Translation of the Meanings of the Noble Qur'an - Hindi Translation * - Translations’ Index

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Translation of the meanings Surah: Āl-‘Imrān   Ayah:

सूरा आले इम्रान

الٓمَّٓ ۟ۙۚ
अलिफ़, लाम, मीम।
Arabic explanations of the Qur’an:
اللّٰهُ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ الْحَیُّ الْقَیُّوْمُ ۟ؕ
अल्लाह (वह है कि) उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। (वह) जीवित है, हर चीज़ को सँभालने (क़ायम रखने) वाला है।
Arabic explanations of the Qur’an:
نَزَّلَ عَلَیْكَ الْكِتٰبَ بِالْحَقِّ مُصَدِّقًا لِّمَا بَیْنَ یَدَیْهِ وَاَنْزَلَ التَّوْرٰىةَ وَالْاِنْجِیْلَ ۟ۙ
उसने आप पर (यह) पुस्तक सत्य के साथ उतारी, जो उसकी पुष्टि करने वाली है जो इससे पूर्व है, और उसने तौरात तथा इंजील उतारी।
Arabic explanations of the Qur’an:
مِنْ قَبْلُ هُدًی لِّلنَّاسِ وَاَنْزَلَ الْفُرْقَانَ ؕ۬— اِنَّ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا بِاٰیٰتِ اللّٰهِ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِیْدٌ ؕ— وَاللّٰهُ عَزِیْزٌ ذُو انْتِقَامٍ ۟ؕ
इससे पहले, लोगों के मार्गदर्शन के लिए। और उसने फ़ुरक़ान (सत्य और असत्य में अंतर करने वाला मानदंड) उतारा।[1] निःसंदेह जिन लोगों ने अल्लाह की आयतों का इनकार किया, उनके लिए बहुत कड़ी यातना है। और अल्लाह सब पर प्रभुत्वशाली, बदला लेने वाला है।
1. अर्थात तौरात और इंजील अपने समय में लोगों के लिए मार्गदर्शन थे, परंतु फ़ुरक़ान (क़ुरआन) उतरने के पश्चात् अब वह मार्गदर्शन केवल क़ुरआन पाक में है।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ اللّٰهَ لَا یَخْفٰی عَلَیْهِ شَیْءٌ فِی الْاَرْضِ وَلَا فِی السَّمَآءِ ۟ؕ
निःसंदेह अल्लाह वह है जिससे न धरती में कोई चीज़ छिपी रहती है और न आकाश में।
Arabic explanations of the Qur’an:
هُوَ الَّذِیْ یُصَوِّرُكُمْ فِی الْاَرْحَامِ كَیْفَ یَشَآءُ ؕ— لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ الْعَزِیْزُ الْحَكِیْمُ ۟
वही है जो गर्भाशयों में तुम्हारे रूप बनाता है, जिस तरह चाहता है। उसके सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं, (वह) सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
Arabic explanations of the Qur’an:
هُوَ الَّذِیْۤ اَنْزَلَ عَلَیْكَ الْكِتٰبَ مِنْهُ اٰیٰتٌ مُّحْكَمٰتٌ هُنَّ اُمُّ الْكِتٰبِ وَاُخَرُ مُتَشٰبِهٰتٌ ؕ— فَاَمَّا الَّذِیْنَ فِیْ قُلُوْبِهِمْ زَیْغٌ فَیَتَّبِعُوْنَ مَا تَشَابَهَ مِنْهُ ابْتِغَآءَ الْفِتْنَةِ وَابْتِغَآءَ تَاْوِیْلِهٖ ؔۚ— وَمَا یَعْلَمُ تَاْوِیْلَهٗۤ اِلَّا اللّٰهُ ۘؐ— وَالرّٰسِخُوْنَ فِی الْعِلْمِ یَقُوْلُوْنَ اٰمَنَّا بِهٖ ۙ— كُلٌّ مِّنْ عِنْدِ رَبِّنَا ۚ— وَمَا یَذَّكَّرُ اِلَّاۤ اُولُوا الْاَلْبَابِ ۟
(ऐ नबी!) वही है जिसने आप पर[2] (यह) पुस्तक उतारी, जिसमें से कुछ आयतें मोह़कम[3] (स्पष्ट तर्क वाली) हैं, वही पुस्तक का मूल हैं, तथा कुछ दूसरी (आयतें) मुतशाबेह[4] (छिपे हुए और पोशीदा अर्थ वाली) हैं। फिर जिनके दिलों में टेढ़ है, तो वे फ़ित्ने की तलाश में तथा उसके असल आशय की तलाश के उद्देश्य से, सदृश अर्थों वाली आयतों का अनुसरण करते हैं। हालाँकि उनका वास्तविक अर्थ अल्लाह के सिवा कोई नहीं जानता। तथा जो लोग ज्ञान में पक्के हैं, वे कहते हैं हम उसपर ईमान लाए, सब हमारे पालनहार की और से है। और शिक्षा वही लोग ग्रहण करते हैं, जो बुद्धि वाले हैं।
2. आयत का भावार्थ यह है कि अल्लाह ने मानव का रूप आकार बनाने और उसकी आर्थिक आवश्यकता की व्यवस्था करने के समान, उसकी आत्मिक आवश्यकता के लिए क़ुरआन उतारा है, जो अल्लाह की प्रकाशना तथा मार्गदर्शन और फ़ुरक़ान है। जिसके द्वारा सत्यासत्य में अंतर करके सत्य को स्वीकार करे। 3. मोह़कम (सुदृढ़) से अभिप्राय वे आयतें हैं, जिनके अर्थ स्थिर, खुले हुए हैं। जैसे एकेश्वरवाद, रिसालत तथा आदेशों और निषेधों एवं ह़लाल (वैध) और ह़राम (अवैध) से संबंधित आयतें, यही पुस्तक का मूल आधार हैं। 4. मुतशाबेह (संदिग्ध) से अभिप्राय वह आयतें हैं, जिनमें उन तथ्यों की ओर संकेत किया गया है, जो हमारी ज्ञानेंद्रियों में नहीं आ सकते, जैसे मौत के पश्चात् जीवन, तथा परलोक की बातें। इन आयतों के विषय में अल्लाह ने हमें जो जानकारी दी है, हम उनपर विश्वास करते हैं, क्योंकि इनका विस्तार विवरण हमारी बुद्धि से बाहर है, परंतु जिनके दिलों में खोट है वह इनकी वास्तविकता जानने के पीछे पड़ जाते हैं, जो उनकी शक्ति से बाहर है।
Arabic explanations of the Qur’an:
رَبَّنَا لَا تُزِغْ قُلُوْبَنَا بَعْدَ اِذْ هَدَیْتَنَا وَهَبْ لَنَا مِنْ لَّدُنْكَ رَحْمَةً ۚ— اِنَّكَ اَنْتَ الْوَهَّابُ ۟
(तथा वे कहते हैं :) ऐ हमारे पालनहार! हमें हिदायत देने के बाद हमारे दिलों को टेढ़ा न कर, और हमें अपनी ओर से दया प्रदान कर। निःसंदेह तू ही बहुत बड़ा दाता है।
Arabic explanations of the Qur’an:
رَبَّنَاۤ اِنَّكَ جَامِعُ النَّاسِ لِیَوْمٍ لَّا رَیْبَ فِیْهِ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ لَا یُخْلِفُ الْمِیْعَادَ ۟۠
ऐ हमारे पालनहार! निःसंदेह तू सब लोगों को उस दिन के लिए इकट्ठा करने वाला है, जिस (के आने) में कोई शक नहीं। निःसंदेह अल्लाह वादे के विरुद्ध नहीं करता।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا لَنْ تُغْنِیَ عَنْهُمْ اَمْوَالُهُمْ وَلَاۤ اَوْلَادُهُمْ مِّنَ اللّٰهِ شَیْـًٔا ؕ— وَاُولٰٓىِٕكَ هُمْ وَقُوْدُ النَّارِ ۟ۙ
निःसंदेह जिन लोगों ने कुफ़्र किया, उनके धन तथा उनकी संतान उन्हें अल्लाह (की यातना) से (बचाने में) कदापि कुछ काम नहीं आएँगे, तथा वही आग का ईंधन हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
كَدَاْبِ اٰلِ فِرْعَوْنَ ۙ— وَالَّذِیْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ ؕ— كَذَّبُوْا بِاٰیٰتِنَا ۚ— فَاَخَذَهُمُ اللّٰهُ بِذُنُوْبِهِمْ ؕ— وَاللّٰهُ شَدِیْدُ الْعِقَابِ ۟
(इनका हाल) फ़िरऔनियों तथा उन लोगों के हाल की तरह है जो उनसे पहले थे। उन्होंने हमारी आयतों (निशानियों) को झुठलाया, तो अल्लाह ने उन्हें उनके गुनाहों के कारण पकड़ लिया और अल्लाह बहुत सख़्त अज़ाब वाला है।
Arabic explanations of the Qur’an:
قُلْ لِّلَّذِیْنَ كَفَرُوْا سَتُغْلَبُوْنَ وَتُحْشَرُوْنَ اِلٰی جَهَنَّمَ ؕ— وَبِئْسَ الْمِهَادُ ۟
(ऐ नबी!) काफ़िरों से कह दें कि तुम जल्द ही पराजित[5] किए जाओगे तथा जहन्नम की ओर इकट्ठे किए जाओगे और वह बहुत बुरा ठिकाना है।
5. इसमें काफ़िरों की मुसलमानों के हाथों पराजय की भविष्यवाणी है।
Arabic explanations of the Qur’an:
قَدْ كَانَ لَكُمْ اٰیَةٌ فِیْ فِئَتَیْنِ الْتَقَتَا ؕ— فِئَةٌ تُقَاتِلُ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ وَاُخْرٰی كَافِرَةٌ یَّرَوْنَهُمْ مِّثْلَیْهِمْ رَاْیَ الْعَیْنِ ؕ— وَاللّٰهُ یُؤَیِّدُ بِنَصْرِهٖ مَنْ یَّشَآءُ ؕ— اِنَّ فِیْ ذٰلِكَ لَعِبْرَةً لِّاُولِی الْاَبْصَارِ ۟
निश्चय तुम्हारे लिए उन दो दलों में बड़ी निशानी थी, जिनमें (बद्र के मैदान में) मुठभेड़ हुई। एक दल अल्लाह के मार्ग में लड़ता था और दूसरा काफ़िर था। ये (मुसलमान) उन (काफ़िरों) को अपनी आँखों से अपने से दुगना देख रहे थे। और अल्लाह जिसे चाहता है अपनी सहायता से शक्ति प्रदान करता है। निःसंदेह इसमें आँखों वालों के लिए निश्चय बड़ी इबरत (सीख)[6] है।
6. अर्थात इस बात की कि विजय अल्लाह के समर्थन से प्राप्त होती है, सेना की संख्या से नहीं।
Arabic explanations of the Qur’an:
زُیِّنَ لِلنَّاسِ حُبُّ الشَّهَوٰتِ مِنَ النِّسَآءِ وَالْبَنِیْنَ وَالْقَنَاطِیْرِ الْمُقَنْطَرَةِ مِنَ الذَّهَبِ وَالْفِضَّةِ وَالْخَیْلِ الْمُسَوَّمَةِ وَالْاَنْعَامِ وَالْحَرْثِ ؕ— ذٰلِكَ مَتَاعُ الْحَیٰوةِ الدُّنْیَا ۚ— وَاللّٰهُ عِنْدَهٗ حُسْنُ الْمَاٰبِ ۟
लोगों के लिए भौतिक इच्छाओं का प्यार सुसज्जित कर दिया गया है, जो औरतें, बेटे, सोने और चाँदी के ढेर, निशान लगाए हुए घोड़े, मवेशी तथा खेती हैं। ये सांसारिक जीवन के सामान हैं और उत्तम ठिकाना अल्लाह के पास है।
Arabic explanations of the Qur’an:
قُلْ اَؤُنَبِّئُكُمْ بِخَیْرٍ مِّنْ ذٰلِكُمْ ؕ— لِلَّذِیْنَ اتَّقَوْا عِنْدَ رَبِّهِمْ جَنّٰتٌ تَجْرِیْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِیْنَ فِیْهَا وَاَزْوَاجٌ مُّطَهَّرَةٌ وَّرِضْوَانٌ مِّنَ اللّٰهِ ؕ— وَاللّٰهُ بَصِیْرٌ بِالْعِبَادِ ۟ۚ
(ऐ नबी!) कह दें : क्या मैं तुम्हें उससे बेहतर चीज़ बताऊँ? उन लोगों के लिए जो (अल्लाह से) डरने वाले हैं उनके पालनहार के पास ऐसे बाग़ हैं, जिनके नीचे से नहरें बहती हैं, (वे) उनमें हमेशा रहने वाले हैं और (उनके लिए उसमें) पवित्र पत्नियाँ तथा अल्लाह की प्रसन्नता है और अल्लाह बंदों को ख़ूब देखने वाला है।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَلَّذِیْنَ یَقُوْلُوْنَ رَبَّنَاۤ اِنَّنَاۤ اٰمَنَّا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوْبَنَا وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ ۟ۚ
जो कहते हैं : ऐ हमारे पालनहार! निःसंदेह हम ईमान लाए। इसलिए हमारे गुनाह माफ़ कर दे और हमें दोज़ख़ के अज़ाब से बचा।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَلصّٰبِرِیْنَ وَالصّٰدِقِیْنَ وَالْقٰنِتِیْنَ وَالْمُنْفِقِیْنَ وَالْمُسْتَغْفِرِیْنَ بِالْاَسْحَارِ ۟
जो धैर्य रखने वाले, सत्यवादी, आज्ञाकारी, दानशील और रात की अंतिम घड़ियों में (अल्लाह से) क्षमा याचना करने वाले हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
شَهِدَ اللّٰهُ اَنَّهٗ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ ۙ— وَالْمَلٰٓىِٕكَةُ وَاُولُوا الْعِلْمِ قَآىِٕمًا بِالْقِسْطِ ؕ— لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَ الْعَزِیْزُ الْحَكِیْمُ ۟ؕ
अल्लाह ने गवाही दी कि निःसंदेह उसके सिवा कोई पूज्य नहीं, तथा फ़रिश्तों और ज्ञान वालों ने भी, इस हाल में कि वह न्याय को क़ायम करने वाला है। उसके सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं, सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ الدِّیْنَ عِنْدَ اللّٰهِ الْاِسْلَامُ ۫— وَمَا اخْتَلَفَ الَّذِیْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ اِلَّا مِنْ بَعْدِ مَا جَآءَهُمُ الْعِلْمُ بَغْیًا بَیْنَهُمْ ؕ— وَمَنْ یَّكْفُرْ بِاٰیٰتِ اللّٰهِ فَاِنَّ اللّٰهَ سَرِیْعُ الْحِسَابِ ۟
निःसंदेह दीन (धर्म) अल्लाह के निकट इस्लाम ही है और किताब वालों ने अपने पास ज्ञान आ जाने के पश्चात आपस में ईर्ष्या के कारण ही मतभेद किया। तथा जो अल्लाह की आयतों का इनकार करे, तो निःसंदेह अल्लाह बहुत जल्द ह़िसाब लेने वाला है।
Arabic explanations of the Qur’an:
فَاِنْ حَآجُّوْكَ فَقُلْ اَسْلَمْتُ وَجْهِیَ لِلّٰهِ وَمَنِ اتَّبَعَنِ ؕ— وَقُلْ لِّلَّذِیْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ وَالْاُمِّیّٖنَ ءَاَسْلَمْتُمْ ؕ— فَاِنْ اَسْلَمُوْا فَقَدِ اهْتَدَوْا ۚ— وَاِنْ تَوَلَّوْا فَاِنَّمَا عَلَیْكَ الْبَلٰغُ ؕ— وَاللّٰهُ بَصِیْرٌ بِالْعِبَادِ ۟۠
फिर यदि वे आपसे झगड़ा करें, तो कह दीजिए कि मैंने अपना चेहरा अल्लाह के अधीन कर दिया और उसने भी जिसने मेरा अनुसरण किया, तथा उन लोगों से जिन्हें किताब दी गई और अनपढ़ लोगों से कह दो कि क्या तुम आज्ञाकारी हो गए? यदि वे आज्ञाकारी हो जाएँ, तो निःसंदेह मार्गदर्शन पा गए और यदि वे मुँह फेर लें, तो आपका दायित्व केवल (संदेश) पहुँचा देना[7] है तथा अल्लाह बंदों को ख़ूब देखने वाला है।
7. अर्थात उनसे वाद-विवाद करना व्यर्थ है।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ الَّذِیْنَ یَكْفُرُوْنَ بِاٰیٰتِ اللّٰهِ وَیَقْتُلُوْنَ النَّبِیّٖنَ بِغَیْرِ حَقٍّ ۙ— وَّیَقْتُلُوْنَ الَّذِیْنَ یَاْمُرُوْنَ بِالْقِسْطِ مِنَ النَّاسِ ۙ— فَبَشِّرْهُمْ بِعَذَابٍ اَلِیْمٍ ۟
निःसंदेह जो लोग अल्लाह की आयतों का इनकार करते हैं तथा नबियों को नाह़क़ क़त्ल करते हैं और उन लोगों को क़त्ल करते हैं, जो लोगों में से न्याय करने का आदेश देते हैं, उन्हें एक दर्दनाक अज़ाब[8] की शुभ सूचना सुना दीजिए।
8. इसमें यहूद की आस्था तथा कार्य संबंधी पथभ्रष्टता की ओर संकेत है।
Arabic explanations of the Qur’an:
اُولٰٓىِٕكَ الَّذِیْنَ حَبِطَتْ اَعْمَالُهُمْ فِی الدُّنْیَا وَالْاٰخِرَةِ ؗ— وَمَا لَهُمْ مِّنْ نّٰصِرِیْنَ ۟
यही वे लोग हैं, जिनके कर्म दुनिया तथा आख़िरत में बर्बाद हो गए और उनकी मदद करने वाले कोई नहीं।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَلَمْ تَرَ اِلَی الَّذِیْنَ اُوْتُوْا نَصِیْبًا مِّنَ الْكِتٰبِ یُدْعَوْنَ اِلٰی كِتٰبِ اللّٰهِ لِیَحْكُمَ بَیْنَهُمْ ثُمَّ یَتَوَلّٰی فَرِیْقٌ مِّنْهُمْ وَهُمْ مُّعْرِضُوْنَ ۟
(ऐ नबी!) क्या आपने उनका हाल[9] नहीं देखा, जिन्हें पुस्तक का एक भाग दिया गया, वे अल्लाह की पुस्तक की ओर बुलाए जाते हैं, ताकि वह उनके बीच निर्णय[10] करे। फिर उनमें से एक समूह मुँह फेर लेता है, इस हाल में कि वे उपेक्षा करने वाले होते हैं।
9. इससे अभिप्राय यहूदी विद्वान हैं। 10. अर्थात विभेद का निर्णय कर दे। इस आयत में अल्लाह की पुस्तक से अभिप्राय तौरात और इंजील हैं। और अर्थ यह है कि जब उन्हें उनकी पुस्तकों की ओर बुलाया जाता है कि अपनी पुस्तकों ही को निर्णायक मान लो, तथा बताओ कि उनमें अंतिम नबी पर ईमान लाने का आदेश दिया गया है या नहीं? तो वे कतरा जाते हैं, जैसे कि उन्हें कोई ज्ञान ही न हो।
Arabic explanations of the Qur’an:
ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ قَالُوْا لَنْ تَمَسَّنَا النَّارُ اِلَّاۤ اَیَّامًا مَّعْدُوْدٰتٍ ۪— وَّغَرَّهُمْ فِیْ دِیْنِهِمْ مَّا كَانُوْا یَفْتَرُوْنَ ۟
उनका यह हाल इसलिए है कि उन्होंने कहा कि दोज़ख़ की आग हमें गिनती के कुछ दिन ही छुएगी! तथा उन्हें उनके धर्म (के बारे) में उन बातों ने धोखा दिया, जो वे गढ़ा करते थे।
Arabic explanations of the Qur’an:
فَكَیْفَ اِذَا جَمَعْنٰهُمْ لِیَوْمٍ لَّا رَیْبَ فِیْهِ ۫— وَوُفِّیَتْ كُلُّ نَفْسٍ مَّا كَسَبَتْ وَهُمْ لَا یُظْلَمُوْنَ ۟
फिर उस समय (उनका) क्या हाल होगा, जब हम उन्हें उस दिन के लिए एकत्र करेंगे, जिसमें कोई संदेह नहीं तथा प्रत्येक प्राणी को उसके किए का भरपूर बदला दिया जाएगा और उनपर अत्याचार नहीं किया जाएगा?
