इसी में उसका तुम्हारी इन क़समों और वचनों से अवगत होना भी शामिल है। आपसी एकता एवं सहोग के मुआहदा के द्वारा विरासत का नियम शुरू इस्लाम में थे, फिर उसे निरस्त कर दिया गया।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• سعة رحمة الله بعباده؛ فهو سبحانه يحب التوبة منهم، والتخفيف عنهم، وأما أهل الشهوات فإنما يريدون بهم ضلالًا عن الهدى.
• अल्लाह की अपने बंदों के प्रति विस्तृत दया; चुनाँचे अल्लाह अपने बंदों की तौबा को पसंद करता है और उनके लिए आसानी पैदा करना चाहता है। जबकि इच्छाओं के पीछे चलने वाले लोग, उन्हें हिदायत (मार्गदर्शन) से भटकाना चाहते हैं।

• حفظت الشريعة حقوق الناس؛ فحرمت الاعتداء على الأنفس والأموال والأعراض، ورتبت أعظم العقوبة على ذلك.
• शरीयत ने लोगों के अधिकारों को संरक्षित किया है; चुनाँचे लोगों की जानों, धनों और इस्मतों (सतीत्व) पर हमला को हराम क़रार दिया है और उसके लिए सबसे बड़ी सज़ा की व्यवस्था की है।

• الابتعاد عن كبائر الذنوب سبب لدخول الجنة ومغفرة للصغائر.
• बड़े गुनाहों से दूर रहना, जन्नत में प्रवेश और छोटे गुनाहों की क्षमा का कारण है।

• الرضا بما قسم الله، وترك التطلع لما في يد الناس؛ يُجنِّب المرء الحسد والسخط على قدر الله تعالى.
• अल्लाह के आवंटन के प्रति संतुष्टि और और लोगों के हाथों में जो कुछ है, उसकी आकांक्षा को छोड़ देना; मनुष्य को ईर्ष्या तथा अल्लाह के फ़ैसले पर असंतोष से बचाता है।

اَلرِّجَالُ قَوّٰمُوْنَ عَلَی النِّسَآءِ بِمَا فَضَّلَ اللّٰهُ بَعْضَهُمْ عَلٰی بَعْضٍ وَّبِمَاۤ اَنْفَقُوْا مِنْ اَمْوَالِهِمْ ؕ— فَالصّٰلِحٰتُ قٰنِتٰتٌ حٰفِظٰتٌ لِّلْغَیْبِ بِمَا حَفِظَ اللّٰهُ ؕ— وَالّٰتِیْ تَخَافُوْنَ نُشُوْزَهُنَّ فَعِظُوْهُنَّ وَاهْجُرُوْهُنَّ فِی الْمَضَاجِعِ وَاضْرِبُوْهُنَّ ۚ— فَاِنْ اَطَعْنَكُمْ فَلَا تَبْغُوْا عَلَیْهِنَّ سَبِیْلًا ؕ— اِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَلِیًّا كَبِیْرًا ۟
पुरुष गण स्त्रियों की देखभाल करते हैं और उनके मामलों का प्रबंधन करते हैं, क्योंकि अल्लाह ने उन्हें स्त्रियों पर विशेष प्रधानता दी है तथा इस कारण कि उनपर खर्च करना और उनकी देख-रेख करना पुरुषों पर अनिवार्य है। सदाचारी स्त्रियाँ अपने पालनहार की आज्ञाकारी, अपने पतियों की बात मानने वाली और अल्लाह की तौफ़ीक़ से अपने पतियों की अनुपस्थिति में उनके अधिकारों की रक्षा करने वाली होती हैं। तथा - ऐ पतियो! - जिन स्त्रियों के विषय में किसी बात या कार्य में अपने पतियों के आज्ञापालन से उपेक्षा करने का डर हो, तो पहले उन्हें समझाओ-बुझाओ और अल्लाह का भय दिलाओ। यदि वे न मानें, तो उन्हें बिस्तर में अलग रखो, जैसे सोते समय उनकी ओर पीठ कर लो और उनसे संभोग न करो। यदि वे इसपर भी न मानें तो हल्की मार मारो। यदि वे आज्ञापालन की ओर लौट आएँ, तो उनपर किसी प्रकार का अत्याचार न करो या उन्हें बुरा भला न कहो। अल्लाह हर चीज़ से सर्वोच्च और अपने व्यक्तित्व और गुणों में महान है, इसलिए उससे डरो।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِنْ خِفْتُمْ شِقَاقَ بَیْنِهِمَا فَابْعَثُوْا حَكَمًا مِّنْ اَهْلِهٖ وَحَكَمًا مِّنْ اَهْلِهَا ۚ— اِنْ یُّرِیْدَاۤ اِصْلَاحًا یُّوَفِّقِ اللّٰهُ بَیْنَهُمَا ؕ— اِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَلِیْمًا خَبِیْرًا ۟
यदि तुम्हें - ऐ पति-पत्नी के अभिभावको! - इस बात का भय हो कि दोनों के बीच का विवाद दुश्मनी और परस्पर संबंध-विच्छेद की सीमा तक पहुँच जाएगा, तो पति के परिवार से एक न्यायी पुरुष और पत्नी के परिवार से एक न्यायी पुरुष को भेजो; ताकि वे दोनों के हितों को ध्यान में रखते हुए उनके बीच जुदाई अथवा मिलाप का निर्णय करें।जबकि मेलमिलाप ही ज़्यादा प्रिय और बेहतर है। यदि दोनों मध्यस्थों ने मेलमिलाप चाहा और उसके लिए बेहतरीन प्रयास किए, तो अल्लाह पति-पत्नी के बीच मिलाप पैदा कर देगा और उनके बीच का विवाद समाप्त हो जाएगा। अल्लाह पर उसके बंदों की कोई बात छिपी नहीं है और वह उनके दिलों के निहित भेदों से भी अवगत है।
Faccirooji aarabeeji:
وَاعْبُدُوا اللّٰهَ وَلَا تُشْرِكُوْا بِهٖ شَیْـًٔا وَّبِالْوَالِدَیْنِ اِحْسَانًا وَّبِذِی الْقُرْبٰی وَالْیَتٰمٰی وَالْمَسٰكِیْنِ وَالْجَارِ ذِی الْقُرْبٰی وَالْجَارِ الْجُنُبِ وَالصَّاحِبِ بِالْجَنْۢبِ وَابْنِ السَّبِیْلِ ۙ— وَمَا مَلَكَتْ اَیْمَانُكُمْ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ لَا یُحِبُّ مَنْ كَانَ مُخْتَالًا فَخُوْرَا ۟ۙ
अल्लाह के प्रति अधीनता के साथ अकेले उसी की इबादत करो और उसके साथ किसी की इबादत न करो। तथा माता-पिता का सम्मान और उनके साथ अच्छा व्यवहार करो। और रिश्तेदारों, अनाथों और ज़रूरतमंदों के साथ अच्छा व्यवहार करो। तथा रिश्तेदार पड़ोसी एवं गैर-रिश्तेदार पड़ोसी के साथ भलाई करो। तथा साथ रहने वाले साथी के साथ अच्छा व्यवहार करो। तथा उस अनजान यात्री के साथ भलाई करो जिसका रास्ता कट गया है। तथा अपने दास-दासियों के साथ अच्छा व्यवहार करो। निःसंदेह अल्लाह ऐसे व्यक्ति से प्रेम नहीं करता, जो आत्ममुग्ध हो, उसके बंदों के समक्ष अपनी बड़ाई दिखाता हो और लोगों पर गर्व करने के लिए स्वयं की प्रशंसा करता हो।
Faccirooji aarabeeji:
١لَّذِیْنَ یَبْخَلُوْنَ وَیَاْمُرُوْنَ النَّاسَ بِالْبُخْلِ وَیَكْتُمُوْنَ مَاۤ اٰتٰىهُمُ اللّٰهُ مِنْ فَضْلِهٖ ؕ— وَاَعْتَدْنَا لِلْكٰفِرِیْنَ عَذَابًا مُّهِیْنًا ۟ۚ
अल्लाह उन लोगों से प्रेम नहीं करता, जो अल्लाह के दिए हुए धन को खर्च नहीं करते, जो अल्लाह ने उन पर ज़रूरी कर दिया है तथा वे अपने कथन एवं कर्म से दूसरों को भी ऐसा करने का आदेश देते हैं। वे अल्लाह की दी हुई जीविका तथा ज्ञान आदि को छिपाते हैं। अतः वे लोगों के सामने सत्य को बयान नहीं करते हैं, बल्जाकि उसे छिपाकर रखते हैं और असत्य को ज़ाहिर करते हैं। ये दरअसल काफ़िरों की विशेषताएँ हैं और हमने काफ़िरों के लिए अपमानकारी यातना तैयार कर रखी है।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• ثبوت قِوَامة الرجال على النساء بسبب تفضيل الله لهم باختصاصهم بالولايات، وبسبب ما يجب عليهم من الحقوق، وأبرزها النفقة على الزوجة.
• पुरुषों का स्त्रियों के संरक्षक होने का सबूत। इसका कारण यह है कि अल्लाह ने पुरुषों को अभिभावक बनने की विशिष्टता प्रदान की है और इसलिए भी कि पुरुषों के ऊपर स्त्रियों के कई अधिकार वाजिब हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण अधिकार पत्नी के भरण-पोषण का दायित्व है।

• التحذير من البغي وظلم المرأة في التأديب بتذكير العبد بقدرة الله عليه وعلوه سبحانه.
• बंदे को यह याद दिलाकर कि अल्लाह उसपर शक्ति रखता है और वह सर्वोच्च है, अनुशासन करने में स्त्री पर ज़ुल्म एवं अत्याचार करने से सावधान करना।

• التحذير من ذميم الأخلاق، كالكبر والتفاخر والبخل وكتم العلم وعدم تبيينه للناس.
• बुरे व्यवहार से सावधान करना, जैसे घमंड, अभिमान, कृपणता, ज्ञान को छिपाना और उसे लोगों के सामने बयान न करना।

وَالَّذِیْنَ یُنْفِقُوْنَ اَمْوَالَهُمْ رِئَآءَ النَّاسِ وَلَا یُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ وَلَا بِالْیَوْمِ الْاٰخِرِ ؕ— وَمَنْ یَّكُنِ الشَّیْطٰنُ لَهٗ قَرِیْنًا فَسَآءَ قَرِیْنًا ۟
तथा हमने उन लोगों के लिए भी अज़ाब तैयार कर रखा है, जो अपना धन इसलिए ख़र्च करते हैं कि लोग उन्हें देखें और उनकी प्रशंसा करें। उनका अल्लाह एवं क़यामत के दिन पर ईमान नहीं होता है। हमने उनके लिए वह अपमानकारी यातना तैयार किया है। उन्हें दरअसल शैतान के अनुसरण ही ने गुमराह किया है। और शैतान जिसका साथी बन गया, वह जान जाए कि शैतान बहुत बुरा साथी है।
Faccirooji aarabeeji:
وَمَاذَا عَلَیْهِمْ لَوْ اٰمَنُوْا بِاللّٰهِ وَالْیَوْمِ الْاٰخِرِ وَاَنْفَقُوْا مِمَّا رَزَقَهُمُ اللّٰهُ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ بِهِمْ عَلِیْمًا ۟
इन लोगों का क्या नुक़सान होता, यदि वे वास्तव में अल्लाह पर और क़ियामत के दिन पर ईमान ले आते और जो कुछ अल्लाह ने उन्हें प्रदान किया है उसमें से उन रास्तों में खर्च करते जिनसे वह प्यार करता है और प्रसन्न होता है?! बल्कि उसमें भलाई ही भलाई है। और अल्लाह अन्हें भली-भाँति जानने वाला है, उनकी स्थिति उससे छिपी नहीं है और वह हर एक को उसके कार्य का बदला देगा।
Faccirooji aarabeeji:
اِنَّ اللّٰهَ لَا یَظْلِمُ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ ۚ— وَاِنْ تَكُ حَسَنَةً یُّضٰعِفْهَا وَیُؤْتِ مِنْ لَّدُنْهُ اَجْرًا عَظِیْمًا ۟
निश्चय अल्लाह, न्यायवान् है, अपने बंदों पर ज़रा भी अत्याचार नहीं करता। अतः वह उनकी नेकियों में एक छोटी चींटी के बराबर कमी नहीं करता और न उनके गुनाहों में कुछ वृद्धि करता है। बल्कि यदि ज़र्रा बराबर भी नेकी हो, तो उसका सवाब अपनी कृपा से कई गुना बढ़ा देता है और उसके अतिरिक्त अपनी ओर से बड़ा बदला प्रदान करता है।
Faccirooji aarabeeji:
فَكَیْفَ اِذَا جِئْنَا مِنْ كُلِّ اُمَّةٍ بِشَهِیْدٍ وَّجِئْنَا بِكَ عَلٰی هٰۤؤُلَآءِ شَهِیْدًا ۟ؕؔ
तो क़यामत के दिन क्या हाल होगा, जब हम हर समुदाय के नबी को इस बात की गवाही देने के लिए लाएँगे जो कुछ उन्होंने किया है, और - ऐ नबी! - हम आपको आपकी उम्मत पर गवाह की हैसियत से पेश करेंगे?
Faccirooji aarabeeji:
یَوْمَىِٕذٍ یَّوَدُّ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا وَعَصَوُا الرَّسُوْلَ لَوْ تُسَوّٰی بِهِمُ الْاَرْضُ ؕ— وَلَا یَكْتُمُوْنَ اللّٰهَ حَدِیْثًا ۟۠
उस महान दिन में, अल्लाह का इनकार करने वाले और उसके रसूल की बात पर न चलने वाले इच्छा करेंगे कि काश वे मिट्टी हो गए होते, तो वे और धरती एक जैसे हो जाते। उस दिन वे अल्लाह से अपना कोई कर्म छिपा नहीं सकेंगे। क्योंकि अल्लाह उनकी ज़बानों पर मुहर लगा देगा, इसलिए वे बोल नहीं सकेंगी और उनके शरीर के अंगों को को अनुमति देगा तो वे उनके बुरे कामों की गवाही देंगे।
Faccirooji aarabeeji:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا تَقْرَبُوا الصَّلٰوةَ وَاَنْتُمْ سُكٰرٰی حَتّٰی تَعْلَمُوْا مَا تَقُوْلُوْنَ وَلَا جُنُبًا اِلَّا عَابِرِیْ سَبِیْلٍ حَتّٰی تَغْتَسِلُوْا ؕ— وَاِنْ كُنْتُمْ مَّرْضٰۤی اَوْ عَلٰی سَفَرٍ اَوْ جَآءَ اَحَدٌ مِّنْكُمْ مِّنَ الْغَآىِٕطِ اَوْ لٰمَسْتُمُ النِّسَآءَ فَلَمْ تَجِدُوْا مَآءً فَتَیَمَّمُوْا صَعِیْدًا طَیِّبًا فَامْسَحُوْا بِوُجُوْهِكُمْ وَاَیْدِیْكُمْ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَفُوًّا غَفُوْرًا ۟
ऐ अल्लाह पर ईमान रखने और उसके रसूल का अनुसरण करने वालो! जब तुम नशे की हालत में हो तो नमाज़ न पढ़ो, यहाँ तक कि नशा उतर जाए और जो कुछ तुम कहते हो उसमें भेद कर सको। (यह आदेश पूर्णतया शराब के हराम होने से पहले था)। इसी तरह जनाबत की हालत में, जब तक स्नान न कर लो, नमाज़ न पढ़ो और मस्जिदों में प्रवेश न करो, परंतु यदि मस्जिद में रुके बिना गुज़रते हुए चले जाओ, तो कोई बात नहीं है। तथा यदि तुम्हें ऐसी बीमारी हो जाए जिसके साथ पानी इस्तेमाल करना संभव न हो, या तुम यात्रा में हो, या तुममें से कोई अशुद्ध (बे-वुज़ू) हो जाए, या तुमने स्त्रियों से सहवास किया हो; फिर तुम्हें पानी न मिल सके, तो पाक मिट्टी से काम लो और उससे अपने चेहरे और हाथों का मसह कर लो। निश्चय अल्लाह तुम्हारी कोताहियों को माफ़ करने वाला और तुम्हें क्षमा करने वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
اَلَمْ تَرَ اِلَی الَّذِیْنَ اُوْتُوْا نَصِیْبًا مِّنَ الْكِتٰبِ یَشْتَرُوْنَ الضَّلٰلَةَ وَیُرِیْدُوْنَ اَنْ تَضِلُّوا السَّبِیْلَ ۟ؕ
क्या - ऐ रसूल! - आप उन यहूदियों के हाल से अवगत नहीं हैं, जिन्हें अल्लाह ने तौरात के ज्ञान का कुछ भाग दिया, वे हिदायत के बदले गुमराही ख़रीद रहे हैं, तथा वे तुम्हें - ऐ मोमिनो! - रसूल के लाए हुए सीधे मार्ग से भटकाने के बड़े इच्छुक हैं; ताकि तुम उनके टेढ़े मार्ग पर चलने लगो!?
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• من كمال عدله تعالى وتمام رحمته أنه لا يظلم عباده شيئًا مهما كان قليلًا، ويتفضل عليهم بمضاعفة حسناتهم.
• अल्लाह के न्याय की पूर्णता और उसके अपार दया में से है कि वह अपने बंदों पर कण बराबर भी अत्याचार नहीं करता, बल्कि अपने अनुग्रह से उनकी नेकियों को कई गुना बढ़ा देता है।

• من شدة هول يوم القيامة وعظم ما ينتظر الكافر يتمنى أن يكون ترابًا.
• क़यामत के दिन की भयावहता की तीव्रता और काफ़िर जिस परिणाम की प्रतीक्षा कर रहा होगा उसकी गंभीरता के कारण इच्छा करेगा कि वह मिट्टी हो जाता।

• الجنابة تمنع من الصلاة والبقاء في المسجد، ولا بأس من المرور به دون مُكْث فيه.
• जनाबत की हालत में नमाज़ पढ़ना और मस्जिद में ठहरना मना है, परंतु उसमें रुके बिना वहाँ से गुज़रने में कोई हर्ज नहीं है।

• تيسير الله على عباده بمشروعية التيمم عند فقد الماء أو عدم القدرة على استعماله.
• अल्लाह ने पानी न मिलने अथवा इस्तेमाल की शक्ति न होने की स्थिति में तयम्मुम की अनुमति देकर अपने बंदों के लिए आसानी पैदा की है।

وَاللّٰهُ اَعْلَمُ بِاَعْدَآىِٕكُمْ ؕ— وَكَفٰی بِاللّٰهِ وَلِیًّا ؗۗ— وَّكَفٰی بِاللّٰهِ نَصِیْرًا ۟
अल्लाह तुम्हारे दुश्मनों को - ऐ मोमिनो! - तुमसे अधिक जानता है। अतः उसने तुम्हें उनका हाल बता दिया है और तुम्हारे लिए उनकी दुश्मनी को स्पष्ट कर दिया है। तथा अल्लाह एक संरक्षक के रूप में काफ़ी है जो उनकी शक्ति के विरुद्ध तुम्हारी रक्षा करता है, तथा अल्लाह एक सहायक के रूप में काफ़ी है जो तुम्हें उनकी चाल और उनके नुकसान पहुँचाने से बचाता है और उनके विरुद्ध तुम्हारी मदद करता है।
Faccirooji aarabeeji:
مِنَ الَّذِیْنَ هَادُوْا یُحَرِّفُوْنَ الْكَلِمَ عَنْ مَّوَاضِعِهٖ وَیَقُوْلُوْنَ سَمِعْنَا وَعَصَیْنَا وَاسْمَعْ غَیْرَ مُسْمَعٍ وَّرَاعِنَا لَیًّا بِاَلْسِنَتِهِمْ وَطَعْنًا فِی الدِّیْنِ ؕ— وَلَوْ اَنَّهُمْ قَالُوْا سَمِعْنَا وَاَطَعْنَا وَاسْمَعْ وَانْظُرْنَا لَكَانَ خَیْرًا لَّهُمْ وَاَقْوَمَ ۙ— وَلٰكِنْ لَّعَنَهُمُ اللّٰهُ بِكُفْرِهِمْ فَلَا یُؤْمِنُوْنَ اِلَّا قَلِیْلًا ۟
यहूदियों में कुछ लोग बहुत बुरे हैं, जो अल्लाह की उतारी हुई बात को बदल देते हैं। अतः उसे वह अर्थ पहना देते हैं, जो अल्लाह ने अवतरित नहीं किया है। जब रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम उन्हें कोई आदेश देते हैं, तो वे आपसे कहते हैं : "हमने आपकी बात सुनी और हमने आपके आदेश की अवहेलना की।" और वे व्यंग्य करते हुए कहते हैं :"हम जो कहते हैं, उसे सुनें, आप सुन न पाएँ!" तथा वे "राइना" कहकर यह भ्रम फैलाते हैं कि उनका मतलब यह है कि :"आप हमारी बात पर ध्यान दीजिए", जबकि उनका मक़सद "रऊनत" अर्थात् बेवकूफी आदि की ओर इशारा करना होता है। वे इसके उच्चारण के समय अपनी ज़बान को मोड़ देते थे। वे अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर शाप करना चाहते थे तथा उनका उद्देश्य (इस्लाम) धर्म पर लांक्षन करना होता था। यदि वे "हमने आपकी बात सुनी और हमने आपके आदेश की अवहेलना की" की जगह "हमने आपकी बात सुनी और आपके आदेश का पालन किया" कहते, तथा "आप हमारी बात सुनिए, आप सुन न पाएँ!" की जगह "हमारी बात सुनिए", तथा "राइना" कहने की जगह "ज़रा प्रतीक्षा करें कि हम आपकी बात समझ जाएँ" कहते; तो यह उनके लिए पहले कहे हुए शब्द से बेहतर और उससे अधिक न्यायसंगत होता। क्योंकि इसमें नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के व्यक्तित्व के योग्य शिष्टाचार पाया जाता है। लेकिन अल्लाह ने उन्हें शापित किया है। अतः उनके कुफ़्र के कारण उन्हें अपनी दया से दूर कर दिया है। इसलिए वे ऐसा ईमान नहीं लाएँगे, जो उनके लिए लाभदायक हो।
Faccirooji aarabeeji:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ اٰمِنُوْا بِمَا نَزَّلْنَا مُصَدِّقًا لِّمَا مَعَكُمْ مِّنْ قَبْلِ اَنْ نَّطْمِسَ وُجُوْهًا فَنَرُدَّهَا عَلٰۤی اَدْبَارِهَاۤ اَوْ نَلْعَنَهُمْ كَمَا لَعَنَّاۤ اَصْحٰبَ السَّبْتِ ؕ— وَكَانَ اَمْرُ اللّٰهِ مَفْعُوْلًا ۟
ऐ यहूदियो और ईसाइयो, जिन्हें किताब दी गई है, उस पुस्तक पर ईमान लाओ, जो हमने मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर उतारी है, जो तुम्हारे पास मौजूद तौरात एवं इंजील की पुष्टि करने हेतु आए हैं, इससे पहले कि हम चेहरों में मौजूद इंद्रियों को मिटा दें, और उन्हें उनके पीछे की दिशा में बना दें, या हम उन्हें अल्लाह की दया से वैसे ही निष्कासित कर दें, जैसे हमने शनिवार वालों को उससे निष्कासित किया था, जिन्होंने शनिवार के दिन शिकार से मनाही के बावजूद उसमें शिकार किया था। जिसके कारण अल्लाह ने उन्हें बंदर बना दिया। और अल्लाह का आदेश और उसका फ़ैसला अनिवार्य रूप से पूरा होकर रहता है।
Faccirooji aarabeeji:
اِنَّ اللّٰهَ لَا یَغْفِرُ اَنْ یُّشْرَكَ بِهٖ وَیَغْفِرُ مَا دُوْنَ ذٰلِكَ لِمَنْ یَّشَآءُ ۚ— وَمَنْ یُّشْرِكْ بِاللّٰهِ فَقَدِ افْتَرٰۤی اِثْمًا عَظِیْمًا ۟
अल्लाह इस बात को क्षमा नहीं करेगा कि उसके प्राणियों में से किसी को उसका साझी बनाया जाए, परंतु शिर्क और कुफ़्र से कमतर गुनाहों को, जिसके लिए चाहेगा, अपनी कृपा से क्षमा कर देगा, अथवा उनमें से जिसे चाहेगा, उसके गुनाहों के अनुसार, अपने न्याय के आधार पर, दंड देगा। तथा जिसने किसी को अल्लाह का साझी बनाया, उसने इतना बड़ा पाप किया कि उस पर मरने वाले को क्षमा नहीं किया जाएगा।
Faccirooji aarabeeji:
اَلَمْ تَرَ اِلَی الَّذِیْنَ یُزَكُّوْنَ اَنْفُسَهُمْ ؕ— بَلِ اللّٰهُ یُزَكِّیْ مَنْ یَّشَآءُ وَلَا یُظْلَمُوْنَ فَتِیْلًا ۟
क्या आप - ऐ रसूल! - उन लोगों के मामले से अवगत नहीं हैं, जो खुद अपनी और अपने कार्यों की प्रशंसा करते हैं? बल्कि केवल अल्लाह ही है जो अपने बंदों में से जिसकी चाहे प्रशंसा करे और पवित्र बनाए, क्योंकि वह दिलों की गुप्त बातों को जानने वाला है। तथा उनके सत्कर्मों के सवाब में कुछ भी कमी नहीं की जाएगी, चाहे वह खजूर की गुठली के धागे के बराबर ही क्यों न हो।
Faccirooji aarabeeji:
اُنْظُرْ كَیْفَ یَفْتَرُوْنَ عَلَی اللّٰهِ الْكَذِبَ ؕ— وَكَفٰی بِهٖۤ اِثْمًا مُّبِیْنًا ۟۠
(ऐ रसूल!) देखिए तो सही कि वे लोग स्वयं की प्रशंसा करके कैसे अल्लाह पर मिथ्या आरोप लगा रहे हैं! और उनकी गुमराही को स्पष्ट करने के लिए यही गुनाह काफ़ी है।
Faccirooji aarabeeji:
اَلَمْ تَرَ اِلَی الَّذِیْنَ اُوْتُوْا نَصِیْبًا مِّنَ الْكِتٰبِ یُؤْمِنُوْنَ بِالْجِبْتِ وَالطَّاغُوْتِ وَیَقُوْلُوْنَ لِلَّذِیْنَ كَفَرُوْا هٰۤؤُلَآءِ اَهْدٰی مِنَ الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا سَبِیْلًا ۟
(ऐ रसूल!) क्या आप नहीं जानते और आपको उन यहूदियों की दशा पर आश्चर्य नहीं होता, जिन्हें अल्लाह ने ज्ञान का कुछ हिस्सा दिया है, कि वे अल्लाह को छोड़कर अपने बनाए हुए माबूदों (देवताओं) पर ईमान रखते हैं और - मुश्रिकों के साथ बनाए रखने और उनकी चाटुकारिता के तौर पर - कहते हैं : ये (मुश्रिक लोग) मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथियों से अधिक हिदायत के मार्ग पर हैं?
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• كفاية الله للمؤمنين ونصره لهم تغنيهم عما سواه.
• मोमिनों के लिए अल्लाह की पर्याप्तता और उसकी मदद के बाद उन्हें किसी और की ज़रूरत नहीं रहती।