Arabic explanations of the Qur’an:
قُلِ اللّٰهُمَّ مٰلِكَ الْمُلْكِ تُؤْتِی الْمُلْكَ مَنْ تَشَآءُ وَتَنْزِعُ الْمُلْكَ مِمَّنْ تَشَآءُ ؗ— وَتُعِزُّ مَنْ تَشَآءُ وَتُذِلُّ مَنْ تَشَآءُ ؕ— بِیَدِكَ الْخَیْرُ ؕ— اِنَّكَ عَلٰی كُلِّ شَیْءٍ قَدِیْرٌ ۟
(ऐ नबी!) कह दें : ऐ अल्लाह! राज्य के स्वामी! तू जिसे चाहे, राज्य देता है और जिससे चाहे, राज्य छीन लेता है तथा जिसे चाहे, सम्मान देता है और जिसे चाहे, अपमानित कर देता है। तेरे ही हाथ में सारी भलाई है। निःसंदेह तू हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।[11]
11. इस आयत में अल्लाह की अपार शक्ति का वर्णन है।
Arabic explanations of the Qur’an:
تُوْلِجُ الَّیْلَ فِی النَّهَارِ وَتُوْلِجُ النَّهَارَ فِی الَّیْلِ ؗ— وَتُخْرِجُ الْحَیَّ مِنَ الْمَیِّتِ وَتُخْرِجُ الْمَیِّتَ مِنَ الْحَیِّ ؗ— وَتَرْزُقُ مَنْ تَشَآءُ بِغَیْرِ حِسَابٍ ۟
तू रात को दिन में दाख़िल करता है तथा दिन को रात में दाख़िल[12] करता है। और तू जीवित को मृत से निकालता है तथा मृत को जीवित से निकालता है और तू जिसे चाहे असंख्य जीविका देता है।
12. इसमें दिन-रात के परिवर्तन की ओर संकेत है।
Arabic explanations of the Qur’an:
لَا یَتَّخِذِ الْمُؤْمِنُوْنَ الْكٰفِرِیْنَ اَوْلِیَآءَ مِنْ دُوْنِ الْمُؤْمِنِیْنَ ۚ— وَمَنْ یَّفْعَلْ ذٰلِكَ فَلَیْسَ مِنَ اللّٰهِ فِیْ شَیْءٍ اِلَّاۤ اَنْ تَتَّقُوْا مِنْهُمْ تُقٰىةً ؕ— وَیُحَذِّرُكُمُ اللّٰهُ نَفْسَهٗ ؕ— وَاِلَی اللّٰهِ الْمَصِیْرُ ۟
ईमान वालों को चाहिए कि वे मोमिनों को छोड़कर काफ़िरों को मित्र न बनाएँ और जो ऐसा करेगा, उसका अल्लाह से कोई संबंध नहीं। परंतु यह कि तुम उनसे अपना बचाव[13] करो, और अल्लाह तुम्हें अपने आपसे डराता है और अल्लाह ही की ओर लौटकर जाना है।
13.अर्थात संधि मित्र बना सकते हो।
Arabic explanations of the Qur’an:
قُلْ اِنْ تُخْفُوْا مَا فِیْ صُدُوْرِكُمْ اَوْ تُبْدُوْهُ یَعْلَمْهُ اللّٰهُ ؕ— وَیَعْلَمُ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَمَا فِی الْاَرْضِ ؕ— وَاللّٰهُ عَلٰی كُلِّ شَیْءٍ قَدِیْرٌ ۟
(ऐ नबी!) कह दीजिए : यदि तुम उसे छिपाओ जो तुम्हारे सीनों में है, या उसे प्रकट करो, अल्लाह उसे जान लेगा तथा वह जानता है जो कुछ आकाशों में है और जो धरती में है, और अल्लाह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।
Arabic explanations of the Qur’an:
یَوْمَ تَجِدُ كُلُّ نَفْسٍ مَّا عَمِلَتْ مِنْ خَیْرٍ مُّحْضَرًا ۖۚۛ— وَّمَا عَمِلَتْ مِنْ سُوْٓءٍ ۛۚ— تَوَدُّ لَوْ اَنَّ بَیْنَهَا وَبَیْنَهٗۤ اَمَدًاۢ بَعِیْدًا ؕ— وَیُحَذِّرُكُمُ اللّٰهُ نَفْسَهٗ ؕ— وَاللّٰهُ رَءُوْفٌۢ بِالْعِبَادِ ۟۠
जिस दिन प्रत्येक व्यक्ति अपनी की हुई नेकी को हाज़िर किया हुआ पाएगा, तथा जिसने बुराई की होगी, वह कामना करेगा कि उसके तथा उसकी बुराई के बीच बहुत दूर का फ़ासला होता। तथा अल्लाह तुम्हें अपने आपसे[14] डराता है और अल्लाह अपने बंदों के प्रति अत्यंत करुणामय है।
14. अर्थात अपनी अवज्ञा से।
Arabic explanations of the Qur’an:
قُلْ اِنْ كُنْتُمْ تُحِبُّوْنَ اللّٰهَ فَاتَّبِعُوْنِیْ یُحْبِبْكُمُ اللّٰهُ وَیَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوْبَكُمْ ؕ— وَاللّٰهُ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟
(ऐ नबी!) कह दीजिए : यदि तुम अल्लाह से प्रेम करते हो, तो मेरा अनुसरण करो, अल्लाह तुमसे प्रेम[15] करेगा तथा तुम्हें तुम्हारे पाप क्षमा कर देगा और अल्लाह बहुत क्षमा करने वाला, अत्यंत दयावान् है।
15. इसमें यह संकेत है कि जो अल्लाह से प्रेम का दावा करता हो और मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का अनुसरण न करता हो, तो वह अल्लाह से प्रेम करने वाला नहीं हो सकता।
Arabic explanations of the Qur’an:
قُلْ اَطِیْعُوا اللّٰهَ وَالرَّسُوْلَ ۚ— فَاِنْ تَوَلَّوْا فَاِنَّ اللّٰهَ لَا یُحِبُّ الْكٰفِرِیْنَ ۟
(ऐ नबी!) आप कह दें : अल्लाह और रसूल की आज्ञा का अनुपालन करो। फिर यदि वे मुँह फेर लें, तो निःसंदेह अल्लाह काफ़िरों से प्रेम नहीं करता।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ اللّٰهَ اصْطَفٰۤی اٰدَمَ وَنُوْحًا وَّاٰلَ اِبْرٰهِیْمَ وَاٰلَ عِمْرٰنَ عَلَی الْعٰلَمِیْنَ ۟ۙ
निःसंदेह अल्लाह ने आदम और नूह़ को तथा इबराहीम के घराने और इमरान के घराने को संसार वासियों में से चुन लिया।
Arabic explanations of the Qur’an:
ذُرِّیَّةً بَعْضُهَا مِنْ بَعْضٍ ؕ— وَاللّٰهُ سَمِیْعٌ عَلِیْمٌ ۟ۚ
ये एक-दूसरे की संतान हैं और अल्लाह सब कुछ सुनने वाला और सब कुछ जानने वाला है।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِذْ قَالَتِ امْرَاَتُ عِمْرٰنَ رَبِّ اِنِّیْ نَذَرْتُ لَكَ مَا فِیْ بَطْنِیْ مُحَرَّرًا فَتَقَبَّلْ مِنِّیْ ۚ— اِنَّكَ اَنْتَ السَّمِیْعُ الْعَلِیْمُ ۟
जब इमरान की पत्नी[16] ने कहा : ऐ मेरे पालनहार! निःसंदेह मैंने तेरे[17] लिए उसकी मन्नत मानी है, जो मेरे पेट में है कि आज़ाद छोड़ा हुआ होगा। सो मुझसे स्वीकार कर। निःसंदेह तू ही सब कुछ सुनने वाला, सब कुछ जानने वाला है।
16. अर्थात मरयम की माँ। 17. अर्थात बैतुल मक़दिस की सेवा के लिए।
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فَلَمَّا وَضَعَتْهَا قَالَتْ رَبِّ اِنِّیْ وَضَعْتُهَاۤ اُ ؕ— وَاللّٰهُ اَعْلَمُ بِمَا وَضَعَتْ ؕ— وَلَیْسَ الذَّكَرُ كَالْاُ ۚ— وَاِنِّیْ سَمَّیْتُهَا مَرْیَمَ وَاِنِّیْۤ اُعِیْذُهَا بِكَ وَذُرِّیَّتَهَا مِنَ الشَّیْطٰنِ الرَّجِیْمِ ۟
फिर जब उसने उसे जना, तो कहा : ऐ मेरे पालनहार! यह तो मैंने लड़की जनी है! और अल्लाह अधिक जानने वाला है जो उसने जना और लड़का इस लड़की जैसा नहीं, निःसंदेह मैंने उसका नाम मरयम रखा है और निःसंदेह मैं उसे तथा उसकी संतान को धिक्कारे हुए शैतान से तेरी पनाह में देती हूँ।[18]
18. हदीस में है कि जब कोई शिशु जन्म लेता है, तो शैतान उसे स्पर्श करता है, जिसके कारण वह चीख कर रोता है, परंतु मरयम और उसके पुत्र को स्पर्श नहीं किया था। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4548)
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فَتَقَبَّلَهَا رَبُّهَا بِقَبُوْلٍ حَسَنٍ وَّاَنْۢبَتَهَا نَبَاتًا حَسَنًا ۙ— وَّكَفَّلَهَا زَكَرِیَّا ؕ— كُلَّمَا دَخَلَ عَلَیْهَا زَكَرِیَّا الْمِحْرَابَ ۙ— وَجَدَ عِنْدَهَا رِزْقًا ۚ— قَالَ یٰمَرْیَمُ اَنّٰی لَكِ هٰذَا ؕ— قَالَتْ هُوَ مِنْ عِنْدِ اللّٰهِ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ یَرْزُقُ مَنْ یَّشَآءُ بِغَیْرِ حِسَابٍ ۟
तो उसके पालनहार ने उसे अच्छी स्वीकृति के साथ स्वीकार किया और उसका अच्छी तरह पालन-पोषण किया और उसका अभिभावक ज़करिय्या को बना दिया। जब कभी ज़करिय्या उसके पास मेह़राब (उपासना की जगह) में जाता, उसके पास कोई न कोई खाने की चीज़ पाता। उसने कहा : ऐ मरयम! यह तेरे लिए कहाँ से है? उसने कहा : यह अल्लाह के पास से है। निःसंदेह अल्लाह जिसे चाहता है, बेहिसाब रोज़ी प्रदान करता है।
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هُنَالِكَ دَعَا زَكَرِیَّا رَبَّهٗ ۚ— قَالَ رَبِّ هَبْ لِیْ مِنْ لَّدُنْكَ ذُرِّیَّةً طَیِّبَةً ۚ— اِنَّكَ سَمِیْعُ الدُّعَآءِ ۟
वहीं ज़करिय्या ने अपने पालनहार से प्रार्थना की, कहा : ऐ मेरे पालनहार! मुझे अपनी ओर से एक पवित्र संतान प्रदान कर। निःसंदेह तू ही प्रार्थना को बहुत सुनने वाला है।
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فَنَادَتْهُ الْمَلٰٓىِٕكَةُ وَهُوَ قَآىِٕمٌ یُّصَلِّیْ فِی الْمِحْرَابِ ۙ— اَنَّ اللّٰهَ یُبَشِّرُكَ بِیَحْیٰی مُصَدِّقًا بِكَلِمَةٍ مِّنَ اللّٰهِ وَسَیِّدًا وَّحَصُوْرًا وَّنَبِیًّا مِّنَ الصّٰلِحِیْنَ ۟
तो फ़रिश्तों ने उन्हें आवाज़ दी, जबकि वह मेह़राब (इबादतगाह) में खड़े नमाज़ पढ़ रहे थे कि निःसंदेह अल्लाह आपको 'यह़या' की ख़ुशख़बरी देता है, जो अल्लाह के एक कलिमे (ईसा अलैहिस्सलाम) की पुष्टि करने वाला, सरदार तथा संयमी और सदाचारियों में से नबी होगा।
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قَالَ رَبِّ اَنّٰی یَكُوْنُ لِیْ غُلٰمٌ وَّقَدْ بَلَغَنِیَ الْكِبَرُ وَامْرَاَتِیْ عَاقِرٌ ؕ— قَالَ كَذٰلِكَ اللّٰهُ یَفْعَلُ مَا یَشَآءُ ۟
उन्होंने कहा : ऐ मेरे पालनहार! मेरे हाँ पुत्र कैसे होगा, जबकि मुझे बुढ़ापा आ पहुँचा है और मेरी पत्नी बाँझ[19] है? (अल्लाह ने) कहा : इसी प्रकार अल्लाह करता है जो चाहता है।
19. यह प्रश्न ज़करिया अलैहिस्सलाम ने प्रसन्न होकर आश्चर्य से किया।
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قَالَ رَبِّ اجْعَلْ لِّیْۤ اٰیَةً ؕ— قَالَ اٰیَتُكَ اَلَّا تُكَلِّمَ النَّاسَ ثَلٰثَةَ اَیَّامٍ اِلَّا رَمْزًا ؕ— وَاذْكُرْ رَّبَّكَ كَثِیْرًا وَّسَبِّحْ بِالْعَشِیِّ وَالْاِبْكَارِ ۟۠
उन्होंने कहा : ऐ मेरे पालनहार! मेरे लिए कोई निशानी बना दे। (अल्लाह ने) फरमाया : तुम्हारी निशानी यह है कि तुम तीन दिन लोगों से बात नहीं करोगे परंतु इशारे से। तथा तुम अपने पालनहार को बहुत अधिक याद करो और शाम एवं सुबह उसकी पवित्रता का वर्णन करो।
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وَاِذْ قَالَتِ الْمَلٰٓىِٕكَةُ یٰمَرْیَمُ اِنَّ اللّٰهَ اصْطَفٰىكِ وَطَهَّرَكِ وَاصْطَفٰىكِ عَلٰی نِسَآءِ الْعٰلَمِیْنَ ۟
और (याद करो) जब फ़रिश्तों ने कहा : ऐ मरयम! निःसंदेह अल्लाह ने तुम्हारा चयन कर लिया तथा तुम्हें पवित्र कर दिया और सर्व संसार की स्त्रियों पर तुम्हें चुन लिया है।
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یٰمَرْیَمُ اقْنُتِیْ لِرَبِّكِ وَاسْجُدِیْ وَارْكَعِیْ مَعَ الرّٰكِعِیْنَ ۟
ऐ मरयम! अपने पालनहार का आज्ञापालन करती रहो और सजदा करो तथा रुकू करने वालों के साथ रुकू करती रहो।
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ذٰلِكَ مِنْ اَنْۢبَآءِ الْغَیْبِ نُوْحِیْهِ اِلَیْكَ ؕ— وَمَا كُنْتَ لَدَیْهِمْ اِذْ یُلْقُوْنَ اَقْلَامَهُمْ اَیُّهُمْ یَكْفُلُ مَرْیَمَ ۪— وَمَا كُنْتَ لَدَیْهِمْ اِذْ یَخْتَصِمُوْنَ ۟
(ऐ नबी!) ये ग़ैब (परोक्ष) की कुछ सूचनाएँ हैं, जो हम आपकी ओर वह़्य कर रहे हैं और आप उस समय उनके पास मौजूद न थे, जब वे अपनी क़लमों[20] को फेंक रहे थे कि उनमें से कौन मरयम की किफ़ालत करे और न आप उस समय उनके पास थे, जब वे झगड़ रहे थे।
20. अर्थात यह निर्णय करने के लिए कि मरयम का संरक्षक कौन हो?
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اِذْ قَالَتِ الْمَلٰٓىِٕكَةُ یٰمَرْیَمُ اِنَّ اللّٰهَ یُبَشِّرُكِ بِكَلِمَةٍ مِّنْهُ ۙۗ— اسْمُهُ الْمَسِیْحُ عِیْسَی ابْنُ مَرْیَمَ وَجِیْهًا فِی الدُّنْیَا وَالْاٰخِرَةِ وَمِنَ الْمُقَرَّبِیْنَ ۟ۙ
(ऐ नबी! उस समय को याद करें) जब फ़रिश्तों ने कहा : ऐ मरयम! निःसंदेह अल्लाह तुम्हें अपनी ओर से एक शब्द[21] की शुभ सूचना देता है, जिसका नाम 'मसीह़ ईसा बिन मरयम' है। वह दुनिया तथा आख़िरत में महान स्थान वाला और निकटवर्ती लोगों में से होगा।
21. अर्थात वह अल्लाह के शब्द "कुन" से पैदा होगा, जिस का अर्थ है "हो जा"।
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وَیُكَلِّمُ النَّاسَ فِی الْمَهْدِ وَكَهْلًا وَّمِنَ الصّٰلِحِیْنَ ۟
और वह लोगों से पालने में बात करेगा तथा अधेड़ आयु में भी और नेक लोगों में से होगा।
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قَالَتْ رَبِّ اَنّٰی یَكُوْنُ لِیْ وَلَدٌ وَّلَمْ یَمْسَسْنِیْ بَشَرٌ ؕ— قَالَ كَذٰلِكِ اللّٰهُ یَخْلُقُ مَا یَشَآءُ ؕ— اِذَا قَضٰۤی اَمْرًا فَاِنَّمَا یَقُوْلُ لَهٗ كُنْ فَیَكُوْنُ ۟
उस (मरयम) ने (आश्चर्य से) कहा : ऐ मेरे पालनहार! मेरे हाँ पुत्र कैसे होगा, हालाँकि किसी पुरुष ने मुझे हाथ नहीं लगाया? उसने[22] कहा : इसी तरह अल्लाह पैदा करता है जो चाहता है। जब वह किसी काम का निर्णय कर लेता है, तो उससे यही कहता है : "हो जा", तो वह हो जाता है।
22. अर्थात फ़रिश्ते ने।
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وَیُعَلِّمُهُ الْكِتٰبَ وَالْحِكْمَةَ وَالتَّوْرٰىةَ وَالْاِنْجِیْلَ ۟ۚ
और अल्लाह उसे लेखन, ह़िकमत, तौरात और इंजील की शिक्षा देगा।
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وَرَسُوْلًا اِلٰی بَنِیْۤ اِسْرَآءِیْلَ ۙ۬— اَنِّیْ قَدْ جِئْتُكُمْ بِاٰیَةٍ مِّنْ رَّبِّكُمْ ۙۚ— اَنِّیْۤ اَخْلُقُ لَكُمْ مِّنَ الطِّیْنِ كَهَیْـَٔةِ الطَّیْرِ فَاَنْفُخُ فِیْهِ فَیَكُوْنُ طَیْرًا بِاِذْنِ اللّٰهِ ۚ— وَاُبْرِئُ الْاَكْمَهَ وَالْاَبْرَصَ وَاُحْیِ الْمَوْتٰی بِاِذْنِ اللّٰهِ ۚ— وَاُنَبِّئُكُمْ بِمَا تَاْكُلُوْنَ وَمَا تَدَّخِرُوْنَ ۙ— فِیْ بُیُوْتِكُمْ ؕ— اِنَّ فِیْ ذٰلِكَ لَاٰیَةً لَّكُمْ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِیْنَ ۟ۚ
और (वह) बनी इसराईल की ओर रसूल होगा। (वह कहेगा :) निःसंदेह मैं तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से बड़ी निशानी लेकर आया हूँ कि निःसंदेह मैं तुम्हारे लिए मिट्टी से पक्षी के रूप जैसी आकृति बनाता हूँ, फिर उसमें फूँक मारता हूँ, तो वह अल्लाह की अनुमति से पक्षी बन जाती है और मैं अल्लाह की अनुमति से जन्म से अंधे तथा कोढ़ी को स्वस्थ कर देता हूँ और मुर्दों को जीवित कर देता हूँ। तथा तुम्हें बता देता हूँ जो कुछ तुम अपने घरों में खाते हो और जो संग्रह करते हो। निःसंदेह इसमें तुम्हारे लिए एक निशानी है, यदि तुम ईमान वाले हो।
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وَمُصَدِّقًا لِّمَا بَیْنَ یَدَیَّ مِنَ التَّوْرٰىةِ وَلِاُحِلَّ لَكُمْ بَعْضَ الَّذِیْ حُرِّمَ عَلَیْكُمْ وَجِئْتُكُمْ بِاٰیَةٍ مِّنْ رَّبِّكُمْ ۫— فَاتَّقُوا اللّٰهَ وَاَطِیْعُوْنِ ۟
तथा अपने से पहले की किताब तौरात की पुष्टि करने वाला हूँ और ताकि मैं तुम्हारे लिए कुछ वे चीज़ें हलाल कर दूँ, जो तुम पर हराम कर दी गई थीं तथा मैं तुम्हारे पास तुम्हारे पालनहार की ओर से बड़ी निशानी लेकर आया हूँ। अतः तुम अल्लाह से डरो और मेरा कहना मानो।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ اللّٰهَ رَبِّیْ وَرَبُّكُمْ فَاعْبُدُوْهُ ؕ— هٰذَا صِرَاطٌ مُّسْتَقِیْمٌ ۟
निःसंदेह अल्लाह ही मेरा पालनहार और तुम्हारा पालनहार है। अतः उसी की इबादत करो। यही सीधा मार्ग है।
Arabic explanations of the Qur’an:
فَلَمَّاۤ اَحَسَّ عِیْسٰی مِنْهُمُ الْكُفْرَ قَالَ مَنْ اَنْصَارِیْۤ اِلَی اللّٰهِ ؕ— قَالَ الْحَوَارِیُّوْنَ نَحْنُ اَنْصَارُ اللّٰهِ ۚ— اٰمَنَّا بِاللّٰهِ ۚ— وَاشْهَدْ بِاَنَّا مُسْلِمُوْنَ ۟
फिर जब ईसा ने उनसे कुफ़्र महसूस किया, तो कहा : कौन हैं जो अल्लाह की ओर (बुलाने में) मेरे सहायक हैं? ह़वारियों (साथियों) ने कहा : हम अल्लाह के सहायक हैं। हम अल्लाह पर ईमान लाए और तुम गवाह रहो कि निःसंदेह हम आज्ञाकारी हैं।
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رَبَّنَاۤ اٰمَنَّا بِمَاۤ اَنْزَلْتَ وَاتَّبَعْنَا الرَّسُوْلَ فَاكْتُبْنَا مَعَ الشّٰهِدِیْنَ ۟
ऐ हमारे पालनहार! हम उसपर ईमान लाए, जो तूने उतारा और हमने रसूल का अनुसरण किया, अतः तू हमें गवाही देने वालों के साथ लिख ले।
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وَمَكَرُوْا وَمَكَرَ اللّٰهُ ؕ— وَاللّٰهُ خَیْرُ الْمٰكِرِیْنَ ۟۠
तथा उन्होंने गुप्त योजना[23] बनाई और अल्लाह ने (भी) गुप्त योजना बनाई और अल्लाह सब गुप्त योजना बनाने वालों से बेहतर है।
23.अर्थात ईसा (अलैहिस्सलाम) को हत करने की। तो अल्लाह ने उन्हें विफल कर दिया। (देखिए : सूरतुन्-निसा, आयत :157)
Arabic explanations of the Qur’an:
اِذْ قَالَ اللّٰهُ یٰعِیْسٰۤی اِنِّیْ مُتَوَفِّیْكَ وَرَافِعُكَ اِلَیَّ وَمُطَهِّرُكَ مِنَ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا وَجَاعِلُ الَّذِیْنَ اتَّبَعُوْكَ فَوْقَ الَّذِیْنَ كَفَرُوْۤا اِلٰی یَوْمِ الْقِیٰمَةِ ۚ— ثُمَّ اِلَیَّ مَرْجِعُكُمْ فَاَحْكُمُ بَیْنَكُمْ فِیْمَا كُنْتُمْ فِیْهِ تَخْتَلِفُوْنَ ۟
जब अल्लाह ने कहा : ऐ ईसा! मैं तुझे क़ब्ज़ करने वाला हूँ और तुझे अपनी ओर उठाने वाला हूँ, तथा तुझे उन लोगों से पवित्र करने वाला हूँ जिन्होंने कुफ़्र किया और तेरे अनुयायियों को क़ियामत के दिन तक काफ़िरों के ऊपर[24] करने वाला हूँ। फिर मेरी ही ओर तुम्हारा लौटकर आना है। तो मैं तुम्हारे बीच उस चीज़ के बारे में निर्णय करूँगा, जिसमें तुम मतभेद किया करते थे।
24. अर्थात यहूदियों तथा मुश्रिकों के ऊपर।
Arabic explanations of the Qur’an:
فَاَمَّا الَّذِیْنَ كَفَرُوْا فَاُعَذِّبُهُمْ عَذَابًا شَدِیْدًا فِی الدُّنْیَا وَالْاٰخِرَةِ ؗ— وَمَا لَهُمْ مِّنْ نّٰصِرِیْنَ ۟
फिर जिन लोगों ने कुफ़्र किया, तो मैं उन्हें दुनिया एवं आख़िरत में बहुत कड़ी यातना दूँगा और कोई उनके सहायक न होंगे।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَاَمَّا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَعَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ فَیُوَفِّیْهِمْ اُجُوْرَهُمْ ؕ— وَاللّٰهُ لَا یُحِبُّ الظّٰلِمِیْنَ ۟
तथा रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, तो वह उन्हें उनका बदला पूरा-पूरा देगा तथा अल्लाह अत्याचारियों से प्रेम नहीं करता।
Arabic explanations of the Qur’an:
ذٰلِكَ نَتْلُوْهُ عَلَیْكَ مِنَ الْاٰیٰتِ وَالذِّكْرِ الْحَكِیْمِ ۟
(ऐ नबी!) यह है जिसे हम आयतों (निशानियों) और हिकमत से परिपूर्ण (दृढ़) उपदेश में से आपको पढ़कर सुनाते हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ مَثَلَ عِیْسٰی عِنْدَ اللّٰهِ كَمَثَلِ اٰدَمَ ؕ— خَلَقَهٗ مِنْ تُرَابٍ ثُمَّ قَالَ لَهٗ كُنْ فَیَكُوْنُ ۟
निःसंदेह ईसा का उदाहरण अल्लाह के निकट आदम के उदाहरण की तरह[25] है कि उसे थोड़ी-सी मिट्टी से बनाया, फिर उसे कहा : "हो जा", तो वह हो जाता है।
25. अर्थात जैसे प्रथम पुरुष आदम (अलैहिस्सलाम) को बिना माता-पिता के उत्पन्न किया, उसी प्रकार ईसा (अलैहिस्सलाम) को बिना पिता के उत्पन्न कर दिया, अतः वह भी मानव पुरुष हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَلْحَقُّ مِنْ رَّبِّكَ فَلَا تَكُنْ مِّنَ الْمُمْتَرِیْنَ ۟
यह सत्य[26] आपके पालनहार की ओर से है। अतः आप संदेह करने वालों में से न हों।
26. अर्थात ईसा अलैहिस्सलाम का मानव पुरुष होना। अतः आप उनके विषय में किसी संदेह में न पड़ें।
Arabic explanations of the Qur’an:
فَمَنْ حَآجَّكَ فِیْهِ مِنْ بَعْدِ مَا جَآءَكَ مِنَ الْعِلْمِ فَقُلْ تَعَالَوْا نَدْعُ اَبْنَآءَنَا وَاَبْنَآءَكُمْ وَنِسَآءَنَا وَنِسَآءَكُمْ وَاَنْفُسَنَا وَاَنْفُسَكُمْ ۫— ثُمَّ نَبْتَهِلْ فَنَجْعَلْ لَّعْنَتَ اللّٰهِ عَلَی الْكٰذِبِیْنَ ۟
फिर जो व्यक्ति आपसे उसके बारे में झगड़ा करे, इसके बाद कि आपके पास ज्ञान आ चुका, तो कह दें : आओ! हम अपने पुत्रों तथा तुम्हारे पुत्रों और अपनी स्त्रियों तथा तुम्हारी स्त्रियों को बुला लें और अपने आपको और तुम्हें भी, फिर गिड़गिड़ाकर प्रार्थना करें और झूठों पर अल्लाह की ला'नत[27] भेजें।
27. अर्थात् अल्लाह से यह प्रार्थना करें कि वह हममें से मिथ्यावादियों को अपनी दया से दूर कर दे।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ هٰذَا لَهُوَ الْقَصَصُ الْحَقُّ ۚ— وَمَا مِنْ اِلٰهٍ اِلَّا اللّٰهُ ؕ— وَاِنَّ اللّٰهَ لَهُوَ الْعَزِیْزُ الْحَكِیْمُ ۟
निःसंदेह यही निश्चय सत्य वर्णन है तथा अल्लाह के सिवा कोई भी पूज्य नहीं। और निःसंदेह अल्लाह, निश्चय वही सब पर प्रभुत्वशाली, पूर्ण हिकमत वाला है।
Arabic explanations of the Qur’an:
فَاِنْ تَوَلَّوْا فَاِنَّ اللّٰهَ عَلِیْمٌۢ بِالْمُفْسِدِیْنَ ۟۠
फिर यदि वे मुँह फेरें[28], तो निःसंदेह अल्लाह फ़साद करने वालों को भली-भाँति जानने वाला है।
28. अर्थात् सत्य को जानने की इस विधि को स्वीकार न करें।
Arabic explanations of the Qur’an:
قُلْ یٰۤاَهْلَ الْكِتٰبِ تَعَالَوْا اِلٰی كَلِمَةٍ سَوَآءٍ بَیْنَنَا وَبَیْنَكُمْ اَلَّا نَعْبُدَ اِلَّا اللّٰهَ وَلَا نُشْرِكَ بِهٖ شَیْـًٔا وَّلَا یَتَّخِذَ بَعْضُنَا بَعْضًا اَرْبَابًا مِّنْ دُوْنِ اللّٰهِ ؕ— فَاِنْ تَوَلَّوْا فَقُوْلُوا اشْهَدُوْا بِاَنَّا مُسْلِمُوْنَ ۟
(ऐ नबी!) कह दीजिए : ऐ किताब वालो! आओ एक ऐसी बात की ओर जो हमारे बीच और तुम्हारे बीच समान (बराबर) है; यह कि हम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत न करें और उसके साथ किसी चीज़ को साझी न बनाएँ तथा हममें से कोई किसी को अल्लाह के सिवा रब न बनाए। फिर यदि वे मुँह फेर लें, तो कह दो कि तुम गवाह रहो कि हम (अल्लाह के) आज्ञाकारी[29] हैं।
29. इस आयत में ईसा अलैहिस्सलाम से संबंधित विवाद के निवारण के लिए एक दूसरी विधि बताई गई है।
Arabic explanations of the Qur’an:
یٰۤاَهْلَ الْكِتٰبِ لِمَ تُحَآجُّوْنَ فِیْۤ اِبْرٰهِیْمَ وَمَاۤ اُنْزِلَتِ التَّوْرٰىةُ وَالْاِنْجِیْلُ اِلَّا مِنْ بَعْدِهٖ ؕ— اَفَلَا تَعْقِلُوْنَ ۟
ऐ किताब वालो! तुम इबराहीम के (धर्म के) बारे में क्यों झगड़ते[30] हो? जबकि तौरात और इंजील तो उसके पश्चात ही उतारे गए हैं, तो क्या तुम समझते नहीं?
30. अर्थात यह क्यों कहते हो कि इबराहीम अलैहिस्सलाम हमारे धर्म पर थे। तौरात और इंजील तो उनके हज़ारों वर्ष पश्चात् अवतरित हुए। तो वह इन धर्मों पर कैसे हो सकते हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
هٰۤاَنْتُمْ هٰۤؤُلَآءِ حَاجَجْتُمْ فِیْمَا لَكُمْ بِهٖ عِلْمٌ فَلِمَ تُحَآجُّوْنَ فِیْمَا لَیْسَ لَكُمْ بِهٖ عِلْمٌ ؕ— وَاللّٰهُ یَعْلَمُ وَاَنْتُمْ لَا تَعْلَمُوْنَ ۟
देखो, तुम वे लोग हो कि तुमने उस विषय में वाद-विवाद किया, जिसके बारे में तुम्हें कुछ ज्ञान[31] था, तो उस विषय में क्यों वाद-विवाद करते हो, जिसका तुम्हें कुछ ज्ञान[32] नहीं? तथा अल्लाह जानता है और तुम नहीं जानते।
31. अर्थात अपने धर्म के विषय में। 32. अर्थात इबराहीम अलैहिस्सलाम के धर्म के बारे में।
Arabic explanations of the Qur’an:
مَا كَانَ اِبْرٰهِیْمُ یَهُوْدِیًّا وَّلَا نَصْرَانِیًّا وَّلٰكِنْ كَانَ حَنِیْفًا مُّسْلِمًا ؕ— وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِیْنَ ۟
इबराहीम न यहूदी थे और न ईसाई, बल्कि वह एकाग्रचित आज्ञाकारी थे। तथा वह बहुदेववादियों में से न थे।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ اَوْلَی النَّاسِ بِاِبْرٰهِیْمَ لَلَّذِیْنَ اتَّبَعُوْهُ وَهٰذَا النَّبِیُّ وَالَّذِیْنَ اٰمَنُوْا ؕ— وَاللّٰهُ وَلِیُّ الْمُؤْمِنِیْنَ ۟
निःसंदेह लोगों में इबराहीम से सबसे अधिक निकट निश्चय वही लोग हैं, जिन्होंने उनका अनुसरण किया तथा यह नबी[33] और वे लोग जो ईमान लाए। और अल्लाह ही ईमान वालों का दोस्त (संरक्षक) है।
33. अर्थात मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके अनुयायी।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَدَّتْ طَّآىِٕفَةٌ مِّنْ اَهْلِ الْكِتٰبِ لَوْ یُضِلُّوْنَكُمْ ؕ— وَمَا یُضِلُّوْنَ اِلَّاۤ اَنْفُسَهُمْ وَمَا یَشْعُرُوْنَ ۟
अह्ले किताब के एक समूह ने चाहा काश! वे तुम्हें पथभ्रष्ट कर दें। हालाँकि वे अपने सिवा किसी को पथभ्रष्ट नहीं कर रहे हैं। और उन्हें इसका एहसास नहीं।
Arabic explanations of the Qur’an:
یٰۤاَهْلَ الْكِتٰبِ لِمَ تَكْفُرُوْنَ بِاٰیٰتِ اللّٰهِ وَاَنْتُمْ تَشْهَدُوْنَ ۟
ऐ अह्ले किताब! तुम क्यों अल्लाह की आयतों[34] का इनकार करते हो, जबकि तुम खुद गवाही देते[35] हो?
34. जो तुम्हारी किताब में अंतिम नबी से संबंधित हैं। 35. अर्थात उन आयतों के सत्य होने के साक्षी हो।
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یٰۤاَهْلَ الْكِتٰبِ لِمَ تَلْبِسُوْنَ الْحَقَّ بِالْبَاطِلِ وَتَكْتُمُوْنَ الْحَقَّ وَاَنْتُمْ تَعْلَمُوْنَ ۟۠
ऐ किताब वालो! तुम क्यों सत्य को असत्य के साथ गड्डमड्ड करते हो और सत्य को छिपाते हो, हालाँकि तुम जानते हो?
Arabic explanations of the Qur’an:
وَقَالَتْ طَّآىِٕفَةٌ مِّنْ اَهْلِ الْكِتٰبِ اٰمِنُوْا بِالَّذِیْۤ اُنْزِلَ عَلَی الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَجْهَ النَّهَارِ وَاكْفُرُوْۤا اٰخِرَهٗ لَعَلَّهُمْ یَرْجِعُوْنَ ۟ۚۖ
और किताब वालों में से एक समूह ने कहा तुम दिन के आरंभ में उसपर ईमान ले आओ, जो उन लोगों पर उतारा गया है जो ईमान लाए हैं और उसके अंत में इनकार कर दो, ताकि वे (भी) वापस लौट आएँ।[36]
36. अर्थात मुसलमान इस्लाम से फिर जाएँ।
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وَلَا تُؤْمِنُوْۤا اِلَّا لِمَنْ تَبِعَ دِیْنَكُمْ ؕ— قُلْ اِنَّ الْهُدٰی هُدَی اللّٰهِ ۙ— اَنْ یُّؤْتٰۤی اَحَدٌ مِّثْلَ مَاۤ اُوْتِیْتُمْ اَوْ یُحَآجُّوْكُمْ عِنْدَ رَبِّكُمْ ؕ— قُلْ اِنَّ الْفَضْلَ بِیَدِ اللّٰهِ ۚ— یُؤْتِیْهِ مَنْ یَّشَآءُ ؕ— وَاللّٰهُ وَاسِعٌ عَلِیْمٌ ۟ۚۙ
और केवल उसी की मानो, जो तुम्हारे (धर्म) का अनुसरण करे। (ऐ नबी!) कह दो कि वास्तविक मार्गदर्शन तो अल्लाह का मार्गदर्शन है। (यह मत मानो) कि जो कुछ तुम्हें दिया गया है, वैसा किसी और को भी दिया जाएगा, अथवा वे तुमसे तुम्हारे पालनहार के पास झगड़ा करेंगे। कह दो निःसंदेह सब अनुग्रह अल्लाह के हाथ में है, वह उसे जिसको चाहता है, देता है और अल्लाह विस्तार वाला, सब कुछ जानने वाला है।
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یَّخْتَصُّ بِرَحْمَتِهٖ مَنْ یَّشَآءُ ؕ— وَاللّٰهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِیْمِ ۟
वह जिसे चाहता है अपनी रहमत (दया) के लिए विशिष्ट कर लेता है तथा अल्लाह बहुत बड़े अनुग्रह वाला है।
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وَمِنْ اَهْلِ الْكِتٰبِ مَنْ اِنْ تَاْمَنْهُ بِقِنْطَارٍ یُّؤَدِّهٖۤ اِلَیْكَ ۚ— وَمِنْهُمْ مَّنْ اِنْ تَاْمَنْهُ بِدِیْنَارٍ لَّا یُؤَدِّهٖۤ اِلَیْكَ اِلَّا مَا دُمْتَ عَلَیْهِ قَآىِٕمًا ؕ— ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ قَالُوْا لَیْسَ عَلَیْنَا فِی الْاُمِّیّٖنَ سَبِیْلٌ ۚ— وَیَقُوْلُوْنَ عَلَی اللّٰهِ الْكَذِبَ وَهُمْ یَعْلَمُوْنَ ۟
तथा किताब वालों में से कोई तो ऐसा है कि यदि तुम उसके पास ढेर सारा धन अमानत रख दो, तो वह तुम्हें उसे लौटा देगा तथा उनमें से कोई ऐसा है कि यदि तुम उसके पास एक दीनार[37] अमानत रखो, वह उसे तुम्हें अदा नहीं करेगा जब तक तुम उसके सिर पर खड़े न रहो। यह इसलिए कि उन्होंने कहा कि हमपर उन उम्मियों (अनपढ़ों) के बारे में (पकड़ का) कोई रास्ता[38] नहीं तथा वे अल्लाह पर झूठ बोलते हैं, हालाँकि वे जानते हैं।
37. दीनार सोने के सिक्के को कहा जाता है। 38. अर्थात उनके धन का उपभोग करने पर कोई पाप नहीं। क्योंकि यहूदियों ने अपने अतिरिक्त सब का धन ह़लाल समझ रखा था। और दूसरों को वह "उम्मी" कहा करते थे। अर्थात वे लोग जिनके पास कोई आसमानी किताब नहीं है।
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بَلٰی مَنْ اَوْفٰی بِعَهْدِهٖ وَاتَّقٰی فَاِنَّ اللّٰهَ یُحِبُّ الْمُتَّقِیْنَ ۟
क्यों नहीं! जो व्यक्ति अपना वचन पूरा करे और (अल्लाह से) डरे, तो निश्चय अल्लाह डरने वालों से प्रेम करता है।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ الَّذِیْنَ یَشْتَرُوْنَ بِعَهْدِ اللّٰهِ وَاَیْمَانِهِمْ ثَمَنًا قَلِیْلًا اُولٰٓىِٕكَ لَا خَلَاقَ لَهُمْ فِی الْاٰخِرَةِ وَلَا یُكَلِّمُهُمُ اللّٰهُ وَلَا یَنْظُرُ اِلَیْهِمْ یَوْمَ الْقِیٰمَةِ وَلَا یُزَكِّیْهِمْ ۪— وَلَهُمْ عَذَابٌ اَلِیْمٌ ۟
निःसंदेह जो लोग अल्लाह के वचन[39] तथा अपनी क़समों के बदले तनिक मूल्य प्राप्त करते हैं, उनका आख़िरत (परलोक) में कोई हिस्सा नहीं। अल्लाह क़ियामत के दिन न उनसे बात करेगा और न उनकी ओर देखेगा और न उन्हें पवित्र करेगा। तथा उनके लिए दर्दनाक यातना है।
39. अल्लाह के वचन से अभिप्राय वह वचन है, जो उनसे धर्म पुस्तकों द्वारा लिया गया है।
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وَاِنَّ مِنْهُمْ لَفَرِیْقًا یَّلْوٗنَ اَلْسِنَتَهُمْ بِالْكِتٰبِ لِتَحْسَبُوْهُ مِنَ الْكِتٰبِ وَمَا هُوَ مِنَ الْكِتٰبِ ۚ— وَیَقُوْلُوْنَ هُوَ مِنْ عِنْدِ اللّٰهِ وَمَا هُوَ مِنْ عِنْدِ اللّٰهِ ۚ— وَیَقُوْلُوْنَ عَلَی اللّٰهِ الْكَذِبَ وَهُمْ یَعْلَمُوْنَ ۟
और निःसंदेह उनमें से निश्चय कुछ लोग[40] ऐसे हैं, जो किताब (पढ़ने) के साथ अपनी ज़बानें मरोड़ते हैं, ताकि तुम उसे पुस्तक में से समझो, हालाँकि वह पुस्तक में से नहीं और कहते हैं, यह अल्लाह की ओर से है। हालाँकि वह अल्लाह की ओर से नहीं और अल्लाह पर झूठ कहते हैं, हालाँकि वे जानते हैं।
40. इससे अभिप्राय यहूदी विद्वान हैं। और पुस्तक से अभिप्राय तौरात है।
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مَا كَانَ لِبَشَرٍ اَنْ یُّؤْتِیَهُ اللّٰهُ الْكِتٰبَ وَالْحُكْمَ وَالنُّبُوَّةَ ثُمَّ یَقُوْلَ لِلنَّاسِ كُوْنُوْا عِبَادًا لِّیْ مِنْ دُوْنِ اللّٰهِ وَلٰكِنْ كُوْنُوْا رَبّٰنِیّٖنَ بِمَا كُنْتُمْ تُعَلِّمُوْنَ الْكِتٰبَ وَبِمَا كُنْتُمْ تَدْرُسُوْنَ ۟ۙ
किसी मनुष्य का यह अधिकार नहीं कि अल्लाह उसे पुस्तक, निर्णय शक्ति और नुबुव्वत (पैग़ंबरी) प्रदान करे, फिर वह लोगों से कहे कि अल्लाह को छोड़कर मेरे बंदे बन जाओ[41], बल्कि (वह तो यही कहेगा कि) तुम रब वाले बनो, इसलिए कि तुम पुस्तक की शिक्षा दिया करते थे और इसलिए कि तुम पढ़ा करते थे।
41. भावार्थ यह है कि जब नबी के लिए योग्य नहीं कि लोगों से कहे कि मेरी इबादत करो, तो किसी अन्य के लिए कैसे योग्य हो सकता है?