• بيان جرائم اليهود، كتحريفهم كلام الله، وسوء أدبهم مع رسوله صلى الله عليه وسلم، وتحاكمهم إلى غير شرعه سبحانه.
• यहूदियों के अपराधों का वर्णन, जैसे कि अल्लाह के शब्दों को विकृत करना, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ अभद्र व्यवहार करना और अल्लाह की शरीयत के अलावा किसी और के पास फैसला के लिए जाना।

• بيان خطر الشرك والكفر، وأنه لا يُغْفر لصاحبه إذا مات عليه، وأما ما دون ذلك فهو تحت مشيئة الله تعالى.
• शिर्क एवं कुफ़्र (बहुदेववाद और अविश्वास) के खतरे का बयान, और यह कि शिर्क या कुफ़्र की हालत में मर जाने वाले को क्षमा नहीं किया जाएगा। रहा मामला इनसे कमतर गुनाह का, तो वह अल्लाह तआला की इच्छा के अधीन है।

اُولٰٓىِٕكَ الَّذِیْنَ لَعَنَهُمُ اللّٰهُ ؕ— وَمَنْ یَّلْعَنِ اللّٰهُ فَلَنْ تَجِدَ لَهٗ نَصِیْرًا ۟ؕ
जो लोग इस भ्रष्ट विश्वास को मानते हैं, वही हैं जिन्हें अल्लाह ने अपनी दया से निष्कासित कर दिया है और जिसे अल्लाह (अपनी दया से) निष्कासित कर दे, तो आप कदापि उसका कोई सहायक नहीं पाएँगे,जो उसकी मदद कर सके।
Faccirooji aarabeeji:
اَمْ لَهُمْ نَصِیْبٌ مِّنَ الْمُلْكِ فَاِذًا لَّا یُؤْتُوْنَ النَّاسَ نَقِیْرًا ۟ۙ
उनके पास राज्य का कोई हिस्सा नहीं है। यदि ऐसा होता, तो लोगों को उसमें से कुछ भी नहीं देते, यद्यपि खजूर की गुठली के ऊपर के गड्ढे के बराबर ही क्यों न हो।
Faccirooji aarabeeji:
اَمْ یَحْسُدُوْنَ النَّاسَ عَلٰی مَاۤ اٰتٰىهُمُ اللّٰهُ مِنْ فَضْلِهٖ ۚ— فَقَدْ اٰتَیْنَاۤ اٰلَ اِبْرٰهِیْمَ الْكِتٰبَ وَالْحِكْمَةَ وَاٰتَیْنٰهُمْ مُّلْكًا عَظِیْمًا ۟
बल्कि वे मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके साथियों से इस बिना पर ईर्ष्या करते हैं कि अल्लाह ने उन्हें, नुबुव्वत (ईश्दूतत्व), ईमान और धरती में सत्ता प्रदान किया है। तो ये लोग उनसे ईर्ष्या क्यों करते हैं, जबकि हमने इससे पहले भी इबराहीम अलैहिस्सलाम के वंशज को आसमानी किताब प्रदान किया और किताब के अलावा भी उनकी ओर वह्य की, तथा उन्हें लोगों पर विशाल राज्य प्रदान किया!?
Faccirooji aarabeeji:
فَمِنْهُمْ مَّنْ اٰمَنَ بِهٖ وَمِنْهُمْ مَّنْ صَدَّ عَنْهُ ؕ— وَكَفٰی بِجَهَنَّمَ سَعِیْرًا ۟
अह्ले किताब में से कुछ लोग उस चीज़ पर ईमान लाए, जो अल्लाह ने इबराहीम अलैहिस्सलाम पर और उनके वंश के नबियों पर अवतरित किया और कुछ लोगों ने उस पर ईमान लाने से उपेक्षा किया। उनका यही रवैया उसके प्रति भी है जो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर अवतिरत किया गया है। तथा उनमें से कुफ़्र करने वालों के लिए आग ही बराबर की सज़ा है।
Faccirooji aarabeeji:
اِنَّ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا بِاٰیٰتِنَا سَوْفَ نُصْلِیْهِمْ نَارًا ؕ— كُلَّمَا نَضِجَتْ جُلُوْدُهُمْ بَدَّلْنٰهُمْ جُلُوْدًا غَیْرَهَا لِیَذُوْقُوا الْعَذَابَ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَزِیْزًا حَكِیْمًا ۟
निःसंदेह जिन लोगों ने हमारी आयतों के साथ कुफ़्र किया, हम उन्हें क़यामत के दिन आग में दाख़िल करेंगे, जो उन्हें चारों ओर से घेरे हुई होगी। जब भी उनकी खालें जल जाएँगी, हम उन्हें दूसरी खाल पहना देंगे, ताकि उन पर यातना जारी रहे। निःसंदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली है, उसपर कोई चीज़ हावी नहीं हो सकती, वह जो कुछ उपाय करता और निर्णय लेता है, उसमें हिकमत वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
وَالَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ سَنُدْخِلُهُمْ جَنّٰتٍ تَجْرِیْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِیْنَ فِیْهَاۤ اَبَدًا ؕ— لَهُمْ فِیْهَاۤ اَزْوَاجٌ مُّطَهَّرَةٌ ؗ— وَّنُدْخِلُهُمْ ظِلًّا ظَلِیْلًا ۟
जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और उसके रसूल का पालन किया, तथा अच्छे कर्म किए, हम उन्हें क़यामत के दिन ऐसी जन्नतों में दाख़िल करेंगे, जिनके महलों के नीचे से नहरें प्रवाहित होंगी, जिनमें वे हमेशा रहेंगे। उनके लिए उन जन्नतों में हर गंदगी से पवित्र पत्नियाँ होंगी। तथा हम उन्हें एक घनी, विस्तारित छाया में रखेंगे, जिसमें गर्मी होगी न सर्दी।
Faccirooji aarabeeji:
اِنَّ اللّٰهَ یَاْمُرُكُمْ اَنْ تُؤَدُّوا الْاَمٰنٰتِ اِلٰۤی اَهْلِهَا ۙ— وَاِذَا حَكَمْتُمْ بَیْنَ النَّاسِ اَنْ تَحْكُمُوْا بِالْعَدْلِ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ نِعِمَّا یَعِظُكُمْ بِهٖ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ كَانَ سَمِیْعًا بَصِیْرًا ۟
अल्लाह तुम्हें आदेश देता है कि अपने पास अमानत के रूप में रखी हुई हर चीज़ को उसके मालिक तक पहुँचा दो। तथा तुम्हें यह आदेश देता है कि जब तुम लोगों के बीच फैसला करो, तो न्याय के साथ फैसला करो। तथा फैसला करते समय पक्षपात अथवा अत्याचार से काम न लो। अल्लाह तुम्हें कितनी अच्छी नसीहत करता है और तुम्हारी सभी परिस्थितियों में उसकी ओर मार्गदर्शन करता है। निःसंदेह अल्लाह तुम्हारी बातों को सुनने वाला और तुम्हारे कार्यों को जानने वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اَطِیْعُوا اللّٰهَ وَاَطِیْعُوا الرَّسُوْلَ وَاُولِی الْاَمْرِ مِنْكُمْ ۚ— فَاِنْ تَنَازَعْتُمْ فِیْ شَیْءٍ فَرُدُّوْهُ اِلَی اللّٰهِ وَالرَّسُوْلِ اِنْ كُنْتُمْ تُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ وَالْیَوْمِ الْاٰخِرِ ؕ— ذٰلِكَ خَیْرٌ وَّاَحْسَنُ تَاْوِیْلًا ۟۠
ऐ अल्लाह पर ईमान रखने और उसके रसूल का अनुसरण करने वालो! आदेशों का पालन करके और निषेधों से बचकर अल्लाह का और उसके रसूल का आज्ञापालन करो। तथा अपने शासकों का पालन करो जब तक कि वे अवज्ञा का आदेश न दें। फिर यदि किसी बात में तुम्हारा मतभेद हो जाए, तो उसके संबंध में अल्लाह की किताब और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत की तरफ लौटो, यदि तुम अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान रखते हो। (तुम्हारा) यह क़ुरआन और सुन्नत की तरफ लौटना, मतभेद में पड़े रहने और राय के आधार पर कोई बात कहने से बेहतर है और तुम्हारे लिए सबसे अच्छे परिणाम वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• من أعظم أسباب كفر أهل الكتاب حسدهم المؤمنين على ما أنعم الله به عليهم من النبوة والتمكين في الأرض.
• अह्ले किताब के कुफ़्र का एक सबसे बड़ा कारण, उनका मोमिनों से इस बात पर ईर्ष्या करना है कि अल्लाह ने उन्हें नुबुव्वत (ईश्दूतत्व) और ज़मीन में अधिपत्य प्रदान किया है।

• الأمر بمكارم الأخلاق من المحافظة على الأمانات، والحكم بالعدل.
• उत्तम शिष्टाचार का आदेश जैसे- अमानतों का संरक्षण और न्याय के साथ निर्णय करना।

• وجوب طاعة ولاة الأمر ما لم يأمروا بمعصية، والرجوع عند التنازع إلى حكم الله ورسوله صلى الله عليه وسلم تحقيقًا لمعنى الإيمان.
• शासकों के आज्ञापलन की अनिवार्यता जब तक कि वे अवज्ञा का आदेश न दें। तथा मतभेद की स्थिति में अल्लाह और उसके रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फैसले की ओर लौटना, ताकि ईमान का अर्थ परिपूर्ण हो सके।

اَلَمْ تَرَ اِلَی الَّذِیْنَ یَزْعُمُوْنَ اَنَّهُمْ اٰمَنُوْا بِمَاۤ اُنْزِلَ اِلَیْكَ وَمَاۤ اُنْزِلَ مِنْ قَبْلِكَ یُرِیْدُوْنَ اَنْ یَّتَحَاكَمُوْۤا اِلَی الطَّاغُوْتِ وَقَدْ اُمِرُوْۤا اَنْ یَّكْفُرُوْا بِهٖ ؕ— وَیُرِیْدُ الشَّیْطٰنُ اَنْ یُّضِلَّهُمْ ضَلٰلًا بَعِیْدًا ۟
(ऐ रसूल!) क्या आपने उन मुनाफ़िक़ यहूदियों का विरोधाभास नहीं देखा, जो झूठा दावा करते हैं कि वे उसपर ईमान रखते हैं जो कुछ आप पर अवतरित किया गया है और जो कुछ आपसे पूर्व रसूलों पर अवतिरत किया गया था। परंतु वे अपने विवादों में फैसले के लिए अल्लाह की शरीयत को छोड़कर मानव निर्मित क़ानून के पास जाना पसंद करते हैं। जबकि उन्हें आदेश दिया गया था कि वे उसका इनकार करें। और शैतान तो यह चाहता है कि उन्हें सत्य से इतना दूर कर दे कि वे उसके चलते मार्गदर्शन न पा सकें।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِذَا قِیْلَ لَهُمْ تَعَالَوْا اِلٰی مَاۤ اَنْزَلَ اللّٰهُ وَاِلَی الرَّسُوْلِ رَاَیْتَ الْمُنٰفِقِیْنَ یَصُدُّوْنَ عَنْكَ صُدُوْدًا ۟ۚ
जब इन मुनाफ़िक़ों (पाखंडियों) से कहा जाता है कि अल्लाह ने अपनी किताब में जो फैसला उतारा है, उसकी तरफ़ आओ और रसूल के पास आओ, ताकि वह तुम्हारे झगड़ों में तुम्हारे बीच फ़ैसला कर दें, तो - ऐ रसूल - आप उन्हें देखेंगे कि वे पूर्णतया आपसे विमुख होकर फैसला के लिए आपके अलावा की ओर जाते हैं।
Faccirooji aarabeeji:
فَكَیْفَ اِذَاۤ اَصَابَتْهُمْ مُّصِیْبَةٌ بِمَا قَدَّمَتْ اَیْدِیْهِمْ ثُمَّ جَآءُوْكَ یَحْلِفُوْنَ ۖۗ— بِاللّٰهِ اِنْ اَرَدْنَاۤ اِلَّاۤ اِحْسَانًا وَّتَوْفِیْقًا ۟
उस समय मुनाफिक़ों का क्य हाल होता है जब उनके किए हुए गुनाहों के कारण उनपर कोई आपदा आ पड़ती है, फिर - ऐ रसूल - वे आपके पास माफ़ी माँगने के उद्देश्य से आते हैं और अल्लाह की क़समें खाकर कहते हैं कि आपको छोड़कर अन्य के पास फैसला के लिए जाने के पीछे हमारा उद्देश्य केवल भलाई और परस्पर विरोधी पक्षों के बीच मेल कराना था। हालाँकि वे अपने इस दावे में झूठे हैं; क्योंकि भलाई तो लोगों के बीच अल्लाह की शरीयत से फैसला कराने में है।
Faccirooji aarabeeji:
اُولٰٓىِٕكَ الَّذِیْنَ یَعْلَمُ اللّٰهُ مَا فِیْ قُلُوْبِهِمْ ۗ— فَاَعْرِضْ عَنْهُمْ وَعِظْهُمْ وَقُلْ لَّهُمْ فِیْۤ اَنْفُسِهِمْ قَوْلًا بَلِیْغًا ۟
ये वो लोग हैं जिनके दिलों में छिपे निफ़ाक़ (पाखंड) और बुरे आशय को अल्लाह भली-भाँति जानता है। अतः - ऐ पैग़ंबर - उन्हें उनके हाल पर छोड़ दें और उनकी उपेक्षा करें, तथा उन्हें प्रोत्साहित करते हुए और डराते हुए उनके सामने अल्लाह का हुक्म (फैसला) स्पष्ट कर दें और उनसे ऐसी बात कहें जो उनके दिल की गहराइयों में उतर जाए।
Faccirooji aarabeeji:
وَمَاۤ اَرْسَلْنَا مِنْ رَّسُوْلٍ اِلَّا لِیُطَاعَ بِاِذْنِ اللّٰهِ ؕ— وَلَوْ اَنَّهُمْ اِذْ ظَّلَمُوْۤا اَنْفُسَهُمْ جَآءُوْكَ فَاسْتَغْفَرُوا اللّٰهَ وَاسْتَغْفَرَ لَهُمُ الرَّسُوْلُ لَوَجَدُوا اللّٰهَ تَوَّابًا رَّحِیْمًا ۟
हमने जो भी रसूल भेजा, उसका उद्देश्य यह था कि वह अल्लाह की इच्छा और तक़दीर से जिस चीज़ का आदेश दें उसमें उनका पालन किया जाए। और यदि वे लोग, जब उन्होंने पाप करके स्वयं पर अत्याचार किया था, अपने गुनाहों को स्वीकारते और पछतावा व पश्चाताप प्रकट करते हुए आपके जीवन में (ऐ रसूल) आपके पास आ जाते, और अल्लाह से माफी माँगते, और आप भी उनके लिए माफ़ी माँगते, तो वे अवश्य अल्लाह को बहुत तौबा क़बूल करने वाला और अपने ऊपर दयालु पाते।
Faccirooji aarabeeji:
فَلَا وَرَبِّكَ لَا یُؤْمِنُوْنَ حَتّٰی یُحَكِّمُوْكَ فِیْمَا شَجَرَ بَیْنَهُمْ ثُمَّ لَا یَجِدُوْا فِیْۤ اَنْفُسِهِمْ حَرَجًا مِّمَّا قَضَیْتَ وَیُسَلِّمُوْا تَسْلِیْمًا ۟
अतः मामला ऐसा नहीं है जैसा कि ये पाखंडी लोग दावा करते हैं। फिर अल्लाह ने अपने अस्तित्व की क़सम खाकर फरमाया कि वे सच्चे मोमिन नहीं हो सकते, जब तक कि वे अपने बीच उत्पन्न होने वाले समस्त मतभेदों में रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जीवन काल में रसूल के पास और आपकी मृत्यु के बाद आपकी शरीयत की ओर निर्णय के लिए न जाएँ। फिर वे रसूल के फैसले से संतुष्ट हो जाएँ और उनके दिलों में आपके निर्णय के संबंध में कोई तंगी और संदेह न हो और परोक्ष एवं प्रत्यक्ष रूप से उसे पूरी तरह से स्वीकार कर लें।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• الاحتكام إلى غير شرع الله والرضا به مناقض للإيمان بالله تعالى، ولا يكون الإيمان التام إلا بالاحتكام إلى الشرع، مع رضا القلب والتسليم الظاهر والباطن بما يحكم به الشرع.
• अल्लाह की शरीयत के अलावा की ओर निर्णय के लिए जाना और उससे संतुष्ट होना, अल्लाह पर ईमान के विपरीत है। बंदे का ईमान उसी समय पूर्ण होता है, जब अल्लाह की शरीयत से फैसला कराया जाए और जो कुछ शरीयत फैसला कर दे उससे दिल संतुष्ट हो और परोक्ष एवं प्रत्यक्ष रूप से उसे स्वीकार कर ले।

• من أبرز صفات المنافقين عدم الرضا بشرع الله، وتقديم حكم الطواغيت على حكم الله تعالى.
• मुनाफ़िक़ों की सबसे प्रमुख विशेषताओं में से एक अल्लाह की शरीयत के प्रति असंतोष और अल्लाह के निर्णय पर ताग़ूतों (ग़ैरुल्लाह) के निर्णय को प्रधानता देना है।

• النَّدْب إلى الإعراض عن أهل الجهل والضلالات، مع المبالغة في نصحهم وتخويفهم من الله تعالى.
• अज्ञानता और पथभ्रष्टता के लोगों की उपेक्षा करने का आह्वान, साथ ही साथ उन्हें नसीहत करने और सर्वशक्तिमान अल्लाह से डराने में अतिशयोक्ति।

وَلَوْ اَنَّا كَتَبْنَا عَلَیْهِمْ اَنِ اقْتُلُوْۤا اَنْفُسَكُمْ اَوِ اخْرُجُوْا مِنْ دِیَارِكُمْ مَّا فَعَلُوْهُ اِلَّا قَلِیْلٌ مِّنْهُمْ ؕ— وَلَوْ اَنَّهُمْ فَعَلُوْا مَا یُوْعَظُوْنَ بِهٖ لَكَانَ خَیْرًا لَّهُمْ وَاَشَدَّ تَثْبِیْتًا ۟ۙ
66-68 - यदि हमने उनपर एक-दूसरे को क़त्ल करना या अपने घरों से निकल जाना अनिवार्य किया होता, तो उनमें से थोड़े लोगों के सिवा कोई हमारे आदेश को नहीं मानता। अतः उन्हें अल्लाह का धन्यवाद करना चाहिए कि उसने उन्हें ऐसे कार्य के लिए बाध्य नहीं किया, जो उनके लिए कठिन हो। और यदि उन्होंने अल्लाह की आज्ञाकारिता की होती जिसकी उन्हें नसीहत की जाती है, तो यह अवहेलना करने से बेहतर होता और उनके ईमान के लिए अधिक दृढ़ता का कारण होता। तथा हम उन्हें अपनी ओर से बड़ा बदला देते और उन्हें अल्लाह एवं उसकी जन्नत तक ले जाने वाले रास्ते पर चलने का सामर्थ्य प्रदान करते।
Faccirooji aarabeeji:
وَّاِذًا لَّاٰتَیْنٰهُمْ مِّنْ لَّدُنَّاۤ اَجْرًا عَظِیْمًا ۟ۙ
66-68 - यदि हमने उनपर एक-दूसरे को क़त्ल करना या अपने घरों से निकल जाना अनिवार्य किया होता, तो उनमें से थोड़े लोगों के सिवा कोई हमारे आदेश को नहीं मानता। अतः उन्हें अल्लाह का धन्यवाद करना चाहिए कि उसने उन्हें ऐसे कार्य के लिए बाध्य नहीं किया, जो उनके लिए कठिन हो। और यदि उन्होंने अल्लाह की आज्ञाकारिता की होती जिसकी उन्हें नसीहत की जाती है, तो यह अवहेलना करने से बेहतर होता और उनके ईमान के लिए अधिक दृढ़ता का कारण होता। तथा हम उन्हें अपनी ओर से बड़ा बदला देते और उन्हें अल्लाह एवं उसकी जन्नत तक ले जाने वाले रास्ते पर चलने का सामर्थ्य प्रदान करते।
Faccirooji aarabeeji:
وَّلَهَدَیْنٰهُمْ صِرَاطًا مُّسْتَقِیْمًا ۟
66-68 - यदि हमने उनपर एक-दूसरे को क़त्ल करना या अपने घरों से निकल जाना अनिवार्य किया होता, तो उनमें से थोड़े लोगों के सिवा कोई हमारे आदेश को नहीं मानता। अतः उन्हें अल्लाह का धन्यवाद करना चाहिए कि उसने उन्हें ऐसे कार्य के लिए बाध्य नहीं किया, जो उनके लिए कठिन हो। और यदि उन्होंने अल्लाह की आज्ञाकारिता की होती जिसकी उन्हें नसीहत की जाती है, तो यह अवहेलना करने से बेहतर होता और उनके ईमान के लिए अधिक दृढ़ता का कारण होता। तथा हम उन्हें अपनी ओर से बड़ा बदला देते और उन्हें अल्लाह एवं उसकी जन्नत तक ले जाने वाले रास्ते पर चलने का सामर्थ्य प्रदान करते।
Faccirooji aarabeeji:
وَمَنْ یُّطِعِ اللّٰهَ وَالرَّسُوْلَ فَاُولٰٓىِٕكَ مَعَ الَّذِیْنَ اَنْعَمَ اللّٰهُ عَلَیْهِمْ مِّنَ النَّبِیّٖنَ وَالصِّدِّیْقِیْنَ وَالشُّهَدَآءِ وَالصّٰلِحِیْنَ ۚ— وَحَسُنَ اُولٰٓىِٕكَ رَفِیْقًا ۟ؕ
जो व्यक्ति अल्लाह और उसके रसूल का आज्ञापालन करेगा, वह उन लोगों के साथ होगा, जिन्हें अल्लाह ने जन्नत में प्रवेश के पुरस्कार से सम्मानित किया है, अर्थात नबी, और सिद्दीक़ (सत्यवादी) लोग जिन्होंने रसूलों के लाए हुए धर्म को पूरी तरह से सत्य जाना और उसके अनुसार कार्य किया, और शहीद लोग जो अल्लाह के रास्ते में क़त्ल किए गए, और सदाचारी लोग जिनके परोक्ष एवं प्रत्यक्ष विशुद्ध हैं, तो परिणाम स्वरूप उनके कार्य भी विशुद्ध हैं। ये लोग जन्नत के क्या ही अच्छे साथी हैं!
Faccirooji aarabeeji:
ذٰلِكَ الْفَضْلُ مِنَ اللّٰهِ ؕ— وَكَفٰی بِاللّٰهِ عَلِیْمًا ۟۠
यह उक्त सवाब अल्लाह की ओर से उसके बंदों पर अनुग्रह एवं कृपा है और अल्लाह काफ़ी है उनकी स्थितियों को जानने वाला, और वह हर एक को उसके कार्य का बदला देगा।
Faccirooji aarabeeji:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا خُذُوْا حِذْرَكُمْ فَانْفِرُوْا ثُبَاتٍ اَوِ انْفِرُوْا جَمِیْعًا ۟
ऐ अल्लाह पर ईमान रखने और उसके रसूल का अनुसरण करने वालो! अपने दुश्मनों से, उनसे जंग करने पर सहायक कारणों को अपनाकर, सावधान रहो। अतः उनकी ओर एक के बाद एक गुट बनाकर निकलो, या सब के सब इकट्ठे होकर निकल पड़ो। यह सब इस तथ्य के अधीन है कि किस चीज़ में तुम्हारा हित और किसी चीज़ में तुम्हारे दुश्मनों का पराजय है।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِنَّ مِنْكُمْ لَمَنْ لَّیُبَطِّئَنَّ ۚ— فَاِنْ اَصَابَتْكُمْ مُّصِیْبَةٌ قَالَ قَدْ اَنْعَمَ اللّٰهُ عَلَیَّ اِذْ لَمْ اَكُنْ مَّعَهُمْ شَهِیْدًا ۟
(ऐ मुसलमानो!) तुम्हारे अंदर कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो अपनी कायरता के कारण तुम्हारे दुश्मनों से लड़ाई के लिए निकलने से पीछे रहते हैं और दूसरों को भी पीछे रखते (रोकते) हैं। ये मुनाफ़िक़ और कमज़ोर ईमान वाले लोग हैं। फिर यदि तुम शहीद हो जाओ या तुम्हें पराजय का सामना करना पड़े, तो उनमें से एक अपनी सुरक्षा पर हर्षित होकर कहता है : अल्लाह ने मुझपर कृपा की है, इसलिए मैं उनके साथ लड़ाई में शामिल नहीं हुआ, नहीं तो मेरी भी वही हालत होती, जो इनकी हुई।
Faccirooji aarabeeji:
وَلَىِٕنْ اَصَابَكُمْ فَضْلٌ مِّنَ اللّٰهِ لَیَقُوْلَنَّ كَاَنْ لَّمْ تَكُنْ بَیْنَكُمْ وَبَیْنَهٗ مَوَدَّةٌ یّٰلَیْتَنِیْ كُنْتُ مَعَهُمْ فَاَفُوْزَ فَوْزًا عَظِیْمًا ۟
और यदि तुम्हें - ऐ मुसलमानो! - विजय अथवा माले ग़नीमत के रूप में अल्लाह का अनुग्रह प्राप्त हो जाए, तो जिहाद से पीछे रहने वाला यही व्यक्ति अवश्य इस तरह कहेगा मानो वह तुममें से है ही नहीं और तुम्हारे और उसके बीच कोई प्यार और साहचर्य नहीं था कि काश! मैं भी उनके साथ इस युद्ध में शामिल होता, तो उनकी तरह मैं भी बड़ी सफलता प्राप्त कर लेता!
Faccirooji aarabeeji:
فَلْیُقَاتِلْ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ الَّذِیْنَ یَشْرُوْنَ الْحَیٰوةَ الدُّنْیَا بِالْاٰخِرَةِ ؕ— وَمَنْ یُّقَاتِلْ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ فَیُقْتَلْ اَوْ یَغْلِبْ فَسَوْفَ نُؤْتِیْهِ اَجْرًا عَظِیْمًا ۟
अतः सच्चे ईमान वाले, जो सांसारिक जीवन को उसके प्रति अरुचि प्रकट करते हुए, आख़िरत के बदले उसकी इच्छा रखते हुए बेच देते हैं, उन्हें चाहिए कि अल्लाह के रास्ते में युद्ध करें ताकि अल्लाह का धर्म सर्वोच्च हो। और जो अल्लाह के धर्म को सर्वोच्च करने के लिए अल्लाह के रास्ते में युद्ध करे, फिर वह शहीद हो जाए या दुश्मन पर विजय प्राप्त कर ले, तो अल्लाह उसे महान प्रतिफल प्रदान करेगा और वह जन्नत और अल्लाह की प्रसन्नता है।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• فعل الطاعات من أهم أسباب الثبات على الدين.
• अच्छे कर्म करना धर्म पर दृढ़ता के सबसे महत्वपूर्ण कारणों में से एक है।