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَا یَاْمُرَكُمْ اَنْ تَتَّخِذُوا الْمَلٰٓىِٕكَةَ وَالنَّبِیّٖنَ اَرْبَابًا ؕ— اَیَاْمُرُكُمْ بِالْكُفْرِ بَعْدَ اِذْ اَنْتُمْ مُّسْلِمُوْنَ ۟۠
तथा न यह (अधिकार है) कि तुम्हें आदेश दे कि फ़रिश्तों और नबियों को रब (पूज्य)[42] बना लो। क्या वह तुम्हें कुफ़्र का आदेश देगा, इसके बाद कि तुम मुसलमान (अल्लाह के आज्ञाकारी) हो?
42. जैसे अपने पालनहार के आगे झुकते हो, उसी प्रकार उनके आगे भी झुको।
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وَاِذْ اَخَذَ اللّٰهُ مِیْثَاقَ النَّبِیّٖنَ لَمَاۤ اٰتَیْتُكُمْ مِّنْ كِتٰبٍ وَّحِكْمَةٍ ثُمَّ جَآءَكُمْ رَسُوْلٌ مُّصَدِّقٌ لِّمَا مَعَكُمْ لَتُؤْمِنُنَّ بِهٖ وَلَتَنْصُرُنَّهٗ ؕ— قَالَ ءَاَقْرَرْتُمْ وَاَخَذْتُمْ عَلٰی ذٰلِكُمْ اِصْرِیْ ؕ— قَالُوْۤا اَقْرَرْنَا ؕ— قَالَ فَاشْهَدُوْا وَاَنَا مَعَكُمْ مِّنَ الشّٰهِدِیْنَ ۟
तथा (याद करो) जब अल्लाह ने सब नबियों से दृढ़ वचन लिया कि मैं किताब और हिकमत में से जो कुछ तुम्हें दूँ, फिर तुम्हारे पास कोई रसूल आए जो उसकी पुष्टि करने वाला हो जो तुम्हारे पास है, तो तुम उसपर अवश्य ईमान लाओगे और अवश्य उसका समर्थन करोगे। (अल्लाह ने) कहा : क्या तुमने स्वीकार किया और उसपर मेरी प्रतिज्ञा क़बूल की? उन्होंने कहा : हमने स्वीकार कर लिया। (अल्लाह ने) कहा : तो तुम गवाह रहो और मैं भी तुम्हारे साथ गवाहों में से हूँ।[43]
43. भावार्थ यह है कि जब आगामी नबियों को ईमान लाना आवश्यक है, तो उनके अनुयायियों को भी ईमान लाना आवश्यक होगा। अतः अंतिम नबी मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर ईमान लाना सभी के लिए अनिवार्य है।
Arabic explanations of the Qur’an:
فَمَنْ تَوَلّٰی بَعْدَ ذٰلِكَ فَاُولٰٓىِٕكَ هُمُ الْفٰسِقُوْنَ ۟
फिर जो इसके बाद[44] फिर जाए, तो यही लोग अवज्ञाकारी हैं।
44. अर्थात इस वचन और प्रण के बाद।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَفَغَیْرَ دِیْنِ اللّٰهِ یَبْغُوْنَ وَلَهٗۤ اَسْلَمَ مَنْ فِی السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ طَوْعًا وَّكَرْهًا وَّاِلَیْهِ یُرْجَعُوْنَ ۟
तो क्या वे अल्लाह के धर्म (इस्लाम) के अलावा कुछ और तलाश करते हैं? जबकि आकाशों और धरती में जो भी है स्वेच्छा से और अनिच्छा से उसी का आज्ञाकारी[45] है तथा वे उसी की ओर लौटाए[46] जाएँगे।
45. अर्थात उसी की आज्ञा तथा व्यवस्था के अधीन हैं। फिर तुम्हें इस स्वभाविक धर्म से इनकार क्यों है? 46. अर्थात प्रलय के दिन अपने कर्मों के प्रतिफल के लिए।
Arabic explanations of the Qur’an:
قُلْ اٰمَنَّا بِاللّٰهِ وَمَاۤ اُنْزِلَ عَلَیْنَا وَمَاۤ اُنْزِلَ عَلٰۤی اِبْرٰهِیْمَ وَاِسْمٰعِیْلَ وَاِسْحٰقَ وَیَعْقُوْبَ وَالْاَسْبَاطِ وَمَاۤ اُوْتِیَ مُوْسٰی وَعِیْسٰی وَالنَّبِیُّوْنَ مِنْ رَّبِّهِمْ ۪— لَا نُفَرِّقُ بَیْنَ اَحَدٍ مِّنْهُمْ ؗ— وَنَحْنُ لَهٗ مُسْلِمُوْنَ ۟
(ऐ रसूल!) कह दो : हम अल्लाह पर ईमान लाए और उसपर जो हमपर उतारा गया, और जो इबराहीम, इसमाईल, इसह़ाक़, याक़ूब तथा उनकी संतान पर उतारा गया, और जो मूसा तथा ईसा और दूसरे नबियों को उनके पालनहार की ओर से दिया गया, हम इनमें से किसी एक के बीच अंतर नहीं करते[47] और हम उसी (अल्लाह) के आज्ञाकारी हैं।
47. अर्थात मूल धर्म अल्लाह की आज्ञाकारिता है, और अल्लाह की पुस्तकों तथा उसके नबियों के बीच अंतर करना, किसी को मानना और किसी को न मानना अल्लाह पर ईमान और उसकी आज्ञाकारिता के विपरीत है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَمَنْ یَّبْتَغِ غَیْرَ الْاِسْلَامِ دِیْنًا فَلَنْ یُّقْبَلَ مِنْهُ ۚ— وَهُوَ فِی الْاٰخِرَةِ مِنَ الْخٰسِرِیْنَ ۟
और जो इस्लाम के अलावा कोई और धर्म तलाश करे, तो वह उससे हरगिज़ स्वीकार नहीं किया जाएगा और वह आख़िरत में घाटा उठाने वालों में से होगा।
Arabic explanations of the Qur’an:
كَیْفَ یَهْدِی اللّٰهُ قَوْمًا كَفَرُوْا بَعْدَ اِیْمَانِهِمْ وَشَهِدُوْۤا اَنَّ الرَّسُوْلَ حَقٌّ وَّجَآءَهُمُ الْبَیِّنٰتُ ؕ— وَاللّٰهُ لَا یَهْدِی الْقَوْمَ الظّٰلِمِیْنَ ۟
अल्लाह उन लोगों को कैसे हिदायत देगा, जिन्होंने अपने ईमान के बाद कुफ़्र किया और (इसके बाद कि) उन्होंने गवाही दी कि निश्चय यह रसूल सच्चा है तथा उनके पास स्पष्ट प्रमाण आ चुके?! और अल्लाह अत्याचारियों को हिदायत नहीं देता।
Arabic explanations of the Qur’an:
اُولٰٓىِٕكَ جَزَآؤُهُمْ اَنَّ عَلَیْهِمْ لَعْنَةَ اللّٰهِ وَالْمَلٰٓىِٕكَةِ وَالنَّاسِ اَجْمَعِیْنَ ۟ۙ
ऐसे लोगों का बदला यह है कि उनपर अल्लाह की, फ़रिश्तों की और समस्त लोगों की ला'नत (धिक्कार) है।
Arabic explanations of the Qur’an:
خٰلِدِیْنَ فِیْهَا ۚ— لَا یُخَفَّفُ عَنْهُمُ الْعَذَابُ وَلَا هُمْ یُنْظَرُوْنَ ۟ۙ
हमेशा उसमें रहने वाले हैं, न उनका अज़ाब हल्का किया जाएगा और न उन्हें मोहलत दी जाएगी।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِلَّا الَّذِیْنَ تَابُوْا مِنْ بَعْدِ ذٰلِكَ وَاَصْلَحُوْا ۫— فَاِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟
परंतु जिन लोगों ने इसके बाद तौबा कर ली तथा सुधार कर लिया, तो निश्चय अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا بَعْدَ اِیْمَانِهِمْ ثُمَّ ازْدَادُوْا كُفْرًا لَّنْ تُقْبَلَ تَوْبَتُهُمْ ۚ— وَاُولٰٓىِٕكَ هُمُ الضَّآلُّوْنَ ۟
निःसंदेह जिन लोगों ने अपने ईमान के बाद कुफ़्र किया, फिर कुफ़्र में बढ़ गए, उनकी तौबा कदापि[48] स्वीकार न की जाएगी तथा वही लोग पथभ्रष्ट हैं।
48. अर्थात यदि मौत के समय क्षमा याचना करें।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا وَمَاتُوْا وَهُمْ كُفَّارٌ فَلَنْ یُّقْبَلَ مِنْ اَحَدِهِمْ مِّلْءُ الْاَرْضِ ذَهَبًا وَّلَوِ افْتَدٰی بِهٖ ؕ— اُولٰٓىِٕكَ لَهُمْ عَذَابٌ اَلِیْمٌۙ— وَّمَا لَهُمْ مِّنْ نّٰصِرِیْنَ ۟۠
निःसंदेह जिन लोगों ने कुफ़्र किया और इस हाल में मर गए कि वे काफ़िर थे, तो उनके किसी एक से धरती के बराबर सोना भी हरगिज़ स्वीकार नहीं किया जाएगा, चाहे वह उसे फ़िदया (छुड़ौती) में दे दे। ये लोग हैं जिनके लिए दर्दनाक यातना है और उनके लिए कोई मदद करने वाले नहीं।
Arabic explanations of the Qur’an:
لَنْ تَنَالُوا الْبِرَّ حَتّٰی تُنْفِقُوْا مِمَّا تُحِبُّوْنَ ؕ۬— وَمَا تُنْفِقُوْا مِنْ شَیْءٍ فَاِنَّ اللّٰهَ بِهٖ عَلِیْمٌ ۟
तुम नेकी[49] को कदापि नहीं प्राप्त कर सकते, जब तक तुम उन चीज़ों में से (अल्लाह के मार्ग में) खर्च न करो, जो तुम्हें प्रिय हैं। तथा तुम जो चीज़ भी खर्च करोगे, निःसंदेह अल्लाह उसे भली-भांति जानता है।
49. अर्थात नेकी का फल स्वर्ग।
Arabic explanations of the Qur’an:
كُلُّ الطَّعَامِ كَانَ حِلًّا لِّبَنِیْۤ اِسْرَآءِیْلَ اِلَّا مَا حَرَّمَ اِسْرَآءِیْلُ عَلٰی نَفْسِهٖ مِنْ قَبْلِ اَنْ تُنَزَّلَ التَّوْرٰىةُ ؕ— قُلْ فَاْتُوْا بِالتَّوْرٰىةِ فَاتْلُوْهَاۤ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِیْنَ ۟
खाने की समस्त चीज़ें बनी इसराईल के लिए हलाल (वैध) थीं, सिवाय उसके जिसे इसराईल (याक़ूब अलैहिस्सलाम)[50] ने तौरात उतरने से पहले अपने ऊपर हराम (अवैध) कर लिया था। (ऐ नबी!) आप कह दीजिए कि यदि तुम सच्चे हो, तो तौरात लाओ और उसे पढ़ो।
50. जब क़ुरआन ने यह कहा कि यहूद पर बहुत से स्वच्छ खाद्य पदार्थ उनके अत्याचार के कारण अवैध कर दिए गए। (देखिए : सूरतुन-निसा आयत : 160, सूरतुल- अन्आम, आयत : 146)। अन्यथा यह सभी इबराहीम (अलैहिस्सलाम) के युग में वैध थे। तो यहूद ने इसे झुठलाया तथा कहने लगे कि यह सब तो इबराहीम अलैहिस्सलाम के युग ही से अवैथ चले आ रहे हैं। इसी पर ये आयतें उतरीं कि तौरात से इसका प्रमाण प्रस्तुत करो कि ये इबराहीम (अलैहिस्सलाम) ही के युग से अवैध हैं। यह और बात है कि इसराईल ने कुछ चीज़ों जैसे ऊँट का मांस रोग अथवा मनौती के कारण अपने लिए स्वयं अवैध कर लिया था। यहाँ यह याद रखें कि इस्लाम में किसी उचित चीज़ को अनुचित करने की अनुमति किसी को नहीं है। (देखिए : शौकानी)
Arabic explanations of the Qur’an:
فَمَنِ افْتَرٰی عَلَی اللّٰهِ الْكَذِبَ مِنْ بَعْدِ ذٰلِكَ فَاُولٰٓىِٕكَ هُمُ الظّٰلِمُوْنَ ۟ؔ
अब इसके बाद भी जो व्यक्ति अल्लाह पर मिथ्या आरोप लगाए, तो ऐसे ही लोग अत्याचारी हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
قُلْ صَدَقَ اللّٰهُ ۫— فَاتَّبِعُوْا مِلَّةَ اِبْرٰهِیْمَ حَنِیْفًا ؕ— وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِیْنَ ۟
(ऐ नबी!) आप कह दीजिए कि अल्लाह ने सच कहा है। अतः तुम इबराहीम (अलैहिस्सलाम) के धर्म का अनुसरण करो, जो एकेश्वरवादी थे और वह बहुदेववादियों में से नहीं थे।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ اَوَّلَ بَیْتٍ وُّضِعَ لِلنَّاسِ لَلَّذِیْ بِبَكَّةَ مُبٰرَكًا وَّهُدًی لِّلْعٰلَمِیْنَ ۟ۚ
निःसंदेह पहला घर जो मानव के लिए बनाया गया, वह वही है जो मक्का में है, जो बरकत वाला तथा समस्त संसार के लिए मार्गदर्शन है।
Arabic explanations of the Qur’an:
فِیْهِ اٰیٰتٌۢ بَیِّنٰتٌ مَّقَامُ اِبْرٰهِیْمَ ۚ۬— وَمَنْ دَخَلَهٗ كَانَ اٰمِنًا ؕ— وَلِلّٰهِ عَلَی النَّاسِ حِجُّ الْبَیْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ اِلَیْهِ سَبِیْلًا ؕ— وَمَنْ كَفَرَ فَاِنَّ اللّٰهَ غَنِیٌّ عَنِ الْعٰلَمِیْنَ ۟
उसमें खुली निशानियाँ हैं, (जिनमें) मक़ामे इबराहीम[51] है, तथा जो उसमें प्रवेश कर गया, वह सुरक्षित हो गया। तथा अल्लाह के लिए लोगों पर इस घर का हज्ज अनिवार्य है, जो वहाँ तक पहुँचने का सामर्थ्य रखता हो, और जिसने इनकार किया तो निःसंदेह अल्लाह (उससे, बल्कि) समस्त संसार से निस्पृह (बेनियाज़) है।
51. अर्थात वह पत्थर जिसपर खड़े होकर इबराहीम (अलैहिस्सलाम) ने काबा का निर्माण किया, जिसपर उनके पैरों के निशान आज तक हैं।
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قُلْ یٰۤاَهْلَ الْكِتٰبِ لِمَ تَكْفُرُوْنَ بِاٰیٰتِ اللّٰهِ ۖۗ— وَاللّٰهُ شَهِیْدٌ عَلٰی مَا تَعْمَلُوْنَ ۟
(ऐ नबी!) आप कह दीजिए कि ऐ किताब वालो! तुम अल्लाह की आयतों का क्यों इनकार करते हो, हालाँकि जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उससे अवगत हैॽ
Arabic explanations of the Qur’an:
قُلْ یٰۤاَهْلَ الْكِتٰبِ لِمَ تَصُدُّوْنَ عَنْ سَبِیْلِ اللّٰهِ مَنْ اٰمَنَ تَبْغُوْنَهَا عِوَجًا وَّاَنْتُمْ شُهَدَآءُ ؕ— وَمَا اللّٰهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُوْنَ ۟
(ऐ नबी) आप कह दीजिए : ऐ किताब वालो! तुम ईमान लाने वालों को अल्लाह के रास्ते से क्यों रोकते होॽ तुम्हें उसमें कुटिलता की तलाश रहती है। जबकि तुम (उसके सच्चे होने के) गवाह[52] होॽ और अल्लाह तुम्हारे कर्मों से अनभिज्ञ नहीं है।
52. अर्थात इस्लाम के सत्धर्म होने को जानते हो।
Arabic explanations of the Qur’an:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اِنْ تُطِیْعُوْا فَرِیْقًا مِّنَ الَّذِیْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ یَرُدُّوْكُمْ بَعْدَ اِیْمَانِكُمْ كٰفِرِیْنَ ۟
ऐ ईमान वालो! यदि तुम किताब वालों के किसी समूह की बात मानोगे, तो वे तुम्हारे ईमान लाने के बाद फिर तुम्हें काफ़िर बना देंगे।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَكَیْفَ تَكْفُرُوْنَ وَاَنْتُمْ تُتْلٰی عَلَیْكُمْ اٰیٰتُ اللّٰهِ وَفِیْكُمْ رَسُوْلُهٗ ؕ— وَمَنْ یَّعْتَصِمْ بِاللّٰهِ فَقَدْ هُدِیَ اِلٰی صِرَاطٍ مُّسْتَقِیْمٍ ۟۠
तथा यह कैसे हो सकता है कि तुम (फिर से) कुफ़्र को स्वीकार कर लो, जबकि तुम्हारे सामने अल्लाह की आयतें पढ़ी जा रही हैं और तुम्हारे बीच उसका रसूल[53] मौजूद हैॽ और जो अल्लाह को[54] मज़बूत थाम ले, तो वास्तव में उसे सीधा मार्ग दिखा दिया गया।
53. अर्थात मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)। 54. अर्थात अल्लाह का आज्ञाकारी हो जाए।
Arabic explanations of the Qur’an:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوا اتَّقُوا اللّٰهَ حَقَّ تُقٰتِهٖ وَلَا تَمُوْتُنَّ اِلَّا وَاَنْتُمْ مُّسْلِمُوْنَ ۟
ऐ ईमान वालो! अल्लाह से डरो, जैसा कि उससे डरना चाहिए तथा तुम्हारी मृत्यु न आए परंतु इस स्थिति में कि तुम मुसलमान हो।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَاعْتَصِمُوْا بِحَبْلِ اللّٰهِ جَمِیْعًا وَّلَا تَفَرَّقُوْا ۪— وَاذْكُرُوْا نِعْمَتَ اللّٰهِ عَلَیْكُمْ اِذْ كُنْتُمْ اَعْدَآءً فَاَلَّفَ بَیْنَ قُلُوْبِكُمْ فَاَصْبَحْتُمْ بِنِعْمَتِهٖۤ اِخْوَانًا ۚ— وَكُنْتُمْ عَلٰی شَفَا حُفْرَةٍ مِّنَ النَّارِ فَاَنْقَذَكُمْ مِّنْهَا ؕ— كَذٰلِكَ یُبَیِّنُ اللّٰهُ لَكُمْ اٰیٰتِهٖ لَعَلَّكُمْ تَهْتَدُوْنَ ۟
तथा अल्लाह की रस्सी[55] को सब मिलकर मज़बूती से पकड़ लो और विभेद में न पड़ो तथा अपने ऊपर अल्लाह की नेमत को याद करो कि तुम एक-दूसरे के शत्रु थे, फिर उसने तुम्हारे दिलों को जोड़ दिया और तुम उसकी कृपा से भाई-भाई हो गए। तथा तुम आग के गड्ढे के किनारे खड़े थे, तो उसने तुम्हें उससे बचा लिया। इसी प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम मार्गदर्शन पा जाओ।
55. अल्लाह की रस्सी से अभिप्राय क़ुरआन और नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सुन्नत है। यही दोनों मुसलमानों की एकता और परस्पर प्रेम का सूत्र हैं।
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وَلْتَكُنْ مِّنْكُمْ اُمَّةٌ یَّدْعُوْنَ اِلَی الْخَیْرِ وَیَاْمُرُوْنَ بِالْمَعْرُوْفِ وَیَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنْكَرِ ؕ— وَاُولٰٓىِٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ ۟
तथा तुममें एक समूह ऐसा होना चाहिए, जो भलाई की ओर बुलाए, अच्छे कामों[56] का आदेश दे और बुरे कामों[57] से रोके और वही सफलता प्राप्त करने वाले लोग हैं।
56. अर्थात धर्मानुसार बातों का। 57.अर्थात धर्म विरोधी बातों से।
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وَلَا تَكُوْنُوْا كَالَّذِیْنَ تَفَرَّقُوْا وَاخْتَلَفُوْا مِنْ بَعْدِ مَا جَآءَهُمُ الْبَیِّنٰتُ ؕ— وَاُولٰٓىِٕكَ لَهُمْ عَذَابٌ عَظِیْمٌ ۟ۙ
तथा उनके[58] समान न हो जाओ, जो संप्रदायों में बट गए, और उनके पास स्पष्ट निशानियाँ आ जाने के पश्चात आपस में मतभेद कर बैठे, और उन्हीं के लिए बड़ी यातना है।
58. अर्थात अह्ले किताब (यहूदी व ईसाई)।
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یَّوْمَ تَبْیَضُّ وُجُوْهٌ وَّتَسْوَدُّ وُجُوْهٌ ۚ— فَاَمَّا الَّذِیْنَ اسْوَدَّتْ وُجُوْهُهُمْ ۫— اَكَفَرْتُمْ بَعْدَ اِیْمَانِكُمْ فَذُوْقُوا الْعَذَابَ بِمَا كُنْتُمْ تَكْفُرُوْنَ ۟
जिस दिन कुछ चेहरे उज्जवल होंगे और कुछ चेहरे काले होंगे। फिर जिनके चेहरे काले होंगे (उनसे कहा जाएगा :) क्या तुमने अपने ईमान के बाद कुफ़्र कर लिया थाॽ तो अब अपने कुफ़्र करने के कारण यातना का स्वाद चखो।
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وَاَمَّا الَّذِیْنَ ابْیَضَّتْ وُجُوْهُهُمْ فَفِیْ رَحْمَةِ اللّٰهِ ؕ— هُمْ فِیْهَا خٰلِدُوْنَ ۟
तथा जिनके चेहरे चमक रहे होंगे, वे अल्लाह की दया (जन्नत) में होंगे, वे सदैव उसी में रहेंगे।
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تِلْكَ اٰیٰتُ اللّٰهِ نَتْلُوْهَا عَلَیْكَ بِالْحَقِّ ؕ— وَمَا اللّٰهُ یُرِیْدُ ظُلْمًا لِّلْعٰلَمِیْنَ ۟
ये अल्लाह की आयतें हैं, जो हम आपको हक़ के साथ सुना रहे हैं और अल्लाह संसार वालों पर अत्याचार नहीं करना चाहता।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلِلّٰهِ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَمَا فِی الْاَرْضِ ؕ— وَاِلَی اللّٰهِ تُرْجَعُ الْاُمُوْرُ ۟۠
तथा जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है सब अल्लाह ही के लिए है और सारे मामले अल्लाह ही की ओर लौटाए जाते हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
كُنْتُمْ خَیْرَ اُمَّةٍ اُخْرِجَتْ لِلنَّاسِ تَاْمُرُوْنَ بِالْمَعْرُوْفِ وَتَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنْكَرِ وَتُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ ؕ— وَلَوْ اٰمَنَ اَهْلُ الْكِتٰبِ لَكَانَ خَیْرًا لَّهُمْ ؕ— مِنْهُمُ الْمُؤْمِنُوْنَ وَاَكْثَرُهُمُ الْفٰسِقُوْنَ ۟
तुम सर्वश्रेष्ठ समुदाय हो, जिसे लोगों के लिए निकाला गया है। तुम भलाई का आदेश देते हो और बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान (विश्वास) रखते[58] हो। और यदि किताब वाले ईमान लाते, तो उनके लिए बेहतर होता। उनमें कुछ ईमान वाले भी हैं, लेकिन उनमें अधिकतर लोग अवज्ञाकारी ही हैं।
58. इस आयत में मुसलमानों को संबोधित किया गया है, तथा उन्हें उम्मत कहा गया है। किसी जाति अथवा वर्ग और वर्ण के नाम से संबोधित नहीं किया गया है। और इसमें यह संकेत है कि मुसलमान उनका नाम है जो सत्धर्म के अनुयायी हों। तथा उनके अस्तित्व का लक्ष्य यह बताया गया है कि वह संपूर्ण मानव विश्व को सत्धर्म इस्लाम की ओर बुलाएँ, जो सर्व मानव जाति का धर्म है। किसी विशेष जाति, क्षेत्र अथवा देश का धर्म नहीं है।
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لَنْ یَّضُرُّوْكُمْ اِلَّاۤ اَذًی ؕ— وَاِنْ یُّقَاتِلُوْكُمْ یُوَلُّوْكُمُ الْاَدْبَارَ ۫— ثُمَّ لَا یُنْصَرُوْنَ ۟
वे तुम्हें थोड़ा कष्ट पहुँचाने के सिवा कदापि कोई हानि नहीं पहुँचा सकेंगे और यदि वे तुमसे युद्ध करेंगे, तो तुम्हारे सामने पीठ फेरकर भाग खड़े होंगे। फिर उनकी कोई सहायता (भी) नहीं की जाएगी।
Arabic explanations of the Qur’an:
ضُرِبَتْ عَلَیْهِمُ الذِّلَّةُ اَیْنَ مَا ثُقِفُوْۤا اِلَّا بِحَبْلٍ مِّنَ اللّٰهِ وَحَبْلٍ مِّنَ النَّاسِ وَبَآءُوْ بِغَضَبٍ مِّنَ اللّٰهِ وَضُرِبَتْ عَلَیْهِمُ الْمَسْكَنَةُ ؕ— ذٰلِكَ بِاَنَّهُمْ كَانُوْا یَكْفُرُوْنَ بِاٰیٰتِ اللّٰهِ وَیَقْتُلُوْنَ الْاَنْۢبِیَآءَ بِغَیْرِ حَقٍّ ؕ— ذٰلِكَ بِمَا عَصَوْا وَّكَانُوْا یَعْتَدُوْنَ ۟ۗ
इन (यहूदियों) पर हर जगह, अपमान थोप दिया गया है, (यह और बात है कि) अल्लाह की शरण[59] अथवा लोगों की शरण[60] में आ जाएँ, और ये अल्लाह के प्रकोप के पात्र हुए तथा इनपर दरिद्रता थोप दी गई। यह इस कारण हुआ कि ये अल्लाह की आयतों का इनकार करते थे और नबियों की अनाधिकार हत्या करते थे। यह इस कारण (भी) है कि इन्होंने अवज्ञा की और (धर्म की) सीमा का उल्लंघन करते थे।
59. अल्लाह की शरण से अभिप्राय इस्लाम धर्म है। 60. दूसरा बचाव का तरीक़ा यह है कि किसी ग़ैर मुस्लिम शक्ति की उन्हें सहायता प्राप्त हो जाए।
Arabic explanations of the Qur’an:
لَیْسُوْا سَوَآءً ؕ— مِنْ اَهْلِ الْكِتٰبِ اُمَّةٌ قَآىِٕمَةٌ یَّتْلُوْنَ اٰیٰتِ اللّٰهِ اٰنَآءَ الَّیْلِ وَهُمْ یَسْجُدُوْنَ ۟
वे सभी समान नहीं हैं; किताब वालों में एक समूह (सत्य पर) स्थापित[61] है, जो रात की घड़ियों में अल्लाह की आयतें पढ़ते हैं और वे सजदे करते हैं।
61. अर्थात जो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर ईमान लाए। जैसे अब्दुल्लाह बिन सलाम (रज़ियल्लाहु अन्हु) आदि।
Arabic explanations of the Qur’an:
یُؤْمِنُوْنَ بِاللّٰهِ وَالْیَوْمِ الْاٰخِرِ وَیَاْمُرُوْنَ بِالْمَعْرُوْفِ وَیَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنْكَرِ وَیُسَارِعُوْنَ فِی الْخَیْرٰتِ ؕ— وَاُولٰٓىِٕكَ مِنَ الصّٰلِحِیْنَ ۟
वे अल्लाह तथा अंतिम दिन (क़यामत) पर ईमान रखते हैं और भलाई का आदेश देते हैं और बुराई से रोकते हैं और भलाई के कामों में जल्दी करते हैं और वही अच्छे लोगों में से हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَمَا یَفْعَلُوْا مِنْ خَیْرٍ فَلَنْ یُّكْفَرُوْهُ ؕ— وَاللّٰهُ عَلِیْمٌۢ بِالْمُتَّقِیْنَ ۟
वे जो भी भलाई करेंगे, उसकी उपेक्षा नहीं की जाएगी और अल्लाह परहेज़गारों को भली-भाँति जानता है।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا لَنْ تُغْنِیَ عَنْهُمْ اَمْوَالُهُمْ وَلَاۤ اَوْلَادُهُمْ مِّنَ اللّٰهِ شَیْـًٔا ؕ— وَاُولٰٓىِٕكَ اَصْحٰبُ النَّارِ ۚ— هُمْ فِیْهَا خٰلِدُوْنَ ۟
निःसंदेह जिन्होंने कुफ़्र[62] किया, उन्हें अल्लाह (के अज़ाब) से (बचाने में) न उनके धन कुछ काम आएँगे, न उनकी संतान। तथा वही लोग नरकवासी हैं जो उसमें हमेशा रहेंगे।
62. अर्थात अल्लाह की आयतों (क़ुरआन) को नकार दिया।
Arabic explanations of the Qur’an:
مَثَلُ مَا یُنْفِقُوْنَ فِیْ هٰذِهِ الْحَیٰوةِ الدُّنْیَا كَمَثَلِ رِیْحٍ فِیْهَا صِرٌّ اَصَابَتْ حَرْثَ قَوْمٍ ظَلَمُوْۤا اَنْفُسَهُمْ فَاَهْلَكَتْهُ ؕ— وَمَا ظَلَمَهُمُ اللّٰهُ وَلٰكِنْ اَنْفُسَهُمْ یَظْلِمُوْنَ ۟
वे इस सांसारिक जीवन में जो कुछ भी ख़र्च करते हैं, वह उस हवा के समान है, जिसमें पाला (अत्यधिक ठंड) हो, जो किसी ऐसी क़ौम की खेती को लग जाए, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार[63] किया हो और उसको नष्ट कर दे। तथा अल्लाह ने उनपर अत्याचार नहीं किया, बल्कि वे स्वयं अपने आप पर अत्याचार करते थे।
63. अवज्ञा तथा अस्वीकार करते रहे थे। इसमें यह संकेत है कि अल्लाह पर ईमान के बिना दान का प्रतिफल परलोक में नहीं मिलेगा।
Arabic explanations of the Qur’an:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا تَتَّخِذُوْا بِطَانَةً مِّنْ دُوْنِكُمْ لَا یَاْلُوْنَكُمْ خَبَالًا ؕ— وَدُّوْا مَا عَنِتُّمْ ۚ— قَدْ بَدَتِ الْبَغْضَآءُ مِنْ اَفْوَاهِهِمْ ۖۚ— وَمَا تُخْفِیْ صُدُوْرُهُمْ اَكْبَرُ ؕ— قَدْ بَیَّنَّا لَكُمُ الْاٰیٰتِ اِنْ كُنْتُمْ تَعْقِلُوْنَ ۟
ऐ ईमान वालो! तुम अपनों के सिवा किसी दूसरे को अपना अंतरंग मित्र न बनाओ,[64] वे तुम्हें बर्बाद करने में कोई कमी नहीं करते। उन्हें वही बात भाती है, जिससे तुम्हें कष्ट पहुँचे। उनके मुखों से शत्रुता प्रकट हो चुकी है तथा जो उनके दिल छुपा रखे हैं, वह इससे बढ़कर है। हमने तुम्हारे लिए आयतों का वर्णन कर दिया है, यदि तुम समझबूझ रखते हो।
64. अर्थात वे ग़ैर मुस्लिम जिनपर तुम को विश्वास नहीं कि वे तुम्हारे लिए किसी प्रकार की अच्छी भावना रखते हों।
Arabic explanations of the Qur’an:
هٰۤاَنْتُمْ اُولَآءِ تُحِبُّوْنَهُمْ وَلَا یُحِبُّوْنَكُمْ وَتُؤْمِنُوْنَ بِالْكِتٰبِ كُلِّهٖ ۚ— وَاِذَا لَقُوْكُمْ قَالُوْۤا اٰمَنَّا ۖۗۚ— وَاِذَا خَلَوْا عَضُّوْا عَلَیْكُمُ الْاَنَامِلَ مِنَ الْغَیْظِ ؕ— قُلْ مُوْتُوْا بِغَیْظِكُمْ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ عَلِیْمٌۢ بِذَاتِ الصُّدُوْرِ ۟
देखो तुम तो उनसे प्रेम करते हो, परंतु वे तुमसे प्रेम नहीं करते और तुम सभी पुस्तकों पर ईमान रखते हो, औ (उनका हाल यह है कि) वे जब तुमसे मिलते हैं, तो कहते हैं कि हम ईमान लाए हैं और जब वे अकेले में होते हैं, तो तुमपर क्रोध के मारे उंगलियां चबाते हैं। कह दो कि अपने क्रोध में मर जाओ। निःसंदेह अल्लाह सीनों के भेद को जानता है।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنْ تَمْسَسْكُمْ حَسَنَةٌ تَسُؤْهُمْ ؗ— وَاِنْ تُصِبْكُمْ سَیِّئَةٌ یَّفْرَحُوْا بِهَا ؕ— وَاِنْ تَصْبِرُوْا وَتَتَّقُوْا لَا یَضُرُّكُمْ كَیْدُهُمْ شَیْـًٔا ؕ— اِنَّ اللّٰهَ بِمَا یَعْمَلُوْنَ مُحِیْطٌ ۟۠
यदि तुम्हारा कुछ भला हो, तो उन्हें बुरा लगता है और यदि तुम्हारा कुछ बुरा हो जाए, तो वे उससे प्रसन्न होते हैं। और यदि तुम धैर्य करते रहे और अल्लाह से डरते रहे, तो उनका छल तुम्हें कोई हानि नहीं पहुँचाएगा। निःसंदेह अल्लाह उनके सभी कार्यों से अवगत है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَاِذْ غَدَوْتَ مِنْ اَهْلِكَ تُبَوِّئُ الْمُؤْمِنِیْنَ مَقَاعِدَ لِلْقِتَالِ ؕ— وَاللّٰهُ سَمِیْعٌ عَلِیْمٌ ۟ۙ
तथा (ऐ नबी! वह समय याद करो) जब आप अपने घर से निकले, ईमान वालों को युद्ध[65] के मोर्चों पर नियुक्त कर रहे थे तथा अल्लाह सब कुछ सुनने वाला, जानने वाला है।
65. साधारण भाष्यकारों ने इसे उह़ुद के युद्ध से संबंधित माना है। जो बद्र के युद्ध के पश्चात् सन् 3 हिज्री में हुआ। जिसमें क़ुरैश ने बद्र की पराजय का बदला लेने के लिए तीन हज़ार की सेना के साथ उह़ुद पर्वत के समीप पड़ाव डाल दिया। जब आपको इसकी सूचना मिली तो मुसलमानों से परामर्श किया। अधिकांश की राय हुई कि मदीना नगर से बाहर निकल कर युद्ध किया जाए। और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम एक हज़ार मुसलमानों को लेकर निकले। जिसमें से अब्दुल्लाह बिन उबय्य मुनाफ़िक़ों का प्रमुख अपने तीन सौ साथियों के साथ वापस हो गया। आपने रणक्षेत्र में अपने पीछे से शत्रु के आक्रमण से बचाव के लिए 70 धनुर्धरों को नियुक्त कर दिया। और उनका सेनापति अब्दुल्लाह बिन जुबैर को बना दिया। तथा यह आदेश दिया कि कदापि इस स्थान को न छोड़ना। युद्ध आरंभ होते ही क़ुरैश पराजित हो कर भाग खड़े हुए। यह देखकर धनुर्धरों में से अधिकांश ने अपना स्थान छोड़ दिया। क़ुरैश के सेनापति ख़ालिद पुत्र वलीद ने अपने सवारों के साथ फिर कर धनुर्धरों के स्थान पर आक्रमण कर दिया। फिर आकस्मात् मुसलमानों पर पीछे से आक्रमण करके उनकी विजय को पराजय में बदल दिया। जिसमें आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को भी आघात पहुँचा। (तफ़्सीर इब्ने कसीर।)
Arabic explanations of the Qur’an:
اِذْ هَمَّتْ طَّآىِٕفَتٰنِ مِنْكُمْ اَنْ تَفْشَلَا ۙ— وَاللّٰهُ وَلِیُّهُمَا ؕ— وَعَلَی اللّٰهِ فَلْیَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُوْنَ ۟
तथा (याद करो) जब तुम्हारे दो समूहों[66] ने साहसहीनता दिखाने (पीछे हटने) का इरादा किया और अल्लाह उनका समर्थक व सहायक था, तथा ईमान वालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए।
66. अर्थात दो क़बीले बनू सलमा तथा बनू हारिसा ने भी अब्दुल्लाह बिन उबय्य के साथ वापस हो जाना चाहा। (सह़ीह़ बुख़ारी ह़दीस : 4558)
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَقَدْ نَصَرَكُمُ اللّٰهُ بِبَدْرٍ وَّاَنْتُمْ اَذِلَّةٌ ۚ— فَاتَّقُوا اللّٰهَ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُوْنَ ۟
और अल्लाह बद्र (के युद्ध) में तुम्हारी सहायता कर चुका है, जबकि तुम कमज़ोर थे। अतः अल्लाह से डरो, ताकि तुम उसके प्रति आभारी हो सको।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِذْ تَقُوْلُ لِلْمُؤْمِنِیْنَ اَلَنْ یَّكْفِیَكُمْ اَنْ یُّمِدَّكُمْ رَبُّكُمْ بِثَلٰثَةِ اٰلٰفٍ مِّنَ الْمَلٰٓىِٕكَةِ مُنْزَلِیْنَ ۟ؕ
(ऐ नबी! वह समय भी याद करें) जब आप ईमान वालों से कह रहे थे : क्या तुम्हारे लिए यह काफ़ी नहीं है कि तुम्हारा पालनहार (आकाश से) तीन हज़ार फ़रिश्ते उतारकर तुम्हारी सहायता करेॽ
Arabic explanations of the Qur’an:
بَلٰۤی ۙ— اِنْ تَصْبِرُوْا وَتَتَّقُوْا وَیَاْتُوْكُمْ مِّنْ فَوْرِهِمْ هٰذَا یُمْدِدْكُمْ رَبُّكُمْ بِخَمْسَةِ اٰلٰفٍ مِّنَ الْمَلٰٓىِٕكَةِ مُسَوِّمِیْنَ ۟
क्यों[67] नहीं, यदि तुम धैर्य से काम लो और अल्लाह से डरो और फिर ऐसा हो कि वे (दुश्मन) उसी घड़ी तुमपर चढ़ आएँ, तो तुम्हारा पालनहार (तीन नहीं, बल्कि) पाँच हज़ार चिह्न[68] लगे फ़रिश्तों द्वारा तुम्हारी मदद करेगा।
67. अर्थात इतना समर्थन बहुत है। 68. अर्थात उनपर तथा उनके घोड़ों पर चिह्न लगे होंगे।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَمَا جَعَلَهُ اللّٰهُ اِلَّا بُشْرٰی لَكُمْ وَلِتَطْمَىِٕنَّ قُلُوْبُكُمْ بِهٖ ؕ— وَمَا النَّصْرُ اِلَّا مِنْ عِنْدِ اللّٰهِ الْعَزِیْزِ الْحَكِیْمِ ۟ۙ
और अल्लाह ने इस (मदद) को तुम्हारे लिए केवल शुभ सूचना बनाया है और ताकि तुम्हारे दिल उससे संतुष्ट हो जाएँ और सहायता तो केवल अल्लाह ही के पास से आती है, जो प्रभुत्वशाली, हिकमत वाला (तत्वदर्शी) है।
Arabic explanations of the Qur’an:
لِیَقْطَعَ طَرَفًا مِّنَ الَّذِیْنَ كَفَرُوْۤا اَوْ یَكْبِتَهُمْ فَیَنْقَلِبُوْا خَآىِٕبِیْنَ ۟
ताकि[69] वह काफ़िरों के एक हिस्से को काट दे या उन्हें अपमानित कर दे, फिर वे विफल होकर वापस हो जाएँ।
69. अर्थात अल्लाह तुम्हें फ़रिश्तों द्वारा समर्थन इसलिए देगा, ताकि काफ़िरों का कुछ बल तोड़ दे, और उन्हें निष्फल वापिस कर दे।
Arabic explanations of the Qur’an:
لَیْسَ لَكَ مِنَ الْاَمْرِ شَیْءٌ اَوْ یَتُوْبَ عَلَیْهِمْ اَوْ یُعَذِّبَهُمْ فَاِنَّهُمْ ظٰلِمُوْنَ ۟
(ऐ नबी!) इस[70] मामले में आपको कोई अधिकार नहीं, अल्लाह चाहे तो उनकी तौबा क़बूल[71] करे या उन्हें दंड[72] दे, क्योंकि वे अत्याचारी हैं।
70. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फ़ज्र की नमाज़ में रुकूअ के पश्चात यह प्रार्थना करते थे कि हे अल्लाह! अमुक को अपनी दया से दूर कर दे। इसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुखारी : 4559) 71. अर्थात उन्हें मार्गदर्शन दे। 72. यदि वे काफ़िर ही रह जाएँ।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلِلّٰهِ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَمَا فِی الْاَرْضِ ؕ— یَغْفِرُ لِمَنْ یَّشَآءُ وَیُعَذِّبُ مَنْ یَّشَآءُ ؕ— وَاللّٰهُ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ ۟۠
तथा जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है, सब अल्लाह ही का है। वह जिसे चाहे क्षमा कर दे और जिसे चाहे यातना दे, तथा अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।
Arabic explanations of the Qur’an:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا تَاْكُلُوا الرِّبٰۤوا اَضْعَافًا مُّضٰعَفَةً ۪— وَّاتَّقُوا اللّٰهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُوْنَ ۟ۚ
ऐ ईमान वालो! कई-कई गुणा करके ब्याज[73] न खाओ। तथा अल्लाह से डरो, ताकि तुम सफल हो।
73. उह़ुद की पराजय का कारण धन का लोभ बना था। इसलिए यहाँ ब्याज से सावधान किया जा रहा है, जो धन के लोभ का अति भयावह साधन है। तथा आज्ञाकारिता की प्रेरणा दी जा रही है। कई-कई गुणा ब्याज न खाने का अर्थ यह नहीं कि इस प्रकार ब्याज न खाओ, बल्कि ब्याज अधिक हो या थोड़ा सर्वथा ह़राम (वर्जित) है। यहाँ जाहिलिय्यत के युग में ब्याज की जो रीति थी, उसका वर्णन किया गया है। जैसा कि आधुनिक युग में ब्याज पर ब्याज लेने की रीति है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَاتَّقُوا النَّارَ الَّتِیْۤ اُعِدَّتْ لِلْكٰفِرِیْنَ ۟ۚ
तथा उस आग से डरो (बचो), जो काफ़िरों के लिए तैयार की गई है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَاَطِیْعُوا اللّٰهَ وَالرَّسُوْلَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُوْنَ ۟ۚ
तथा अल्लाह और रसूल का आज्ञापालन करो, ताकि तुमपर दया की जाए।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَسَارِعُوْۤا اِلٰی مَغْفِرَةٍ مِّنْ رَّبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا السَّمٰوٰتُ وَالْاَرْضُ ۙ— اُعِدَّتْ لِلْمُتَّقِیْنَ ۟ۙ
और अपने पालनहार की क्षमा और उस स्वर्ग की ओर तेज़ी से बढ़ो, जिसकी चौड़ाई आकाशों तथा धरती के बराबर है। वह अल्लाह से डरने वालों के लिए तैयार किया गया है।
Arabic explanations of the Qur’an:
الَّذِیْنَ یُنْفِقُوْنَ فِی السَّرَّآءِ وَالضَّرَّآءِ وَالْكٰظِمِیْنَ الْغَیْظَ وَالْعَافِیْنَ عَنِ النَّاسِ ؕ— وَاللّٰهُ یُحِبُّ الْمُحْسِنِیْنَ ۟ۚ
जो कठिनाई और आसानी की प्रत्येक स्थिति में (अल्लाह के मार्ग में) खर्च करते हैं, तथा ग़ुस्सा पी जाते हैं और लोगों को क्षमा कर देते हैं। और अल्लाह ऐसे अच्छे कार्य करने वालों से प्रेम करता है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَالَّذِیْنَ اِذَا فَعَلُوْا فَاحِشَةً اَوْ ظَلَمُوْۤا اَنْفُسَهُمْ ذَكَرُوا اللّٰهَ فَاسْتَغْفَرُوْا لِذُنُوْبِهِمْ۫— وَمَنْ یَّغْفِرُ الذُّنُوْبَ اِلَّا اللّٰهُ ۪۫— وَلَمْ یُصِرُّوْا عَلٰی مَا فَعَلُوْا وَهُمْ یَعْلَمُوْنَ ۟