• أخذ الحيطة والحذر باتخاذ جميع الأسباب المعينة على قتال العدو، لا بالقعود والتخاذل.
• चौकसी और सावधानी बरतना दुश्मन से लड़ने के लिए सहायक सभी कारणों को अपनाकर होता है, न कि बैठकर और पीछे हटकर।

• الحذر من التباطؤ عن الجهاد وتثبيط الناس عنه؛ لأن الجهاد أعظم أسباب عزة المسلمين ومنع تسلط العدو عليهم.
• जिहाद से पीछे रहने और इससे लोगों को हतोत्साहित करने से सावधान रहना चाहिए; क्योंकि जिहाद मुसलमानों के गौरव व प्रतिष्ठा और उन पर दुश्मन के वर्चस्व और प्राबल्य को रोकने का सबसे महान कारण है।

وَمَا لَكُمْ لَا تُقَاتِلُوْنَ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ وَالْمُسْتَضْعَفِیْنَ مِنَ الرِّجَالِ وَالنِّسَآءِ وَالْوِلْدَانِ الَّذِیْنَ یَقُوْلُوْنَ رَبَّنَاۤ اَخْرِجْنَا مِنْ هٰذِهِ الْقَرْیَةِ الظَّالِمِ اَهْلُهَا ۚ— وَاجْعَلْ لَّنَا مِنْ لَّدُنْكَ وَلِیًّا ۙۚ— وَّاجْعَلْ لَّنَا مِنْ لَّدُنْكَ نَصِیْرًا ۟ؕ
- ऐ मोमिनो! - तुम्हें अल्लाह के रास्ते में, उसके धर्म को ऊँचा करने और बेसहारा पुरुषों, स्त्रियों तथा बच्चों को मुक्ति दिलाने के लिए जिहाद करने से कौन-सी चीज़ रोकती है, जो बेबसी के आलम में अल्लाह से दुआ कर रहें हैं कि ऐ हमारे पालनहार! हमें मक्का से निकाल दे, क्योंकि उसके वासी अल्लाह का साझी बनाकर और उसके बंदों को उत्पीड़ित करके अत्याचार करते हैं। तथा हमारे लिए अपनी ओर से कोई संरक्षक बना दे, जो हमारी देखभाल और संरक्षण करे और ऐसा सहायक बना दे, जो हमसे हर प्रकार की हानि को दूर कर दे।
Faccirooji aarabeeji:
اَلَّذِیْنَ اٰمَنُوْا یُقَاتِلُوْنَ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ ۚ— وَالَّذِیْنَ كَفَرُوْا یُقَاتِلُوْنَ فِیْ سَبِیْلِ الطَّاغُوْتِ فَقَاتِلُوْۤا اَوْلِیَآءَ الشَّیْطٰنِ ۚ— اِنَّ كَیْدَ الشَّیْطٰنِ كَانَ ضَعِیْفًا ۟۠
सच्चे मोमिन, अल्लाह के रास्ते में उसके धर्म को सर्वोच्च करने के लिए लड़ते हैं, जबकि काफिर अपने असत्य पूज्यों (देवताओं) की खातिर लड़ते हैं। अतः तुम शैतान के सहायकों से युद्ध करो, क्योंकि यदि तुम उनसे युद्ध करोगे, तो उनपर विजय प्राप्त कर लोगे। क्योंकि शैतान की चाल कमज़ोर होती है। वह सर्वशक्तिमान अल्लाह पर भरोसा रखने वालों को नुक़सान नहीं पहुँचा सकता।
Faccirooji aarabeeji:
اَلَمْ تَرَ اِلَی الَّذِیْنَ قِیْلَ لَهُمْ كُفُّوْۤا اَیْدِیَكُمْ وَاَقِیْمُوا الصَّلٰوةَ وَاٰتُوا الزَّكٰوةَ ۚ— فَلَمَّا كُتِبَ عَلَیْهِمُ الْقِتَالُ اِذَا فَرِیْقٌ مِّنْهُمْ یَخْشَوْنَ النَّاسَ كَخَشْیَةِ اللّٰهِ اَوْ اَشَدَّ خَشْیَةً ۚ— وَقَالُوْا رَبَّنَا لِمَ كَتَبْتَ عَلَیْنَا الْقِتَالَ ۚ— لَوْلَاۤ اَخَّرْتَنَاۤ اِلٰۤی اَجَلٍ قَرِیْبٍ ؕ— قُلْ مَتَاعُ الدُّنْیَا قَلِیْلٌ ۚ— وَالْاٰخِرَةُ خَیْرٌ لِّمَنِ اتَّقٰی ۫— وَلَا تُظْلَمُوْنَ فَتِیْلًا ۟
क्या (ऐ रसलू!) आप अपने उन साथियों के हाल से अवगत नहीं हैं, जिन्होंने माँग की कि उनपर जिहाद फ़र्ज़ (अनिवार्य) कर दिया जाए, तो उनसे कहा गया : अपने हाथों को लड़ाई से रोके रखो, नमाज़ क़ायम करो और ज़कात देते रहो। (और यह जिहाद के अनिवार्य होने से पहले की बात है) फिर जब वे मदीना हिजरत कर गए, और इस्लाम को मज़बूती प्राप्त हो गई और जिहाद फ़र्ज़ कर दिया गया; तो उनमें से कुछ लोगों को यह आदेश बड़ा कठिन मालूम हुआ और वे लोगों से ऐसे डरने लगे, जैसे अल्लाह से डरते हैं अथवा उससे भी अधिक। और कहने लगे : ऐ हमारे पालनहार! हमपर जिहाद क्यों अनिवार्य कर दिया? इसे कुछ दिनों के लिए विलंब क्यों नहीं कर दिया कि हम दुनिया का कुछ फ़ायदा उठा लेते। (ऐ रसूल!) आप उनसे कह दें : दुनिया का सामान (आनंद) चाहे जितना प्राप्त हो जाए, थोड़ा और नश्वर है, जबकि आख़िरत अल्लाह से डरने वालों के लिए बेहतर है, क्योंकि उसकी नेमतें सदा बाक़ी रहेंगी। और तुम्हारे अच्छे कामों में किसी भी तरह की कमी नहीं की जाएगी, चाहे वह उस धागे के बराबर ही क्यों न हो जो खजूर की गुठली में होता है।
Faccirooji aarabeeji:
اَیْنَمَا تَكُوْنُوْا یُدْرِكْكُّمُ الْمَوْتُ وَلَوْ كُنْتُمْ فِیْ بُرُوْجٍ مُّشَیَّدَةٍ ؕ— وَاِنْ تُصِبْهُمْ حَسَنَةٌ یَّقُوْلُوْا هٰذِهٖ مِنْ عِنْدِ اللّٰهِ ۚ— وَاِنْ تُصِبْهُمْ سَیِّئَةٌ یَّقُوْلُوْا هٰذِهٖ مِنْ عِنْدِكَ ؕ— قُلْ كُلٌّ مِّنْ عِنْدِ اللّٰهِ ؕ— فَمَالِ هٰۤؤُلَآءِ الْقَوْمِ لَا یَكَادُوْنَ یَفْقَهُوْنَ حَدِیْثًا ۟
तुम जहाँ कहीं भी हो, तुम्हारा समय आने पर मृत्यु तुमको पा लेगी, भले ही तुम युद्ध के मैदान से दूर अभेद्य महलों में हो। इन मुनाफ़िक़ों (पाखंडियों) का हाल यह है कि यदि इन्हें संतान और ढेर सारी आजीविका जैसी कोई खुशी की चीज़ मिलती है, तो कहते हैं कि यह अल्लाह की ओर से है। लेकिन यदि इन्हें संतान या आजीविका में कठोर स्थिति का सामना होता है, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से अपशकुन लेते हैं और कहते हैं कि यह बुराई आपके कारण है। (ऐ रसूल!) इनका खंडन करते हुए कह दें : भलाइयाँ और बुराइयाँ, सब अल्लाह के फ़ैसले और उसकी तक़दीर के अधीन हैं। तो इस तरह की बात कहने वालों को क्या हो गया है कि वे समझ ही नहीं पा रहे हैं कि आप उनसे क्या कह रहे हैं?!
Faccirooji aarabeeji:
مَاۤ اَصَابَكَ مِنْ حَسَنَةٍ فَمِنَ اللّٰهِ ؗ— وَمَاۤ اَصَابَكَ مِنْ سَیِّئَةٍ فَمِنْ نَّفْسِكَ ؕ— وَاَرْسَلْنٰكَ لِلنَّاسِ رَسُوْلًا ؕ— وَكَفٰی بِاللّٰهِ شَهِیْدًا ۟
(ऐ आदम के बेटो!) तुझे जो भी खुशी की चीज़ें जैसे आजीविका और संतान आदि प्राप्त होती हैं, वे सब अल्लाह की ओर से हैं, जिनके द्वारा अल्लाह ने तुझ पर अनुग्रह किया है। तथा तेरी रोज़ी और संतान के बारे में तुझे जो परेशानी आती है, वह सब तेरी तरफ से तेरे द्वारा किए गए पापों के कारण है। और - ऐ नबी! - हमने आपको समस्त लोगो के लिए अल्लाह का रसूल बनाकर भेजा है, ताकि आप उन्हें अपने पालनहार का संदेश पहुँचाएँ। तथा आप अल्लाह की तरफ से लोगों को जो कुछ पहुँचा रहे हैं, उसकी सत्यता पर अल्लाह साक्षी के तौर पर काफ़ी है उन सबूतों और प्रमाणों के साथ जो उसने आपको प्रदान किए हैं।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• وجوب القتال لإعلاء كلمة الله ونصرة المستضعفين، وذم الخوف والجبن والاعتراض على أحكام الله.
• अल्लाह के धर्म को सर्वोच्च करने और कमज़ोरों का समर्थन करने के लिए लड़ने की अनिवार्यता, तथा डर, कायरता और अल्लाह के प्रावधानों पर आक्षेप करने की निंदा।

• الدار الآخرة خير من الدنيا وما فيها من متاع وشهوات لمن اتقى الله تعالى وعمل بطاعته.
• आख़िरत का घर, अल्लाह से डरने वालों और उसके आदेशों का पालन करने वालों के लिए, दुनिया और उसकी सामग्रियों और सुख-सुविधाओं से बेहतर है।

• الخير والشر كله بقدر الله، وقد يبتلي الله عباده ببعض السوء في الدنيا لأسباب، منها: ذنوبهم ومعاصيهم.
• भलाई और बुराई सब अल्लाह की तक़दीर (फैसले) के अधीन हैं। तथा कभी-कभी अल्लाह अपने बंदों को इस दुनिया में कुछ कारणों से किसी विपत्ति से पीड़ित कर देता है, जिनमें उनके पाप और अवहेलनाएँ शामिल है।

مَنْ یُّطِعِ الرَّسُوْلَ فَقَدْ اَطَاعَ اللّٰهَ ۚ— وَمَنْ تَوَلّٰی فَمَاۤ اَرْسَلْنٰكَ عَلَیْهِمْ حَفِیْظًا ۟ؕ
जिसने रसूल का, उनके आदेशों का अनुपालन कर और उनकी मना की हुई चीज़ों से बचकर, आज्ञापालन किया, तो उसने अल्लाह के आदेश का पालन किया और जिसने - ऐ रसूल! - आपके आज्ञापालन से मुँह फेरा, तो आप उसके लिए दुखी न होंं। क्योंकि हमने आपको उसके ऊपर संरक्षक बनाकर नहीं भेजा है कि आप उसके कार्यों को संरक्षित करें। बल्कि उसके कार्यों को गिनकर रखने और उसका हिसाब लेने का काम हमारा है।
Faccirooji aarabeeji:
وَیَقُوْلُوْنَ طَاعَةٌ ؗ— فَاِذَا بَرَزُوْا مِنْ عِنْدِكَ بَیَّتَ طَآىِٕفَةٌ مِّنْهُمْ غَیْرَ الَّذِیْ تَقُوْلُ ؕ— وَاللّٰهُ یَكْتُبُ مَا یُبَیِّتُوْنَ ۚ— فَاَعْرِضْ عَنْهُمْ وَتَوَكَّلْ عَلَی اللّٰهِ ؕ— وَكَفٰی بِاللّٰهِ وَكِیْلًا ۟
मुनाफ़िक़ लोग आपसे अपने मुँह से कहते हैं कि हम आपके आदेश को मानते हैं और उसका पालन करते हैं। परन्तु, जब वे आपके पास से निकलकर जाते हैं, तो उनका एक समूह गुप्त रूप से उसके विपरीत षड्यंत्र करता है जो उन्होंने आपके सामने ज़ाहिर किया है। हालाँकि अल्लाह उनके षड्यंत्र से अवगत है और उनकी इस चाल का उन्हें बदला देगा। अतः आप उनपर कोई ध्यान न दें; वे आपको कुछ भी नुक़सान नहीं पहुँचा सकेंगे। आप अपना मामला अल्लाह के हवाले कर दें और उस पर भरोसा करें और अल्लाह कार्यसाधक के तैर पर काफी है जिस पर आप भरोसा कर सकते हैं।
Faccirooji aarabeeji:
اَفَلَا یَتَدَبَّرُوْنَ الْقُرْاٰنَ ؕ— وَلَوْ كَانَ مِنْ عِنْدِ غَیْرِ اللّٰهِ لَوَجَدُوْا فِیْهِ اخْتِلَافًا كَثِیْرًا ۟
ये लोग क़ुरआन पर मनन चिंतन और उसका गहन अध्ययन क्यों नहीं करते, ताकि उनके लिए यह साबित हो जाए उसमें कोई अंतर (असंगति) या गड़बड़ी नहीं है?! और ताकि उन्हें आपके लाए हुए धर्म की सच्चाई पर विश्वास हो जाए। यदि यह (क़ुरआन) अल्लाह सर्वशक्तिमान के अलावा किसी अन्य की ओर से होता, तो वे उसके प्रावधानों में गड़बड़ी और उसके अर्थों में बहुत अंतर (असंगित) पाते।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِذَا جَآءَهُمْ اَمْرٌ مِّنَ الْاَمْنِ اَوِ الْخَوْفِ اَذَاعُوْا بِهٖ ؕ— وَلَوْ رَدُّوْهُ اِلَی الرَّسُوْلِ وَاِلٰۤی اُولِی الْاَمْرِ مِنْهُمْ لَعَلِمَهُ الَّذِیْنَ یَسْتَنْۢبِطُوْنَهٗ مِنْهُمْ ؕ— وَلَوْلَا فَضْلُ اللّٰهِ عَلَیْكُمْ وَرَحْمَتُهٗ لَاتَّبَعْتُمُ الشَّیْطٰنَ اِلَّا قَلِیْلًا ۟
जब इन मुनाफ़िक़ों के पास मुसलमानों की सुरक्षा और ख़ुशी, या उनके डर और दुःख की कोई सूचना आती है, तो उसे फैला देते और प्रकाशित कर देते हैं। यदि वे धीरज धरते और उस मामले को रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर तथा सोच-विचार, ज्ञान एवं शुभचिंतन वाले लोगों की तरफ़ लौटा देते, तो सोच-विचार करने और निष्कर्ष निकालने वाले लोग इस बात को अवश्य जान लेते कि उसे प्रकाशित करना चाहिए या गोपनीय रखना चाहिए। और - ऐ मोमिनो! - अगर इस्लाम के साथ तुमपर अल्लाह की अनुकंपा और क़ुरआन के साथ तुमपर उसकी दया न होती कि उसने तुम्हें उस दुर्दशा से सुरक्षित रखा जिससे इन मुनाफ़िक़ों को पीड़ित किया है; तो तुममें से कुछ को छोड़कर, सब शैतान के बहकावे में आ जाते।
Faccirooji aarabeeji:
فَقَاتِلْ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ ۚ— لَا تُكَلَّفُ اِلَّا نَفْسَكَ وَحَرِّضِ الْمُؤْمِنِیْنَ ۚ— عَسَی اللّٰهُ اَنْ یَّكُفَّ بَاْسَ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا ؕ— وَاللّٰهُ اَشَدُّ بَاْسًا وَّاَشَدُّ تَنْكِیْلًا ۟
अतः - ऐ रसूल! - आप अल्लाह के रास्ते में, उसके धर्म को सर्वोच्च करने के लिए युद्ध करें। आपसे आपके अलावा किसी अन्य के बारे में नहीं पूछा जाएगा और न आप उसके लिए बाध्य हैं। क्योंकि आप पर केवल अपने आपको युद्ध पर तत्पर करने की ज़िम्मेदारी है। तथा मोमिनों को भी युद्ध के लिए प्रोत्साहित करें और उस पर उभारें। संभव है कि अल्लाह तुम्हारे युद्ध के द्वारा काफ़िरों का ज़ोर तोड़ दे। अल्लाह अधिक शक्तिशाली और अधिक कठोर दंड देने वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
مَنْ یَّشْفَعْ شَفَاعَةً حَسَنَةً یَّكُنْ لَّهٗ نَصِیْبٌ مِّنْهَا ۚ— وَمَنْ یَّشْفَعْ شَفَاعَةً سَیِّئَةً یَّكُنْ لَّهٗ كِفْلٌ مِّنْهَا ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ عَلٰی كُلِّ شَیْءٍ مُّقِیْتًا ۟
जो दूसरों को भलाई पहुँचाने के लिए प्रयास करेगा, उसे उसके सवाब का कुछ हिस्सा प्राप्त होगा तथा जो दूसरों को बुराई पहुँचाने के लिए प्रयास करेगा, उसे उसके पाप का कुछ हिस्सा मिलेगा। अल्लाह मनुष्य के हर कार्य को देख रहा है और उसे उसका बदला देगा। अतः तुममें से जो व्यक्ति किसी भलाई की प्राप्ति का कारण बनेगा, उसे उसका हिस्सा मिलेगा और जो किसी बुराई की प्राप्ति का कारण बनेगा, उसे उसमें से कुछ प्राप्त होगी।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِذَا حُیِّیْتُمْ بِتَحِیَّةٍ فَحَیُّوْا بِاَحْسَنَ مِنْهَاۤ اَوْ رُدُّوْهَا ؕ— اِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَلٰی كُلِّ شَیْءٍ حَسِیْبًا ۟
जब कोई तुम्हें सलाम करे, तो उसे सलाम का उससे अच्छा उत्तर दो अथवा उसके कहे हुए शब्दों ही को दोहरा दो। अलबत्ता, उससे अच्छा उत्तर देना बेहतर है। निःसंदेह अल्लाह तुम्हारे कार्यों का संरक्षक है और वह हर एक को उसके कार्य का बदला देगा।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• تدبر القرآن الكريم يورث اليقين بأنه تنزيل من الله؛ لسلامته من الاضطراب، ويظهر عظيم ما تضمنه من الأحكام.
• पवित्र क़ुरआन पर मनन-चिंतन करना दिल में यह विश्वास पैदा करता है कि यह अल्लाह की उतारी हुई पुस्तक है; क्योंकि यह गड़बड़ी और विरोधाभास से पाक है। तथा उसमें मौजूद महान प्रावधानों को भी ज़ाहिर करता है।

• لا يجوز نشر الأخبار التي تنشأ عنها زعزعة أمن المؤمنين، أو دبُّ الرعب بين صفوفهم.
• ऐसे समाचारों को प्रकाशित करने की अनुमति नहीं है जो मोमिनों की सुरक्षा को अस्थिर करते हैं, या उनके के बीच आतंक (दहशत) पैदा करते हैं।

• التحدث بقضايا المسلمين والشؤون العامة المتصلة بهم يجب أن يصدر من أهل العلم وأولي الأمر منهم.
• मुसलमानों के मुद्दों और उनसे संबंधित सार्वजनिक मामलों के बारे में विद्वानों और उनके प्राधिकारियों द्वारा ही बात किया जाना चाहिए।

• مشروعية الشفاعة الحسنة التي لا إثم فيها ولا اعتداء على حقوق الناس، وتحريم كل شفاعة فيها إثم أو اعتداء.
• अच्छी सिफ़ारिश जिसमें कोई पाप और लोगों के अधिकारों पर हमला न हो, धर्मसंगत है तथा हर वह सिफ़ारिश हराम (निषिद्ध) है जिसमें कोई पाप या लोगों के अधिकारों पर हमला हो।

اَللّٰهُ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ ؕ— لَیَجْمَعَنَّكُمْ اِلٰی یَوْمِ الْقِیٰمَةِ لَا رَیْبَ فِیْهِ ؕ— وَمَنْ اَصْدَقُ مِنَ اللّٰهِ حَدِیْثًا ۟۠
अल्लाह के सिवा कोई सच्चा माबूद (पूज्य) नहीं। वह तुम्हारे पहले और बाद के लोगों को क़यामत के दिन अवश्य इकट्ठा करेगा, जिसमें कोई शक नहीं; ताकि तुम्हें तुम्हारे कर्मों का बदला दिया जाए। और अल्लाह से अधिक सच्ची बात वाला कोई नहीं है।
Faccirooji aarabeeji:
فَمَا لَكُمْ فِی الْمُنٰفِقِیْنَ فِئَتَیْنِ وَاللّٰهُ اَرْكَسَهُمْ بِمَا كَسَبُوْا ؕ— اَتُرِیْدُوْنَ اَنْ تَهْدُوْا مَنْ اَضَلَّ اللّٰهُ ؕ— وَمَنْ یُّضْلِلِ اللّٰهُ فَلَنْ تَجِدَ لَهٗ سَبِیْلًا ۟
(मोमिनो!) तुम्हें क्या हो गया है कि तुम, मुनाफ़िक़ों के साथ व्यवहार के बारे में दो अलग-अलग पक्ष बन गए हो : एक पक्ष कहता है कि उनके कुफ़्र के कारण उनसे युद्ध करना चाहिए, तथा दूसरा पक्ष कहता है कि उनके ईमान लाने के कारण उनसे युद्ध नहीं करना चाहिए?! तुम्हें उनके बारे में मतभेद में नहीं पड़ना चाहिए, जबकि अल्लाह ने उनके बुरे कर्मों के कारण उन्हें कुफ़्र और गुमराही की ओर लौटा दिया है। क्या तुम उसे सीधी राह पर लगाना चाहते हो, जिसे अल्लाह ने सत्य को स्वीकार करने का सामर्थ्य नहीं दिया है? और जिसे अल्लाह पथभ्रष्ट कर दे, तुम्हें उसे मार्गदर्शन करने का कोई रास्ता नहीं मिलेगा।
Faccirooji aarabeeji:
وَدُّوْا لَوْ تَكْفُرُوْنَ كَمَا كَفَرُوْا فَتَكُوْنُوْنَ سَوَآءً فَلَا تَتَّخِذُوْا مِنْهُمْ اَوْلِیَآءَ حَتّٰی یُهَاجِرُوْا فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ ؕ— فَاِنْ تَوَلَّوْا فَخُذُوْهُمْ وَاقْتُلُوْهُمْ حَیْثُ وَجَدْتُّمُوْهُمْ ۪— وَلَا تَتَّخِذُوْا مِنْهُمْ وَلِیًّا وَّلَا نَصِیْرًا ۟ۙ
मुनाफ़िक़ों (पाखंडियों) की कामना है कि उनके कुफ़्र करने की तरह तुम भी उसका इनकार कर दो, जो तुमपर उतारा गया है, ताकि कुफ़्र करने में, तुम उनके बराबर हो जाओ। अतः उनकी इसी दुश्मनी के कारण, तुम उन्हें अपना मित्र न बनाओ, यहाँ तक कि वे, अपने ईमान के संकेत के रूप में, शिर्क के घर से इस्लाम के देश की ओर हिजरत कर जाएं। यदि वे इससे मुँह फेरें और अपनी स्थिति पर बने रहें, तो जहाँ भी पाओ, उन्हें पकड़ो और क़त्ल करो। तथा उनमें से किसी को न अपना मित्र बनाओ, जो तुम्हारे मामलों में तुम्हारा साथ दे और न सहायक बनाओ, जो तुम्हारे दुश्मनों के विरुद्ध तुम्हारी सहायता करे।
Faccirooji aarabeeji:
اِلَّا الَّذِیْنَ یَصِلُوْنَ اِلٰی قَوْمٍ بَیْنَكُمْ وَبَیْنَهُمْ مِّیْثَاقٌ اَوْ جَآءُوْكُمْ حَصِرَتْ صُدُوْرُهُمْ اَنْ یُّقَاتِلُوْكُمْ اَوْ یُقَاتِلُوْا قَوْمَهُمْ ؕ— وَلَوْ شَآءَ اللّٰهُ لَسَلَّطَهُمْ عَلَیْكُمْ فَلَقٰتَلُوْكُمْ ۚ— فَاِنِ اعْتَزَلُوْكُمْ فَلَمْ یُقَاتِلُوْكُمْ وَاَلْقَوْا اِلَیْكُمُ السَّلَمَ ۙ— فَمَا جَعَلَ اللّٰهُ لَكُمْ عَلَیْهِمْ سَبِیْلًا ۟
परन्तु उनमें से जो लोग ऐसी क़ौम के पास पहुँच जाएँ कि तुम्हारे और उनके बीच युद्ध विराम का निश्चित अनुबंध है, अथवा वे लोग जो तुम्हारे पास इस स्थिति में आएँ कि उनके दिल संकुचित हों, वे न तुमसे लड़ना चाहते हों न अपनी क़ौम से लड़ना चाहते हों। हालाँकि यदि अल्लाह चाहता, तो उन्हें तुम्हारे ऊपर सक्षम कर देता और वे तुमसे लड़ाई करते।इसलिए अल्लाह की ओर से उसकी आफियत (विपत्ति रहित अवस्था) को स्वीकार करो और उन्हें क़त्ल करने अथवा बंदी बनाने से परहेज़ करो। यदि वे तुमसे अलग रहें और तुमसे युद्ध न करें, तथा तुमसे लड़ाई छोड़कर तुम्हारे साथ संधि के लिए हाथ बढ़ाएँ, तो अल्लाह ने तुम्हारे लिए उन्हें क़त्ल करने अथवा बंदी बनाने का कोई रास्ता नहीं बनाया है।
Faccirooji aarabeeji:
سَتَجِدُوْنَ اٰخَرِیْنَ یُرِیْدُوْنَ اَنْ یَّاْمَنُوْكُمْ وَیَاْمَنُوْا قَوْمَهُمْ ؕ— كُلَّ مَا رُدُّوْۤا اِلَی الْفِتْنَةِ اُرْكِسُوْا فِیْهَا ۚ— فَاِنْ لَّمْ یَعْتَزِلُوْكُمْ وَیُلْقُوْۤا اِلَیْكُمُ السَّلَمَ وَیَكُفُّوْۤا اَیْدِیَهُمْ فَخُذُوْهُمْ وَاقْتُلُوْهُمْ حَیْثُ ثَقِفْتُمُوْهُمْ ؕ— وَاُولٰٓىِٕكُمْ جَعَلْنَا لَكُمْ عَلَیْهِمْ سُلْطٰنًا مُّبِیْنًا ۟۠
- ऐ मोमिनो! - तुम मुनाफ़िक़ों का एक अन्य समूह ऐसा पाओगे, जो तुम्हारे सामने ईमान को प्रदर्शित करते हैं ताकि वे खुद के लिए प्रतिरक्षा प्राप्त कर सकें। परन्तु जब वे अपनी काफ़िर क़ौम के पास जाते हैं, तो उनके सामने कुफ़्र को प्रदर्शित करते हैं, ताकि उनसे भी निश्चिंत और सुरक्षित रहें। जब भी उन्हें अल्लाह का इनकार करने और उसके साथ शिर्क करने के लिए बुलाया जाता है, तो वे उसमें भयानक रूप से गिर जाते हैं। ये लोग यदि तुमसे लड़ना न छोड़ें, सुलह करने के लिए आगे न आएं और अपने हाथ तुमसे न रोकें, तो उन्हें जहाँ पाओ, पकड़ो और क़त्ल करो। और वे लोग जिनकी यह विशेषता है, हमने तुम्हारे लिए उन्हें पकड़ने और क़त्ल करने का स्पष्ट तर्क बना दिया है; और ऐसा उनके विश्वासघात और चालबाज़ी के कारण किया है।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• خفاء حال بعض المنافقين أوقع الخلاف بين المؤمنين في حكم التعامل معهم.
• कुछ मुनाफ़िक़ों की स्थिति स्पष्ट न होने के कारण, उनके साथ व्यवहार के हुक्म के बारे में मोमिनों के बीच मतभेद पैदा हो गया।

• بيان كيفية التعامل مع المنافقين بحسب أحوالهم ومقتضى المصلحة معهم.
• मुनाफ़िक़ों के साथ, उनकी परिस्थितियों और उनके साथ हित की अपेक्षा के अनुसार व्यवहार करने के तरीक़े का वर्णन।

• عدل الإسلام في الكف عمَّن لم تقع منه أذية متعدية من المنافقين.
• मुनाफ़िक़ों में से जिससे कोई कष्ट नहीं पहुँचा है उससे हाथ रोक लेने में इस्लाम का न्याय।

• يكشف الجهاد في سبيل الله أهل النفاق بسبب تخلفهم عنه وتكلُّف أعذارهم.
• अल्लाह के रास्ते में जिहाद निफ़ाक़ वालों को उजागर कर देता है, क्योंकि वे उससे पीछे रहते हैं और बहाने बनाते हैं।

وَمَا كَانَ لِمُؤْمِنٍ اَنْ یَّقْتُلَ مُؤْمِنًا اِلَّا خَطَأً ۚ— وَمَنْ قَتَلَ مُؤْمِنًا خَطَأً فَتَحْرِیْرُ رَقَبَةٍ مُّؤْمِنَةٍ وَّدِیَةٌ مُّسَلَّمَةٌ اِلٰۤی اَهْلِهٖۤ اِلَّاۤ اَنْ یَّصَّدَّقُوْا ؕ— فَاِنْ كَانَ مِنْ قَوْمٍ عَدُوٍّ لَّكُمْ وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَتَحْرِیْرُ رَقَبَةٍ مُّؤْمِنَةٍ ؕ— وَاِنْ كَانَ مِنْ قَوْمٍ بَیْنَكُمْ وَبَیْنَهُمْ مِّیْثَاقٌ فَدِیَةٌ مُّسَلَّمَةٌ اِلٰۤی اَهْلِهٖ وَتَحْرِیْرُ رَقَبَةٍ مُّؤْمِنَةٍ ۚ— فَمَنْ لَّمْ یَجِدْ فَصِیَامُ شَهْرَیْنِ مُتَتَابِعَیْنِ ؗ— تَوْبَةً مِّنَ اللّٰهِ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ عَلِیْمًا حَكِیْمًا ۟
किसी मोमिन के लिए यह उचित नहीं है कि किसी मोमिन की हत्या करे, परन्तु यह कि चूक से ऐसा हो जाए। जो व्यक्ति गलती से किसी मोमिन की हत्या कर दे, वह अपने कृत्य के कफ़्फ़ारा के तौर पर एक मोमिन गुलाम आज़ाद करे और हत्यारे के वारिस रिश्तेदार हत व्यक्ति के वारिसों को दियत (खून की क़ीमत) दें। लेकिन अगर हत व्यकित के वारिस खून के पैसे माफ कर दें, तो दियत समाप्त हो जाएगी। यदि हत व्यक्ति तुमसे युद्ध कने वाली क़ौम से हो, और वह स्वयं मोमिन हो, तो हत्यारे पर (केवल) एक मोमिन ग़ुलाम आज़ाद करना अनिवार्य है, उसपर दियत अनिवार्य नहीं है। तथा यदि हत व्यक्ति ईमान वाला न हो, लेकिन वह ऐसी क़ौम से हो कि तुम्हारे और उनके बीच ज़िम्मियों की तरह कोई प्रतिज्ञा और समझौता हो, तो हत्यारे के वारिस रिश्तेदारों पर हत व्यक्ति के वारिसों को ख़ून की क़ीमत देना अनिवार्य है और हत्यारे को अपने कृत्य के कफ़्फ़ारा के तौर पर एक मोमिन ग़ुलाम आज़ाद करना होगा। यदि उसे आज़ाद करने के लिए ग़ुलाम न मिले अथवा वह ग़ुलाम की क़ीमत भुगतान करने में सक्षम न हो, तो वह लगातार दो महीने बिना किसी बाधा के इस तरह रोज़े रखे कि उनके बीच (बिना किसी कारण के) रोज़ा न तोड़े। ये प्रावधान इसलिए हैं, ताकि अल्लाह उसके किए को क्षमा कर दे। अल्लाह अपने बंदों के कृत्यों और उनके इरादों से अवगत, अपने विधान और प्रबंधन में हिकमत वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
وَمَنْ یَّقْتُلْ مُؤْمِنًا مُّتَعَمِّدًا فَجَزَآؤُهٗ جَهَنَّمُ خَلِدًا فِیْهَا وَغَضِبَ اللّٰهُ عَلَیْهِ وَلَعَنَهٗ وَاَعَدَّ لَهٗ عَذَابًا عَظِیْمًا ۟
जो व्यक्ति किसी मोमिन को बिना किसी हक़ के जान-बूझकर क़त्ल कर दे; तो उसका बदला जहन्नम में प्रवेश है, जिसमें वह हमेशा के लिए रहेगा, यदि उसने उसे हलाल समझा या उससे तौबा नहीं किया। तथा अल्लाह उसपर क्रोधित है और उसे अपनी दया से निष्कासित कर दिया। तथा उसके इस महान पाप को करने के कारण, उसके लिए बड़ा अज़ाब तैयार कर रखा है।
Faccirooji aarabeeji:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اِذَا ضَرَبْتُمْ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ فَتَبَیَّنُوْا وَلَا تَقُوْلُوْا لِمَنْ اَلْقٰۤی اِلَیْكُمُ السَّلٰمَ لَسْتَ مُؤْمِنًا ۚ— تَبْتَغُوْنَ عَرَضَ الْحَیٰوةِ الدُّنْیَا ؗ— فَعِنْدَ اللّٰهِ مَغَانِمُ كَثِیْرَةٌ ؕ— كَذٰلِكَ كُنْتُمْ مِّنْ قَبْلُ فَمَنَّ اللّٰهُ عَلَیْكُمْ فَتَبَیَّنُوْا ؕ— اِنَّ اللّٰهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُوْنَ خَبِیْرًا ۟
ऐ अल्लाह पर ईमान रखने वालो और उसके रसूल का अनुसरण करने वालो! जब तुम अल्लाह के मार्ग में जिहाद के लिए निकलो, तो छानबीन कर लिया करो कि किससे युद्ध कर रहे हो और जो तुम्हें अपने मुसलमान होने का सबूत दिखाए, उसे यह न कहो कि तुम मोमिन नहीं हो, बल्कि तुम केवल अपनी जान एवं माल की रक्षा के लिए मुसलमान होने का प्रदर्शन कर रहे हो। फिर तुम ग़नीमत के धन जैसे दुनिया के तुच्छ सामानों के लोभ में उसकी हत्या कर दो! सुनो, अल्लाह के पास बहुत-सी ग़नीमतें हैं, जो इससे बेहतर और बड़ी हैं। इससे पहले तुम भी इसी व्यक्ति की तरह थे, जो अपनी क़ौम से अपना ईमान छिपा रहा है। फिर अल्लाह ने इस्लाम की दौलत प्रदानकर तुमपर उपकार किया और तुम्हारे रक्त की रक्षा की। इसलिए छानबीन कर लिया करो। यक़ीनन अल्लाह से तुम्हारा कोई छोटे से छोटा कार्य भी छिपा नहीं है और वह तुम्हें उसका बदला देगा।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• جاء القرآن الكريم معظِّمًا حرمة نفس المؤمن، وناهيًا عن انتهاكها، ومرتبًا على ذلك أشد العقوبات.
• क़ुरआन करीम ने मोमिन की जान की पवित्रता का सम्मान किया है, उसकी पवित्रता का उल्लंघन करने से मना किया है और ऐसा करने पर सबसे कठोर दंड निर्धारित किया है।

• من عقيدة أهل السُّنَّة والجماعة أن المؤمن القاتل لا يُخلَّد أبدًا في النار، وإنما يُعذَّب فيها مدة طويلة ثم يخرج منها برحمة الله تعالى.
• अह्ले सुन्नत वल-जमाअत का यह अक़ीदा है कि हत्या करने वाला मोमिन जहन्नम में हमेशा नहीं रहेगा, बल्कि उसे लंबे समय उसमें यातना दी जाएगी, फिर अल्लाह की दया से वह उससे बाहर निकलेगा।

• وجوب التثبت والتبيُّن في الجهاد، وعدم الاستعجال في الحكم على الناس حتى لا يُعتدى على البريء.
• जिहाद में छानबीन और जाँच-पड़ताल करना ज़रूरी है, तथा लोगों पर हुक्म लगाने में जल्दबाज़ी नहीं करना चाहिए, ताकि निर्दोष पर अतिक्रमण न हो।

لَا یَسْتَوِی الْقٰعِدُوْنَ مِنَ الْمُؤْمِنِیْنَ غَیْرُ اُولِی الضَّرَرِ وَالْمُجٰهِدُوْنَ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ بِاَمْوَالِهِمْ وَاَنْفُسِهِمْ ؕ— فَضَّلَ اللّٰهُ الْمُجٰهِدِیْنَ بِاَمْوَالِهِمْ وَاَنْفُسِهِمْ عَلَی الْقٰعِدِیْنَ دَرَجَةً ؕ— وَكُلًّا وَّعَدَ اللّٰهُ الْحُسْنٰی ؕ— وَفَضَّلَ اللّٰهُ الْمُجٰهِدِیْنَ عَلَی الْقٰعِدِیْنَ اَجْرًا عَظِیْمًا ۟ۙ
उज़्र वालों जैसे कि बीमार और अंधे लोगों के अलावा अल्लाह के रास्ते में जिहाद छोड़कर घर बैठ रहने वाले मोमिन तथा अल्लाह के मार्ग में अपनी जानों और मालों के साथ जिहाद करने वाले बराबर नहीं हो सकते। अल्लाह ने जान एवं माल के साथ जिहाद करने वालों को पद के एतिबार से, जिहाद से बैठे रहने वालों पर प्रधानता प्रदान किया है। जबकि जिहाद करने वालों और उचित कारण की बिना पर जिहाद से बैठे रहने वालों में से प्रत्येक को उसका वह प्रतिफल मिलेगा जिसका वह वह हक़दार है।परंतु अल्लाह ने जिहाद करने वालों को अपनी ओर से महान प्रतिफल देकर उन्हें जिहाद से बैठ रहने वालों पर श्रेष्ठता प्रदान किया है।
Faccirooji aarabeeji:
دَرَجٰتٍ مِّنْهُ وَمَغْفِرَةً وَّرَحْمَةً ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ غَفُوْرًا رَّحِیْمًا ۟۠
यह सवाब (स्वर्ग में) एक के ऊपर एक घरों, साथ ही साथ उनके पापों के क्षमादान और उनपर अल्लाह की दया के रूप में होगा। तथा अल्लाह अपने बंदों को बड़ा क्षमा करने वाला और उन पर दया करने वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
اِنَّ الَّذِیْنَ تَوَفّٰىهُمُ الْمَلٰٓىِٕكَةُ ظَالِمِیْۤ اَنْفُسِهِمْ قَالُوْا فِیْمَ كُنْتُمْ ؕ— قَالُوْا كُنَّا مُسْتَضْعَفِیْنَ فِی الْاَرْضِ ؕ— قَالُوْۤا اَلَمْ تَكُنْ اَرْضُ اللّٰهِ وَاسِعَةً فَتُهَاجِرُوْا فِیْهَا ؕ— فَاُولٰٓىِٕكَ مَاْوٰىهُمْ جَهَنَّمُ ؕ— وَسَآءَتْ مَصِیْرًا ۟ۙ
फ़रिश्ते जिन लोगाों के प्राण इस हाल में निकालते हैं कि वे कुफ़्र की नगरी से इस्लाम की नगरी की तरफ़ हिजरत न करके अपने ऊपर अत्याचार करने वाले होते हैं, तो फरिश्ते उनका प्राण निकालते समय उन्हें फटकार लगाते हुए कहते हैं : तुम किस हाल में थे? और तुम किस चीज़ के द्वारा मुश्रिकों से भिन्न थे? तो वे कारण बताते हुए जवाब देते हैं : हम कमज़ोर व असहाय थे, हमारे पास इतनी शक्ति और ताक़त नहीं थी जिससे हम अपना बचाव कर सकते। तो फ़रिश्ते उन्हें फटकारते हुए कहेंगे : क्या अल्लाह की धरती विस्तृत नहीं थी कि तुम उसमें हिजरत कर जाते ताकि तुम अपने धर्म और अपने आपको अपमान और उत्पीड़न से बचा सकते?! अतः वे लोग जिन्होंने हिजरत नहीं किया, उनका ठिकाना जहाँ वे रहेंगे, नरक है और वह उनके लिए बहुत ही बुरा ठिकाना है।
Faccirooji aarabeeji:
اِلَّا الْمُسْتَضْعَفِیْنَ مِنَ الرِّجَالِ وَالنِّسَآءِ وَالْوِلْدَانِ لَا یَسْتَطِیْعُوْنَ حِیْلَةً وَّلَا یَهْتَدُوْنَ سَبِیْلًا ۟ۙ
98-99- परंतु सज़ा की इस धमकी से उज़्र वाले कमज़ोर व लाचार पुरुष, स्त्री और बच्चे अलग हैं, जिनके पास अपने आपसे अत्याचार और उत्पीड़न को हटाने की शक्ति नहीं है तथा वे अपने उत्पीड़न से छुटकारा पाने का कोई रास्ता नहीं पाते हैं। तो अल्लाह ऐसे लोगों को अपनी दया व कृपा से निश्चय ही माफ़ कर देगा। अल्लाह अपने बंदों को माफ़ करने वाला और उनमें से तौबा करने वालों को क्षमा करने वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
فَاُولٰٓىِٕكَ عَسَی اللّٰهُ اَنْ یَّعْفُوَ عَنْهُمْ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ عَفُوًّا غَفُوْرًا ۟
98-99- परंतु सज़ा की इस धमकी से उज़्र वाले कमज़ोर व लाचार पुरुष, स्त्री और बच्चे अलग हैं, जिनके पास अपने आपसे अत्याचार और उत्पीड़न को हटाने की शक्ति नहीं है तथा वे अपने उत्पीड़न से छुटकारा पाने का कोई रास्ता नहीं पाते हैं। तो अल्लाह ऐसे लोगों को अपनी दया व कृपा से निश्चय ही माफ़ कर देगा। अल्लाह अपने बंदों को माफ़ करने वाला और उनमें से तौबा करने वालों को क्षमा करने वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
وَمَنْ یُّهَاجِرْ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ یَجِدْ فِی الْاَرْضِ مُرٰغَمًا كَثِیْرًا وَّسَعَةً ؕ— وَمَنْ یَّخْرُجْ مِنْ بَیْتِهٖ مُهَاجِرًا اِلَی اللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ ثُمَّ یُدْرِكْهُ الْمَوْتُ فَقَدْ وَقَعَ اَجْرُهٗ عَلَی اللّٰهِ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ غَفُوْرًا رَّحِیْمًا ۟۠
जो व्यक्ति अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए कुफ़्र के देश से इस्लाम के देश की ओर हिजरत करेगा, वह उस भूमि में जिसमें उसने पलायन किया है एक नया स्थान और ज़मीन पाएगा, जहाँ उसे गौरव और व्यापक आजीविका प्राप्त होगी। तथा जो व्यक्ति अपने घर से अल्लाह और उसके रसूल की ओर हिजरत के उद्देश्य से निकलता है, फिर उसके अपने प्रवास स्थल पर पहुँचने से पहले उसकी मृत्यु हो जाती है, तो अल्लाह के यहाँ उसका सवाब निश्चित हो गया। इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वह अपने प्रवास स्थल तक नहीं पहुँच सका। तथा अल्लाह अपने तौबा करने वाले बंदों को क्षमा करने वाला और उनपर दया करने वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِذَا ضَرَبْتُمْ فِی الْاَرْضِ فَلَیْسَ عَلَیْكُمْ جُنَاحٌ اَنْ تَقْصُرُوْا مِنَ الصَّلٰوةِ ۖۗ— اِنْ خِفْتُمْ اَنْ یَّفْتِنَكُمُ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا ؕ— اِنَّ الْكٰفِرِیْنَ كَانُوْا لَكُمْ عَدُوًّا مُّبِیْنًا ۟
जब तुम धरती में यात्रा करो और काफ़िरों की ओर से कोई कष्ट पहुँचने का डर हो, तो चार रक्अत वाली नमाज़ों को क़स्र (कम) करके दो रक्अत पढ़ने में तुमपर कोई गुनाह नहीं है। निःसंदेह काफ़िरों की तुमसे दुश्मनी बिल्कुल खुली हुई स्पष्ट है। तथा सहीह सुन्नत (हदीस) से साबित है कि सुरक्षा की स्थिति में भी यात्रा करने में नमाज़ को क़स्र करना जायज़ है।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• فضل الجهاد في سبيل الله وعظم أجر المجاهدين، وأن الله وعدهم منازل عالية في الجنة لا يبلغها غيرهم.
• अल्लाह के रास्ते में जिहाद की विशेषता तथा मुजाहिदीन का महान प्रतिफल और यह कि अल्लाह ने उनके लिए जन्नत में उच्च घरों का वादा किया है, जहाँ दूसरे नहीं पहुँच सकते।

• أصحاب الأعذار يسقط عنهم فرض الجهاد مع ما لهم من أجر إن حسنت نيتهم.
• ऐसे लोग जो किसी उचित कारण की बिना पर जिहाद में शामिल नहीं हो सकते, उन पर जिहाद अनिवार्य नहीं रह जाता। साथ ही यदि नीयत सही हो, तो उन्हें नेकी भी मिलती है।

• فضل الهجرة إلى بلاد الإسلام، ووجوبها على القادر إن كان يخشى على دينه في بلده.
• इस्लाम की नगरी की ओर हिजरत की विशेषता और हिजरत करने में सक्षम व्यक्ति पर उसकी अनिवार्यता, यदि वह अपने देश में अपने धर्म के प्रति डरता है।

• مشروعية قصر الصلاة في حال السفر.
• यात्रा की स्थिति में नमाज़ को क़स्र करने की वैधता।