और वे ऐसे लोग हैं कि जब उनसे कोई जघन्य पाप हो जाता है या वे अपने ऊपर अत्याचार कर कर बैठते हैं, तो उन्हें अल्लाह याद आ जाता है। फिर वे अपने पापों के लिए क्षमा माँगते हैं, और अल्लाह के सिवा कौन है जो पापों का क्षमा करने वाला होॽ और वे अपने किए पर जान बूझकर अड़े नहीं रहते।
Arabic explanations of the Qur’an:
اُولٰٓىِٕكَ جَزَآؤُهُمْ مَّغْفِرَةٌ مِّنْ رَّبِّهِمْ وَجَنّٰتٌ تَجْرِیْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِیْنَ فِیْهَا ؕ— وَنِعْمَ اَجْرُ الْعٰمِلِیْنَ ۟ؕ
वही लोग हैं जिनका बदला उनके पालनहार की ओर से क्षमा तथा ऐसे बाग़ हैं जिनके नीचे से नहरें बहती होंगी। उनमें वे सदैव रहेंगे। औ क्या ही अच्छा बदला है नेक काम करने वालों का।
Arabic explanations of the Qur’an:
قَدْ خَلَتْ مِنْ قَبْلِكُمْ سُنَنٌ ۙ— فَسِیْرُوْا فِی الْاَرْضِ فَانْظُرُوْا كَیْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُكَذِّبِیْنَ ۟
तुमसे पहले भी समान परंपराएं (परिस्थितियाँ) गुज़र चुकी[74] हैं। इसलिए तुम धरती में चलो-फिरो और देखो कि झुठलाने वालों का अंत कैसे हुआॽ
74. उहुद की पराजय पर मुसलमानों को दिलासा दिया जा रहा है, जिसमें उनके 70 व्यक्ति शहीद हुए। (तफ़्सीर इब्ने कसीर)
Arabic explanations of the Qur’an:
هٰذَا بَیَانٌ لِّلنَّاسِ وَهُدًی وَّمَوْعِظَةٌ لِّلْمُتَّقِیْنَ ۟
यह (क़ुरआन) लोगों के लिए (सत्य का) वर्णन और (अल्लाह का) भय रखने वालों के लिए मार्गदर्शन और उपदेश है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَا تَهِنُوْا وَلَا تَحْزَنُوْا وَاَنْتُمُ الْاَعْلَوْنَ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِیْنَ ۟
और तुम कमज़ोर न बनो और न ही शोक करो। और तुम ही सर्वोच्च रहोगे, यदि तुम ईमान वाले हो।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنْ یَّمْسَسْكُمْ قَرْحٌ فَقَدْ مَسَّ الْقَوْمَ قَرْحٌ مِّثْلُهٗ ؕ— وَتِلْكَ الْاَیَّامُ نُدَاوِلُهَا بَیْنَ النَّاسِ ۚ— وَلِیَعْلَمَ اللّٰهُ الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَیَتَّخِذَ مِنْكُمْ شُهَدَآءَ ؕ— وَاللّٰهُ لَا یُحِبُّ الظّٰلِمِیْنَ ۟ۙ
यदि तुम्हें आघात पहुँचा है, तो उन लोगों[75] को भी इसी के समान आघात पहुँच चुका है। तथा इन दिनों को हम लोगों के बीच फेरते रहते[76] हैं। और ताकि अल्लाह उन लोगों को जान ले[77] जो ईमान वाले हैं, और तुममें से कुछ लोगों को शहादत नसीब करे। और अल्लाह अत्याचार करने वालों को पसंद नहीं करता।
75. इसमें क़ुरैश की बद्र में पराजय और उनके 70 व्यक्तियों के मारे जाने की ओर संकेत है। 76. अर्थात कभी किसी की जीत होती है, कभी किसी की। 77. अर्थात अच्छे बुरे में अंतर कर दे।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلِیُمَحِّصَ اللّٰهُ الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا وَیَمْحَقَ الْكٰفِرِیْنَ ۟
तथा ताकि अल्लाह ईमान वालों को विशुद्ध कर दे और काफ़िरों को विनष्ट कर दे।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَمْ حَسِبْتُمْ اَنْ تَدْخُلُوا الْجَنَّةَ وَلَمَّا یَعْلَمِ اللّٰهُ الَّذِیْنَ جٰهَدُوْا مِنْكُمْ وَیَعْلَمَ الصّٰبِرِیْنَ ۟
क्या तुमने समझ रखा है कि जन्नत में प्रवेश कर जाओगे, जबकि अल्लाह ने अभी (परीक्षाकर) यह नहीं परखा है कि तुममें से कौन जिहाद करने वाले हैं और कौन (संकट के समय) डटे रहने वाले हैं?
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَقَدْ كُنْتُمْ تَمَنَّوْنَ الْمَوْتَ مِنْ قَبْلِ اَنْ تَلْقَوْهُ ۪— فَقَدْ رَاَیْتُمُوْهُ وَاَنْتُمْ تَنْظُرُوْنَ ۟۠
तथा तुम तो मौत की कामनाएँ कर[78] रहे थे, जब तक वह तुम्हारे सामने नहीं आई थी। लो, अब वह तुम्हारे सामने है, और तुम उसे देख रहे हो।
78. अर्थात अल्लाह की राह में शहीद हो जाने की।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَمَا مُحَمَّدٌ اِلَّا رَسُوْلٌ ۚ— قَدْ خَلَتْ مِنْ قَبْلِهِ الرُّسُلُ ؕ— اَفَاۡىِٕنْ مَّاتَ اَوْ قُتِلَ انْقَلَبْتُمْ عَلٰۤی اَعْقَابِكُمْ ؕ— وَمَنْ یَّنْقَلِبْ عَلٰی عَقِبَیْهِ فَلَنْ یَّضُرَّ اللّٰهَ شَیْـًٔا ؕ— وَسَیَجْزِی اللّٰهُ الشّٰكِرِیْنَ ۟
और मुह़म्मद केवल एक रसूल हैं। उनसे पहले बहुत-से रसूल गुज़र चुके हैं। तो क्या यदि वह मर जाएँ अथवा मार दिए जाएँ, तो तुम अपनी एड़ियों के बल[79] फिर जाओगे? तथा जो अपनी एड़ियों के बल फिर जाएगा, वह अल्लाह का कुछ नहीं बिगाड़ेगा और अल्लाह शीघ्र ही आभारियों को बदला प्रदान करेगा।
79. अर्थात इस्लाम से फिर जाओगे। भावार्थ यह है कि सत्धर्म इस्लाम स्थायी है, नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के न रहने से समाप्त नहीं हो जाएगा। उह़ुद में जब किसी विरोधी ने यह बात उड़ाई कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) मार दिए गए, तो यह सुन कर बहुत से मुसलमान हताश हो गए। कुछ ने कहा कि अब लड़ने से क्या लाभ? तथा मुनाफ़िक़ों ने कहा कि मुह़म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) नबी होते तो मार नहीं खाते। इस आयत में यह संकेत है कि दूसरे नबियों के समान आपको भी एक दिन संसार से जाना है। तो क्या तुम उन्हीं के लिए इस्लास को मानते हो और आप नहीं रहेंगे तो इस्लाम नहीं रहेगा?
Arabic explanations of the Qur’an:
وَمَا كَانَ لِنَفْسٍ اَنْ تَمُوْتَ اِلَّا بِاِذْنِ اللّٰهِ كِتٰبًا مُّؤَجَّلًا ؕ— وَمَنْ یُّرِدْ ثَوَابَ الدُّنْیَا نُؤْتِهٖ مِنْهَا ۚ— وَمَنْ یُّرِدْ ثَوَابَ الْاٰخِرَةِ نُؤْتِهٖ مِنْهَا ؕ— وَسَنَجْزِی الشّٰكِرِیْنَ ۟
किसी प्राणी के लिए यह संभव नहीं है कि अल्लाह की अनुमति के बिना मर जाए। मृत्यु का एक निर्धारित समय लिखा हुआ है। जो दुनिया का बदला चाहेगा, हम उसे इस दुनिया में से कुछ देंगे, तथा जो आख़िरत का बदला चाहेगा, हम उसे उसमें से देंगे, और हम शुक्र करने वालों को जल्द ही बदला देंगे।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَكَاَیِّنْ مِّنْ نَّبِیٍّ قٰتَلَ ۙ— مَعَهٗ رِبِّیُّوْنَ كَثِیْرٌ ۚ— فَمَا وَهَنُوْا لِمَاۤ اَصَابَهُمْ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ وَمَا ضَعُفُوْا وَمَا اسْتَكَانُوْا ؕ— وَاللّٰهُ یُحِبُّ الصّٰبِرِیْنَ ۟
और कितने ही नबी थे, जिनके साथ होकर बहुत-से अल्लाह वालों ने युद्ध किया, तो उन्होंने अल्लाह के मार्ग में पहुँचने वाली मुसीबतों के कारण न हिम्मत हारी और न कमज़ोरी दिखाई और न वे (दुश्मन के सामने) झुके, तथा अल्लाह धैर्य रखने वालों से प्रेम करता है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَمَا كَانَ قَوْلَهُمْ اِلَّاۤ اَنْ قَالُوْا رَبَّنَا اغْفِرْ لَنَا ذُنُوْبَنَا وَاِسْرَافَنَا فِیْۤ اَمْرِنَا وَثَبِّتْ اَقْدَامَنَا وَانْصُرْنَا عَلَی الْقَوْمِ الْكٰفِرِیْنَ ۟
और उन्होंने इससे अधिक कुछ नहीं कहा कि : ऐ हमारे पालनहार! हमारे पापों को और हमारे मामले में हमसे होने वाली अति (ज़्यादती) को क्षमा कर दे। तथा हमारे पैरों को जमाए रख और काफ़िर क़ौम पर हमें विजय प्रदान कर।
Arabic explanations of the Qur’an:
فَاٰتٰىهُمُ اللّٰهُ ثَوَابَ الدُّنْیَا وَحُسْنَ ثَوَابِ الْاٰخِرَةِ ؕ— وَاللّٰهُ یُحِبُّ الْمُحْسِنِیْنَ ۟۠
तो अल्लाह ने उन्हें दुनिया का बदला तथा आख़िरत का अच्छा बदला प्रदान किया। तथा अल्लाह अच्छे काम करने वाले लोगों से प्रेम करता है।
Arabic explanations of the Qur’an:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْۤا اِنْ تُطِیْعُوا الَّذِیْنَ كَفَرُوْا یَرُدُّوْكُمْ عَلٰۤی اَعْقَابِكُمْ فَتَنْقَلِبُوْا خٰسِرِیْنَ ۟
ऐ ईमान वालो! यदि तुम काफ़िरों के कहने पर चलोगे, तो वे तुम्हें तुम्हारी एड़ियों के बल फेर देंगे, फिर तुम घाटे में पड़ जाओगे।
Arabic explanations of the Qur’an:
بَلِ اللّٰهُ مَوْلٰىكُمْ ۚ— وَهُوَ خَیْرُ النّٰصِرِیْنَ ۟
बल्कि अल्लाह ही तुम्हारा संरक्षक है तथा वह सबसे अच्छा सहायक है।
Arabic explanations of the Qur’an:
سَنُلْقِیْ فِیْ قُلُوْبِ الَّذِیْنَ كَفَرُوا الرُّعْبَ بِمَاۤ اَشْرَكُوْا بِاللّٰهِ مَا لَمْ یُنَزِّلْ بِهٖ سُلْطٰنًا ۚ— وَمَاْوٰىهُمُ النَّارُ ؕ— وَبِئْسَ مَثْوَی الظّٰلِمِیْنَ ۟
हम जल्द ही काफ़िरों के दिलों में धाक बिठा देंगे, इस कारण कि उन्होंने ऐसी चीज़ों को अल्लाह का साझी बनाया है, जिन (के साझी होने) का कोई प्रमाण अल्लाह ने नहीं उतारा है। और इनका ठिकाना जहन्नम है और वह ज़ालिमों का क्या ही बुरा ठिकाना है?
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَقَدْ صَدَقَكُمُ اللّٰهُ وَعْدَهٗۤ اِذْ تَحُسُّوْنَهُمْ بِاِذْنِهٖ ۚ— حَتّٰۤی اِذَا فَشِلْتُمْ وَتَنَازَعْتُمْ فِی الْاَمْرِ وَعَصَیْتُمْ مِّنْ بَعْدِ مَاۤ اَرٰىكُمْ مَّا تُحِبُّوْنَ ؕ— مِنْكُمْ مَّنْ یُّرِیْدُ الدُّنْیَا وَمِنْكُمْ مَّنْ یُّرِیْدُ الْاٰخِرَةَ ۚ— ثُمَّ صَرَفَكُمْ عَنْهُمْ لِیَبْتَلِیَكُمْ ۚ— وَلَقَدْ عَفَا عَنْكُمْ ؕ— وَاللّٰهُ ذُوْ فَضْلٍ عَلَی الْمُؤْمِنِیْنَ ۟
तथा अल्लाह ने तुम्हें अपना वचन सच कर दिखाया, जब तुम उसकी अनुमति से उन्हें काट[80] रहे थे। यहाँ तक कि जब तुमने कायरता दिखाई, तथा (रसूल के) आदेश[81] (के अनुपालन) में विवाद कर लिया और अवज्ञा की। (यह सब कुछ) इसके बाद (हुआ) कि अल्लाह ने तुम्हें वह चीज़ दिखा दी थी, जिसे तुम पसंद करते थे। तुममें से कुछ लोग दुनिया चाहते थे तथा कुछ लोग आख़िरत के इच्छुक थे। फिर उसने तुम्हें उनके मुक़ाबले से हटा दिया, ताकि तुम्हारी परीक्षा ले। निश्चय ही उसने तुम्हें क्षमा कर दिया और अल्लाह ईमान वालों के लिए अनुग्रहशील है।
80. अर्थात उह़ुद के आरंभिक क्षणों में। 81. अर्थात कुछ धनुर्धरों ने आपके आदेश का पालन नहीं किया, और गनीमत का धन संचित करने के लिए अपना स्थान छोड़ दिया, जो पराजय का कारण बन गया। और शत्रु को उस दिशा से आक्रमण करने का अवसर मिल गया।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِذْ تُصْعِدُوْنَ وَلَا تَلْوٗنَ عَلٰۤی اَحَدٍ وَّالرَّسُوْلُ یَدْعُوْكُمْ فِیْۤ اُخْرٰىكُمْ فَاَثَابَكُمْ غَمًّا بِغَمٍّ لِّكَیْلَا تَحْزَنُوْا عَلٰی مَا فَاتَكُمْ وَلَا مَاۤ اَصَابَكُمْ ؕ— وَاللّٰهُ خَبِیْرٌ بِمَا تَعْمَلُوْنَ ۟
(और याद करो) जब तुम चढ़े (भागे) जा रहे थे और किसी को मुड़कर नहीं देख रहे थे और रसूल तुम्हें तुम्हारे पीछे से पुकार[82] रहे थे। अतः इसके बदले में (अल्लाह ने) तुम्हें शोक पर शोक दिया ताकि जो तुम्हारे हाथ से निकल गया और जो मुसीबत तुम्हें पहुँची, उसपर शोकाकुल न हो। तथा अल्लाह उससे सूचित है, जो तुम कर रहे हो।
82. बरा बिन आज़िब कहते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उह़ुद के दिन अब्दुल्लाह बिन जुबैर को पैदल सेना पर रखा। और वह पराजित हो कर आ गए, इसी के बारे में यह आयत है। उस समय नबी के साथ बारह व्यक्ति ही रह गए। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4561)
Arabic explanations of the Qur’an:
ثُمَّ اَنْزَلَ عَلَیْكُمْ مِّنْ بَعْدِ الْغَمِّ اَمَنَةً نُّعَاسًا یَّغْشٰی طَآىِٕفَةً مِّنْكُمْ ۙ— وَطَآىِٕفَةٌ قَدْ اَهَمَّتْهُمْ اَنْفُسُهُمْ یَظُنُّوْنَ بِاللّٰهِ غَیْرَ الْحَقِّ ظَنَّ الْجَاهِلِیَّةِ ؕ— یَقُوْلُوْنَ هَلْ لَّنَا مِنَ الْاَمْرِ مِنْ شَیْءٍ ؕ— قُلْ اِنَّ الْاَمْرَ كُلَّهٗ لِلّٰهِ ؕ— یُخْفُوْنَ فِیْۤ اَنْفُسِهِمْ مَّا لَا یُبْدُوْنَ لَكَ ؕ— یَقُوْلُوْنَ لَوْ كَانَ لَنَا مِنَ الْاَمْرِ شَیْءٌ مَّا قُتِلْنَا هٰهُنَا ؕ— قُلْ لَّوْ كُنْتُمْ فِیْ بُیُوْتِكُمْ لَبَرَزَ الَّذِیْنَ كُتِبَ عَلَیْهِمُ الْقَتْلُ اِلٰی مَضَاجِعِهِمْ ۚ— وَلِیَبْتَلِیَ اللّٰهُ مَا فِیْ صُدُوْرِكُمْ وَلِیُمَحِّصَ مَا فِیْ قُلُوْبِكُمْ ؕ— وَاللّٰهُ عَلِیْمٌۢ بِذَاتِ الصُّدُوْرِ ۟
फिर इस शोक के बाद उसने तुमपर शांति उतारी (यानी) ऊँघ जो तुम्हारे एक समूह[83] को घेर रही थी और एक समूह को केवल अपने प्राणों[84] की चिंता थी। वे अल्लाह के बारे में अनुचित अज्ञानता काल का गुमान कर रहे थे। वे कहते थे कि क्या (इस) मामले में हमारा भी कोई अधिकार है? (ऐ नबी!) कह दें कि सब अधिकार अल्लाह को है। वे अपने दिलों में वह (बात) छिपाते हैं जो आपके सामने प्रकट नहीं करते हैं। वे कहते हैं कि यदि (इस) मामले में हमारा भी कुछ अधिकार होता, तो हम यहाँ मारे न जाते। आप कह दें : यदि तुम अपने घरों में भी होते, तब भी जिनके (भाग्य में) मारा जाना लिख दिया गया था, वे अवश्य अपने मरने के स्थानों की ओर निकल आते। और ताकि अल्लाह जो कुछ तुम्हारे सीनों में है, उसे आज़माए और जो कुछ तुम्हारे दिलों में है, उसे विशुद्ध कर दे। और अल्लाह दिलों के भेदों से अवगत है।
83. अबु तल्हा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा : हम उह़ुद में ऊँघने लगे। मेरी तलवार मेरे हाथ से गिरने लगती और मैं पकड़ लेता, फिर गिरने लगती और पकड़ लेता।(सह़ीह़ बुख़ारी : 4562) 84. ये मुनाफ़िक़ लोग थे।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ الَّذِیْنَ تَوَلَّوْا مِنْكُمْ یَوْمَ الْتَقَی الْجَمْعٰنِ ۙ— اِنَّمَا اسْتَزَلَّهُمُ الشَّیْطٰنُ بِبَعْضِ مَا كَسَبُوْا ۚ— وَلَقَدْ عَفَا اللّٰهُ عَنْهُمْ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ حَلِیْمٌ ۟۠
वस्तुतः तुममें से जिन लोगों ने दो गिरोहों के आमने सामने होने के दिन पीठ दिखाई, उन्हें शैतान ने उनके कुछ कर्मों के कारण फिसला दिया था। और अल्लाह उन्हें क्षमा कर चुका है। वास्तव में, अल्लाह अति क्षमावान्, सहनशील है।
Arabic explanations of the Qur’an:
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا تَكُوْنُوْا كَالَّذِیْنَ كَفَرُوْا وَقَالُوْا لِاِخْوَانِهِمْ اِذَا ضَرَبُوْا فِی الْاَرْضِ اَوْ كَانُوْا غُزًّی لَّوْ كَانُوْا عِنْدَنَا مَا مَاتُوْا وَمَا قُتِلُوْا ۚ— لِیَجْعَلَ اللّٰهُ ذٰلِكَ حَسْرَةً فِیْ قُلُوْبِهِمْ ؕ— وَاللّٰهُ یُحْیٖ وَیُمِیْتُ ؕ— وَاللّٰهُ بِمَا تَعْمَلُوْنَ بَصِیْرٌ ۟
ऐ ईमान वालो! तुम उन लोगों के समान न हो जाओ, जिन्होंने कुफ़्र किया और अपने भाइयों के बारे में जबकि वे यात्रा पर गए हों या जिहाद के लिए निकले यह कहने लगे कि : यदि वे हमारे पास रहते तो न मरते और न क़त्ल किए जाते। (ऐसी बात उनके दिल में इसलिए आती है) ताकि अल्लाह इसे उनके दिलों में संताप का कारण बना दे। तथा अल्लाह ही जीवित करता और मृत्यु देता है। और तुम जो कुछ करते हो, अल्लाह उसे देख रहा है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَىِٕنْ قُتِلْتُمْ فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ اَوْ مُتُّمْ لَمَغْفِرَةٌ مِّنَ اللّٰهِ وَرَحْمَةٌ خَیْرٌ مِّمَّا یَجْمَعُوْنَ ۟
और यदि तुम अल्लाह के मार्ग में क़त्ल कर दिए जाओ या मर जाओ, तो अल्लाह की क्षमा और दया उससे बेहतर है, जो वे लोग बटोर रहे हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَىِٕنْ مُّتُّمْ اَوْ قُتِلْتُمْ لَاۡاِلَی اللّٰهِ تُحْشَرُوْنَ ۟
तथा यदि तुम मर गए या मार दिए गए, तो निश्चित रूप से तुम अल्लाह ही के पास इकट्ठे किए जाओगे।
Arabic explanations of the Qur’an:
فَبِمَا رَحْمَةٍ مِّنَ اللّٰهِ لِنْتَ لَهُمْ ۚ— وَلَوْ كُنْتَ فَظًّا غَلِیْظَ الْقَلْبِ لَانْفَضُّوْا مِنْ حَوْلِكَ ۪— فَاعْفُ عَنْهُمْ وَاسْتَغْفِرْ لَهُمْ وَشَاوِرْهُمْ فِی الْاَمْرِ ۚ— فَاِذَا عَزَمْتَ فَتَوَكَّلْ عَلَی اللّٰهِ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ یُحِبُّ الْمُتَوَكِّلِیْنَ ۟
अल्लाह की दया के कारण (ऐ नबी!) आप उनके[85] लिए सरल स्वभाव के हैं। और यदि आप प्रखर स्वभाव और कठोर हृदय के होते, तो वे आपके पास से छट जाते। अतः आप उन्हें माफ़ कर दें और उनके लिए क्षमा याचना करें। तथा उनसे मामलों में परामर्श करें। फिर जब आप दृढ़ संकल्प कर लें, तो अल्लाह पर भरोसा करें। निःसंदेह अल्लाह भरोसा करने वालों को पसंद करता है।