وَاِذَا كُنْتَ فِیْهِمْ فَاَقَمْتَ لَهُمُ الصَّلٰوةَ فَلْتَقُمْ طَآىِٕفَةٌ مِّنْهُمْ مَّعَكَ وَلْیَاْخُذُوْۤا اَسْلِحَتَهُمْ ۫— فَاِذَا سَجَدُوْا فَلْیَكُوْنُوْا مِنْ وَّرَآىِٕكُمْ ۪— وَلْتَاْتِ طَآىِٕفَةٌ اُخْرٰی لَمْ یُصَلُّوْا فَلْیُصَلُّوْا مَعَكَ وَلْیَاْخُذُوْا حِذْرَهُمْ وَاَسْلِحَتَهُمْ ۚ— وَدَّ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا لَوْ تَغْفُلُوْنَ عَنْ اَسْلِحَتِكُمْ وَاَمْتِعَتِكُمْ فَیَمِیْلُوْنَ عَلَیْكُمْ مَّیْلَةً وَّاحِدَةً ؕ— وَلَا جُنَاحَ عَلَیْكُمْ اِنْ كَانَ بِكُمْ اَذًی مِّنْ مَّطَرٍ اَوْ كُنْتُمْ مَّرْضٰۤی اَنْ تَضَعُوْۤا اَسْلِحَتَكُمْ ۚ— وَخُذُوْا حِذْرَكُمْ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ اَعَدَّ لِلْكٰفِرِیْنَ عَذَابًا مُّهِیْنًا ۟
जब - ऐ रसूल! - आप दुश्मन से युद्ध के समय सेना के साथ रहें और लोगों को नमाज़ पढ़ाना चाहें, तो सेना को दो समूहों में विभाजित कर दें : एक समूह आपके साथ नमाज़ पढ़े और नमाज़ के समय हथियार अपने साथ रखे। दूसरा समूह तुम्हारी पहरेदारी करे। जब पहला समूह इमाम के साथ एक रक्अत पढ़ ले, तो अकेले नमाज़ पूरी कर ले। जब वह नमाज़ पढ़ चुके तो तुम्हारे पीछे दुश्मन की ओर खड़ा हो जाए और वह समूह आए जो पहरेदारी में लगे होने के कारण नमाज़ नहीं पढ़ सका था और इमाम के साथ एक रक्अत नमाज़ पढ़े। जब इमाम सलाम फेर दे, तो वह अपनी बाक़ी नमाज़ पूरी करे और दुश्मन से बचाव के लिए अपने हथियार उठाए रखे। क्योंकि काफ़िर चाहते हैं कि नमाज़ के समय तुम अपने हथियारों और सामानों से बेख़बर हो जाओ और वे तुमपर यकायक धावा बोल दें और तुम्हारी असावधानी की हालत में तुम्हें पकड़ लें। यदि वर्षा के कारण तुम्हें कष्ट हो अथवा तुम बीमार आदि हो, तो तुमपर कोई गुनाह नहीं है कि तुम अपने हथियार रख दो और उसे उठाए न रहो, परंतु जहाँ तक हो सके अपने दुश्मन से सावधान रहो। निःसंदेह अल्लाह ने काफ़िरों के लिए अपमानकारी यातना तैयार कर रखी है।
Faccirooji aarabeeji:
فَاِذَا قَضَیْتُمُ الصَّلٰوةَ فَاذْكُرُوا اللّٰهَ قِیٰمًا وَّقُعُوْدًا وَّعَلٰی جُنُوْبِكُمْ ۚ— فَاِذَا اطْمَاْنَنْتُمْ فَاَقِیْمُوا الصَّلٰوةَ ۚ— اِنَّ الصَّلٰوةَ كَانَتْ عَلَی الْمُؤْمِنِیْنَ كِتٰبًا مَّوْقُوْتًا ۟
जब - ऐ मोमिनो - तुम नमाज़ अदा कर चुको, तो खड़े, बैठे और लेटे अपनी सभी परिस्थितियों में तस्बीह, तहमीद और तहलील के साथ अल्लाह को याद करो। फिर जब तुम्हारा भय दूर हो जाए और तुम निश्चिंत हो जाओ तो नमाज़ को उसके अर्कान, वाजिबात और मुस्तह़ब्बात के साथ पूर्ण रूप से अदा करो, जैसा कि तुम्हें आदेश दिया गया है। निःसंदेह नमाज़ मोमिनों पर एक नियत समय के साथ फ़र्ज की गई है। उसे बिना किसी कारण के उसके निर्धारित समय से विलंब करना जायज़ नहीं है। यह किसी स्थान पर निवास करने की स्थिति में है, लेकिन यात्रा की हालत में तुम्हारे लिए दो नमाजों को एक साथ पढ़ना तथा चार रक्अत वाली नमाज़ को क़स्र करके दो रक्अत पढ़ना जायज़ है।
Faccirooji aarabeeji:
وَلَا تَهِنُوْا فِی ابْتِغَآءِ الْقَوْمِ ؕ— اِنْ تَكُوْنُوْا تَاْلَمُوْنَ فَاِنَّهُمْ یَاْلَمُوْنَ كَمَا تَاْلَمُوْنَ ۚ— وَتَرْجُوْنَ مِنَ اللّٰهِ مَا لَا یَرْجُوْنَ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ عَلِیْمًا حَكِیْمًا ۟۠
- ऐ मोमिनो - अपने काफ़िर दुश्मनों का पीछा करने में कमज़ोर और आलसी न बनो। यदि तुम्हें अपने आपको पहुँचने वाले क़त्ल और आघात से तकलीफ़ महसूस होती है, तो इसी तरह वे भी तकलीफ़ महसूस करते हैं जिस तरह तुम तकलीफ़ महसूस करते हो, तथा उन्हें भी कष्ट पहुँचता है जिस तरह तुमहें कष्ट पहुँचता है। अतः उनका धैर्य तुम्हारे धैर्य से बढ़कर नहीं होना चाहिए। क्योंकि तुम्हें अल्लाह से जिस सवाब, सहायता और समर्थन की आशा है, उसकी आशा उन्हें नहीं है। और अल्लाह अपने बंदों की स्थितियों से अवगत, तथा अपने प्रबंधन और विधान-रचना में हिकमत वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
اِنَّاۤ اَنْزَلْنَاۤ اِلَیْكَ الْكِتٰبَ بِالْحَقِّ لِتَحْكُمَ بَیْنَ النَّاسِ بِمَاۤ اَرٰىكَ اللّٰهُ ؕ— وَلَا تَكُنْ لِّلْخَآىِٕنِیْنَ خَصِیْمًا ۟ۙ
हमने - ऐ रसूल - आपकी ओर सत्य पर आधारित क़ुरआन उतारा है; ताकि आप लोगों के बीच उनके सभी मामलों में उसके अनुसार फ़ैसला करें, जो अल्लाह ने आपको सिखाया और आपके दिल में डाला है, न कि अपने मन की आकांक्षा और राय के अनुसार। तथा आप स्वयं के साथ विश्वासघात करने वालों और अमानतों में ख़यानत करने वालों के तरफ़दार न बनें कि उनसे अधिकार माँगने वालों से उनका बचाव करें।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• استحباب صلاة الخوف وبيان أحكامها وصفتها.
• ख़ौफ़ की नमाज़ क मुसतह़ब होना और उसके प्रावधानों और विधि का वर्णन।

• الأمر بالأخذ بالأسباب في كل الأحوال، وأن المؤمن لا يعذر في تركها حتى لو كان في عبادة.
• सभी परिस्थितियों में कारणों को अपनाने का आदेश और यह कि मोमिन को किसी भी परिस्थिति में उन्हें छोड़ने की अनुमति नहीं है, यहाँ तक कि इबादत में भी नहीं।

• مشروعية دوام ذكر الله تعالى على كل حال، فهو حياة القلوب وسبب طمأنينتها.
• हर हाल में अल्लाह का ज़िक्र करने की वैधता। क्योंकि यह दिलों का जीवन और उनके संतोष का कारण है।

• النهي عن الضعف والكسل في حال قتال العدو، والأمر بالصبر على قتاله.
• दुश्मन से युद्ध करते समय कमज़ोरी और आलस्य से मनाही करना और उससे लड़ने के लिए धैर्य का आदेश देना।

وَّاسْتَغْفِرِ اللّٰهَ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ كَانَ غَفُوْرًا رَّحِیْمًا ۟ۚ
अल्लाह से क्षमा और माफ़ी की याचना करें। निःसंदेह अल्लाह अपने तौबा करने वाले बंदे को क्षमा करने वाला और उसपर दया करने वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
وَلَا تُجَادِلْ عَنِ الَّذِیْنَ یَخْتَانُوْنَ اَنْفُسَهُمْ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ لَا یُحِبُّ مَنْ كَانَ خَوَّانًا اَثِیْمًا ۟ۚۙ
आप किसी ऐसे व्यक्ति का पक्ष न लें, जो विश्वासघात करता है और अपने विश्वासघात को छिपाने में अतिशयोक्ति करता है। और अल्लाह ऐसे व्यक्ति को पसंद नहीं करता जो बहुत विश्वासघात और पाप करने वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
یَّسْتَخْفُوْنَ مِنَ النَّاسِ وَلَا یَسْتَخْفُوْنَ مِنَ اللّٰهِ وَهُوَ مَعَهُمْ اِذْ یُبَیِّتُوْنَ مَا لَا یَرْضٰی مِنَ الْقَوْلِ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ بِمَا یَعْمَلُوْنَ مُحِیْطًا ۟
वे गुनाह करते समय भय और शर्म के कारण लोगों से छिपते हैं, परंतु अल्लाह से नहीं छिपते। हालाँकि अल्लाह अपने ज्ञान के द्वारा उनके साथ होता है। उससे उस समय उनकी कोई बात छिपी नहीं होती है, जब वे गुप्त रूप से ऐसी बात की योजना बनाते हैं, जो अल्लाह को पसंद नहीं है। जैसे कि दोषी का बचाव करना और निर्दोष पर आरोप लगाना। तथा वे जो कुछ गुप्त रूप से और सार्वजनिक रूप से करते हैं, अल्लाह उससे अच्छी तरह अवगत है। उससे कुछ भी छिपा नहीं है और वह उन्हें उनके कार्यों का बदला देगा।
Faccirooji aarabeeji:
هٰۤاَنْتُمْ هٰۤؤُلَآءِ جَدَلْتُمْ عَنْهُمْ فِی الْحَیٰوةِ الدُّنْیَا ۫— فَمَنْ یُّجَادِلُ اللّٰهَ عَنْهُمْ یَوْمَ الْقِیٰمَةِ اَمْ مَّنْ یَّكُوْنُ عَلَیْهِمْ وَكِیْلًا ۟
सुनो, - ऐ इन अपराध करने वालों की परवाह करने वालो!- तुमने दुनिया के जीवन में इनकी ओर से झगड़ लिया ताकि तुम इनकी बेगुनाही साबित कर सको और उन्हें सज़ा से बचा सको। परंतु क़यामत के दिन इनकी ओर से अल्लाह के साथ कौन बहस करेगा, जबकि वह इनकी स्थिति की सच्चाई को जानता है?! तथा उस दिन इनका वकील कौन होगा?! इसमें कोई शक नहीं कि कोई भी ऐसा नहीं कर सकता।
Faccirooji aarabeeji:
وَمَنْ یَّعْمَلْ سُوْٓءًا اَوْ یَظْلِمْ نَفْسَهٗ ثُمَّ یَسْتَغْفِرِ اللّٰهَ یَجِدِ اللّٰهَ غَفُوْرًا رَّحِیْمًا ۟
जो व्यक्ति कोई बुरा काम करे अथवा पाप करके अपने ऊपर अत्याचार करे, फिर वह अपने गुनाह को स्वीकारते हुए, उसपर पछतावा करते हुए और उसे छोड़ते हुए अल्लाह से क्षमा याचना करे, तो वह अल्लाह को हमेशा उसके गुनाहों को क्षमा करने वाला, उसपर दयावान पाएगा।
Faccirooji aarabeeji:
وَمَنْ یَّكْسِبْ اِثْمًا فَاِنَّمَا یَكْسِبُهٗ عَلٰی نَفْسِهٖ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ عَلِیْمًا حَكِیْمًا ۟
जो व्यक्ति कोई छोटा या बड़ा पाप करता है, तो उसकी सज़ा अकेले उसी पर है, उसके अलावा किसी और पर नहीं। तथा अल्लाह बंदों के कृत्यों को जानने वाला, अपने प्रबंधन और विधान-रचना में हिकमत वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
وَمَنْ یَّكْسِبْ خَطِیْٓئَةً اَوْ اِثْمًا ثُمَّ یَرْمِ بِهٖ بَرِیْٓـًٔا فَقَدِ احْتَمَلَ بُهْتَانًا وَّاِثْمًا مُّبِیْنًا ۟۠
जो व्यक्ति बिना सोचे समझे कोई ग़लती कर बैठे अथवा जानबूझकर कोई पाप कर ले, फिर उसका आरोप किसी ऐसे आदमी पर मढ़ दे जो उस पाप से निर्दोष है, तो उसने ऐसा करके गंभीर झूठ और खुले गुनाह का बोझ लाद लिया।
Faccirooji aarabeeji:
وَلَوْلَا فَضْلُ اللّٰهِ عَلَیْكَ وَرَحْمَتُهٗ لَهَمَّتْ طَّآىِٕفَةٌ مِّنْهُمْ اَنْ یُّضِلُّوْكَ ؕ— وَمَا یُضِلُّوْنَ اِلَّاۤ اَنْفُسَهُمْ وَمَا یَضُرُّوْنَكَ مِنْ شَیْءٍ ؕ— وَاَنْزَلَ اللّٰهُ عَلَیْكَ الْكِتٰبَ وَالْحِكْمَةَ وَعَلَّمَكَ مَا لَمْ تَكُنْ تَعْلَمُ ؕ— وَكَانَ فَضْلُ اللّٰهِ عَلَیْكَ عَظِیْمًا ۟
और (ऐ रसूल!) यदि अल्लाह ने अपने अनुग्रह से आपको बचाया न होता, तो अपने साथ विश्वासघात करने वाले इन लोगों के एक समूह ने आपको सत्य से गुमराह करने का निर्णय कर लिया था, ताकि आप न्याय के बिना फ़ैसला करें। हालाँकि वास्तव में वे केवल अपने आपको गुमराह कर रहे हैं। क्योंकि उनके गुमराह करने के प्रयास का परिणाम उन्हीं को भुगतना पड़ेगा। और अल्लाह के आपको संरक्षण प्रदान करने के कारण वे आपको नुकसान नहीं पहुँचा सकते हैं। अल्लाह ने आप पर क़ुरआन एवं सुन्नत उतारी है और आपको हिदायत एवं प्रकाश का वह ज्ञान प्रदान किया है, जो आप उससे पहले नहीं जानते थे। तथा नुबुव्वत (ईश्दूतत्व) और संरक्षण द्वारा आपपर अल्लाह का अनुग्रह बहुत बड़ा था।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• النهي عن المدافعة والمخاصمة عن المبطلين؛ لأن ذلك من التعاون على الإثم والعدوان.
• झूठ के अनुयायियों की तरफ़दारी और उनका बचाव करने की मनाही; क्योंकि यह पाप और अतिक्रमण में सहयोग है।

• ينبغي للمؤمن الحق أن يكون خوفه من الله وتعظيمه والحياء منه فوق كل أحد من الناس.
• सच्चे मोमिन को चाहिए कि उसके दिल में अल्लाह का भय, उसका सम्मान और उससे हया (शर्म) समस्त लोगों से बढ़कर हो।

• سعة رحمة الله ومغفرته لمن ظلم نفسه، مهما كان ظلمه إذا صدق في توبته، ورجع عن ذنبه.
• अपने ऊपर अत्याचार करने वाले का अत्याचार चाहे जितना बड़ा हो, यदि वह सच्चे दिल से तौबा कर ले और गुनाह से दूरी बना ले, तो उसके लिए अल्लाह की दया और क्षमा अपार है।

• التحذير من اتهام البريء وقذفه بما لم يكن منه؛ وأنَّ فاعل ذلك قد وقع في أشد الكذب والإثم.
• निर्दोष पर आरोप लगाने और जो उसने नहीं किया उसके साथ उसको लांछित करने के खिलाफ चेतावनी; तथा यह कि ऐसा करने वाला सख़्त झूठ और गुनाह में पड़ जाता है।

لَا خَیْرَ فِیْ كَثِیْرٍ مِّنْ نَّجْوٰىهُمْ اِلَّا مَنْ اَمَرَ بِصَدَقَةٍ اَوْ مَعْرُوْفٍ اَوْ اِصْلَاحٍ بَیْنَ النَّاسِ ؕ— وَمَنْ یَّفْعَلْ ذٰلِكَ ابْتِغَآءَ مَرْضَاتِ اللّٰهِ فَسَوْفَ نُؤْتِیْهِ اَجْرًا عَظِیْمًا ۟
बहुत-सी ऐसी बातें जो लोग छिपाकर करते हैं,उनमें कोई भलाई नहीं है और न उनसे कोई लाभ मिलता है। हाँ, अगर उनकी बात में दान का या किसी ऐसी बात (नेकी) का आदेश हो जो शरीयत द्वारा आई हो और बुद्धि ने उसकी पुष्टि की हो, या दो झगड़ने वालों के बीच सुलह-सफाई का आह्वान हो (तो यह भली बात है)। तथा जो व्यक्ति अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए ऐसा करेगा, हम जल्द ही उसे बहुत बड़ा सवाब प्रदान करेंगे।
Faccirooji aarabeeji:
وَمَنْ یُّشَاقِقِ الرَّسُوْلَ مِنْ بَعْدِ مَا تَبَیَّنَ لَهُ الْهُدٰی وَیَتَّبِعْ غَیْرَ سَبِیْلِ الْمُؤْمِنِیْنَ نُوَلِّهٖ مَا تَوَلّٰی وَنُصْلِهٖ جَهَنَّمَ ؕ— وَسَآءَتْ مَصِیْرًا ۟۠
जो अपने सामने सत्य स्पष्ट हो जाने के बावजूद रसूल से दुश्मनी करेगा, उनके लाए हुए धर्म का विरोध करेगा और मोमिनों के मार्ग को छोड़कर दूसरे मार्ग पर चलेगा, हम उसे उसके चुने हुए मार्ग पर छोड़ देंगे। उसके जानबूझकर सत्य से मुँह फेरने के कारण हम उसे सत्य मार्ग की तौफ़ीक़ नहीं देंगे और उसे जहन्नम की आग में दाख़िल करेंगे, जहाँ वह उसके ताप को झेलेगा। यह उसमें रहने वालों का बुरा ठिकाना है।
Faccirooji aarabeeji:
اِنَّ اللّٰهَ لَا یَغْفِرُ اَنْ یُّشْرَكَ بِهٖ وَیَغْفِرُ مَا دُوْنَ ذٰلِكَ لِمَنْ یَّشَآءُ ؕ— وَمَنْ یُّشْرِكْ بِاللّٰهِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلٰلًا بَعِیْدًا ۟
निःसंदेह अल्लाह इस बात को क्षमा नहीं करेगा कि किसी को उसका साझी बनाया जाए, बल्कि साझी बनाने वाले को हमेशा के लिए जहन्नम में डाल देगा। लेकिन शिर्क से कमतर गुनाहों को जिसके लिए चाहेगा अपनी दया एवं कृपा से माफ़ कर देगा। जो किसी को अल्लाह का साझी बनाता है, वह निश्चय ही सत्य मार्ग से भटक गया और उससे बहुत दूर हो गया; क्योंकि उसने सृष्टि और सृष्टिकर्ता को बराबर बना दिया।
Faccirooji aarabeeji:
اِنْ یَّدْعُوْنَ مِنْ دُوْنِهٖۤ اِلَّاۤ اِنٰثًا ۚ— وَاِنْ یَّدْعُوْنَ اِلَّا شَیْطٰنًا مَّرِیْدًا ۟ۙ
ये मुश्रिक (बहुदेववादी) अल्लाह के साथ जिनकी पूजा करते और पुकारते हैं, वे केवल महिलाओं के नाम की मूर्तियाँ हैं, जैसे कि लात और उज़्ज़ा,जो न लाभ पहुँचा सकती हैं, न हानि। वास्तव में, वे केवल एक ऐसे शैतान की पूजा करते हैं जो अल्लाह की आज्ञाकारिता से निकला हुआ है और उसमें कोई अच्छाई नहीं है; क्योंकि उसी ने उन्हें मूर्तियों की पूजा करने का आदेश दिया है।
Faccirooji aarabeeji:
لَّعَنَهُ اللّٰهُ ۘ— وَقَالَ لَاَتَّخِذَنَّ مِنْ عِبَادِكَ نَصِیْبًا مَّفْرُوْضًا ۟ۙ
इसलिए, अल्लाह ने उसे अपनी दया से निष्कासित कर दिया। इस शैतान ने क़सम खाकर अपने पालनहार से कहा था : मैं अवश्य तेरे बंदों में से एक ज्ञात हिस्सा अपने साथ कर लूँगा, जिन्हें सत्य से बहकाऊँगा।
Faccirooji aarabeeji:
وَّلَاُضِلَّنَّهُمْ وَلَاُمَنِّیَنَّهُمْ وَلَاٰمُرَنَّهُمْ فَلَیُبَتِّكُنَّ اٰذَانَ الْاَنْعَامِ وَلَاٰمُرَنَّهُمْ فَلَیُغَیِّرُنَّ خَلْقَ اللّٰهِ ؕ— وَمَنْ یَّتَّخِذِ الشَّیْطٰنَ وَلِیًّا مِّنْ دُوْنِ اللّٰهِ فَقَدْ خَسِرَ خُسْرَانًا مُّبِیْنًا ۟ؕ
मैं उन्हें ज़रूर तेरे सीधे मार्ग से रोकूँगा, उन्हें अवश्य उनकी गुमराही को सजाने वाले झूठे वादों के साथ उम्मीदें दिलाऊँगा। अल्लाह के हलाल किए हुए जानवरों को हराम करने के लिए, उन्हें जानवरों के कान काटने का आदेश दूँगा। तथा उन्हें अल्लाह की रचना और उसकी प्रकृति को बदलने के लिए भी ज़रूर आदेश दूँगा। तथा जो शैतान को अपना सहायक व दोस्त बनाकर, उससे दोस्ती निभाता और उसकी आज्ञा का पालन करता है, तो वह धिक्कारित शैतान से वफादारी करके एक स्पष्ट नुक़सान में पड़ गया।
Faccirooji aarabeeji:
یَعِدُهُمْ وَیُمَنِّیْهِمْ ؕ— وَمَا یَعِدُهُمُ الشَّیْطٰنُ اِلَّا غُرُوْرًا ۟
शैतान उनसे झूठे वादे करता है और उन्हें झूठी उम्मीदें दिलाता है। हालाँकि, वास्तव में, वह उनसे झूठा वादा करता है, जिसकी कोई सच्चाई नहीं होती है।
Faccirooji aarabeeji:
اُولٰٓىِٕكَ مَاْوٰىهُمْ جَهَنَّمُ ؗ— وَلَا یَجِدُوْنَ عَنْهَا مَحِیْصًا ۟
शैतान के नक्शेकदम और उसकी सिखाई हुई बातों का पालन करने वाले लोगों का ठिकाना जहन्नम की आग है, जिससे भाग निकलने का कोई स्थान नहीं पाएँगे जहाँ वे पनाह ले सकें।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• أكثر تناجي الناس لا خير فيه، بل ربما كان فيه وزر، وقليل من كلامهم فيما بينهم يتضمن خيرًا ومعروفًا.
• लोगों की अकसर कानाफूसियों में कोई भलाई नहीं होती, बल्कि उसमें गुनाह भी हो सकता है। उनकी आपस की बहुत कम ही बात-चीत में कोई भलाई और अच्छाई होती है।

• معاندة الرسول صلى الله عليه وسلم ومخالفة سبيل المؤمنين نهايتها البعد عن الله ودخول النار.
• अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से दुश्मनी और मोमिनों के रास्ते का विरोध करने का अंत, अल्लाह से दूर होना और जहन्नम में प्रवेश करना है।

• كل الذنوب تحت مشيئة الله، فقد يُغفر لصاحبها، إلا الشرك، فلا يغفره الله أبدًا، إذا لم يتب صاحبه ومات عليه.
• शिर्क (बहुदेववाद) को छोड़कर, सभी पाप अल्लाह की इच्छा के अधीन हैं, जिनके करने वाले को क्षमा किया जा सकता है। लेकिन शिर्क को अल्लाह कभी माफ़ नहीं करेगा, यदि शिर्क करने वाला पश्चाताप नहीं करता है और उसी पर मर जाता है।

• غاية الشيطان صرف الناس عن عبادة الله تعالى، ومن أعظم وسائله تزيين الباطل بالأماني الغرارة والوعود الكاذبة.
• शैतान का लक्ष्य लोगों को सर्वशक्तिमान अल्लाह की उपासना करने से विचलित करना है और उसके सबसे महान साधनों में से एक असत्य को छलपूर्ण आकांक्षाओं और झूठे वादों के द्वारा सुसज्जित करना है।

وَالَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ سَنُدْخِلُهُمْ جَنّٰتٍ تَجْرِیْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِیْنَ فِیْهَاۤ اَبَدًا ؕ— وَعْدَ اللّٰهِ حَقًّا ؕ— وَمَنْ اَصْدَقُ مِنَ اللّٰهِ قِیْلًا ۟
जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और उससे क़रीब करने वाले अच्छे कार्य किए, हम उन्हें ऐसी जन्नतों में दाख़िल करेंगे, जिनके महलों के नीचे से नहरें बहती है। वे उनमें हमेशा के लिए रहेंगे। यह अल्लाह का वचन है और उसका वचन सच्चा है। क्योंकि वह वचन को नहीं तोड़ता है और अल्लाह से बढ़कर वचन में सच्चा कोई नहीं।
Faccirooji aarabeeji:
لَیْسَ بِاَمَانِیِّكُمْ وَلَاۤ اَمَانِیِّ اَهْلِ الْكِتٰبِ ؕ— مَنْ یَّعْمَلْ سُوْٓءًا یُّجْزَ بِهٖ ۙ— وَلَا یَجِدْ لَهٗ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ وَلِیًّا وَّلَا نَصِیْرًا ۟
मोक्ष और सफलता का मामला - ऐ मुसलमानो! - तुम्हारी कामनाओं पर या अह्ले किताब की कामनाओं पर निर्भर नहीं है। बल्कि, यह मामला काम से जुड़ा है। इसलिए तुममें से जो भी बुरा काम करेगा, क़यामत के दिन उसका बदला पाएगा। उसे अल्लाह के सिवा कोई संरक्षक नहीं मिलेगा, जो उसे लाभ पहुँचा सके और न उसे कोई सहायक मिलेगा, जो उससे नुक़सान को टाल सके।
Faccirooji aarabeeji:
وَمَنْ یَّعْمَلْ مِنَ الصّٰلِحٰتِ مِنْ ذَكَرٍ اَوْ اُ وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَاُولٰٓىِٕكَ یَدْخُلُوْنَ الْجَنَّةَ وَلَا یُظْلَمُوْنَ نَقِیْرًا ۟
जो भी अच्छे कार्य करता है, चाहे नर हो या नारी और वह अल्लाह पर सच्चा ईमान भी रखने वाला है, तो ऐसे लोग जिन्होंने ईमान के साथ सत्कर्म भी किया, जन्नत में प्रवेश करेंगे। उनके कार्यों के प्रतिफल में कुछ भी कमी नहीं की जाएगी, भले ही वह खजूर की गुठली के ऊपरी भाग के गड्ढे जितना कम क्यों न हो।
Faccirooji aarabeeji:
وَمَنْ اَحْسَنُ دِیْنًا مِّمَّنْ اَسْلَمَ وَجْهَهٗ لِلّٰهِ وَهُوَ مُحْسِنٌ وَّاتَّبَعَ مِلَّةَ اِبْرٰهِیْمَ حَنِیْفًا ؕ— وَاتَّخَذَ اللّٰهُ اِبْرٰهِیْمَ خَلِیْلًا ۟
उस व्यक्ति से बेहतर धर्म किसी का नहीं है, जो बाहरी और आंतरिक रूप से अल्लाह के प्रति समर्पित हो जाए, अपनी नीयत को उसके लिए विशुद्ध कर ले, उसकी शरीयत का पालनकर अपने कार्य को अच्छा कर ले और शिर्क एवं कुफ़्र से कटकर तौहीद और ईमान की ओर एकाग्र होकर, इबराहीम अलैहिसस्सलाम के धर्म का अनुसरण करे, जो मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के धर्म का मूल है। अल्लाह ने अपने नबी इबराहीम अलैहिस्सलाम को सारे लोगों के बीच पूर्ण प्रेम के लिए चुन लिया है।
Faccirooji aarabeeji:
وَلِلّٰهِ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَمَا فِی الْاَرْضِ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ بِكُلِّ شَیْءٍ مُّحِیْطًا ۟۠
आसमानों और ज़मीन की सारी चीज़ों का राज्य अकेले अल्लाह का है और अल्लाह अपनी सृष्टि की हर चीज़ को अपने ज्ञान, शक्ति और प्रबंधन के साथ घेरे हुए है।
Faccirooji aarabeeji:
وَیَسْتَفْتُوْنَكَ فِی النِّسَآءِ ؕ— قُلِ اللّٰهُ یُفْتِیْكُمْ فِیْهِنَّ ۙ— وَمَا یُتْلٰی عَلَیْكُمْ فِی الْكِتٰبِ فِیْ یَتٰمَی النِّسَآءِ الّٰتِیْ لَا تُؤْتُوْنَهُنَّ مَا كُتِبَ لَهُنَّ وَتَرْغَبُوْنَ اَنْ تَنْكِحُوْهُنَّ وَالْمُسْتَضْعَفِیْنَ مِنَ الْوِلْدَانِ ۙ— وَاَنْ تَقُوْمُوْا لِلْیَتٰمٰی بِالْقِسْطِ ؕ— وَمَا تَفْعَلُوْا مِنْ خَیْرٍ فَاِنَّ اللّٰهَ كَانَ بِهٖ عَلِیْمًا ۟
- ऐ रसूल - लोग आपसे स्त्रियों के मामले में तथा उनके अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में पूछते हैं। आप उनसे कह दें : अल्लाह तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर देता है और तुम्हारे लिए कुरआन की वह आयतें भी बयान करता हैं, जो उन अनाथ स्त्रियों के विषय में तुम्हें पढ़कर सुनाई जाती हैं जो तुम्हारी अभिभावकता के अंतर्गत होती हैं और तुम उन्हें अल्लाह की ओर से उनके लिए निर्धारित किए गए महर या विरासत से वंचित रखते हो। तुम स्वयं उनसे शादी नहीं करना चाहते और उनके धन के लालच में उन्हें शादी करने से भी रोकते हो। वह तुम्हारे लिए कमज़ोर बच्चों के अधिकारों को भी स्पष्ट करता है कि उन्हें विरासत में उनका अधिकार दो और उनके धन पर क़ब्ज़ा जमाकर उन पर अत्याचार न करो। तथा तुम्हारे लिए यह दायित्व भी बयान करता है कि अनाथों के मामलों का न्याय के साथ इस तरह प्रबंधन करो, जिससे दुनिया एवं आख़िरत में उनका भला हो। तुम अनाथों और अन्य लोगों के लिए जो भी अच्छा करोगे, अल्लाह उससे अवगत है और तुम्हें उसका बदला देगा।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• ما عند الله من الثواب لا يُنال بمجرد الأماني والدعاوى، بل لا بد من الإيمان والعمل الصالح.
• अल्लाह के पास जो प्रतिफल है, उसे मात्र कामनाओं और दावों के माध्यम से प्राप्त नहीं किया जा सकता, बल्कि उसके लिए ईमान और अच्छे कार्य ज़रूरी हैं।

• الجزاء من جنس العمل، فمن يعمل سوءًا يُجْز به، ومن يعمل خيرًا يُجْز بأحسن منه.
• जैसी करनी वैसी भरनी; जैसा काम वैसा बदला। अतः जो बुरा कार्य करेगा, उसे बुरा बदला मिलेगा और जो अच्छा कार्य करेगा, उसे उससे अच्छा बदला मिलेगा।

• الإخلاص والاتباع هما مقياس قبول العمل عند الله تعالى.
• इख़्लास और इत्तिबा (अर्थात किसी कार्य को विशुद्ध रूप से अल्लाह के लिए और उसमें नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का अनुसरण), अल्लाह के यहाँ किसी कार्य की स्वीकृति के मापदण्ड हैं।

• عَظّمَ الإسلام حقوق الفئات الضعيفة من النساء والصغار، فحرم الاعتداء عليهم، وأوجب رعاية مصالحهم في ضوء ما شرع.
• अल्लाह ने महिलाओं और बच्चों जैसे कमज़ोर वर्गों के अधिकारों को विशेष महत्व देते हुए, उनपर अतिक्रमण को हराम ठहराया है और अपनी शरीयत की रोशनी में उनके हितों की देखभाल करना अनिवार्य किया है।

وَاِنِ امْرَاَةٌ خَافَتْ مِنْ بَعْلِهَا نُشُوْزًا اَوْ اِعْرَاضًا فَلَا جُنَاحَ عَلَیْهِمَاۤ اَنْ یُّصْلِحَا بَیْنَهُمَا صُلْحًا ؕ— وَالصُّلْحُ خَیْرٌ ؕ— وَاُحْضِرَتِ الْاَنْفُسُ الشُّحَّ ؕ— وَاِنْ تُحْسِنُوْا وَتَتَّقُوْا فَاِنَّ اللّٰهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُوْنَ خَبِیْرًا ۟
यदि किसी स्त्री को अपने पति से इस बात का भय हो कि वह उसकी उपेक्षा कर रहा है और उसमें रुचि नहीं ले रहा है, तो उन दोनों पर आपस में समझौता कर लेने में कोई गुनाह नहीं है, इस प्रकार कि वह पति पर अपने कुछ अनिवार्य अधिकारों जैसे- भरण-पोषण एवं रात गुज़ारने की बारी के अधिकार, को छोड़ दे। यहाँ सुलह करना उन दोनों के लिए तलाक़ से बेहतर है। हालाँकि लोभ और कंजूसी मानव स्वभाव में शामिल हैं। इसलिए वह अपने अधिकारों को छोड़ना नहीं चाहती है। ऐसे में पति-पत्नी को इस स्वभाव का उपचार, स्वयं का उदारहृदयता और परोपकार पर प्रशिक्षण करके करना चाहिए। यदि तुम अपने सभी मामलों में उपकार का रास्ता अपनाओ और अल्लाह से, उसके आदेशों का पालन करके और उसकी मना की हुई चीज़ों का परित्याग करके, डरते रहो, तो अल्लाह तुम्हारे कर्मों से अवगत है, उससे कुछ भी छिपा नहीं है और वह तुम्हें उसका बदला देगा।
Faccirooji aarabeeji:
وَلَنْ تَسْتَطِیْعُوْۤا اَنْ تَعْدِلُوْا بَیْنَ النِّسَآءِ وَلَوْ حَرَصْتُمْ فَلَا تَمِیْلُوْا كُلَّ الْمَیْلِ فَتَذَرُوْهَا كَالْمُعَلَّقَةِ ؕ— وَاِنْ تُصْلِحُوْا وَتَتَّقُوْا فَاِنَّ اللّٰهَ كَانَ غَفُوْرًا رَّحِیْمًا ۟
- ऐ पतियो - तुम चाहते हुए भी, दिली लगाव के मामले में पत्नियों के साथ पूरी तरह से न्याय नहीं कर सकते। इसके कुछ कारण हैं, जो तुम्हारे नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं। इसलिए उस पत्नी से पूरी तरह विमुख न हो जाओ, जो तुम्हें पसंद नहीं है। फिर तुम उसे अधर में लटकी हुई की तरह छोड़ दो; न तो उसका कोई पति है, जो उसका हक़ अदा करे, और न वह बिना पति वाली है कि शादी की अपेक्षा करे। यदि तुम अपने बीच के मामलों को सुधार लो इस प्रकार कि दिल के न चाहते हुए भी अपने आपको पत्नी के अधिकारों का निर्वाहन करने के लिए बाध्य कर लो और पत्नी के मामले में अल्लाह से डरते रहो, तो अल्लाह बड़ा क्षमा करने वाला और तुम पर दयावान है।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِنْ یَّتَفَرَّقَا یُغْنِ اللّٰهُ كُلًّا مِّنْ سَعَتِهٖ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ وَاسِعًا حَكِیْمًا ۟
यदि तलाक़ या ख़ुलअ के द्वारा पति-पत्नी एक दूसरे से अलग हो जाएँ, तो अल्लाह उनमें से प्रत्येक को अपने व्यापक अनुग्रह से समृद्ध कर देगा। अल्लाह व्यापक अनुग्रह एवं दया वाला, तथा अपने प्रबंधन और तक़दीर (नियति) में हिकमत वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
وَلِلّٰهِ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَمَا فِی الْاَرْضِ ؕ— وَلَقَدْ وَصَّیْنَا الَّذِیْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ مِنْ قَبْلِكُمْ وَاِیَّاكُمْ اَنِ اتَّقُوا اللّٰهَ ؕ— وَاِنْ تَكْفُرُوْا فَاِنَّ لِلّٰهِ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَمَا فِی الْاَرْضِ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ غَنِیًّا حَمِیْدًا ۟
जो कुछ आकाशों और धरती में तथा जो कुछ उन दोनों के बीच है, उन सब का मालिक केवल अल्लाह है। हमने किताब वाले यहूदियों और ईसाइयों को आदेश दिया था और तुम्हें भी आदेश दिया है कि अल्लाह के आदेशों का पालन करो और उसकी मना की हुई चीज़ों से बचो। यदि तुम इस आदेश का इनकार करोगे, तो केवल अपने आप को नुक़सान पहुँचाओग।क्योंकि अल्लाह तुम्हारी आज्ञाकारिता से बेपरवाह है। वह तो आसमानों और ज़मीन की सारी चीज़ों का मालिक है, और वह अपनी सारी रचनाओं से बेनियाज़ और अपने सभी गुणों और कार्यों पर स्तुति के योग्य है।
Faccirooji aarabeeji:
وَلِلّٰهِ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَمَا فِی الْاَرْضِ ؕ— وَكَفٰی بِاللّٰهِ وَكِیْلًا ۟
आसमानों और ज़मीन की सारी चीज़ें केवल अल्लाह की हैं, जो आज्ञापालन के योग्य है और अल्लाह अपनी रचना के सभी मामलों का प्रभार लेने के लिए पर्याप्त है।
Faccirooji aarabeeji:
اِنْ یَّشَاْ یُذْهِبْكُمْ اَیُّهَا النَّاسُ وَیَاْتِ بِاٰخَرِیْنَ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ عَلٰی ذٰلِكَ قَدِیْرًا ۟
यदि वह चाहे, तो - ऐ लोगो - वह तुम्हें विनष्ट कर दे और तुम्हारे स्थान पर दूसरे लोगों को ले आए, जो अल्लाह की आज्ञा मानें और उसकी अवज्ञा न करें। तथा अल्लाह ऐसा करने में सक्षम है।
Faccirooji aarabeeji:
مَنْ كَانَ یُرِیْدُ ثَوَابَ الدُّنْیَا فَعِنْدَ اللّٰهِ ثَوَابُ الدُّنْیَا وَالْاٰخِرَةِ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ سَمِیْعًا بَصِیْرًا ۟۠
- ऐ लोगो! - तुममें से जो व्यक्ति अपने कार्य से केवल दुनिया का बदला चाहता है, वह जान ले कि अल्लाह के पास दुनिया और आखिरत दोनों का बदला है। इसलिए वह अल्लाह से दोनों का बदला माँगे। अल्लाह तुम्हारी बातों को सुनने वाला, तुम्हारे कार्यों को देखने वाला है और वह तुम्हें उनका बदला देगा।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• استحباب المصالحة بين الزوجين عند المنازعة، وتغليب المصلحة بالتنازل عن بعض الحقوق إدامة لعقد الزوجية.
• विवाद के समय पति-पत्नी के बीच सामंजस्य बिठाना, तथा वैवाहिक अनुबंध बनाए रखने के लिए कुछ अधिकारों को छोड़ देने के हित को प्राथमिकता देना वांछित है।

• أوجب الله تعالى العدل بين الزوجات خاصة في الأمور المادية التي هي في مقدور الأزواج، وتسامح الشرع حين يتعذر العدل في الأمور المعنوية، كالحب والميل القلبي.
• अल्लाह तआला ने पत्नियों के बीच न्याय को अनिवार्य किया है, विशेषकर भौतिक मामलों में जो पतियों के सामर्थ्य में होते हैं। लेकिन प्यार और दिल के झुकाव जैसे नैतिक मामलों में न्याय करना जब दुर्लभ हो, तो शरीयत ने उदारता से काम लिया है।

• لا حرج على الزوجين في الفراق إذا تعذرت العِشْرة بينهما.
• यदि वैवाहिक जीवन गुज़ारना संभव न हो, तो पति-पत्नी के एक-दूसरे से अलग हो जाने में कोई आपत्ति नहीं है।

• الوصية الجامعة للخلق جميعًا أولهم وآخرهم هي الأمر بتقوى الله تعالى بامتثال الأوامر واجتناب النواهي.
• पहले और बाद के सभी इनसानों के लिए व्यापक वसीयत, आदेशों का पालन करके और निषिद्ध चीज़ों से बचकर सर्वशक्तिमान अल्लाह से डरने का आदेश है।

یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا كُوْنُوْا قَوّٰمِیْنَ بِالْقِسْطِ شُهَدَآءَ لِلّٰهِ وَلَوْ عَلٰۤی اَنْفُسِكُمْ اَوِ الْوَالِدَیْنِ وَالْاَقْرَبِیْنَ ۚ— اِنْ یَّكُنْ غَنِیًّا اَوْ فَقِیْرًا فَاللّٰهُ اَوْلٰی بِهِمَا ۫— فَلَا تَتَّبِعُوا الْهَوٰۤی اَنْ تَعْدِلُوْا ۚ— وَاِنْ تَلْوٗۤا اَوْ تُعْرِضُوْا فَاِنَّ اللّٰهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُوْنَ خَبِیْرًا ۟
ऐ अल्लाह पर ईमान रखने और उसके रसूल का अनुसरण करने वालो! अपनी सभी परिस्थितियों में न्याय पर जमे रहने वाले, हर एक के साथ सच्ची गवाही देने वाले बन जाओ। भले ही इसके लिए तुम्हें अपने आपके, या अपने माता-पिता या अपने रिश्तेदारों के विरुद्ध सच्च का इक़रार करना पड़े। किसी की ग़रीबी या अमीरी तुम्हें गवाही देने या न देने के लिए बाध्य न करे। क्योंकि अल्लाह उस ग़रीब और अमीर का तुमसे अधिक हक़दार है और उनके हितों को तुमसे अधिक जानता है। इसलिए अपनी गवाही में इच्छाओं का पालन न करें ताकि ऐसा न हो कि आप उसमें सत्य से हट जाएँ। यदि तुम गवाही को गलत तरीक़े से पेश करके उसमें हेर-फेर करोगे या गवाही देने से उपेक्षा करोगे, तो जान लो कि अल्लाह तुम्हारे सभी कार्यों से अवगत है।
Faccirooji aarabeeji:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اٰمِنُوْا بِاللّٰهِ وَرَسُوْلِهٖ وَالْكِتٰبِ الَّذِیْ نَزَّلَ عَلٰی رَسُوْلِهٖ وَالْكِتٰبِ الَّذِیْۤ اَنْزَلَ مِنْ قَبْلُ ؕ— وَمَنْ یَّكْفُرْ بِاللّٰهِ وَمَلٰٓىِٕكَتِهٖ وَكُتُبِهٖ وَرُسُلِهٖ وَالْیَوْمِ الْاٰخِرِ فَقَدْ ضَلَّ ضَلٰلًا بَعِیْدًا ۟
ऐ ईमान वालो! अल्लाह और उसके रसूल पर अपने ईमान, उस कुरआन पर ईमान जिसे अल्लाह ने अपने रसूल (मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर अवतरित किया तथा उन किताबों पर अपने ईमान पर सुदृढ़ रहो जिन्हें उसने आपसे पहले रूसलूों पर अवतरित किया। जो अल्लाह, उसके फ़रिश्तों, उसकी किताबों, उसके रसूलों और क़यामत के दिन का इनकार करे, तो वह सीधे रास्ते से बहुत दूर हो गया।
Faccirooji aarabeeji:
اِنَّ الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا ثُمَّ كَفَرُوْا ثُمَّ اٰمَنُوْا ثُمَّ كَفَرُوْا ثُمَّ ازْدَادُوْا كُفْرًا لَّمْ یَكُنِ اللّٰهُ لِیَغْفِرَ لَهُمْ وَلَا لِیَهْدِیَهُمْ سَبِیْلًا ۟ؕ
जो लोग ईमान लाने के बाद बार-बार कुफ़्र करते रहे, इस प्रकार कि वे ईमान लाए, फिर उससे पलट गए, इसके बाद उन्होंने फिर से ईमान में प्रवेश किया, फिर उससे पलट गए और कुफ़्र पर जमे रहे और उसी हाल में मर गए; तो अल्लाह उनके पापों को क्षमा नहीं करेगा और न ही उन्हें उस सीधे रास्ते का मार्गदर्शन करेगा जो उस सर्वशक्तिमान तक पहुँचाने वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
بَشِّرِ الْمُنٰفِقِیْنَ بِاَنَّ لَهُمْ عَذَابًا اَلِیْمَا ۟ۙ
- ऐ रसूल! - मुनाफ़िकों को, जो ईमान का प्रदर्शन करते हैं और अपने दिलों में कुफ़्र छिपाए होते हैं, शुभ-सूचना सुना दें कि उनके लिए क़यामत के दिन अल्लाह के पास दर्दनाक यातना है।
Faccirooji aarabeeji:
١لَّذِیْنَ یَتَّخِذُوْنَ الْكٰفِرِیْنَ اَوْلِیَآءَ مِنْ دُوْنِ الْمُؤْمِنِیْنَ ؕ— اَیَبْتَغُوْنَ عِنْدَهُمُ الْعِزَّةَ فَاِنَّ الْعِزَّةَ لِلّٰهِ جَمِیْعًا ۟ؕ
इस यातना कारण यह है कि उन्होंने मोमिनों को छोड़कर काफ़िरों को अपना समर्थक और सहायक बना लिया। यह बात आश्चर्यजनक है जिसने उन्हें उनका वफादार बना दिया। क्या वे उनसे शक्ति एवं बल-प्रतिष्ठा प्राप्त करके अपना वैभव बढ़ाना चाहते हैं?! तो उन्हें याद रखना चाहिए कि सारी शक्ति एवं बल-प्रतिष्ठा का मालिक केवल अल्लाह है।
Faccirooji aarabeeji:
وَقَدْ نَزَّلَ عَلَیْكُمْ فِی الْكِتٰبِ اَنْ اِذَا سَمِعْتُمْ اٰیٰتِ اللّٰهِ یُكْفَرُ بِهَا وَیُسْتَهْزَاُ بِهَا فَلَا تَقْعُدُوْا مَعَهُمْ حَتّٰی یَخُوْضُوْا فِیْ حَدِیْثٍ غَیْرِهٖۤ ۖؗ— اِنَّكُمْ اِذًا مِّثْلُهُمْ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ جَامِعُ الْمُنٰفِقِیْنَ وَالْكٰفِرِیْنَ فِیْ جَهَنَّمَ جَمِیْعَا ۟ۙ
- ऐ मोमिनो! - अल्लाह ने तुम्हारे लिए पवित्र क़ुरआन में अवतरित किया है कि जब तुम किसी सभी में बैठो और वहाँ किसी को अल्लाह की आयतों का इनकार करते हुए और उनका मज़ाक़ उड़ाते हुए सुनो; तो उनके साथ न बैठो और वहाँ से उठकर चल दो, यहाँ तक कि वे अल्लाह की आयतों का इनकार और उनका मज़ाक़ छोड़कर कोई दूसरी बात शुरू कर दें। यदि तुमने ऐसा नहीं किया और सब कुछ सुनने के बावजूद बैठे रहे, तो उन्हीं की तरह अल्लाह के आदेश का उल्लंघन करने वाले बन जाओगे। क्योंकि तुमने वहाँ बैठकर अल्लाह की अवज्ञा की है, जिस तरह कि उन्होंने कुफ़्र करके अल्लाह की अवज्ञा की है। निःसंदेह, अल्लाह मुनाफ़िक़ों को जो ईमान को प्रदर्शित करते और कुफ़्र को गुप्त रखते हैं, क़यामत के दिन काफ़िरों के साथ जहन्नम में एकत्रित करेगा।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• وجوب العدل في القضاء بين الناس وعند أداء الشهادة، حتى لو كان الحق على النفس أو على أحد من القرابة.
• लोगों के बीच फ़ैसला करने में तथा गवाही देते समय न्याय ज़रूरी है, भले ही सच्चाई खुद के या किसी रिश्तेदार के विरुद्ध हो।

• على المؤمن أن يجتهد في فعل ما يزيد إيمانه من أعمال القلوب والجوارح، ويثبته في قلبه.
• मोमिन को दिलों और शारीरिक अंगों के ऐसे कार्यों को करने का भरपूर प्रयास करना चाहिए जो उसके ईमान में वृद्धि करते तथा उसे उसके दिल में सुदृढ़ करते हैं।

• عظم خطر المنافقين على الإسلام وأهله؛ ولهذا فقد توعدهم الله بأشد العقوبة في الآخرة.
• इस्लाम और मुसलमानों के लिए मुनाफ़िक़ों के ख़तरे की भयंकरता। यही कारण है कि अल्लाह ने उन्हें आख़िरत में सबसे कठोर दंड की धमकी दी है।

• إذا لم يستطع المؤمن الإنكار على من يتطاول على آيات الله وشرعه، فلا يجوز له الجلوس معه على هذه الحال.
• यदि मोमिन अल्लाह की आयतों और उसकी शरीयत पर आक्षेप करने वाले का खंडन न कर सके, तो उसके लिए इस स्थिति में उसके साथ बैठना जायज़ नहीं है।

١لَّذِیْنَ یَتَرَبَّصُوْنَ بِكُمْ ۚ— فَاِنْ كَانَ لَكُمْ فَتْحٌ مِّنَ اللّٰهِ قَالُوْۤا اَلَمْ نَكُنْ مَّعَكُمْ ۖؗ— وَاِنْ كَانَ لِلْكٰفِرِیْنَ نَصِیْبٌ ۙ— قَالُوْۤا اَلَمْ نَسْتَحْوِذْ عَلَیْكُمْ وَنَمْنَعْكُمْ مِّنَ الْمُؤْمِنِیْنَ ؕ— فَاللّٰهُ یَحْكُمُ بَیْنَكُمْ یَوْمَ الْقِیٰمَةِ ؕ— وَلَنْ یَّجْعَلَ اللّٰهُ لِلْكٰفِرِیْنَ عَلَی الْمُؤْمِنِیْنَ سَبِیْلًا ۟۠
जो तुम्हें पहुँचने वाली अच्छाई या बुराई की प्रतीक्षा में रहते हैं। यदि अल्लाह की ओर से तुम्हें विजय प्राप्त होता है और तुम्हें ग़नीमत का धन मिलता है, तो वे तुमसे कहते हैं : क्या हम तुम्हारे साथ नहीं थे, जिस युद्ध में तुम उपस्थित हुए हम भी उपस्थित हुए?! ताकि वे ग़नीमत से हिस्सा पा सकें। और यदि काफ़िरों को कुछ हिस्सा मिल जाए, तो उनसे कहते हैं : क्या हमने तुम्हारे मामलों का ध्यान नहीं रखा, तुम्हारी देखभाल और समर्थन नहीं किया, तथा तुम्हारी मदद करके और उनका अत्साह भंग करके, मोमिनों से तुम्हारा बचाव नहीं किया?! अतः अल्लाह तुम सब के बीच क़ियामत के दिन निर्णय कर देगा। चुनाँचे मोमिनों को जन्नत में दाख़िल करेगा और मुनाफिक़ों को जहन्नम के सबसे निचले क्षेत्र में दाख़िल करेगा। तथा अल्लाह, अपनी कृपा से, क़ियामत के दिन काफ़िरों को मोमिनों के ख़िलाफ तर्क (हुज्जत) प्रदान नहीं करेगा, बल्कि वह अंतिम परिणाम ईमान वालों ही का बनाएगा जब तक वे सच्चे ईमान वाले, शरीयत के अनुसार कार्य करने वाले होंगे।
Faccirooji aarabeeji:
اِنَّ الْمُنٰفِقِیْنَ یُخٰدِعُوْنَ اللّٰهَ وَهُوَ خَادِعُهُمْ ۚ— وَاِذَا قَامُوْۤا اِلَی الصَّلٰوةِ قَامُوْا كُسَالٰی ۙ— یُرَآءُوْنَ النَّاسَ وَلَا یَذْكُرُوْنَ اللّٰهَ اِلَّا قَلِیْلًا ۟ؗۙ
मुनाफ़िक़ लोग इस्लाम का प्रदर्शन करके और अविश्वास को गुप्त रखकर अल्लाह को धोखा देते हैं, हालाँकि अल्लाह ही उन्हें धोखे में डाल रहा है। क्योंकि उसने उनके अविश्वास से अवगत होने के बावजूद उनके खून को सुरक्षित कर दिया है और आख़िरत में उनके लिए सबसे कठोर दंड तैयार किया है। और जब वे नमाज़ के लिए खड़े होते हैं, तो आलसी होकर उसे नापसंद करते हुए खड़े होते हैं। उनका उद्देश्य लोगों को दिखाना और उनका सम्मान होता है, और वे अल्लाह के लिए निष्ठावान नहीं होते हैं तथा अल्लाह को केवल थोड़ा ही याद करते हैं जब वे मोमिनों को देखते हैं।
Faccirooji aarabeeji:
مُّذَبْذَبِیْنَ بَیْنَ ذٰلِكَ ۖۗ— لَاۤ اِلٰی هٰۤؤُلَآءِ وَلَاۤ اِلٰی هٰۤؤُلَآءِ ؕ— وَمَنْ یُّضْلِلِ اللّٰهُ فَلَنْ تَجِدَ لَهٗ سَبِیْلًا ۟
ये मुनाफ़िक़ लोग हैरानी और असमंजस में पड़े हुए हैं। चुनाँचे वे प्रत्यक्ष एवं प्रोक्ष रूप से न मुसलमानों के साथ हैं और न काफ़िरों के साथ। बल्कि वे प्रत्यक्ष रूप से मुसलमानों के साथ हैं, और प्रोक्ष रूप से काफ़िरों के साथ हैं। और जिसे अल्लाह गुमराह कर दे, तो - ऐ रसूल! - आप उसके लिए पथभ्रष्टता से मार्गदर्शन पर लाने का हरगिज़ कोई रास्ता नहीं पाएँगे।
Faccirooji aarabeeji:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا تَتَّخِذُوا الْكٰفِرِیْنَ اَوْلِیَآءَ مِنْ دُوْنِ الْمُؤْمِنِیْنَ ؕ— اَتُرِیْدُوْنَ اَنْ تَجْعَلُوْا لِلّٰهِ عَلَیْكُمْ سُلْطٰنًا مُّبِیْنًا ۟
ऐ अल्लाह पर ईमान रखने और उसके रसूल का अनुसरण करने वालो! अल्लाह के साथ कुफ़्र करनेवालों को घनिष्ठ मित्र न बनाओ कि मोमिनों को छोड़कर उनसे दोस्ती गाँठो। क्या तुम अपने इस कार्य से अल्लाह को, अपने यातना के हक़दार होने का स्पष्ट प्रमाण देना चाहते हो?
Faccirooji aarabeeji:
اِنَّ الْمُنٰفِقِیْنَ فِی الدَّرْكِ الْاَسْفَلِ مِنَ النَّارِ ۚ— وَلَنْ تَجِدَ لَهُمْ نَصِیْرًا ۟ۙ
अल्लाह तआला क़यामत के दिन मुनाफ़िक़ों को नरक के सबसे निचले स्थान में जगह देगा और तुम उनका हरगिज़ कोई सहायक नहीं पाओगे,जो उनसे यातना को हटा सके।
Faccirooji aarabeeji:
اِلَّا الَّذِیْنَ تَابُوْا وَاَصْلَحُوْا وَاعْتَصَمُوْا بِاللّٰهِ وَاَخْلَصُوْا دِیْنَهُمْ لِلّٰهِ فَاُولٰٓىِٕكَ مَعَ الْمُؤْمِنِیْنَ ؕ— وَسَوْفَ یُؤْتِ اللّٰهُ الْمُؤْمِنِیْنَ اَجْرًا عَظِیْمًا ۟
परंतु जो लोग अपने निफ़ाक़ (पाखंड) से पश्चाताप करके अल्लाह की ओर लौट आए, अपने अंतरमन को सुधार लिया, अल्लाह की प्रतिज्ञा का पालन किया और अपने कार्य को दिखावा किए बिना अल्लाह के लिए विशुद्ध कर दिया, तो इन गुणों वाले लोग दुनिया एवं आख़िरत में मोमिनों के साथ होंगे, और अल्लाह मोमिनों को बड़ा प्रतिफल प्रदान करेगा।
Faccirooji aarabeeji:
مَا یَفْعَلُ اللّٰهُ بِعَذَابِكُمْ اِنْ شَكَرْتُمْ وَاٰمَنْتُمْ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ شَاكِرًا عَلِیْمًا ۟
यदि तुम अल्लाह के आभारी बनो और उसपर ईमान रखो, तो उसे तुम्हें यातना देने की कोई ज़रूरत नहीं है। क्योंकि वह सर्वशक्तिमान बड़ा उपकारी अत्यंत दयावान है। वह तुम्हें केवल तुम्हारे गुनाहों के कारण यातना देता है। यदि तुमने अपने कार्य सुधार लिए, अल्लाह के प्रति उसकी नेमतों पर आभार प्रकट करते रहे और प्रत्यक्ष एवं प्रोक्ष रूप से उसपर ईमान लाए, तो वह तुम्हें हरगिज़ यातना नहीं देगा। अल्लाह उन लोगों का क़द्रदान (गुणग्राहक) है जिन्होंने उसकी नेमतों को स्वीकार किया, चुनाँचे वह उन्हें उसपर भरपूर बदला प्रदान करेगा। वह अपने बंदों के ईमान से अवगत है और हर एक को उसके कर्मों का बदला देगा।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• بيان صفات المنافقين، ومنها: حرصهم على حظ أنفسهم سواء كان مع المؤمنين أو مع الكافرين.
• पाखंडियों की विशेषताओं का वर्णन, जिनमें से एक यह है किः वे अपने स्वार्थ के लालायित होते हैं, चाहे विश्वासियों के साथ हो या अविश्वासियों के साथ।

• أعظم صفات المنافقين تَذَبْذُبُهم وحيرتهم واضطرابهم، فلا هم مع المؤمنين حقًّا ولا مع الكافرين.
• पाखंडी लोगों की सबसे बड़ी विशेषता उनका असमंजस, संकोच और विकलता है। वे वास्तव में न तो विश्वासियों के साथ होते हैं और न ही अविश्वासियों के साथ।

• النهي الشديد عن اتخاذ الكافرين أولياء من دون المؤمنين.
• विश्वासियों के बजाय अविश्वासियों को मित्र बनाना सख़्त मना है।

• أعظم ما يتقي به المرء عذاب الله تعالى في الآخرة هو الإيمان والعمل الصالح.
• सबसे बड़ी चीज़ जिसके द्वारा मनुष्य आख़िरत में अल्लाह तआला के अज़ाब से बच सकता है वह ईमान और अच्छा कर्म है।

لَا یُحِبُّ اللّٰهُ الْجَهْرَ بِالسُّوْٓءِ مِنَ الْقَوْلِ اِلَّا مَنْ ظُلِمَ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ سَمِیْعًا عَلِیْمًا ۟
अल्लाह बुरी बात के साथ आवाज़ ऊँची करना पसंद नहीं करता, बल्कि उसे नापसंद करता और उस पर सज़ा की धमकी देता है। परंतु जिसपर अत्याचार हुआ हो, उसे अपने उत्पीड़क के बारे में शिकायत करने, उसपर बद्-दुआ करने और उससे उसी के समान शब्दों के साथ बदला लेने के लिए, बुरी बात के साथ आवाज़ ऊँची करने की अनुमति है। लेकिन उत्पीड़ित का धैर्य से काम लेना, बुरी बात के साथ आवाज़ बुलंद करने से बेहतर है। अल्लाह तुम्हारी बातों को सुनने वाला, तुम्हारे इरादों को जानने वाला है। इसलिए बुरे शब्दों या इरादों से सावधान रहो।
Faccirooji aarabeeji:
اِنْ تُبْدُوْا خَیْرًا اَوْ تُخْفُوْهُ اَوْ تَعْفُوْا عَنْ سُوْٓءٍ فَاِنَّ اللّٰهَ كَانَ عَفُوًّا قَدِیْرًا ۟
यदि तुम कोई भली बात या भला कार्य प्रकट करो, या उसे छिपाओ, या उस व्यक्ति को क्षमा कर दो, जिसने तुमसे बुरा व्यवहार किया है; तो निःसंदेह अल्लाह बहुत माफ़ करने वाला, सर्वशक्तिमान है। इसलिए क्षमा करना तुम्हारे आचरण का हिस्सा होना चाहिए, शायद अल्लाह तुम्हें क्षमा कर दे।
Faccirooji aarabeeji:
اِنَّ الَّذِیْنَ یَكْفُرُوْنَ بِاللّٰهِ وَرُسُلِهٖ وَیُرِیْدُوْنَ اَنْ یُّفَرِّقُوْا بَیْنَ اللّٰهِ وَرُسُلِهٖ وَیَقُوْلُوْنَ نُؤْمِنُ بِبَعْضٍ وَّنَكْفُرُ بِبَعْضٍ ۙ— وَّیُرِیْدُوْنَ اَنْ یَّتَّخِذُوْا بَیْنَ ذٰلِكَ سَبِیْلًا ۙ۟
जो लोग अल्लाह के साथ कुफ़्र करते और उसके रसूलों के साथ कुफ़्र करते हैं, तथा अल्लाह और उसके रसूलों के बीच अंतर करना चाहते हैं; कि वे अल्लाह पर ईमान लाएँ, परंतु उसके रसूलों का इनकार कर दें। तथा वे कहते हैं : हम कुछ रसूलों पर विश्वास करते हैं और उनमें से कुछ पर विश्वास नहीं करते। इस प्रकार वे कुफ़्र और ईमान के बीच का रास्ता अपनाना चाहते हैं, यह भ्रम रखते हुए कि यह उन्हें बचा लेगा।
Faccirooji aarabeeji:
اُولٰٓىِٕكَ هُمُ الْكٰفِرُوْنَ حَقًّا ۚ— وَاَعْتَدْنَا لِلْكٰفِرِیْنَ عَذَابًا مُّهِیْنًا ۟
जो लोग यह रास्ता अपनाते हैं, वही सचमुच काफ़िर हैं; क्योंकि जिसने समस्त रसूलों या उनमें से कुछ का इनकार किया, उसने दरअसल अल्लाह और उसके रसूलों के साथ कुफ़्र किया। और हमने काफ़िरों के लिए क़ियामत के दिन उन्हें अपमानित करने वाली यातना तैयार कर रखी है, जो उनके अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाने से अहंकार करने की सज़ा के रूप में है।
Faccirooji aarabeeji:
وَالَّذِیْنَ اٰمَنُوْا بِاللّٰهِ وَرُسُلِهٖ وَلَمْ یُفَرِّقُوْا بَیْنَ اَحَدٍ مِّنْهُمْ اُولٰٓىِٕكَ سَوْفَ یُؤْتِیْهِمْ اُجُوْرَهُمْ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ غَفُوْرًا رَّحِیْمًا ۟۠
जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और उसे एक माना, और उसके साथ किसी को साझी नहीं ठहराया, तथा उसके सभी रसूलों पर ईमान लाए और काफ़िरों की तरह उनमें से किसी के बीच अंतर नहीं किया, बल्कि उन सभी पर ईमान लाए; यही लोग हैं जिन्हें अल्लाह उनके ईमान तथा अच्छे कर्मों का बड़ा बदला प्रदान करेगा, और अल्लाह अपने तौबा करने वाले बंदों को बहुत क्षमा करने वाला, उनपर अति दयालु है।
Faccirooji aarabeeji:
یَسْـَٔلُكَ اَهْلُ الْكِتٰبِ اَنْ تُنَزِّلَ عَلَیْهِمْ كِتٰبًا مِّنَ السَّمَآءِ فَقَدْ سَاَلُوْا مُوْسٰۤی اَكْبَرَ مِنْ ذٰلِكَ فَقَالُوْۤا اَرِنَا اللّٰهَ جَهْرَةً فَاَخَذَتْهُمُ الصّٰعِقَةُ بِظُلْمِهِمْ ۚ— ثُمَّ اتَّخَذُوا الْعِجْلَ مِنْ بَعْدِ مَا جَآءَتْهُمُ الْبَیِّنٰتُ فَعَفَوْنَا عَنْ ذٰلِكَ ۚ— وَاٰتَیْنَا مُوْسٰی سُلْطٰنًا مُّبِیْنًا ۟
(ऐ रसूल!) यहूदी आपसे माँग करते हैं कि जैसे मूसा के साथ हुआ, वैसे ही आप उनके लिए आकाश से एक ही बार में कोई पुस्तक उतार लाएँ, जो आपकी सच्चाई की निशानी हो। तो आप इसे उनकी ओर से कोई बड़ा माँग न समझें। क्योंकि उनके पूर्वजों ने मूसा अलैहिस्सलाम से इससे कहीं बड़ी माँग की थी जो इन लोगों ने आपसे की है। उन्होंने कहा था कि "हमें अल्लाह को आमने-सामने दिखा दो", चुनाँचे उन्हें सज़ा के तौर पर बेहोश कर दिया गया। फिर अल्लाह ने उन्हें पुनर्जीवित किया, तो उन्होंने अल्लाह को छोड़कर बछड़े की पूजा की, हालाँकि उनके पास अल्लाह के एकत्व और उसके एकमात्र रब (पालनहार) और पूज्य होने को दर्शाने वाली स्पष्ट निशानियाँ आ चुकी थीं। फिर हमने उन्हें क्षमा कर दिया, तथा मूसा - अलैहिस्सलाम - को उनकी जाति के विरुद्ध स्पष्ट तर्क प्रदान किया।
Faccirooji aarabeeji:
وَرَفَعْنَا فَوْقَهُمُ الطُّوْرَ بِمِیْثَاقِهِمْ وَقُلْنَا لَهُمُ ادْخُلُوا الْبَابَ سُجَّدًا وَّقُلْنَا لَهُمْ لَا تَعْدُوْا فِی السَّبْتِ وَاَخَذْنَا مِنْهُمْ مِّیْثَاقًا غَلِیْظًا ۟
तथा हमने उनसे दृढ़ वचन लेने के कारण, उसके अनुसार काम करने के लिए उन्हें डराने के लिए पहाड़ को उनके ऊपर उठा लिया, और उसे उठाने के बाद हमने उनसे कहा : बैतुल मक़दिस के द्वार में सजदा करते हुए सिर झुकाकर प्रवेश करो। परंतु वे अपनी पीठ के बल घिसटते हुए भीतर गए। तथा हमने उनसे कहा : शनिवार को शिकार करके अति न करो। लेकिन उन्होंने अति किया, सो उन्होंने शिकार किया। तथा हमने उनसे इस बात का कड़ा वचन लिया, पर उन्होंने उस वचन को तोड़ दिया जो उनसे लिया गया था।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• يجوز للمظلوم أن يتحدث عن ظلمه وظالمه لمن يُرْجى منه أن يأخذ له حقه، وإن قال ما لا يسر الظالم.
• उत्पीड़ित के लिए यह जायज़ है कि वह अपने ज़ुल्म और अपने उत्पीड़क के बारे में ऐसे व्यक्ति से बात करे जिससे उसे आशा हो कि वह उसका हक़ दिला सकता है, भले ही वह ऐसी बात कहे जो उत्पीड़क को अच्छी न लगे।

• حض المظلوم على العفو - حتى وإن قدر - كما يعفو الرب - سبحانه - مع قدرته على عقاب عباده.
• उत्पीड़ित व्यक्ति को क्षमा करने के लिए प्रोत्साहित करना - भले ही वह बदला लेने में सक्षम हो - जिस तरह कि अल्लाह - महिमावान - अपने बंदों को दंडित करने की क्षमता रखते हुए भी क्षमा कर देता है।

• لا يجوز التفريق بين الرسل بالإيمان ببعضهم دون بعض، بل يجب الإيمان بهم جميعًا.
• रसूलों में से कुछ पर ईमान लाकर और कुछ पर ईमान न लाकर, उनके बीच अंतर करना जायज़ नहीं है, बल्कि उन सभी पर ईमान लाना अनिवार्य है।

فَبِمَا نَقْضِهِمْ مِّیْثَاقَهُمْ وَكُفْرِهِمْ بِاٰیٰتِ اللّٰهِ وَقَتْلِهِمُ الْاَنْۢبِیَآءَ بِغَیْرِ حَقٍّ وَّقَوْلِهِمْ قُلُوْبُنَا غُلْفٌ ؕ— بَلْ طَبَعَ اللّٰهُ عَلَیْهَا بِكُفْرِهِمْ فَلَا یُؤْمِنُوْنَ اِلَّا قَلِیْلًا ۪۟
अतः हमने उन्हें अपनी दया से दूर कर दिया, क्योंकि उन्होंने उस दृढ़ वचन को तोड़ दिया, जो उनसे लिया गया था, तथा इस कारण कि उन्होंने अल्लाह की निशानियों का इनकार किया और नबियों की हत्या करने का दुस्साहस किया एवं मुहम्मद - सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम - से कहा कि : "हमारे दिल एक आवरण में हैं, इसलिए आप जो कहते हैं उसे नहीं समझते।" जबकि मामला ऐसा नहीं है। बल्कि अल्लाह ने उनके कुफ़्र के कारण उनके दिलों पर मुहर लगा दी है, इसलिए कोई अच्छाई उन तक नहीं पहुँचती। अतः वे बहुत कम ईमान लाते हैं, जिससे उन्हें कोई फायदा नहीं होता है।
Faccirooji aarabeeji:
وَّبِكُفْرِهِمْ وَقَوْلِهِمْ عَلٰی مَرْیَمَ بُهْتَانًا عَظِیْمًا ۟ۙ
और हमने उन्हें उनके कुफ़्र के कारण, तथा इस कारण दया से निकाल दिया कि उन्होंने मरयम - अलैहस्सलाम - पर व्यभिचार का झूठा और निराधार आरोप लगाया।
Faccirooji aarabeeji:
وَّقَوْلِهِمْ اِنَّا قَتَلْنَا الْمَسِیْحَ عِیْسَی ابْنَ مَرْیَمَ رَسُوْلَ اللّٰهِ ۚ— وَمَا قَتَلُوْهُ وَمَا صَلَبُوْهُ وَلٰكِنْ شُبِّهَ لَهُمْ ؕ— وَاِنَّ الَّذِیْنَ اخْتَلَفُوْا فِیْهِ لَفِیْ شَكٍّ مِّنْهُ ؕ— مَا لَهُمْ بِهٖ مِنْ عِلْمٍ اِلَّا اتِّبَاعَ الظَّنِّ ۚ— وَمَا قَتَلُوْهُ یَقِیْنًا ۟ۙ
तथा हमने उनपर उनके गर्व करते हुए झूठमूठ यह कहने के कारण लानत भेजी : निःसंदेह हमने ही अल्लाह के रसूल मरयम के पुत्र ईसा मसीह को क़त्ल किया। हालाँकि न तो उन्होंने उन्हें क़त्ल किया, जैसा कि उनका दावा है, और न ही उन्हें सूली पर चढ़ाया। बल्कि उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति को क़त्ल किया, जिसे अल्लाह ने ईसा - अलैहिस्सलाम - का सदृश बना दिया था और उसे सूली पर चढ़ाया। इसलिए उन्होंने सोचा कि क़त्ल होने वाला ईसा अलैहिस्सलाम ही थे। जिन यहूदियों ने ईसा अलैहिस्सलाम की हत्या का दावा किया और जिन ईसाइयों ने उन्हें यहूदियों के हवाले किया, दोनों ही उनके मामले में भ्रम और संदेह में हैं। क्योंकि उन्हें इसका कोई ज्ञान नहीं है। वे केवल अनुमान का पालन करते हैं और अनुमान से सच्चाई का कुछ भी लाभ नहीं होता है। उन्होंने निश्चित रूप से ईसा अलैहिस्सलाम को न तो क़त्ल किया और न उन्हें सूली पर चढ़ाया।
Faccirooji aarabeeji:
بَلْ رَّفَعَهُ اللّٰهُ اِلَیْهِ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ عَزِیْزًا حَكِیْمًا ۟
बल्कि अल्लाह ने ईसा अलैहिस्सलाम को उनकी साज़िश से बचा लिया और उन्हें उनके शरीर एवं आत्मा के साथ अपनी ओर उठा लिया। अल्लाह सदा से अपने राज्य में प्रभुत्वशाली है, कोई उसे पराजित नहीं कर सकता, अपने प्रबंधन, फ़ैसले और विधान में पूर्ण हिकमत वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
وَاِنْ مِّنْ اَهْلِ الْكِتٰبِ اِلَّا لَیُؤْمِنَنَّ بِهٖ قَبْلَ مَوْتِهٖ ۚ— وَیَوْمَ الْقِیٰمَةِ یَكُوْنُ عَلَیْهِمْ شَهِیْدًا ۟ۚ
अह्ले किताब (यहूदियों एवं ईसाइयों) में से हर व्यक्ति, ईसा अलैहिस्सलाम पर उनके अंतिम युग में उतरने के पश्चात और उनकी मृत्यु से पहले अवश्य ईमान लाएगा, तथा क़ियामत के दिन ईसा अलैहिस्सलाम उनके कर्मों के साक्षी होंगे; कि उनमें से क्या शरीयत के अनुसार है और क्या उसके ख़िलाफ़।
Faccirooji aarabeeji:
فَبِظُلْمٍ مِّنَ الَّذِیْنَ هَادُوْا حَرَّمْنَا عَلَیْهِمْ طَیِّبٰتٍ اُحِلَّتْ لَهُمْ وَبِصَدِّهِمْ عَنْ سَبِیْلِ اللّٰهِ كَثِیْرًا ۟ۙ
यहूदियों के अत्याचार के कारण, हमने उनपर कई पाकीज़ा खाने की चीज़ों को हराम कर दिया, जो उनके लिए हलाल थीं। चुनाँचे हमने उनपर हर नाख़ून (पंजे) से शिकार करने वाला पक्षी हराम कर दिया, तथा गायों और बकरियों में से हमने उनकी चर्बी को उनपर हराम कर दिया, सिवाय उस (चर्बी) के जो उन दोनों की पीठों से लगी हुई हो। इसका एक कारण यह भी था कि वे खुद को और दूसरों को अल्लाह के मार्ग से रोकते थे, यहाँ तक कि भलाई से रोकना उनका स्वभाव बन गया था।
Faccirooji aarabeeji:
وَّاَخْذِهِمُ الرِّبٰوا وَقَدْ نُهُوْا عَنْهُ وَاَكْلِهِمْ اَمْوَالَ النَّاسِ بِالْبَاطِلِ ؕ— وَاَعْتَدْنَا لِلْكٰفِرِیْنَ مِنْهُمْ عَذَابًا اَلِیْمًا ۟
तथा उनके ब्याज का लेन-देन करने के कारण, जबकि अल्लाह ने उन्हें उसे लेने से मना किया था, तथा लोगों के धन को बिना किसी उचित अधिकार के लेने के कारण। और हमने उनमें से काफ़िरों के लिए एक दर्दनाक अज़ाब तैयार किया है।
Faccirooji aarabeeji:
لٰكِنِ الرّٰسِخُوْنَ فِی الْعِلْمِ مِنْهُمْ وَالْمُؤْمِنُوْنَ یُؤْمِنُوْنَ بِمَاۤ اُنْزِلَ اِلَیْكَ وَمَاۤ اُنْزِلَ مِنْ قَبْلِكَ وَالْمُقِیْمِیْنَ الصَّلٰوةَ وَالْمُؤْتُوْنَ الزَّكٰوةَ وَالْمُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ وَالْیَوْمِ الْاٰخِرِ ؕ— اُولٰٓىِٕكَ سَنُؤْتِیْهِمْ اَجْرًا عَظِیْمًا ۟۠
परंतु यहूदियों में से ठोस ज्ञान रखने वाले तथा ईमान लाने वाले लोग, उस क़ुरआन को सच्चा मानते हैं, जो अल्लाह ने (ऐ रसूल!) आपपर उतारा है, तथा वे उन किताबों को भी सत्य मानते हैं, जो आपसे पहले के रसूलों पर उतारी गई थीं, जैसे तौरात और इंजील, और वे नमाज़ क़ायम करते और अपने धन की ज़कात देते हैं, तथा इस बात पर विश्वास रखते हैं कि अल्लाह ही अकेला पूज्य है, जिसका कोई साझी नहीं, और क़ियामत के दिन को सत्य मानते हैं; ये लोग जिनके पास ये गुण हैं हम उन्हें बहुत बड़ा बदला प्रदान करेंगे।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• عاقبة الكفر الختم على القلوب، والختم عليها سبب لحرمانها من الفهم.
• कुफ़्र का परिणाम दिलों पर मुहर लगाना है, और उनपर मुहर लगाना उन्हें समझ से वंचित करने का एक कारण है।