85. अर्थात अपने साथियों के लिए, जो उह़ुद की लड़ाई में रणक्षेत्र से भाग गए।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنْ یَّنْصُرْكُمُ اللّٰهُ فَلَا غَالِبَ لَكُمْ ۚ— وَاِنْ یَّخْذُلْكُمْ فَمَنْ ذَا الَّذِیْ یَنْصُرُكُمْ مِّنْ بَعْدِهٖ ؕ— وَعَلَی اللّٰهِ فَلْیَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُوْنَ ۟
यदि अल्लाह तुम्हारी सहायता करे, तो कोई तुमपर प्रभावी नहीं हो सकता। और यदि वह तुम्हें असहाय छोड़ दे, तो फिर कौन है जो उसके बाद तुम्हारी सहायता कर सकेॽ अतः ईमान वालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَمَا كَانَ لِنَبِیٍّ اَنْ یَّغُلَّ ؕ— وَمَنْ یَّغْلُلْ یَاْتِ بِمَا غَلَّ یَوْمَ الْقِیٰمَةِ ۚ— ثُمَّ تُوَفّٰی كُلُّ نَفْسٍ مَّا كَسَبَتْ وَهُمْ لَا یُظْلَمُوْنَ ۟
यह किसी नबी के लिए संभव नहीं है कि ग़नीमत के धन में ख़यानत[86] करे, और जो ख़यानत करेगा तो जो उसने ख़यानत की होगी उसके साथ क़ियामत के दिन उपस्थित होगा। फिर प्रत्येक प्राणी को उसके किए का पूरा-पूरा बदला दिया जाएगा और उनपर अत्याचार नहीं किया जाएगा।
86. उह़ुद के दिन जो अपना स्थान छोड़ कर इस विचार से आ गए कि यदि हम न पहुँचे, तो दूसरे लोग ग़नीमत का सब धन ले जाएँगे, उन्हें यह चेतावनी दी जा रही है कि तुमने यह कैसे सोच लिया कि इस धन में से तुम्हारा भाग नहीं मिलेगा, क्या तुम्हें नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की अमानत पर भरोसा नहीं है? सुन लो! नबी से किसी प्रकार की ख़यानत असम्भव है। यह घोर पाप है जो कोई नबी कभी नहीं कर सकता।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَفَمَنِ اتَّبَعَ رِضْوَانَ اللّٰهِ كَمَنْ بَآءَ بِسَخَطٍ مِّنَ اللّٰهِ وَمَاْوٰىهُ جَهَنَّمُ ؕ— وَبِئْسَ الْمَصِیْرُ ۟
तो क्या जिसने अल्लाह की प्रसन्नता का अनुसरण किया, उस व्यक्ति के समान हो सकता है जो अल्लाह का क्रोध[87] लेकर वापस हुआ और जिसका आवास नरक हैॽ और वह बहुत बुरा ठिकाना है।
87. अर्थात् पापों में लीन रहा।
Arabic explanations of the Qur’an:
هُمْ دَرَجٰتٌ عِنْدَ اللّٰهِ ؕ— وَاللّٰهُ بَصِیْرٌ بِمَا یَعْمَلُوْنَ ۟
अल्लाह के पास उनके (विभिन्न) दर्जे[88] हैं, तथा वे जो कुछ कर रहे हैं अल्लाह उसे देख रहा है।
88. अर्थात लोगों के कर्मों के अनुसार उनकी अलग-अलग श्रेणियाँ हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
لَقَدْ مَنَّ اللّٰهُ عَلَی الْمُؤْمِنِیْنَ اِذْ بَعَثَ فِیْهِمْ رَسُوْلًا مِّنْ اَنْفُسِهِمْ یَتْلُوْا عَلَیْهِمْ اٰیٰتِهٖ وَیُزَكِّیْهِمْ وَیُعَلِّمُهُمُ الْكِتٰبَ وَالْحِكْمَةَ ۚ— وَاِنْ كَانُوْا مِنْ قَبْلُ لَفِیْ ضَلٰلٍ مُّبِیْنٍ ۟
निःसंदेह अल्लाह ने ईमान वालों पर बड़ा उपकार किया कि उनके अंदर उन्हीं में से एक रसूल भेजा, जो उन्हें (अल्लाह) की आयतें पढ़कर सुनाता है और उन्हें पवित्र करता है तथा उन्हें किताब (क़ुरआन) और ह़िकमत (सुन्नत) की शिक्षा देता है। निःसंदेह वे इससे पहले खुली गुमराही में थे।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَوَلَمَّاۤ اَصَابَتْكُمْ مُّصِیْبَةٌ قَدْ اَصَبْتُمْ مِّثْلَیْهَا ۙ— قُلْتُمْ اَنّٰی هٰذَا ؕ— قُلْ هُوَ مِنْ عِنْدِ اَنْفُسِكُمْ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ عَلٰی كُلِّ شَیْءٍ قَدِیْرٌ ۟
क्या जब तुम्हें एक ऐसी विपत्ति[89] पहुँची, जिसकी दोगुनी विपत्ति तुम (काफ़िरों को) पहुँचा[90] चुके थे, तो तुम कहने लगे कि : यह कहाँ से आ गई? (ऐ नबी!) कह दीजिए : यह तुम्हारे ही पास से[91] आई है। निःसंदेह अल्लाह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।
89. अर्थात उह़ुद के दिन। 90. अर्थात बद्र के दिन। 91. अर्थात तुम्हारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के उस आदेश का विरोध करने के कारण आई, जो धनुर्धरों को दिया गया था।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَمَاۤ اَصَابَكُمْ یَوْمَ الْتَقَی الْجَمْعٰنِ فَبِاِذْنِ اللّٰهِ وَلِیَعْلَمَ الْمُؤْمِنِیْنَ ۟ۙ
और दोनों गिरोहों के मुठभेड़ के दिन जो विपत्ति तुम्हें पहुँची है, वह अल्लाह के आदेश से पहुँची है। और ताकि वह (अल्लाह) ईमान वालों को (अच्छी तरह) जान ले।
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وَلِیَعْلَمَ الَّذِیْنَ نَافَقُوْا ۖۚ— وَقِیْلَ لَهُمْ تَعَالَوْا قَاتِلُوْا فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ اَوِ ادْفَعُوْا ؕ— قَالُوْا لَوْ نَعْلَمُ قِتَالًا لَّاتَّبَعْنٰكُمْ ؕ— هُمْ لِلْكُفْرِ یَوْمَىِٕذٍ اَقْرَبُ مِنْهُمْ لِلْاِیْمَانِ ۚ— یَقُوْلُوْنَ بِاَفْوَاهِهِمْ مَّا لَیْسَ فِیْ قُلُوْبِهِمْ ؕ— وَاللّٰهُ اَعْلَمُ بِمَا یَكْتُمُوْنَ ۟ۚ
और ताकि उन लगों को भी जान ले, जो मुनाफ़िक़ हैं, जिनसे कहा गया कि आओ अल्लाह की राह में युद्ध करो अथवा (आम मुसलमानों की) रक्षा करो, तो उन्होंने कहा कि यदि हम जानते कि युद्ध होगा, तो अवश्य तुम्हारा साथ देते। वे उस दिन ईमान की अपेक्षा कुफ़्र के अधिक निकट थे। वे अपने मुँह से ऐसी बातें बोलते हैं, जो उनके दिलों में नहीं होती। तथा अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है जो वे छिपाते हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَلَّذِیْنَ قَالُوْا لِاِخْوَانِهِمْ وَقَعَدُوْا لَوْ اَطَاعُوْنَا مَا قُتِلُوْا ؕ— قُلْ فَادْرَءُوْا عَنْ اَنْفُسِكُمُ الْمَوْتَ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِیْنَ ۟
ये वही लोग हैं जो स्वयं तो (लड़ाई से) पीछे बैठे रहे और अपने भाइयों के बारे में कहने लगे : यदि वे हमारी बात मानते, तो मारे न जाते! (ऐ नबी!) कह दीजिए : फिर तो मौत[92] से अपनी रक्षा कर लो, यदि तुम सच्चे हो।
92. अर्थात अपने उपाय से सदाजीवी हो जाओ।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَا تَحْسَبَنَّ الَّذِیْنَ قُتِلُوْا فِیْ سَبِیْلِ اللّٰهِ اَمْوَاتًا ؕ— بَلْ اَحْیَآءٌ عِنْدَ رَبِّهِمْ یُرْزَقُوْنَ ۟ۙ
जो लोग अल्लाह के मार्ग में मारे गए हैं, उन्हें कदापि मृत न समझो, बल्कि वे जीवित[93] हैं, अपने पालनहार के पास रोज़ी दिए जाते हैं।
93. शहीदों का जीवन कैसा होता है? ह़दीस में है कि उनकी आत्माएँ हरे पक्षियों के भीतर रख दी जाती हैं और वे स्वर्ग में चुगते तथा आनंद लेते फिरते हैं। (सह़ीह़ मुस्लिम, ह़दीस : 1887)
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فَرِحِیْنَ بِمَاۤ اٰتٰىهُمُ اللّٰهُ مِنْ فَضْلِهٖ ۙ— وَیَسْتَبْشِرُوْنَ بِالَّذِیْنَ لَمْ یَلْحَقُوْا بِهِمْ مِّنْ خَلْفِهِمْ ۙ— اَلَّا خَوْفٌ عَلَیْهِمْ وَلَا هُمْ یَحْزَنُوْنَ ۟ۘ
वे उससे प्रसन्न हैं, जो अल्लाह ने अपनी कृपा से उन्हें प्रदान किया है, और उन लोगों के लिए भी खुश हो रहे हैं, जो उनके पीछे[94] रह गए हैं, अभी उनसे मिले नहीं हैं कि उन्हें भी न कोई भय होगा और न वे दुःखी होंगे।
94. अर्थात उन मुजाहिदीन के लिए जो अभी संसार में जीवित रह गए हैं।
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یَسْتَبْشِرُوْنَ بِنِعْمَةٍ مِّنَ اللّٰهِ وَفَضْلٍ ۙ— وَّاَنَّ اللّٰهَ لَا یُضِیْعُ اَجْرَ الْمُؤْمِنِیْنَ ۟
वे अल्लाह के अनुग्रह और उसकी कृपा से खुश हो रहे हैं और इससे कि अल्लाह ईमान वालों का बदला नष्ट नहीं करता।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَلَّذِیْنَ اسْتَجَابُوْا لِلّٰهِ وَالرَّسُوْلِ مِنْ بَعْدِ مَاۤ اَصَابَهُمُ الْقَرْحُ ۛؕ— لِلَّذِیْنَ اَحْسَنُوْا مِنْهُمْ وَاتَّقَوْا اَجْرٌ عَظِیْمٌ ۟ۚ
जिन लोगों ने अल्लाह और रसूल की पुकार को स्वीकार[95] किया, इसके पश्चात् कि उन्हें आघात पहुँच चुका था। उनमें से सत्कर्म करने वालों और (अल्लाह से) डरने वालों के लिए महान प्रतिफल है।
95. जब काफ़िर उह़ुद से मक्का वापस हुए, तो मदीने से 30 मील दूर "रौह़ाअ" से फिर मदीना वापस आने का निश्चय किया। जब आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को सूचना मिली, तो सेना ले कर "ह़मराउल असद" तक पहुँचे जिसे सुनकर वे भाग गए। इधर मुसलमान सफल वापस आए। इस आयत में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथियों की सराहना की गई है जिन्होंने उह़ुद में घाव खाने के पश्चात भी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का साथ दिया। ये आयतें इसी से संबंधित हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَلَّذِیْنَ قَالَ لَهُمُ النَّاسُ اِنَّ النَّاسَ قَدْ جَمَعُوْا لَكُمْ فَاخْشَوْهُمْ فَزَادَهُمْ اِیْمَانًا ۖۗ— وَّقَالُوْا حَسْبُنَا اللّٰهُ وَنِعْمَ الْوَكِیْلُ ۟
ये वही लोग हैं जिनसे लोगों ने कहा कि दुश्मनों ने तुम्हारे विरुद्ध सेना इकट्ठा कर ली है।[96] अतः उनसे डरो। तो इस (सूचना) ने उनके ईमान को और बढ़ा दिया और उन्होंने कहा : हमारे लिए अल्लाह काफ़ी है और वह बहुत अच्छा कार्यसाधक (काम बनाने वाला) है।
96. अर्थात शत्रु ने मक्का जाते हुए राह में सोचा कि मुसलमानों के परास्त हो जाने पर यह अच्छा अवसर था कि मदीने पर आक्रमण करके उनका उन्मू222लन कर दिया जाए, तथा वापस आने का निश्चय किया। (तफ़्सीर क़ुर्तुबी)
Arabic explanations of the Qur’an:
فَانْقَلَبُوْا بِنِعْمَةٍ مِّنَ اللّٰهِ وَفَضْلٍ لَّمْ یَمْسَسْهُمْ سُوْٓءٌ ۙ— وَّاتَّبَعُوْا رِضْوَانَ اللّٰهِ ؕ— وَاللّٰهُ ذُوْ فَضْلٍ عَظِیْمٍ ۟
चुनांचे वे अल्लाह की ओर से प्राप्त होने वाली नेमत और अनुग्रह के साथ[97] लौटे। उन्हें कोई तकलीफ़ नहीं पहुँची। तथा वे अल्लाह की प्रसन्नता के मार्ग पर चले। और अल्लाह बड़े अनुग्रह वाला है।
97. अर्थात "ह़मराउल असद" से मदीन वापस हुए।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّمَا ذٰلِكُمُ الشَّیْطٰنُ یُخَوِّفُ اَوْلِیَآءَهٗ ۪— فَلَا تَخَافُوْهُمْ وَخَافُوْنِ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِیْنَ ۟
वह तो शैतान है, जो तुम्हें अपने सहयोगियों से डरा रहा है। अतः तुम उनसे[98] न डरो और केवल मुझसे डरो, यदि तुम ईमान वाले हो।
98. अर्थात मिश्रणवादियों से।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَا یَحْزُنْكَ الَّذِیْنَ یُسَارِعُوْنَ فِی الْكُفْرِ ۚ— اِنَّهُمْ لَنْ یَّضُرُّوا اللّٰهَ شَیْـًٔا ؕ— یُرِیْدُ اللّٰهُ اَلَّا یَجْعَلَ لَهُمْ حَظًّا فِی الْاٰخِرَةِ ۚ— وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِیْمٌ ۟
(ऐ नबी!) वे लोग आपको दुःखी न करें, जो कुफ़्र में तेज़ी दिखा रहे हैं। वे अल्लाह को कदापि कोई हानि नहीं पहुँचा सकेंगे। अल्लाह चाहता है कि आख़िरत (परलोक) में उनका कोई हिस्सा न रखे तथा उनके लिए बड़ी यातना है।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ الَّذِیْنَ اشْتَرَوُا الْكُفْرَ بِالْاِیْمَانِ لَنْ یَّضُرُّوا اللّٰهَ شَیْـًٔا ۚ— وَلَهُمْ عَذَابٌ اَلِیْمٌ ۟
निःसंदेह जिन लोगों ने ईमान के बदले कुफ़्र का सौदा किया, वे अल्लाह का कुछ नहीं बिगाड़ेंगे। तथा उनके लिए दुःखदायी यातना है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَا یَحْسَبَنَّ الَّذِیْنَ كَفَرُوْۤا اَنَّمَا نُمْلِیْ لَهُمْ خَیْرٌ لِّاَنْفُسِهِمْ ؕ— اِنَّمَا نُمْلِیْ لَهُمْ لِیَزْدَادُوْۤا اِثْمًا ۚ— وَلَهُمْ عَذَابٌ مُّهِیْنٌ ۟
जो लोग काफ़िर हो गए, वे हरगिज़ यह न समझें कि हमारा उन्हें ढील[99] देना, उनके लिए अच्छा है। वास्तव में, हम उन्हें इसलिए ढील दे रहे हैं, ताकि उनके पाप[100] और बढ़ जाएँ। तथा उनके लिए अपमानजनक यातना है।
99. अर्थात उन्हें सांसारिक सुःख-सुविधा देना। भावार्थ यह है कि इस संसार में अल्लाह, सत्यासत्य, न्याय तथा अत्याचार सब के लिए अवसर देता है। परंतु इससे धोखा नहीं खाना चाहिए, यह देखना चाहिए कि परलोक की सफलता किस में है। सत्य ही स्थायी है तथा असत्य को ध्वस्त हो जाना है। 100. यह स्वभाविक नियम है कि पाप करने से पापाचारी में पाप करने की भावना अधिक हो जाती है।
Arabic explanations of the Qur’an:
مَا كَانَ اللّٰهُ لِیَذَرَ الْمُؤْمِنِیْنَ عَلٰی مَاۤ اَنْتُمْ عَلَیْهِ حَتّٰی یَمِیْزَ الْخَبِیْثَ مِنَ الطَّیِّبِ ؕ— وَمَا كَانَ اللّٰهُ لِیُطْلِعَكُمْ عَلَی الْغَیْبِ وَلٰكِنَّ اللّٰهَ یَجْتَبِیْ مِنْ رُّسُلِهٖ مَنْ یَّشَآءُ ۪— فَاٰمِنُوْا بِاللّٰهِ وَرُسُلِهٖ ۚ— وَاِنْ تُؤْمِنُوْا وَتَتَّقُوْا فَلَكُمْ اَجْرٌ عَظِیْمٌ ۟
ऐसा नहीं है कि अल्लाह ईमान वालों को उसी (हाल) पर छोड़ दे, जिसपर तुम (इस समय) हो, जब तक कि बुरे को अच्छे से अलग न कर दे। और ऐसा भी नहीं है कि अल्लाह तुम्हें ग़ैब (परोक्ष) से सूचित[101] कर दे। परंतु अल्लाह अपने रसूलों में से जिसे चाहता है (ग़ैब की कुछ बातें बताने के लिए) चुन लेता है। अतः तुम अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान लाओ। यदि तुम ईमान लाओ और अल्लाह से डरते रहो, तो तुम्हारे लिए बड़ा प्रतिफल है।
101. अर्थात तुम्हें बता दे कि कौन ईमान वाला और कौन मुनाफ़िक़ (पाखंडी) है।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَلَا یَحْسَبَنَّ الَّذِیْنَ یَبْخَلُوْنَ بِمَاۤ اٰتٰىهُمُ اللّٰهُ مِنْ فَضْلِهٖ هُوَ خَیْرًا لَّهُمْ ؕ— بَلْ هُوَ شَرٌّ لَّهُمْ ؕ— سَیُطَوَّقُوْنَ مَا بَخِلُوْا بِهٖ یَوْمَ الْقِیٰمَةِ ؕ— وَلِلّٰهِ مِیْرَاثُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ ؕ— وَاللّٰهُ بِمَا تَعْمَلُوْنَ خَبِیْرٌ ۟۠
जो लोग उस चीज़ में कंजूसी करते हैं, जो अल्लाह ने उन्हें अपने अनुग्रह से प्रदान किया[102] है, वे कदापि यह न समझें कि (उनका) यह (कृत्य) उनके लिए अच्छा है। बल्कि यह उनके लिए बुरा है। उन्होंने जिस चीज़ में कंजूसी की होगी, उसे क़ियामत के दिन उनके गले का तौक़[103] बना दिया जाएगा। और आकाशों तथा धरती का उत्तराधिकार (विरासत) अल्लाह के लिए[104] है और जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उससे सूचित है।
102. अर्थात धन-धान्य की ज़कात नहीं देते। 103. सह़ीह़ बुखारी में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा : जिसे अल्लाह ने धन दिया है, और वह उस की ज़कात नहीं देता, तो प्रलय के दिन उसका धन गंजा सर्प बना दिया जाएगा, जो उसके गले का हार बन जाएगा। और उसे अपने जबड़ों से पकड़ेगा, तथा कहेगा कि मैं तुम्हारा कोष हुँ! मैं तुम्हारा धन हूँ। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4565) 104. अर्थात प्रलय के दिन वही अकेला सब का स्वामी होगा।
Arabic explanations of the Qur’an:
لَقَدْ سَمِعَ اللّٰهُ قَوْلَ الَّذِیْنَ قَالُوْۤا اِنَّ اللّٰهَ فَقِیْرٌ وَّنَحْنُ اَغْنِیَآءُ ۘ— سَنَكْتُبُ مَا قَالُوْا وَقَتْلَهُمُ الْاَنْۢبِیَآءَ بِغَیْرِ حَقٍّ ۙۚ— وَّنَقُوْلُ ذُوْقُوْا عَذَابَ الْحَرِیْقِ ۟
निःसंदेह अल्लाह ने उन लोगों की बात सुन ली है, जिन्होंने कहा कि "अल्लाह निर्धन है और हम धनवान[105] हैं!" उन्होंने जो कुछ कहा है, हम उसे लिख लेंगे और उनके नबियों को अनाधिकार क़त्ल करने को भी। तथा हम (उनसे) कहेंगे कि (अब तुम) जलाने वाली यातना का मज़ा चखो।
105. यह बात यहूदियों ने कही थी। (देखिए : सूरतुल बक़रा, आयत : 254)
Arabic explanations of the Qur’an:
ذٰلِكَ بِمَا قَدَّمَتْ اَیْدِیْكُمْ وَاَنَّ اللّٰهَ لَیْسَ بِظَلَّامٍ لِّلْعَبِیْدِ ۟ۚ
यह तुम्हारे हाथों की कमाई का बदला है और निःसंदेह अल्लाह अपने बंदों पर तनिक भी अत्याचार करने वाला नहीं।
Arabic explanations of the Qur’an:
اَلَّذِیْنَ قَالُوْۤا اِنَّ اللّٰهَ عَهِدَ اِلَیْنَاۤ اَلَّا نُؤْمِنَ لِرَسُوْلٍ حَتّٰی یَاْتِیَنَا بِقُرْبَانٍ تَاْكُلُهُ النَّارُ ؕ— قُلْ قَدْ جَآءَكُمْ رُسُلٌ مِّنْ قَبْلِیْ بِالْبَیِّنٰتِ وَبِالَّذِیْ قُلْتُمْ فَلِمَ قَتَلْتُمُوْهُمْ اِنْ كُنْتُمْ صٰدِقِیْنَ ۟
ये वही लोग हैं जिन्होंने कहा : अल्लाह ने हमें वसीयत की है कि हम किसी रसूल पर ईमान न लाएँ यहाँ तक कि वह हमारे सामने ऐसी क़ुरबानी पेश करे, जिसे आग खा[106] जाए। (ऐ नबी!) आप कह दें कि मुझसे पहले तुम्हारे पास कई रसूल खुली निशानियाँ और वह (चमत्कार) भी लेकर आए जो तुम कहते हो, तो फिर तुमने उनकी हत्या क्यों की, यदि तुम सच्चे हो?
106. अर्थात आकाश से अग्नि आ कर उसे जला दे, जो उसके स्वीकार्य होने का लक्षण है।
Arabic explanations of the Qur’an:
فَاِنْ كَذَّبُوْكَ فَقَدْ كُذِّبَ رُسُلٌ مِّنْ قَبْلِكَ جَآءُوْ بِالْبَیِّنٰتِ وَالزُّبُرِ وَالْكِتٰبِ الْمُنِیْرِ ۟
फिर यदि वे[107] आपको झुठलाते हैं, तो आपसे पहले बहुत-से रसूल झुठलाए जा चुके हैं, जो खुली निशानियाँ, तथा (आकाशीय) ग्रंथ और प्रकाशक[108] पुस्तक लाए।
107. अर्थात यहूद आदि। 108. प्रकाशक जो सत्य को उजागर कर दे।
Arabic explanations of the Qur’an:
كُلُّ نَفْسٍ ذَآىِٕقَةُ الْمَوْتِ ؕ— وَاِنَّمَا تُوَفَّوْنَ اُجُوْرَكُمْ یَوْمَ الْقِیٰمَةِ ؕ— فَمَنْ زُحْزِحَ عَنِ النَّارِ وَاُدْخِلَ الْجَنَّةَ فَقَدْ فَازَ ؕ— وَمَا الْحَیٰوةُ الدُّنْیَاۤ اِلَّا مَتَاعُ الْغُرُوْرِ ۟
प्रत्येक प्राणी को मौत का स्वाद चखना है और तुम्हें क़ियामत के दिन तुम्हारे कर्मों का भरपूर प्रतिफल दिया जाएगा। (उस दिन) जो व्यक्ति जहन्नम से बचा लिया गया और जन्नत में प्रवेश पा गया[109], वह वास्तव में सफल हो गया। तथा दुनिया की ज़िंदगी धोखे की पूंजी के सिवा कुछ नहीं है।
109. अर्थात सत्य आस्था और सत्कर्मों के द्वारा इस्लाम के नियमों का पालन करके।
Arabic explanations of the Qur’an:
لَتُبْلَوُنَّ فِیْۤ اَمْوَالِكُمْ وَاَنْفُسِكُمْ ۫— وَلَتَسْمَعُنَّ مِنَ الَّذِیْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ مِنْ قَبْلِكُمْ وَمِنَ الَّذِیْنَ اَشْرَكُوْۤا اَذًی كَثِیْرًا ؕ— وَاِنْ تَصْبِرُوْا وَتَتَّقُوْا فَاِنَّ ذٰلِكَ مِنْ عَزْمِ الْاُمُوْرِ ۟
(ऐ ईमान वालो!) तुम अपने धनों और प्राणों के बारे में ज़रूर परीक्षा में डाले जाओगे और तुम अवश्य ही उन लोगों से जो तुमसे पहले किताब दिए गए थे तथा उन लोगों से जो शिर्क में पड़े हुए हैं[110], बहुत-सी दुःखद बातें सुनोगे। लेकिन यदि तुम धैर्य से काम लो और (अल्लाह से) डरते रहो, तो यह बड़े साहस का काम है।
110. अर्थात मूर्तियों के पुजारी, जो पूजा अर्चना तथा अल्लाह के विशेष गुणों में अन्य को उसका साझी बनाते हैं।
Arabic explanations of the Qur’an:
وَاِذْ اَخَذَ اللّٰهُ مِیْثَاقَ الَّذِیْنَ اُوْتُوا الْكِتٰبَ لَتُبَیِّنُنَّهٗ لِلنَّاسِ وَلَا تَكْتُمُوْنَهٗ ؗۗ— فَنَبَذُوْهُ وَرَآءَ ظُهُوْرِهِمْ وَاشْتَرَوْا بِهٖ ثَمَنًا قَلِیْلًا ؕ— فَبِئْسَ مَا یَشْتَرُوْنَ ۟
तथा (ऐ नबी! याद करो) जब अल्लाह ने किताब वालों[111] से पक्का वचन लिया था कि तुम अवश्य इसे लोगों के सामने बयान करते रहोगे और इसे छुपाओगे नहीं, तो उन्होंने इस वचन को पीठ पीछे डाल दिया और उसके बदले तनिक मूल्य प्राप्त[112] कर लिया। तो वे कितनी बुरी चीज़ खरीद रहे हैं?
111. किताब वाले अर्थातः यहूद और नसारा (ईसाई) जिन्हें तौरात और इंजील दिया गया। 112. अर्थात तुच्छ सांसारिक लाभ के लिए सत्य का सौदा करने लगे।
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لَا تَحْسَبَنَّ الَّذِیْنَ یَفْرَحُوْنَ بِمَاۤ اَتَوْا وَّیُحِبُّوْنَ اَنْ یُّحْمَدُوْا بِمَا لَمْ یَفْعَلُوْا فَلَا تَحْسَبَنَّهُمْ بِمَفَازَةٍ مِّنَ الْعَذَابِ ۚ— وَلَهُمْ عَذَابٌ اَلِیْمٌ ۟
(ऐ नबी!) जो लोग[113] अपने कृत्यों पर प्रसन्न हो रहे हैं और चाहते हैं कि उन्हें उन कामों के लिए (भी) सराहा जाए, जो उन्होंने नहीं किए हैं, तो आप हरगिज़ यह न समझें कि वे यातना से बच जाएँगे। उनके लिए तो दुःखदायी यातना है।
113. अबू सईद रज़ियल्लाहु अन्हु कहते हैं कि कुछ मुनाफ़िक़ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के युग में, आप युद्ध के लिए निकलते तो आपका साथ नहीं देते थे। और इसपर प्रसन्न होते थे और जब आप वापस होते, तो बहाने बनाते और शपथ लेते थे। और जो नहीं किया है, उसकी सराहना चाहते थे। इसी पर यह आयत उतरी। (सह़ीह़ बुख़ारी : 4567)
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وَلِلّٰهِ مُلْكُ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ ؕ— وَاللّٰهُ عَلٰی كُلِّ شَیْءٍ قَدِیْرٌ ۟۠
तथा आकाशों और धरती का राज्य अल्लाह ही का है तथा अल्लाह हर चीज़ पर सर्वशक्तिमान है।
Arabic explanations of the Qur’an:
اِنَّ فِیْ خَلْقِ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ وَاخْتِلَافِ الَّیْلِ وَالنَّهَارِ لَاٰیٰتٍ لِّاُولِی الْاَلْبَابِ ۟ۚۖ
निःसंदेह आसमानों और ज़मीन की रचना तथा रात और दिन के आने-जाने में, बुद्धिमानों के लिए निशानियाँ हैं।[114]
114. अर्थात अल्लाह के राज्य, स्वामित्व तथा एकमात्र पूज्य होने की।
Arabic explanations of the Qur’an:
الَّذِیْنَ یَذْكُرُوْنَ اللّٰهَ قِیٰمًا وَّقُعُوْدًا وَّعَلٰی جُنُوْبِهِمْ وَیَتَفَكَّرُوْنَ فِیْ خَلْقِ السَّمٰوٰتِ وَالْاَرْضِ ۚ— رَبَّنَا مَا خَلَقْتَ هٰذَا بَاطِلًا ۚ— سُبْحٰنَكَ فَقِنَا عَذَابَ النَّارِ ۟
जो खड़े और बैठे और अपनी करवटों पर लेटे हुए अल्लाह को याद करते हैं तथा आसमानों और ज़मीन की रचना में सोच-विचार करते हैं। (वे कहते हैं :) ऐ हमारे पालनहार! तूने यह सब कुछ बेकार[115] नहीं रचा है। अतः हमें आग के अज़ाब से बचा ले।
115. अर्थात यह विचित्र रचना तथा व्यवस्था अकारण नहीं, तथा आवश्यक है कि इस जीवन के पश्चात भी कोई जीवन हो जिसमें इस जीवन के कर्मों के परिणाम सामने आएँ।
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رَبَّنَاۤ اِنَّكَ مَنْ تُدْخِلِ النَّارَ فَقَدْ اَخْزَیْتَهٗ ؕ— وَمَا لِلظّٰلِمِیْنَ مِنْ اَنْصَارٍ ۟
ऐ हमारे पालनहार! तूने जिसे नरक में डाल दिया, तो वास्तव में तूने उसे अपमानित कर दिया। और ज़ालिमों का कोई सहायक नहीं।
Arabic explanations of the Qur’an:
رَبَّنَاۤ اِنَّنَا سَمِعْنَا مُنَادِیًا یُّنَادِیْ لِلْاِیْمَانِ اَنْ اٰمِنُوْا بِرَبِّكُمْ فَاٰمَنَّا ۖۗ— رَبَّنَا فَاغْفِرْ لَنَا ذُنُوْبَنَا وَكَفِّرْ عَنَّا سَیِّاٰتِنَا وَتَوَفَّنَا مَعَ الْاَبْرَارِ ۟ۚ
ऐ हमारे पालनहार! हमने एक पुकारने वाले[116] को ईमान की ओर बुलाते हुए सुना कि अपने पालनहार पर ईमान लाओ, तो हम ईमान ले आए। ऐ हमारे पालनहार! तो अब तू हमारे पापों को क्षमा कर दे तथा हमारी बुराइयों को हमसे दूर कर दे और हमें सदाचारियों के साथ मृत्यु दे।
116. अर्थात अंतिम नबी मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को।
Arabic explanations of the Qur’an:
رَبَّنَا وَاٰتِنَا مَا وَعَدْتَّنَا عَلٰی رُسُلِكَ وَلَا تُخْزِنَا یَوْمَ الْقِیٰمَةِ ؕ— اِنَّكَ لَا تُخْلِفُ الْمِیْعَادَ ۟
ऐ हमारे पालनहार! और हमें वह चीज़ प्रदान कर जिसका तूने अपने रसूलों के द्वारा हमसे वादा किया है तथा क़यामत के दिन हमें अपमानित न कर। वास्तव में तू अपने वादे के विरुद्ध नहीं करता है।
Arabic explanations of the Qur’an:
فَاسْتَجَابَ لَهُمْ رَبُّهُمْ اَنِّیْ لَاۤ اُضِیْعُ عَمَلَ عَامِلٍ مِّنْكُمْ مِّنْ ذَكَرٍ اَوْ اُ ۚ— بَعْضُكُمْ مِّنْ بَعْضٍ ۚ— فَالَّذِیْنَ هَاجَرُوْا وَاُخْرِجُوْا مِنْ دِیَارِهِمْ وَاُوْذُوْا فِیْ سَبِیْلِیْ وَقٰتَلُوْا وَقُتِلُوْا لَاُكَفِّرَنَّ عَنْهُمْ سَیِّاٰتِهِمْ وَلَاُدْخِلَنَّهُمْ جَنّٰتٍ تَجْرِیْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ ۚ— ثَوَابًا مِّنْ عِنْدِ اللّٰهِ ؕ— وَاللّٰهُ عِنْدَهٗ حُسْنُ الثَّوَابِ ۟
तो उनके पालनहार ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली (और फरमाया) कि मैं किसी नेकी करने वाले की नेकी को नष्ट नहीं करता[117], चाहे वह नर हो या नारी। तुम सब आपस में एक-दूसरे से हो। अतः जिन लोगों ने हिजरत की और अपने घरों से निकाले गए और मेरे मार्ग में सताए गए और उन्होंने जिहाद किया और शहीद किए गए, मैं अवश्य उनकी बुराइयाँ उनसे दूर कर दूँगा और अवश्य ही उन्हें ऐसे बागों में दाख़िल करूँगा, जिनके नीचे नहरें बह रही हैं। यह अल्लाह के पास से उनका बदला होगा और अल्लाह ही के पास सबसे अच्छा बदला है।
117. अर्थात अल्लाह का यह नियम है कि वह सत्कर्म अकारथ नहीं करता, उसका प्रतिफल अवश्य देता है।
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لَا یَغُرَّنَّكَ تَقَلُّبُ الَّذِیْنَ كَفَرُوْا فِی الْبِلَادِ ۟ؕ
(ऐ नबी!) नगरों में काफ़िरों का (सुविधा के साथ) चलना-फिरना आपको धोखे में न डाले।
Arabic explanations of the Qur’an:
مَتَاعٌ قَلِیْلٌ ۫— ثُمَّ مَاْوٰىهُمْ جَهَنَّمُ ؕ— وَبِئْسَ الْمِهَادُ ۟
यह थोड़ी-सी सुख-सामग्री[118] है, फिर उनका ठिकाना जहन्नम है और वह बहुत बुरा ठिकाना है!
118. अर्थात सामयिक सांसारिक आनंद है।
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لٰكِنِ الَّذِیْنَ اتَّقَوْا رَبَّهُمْ لَهُمْ جَنّٰتٌ تَجْرِیْ مِنْ تَحْتِهَا الْاَنْهٰرُ خٰلِدِیْنَ فِیْهَا نُزُلًا مِّنْ عِنْدِ اللّٰهِ ؕ— وَمَا عِنْدَ اللّٰهِ خَیْرٌ لِّلْاَبْرَارِ ۟
परन्तु जो लोग अपने पालनहार से डरते रहे, उनके लिए ऐसी जन्नतें हैं, जिनके नीचे नहरें बह रही हैं। वे उनमें हमेशा रहेंगे। यह अल्लाह के पास से अतिथि सत्कार होगा। तथा जो कुछ अल्लाह के पास है, वह नेक लोगों के लिए सबसे अच्छा है।
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وَاِنَّ مِنْ اَهْلِ الْكِتٰبِ لَمَنْ یُّؤْمِنُ بِاللّٰهِ وَمَاۤ اُنْزِلَ اِلَیْكُمْ وَمَاۤ اُنْزِلَ اِلَیْهِمْ خٰشِعِیْنَ لِلّٰهِ ۙ— لَا یَشْتَرُوْنَ بِاٰیٰتِ اللّٰهِ ثَمَنًا قَلِیْلًا ؕ— اُولٰٓىِٕكَ لَهُمْ اَجْرُهُمْ عِنْدَ رَبِّهِمْ ؕ— اِنَّ اللّٰهَ سَرِیْعُ الْحِسَابِ ۟
और निःसंदेह किताब वालों (यहूदियों और ईसाइयों) में से कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो अल्लाह पर ईमान रखते हैं, तथा जो कुछ तुम्हारी ओर उतारा गया और जो स्वयं उनकी ओर उतारा गया है, उसपर भी ईमान रखते हैं। वे अल्लाह के सामने विनम्र रहने वाले हैं। और उसकी आयतों को थोड़ी क़ीमत पर बेचते नहीं हैं।[119] उनका बदला उनके रब के पास है। निःसंदेह अल्लाह जल्द ही हिसाब लेने वाला है।
119. अर्थात यह यहूदियों और ईसाइयों का दूसरा समुदाय है, जो अल्लाह पर और उसकी किताबों पर सह़ीह़ प्रकार से ईमान रखता था। और सत्य को स्वीकार करता था। तथा इस्लाम और रसूल तथा मुसलमानों के विरुद्ध साज़िशें नहीं करता था। और चंद टकों के कारण अल्लाह के आदेशों में हेर-फेर नहीं करता था।
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یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوا اصْبِرُوْا وَصَابِرُوْا وَرَابِطُوْا ۫— وَاتَّقُوا اللّٰهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُوْنَ ۟۠
ऐ ईमान वालो! तुम धैर्य से काम लो[120] और (अपने दुश्मन की तुलना में) अधिक धैर्य दिखाओ, तथा जिहाद के लिए तैयार रहो और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम सफल हो सको।
120. अर्थात अल्लाह और उसके रसूल की फ़रमाँबरदारी करके और अपनी मनमानी छोड़कर धैर्य करो। और यदि शत्रु से लड़ाई हो जाए तो उसमें सामने आने वाली परेशानियों पर डटे रहना बहुत बड़ा धैर्य है। इसी प्रकार शत्रु के बारे में सदैव चौकन्ना रहना भी बहुत बड़े साहस का काम है। इसीलिए ह़दीस में आया है कि अल्लाह के रास्ते में एक दिन मोर्चे बंद रहना इस दुनिया और इसकी तमाम चीज़ों से उत्तम है। (सह़ीह़ बुख़ारी)
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Translation of the meanings Surah: Āl-‘Imrān
Surahs’ Index Page Number
 
Translation of the Meanings of the Noble Qur'an - Hindi Translation - Translations’ Index

Translation of the Quran meanings into Indian by Azizul-Haqq Al-Umary.

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