• بيان عداوة اليهود لنبي الله عيسى عليه السلام، حتى إنهم وصلوا لمرحلة محاولة قتله.
• अल्लाह के नबी ईसा अलैहिस्सलाम के प्रति यहूदियों की शत्रुता का वर्णन, यहाँ तक कि वे उनकी हत्या करने की कोशिश करने के स्तर तक पहुँच गए।

• بيان جهل النصارى وحيرتهم في مسألة الصلب، وتعاملهم فيها بالظنون الفاسدة.
• ईसा अलैहिस्सलाम के सूली पर चढ़ाए जाने के मुद्दे के बारे में ईसाइयों की अज्ञानता और असमंजस, तथा उससे निपटने में भ्रष्ट अनुमानों का सहारा लेने का वर्णन।

• بيان فضل العلم، فإن من أهل الكتاب من هو متمكن في العلم حتى أدى به تمكنه هذا للإيمان بالنبي محمد صلى الله عليه وسلم.
• ज्ञान की फ़ज़ीलत का वर्णन। क्योंकि किताब वालों में से कुछ लोग ज्ञान में निपुण थे, यहाँ तक कि इस निपुणता ने उन्हें नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान लाने के लिए प्रेरित किया।

اِنَّاۤ اَوْحَیْنَاۤ اِلَیْكَ كَمَاۤ اَوْحَیْنَاۤ اِلٰی نُوْحٍ وَّالنَّبِیّٖنَ مِنْ بَعْدِهٖ ۚ— وَاَوْحَیْنَاۤ اِلٰۤی اِبْرٰهِیْمَ وَاِسْمٰعِیْلَ وَاِسْحٰقَ وَیَعْقُوْبَ وَالْاَسْبَاطِ وَعِیْسٰی وَاَیُّوْبَ وَیُوْنُسَ وَهٰرُوْنَ وَسُلَیْمٰنَ ۚ— وَاٰتَیْنَا دَاوٗدَ زَبُوْرًا ۟ۚ
हमने (ऐ रसूल!) आपकी ओर वैसे ही वह़्य (प्रकाशना) भेजी है, जैसे कि हमने आपसे पहले के नबियों की ओर वह़्य भेजी थी। इसलिए आप कोई अनोखे रसूल नहीं हैं। चुनाँचे हमने नूह की ओर वह़्य भेजी तथा उनके बाद आने वाले नबियों की ओर वह़्य भेजी, और हमने इबराहीम की ओर, उनके दोनों सुपुत्रों इसमाईल एवं इसहाक़ की ओर, तथा याक़ूब बिन इसहाक़ की ओर और असबात (यानी याक़ूब अलैहिस्सलाम के बेटों से निकलने वाले बनी इसराईल के बारह वंशों में होने वाले नबियों) की ओर वह़्य भेजी। तथा हमने ईसा, अय्यूब, यूनुस, हारून और सुलैमान की ओर वह़्य भेजी, और हमने दाऊद अलैहिस्सलाम को ज़बूर नामी पुस्तक दी।
Faccirooji aarabeeji:
وَرُسُلًا قَدْ قَصَصْنٰهُمْ عَلَیْكَ مِنْ قَبْلُ وَرُسُلًا لَّمْ نَقْصُصْهُمْ عَلَیْكَ ؕ— وَكَلَّمَ اللّٰهُ مُوْسٰی تَكْلِیْمًا ۟ۚ
हमने कुछ रसूल ऐसे भेजे, जिनके वृत्तांत हमने आपसे क़ुरआन में बयान कर दिए हैं, तथा कुछ रसूल ऐसे भेजे जिनके बारे में हमने आपसे उसमें कुछ बयान नहीं किया और किसी हिकमत के तहत उसमें उनका उल्लेख करना छोड़ दिया। तथा अल्लाह ने मूसा अलैहिस्सलाम से उनके सम्मान में उन्हें नबी बनाने के संबंध में - बिना मध्यस्थता के - वास्तविक रूप से बात की, जैसा उसकी महिमा के योग्य है।
Faccirooji aarabeeji:
رُسُلًا مُّبَشِّرِیْنَ وَمُنْذِرِیْنَ لِئَلَّا یَكُوْنَ لِلنَّاسِ عَلَی اللّٰهِ حُجَّةٌ بَعْدَ الرُّسُلِ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ عَزِیْزًا حَكِیْمًا ۟
हमने उन्हें अल्लाह पर ईमान लाने वालों को अच्छे प्रतिफल की शुभ सूचना देने वाला तथा उसके साथ कुफ़्र करने वालों को दर्दनाक यातना से डराने वाला बनाकर भेजा, ताकि रसूलों को भेजने के बाद लोगों के लिए अल्लाह के ख़िलाफ़ कोई तर्क न रह जाए, जिसे वे बहाना बना सकें। तथा अल्लाह अपने राज्य में प्रभुत्वशाली, अपने फ़ैसले में हिकमत वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
لٰكِنِ اللّٰهُ یَشْهَدُ بِمَاۤ اَنْزَلَ اِلَیْكَ اَنْزَلَهٗ بِعِلْمِهٖ ۚ— وَالْمَلٰٓىِٕكَةُ یَشْهَدُوْنَ ؕ— وَكَفٰی بِاللّٰهِ شَهِیْدًا ۟ؕ
यदि यहूद आपका इनकार करते हैं, तो अल्लाह उस क़ुरआन की प्रामाणिकता के संबंध में आपकी पुष्टि करता है, जो उसने (ऐ रसूल!) आपकी ओर उतारा है। अल्लाह ने उसमें अपना वह ज्ञान उतारा है, जिससे वह अपने बंदों को अवगत कराना चाहता है, कि वह किन चीज़ों को पसंद करता और उनसे प्रसन्न होता है या किन चीज़ों को नापसंद करता और उनसे नफरता करता है। अल्लाह की गवाही के साथ फ़रिश्ते भी उसकी सच्चाई की गवाही देते हैं जो आप लेकर आए हैं। तथा अल्लाह गवाह के रूप में पर्याप्त है। क्योंकि उसकी गवाही के बाद किसी दूसरे की गवाही की ज़रूरत नहीं।
Faccirooji aarabeeji:
اِنَّ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا وَصَدُّوْا عَنْ سَبِیْلِ اللّٰهِ قَدْ ضَلُّوْا ضَلٰلًا بَعِیْدًا ۟
निःसंदेह जिन लोगों ने आपके नबी होने का इनकार किया और लोगों को इस्लाम के मार्ग से रोका, निश्चय वे सत्य से बहुत दूर जा पड़े।
Faccirooji aarabeeji:
اِنَّ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا وَظَلَمُوْا لَمْ یَكُنِ اللّٰهُ لِیَغْفِرَ لَهُمْ وَلَا لِیَهْدِیَهُمْ طَرِیْقًا ۟ۙ
जिन लोगों ने अल्लाह और उसके रसूलों के साथ कुफ़्र किया और कुफ़्र पर बने रहकर ख़ुद पर ज़ुल्म किया, अल्लाह उनके कुफ़्र पर अटल रहने को कभी क्षमा नहीं करेगा, और न ही उन्हें अल्लाह की यातना से बचाने वाला मार्ग दर्शाएगा।
Faccirooji aarabeeji:
اِلَّا طَرِیْقَ جَهَنَّمَ خٰلِدِیْنَ فِیْهَاۤ اَبَدًا ؕ— وَكَانَ ذٰلِكَ عَلَی اللّٰهِ یَسِیْرًا ۟
सिवाय उस रास्ते के जो जहन्नम में प्रवेश की ओर ले जाता है, जिसमें वे सदा-सर्वदा रहने वाले हैं। और यह काम अल्लाह के लिए बहुत ही आसान है, क्योंकि कोई भी चीज़ उसे विवश नहीं कर सकती।
Faccirooji aarabeeji:
یٰۤاَیُّهَا النَّاسُ قَدْ جَآءَكُمُ الرَّسُوْلُ بِالْحَقِّ مِنْ رَّبِّكُمْ فَاٰمِنُوْا خَیْرًا لَّكُمْ ؕ— وَاِنْ تَكْفُرُوْا فَاِنَّ لِلّٰهِ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ ؕ— وَكَانَ اللّٰهُ عَلِیْمًا حَكِیْمًا ۟
ऐ लोगो! रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम तुम्हारे पास मार्गदर्शन और सत्य धर्म के साथ अल्लाह की ओर से आए हैं। अतः वह तुम्हारे पास जो कुछ लाए हैं उसपर ईमान ले आओ, यह दुनिया तथा आख़िरत में तुम्हारे लिए बेहतर होगा। यदि तुम अल्लाह के साथ कुफ़्र करते हो, तो अल्लाह तुम्हारे ईमान से बेनियाज़ है, तुम्हारा कुफ़्र करना उसे नुक़सान नहीं पहुँचाएगा। क्योंकि जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में तथा इन दोनों के बीच है, सब उसके अधिकार में है। तथा अल्लाह उसके बारे में जानने वाला है जो मार्गदर्शन का पात्र है, इसलिए उसके लिए मार्गदर्शन को आसान बना देता है, और जो उसका हक़दार नहीं है, इसलिए उसे उससे अंधा कर देता है। वह अपनी बातों, कार्यों, विधान और नियति में पूर्ण हिकमत वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• إثبات النبوة والرسالة في شأن نوح وإبراهيم وغيرِهما مِن ذرياتهما ممن ذكرهم الله وممن لم يذكر أخبارهم لحكمة يعلمها سبحانه.
• नूह, इबराहीम तथा उनके अलावा उनकी संतानों में से अन्य लोगों के बारे में नुबुव्वत (ईश्दूतत्व)) एवं रिसालत (पैगंबरी) को साबित करना, जिनमें से कुछ का अल्लाह ने उल्लेख किया है और कुछ के समाचार का उल्लेख उसने किसी हिकमत के कारण नहीं किया है, जिसे वह सर्वशक्तिमान जानता है।।

• إثبات صفة الكلام لله تعالى على وجه يليق بذاته وجلاله، فقد كلّم الله تعالى نبيه موسى عليه السلام.
• अल्लाह सर्वशक्तिमान के लिए उसके अस्तित्व और उसकी महिमा के अनुरूप 'कलाम' (बात करने) की विशेषता साबित करना, क्योंकि सर्वशक्तिमान अल्लाह ने अपने नबी मूसा अलैहिस्सलाम से बात की।

• تسلية النبي محمد عليه الصلاة والسلام ببيان أن الله تعالى يشهد على صدق دعواه في كونه نبيًّا، وكذلك تشهد الملائكة.
• नबी मुहम्मद - सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम - को यह बयान करके सांत्वना देना कि अल्लाह तआला उनके नबी होने के दावे की सच्चाई की गवाही देता है, और इसी तरह फ़रिश्ते भी गवाही देते हैं।

یٰۤاَهْلَ الْكِتٰبِ لَا تَغْلُوْا فِیْ دِیْنِكُمْ وَلَا تَقُوْلُوْا عَلَی اللّٰهِ اِلَّا الْحَقَّ ؕ— اِنَّمَا الْمَسِیْحُ عِیْسَی ابْنُ مَرْیَمَ رَسُوْلُ اللّٰهِ وَكَلِمَتُهٗ ۚ— اَلْقٰىهَاۤ اِلٰی مَرْیَمَ وَرُوْحٌ مِّنْهُ ؗ— فَاٰمِنُوْا بِاللّٰهِ وَرُسُلِهٖ ۫— وَلَا تَقُوْلُوْا ثَلٰثَةٌ ؕ— اِنْتَهُوْا خَیْرًا لَّكُمْ ؕ— اِنَّمَا اللّٰهُ اِلٰهٌ وَّاحِدٌ ؕ— سُبْحٰنَهٗۤ اَنْ یَّكُوْنَ لَهٗ وَلَدٌ ۘ— لَهٗ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَمَا فِی الْاَرْضِ ؕ— وَكَفٰی بِاللّٰهِ وَكِیْلًا ۟۠
(ऐ रसूल!) आप इंजील वाले ईसाइयों से कह दें : तुम अपने धर्म में सीमा से परे मत जाओ तथा ईसा अलैहिस्सलाम के बारे में अल्लाह पर सत्य के अलावा कुछ भी न कहो। मरयम के बेटे ईसा मसीह अलैहिस्सलाम केवल अल्लाह के रसूल हैं, जिन्हें उसने सच्चाई के साथ भेजा। अल्लाह ने उन्हें अपने उस शब्द से पैदा किया, जिसे उसने जिबरील के साथ मरयम के पास भेजा। वह शब्द उसका 'कुन' (अर्थात् हो जा) कहना था, तो वह हो गए। यह दरअसल अल्लाह की ओर से एक फूँक थी, जो जिबरील ने अल्लाह की आज्ञा से (फूँक) मारी थी। अतः अल्लाह और उसके सभी रसूलों पर बिना किसी भेद (अंतर) के ईमान लाओ और यह मत कहो कि पूज्य तीन हैं। इस झूठी और भ्रष्ट बात से बाज़ आ जाओ! तुम्हारा इसे त्यागना तुम्हारे लिए दुनिया और आख़िरत में बेहतर होगा। अल्लाह केवल एक ही पूज्य है। वह साझी तथा संतान से सर्वोच्च है। क्योंकि वह हर चीज़ से बेनियाज़ है, जो कुछ आकाशों एवं धरती तथा उन दोनों के बीच में है, उन सबका मालिक वही है। तथा आकाशों और धरती की सारी चीज़ों के संरक्षक और उनके प्रबंधक के रूप में अल्लाह काफ़ी है।
Faccirooji aarabeeji:
لَنْ یَّسْتَنْكِفَ الْمَسِیْحُ اَنْ یَّكُوْنَ عَبْدًا لِّلّٰهِ وَلَا الْمَلٰٓىِٕكَةُ الْمُقَرَّبُوْنَ ؕ— وَمَنْ یَّسْتَنْكِفْ عَنْ عِبَادَتِهٖ وَیَسْتَكْبِرْ فَسَیَحْشُرُهُمْ اِلَیْهِ جَمِیْعًا ۟
ईसा बिन मरयम अलैहिस्सलाम अल्लाह का बंदा होने से कदापि उपेक्षा और संकोच नहीं करेंगे, और न ही वे फ़रिश्ते जिन्हें अल्लाह ने अपना निकटवर्ती बनाया और उनके पद को ऊँचा किया है, अल्लाह के बंदे होने से उपेक्षा करते हैं। तो फिर तुम ईसा को एक पूज्य कैसे बनाते हो?! तथा शिर्क करने वाले लोग फ़रिश्तों को पूज्य कैसे बनाते हैं?! जो कोई भी अल्लाह की इबादत से उपेक्षा करे और अपने को उससे ऊँचा समझे, तो (ज्ञात रहना चाहिए कि) अल्लाह क़ियामत के दिन सबको अपने पास इकट्ठा करेगा और वह हर एक को वह प्रतिफल देगा, जिसके वह योग्य है।
Faccirooji aarabeeji:
فَاَمَّا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ فَیُوَفِّیْهِمْ اُجُوْرَهُمْ وَیَزِیْدُهُمْ مِّنْ فَضْلِهٖ ۚ— وَاَمَّا الَّذِیْنَ اسْتَنْكَفُوْا وَاسْتَكْبَرُوْا فَیُعَذِّبُهُمْ عَذَابًا اَلِیْمًا ۙ۬— وَّلَا یَجِدُوْنَ لَهُمْ مِّنْ دُوْنِ اللّٰهِ وَلِیًّا وَّلَا نَصِیْرًا ۟
जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और उसके रसूलों को सच्चा माना तथा विशुद्ध रूप से अल्लाह के लिए, उसके बताए हुए तरीक़े के अनुसार अच्छे कार्य किए, तो अल्लाह उन्हें उनके कर्मों का प्रतिफल बिना कम किए देगा, तथा अपने अनुग्रह और उपकार से उन्हें उससे अधिक भी देगा। परंतु जिन लोगों ने अल्लाह की इबादत और उसकी आज्ञाकारिता से उपेक्षा किया तथा अहंकार करते हुए अपने आपको उससे ऊँचा समझा, तो वह उन्हें दर्दनाक यातना देगा। तथा वे अल्लाह के सिवा किसी को नहीं पाएँगे, जो उनका संरक्षक बनकर उन्हें लाभ पहुँचाए और मददगार बनकर उन्हें नुक़सान से बचा सके।
Faccirooji aarabeeji:
یٰۤاَیُّهَا النَّاسُ قَدْ جَآءَكُمْ بُرْهَانٌ مِّنْ رَّبِّكُمْ وَاَنْزَلْنَاۤ اِلَیْكُمْ نُوْرًا مُّبِیْنًا ۟
ऐ लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से एक स्पष्ट तर्क आया है, जो बहाने को काट देता है और शक को दूर कर देता है - और वह मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हैं - तथा हमने तुम्हारी ओर एक स्पष्ट प्रकाश उतारा है, जो कि यह क़ुरआन है।
Faccirooji aarabeeji:
فَاَمَّا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا بِاللّٰهِ وَاعْتَصَمُوْا بِهٖ فَسَیُدْخِلُهُمْ فِیْ رَحْمَةٍ مِّنْهُ وَفَضْلٍ ۙ— وَّیَهْدِیْهِمْ اِلَیْهِ صِرَاطًا مُّسْتَقِیْمًا ۟ؕ
जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और उस क़ुरआन को मज़बूती से पकड़ लिया, जो उनके नबी पर उतारा गया है, तो अल्लाह उनपर दया करते हुए उन्हें जन्नत में दाखिल करेगा। तथा उनके प्रतिफल को बढ़ा देगा और उनके दर्जों को ऊँचा करेगा, तथा उन्हें सीधे मार्ग पर चलने का सामर्थ्य प्रदान करेगा, जिसमें कोई टेढ़ नहीं, जो कि वह रास्ता है जो सदा निवास के बाग़ों की ओर ले जाने वाला है।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• بيان أن المسيح بشر، وأن أمه كذلك، وأن الضالين من النصارى غلوا فيهما حتى أخرجوهما من حد البشرية.
• इस बात का बयान कि ईसा मसीह तथा उनकी माँ दोनों मानव हैं, और यह कि पथभ्रष्ट ईसाइयों ने उनके बारे में अतिशयोक्ति से काम लिया यहाँ तक कि उन्हें मनुष्यता की सीमा से बाहर निकाल दिया।

• بيان بطلان شرك النصارى القائلين بالتثليث، وتنزيه الله تعالى عن أن يكون له شريك أو شبيه أو مقارب، وبيان انفراده - سبحانه - بالوحدانية في الذات والأسماء والصفات.
• त्रिमूर्ति में विश्वास करने वाले ईसाइयों के बहुदेववाद की अमान्यता का वर्णन, तथा अल्लाह को इस बात से पवित्र एवं सर्वोच्च ठहराना कि उसका कोई साझी, या शबीह (सदृश), या क़रीब-क़रीब का हो, और इस बात का बयान कि अल्लाह महिमावान अपनी ज़ात (अस्तित्व), नामों एवं गुणों में एकल है।

• إثبات أن عيسى عليه السلام والملائكة جميعهم عباد مخلوقون لا يستكبرون عن الاعتراف بعبوديتهم لله تعالى والانقياد لأوامره، فكيف يسوغ اتخاذهم آلهة مع كونهم عبيدًا لله تعالى؟!
• यह प्रमाणित करना कि ईसा अलैहिस्सलाम तथा समस्त फ़रिश्ते अल्लाह के पैदा किए हुए बंदे हैं, जो अल्लाह के प्रति अपनी बंदगी को स्वीकार करने और उसके आदेशों का पालन करने से अभिमान नहीं करते। अतः जब वे सर्वशक्तिमान अल्लाह के बंदे हैं, तो उन्हें पूज्य बनाना कैसे उचित हो सकता है?!

• في الدين حجج وبراهين عقلية تدفع الشبهات، ونور وهداية تدفع الحيرة والشهوات.
• धर्म में ऐसे बौद्धिक प्रमाण और तर्क हैं, जो संदेहों को दूर कर देते हैं, तथा प्रकाश और मार्गदर्शन हैं, जो असमंजस की स्थिति और इच्छाओं का निवारण करते हैं।

یَسْتَفْتُوْنَكَ ؕ— قُلِ اللّٰهُ یُفْتِیْكُمْ فِی الْكَلٰلَةِ ؕ— اِنِ امْرُؤٌا هَلَكَ لَیْسَ لَهٗ وَلَدٌ وَّلَهٗۤ اُخْتٌ فَلَهَا نِصْفُ مَا تَرَكَ ۚ— وَهُوَ یَرِثُهَاۤ اِنْ لَّمْ یَكُنْ لَّهَا وَلَدٌ ؕ— فَاِنْ كَانَتَا اثْنَتَیْنِ فَلَهُمَا الثُّلُثٰنِ مِمَّا تَرَكَ ؕ— وَاِنْ كَانُوْۤا اِخْوَةً رِّجَالًا وَّنِسَآءً فَلِلذَّكَرِ مِثْلُ حَظِّ الْاُنْثَیَیْنِ ؕ— یُبَیِّنُ اللّٰهُ لَكُمْ اَنْ تَضِلُّوْا ؕ— وَاللّٰهُ بِكُلِّ شَیْءٍ عَلِیْمٌ ۟۠
(ऐ रसूल!) लोग आपसे पूछते हैं कि आप उन्हें 'कलाला' की विरासत के विषय में शरई हुक्म से सूचित करें। 'कलाला' उस व्यक्ति को कहा जाता है, जिसकी मृत्यु हो जाए और उसने पिता या कोई संतान न छोड़ी हो। आप कह दीजिए : अल्लाह उसका हुक्म बयान करता है : यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए और उसका न पिता जीवित हो न कोई संतान हो, जबकि उसकी कोई सगी अथवा बाप शरीक बहन हो, तो बहन को फ़र्ज़ (क़ुरआन में निर्दिष्ट हिस्से) के रूप में छोड़े हुए धन का आधा हिस्सा मिलेगा। तथा उसका सगा या अल्लाती (बाप शरीक) भाई 'असबा' (जिस का हिस्सा निर्दिष्ट न हो) के तौर पर उसके छोड़े हुए धन का वारिस होगा, यदि उसके साथ कोई फ़र्ज़ (निर्दिष्ट हिस्से) वाला न हो। किंतु यदि उसके साथ कोई फ़र्ज़ (निर्दिष्ट हिस्से) वाला मौजूद हो, तो वह उसका हिस्सा निकालने के बाद शेष धन का वारिस होगा। यदि सगी या बाप शरीक बहनें एक से अधिक हों, तो फ़र्ज़ (निर्दिष्ट हिस्से) के रूप में उन्हें दो-तिहाई मिलेगा। तथा यदि सगे या बाप शरीक भाई और बहन दोनों हों, तो वे 'असबा' के रूप में "पुरुष के लिए दो महिलाओं के बराबर हिस्सा है।" के नियम के अनुसार वारिस होंगे इस प्रकार कि उनमें से पुरुष का हिस्सा महिला के हिस्से का दोगुना होगा। अल्लाह तुम्हारे लिए 'कलाला' का नियम तथा विरासत के अन्य प्रावधान स्पष्ट रूप से बयान करता है, ताकि तुम उसके मामले में पथभ्रष्ट न हो जाओ, और अल्लाह हर चीज़ को जानने वाला है, उससे कुछ भी छिपा नहीं है।
Faccirooji aarabeeji:
Ina jeyaa e nafoore aayeeje ɗee e ngol hello:
• عناية الله بجميع أحوال الورثة في تقسيم الميراث عليهم.
• अल्लाह ने वारिसों पर विरासत को विभाजित करने में उनकी सभी परिस्थितियों का ख़याल रखा है।

• الأصل هو حِلُّ الأكل من كل بهيمة الأنعام، سوى ما خصه الدليل بالتحريم، أو ما كان صيدًا يعرض للمحرم في حجه أو عمرته.
• मूल सिद्धांत यह है कि सभी पशुओं में से खाने की अनुमति है, सिवाय उसके जिसे शरई प्रमाण ने हराम ठहराया हो, या वह शिकार जो हज्ज या उम्रा के दौरान मोहरिम के समक्ष आ जाए।

• النهي عن استحلال المحرَّمات، ومنها: محظورات الإحرام، والصيد في الحرم، والقتال في الأشهر الحُرُم، واستحلال الهدي بغصب ونحوه، أو مَنْع وصوله إلى محله.
• निषिद्ध चीजों को हलाल ठहराने से निषेध, जिनमें : एहराम की स्थिति में निषिद्ध चीज़ें, हरम की सीमा में शिकार करना, निषिद्ध (सम्मानित) महीनों में लड़ाई करना, तथा हज्ज की क़ुर्बानी के जानवर का, उसपर जबरन क़ब्ज़ा करके, या उसके ज़बह होने की जगह तक पहुँचने से रोककर अनादर करना, शामिल है।

 
Firo maanaaji Simoore: Simoore rewɓe
Tippudi cimooje Tonngoode hello ngoo
 
Firo maanaaji al-quraan tedduɗo oo - الترجمة الهندية للمختصر في تفسير القرآن الكريم - Tippudi firooji ɗii

الترجمة الهندية للمختصر في تفسير القرآن الكريم، صادر عن مركز تفسير للدراسات القرآنية.

Uddude